शुक्रवार, 23 अप्रैल 2010

शादी

देर से शादी
क्या कह रहे हो, अब इस उम्र में तुम शादी करोगे? दिमाग तो तुम्हारा ठीक है न! विनीत के मुंह से शादी का जिक्र सुनते ही मनु ऐसे उछला जैसे किसी अनहोनी की खबर सुन ली हो। पार्टी में शामिल बाकी दोस्तों की प्रतिक्रिया भी लगभग यही थी। पहले तो किसी को सहसा विश्वास ही नहीं हो रहा था और हुआ भी तो कोई इस बात को सहज ढंग से स्वीकार नहीं कर पा रहा था। लगे हाथ शुरू हो गए किस्से भी कि किसने किस उम्र में शादी की तो उसे आगे चलकर क्या-क्या झेलना पडा।

ऐन वक्त पर अगर विशाल ने दखल न दिया होता तो विनीत की तो हिम्मत टूट ही जाती। कम से कम एक बार अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए तो मजबूर हो ही गया था वह। तभी विशाल ने अपने अंदाज में फटकारा था सबको, क्या होता है भई देर से शादी करने से? ऐं.. क्या होता है? कोई विनीत पहला शख्स है जो इस उम्र में शादी करने जा रहा है? इसके पहले भी बहुत लोगों ने 40 के बाद शादी की है। 40 ही क्यों, इस दुनिया में 50 और 60 के बाद भी लोगों ने शादियां की हैं। वे भी इसी धरती पर हैं और सुखी रहे हैं। और ऐसे भी लोग हुए हैं जिन्होंने 20 से पहले शादियां की हैं और उनमें भी कई लोगों की शादियां सफल नहीं हुई हैं। ये गुजरे जमाने की बातें सोचनी छोड दो। मान लो . जब तू जागे तभी सवेरा..

ये उम्र की सीमा

भारत में विवाह की उम्र आमतौर पर 20 के 30 के बीच ही मानी जाती है। हालांकि बमुश्किल बीस साल पहले यह उम्र और भी कम थी। उन दिनों आम तौर पर 25 की उम्र पूरी करने से पहले ही शादियां हो जाती थीं। इससे भी पहले अगर आजादी से पहले की बात करें तो बाल विवाह आम बात थी। तमाम प्रयासों के बावजूद अभी भी भारत इस समस्या से पूरी तरह उबरा नहीं है। कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में बाल विवाह हो ही रहे हैं। एक ऐसे समाज में जहां आबादी का एकबडा हिस्सा अबोध बचों के विवाह को सामान्य रूप से स्वीकार करता हो, जब कोई 40 या 50 की उम्र में शादी की बात करता है तो उस पर सवाल उठना स्वाभाविक ही है।

पर यह बात भी अब कोई असामान्य नहीं रह गई है। अपने करियर पर ही पूरा ध्यान देने वाले ऐसे युवाओं की संख्या बडी तेजी से बढ रही है जो 35-40 की उम्र बीत जाने पर भी अविवाहित हैं। ये ऐसे लोग हैं जो आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं और उनके सामाजिक संपर्क का दायरा भी बहुत बडा है। अपने व्यावसायिक सामाजिक संपर्को और जिम्मेदारियों को निभाने में ही इतने व्यस्त हैं कि निजी जिंदगी के लिए सोचने का या तो इन्हें वक्त ही नहीं मिलता, या फिर अपनी अकेले की निजता में किसी दूसरे के स्थायी दखल के लिए वे स्पेस भी नहीं निकालना चाहते। ऐसे लोगों में स्त्री और पुरुष दोनों शामिल हैं।

