रविवार, 12 सितंबर 2010

गणेशोत्सव

क्यों मनाते हैं श्रीगणेश चतुर्थी
क्या है श्री सिद्धि विनायक व्रत
प्रथम गणपित पूजिए
भारतीय संस्कृति के सुसंस्कारों में किसी कार्य की सफलता हेतु पहले उसके मंगला चरण या फिर पूज्य देवों के वंदना की परम्परा रही है। किसी कार्य को सुचारू रूप से निर्विघ्नपूर्वक सम्पन्न करने हेतु सर्वप्रथम श्रीगणेश जी की वंदना व अर्चना का विधान है। इसीलिए सनातन धर्म में सर्वप्रथम श्रीगणेश की पूजा से ही किसी कार्य की शुरूआत होती है।
श्रीगणेश पूजा अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण व कल्याणकारी है। चाहे वह किसी कार्य की सफलता के लिए हो या फिर चाहे किसी कामनापूर्ति स्त्री, पुत्र, पौत्र, धन, समृद्धि के लिए या फिर अचानक ही किसी संकट मे पड़े हुए दुखों के निवारण हेतु हो। अर्थात्‌ जब कभी किसी व्यक्ति को किसी अनिष्ट की आशंका हो या उसे नाना प्रकार के शारीरिक या आर्थिक कष्ट उठाने पड़ रहे हो तो उसे श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक किसी योग्य व विद्वान ब्राह्मण के सहयोग से श्रीगणपति प्रभु व शिव परिवार का व्रत, आराधना व पूजन करना चाहिए।
इस वर्ष इस श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत 11 सितंबर 2010, दिन शनिवार को मनाया जाएगा इसे श्रीगणेश चतुर्थी, पत्थर चौथ और कलंक चौथ के नाम भी जाना जाता है। यह प्रति वर्ष भाद्रपद मास को शुक्ल चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। तृतीया तिथि का क्षय होने के कारण द्वितीया युक्त चतुर्थी में यह व्रत किया जाएगा। चतुर्थी तिथि को श्री गणपति भगवान की उत्पत्ति हुई थी इसलिए इन्हें यह तिथि अधिक प्रिय है। जो विघ्नों का नाश करने वाले और ऋद्धि-सिद्धि के दाता हैं। इसलिए इन्हें सिद्धि विनायक भगवान भी कहा जाता है।
पूजा विधिः- जो गणेश व्रत या पूजा करता है उसे मनोवांछित फल तथा श्रीगणेश प्रभु की कृपा प्राप्त होती है। पूजन से पहले नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर शुद्ध आसन में बैठकर सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि एकत्रित कर क्रमश: पूजा करें। भगवान श्रीगेश को तुलसी दल व तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए। उन्हें, शुद्ध स्थान से चुनी हुई दूर्वा को धोकर ही चढ़ाना चाहिए।
श्रीगणेश भगवान को मोदक (लड्डू) अधिक प्रिय होते हैं इसलिए उन्हें देशी घी से बने मोदक का प्रसाद भी चढ़ाना चाहिए। श्रीगणेश स्त्रोत से विशेष फल की प्राप्ति होती है। श्रीगणेश सहित प्रभु शिव व गौरी, नन्दी, कार्तिकेय सहित सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा षोड़षोपचार विधि से करना चाहिए। व्रत व पूजा के समय किसी प्रकार का क्रोध व गुस्सा न करें। यह हानिप्रद सिद्ध हो सकता है, श्रीगणेश का ध्यान करते हुए शुद्ध व सात्विक चित्त से प्रसन्न रहना चाहिए।
