मंगलवार, 26 जुलाई 2011

पूजा के समय सिर पर रुमाल रखना जरूरी क्यों है?

पौराणिक कथाओं में नायक, उपनायक तथा खलनायक भी सिर को ढंकने के लिए मुकुट पहनते थे। यही कारण है कि हमारी परंपरा में सिर को ढकना स्त्री और पुरुषों सबके लिए आवश्यक किया गया था। सभी धर्मों की स्त्रियां दुपट्टा या साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढंककर रखती थी। इसीलिए मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल पर जाते समय या पूजा करते समय सिर ढकना जरूरी माना गया था। पहले सभी लोगों के सिर ढकने का वैज्ञानिक कारण था। दरअसल विज्ञान के अनुसार सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील स्थान होता है। ब्रह्मरंध्र सिर के बीचों-बीच स्थित होता है। मौसम के मामूली से परिवर्तन के दुष्प्रभाव ब्रह्मरंध्र के भाग से शरीर के अन्य अंगों पर आतें हैं।
इसके अलावा आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती है।
इसी कारण सिर और बालों को ढककर रखना हमारी परंपरा में शामिल था। इसके बाद धीरे-धीरे समाज की यह परंपरा बड़े लोगों को या भगवान को सम्मान देने का तरीका बन गई। साथ ही इसका एक कारण यह भी है कि सिर के मध्य में सहस्त्रारार चक्र होता है। पूजा के समय इसे ढककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है। इसीलिए नग्र सिर भगवान के समक्ष जाना ठीक नहीं माना जाता है। यह मान्यता है कि जिसका हम सम्मान करते हैं या जो हमारे द्वारा सम्मान दिए जाने योग्य है उनके सामने हमेशा सिर ढककर रखना चाहिए। इसीलिए पूजा के समय सिर पर और कुछ नहीं तो कम से कम रूमाल ढक लेना चाहिए। इससे मन में भगवान के प्रति जो सम्मान और समर्पण है उसकी अभिव्यक्ति होती है।
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रविवार, 24 जुलाई 2011

ओम के चमत्कारी लाभ

पूजा के साथ सेहत के लिए भी चमत्कारी 'ॐ'

'ॐ' किसी धर्म से जुड़ा न होकर ध्वनिमूलक है। माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में केवल यही एक ध्वनि ब्रह्मांड में गूँजती थी। जब हम 'ॐ' बोलते हैं, तो वस्तुतः हम तीन वर्णों का उच्चारण करते हैं: 'ओ', 'उ' तथा 'म'। 'ओ' मस्तिष्क से, 'उ' हृदय से तथा 'म' नाभि (जीवन) से जुड़ा है। मन, मस्तिष्क और जीवन के तारतम्य से ही कोई भी काम सफल होता है। 'ॐ' के सतत उच्चारण से इन तीनों में एक रिदम आ जाती है।
जब यह तारतम्य आ जाता है, तो व्यक्ति का व्यक्तित्व पूर्ण हो जाता है। उसका आभामंडल शक्तिशाली हो जाता है, इंद्रियाँ अंतरमुखी हो जाती हैं। जैसे किसी पेड़ को ऊँचा उठने के लिए जमीन की गहराइयों तक जाना पड़ता है, ठीक उसी तरह व्यक्ति को अपने भीतर की गहराइयों में झाँकने हेतु (अपने संपूर्ण विकास के लिए) 'ॐ' का सतत जाप बहुत मदद करता है। ॐ आध्यात्मिक साधना है। इससे हम विपदा, कष्ट, विघ्नों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
'ॐ' के जाप से वह स्थान जहाँ जाप किया जा रहा है, तरंगित होकर पवित्र एवं सकारात्मक हो जाता है। इसके अभ्यास से जीवन की गुत्थियाँ सुलझती हैं तथा आत्मज्ञान होने लगता है। मनुष्य के मन में एकाग्रता, वैराग्य, सात्विक भाव, भक्ति, शांति एवं आशा का संचार होता है। इससे आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ प्राप्त होती हैं। 'ॐ' से तनाव, निराशा, क्रोध दूर होते हैं। मन, मस्तिष्क, शरीर स्वस्थ होते हैं। गले व साँस की बीमारियों, थायरॉइड समस्या, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, स्त्री रोग, अपच, वायु विकार, दमा व पेट की बीमारियों में यह लाभदायक है। विद्यार्थियों को परीक्षा में सफलता हेतु एकाग्रता दिलाने में भी यह सहायक है। इन दिनों पश्चिमी देशों में नशे की लत छुड़ाने में भी 'ॐ' के उच्चार का प्रयोग किया जा रहा है।
ध्यान, प्राणायाम, योगनिद्रा, योग आदि सभी को 'ॐ' के उच्चारण के बाद ही शुरू किया जाता है। मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए दिन में कम से कम 21 बार 'ॐ' का उच्चारण करना चाहिए।