जिंदगी में क्वालिटी

इसके पीछे कई तत्व कारण रूप में मौजूद हैं। सबसे बडी वजह तो जीवनस्तर के प्रति लोगों की बदली धारणा है। जैसे-तैसे जिंदगी गुजार लेने में अब किसी का विश्वास नहीं रह गया है। अब हर शख्स जिंदगी को पूरी शिद्दत से जीना चाहता है। उसे सिर्फ जिंदगी नहीं, जिंदगी में क्वालिटी भी चाहिए। इसकी एक जरूरी शर्त है ज्यादा पैसा और उसके लिए करियर में सफलता अनिवार्य है। लगातार बढती प्रतिस्पर्धा के इस दौर में करियर में सफलता का मतलब अब सिर्फ एक बार खुद को साबित कर लेने तक ही सीमित नहीं रह गया है। गलाकाट प्रतिस्पर्धा और नित नए रंग बदलते बाजार के इस दौर में खुद को रोज-रोज साबित करना पडता है। इसके लिए सिर्फ व्यावसायिक योग्यता ही पर्याप्त नहीं है, उसे फायदेमंद बनाने के कई और हुनर भी सीखने पडते हैं और उन पर अमल भी करना होता है। 24 &7 की व्यस्तता वाले इस माहौल में व्यावसायिक पेंचीदगियों के सामने अपनी जरूरतें गौण हो गई हैं। फलत: विवाह जैसी जरूरतें कल पर ही टलती जा रही हैं। एक ऐसे कल पर जो कभी नहीं आता या आता भी है तो इतनी देर हो चुकी होती है कि..

पूरब-पश्चिम की बात

कुछ लोग भारत में इस प्रवृत्ति के बढने के पीछे सिर्फ पश्चिम के प्रभाव को कारण मानते हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा है नहीं। दिल्ली विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग में प्रोफेसर डॉ. अशुम गुप्ता का मानना है, आज के समाज में पूरब-पश्चिम जैसा कोई विभाजन रह ही नहीं गया है। आज पूरी दुनिया एक ग्लोबल विलेज बन चुकी है। विकास की किसी प्रक्रिया या किसी संकट के किसी देश में शुरू होने का समय थोडा आगे-पीछे हो सकता है, पर उससे प्रभावित सभी समान रूप से हैं। यह किसी खास समाज के संक्रमण का नहीं, समय की जरूरतों का असर है।

सच तो यह है कि इसका चिंताजनक असर जिन देशों में देखा जा रहा है, उनमें पूरब का एक देश सबसे ऊपर है। जापानी समाज इससे सबसे ज्यादा प्रभावित है। वहां बडी संख्या में लोगों के अविवाहित रह जाने तथा अधिकतर लोगों के बहुत देर से विवाह करने के कारण जन्मदर बहुत घट चुकी है और इसके चलते डेमोग्राफिक स्थितियां बिगड रही हैं। जर्मनी, इटली, स्पेन, ताइपेई और कोरिया में भी यह संकट देखा जा रहा है। वैसे इंग्लैंड और फ्रांस में यह संकट 19वीं शताब्दी के आरंभ से ही देखा जा रहा है। जर्मन डेमोग्राफर जी. मैकेनरॉथ जापानी समाज के संकट की वजह आर्थिक विकास की प्रक्रिया में ही तलाशते हैं। जबकि जापानी समाजशास्त्री एम. यामदा देर तक विवाह न करने वालों को पैरासाइट सिंगल्स का नाम देते हैं। पैरासाइट सिंगल्स यामदा उन अविवाहित लोगों को कहते हैं जिन्होंने सही समय पर विवाह नहीं किया और अपने पेरेंट्स के साथ रह रहे हैं। यामदा इसकी वजह जापान की भयावह महंगाई में देखते हैं, माता-पिता के साथ रहते हुए वे बहुत तरह के खर्र्चो से बच जाते हैं। इससे उनके लिए जिंदगी थोडी आसान हो जाती है। इसलिए अधिकतर युवा विवाह से बच रहे हैं।

हावी हैं दूसरी जरूरतें

हालांकि भारत की स्थिति इससे भिन्न है। यहां विवाह से वे लोग नहीं बच रहे हैं, जिनके सामने खर्च का संकट है, बल्कि वे बच रहे हैं जिनके सामने कोई बडा उद्देश्य है। वह उद्देश्य उन्हें जिंदगी की अन्य जरूरतों से बडा दिखता है। उनके लिए जीवन का सारा सुख अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने तक सीमित है। उनके लिए विवाह का मसला पीछे छूट जाता है। जबकि कुछ लोग विवाह बहुत देर से करते हैं। यूं देखा जाए तो देर से विवाह करने वाले लोग आम तौर पर अपने करियर में पूरी तरह सेटल हो चुके होते हैं। इसके लिए ज्यादा जोखिम लेने की सुविधा उन्हें होती है। इन महत्वाकांक्षी युवाओं में कुछ अपने घर-परिवार से जुडे हैं तो कुछ भौतिक और भावनात्मक दोनों तरह से दूर भी। जो दूर हैं, वे क्षणिक सुख के लिए क्षणिक साथ को बेहतर विकल्प मानने लगे हैं। चूंकि महानगरीय समाज में लिव-इन रिलेशनशिप अब स्वीकार्य होता जा रहा है, तो इसके तमाम खतरों को जानते हुए भी कुछ लोग इसे भी अपना रहे हैं।