शास्त्रानुसार श्रीगणेश की पार्थिव प्रतिमा बनाकर उसे प्राणप्रति‍ष्ठित कर पूजन-अर्चन के बाद विसर्जित कर देने का आख्यान मिलता है। किन्तु भजन-कीर्तन आदि आयोजनों और सांस्कृतिक आयोजनों के कारण भक्त 1, 2, 3, 5, 7, 10 आदि दिनों तक पूजन अर्चन करते हुए प्रतिमा का विसर्जन करते हैं। 11 सितंबर को प्रातः कालीन समय से ही श्रीगणेश का पूजन-अर्चन का शुभारंभ हो जाएगा। श्रीगणेशोत्सव की महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात आदि स्थानों में बड़ी ही धूम होती है।
भक्तगत यह ध्यान दें, कि किसी भी पूजा के उपरांत सभी आवाहित देवताओं की शास्त्रीय विधि से पूजा-अर्चना करने के बाद उनका विसर्जन किया जाता है, किन्तु श्री लक्ष्मी और श्रीगणेश का विसर्जन नहीं किया जाता है। इसलिए श्रीगणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन करें, किन्तु उन्हें अपने निवास स्थान में श्री लक्ष्मी जी सहित रहने के लिए निमंत्रित करें।
पूजा के उपरांत अपराध क्षमा प्रार्थना करें, सभी अतिथि व भक्तों का यथा व्यवहार स्वागत करें और पूजा कराने वाले ब्राह्मण को संतुष्ट कर यथा विधि पारिश्रामिक (दान) आदि दें, उन्हें प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर दीर्घायु, आरोग्यता, सुख, समृद्धि, धन-ऐश्वर्य आदि को बढ़ाने के योग्य बनें।

फिल्म समीक्षा

दबंग : फिल्म समीक्षा
कुछ स्टार्स की अदाएँ दर्शकों को इतनी पसंद आती है कि हर किरदार को वे उसी तरह अभिनीत करते हैं जैसा कि दर्शक देखना चाहते हैं। रजनीकांत चाहे चोर बने या पुलिस उनका अभिनय एक-सा रहता है।
इसी तरह सलमान का भी स्टाइल है। अकड़ कर रहना। बिना एक्सप्रेशन के संवाद बोलना। किसी से नहीं डरना। उनके व्यक्तित्व में एक किस्म की दबंगता है और उसी को ध्यान में रखकर ‘दबंग’ बनाई गई है।
सलमान की ये स्टाइल तभी अच्छी लगती है जब कहानी में दम हो। दूसरे किरदारों को अच्छी तरह से पेश किया गया हो। ‘दबंग’ में सलमान की अदाएँ हैं, लेकिन कहानी ढूँढे नहीं मिलती। हर फ्रेम में सलमान को इतना ज्यादा महत्व दिया गया है कि दूसरे किरदारों को उभरने का मौका नहीं मिलता।
फिल्म के लेखक और डायरेक्टर का ध्यान ऐसे दृश्यों को गढ़ने में रहा कि बस सलमान ही सलमान नजर आए। उन्हें बेहतरीन संवाद बोलने को मिले। हीरोगिरी दिखाने का भरपूर मौका मिला, लेकिन कहानी के अभाव में ये सीन बनावटी नजर आते हैं।
चुलबुल पांडे (सलमान खान) एक पुलिस इंसपेक्टर है जो गुंडों को लूटता है। अपने आपको वह रॉबिनहुड पांडे कहता है। चुलबुल अपनी माँ (डिम्पल कपाड़िया) को बेहद चाहता है, लेकिन अपने सौतेले पिता (विनोद खन्ना) और सौतेले भाई माखनसिंह (अरबाज खान) से चिढ़ता है।
रोजा (सोनाक्षी सिन्हा) पर चुलबुल का दिल आ जाता है। छेदी सिंह (सोनू सूद) एक स्थानीय नेता है जो चुलबुल को पसंद नहीं करता। माँ की मौत के बाद चुलबल के अपने सौतेले भाई और पिता से संबंध खराब हो जाते हैं और इसका लाभ छेदी उठाता है।