अजवायन के असरकारी नुस्खे

अजवायन रुचिकारक एवं पाचक होती है। पेट संबंधी अनेक रोगों को दूर करने में सहायक होती है, जैसे- वायु विकार, कृमि, अपच, कब्ज आदि। अजवायन में स्वास्थ्य सौंदर्य, सुगंध तथा ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्व होते हैं। यह बहुत ही उपयोगी होती है।

* बरसात के मौसम में पाचन क्रिया के शिथिल पड़ने पर अजवायन का सेवन काफी लाभदायक होता है। इससे अपच को दूर किया जा सकता है।

* अजवायन मोटापे को कम करने में मदद करती है। अतः रात्रि में एक चम्मच अजवायन एक गिलास पानी में भिगोएं। सुबह छानकर उस पानी में शहद डालकर पीने पर लाभ होता है।

मसूड़ों में सूजन होने पर अजवायन के तेल की कुछ बूंदें पानी में मिलाकर कुल्ला करने से सूजन कम होती है। अजवायन, काला नमक, सौंठ तीनों को पीसकर चूर्ण बना लें। भोजन के बाद फांकने पर अजीर्ण, अशुद्ध वायु का बनना व ऊपर चढ़ना बंद हो जाएगा।

आंतों में कीड़े होने पर अजवायन के साथ काले नमक का सेवन करने पर काफी लाभ होता है।

सर्दी, गर्मी के प्रभाव के कारण गला बैठ जाता है।

बेर के पत्तों और अजवायन को पानी में उबालकर, छानकर उस पानी से गरारे करने पर लाभ होता है।

आधे सिर में दर्द होने पर एक चम्मच अजवायन आधा लीटर पानी में डालकर उबालें। पानी को छानकर रखें एवं दिन में दो-तीन बार थोड़ा-थोड़ा लेते रहने से काफी लाभ होगा।

सरसों के तेल में अजवायन डालकर अच्छी तरह गरम करें। इससे जोड़ों की मालिश करने पर जोड़ों के दर्द में आराम होता है।

खीरे के रस में अजवायन पीसकर चेहरे की झाइयों पर लगाने से लाभ होता है।

चोट लगने पर नीले-लाल दाग पड़ने पर अजवायन एवं हल्दी की पुल्टिस चोट पर बांधने पर दर्द व सूजन कम होती है।

मुख से दुर्गंध आने पर थोड़ी सी अजवायन को पानी में उबालकर रख लें, फिर इस पानी से दिन में दो-तीन बार कुल्ला करने पर दो-तीन दिन में दुर्गंध खत्म हो जाती है।
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'थोड़ा' टेंशन अच्छा है सफलता के लिए

स्टडी के लिए टेंशन जरूरी है, लेकिन बहुत ज्यादा चिंता से सोचने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है जिससे ऐन परीक्षाओं या साक्षात्कार के वक्त मेमोरी ब्लॉक हो सकती है।
एनर्जी के लेवल में गिरावट व कॉन्सन्ट्रैशन में कमी हो सकती है।
टेंशन बढ़ने से रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी रेसिस्टेंट पॉवर कम होने लगती है और शरीर अस्वस्थ होगा तो जाहिर-सी बात है कि दिमाग पर प्रैशर भी बढ़ेगा।
टेंशन आपके मनोबल पर हावी ना हो इस बात का ध्यान रखें।
टेंशन आपके सबकॉन्शस में बना रहना चाहिए लेकिन जैसे ही आपको घबराहट महसूस हो आप अपनी सारी शक्ति अपने मजबूत पक्षों को सोचने में लगा दें। इससे आपकी पॉजिटिव एनर्जी बढ़ेगी।
टेंशन कम से कम होना चाहिए और उस पर दबाव डालने के लिए सच्चे मन से मेहनत करने लग जाएं।
NDटेंशन की बस इतनी मात्रा आपको फायदा देगी।
कई घंटों तक लगातार बैठे रहकर पढ़ने से कोई फायदा नहीं होता, क्योंकि एक टाइम लिमिट के बाद नेगेटिव टेंशन का लेवल बढ़ता जाता है और एकाग्रता का स्तर गिरने लगता है।
माइंड में कुछ भी रजिस्टर नहीं होता, इसीलिए इस दौरान न तो कुछ पढ़ा हुआ याद रह पाता है और न ही कोई विचार दिमाग में अपनी जगह बना पाता है।