मुश्किल तब आती है जब ऐसे लोगों को विवाह की जरूरत महसूस होती है और यह जरूरत एक न एक दिन महसूस होती ही है। नई दिल्ली के जी.एम. मोदी हॉस्पिटल में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. अनीता गुप्ता के अनुसार, देर से विवाह के चलते स्त्री-पुरुष दोनों ही को फर्टिलिटी से संबंधित दिक्कतें हो सकती हैं। खास कर स्त्रियों को डिलिवरी में मुश्किल होती है। ऐसी स्त्रियों को अकसर सिजेरियन डिलिवरी करवानी पडती है।

मिल जाता है वक्त
1. व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है।
2. पारिवारिक जिम्मेदारी न होने के कारण वह अपना पूरा ध्यान व्यावसायिक जरूरतों पर लगा सकता है। इससे करियर में सफलता जल्दी और आसानी से मिल सकती है।
3. स्त्री-पुरुष दोनों ही उम्र के साथ समझ के स्तर पर भी अधिक परिपक्व हो जाते हैं। इससे विभिन्न मुद्दों पर आपस में समझ बनाना आसान होता है।
4. पहले आर्थिक रूप से संपन्न हो जाने के कारण परिवार की जरूरतों को ज्यादा सही ढंग से पूरी कर पाते हैं।

दिक्कतें भी हैं बहुत
1. एक निश्चित उम्र के बाद फर्टिलिटी रेट में कमी आने लगती है। ऐसी स्थिति में बचे होने की संभावना घट जाती है।
2. देर से शादी के बाद डिलिवरी में भी परेशानी आती है। ऐसे मामलों में अकसर सिजेरियन डिलिवरी करानी पडती है।
3. कम उम्र के व्यक्ति के लिए खुद को नए व्यक्ति या परिवेश के अनुसार ढालना आसान होता है। जबकि अधिक उम्र में यह बहुत मुश्किल हो जाता है। अत: पति-पत्नी के बीच सामंजस्य में भी मुश्किलें आती हैं।
4. देर से शादी करने पर बचे भी देर से होते हैं। ऐसी स्थिति में बचों के जीवन को समय रहते सही दिशा देना बहुत मुश्किल होता है। इससे बाद का जीवन मुश्किल हो जाता है।

करियर खत्म नहीं होता
महिमा चौधरी, अभिनेत्री

आम तौर पर नायिकाएं शादी की ओर तभी रुख करती हैं जब उनकी प्राथमिकताएं बदल जाती हैं। फिर भी यह जरूरी नहीं कि शादी के बाद वे फिर फिल्मों में न आएं। मिसाल के तौर पर ऐश्वर्या राय या रेखा जी ने शादी के बाद भी फिल्मों में काम जारी रखा। कई नायिकाएं खुद फिल्मों से दूर हो जाती हैं। माधुरी दीक्षित इसकी सर्वोत्तम मिसाल हैं। शादी के बाद वह तब तक फिल्मों में नहीं आई जब तक उनके बचे बडे नहीं हो गए। पर शादी के बाद नायिकाओं का करियर खत्म होने की धारणा बिलकुल गलत है। 70-80 के दशक की बात करें तो पाएंगे कि कई नायिकाओं ने शादी के बाद भी काम करना जारी रखा। कई लोगों को लगता है कि नायिकाएं जब फिल्मों में दुबारा आती हैं तो उन्हें लीड रोल के बजाय मां, बहन या भाभी की भूमिकाएं मिलती हैं। मैं इस बात से भी सहमत नहीं हूं। हेमा मालिनी, शर्मिला टैगोर, डिंपल कपाडिया, भाग्यश्री और काजोल ऐसे नाम हैं, जिन्होंने न सिर्फ शादी बल्कि बचे होने के बाद भी अभूतपूर्व सफलता पाई।