वह दोनों भाइयों के बीच की दूरी को और बढ़ाता है। किस तरह माखन और चुलबुल में दूरी मिटती है और वे छेदी से मुकाबला करते हैं यह फिल्म का सार है।
फिल्म की कहानी बेहद कमजोर है। नायक अपने को रॉबिनहुड कहता है लेकिन ऐसे दृश्य गायब हैं जिसमें वह लोगों की मदद कर रहा हो। अपने सौतेले भाई से वह क्यों चिढ़ता है, इसके पीछे भी कोई ठोस वजह नहीं है जबकि उसका भाई कभी उसका बुरा नहीं करता। माखन को उसके माँ-बाप मंदबुद्धि कहते हैं, लेकिन वह होशियार नजर आता है।
इंटरवल तक सारा फोकस सलमान पर है। एक सीन में वे एक्शन करते हैं, दूसरे में रोमांस और तीसरे में धाँसू संवाद बोलते नजर आते हैं, जिनका मुख्य कहानी से कोई लेना देना नहीं है।
ऐसे कई दृश्य हैं जो ठूँसे हुए लगते हैं। मिसाल के तौर पर सोनाक्षी सिन्हा को थाने बुलाया जाता है और उन्हें हँसाने की कोशिश की जाती है। सलमान और सोनाक्षी के बार-बार मिलने वाले दृश्य भी दोहराव के शिकार हैं। गृहमंत्री को बम से उड़ाने वाला प्रसंग सहूलियत के मुताबिक लिखा गया है।
हीरोगिरी तब अच्छा लगता है जब खलनायक वाले किरदार में भी दम हो। उसे शक्तिशाली बताया जाए और फिल्म में उसकी मौजूदगी का लगातार अहसास हो। लेकिन ‘दबंग’ के खलनायक सोनू सूद के किरदार को अंत में उभारा गया है ताकि क्लाइमैक्स वजनदार हो, लेकिन आधी से ज्यादा फिल्म में वे गायब रहते हैं।
निर्देशक अभिनव कश्यप ने इस फिल्म को पूरी तरह से सलमान के फैंस को ध्यान में रखकर बनाया है, लेकिन कई बेसिक बातों को वे भूल गए। यदि वे दूसरे कैरेक्टर्स पर भी ध्यान देते, तो फिल्म प्रभावी हो सकती थी। उत्तर प्रदेश के देहाती इलाके को उन्होंने अच्छे से पेश किया है।
फिल्म का संगीत हिट हो गया है, इसलिए गाने अच्छे लगते हैं। हालाँ‍कि गानों को बिना सिचुएशन के रखा गया है। ‘मुन्नी बदनाम हुई’ और ‘तेरे मस्त-मस्त दो नैन’ का फिल्मांकन अच्छा है। एक्शन सीन में नयापन नहीं है और बैकग्राउंड म्यूजिक ‘शोले’ के बैकग्राउंड म्यूजिक की याद दिलाता है।
सलमान खान इस फिल्म की जान है। जैसा उनके प्रशंसक उन्हें देखना चाहते हैं, उसी अंदाज में उन्होंने एक्टिंग की है। उनकी वजह से ही फिल्म में कई ऐसे दृश्य हैं जो राहत प्रदान करते हैं। मनोरंजन करते हैं। इस फिल्म को देखने की एकमात्र वजह वे ही हैं। यदि फिल्म से सलमान को हटा दिया जाए तो यह एक बी-ग्रेड मूवी लगती है। क्लाइमैक्स में उनकी शर्ट फटने वाला सीन उनके फैंस को बेहद पसंद आएगा।
पहली फिल्म में सोनाक्षी सिन्हा आत्मविश्वास से भरपूर नजर आई। सलमान जैसे अनुभवी अभिनेता का उन्होंने बखूबी साथ निभाया। अरबाज खान ने भी अपना किरदार ठीक से निभाया है। सोनू सूद अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रहे हैं। छोटे-छोटे रोल विनोद खन्ना, ओम पुरी, डिम्पल कपाड़िया, टीनू आनंद, महेश माँजरेकर जैसे मँजे हुए कलाकारों ने निभाए। मलाइका अरोरा ने ‘मुन्नी बदनाम हुई’ पर मादक नृत्य किया है।
कुल मिलाकर ‘दबंग’ तभी पसंद आ सकती है जब आप सलमान के बहुत बड़े प्रशंसक हो।