बरसते मौसम में बचिए मच्छरों से

बारिश जहां माहौल को खुशनुमा बनाती है वहीं कई बीमारियों को दावत भी देती है। यही वक्त होता है जब मच्छर का प्रकोप बढ़ता है और लोग मलेरिया के शिकार हो जाते हैं। यदि मच्छरजनित इस बीमारी से बचना हो तो सावधानी और घरू उपाय करें। मसलन इन्हें घर के आसपास पनपने न दें। इसके लिए कुछ बातों पर जरूर गौर करें।
घर के चारों ओर पानी जमा न होने दें, गड्ढों को मिट्टी से भर दें, रुकी हुई नालियों को साफ करें।
अगर पानी जमा होने से रोकना संभव नहीं है तो उसमें पेट्रोल या केरोसिन ऑयल डालें।

रूम कूलरों, फूलदानों का सारा पानी हफ्ते में एक बार और पक्षियों को दाना-पानी देने के बर्तन को रोज पूरी तरह से खाली करें, उन्हें सुखाए और फिर भरें। घर में टूटे-फूटे डिब्बे, टायर, बर्तन, बोतलें आदि न रखें। अगर रखें तो उल्टा करके रखें।
डेंगू के मच्छर साफ पानी में पनपते हैं, इसलिए पानी की टंकी को अच्छी तरह बंद करके रखें।
अगर मुमकिन हो तो खिड़कियों और दरवाजों पर महीन जाली लगवाकर मच्छरों को घर में आने से रोकें।
मच्छरों को भगाने और मारने के लिए मच्छरनाशक क्रीम, स्प्रे, मैट्स, कॉइल्स आदि का प्रयोग करें। गुग्गल के धुएं से मच्छर भगाना अच्छा देसी उपाय है।
घर के अंदर सभी जगहों में हफ्ते में एक बार मच्छर-नाशक दवाई का छिड़काव जरूर करें। यह दवाई फोटो-फ्रेम्स, पर्दों, केलेंडरों आदि के पीछे और घर के स्टोर रूम और सभी कोनों में जरूर छिड़कें।
दवाई छिड़कते समय अपने मुंह और नाक पर कोई कपड़ा जरूर बांधें। साथ ही , खाने-पीने की सभी चीजों को ढककर रखें।
पीने के पानी में क्लोरीन की गोली मिलाएं और पानी को उबालकर पीएं।
5 साल से कम उम्र के बच्चे, 65 साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं सावधानी से रहें।
ऐसे कपड़े पहनें, जिससे शरीर का ज्यादा-से-ज्यादा हिस्सा ढका रहे। खासकर बच्चों के लिए यह सावधानी बहुत जरूरी है।
रात को सोते समय मच्छरदानी लगाएं।
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छिलकों के घरेलू प्रयोग आजमाएं

छिलकों में भी छुपे हैं गुण
नींबू और संतरे के छिलकों को सुखाकर अलमारी में रखा जाए तो इनकी खुशबू से झिंगुर व अन्य कीट भाग जाते हैं।

ऐसे सूखे छिलकों को जलाने से जो धुआं होता है उनसे मच्छर मर जाते हैं।

इसकी राख से दांत साफ किए जाएँ तो दुर्गंध दूर हो जाती है।

नींबू निचोड़ने के बाद बचे हुए हिस्से को त्वचा पर रगड़ने से त्वचा की चिकनाई कम होती है।

इसके रगड़ने से मुंहासे भी कम होते हैं और रंग निखरता है।

पीतल और तांबे के बर्तन इससे चमकदार बनते हैं।

नींबू के छिलकों को कोहनी और नाखूनों पर रगड़ने से कालापन कम होता है और गंदगी हट जाती है।