निर्माता के लिए किसी नायिका के शादीशुदा होने या न होने से ज्यादा बॉक्स ऑफिस पर उसकी सफलता मायने रखती है। हां, यह सच है कि आज की लडकियों के लिए करियर ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। इसीलिए विवाह वे अकसर देर से कर रही हैं। यह सिर्फ बॉलीवुड ही नहीं, हर क्षेत्र में हो रहा है। अधिकतर कामकाजी स्त्रियां देर से विवाह करती हैं। आधुनिक समाज में ये बातें मान्य हो चुकी हैं कि लडका हो या लडकी, पहले अपना करियर बनाओ, फिर कुछ और करो। इसलिए स्त्रियां भी अब करियर में स्थापित होने के बाद ही शादी के बारे में सोचती हैं। स्त्री हो या पुरुष, सभी को अपने सपने साकार करने का हक है। इसलिए देर से विवाह करने में कोई खराबी नहीं है, मगर इसके कुछ साइडइफेक्ट्स भी हैं। यह बात सही है कि 22-25 की उम्र में जो लोग माता-पिता बनते हैं उनके बचे काफी स्वस्थ होते हैं। बाद में बचों और माता-पिता दोनों के लिए रिस्क बढ जाता है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में विज्ञान इन मुश्किलों पर जीत हासिल कर ले। फिर भी मैं मानती हूं कि विवाह में बहुत देर नहीं करनी चाहिए।

जहां तक मेरी बात है, दस साल इंडस्ट्री को देने के बाद मैंने बिलकुल सही वक्त पर विवाह का फैसला लिया। बेटी ने भी मुझे जिम्मेदारी का नया एहसास दिया। कई बार इस जिम्मेदारी के कारण मुझे समझौते करने पडते हैं। कुछ प्रोजेक्ट तो केवल इसलिए ठुकराने पडे क्योंकि उन पर काम का वक्त मेरी बेटी के रुटीन के अनुसार उपयुक्त नहीं था। मेरी जिंदगी पूरी तरह उसके इशारे पर चल रही है। पर यह मेरे लिए कोई अफसोस की बात नहीं है, बल्कि इससे मुझे दिली खुशी मिलती है। यह सिर्फमेरी ही नहीं, हर मां की कहानी है।

कोई बाधा नहीं
दीपक तिजोरी, अभिनेता

शादी का मामला बहुत हद तक हमारी योजना और किस्मत पर निर्भर है। कभी-कभी हम एक-दूसरे को देखते हैं और शादी कर लेते हैं। कई बार लंबे समय तक प्रेम संबंध चलने के बाद भी शादी नहीं कर पाते। मैं इसमें बिलकुल यकीन नहीं करता कि ज्यादा दिनों तक शादी न करके लोग करियर पर ध्यान दे पाते हैं। पति-पत्नी अगर समझदार होंगे तो वे एक-दूसरे के काम में बाधा क्यों डालेंगे? जहां तक अभिनेत्रियों के करियर पर शादी से असर पडने का सवाल है, आज ऐसी कोई बात नहीं है। निर्माता काजोल को चुन रहे हैं, माधुरी भी फिल्में कर रही हैं। अब कहानी अहम है। यदि मांग है तो वही कलाकार चाहिए, जो सही लगेगा। ऐसी सोच से निर्माताओं के प्रभावित होने जैसी कोई बात ही नहीं है। दर्शक कहानी को अधिक पसंद करते हैं, कलाकार को कम। दोनों अछे हैं तो फिल्म जरूर सफल होगी। मैं तो शादी के पहले जैसे काम करता था, आज भी वैसे ही कर रहा हूं। पहले अभिनय किया, आज फिल्में बना रहा हूं। योजना बनाकर चलने से हर काम आसान हो जाता है।

विवाह देर से या समय से कर लेने का कोई असर होता है, ऐसा मैं नहीं मानता। बहुत से लोग हैं इंडस्ट्री में जिन्होंने अभी तक शादी नहीं की है और जिनकी काफी उम्र हो गई है। लेकिन शादी होगी, तो बुरा असर होगा, मैं इसे सही नहीं मानता।

बदल रही है सोच

सोनाली कुलकर्णी, अभिनेत्री

देर से विवाह करने में मुझे कोई बुराई नजर नहीं आती, क्योंकि आज सभी लोग करियर को तवज्जो दे रहे हैं। आज लडकी या लडके 20 या 25 साल की उम्र में शादी करना नहीं चाहते। इसमें दो राय नहीं है कि करियर के लिए कुछ युवा अपने माता-पिता तथा करीबी रिश्तेदारों की भावनाओं को नजरअंदाज कर देते हैं। यह उनका निजी मामला है। अत: इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता। खास तौर से फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा शायद ही हुआ हो जब किसी हीरो या हीरोइन के माता-पिता उसके विवाह को लेकर चिंतित हुए हों।

आम तौर पर माता-पिता अपने बचों के सपनों को अपना सपना समझकर न सिर्फ उनके साथी बनते हैं, बल्कि उनकी भावनाओं को भी समझते हैं। देर से विवाह की एक वजह आज की पीढी का महत्वाकांक्षी होना है। मगर साथ ही मैं यह भी कहना चाहूंगी कि हमारी आज की युवा पीढी काफी डरी हुई है। इसीलिए उन्हें एक ऐसे रिश्ते की दरकार है जो न सिर्फ विश्वासपात्र हो, बल्कि लंबे समय तक टिकने वाला भी हो। मेरे कई ऐसे दोस्त हैं जो ये मानते हैं कि भले ही शादी में अधिक वक्त लग जाए मगर पति या पत्नी ऐसी मिले जो हर कदम पर साथ निभाए और सही मायने में जीवनसाथी साबित हो। मुझे खुशी है कि आज की पीढी सचे रिश्ते की तलाश में है। फिल्म इंडस्ट्री में देर से विवाह आम बात है। बहुत लोगों का मानना है कि शादी के बाद नायिकाएं फिल्म में लीड रोल के लायक नहीं रह जातीं। सच कहूं तो ये बात आज से दस साल पहले सच भी थी, मगर अब ऐसा नहीं है। हां, कुछ ऐसे फिल्मकार आज भी हैं जो सोचते हैं कि शादीशुदा नायिकाओं को फिल्मों में लेना घाटे का सौदा है। उन्हें सिर्फ 18 साल की कमसिन नायिकाएं चाहिए। पर आज का दर्शक इस बात से बिल्कुल प्रभावित नहीं होता है कि किसी नायिका की शादी हुई है या नहीं। यही वजह है कि ऐश्वर्या राय बचन, माधुरी दीक्षित और काजोल जैसी बेहतरीन नायिकाओं ने शादी के बाद भी अपने करियर को खासा तवज्जो दिया। मुझे यह बदलाव बहुत अछा लगता है। मैं इन सभी नायिकाओं की तहेदिल से शुक्रगुजार हूं कि वे न सिर्फ अछी फिल्मों से जुडी रहीं, बल्कि आज भी उन्होंने अपनी पहले जैसी ही छवि दर्शकों के मन में बनाए रखी है। कुछ नायिकाएं विवाह के बाद फिल्मों को अलविदा भी कह देती हैं। यह उनका निजी मामला है। दरअसल नायिका होना बहुत मेहनत का काम है। शारीरिक और मानसिक रूप से फिल्मों से जुडे रहने के साथ-साथ यात्राएं भी बहुत करनी पडती हैं। इससे मन ऊब जाता है। ऐसे में शादी उनके लिए ब्रेक लेने जैसा होता है। थोडे दिन बाद जब वह तरोताजा महसूस करने लगती हैं तो दुबारा काम पर लौट आती हैं। मैं समझती हूं कि विवाह के बाद यदि कोई नायिका फिल्मों में दुबारा आना चाहती है तो उसे अपनी निजी जिंदगी और करियर के बीच संतुलन बनाए रखना चाहिए। इसके लिए सबसे जरूरी है परिवार का विश्वास जीतना। उन्हें रोज यह समझाना न पडे कि आप क्या कर रही हैं और क्यों कर रही हैं? कई बार तो करियर के चलते ही निजी जिंदगी में दरार आ जाती है। पारिवारिक कलह या आपसी समझ में कमी रिश्तों की अपरिपक्वता की निशानी है। मैं समझती हूं देर से विवाह के जरिये इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। मगर कई लोगों का यह भी मानना है कि देर से विवाह होने के कारण जीवन पर इसका बुरा असर पडता है। इससे मैं बिलकुल सहमत नहीं हूं। दरअसल शादी कब हो, इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि शादी किससे हो। साथ ही यह भी जरूरी है कि विवाह जैसे मजबूत रिश्ते को समझने की आपकी समझ कितनी है।