इन्ही छिलकों को नमक, हींग, मिर्च और चीनी के साथ पीसने से स्वादिष्ट चटनी बनती है।

संतरे का रस तो चेहरे को कांतिमय बनाता ही है, छिलकों को यदि छाया में सुखाकर पीसा जाए तो यह उबटन का काम करता है जिससे चेहरे के दाग-धब्बे हटते हैं और त्वचा खूबसूरत बनती है।

संतरे के छिलके को पानी में डालकर नहाने से पसीने की दुर्गंध दूर होती है और ताजगी आती है।
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जी हां, प्यार में होता है केमिकल लोचा

डॉ. अनिल भदौरिया
यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही एक अजीब सा अहसास होने लगता है। कोई प्यारा सा हमउम्र अच्छा लगने लगता है, कोई हमें देखे यह भावना उठने लगती है। कोई चाहने लगे तो पेट में तितलियां उड़ने लगती हैं।
यह अहसास प्रकृति की अनुपम भावना है जो किशोरावस्था से शुरू होकर जीवनपर्यंत बनी रहती है। इस अवस्था में शरीर में स्थायी परिवर्तन होते हैं। हारमोन्स का प्रबल वेग भावनात्मक स्तर पर अनेक झंझावत खड़े कर देता है।
प्यार, संवेदना, लगाव, वासना, घृणा और अलगाव की विभिन्न भावनाएं कमोबेश सभी के जीवन में आती हैं। यह सब क्या है? क्यों होता है? क्या प्यार की भी कोई केमेस्ट्री है?
चिकित्सा विज्ञान मानता है कि मानव शरीर प्रकृति की एक जटिलतम संरचना है। इसे नियंत्रित करने के लिए स्नायु तंत्र (नर्वस-सिस्टम) का एक बड़ा संजाल भी है जो स्पर्श, दाब, दर्द की संवेदना को त्वचा से मस्तिष्क तक पहुंचाता है।
किशोरावस्था में विशिष्ट रासायनिक तत्व निकलते हैं जो स्नायुतंत्र द्वारा शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचते हैं। इन्हीं में शामिल प्यार के कई रसायन भी हैं जो उम्र के विभिन्न पड़ावों पर इसकी तीव्रता या कमी का निर्धारण करते हैं। प्यार की तीन अवस्थाएँ हैं।
आकर्षण
वासना की तीव्रतर उत्कंठा के बाद आकर्षण या प्रेम का चिरस्थायी दौर प्रारंभ होता है जो व्यक्ति में अनिद्रा, भूख न लगना, अच्छा न लगना, प्रेमी को तकते रहना, यादों में खोए रहना, लगातार बातें करते रहना, दिन में सपने देखना, पढ़ने या किसी काम में मन न लगना जैसे लक्षणों से पीड़ित कर देता है।
इस अवस्था में डोपामिन, नॉर-एपिनेफ्रिन तथा फिनाइल-इथाइल-एमाइन नामक हारमोन रक्त में शामिल होते हैं। डोपामिन को 'आनंद का रसायन' भी कहा जाता है क्योंकि यह 'परम सुख की भावना' उत्पन्न करता है। नॉर-एपिनेफ्रिन नामक रसायन उत्तेजना का कारक है जो प्यार में पड़ने पर आपकी हृदय गति को भी तेज कर देता है।
डोपामिन और नॉर-एपिनेफ्रिन मन को उल्लास से भर देते हैं। इन्हीं हारमोनों से इंसान को प्यार में ऊर्जा मिलती है। वह अनिद्रा का शिकार होता है। प्रेमी को देखने या मिलने की अनिवार्य लालसा प्रबल होती जाती है। वह सारा ध्यान प्रेमी पर केंद्रित करता है।
इसके अतिरिक्त डोपामिन एक अत्यंत महत्वपूर्ण हार्मोन 'ऑक्सीटोसिन' के स्राव को भी उत्तेजित करता है। जिसे 'लाड़ का रसायन' (स्पर्श) कहा जाता है। यही ऑक्सीटोसिन प्रेम में आलिंगन, शारीरिक स्पर्श, हाथ में हाथ थामे रहना, सटकर सोना, प्रेम से दबाना जैसी निकटता की तमाम घटनाओं को संचालित और नियंत्रित करता है। इसे 'निकटता का रसायन' भी कहते हैं।
एक और रसायन फिनाइल-इथाइल-एमाइन आपको प्रेमी से मिलने के लिए उद्यत करता है। साथ ही यह प्यार में पड़ने पर सातवें आसमान के ऊपर होने की संतुष्टिदायक भावना भी प्रदान करता है। इसी रसायन के बलबूते पर प्रेमी-प्रेमिका रात भर बातें करते रहते हैं।
नॉर-एपिनेफ्रिन इस अवस्था में एड्रीनेलिन का उत्पादन करता है जो प्रेमी के आकर्षण में रक्तचाप बढ़ाता है। हथेली में पसीने छुड़वा देता है, दिल की धड़कन बढ़ा देता है। शरीर में कंपकंपी भर देता है और कुछ कर गुजरने की आवश्यक हिम्मत भी देता है। ताकि आप जोखिम उठा कर भी अपने प्रेमी को मिलने चल पड़ें।
मिट्टी के कच्चे घड़े पर उफनती नदी पार कर मिलने जाने जैसा दु: साहस इसी हारमोन के कारण आ जाता है। फिनाइल इथाइल एमीन नाम का एक और हारमोन है जिसका स्त्राव भी मस्तिष्क से ही प्यार की सरलतम घटनाओं के कारण होने लगता है।
नजरें मिलना, हाथ से हाथ का स्पर्श होना, भावनाओं का उन्माद उत्पन्न होना वगैरह इसी के कारण संभव है। फिनाइल इथाइल एमीन या प्यार के रसायन की प्रचुर मात्रा चॉकलेट में उपस्थित रहती है।
इसीलिए प्रेमियों को चॉकलेट देने का रिवाज है। इसी तरह फूलों का गुलदस्ता भी एक विशिष्ट शारीरिक सुगंध फेरमोन को प्रदर्शित करने का संकेत है।
वासना / तीव्र लालसा
इस अवस्था में विपरीत लिंगी को देखकर वासना का एक भाव उत्पन्न होता है जो दो तरह के हार्मोन से नियंत्रित होता है। पुरुषों में 'टेस्टोस्टेरोन' तथा महिलाओं में 'इस्ट्रोजेन' होते हैं। वासना या लालसा का दौर क्षणिक होता है।
लगाव/ अनुराग /आसक्ति
प्यार की इस अवस्था में प्रीति-अनुराग बढ़कर उस स्तर पर पहुंच जाती है कि प्रेमी संग साथ रहने को बाध्य हो जाते हैं। उन्हें किसी अन्य का साथ अच्छा नहीं लगता और 'एक में लागी लगन' का भाव स्थापित हो जाता है।
इस अवस्था का रसायन है ऑक्सीटोसिन तथा वेसोप्रेसिन। ऑक्सीटोसिन जहां 'निकटता का हार्मोन' है, वहीं वेसोप्रेसिन प्रेमियों के मध्य लंबे समय तक संबंधों के कायम रखने में अपनी भूमिका निभाता है। वेसोप्रेसिन को 'जुड़ाव का रसायन' कहा जाता है ।
शरीर में इन हार्मोन्स तथा रसायनों का आवश्यक स्तर बना रहने से आपसी संबंधों में उष्णता कायम रहती है। शरीर में स्वाभाविक रूप से किशोरावस्था, यौवनावस्था या विवाह के तुरंत पूर्व व बाद में इन रसायनों व हार्मोनस्‌ का उच्च स्तर कायम रहता है।
उम्र ढलते-ढलते इनका स्तर घटने लगता है और विरक्ति, विवाहेत्तर संबंध जैसी प्राकृतिक भूल/गलती घटित हो जाती है।
प्यार और यौन-इच्छा की भावना एक साथ जीवन के साथ चलती है। इसीलिए कहा गया है कि प्यार, कमर के ऊपर है और यौनेच्छा कमर के नीचे किंतु दोनों का ही नियंत्रण मस्तिष्क से ही होता है।
प्यार अंधा है, प्यार नशा है या प्यार शुद्ध कविता है इसकी विभिन्न व्याख्याएं उपलब्ध हैं लेकिन इस भावना के महत्व को जीव-रसायन से समझाकर कम नहीं किया जा सकता।
प्यार एक शुद्ध रासायनिक कविता है जो प्रेमी को ऊर्जावान, निडर और साहसी बना देती है ताकि वह अपने प्रियतम को पा सके।
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सिगरेट : आसान है छुटकारा