नसीब की भी बात है

अजय चौधरी, अभिनेता

विवाह कोई देर से करे या पहले, यह उसकी अपनी मर्जी पर निर्भर है। लंबे समय तक अकेले रहकर लोग करियर पर ज्यादा ध्यान दे पाते हैं, ऐसा कुछ लोग सोचते हैं। हो सकता है कि वे सही सोचते हों, पर मैं खुद ऐसा नहीं मानता। जहां तक विवाह से नायिकाओं के करियर पर असर पडने की बात है अब ऐसी कोई बात नहीं है। जूही चावला, माधुरी दीक्षित, काजोल इसके प्रमाण है। इसकी एक बडी वजह यह भी है कि दर्शक की मानसिकता भी पहले की तुलना में बहुत बदली है। दर्शक को आज कुल मिलाकर एक अछी फिल्म चाहिए। वह इस बात से कोई मतलब नहीं रखता कि नायक या नायिका शादीशुदा है या अविवाहित।

खुद निर्माता भी अब ऐसा नहीं सोचते। हां, पहले जरूर ऐसा सुनने को मिलता था। मैंने अभी शादी नहीं की है। लेकिन इसकी यह वजह बिलकुल नहीं है कि मैं किसी खास वजह से शादी नहीं कर रहा हूं। इस संबंध में ऐसी कोई खास सोच भी नहीं है मेरी। मैं तलाश में हूं, जब भी कोई पसंद की लडकी मिली शादी कर लूंगा। लेकिन यह मैं साफ तौर पर मानता हूं कि काम पर शादी से कोई फर्क नहीं पडता। इसके तमाम उदाहरण हैं- सैफ, अजय, अक्षय, आमिर, शाहरुख आदि।

अपनी ही धुन में उलझा रहा

अशोक सालियन, सेलिब्रिटी फोटोग्राफर

मैंने शादी क्यों नहीं की..? मेरे कई दोस्त यह सवाल कर चुके हैं। पर असल में इसका क्या कारण है, मैं खुद भी ठीक-ठीक नहीं जानता। शादी करने में एक अहम मुद्दा यह होता है कि आप अपने हमसफर से सभी तरह के संबंध रख सकते हैं। आप पर कोई उंगली नहीं उठा सकता। मुझे शादी की वैसे जरूरत नहीं पडी, आय एम एंड वॉज इन रिलेशनशिप्स। दूसरी बात यह भी है कि मैंने अपने पेशे से बेहद प्यार किया। मुझे यह पेशा चुने करीब 17-18 साल हो गए। इस बीच मैं खुद के लिए वक्त ही नहीं निकाल सका। मेरे लिए फोटोग्राफी पेशा नहीं, पैशन है। कोई पैशन जिंदगी पर हावी हो जाए तो कोई क्या कर सकता है! मैं दिन-रात अपने पैशन में उलझा रहा, कभी देश तो कभी विदेश.. इस भागदौड भरी जिंदगी में मुझे पीछे मुडकर देखने का वक्त ही नहीं मिला। पहले हर साल मैं सोचता था कि नए साल में शादी कर लूंगा। यह सिलसिला कुछ साल नए उत्साह के साथ चलता रहा। तब परिवार वालों को भी उम्मीद थी कि मैं जल्द ही शादी कर लूंगा, पर वक्त गुजरता गया और मैं अकेला ही रह गया।