सिगरेट की लत के बारे में कहा जाता है कि यह लग तो आसानी से जाती है, मगर इसे छोड़ना उतना ही मुश्किल होता है। बहरहाल स्‍मोकिंग के कारण हेल्‍थ को होने वाले नुकसानों को देखते हुए इसे छोड़ देना ही बेहतर है और ऐसा किया भी जा सकता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की तरह ही कोई भी इस लत से छुटकारा पा सकता है। बस, शर्त है तो इतनी कि आपकी वि‍ल पावर स्‍ट्रॉन्‍ग हो और आप इसके लिए कुछ खास तरीकों पर अमल करें।
कैसे छोड़ें सिगरेट की लत
स्‍मोकिंग गाहे-बगाहे यूथ की लाइफ स्‍टाइल का हिस्सा बन जाती है। युवा खेल-खेल में सिगरेट वगैरह पीने लगते हैं। बाद में पछतावा होने पर छोड़ने की कोशिश भी करते हैं, मगर जल्द हार मान लेते हैं। सिगरेट पीने की आदत छोड़ना इतना मुश्किल भी नहीं है। जब बराक ओबामा 48 की उम्र में सिगरेट छोड़ने की कवायद कर सकते हैं, तो युवा क्यों नहीं।
कुछ विशेषज्ञों ने बराक ओबामा सहित दुनिया भर में स्‍मोकिंग करने वालों के लिए यह 'फाइव स्टेप प्लान' बनाया है। अपने आप से प्यार करने वाले युवा इसे आजमा सकते हैं। मगर इन योजना को असफल साबित करने के लिए नहीं, बल्कि खुद को सफल बनाने के लिए।
* स्‍ट्रैस होने पर सिगरेट पीने का मन करता है?
पहले अपने तनाव के कारण खोजें।
उन पर विचार करके उनका सॉल्‍यूशन निकालें।
यह सॉल्‍यूशन अपने मनपसंद कामों से हो सकता है।
संगीत सुनना, खेलना, फिल्म देखना, किताबें पढ़ना, सैर-सपाटा या जो कुछ भी आपको पसंद हो, तनाव दूर करने के लिए करें।
स्‍ट्रैस कम रहेगा तो तलब भी कम लगेगी।
अपने आप से पूछें कि आप आखिर सिगरेट क्यों छोड़ना चाहते हैं?
आप यह न सोचें कि मुझसे कुछ छूट रहा है, या मुझसे कुछ अलग हो रहा है, बल्कि ये सोचें कि आप अपने आप को स्वस्थ जिदंगी का तोहफा दे रहे हैं।
स्‍मोकिंग छोड़ने के लिए अपने हि‍साब से एक तारीख डि‍साइड कर लें, जो आपके लिए सीमा रेखा की तरह काम करेगी।
जैसे-जैसे यह दिन या सीमा रेखा नजदीक आए धीरे-धीरे एक-एक सिगरेट की संख्या कम करते जाएँ।

सिगरेट छोड़ने के लिए तय तारीख पर प्रतिज्ञा लें कि आज से मेरी जिंदगी की नई शुरूआत है।
इस दिन के बाद हर दिन खुद को बधाई दें कि आपने अपने आपको को धीरे-धीरे करके सारी जिंदगी धुएं में घुटने से बचा लिया है।
कुछ समय बाद आप पाएंगे कि आपके कमरे, घर, कपड़ों और मुंह से धुएं की बदबू खत्म हो गई है। यही नहीं, बल्कि आपकी जिंदगी एक अंधेरी सुरंग से बाहर निकल आई है। एक नई ताजा दुनिया है, जिसमें धुआं नहीं है।www.webdunia.com

शहद : मोटापा घटाए, मोटापा बढ़ाए

शुभी नीमा
शहद जल्दी पचकर खून में मिल जाता है। इसे हम दूध, दही, चाय, मलाई, पानी, सब्जी, फलों के रस आदि में मिलाकर ले सकते हैं। यही नहीं सर्दी में गर्म पेय के साथ व गर्मी में ठंडे पेय के साथ भी इसका सेवन कर सकते हैं। शहद को गर्म कभी नहीं करना चाहिए।
कब्ज : सुबह-शाम दो चम्मच शहद पानी में पीने से लाभ होता है।
कमजोरी : शहद में विटामिन 'ए'और 'बी' के होने से यह आँखों की ज्योति बढ़ाता है व भूख बढ़ाकर कमजोरी दूर करता है।
स्फूर्ति : प्रातः नींबू व शहद गर्म पानी में लेने से स्फूर्ति आती है।
गर्भावस्था : गर्भवती महिला द्वारा दो चम्मच शहद रोजाना लेने से उसे रक्त की कमी नहीं होती।
दाँत आना : बच्चों को मसूडों पर शहद लगाने से दाँत आसानी से आते हैं।
मोटापा : सुबह गुनगुने पानी में शहद मिलाकर सेवन करने से मोटापा कम होता है और मोटापा बढ़ाने के लिए इसे दूध में मिलाकर पिएं।
नींद : शहद को नींबू के रस में लेने से नींद अच्छी आती है।
गला बैठना : गर्म पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर गरारे करने से आवाज खुल जाती है।
त्वचा : तिल्ली का तेल, बेसन, शहद व नींबू मिलाकर उबटन करने से त्वचा निखर जाती है।
उल्टी और हिचकी : दो चम्मच प्याज के रस में दो चम्मच शहद मिलाकर खाने से उल्टी और हिचकी में आराम मिलता है।

रंगीन आहार सेहत का आधार

संतुलित भोजन के बारे में किसी डायटिशियन से पूछा जाए तो वह कहेगा कि भोजन में दाल, चावल, रोटी, सब्जी और थोड़ी वसा होना चाहिए। दाल यानी प्रोटीन, चावल, रोटी यानी कार्बोहाइड्रेट और सब्जी अर्थात विटामिन और खनिज लवणों के स्रोत। इसके साथ ही भोजन के अतिरिक्त कुछ मौसमी फलों का भी समावेश होना चाहिए। खट्टे-मीठे फल ऊर्जा एवं खनिज लवणों तथा एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होते हैं। आप पूछ सकते हैं कि यह एंटीऑक्सीडेंट्स क्या हैं? तो जान लीजिए की ये हमारे स्वास्थ्य के रक्षक हैं।

दरअसल, जो भी भोजन हम करते हैं शरीर में उसके पाचन के दौरान कुछ हानिकारक तत्व बनते हैं जिन्हें फ्री रेडिकल्स (स्वतंत्र मूलक) कहते हैं। ये फ्री रेडिकल ऑक्सीकरण की दर को बहाकर हमारे शरीर को नुकसान पहुँचाते हैं। उनकी अधिकता से हमारे शरीर में बुढ़ापे के लक्षण तेजी से आते हैं।
एंटीऑक्सीडेंट्स पदार्थ इन स्वतंत्र मूलकों का खात्मा कर इनके दुष्प्रभावों से हमारे शरीर को बचाते हैं। एंटीऑक्सीडेंट्स नारंगी, लाल, पीले, जामुनी फलों में खूब पाए जाते हैं। फलों के अलावा भी कुछ चीजें ऐसी हैं, जो न तो सब्जी है न ही फल जैसे प्याज, गाजर, शलजम आदि। सफेद नारंगी और जामुनी वनस्पतियों का यह योग बेहतरीन है। इसमें मूली भी जोड़ी जा सकती है और फूलगोभी भी।
'सब्जी' शब्द 'सब्ज' से आया है, जो एक फारसी शब्द है। 'सब्ज' यानी हरा जैसे पालक, मैथी, धनिया, गिलकी, लौकी, करेला आदि। सब्जबाग दिखाना एक मुहावरा भी है, परंतु हम आपको कोई सब्जबाग नहीं दिखा रहे हैं अपितु बागे-सेहत का रास्ता दिखा रहे हैं। वह भी और कहीं नहीं, आपके घर पर ही। इस पर चलना और उसे सजाना भी आपके हाथ में है। यदि आपकी भोजन थाली रंग-बिरंगी खाद्य सामग्री से भरी है तो समझिए कि आपकी सेहत भी बढ़िया रहेगी। भोजन की थाली जितनी ज्यादा रंगीन होगी, उतना ही आपका स्वास्थ्य भी बेहतरीन रहेगा।
तिरंगा सलाद 1
बेहतर स्वास्थ्य पाने के लिए आप एक सलाद बना सकते हैं। इसे नाम दे सकते हैं- तिरंगा सलाद। इसे बनाने के लिए आपको मूली और टमाटर चाहिए। ध्यान रहे, मूली पत्तियों सहित खरीदना है। तिरंगा सलाद बनाने के लिए मूली के नर्म पत्तों को बारीक-बारीक काट लें। इसके बाद मूली को लंबी-लंबी चिप्स जैसा काटें। ऐसा करने के लिए पहले मूली का एक लंबा टुकड़ा लेकर उसमें चाकू से खड़े चीरे लगा लें। अब इस टुकड़े से मूली ऐसे काटिए जैसे आलू की चिप्स काटते हैं।