मैं तो इस मामले में खुद को खुशकिस्मत मानता हूं कि मेरे परिवार में कोई मुझ पर दबाव देने वाला नहीं था। बहुत लोगों को दबाव में शादी करनी पडती है। बाद में वे अपने पार्टनर को वक्त भी नहीं दे पाते। शादी करना एक बडी जिम्मेदारी है। मैं मानता हूं कि शादी के अपने फायदे हैं और नुकसान भी। कहा जाता है कि ये वो लड्डू है जिसे खाने वाले भी पछताते हैं और न खाने वाले भी। पर यह सच है कि जो लोग लंबे समय तक शादी नहीं करते वे अपने काम पर ज्यादा ध्यान दे पाते हैं। उनकी कार्यक्षमता शादी न करने से बंटती नहीं है। कई प्रोफेशनल्स अपने काम में इतने उलझे होते हैं कि परिवार को वक्त ही नहीं दे पाते। फिर प्यार की मिठास कम और तनाव ज्यादा हो जाता है। आखिरकार खुद को और सभी को दुखी कर देते हैं।

इससे बेहतर यही है कि शादी या करियर में से कोई एक चुन लें। तो मैंने करियर को चुना। कई बार लगता है कि जो दंपती बहुत सीधे-सादे हैं, जिनकी एक-दूसरे से अपेक्षाएं कम हैं, वे लंबे समय तक साथ निभाते हैं। जैसे सुधा मूर्ति-नारायण मूर्ति हैं। दोनों इंटेलेक्चुअल हैं, पेशा भी एक है। कंपनी और सोच भी एक। जो शख्स परिवार के प्रेशर-तनाव को मैनेज कर सकता है, वही शादी के काबिल है, नॉट मी। लोग तो बेचारे शादी के बाद हंसी-मजाक की जिंदगी भी भूल जाते हैं। मैंने शादी नहीं की, पता नहीं कब करूंगा.. या नहीं.. पर मैं खुश हूं, अपनी जिंदगी से।

करियर पर असर नहीं

बाबा सहगल, गायक

देर से विवाह करने में मुझे कुछ गलत तो नहीं लगता। अब असल में लोग पहले से ही साथ रहने लगते हैं। एक-दूसरे को समझने की कोशिश करते हैं। जब समझ नहीं आता तो फिर.। लेकिन जहां तक देर से विवाह का प्रोफेशन में कोई लाभ मिलने की बात है, मैं इसे बिलकुल नहीं मानता। मैं देख रहा हूं हर फील्ड में ऐसे कई लोग टॉप पर हैं, जिन्होंने समय से शादी कर ली। उन्होंने घर परिवार की जिम्मेदारी भी ठीक से निभाई और अपने कारोबार की भी। यह असल में इस बात पर निर्भर है कि आप खुद कितने क्षमतावान हैं। अगर आप अपने जीवन में वेल मैनेज्ड हैं और परिवार व कारोबार के बीच संतुलन बना सकते हैं तो शादी से करियर पर कोई फर्क नहीं पडता।

बस संजोग नहीं बना!

सलमान खान, अभिनेता

40 पार करने के बाद भी शादी न करने से मेरे फैंस, मेरे शुभचिंतक, मेरे दुश्मन और सबसे ज्यादा मेरे परिवार वाले चिंतित हैं कि मैं आखिर शादी कब करूंगा। वैसे भी हमारी भारतीय संस्कृति में शादी केवल वर-वधू के मिलन की बात नहीं होती। भारतीय परिवेश में शादी दो परिवारों के प्यार और विश्वास का मिलन होता है। शादी के बाद के संबंध जीवन भर के लिए होते हैं। रीति-रिवाज, परंपरा, भावनाएं क्या-क्या नहीं चलता हमारी भारतीय शादियों में? कई तरह की खट्टी-मीठी प्रथाएं चलती हैं शादियों में। दो परिवारों के बीच में शादी यानि सांस्कृतिक मिलन। मैंने शादी नहीं की, इसकी शायद सबसे बडी वजह यही है कि ऐसा संजोग नहीं बना। मेरे पारिवारिक जीवन में कम, पर प्रोफेशनल जीवन में कई बार उठापटक हुई। बाकी मेरे शादी न करने के पीछे कोई दूसरी वजह नहीं है। हां, शादी करना रह गया। वैसे यहां कोई भी बॉलीवुड का हीरो शादी कर ले या न करें, उसके करियर पर कोई खास फर्क नहीं पडता। मेरे प्रतिस्पर्धी हीरो - जैसे शाहरुख, आमीर सभी शादीशुदा हैं। उम्र में मुझसे कम हीरो भी शादीशुदा हैं। मुझे नहीं लगता कि शादी और करियर का कोई संबंध है।

अब तो नायिकाओं के करियर पर भी शादी या मातृत्व का कोई असर नहीं होता है। करिश्मा कपूर, माधुरी, काजोल शादीशुदा हैं, पर उनकी फैन फॉलोइंग में भी कोई कमी नहीं आई है। अब दर्शक पढे-लिखे और समझदार हो चुके हैं। यह जेनरेशन समझ सकती है कि कलाकार भी शादी कर घर बसाएंगे। जो शख्स अपने करियर और निजी जिंदगी को दोनों अलग ढंग से चलाना जानता है, शादी उसके करियर को कतई प्रभावित नहीं कर सकती। हां, यदि कोई अपने पर्सनल जिंदगी में खुश नहीं है, तो वह दोहरी जिंदगी जीने को मजबूर होता है। फिर उसका करियर प्रभावित होने की आशंका हो सकती है। पर असर उन्हीं पर होता है, जो संतुलन नहीं बिठा पाते। मैं आज की महिलाओं को मानता हूं जो अपने करियर और निजी जिंदगी सभी को ठीक से निभा पाती हैं। शादी संजोग का दूसरा नाम है, पता नहीं मेरे साथ यह संजोग कब होता है। जस्ट वेट एंड वॉच..।

जरा करियर बना लूं, फिर सोचूंगी

रायमा सेन, मॉडल-अभिनेत्री

विवाह में देर इसलिए हो रही है, क्योंकि अभी मेरा पूरा ध्यान करियर पर है। मेरी मां मुनमुन सेन ने शादी जल्दी कर ली थी। फिर मेरा और रिया का जन्म हुआ तो उन्होंने अपना करियर हाशिये पर रख दिया। ममा तब शादी न करतीं तो शायद उनका करियर आगे बढता, पर शादी के बाद हम लाख चाहें कि बचों की कोई जल्दबाजी नहीं करेंगे और करियर पर ही ध्यान देंगे, पर वैसा कम ही होता है। विवाह के बाद पति या पत्नी में किसी एक को अपने करियर को थोडा नजरअंदाज करना पडता है। इसलिए मैंने सोचा कि मुझे शादी देर से करनी चाहिए। मेरे पिताजी भारत देव वर्मा, जो कि शाही परिवार से हैं, उनकी मम्मी यानि मेरी दादी इला देवी, जो कूचबिहार की महारानी थीं और इनकी छोटी बहन महारानी गायत्री देवी तथा मेरी नानी सुचित्रा सेन सभी का प्रेमपूर्वक आग्रह था कि किसी शाही परिवार के राजपुत्र से मेरी शादी करवा दी जाए। मैं चाहूं तो अपने एकेडमिक एजूकेशन पर ध्यान दे सकती हूं। चाहूं तो विदेश में भी सेटल हो सकती हूं। मेरे लिए दिशाएं खुली थीं, पर मैंने और रिया ने अभिनय और मॉडलिंग को ही चुना।

अब अभिनय-मॉडलिंग जैसे क्षेत्र में, मॉडल्स का सिंगल होना तो बहुत मायने रखता है। आप करिअर पर फुलस्टॉप लगने के बाद ही शादी कर सकते हैं। वैसे धीरे-धीरे मॉडलिंग और एक्टिंग में भी शादी और करियर की कोई उम्र सीमित नहीं रही। पर यदि शादी के बाद परिवार यानि ससुराल सपोर्टिव न हो तो स्त्रियों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड सकता है। पति चाहे कितने भी ढिंढोरे पीटें, पर पत्नी की कमाई उनसे ज्यादा हो यह बात उनके अंहकार को ठेस पहुंचाती है। इससे पति-पत्नी के बीच विवादों की शुरुआत हो जाती है। इस इक्कीसवीं सदी में शादी देर से करने में कोई अडचन मुझे नजर नहीं आती।

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