इस तरह आपको आलू की सेंव की तरह मूली के लंबे-पतले टुकड़े मिल जाएंगे। अब इसी तरह टमाटर के भी लंबे-लंबे टुकड़े काट लें। अब इस पर जरा-सी लालमिर्च, नमक एवं भुना जीरा डालकर अच्छी तरह मिला लें। यकीन मानिए यह तिरंगा सलाद खाकर आप इसे भूल नहीं पाएँगे। यह इतना स्वादिष्ट है कि इससे आप रोटी भी खा सकते हैं। पोषक तत्वों से भरपूर इस सलाद में मिनरल्स एवं विटामिन्स के साथ लायकोपीन और केरोटीन्स भी भरपूर हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट्स हैं।

तिरंगा सलाद 2
इसमें थोड़ा-सा बदलाव कर एक नया स्वाद पा सकते हैं। मूली की जगह लंबे-लंबे प्याज और टमाटर की जगह नारंगी गाजर ली जा सकती है। यह तिरंगा सलाद प्याज के गुणों, जिसमें एलिसिन एवं गाजर जिसमें केरोटीन है, से भरपूर है। केरोटीन आंखों के लिए हितकारी है, क्योंकि इससे ही हमारे शरीर में विटामिन ए बनता है। विटामिन ए और आंखों का रिश्ता किसे नहीं मालूम!

आपको कुछ और सब्जियों एवं फलों के नाम बता देते हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर है। सब्जियों में कद्दू, पत्तागोभी, धनिया केरोटीन के भंडार हैं, वहीं प्याज एलिसिन, देसी गाजर, काली (वस्तुतः हल्की जामुनी), बालोर व लाल भाजी तथा शलजम एवं चुकन्दर एन्थोसायनिन के खजाने हैं। एन्थोसायनिन के अन्य अच्छे स्रोत हैं जामुन, लाल जाम, काले अंगूर और बेर।
तो अच्छे स्वास्थ्य की खातिर इन रंग-बिरंगे फलों से भी अपनी थाली सजाएं। ये बढ़ती उम्र के खतरों से आपको दूर रखेंगे।
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मंत्रों से बनती है सेहत, बढ़ता है सौन्दर्य

मंत्र शक्ति का शरीर पर सकारात्मक प्रभाव
सकारात्मक ध्वनियां शरीर के तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती हैं जबकि नकारात्मक ध्वनियां शरीर की ऊर्जा तक का ह्रास कर देती हैं।
मंत्र और कुछ नहीं बल्कि सकारात्मक ध्वनियों का समूह है जो विभिन्न शब्दों के संयोग से पैदा होते हैं। दुनिया के सभी धर्मों में मंत्रों के महत्व को स्वीकार किया गया है।
जिस तरह मुस्लिम संप्रदाय में कुरान की आयतों को मंत्रों के रूप में भी स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रयोग किया जाता है उसी तरह ईसाई समाज भी बाईबिल के सूत्र वाक्यों का प्रयोग करते हैं।
मंत्रों का हमारे शरीर और मस्तिष्क पर दो कारणों से गहरा प्रभाव पड़ता है। पहला यह कि ध्वनि की तरंगें समूचे शरीर को प्रभावित करती हैं।
दूसरा यह कि लगातार हो रहे शब्दोच्चार के साथ भावनात्मक ऊर्जा का समग्र प्रभाव हम तक पहुंचता है। मंत्रों से हमारे शरीर का स्वस्थ रहने से सीधा संबंध है।
मंत्रों से निकली ध्वनि शरीर के उन सेलों के संवेगों को ठीक करने में सक्षम है जो किसी कारण अपनी स्वाभाविक गति या लय खो बैठते हैं।
सेलों के अपनी गति से हट जाने से ही हम बीमार होते हैं।
मंत्रों की ध्वनि से हमारे स्थूल और सूक्ष्म शरीर दोनों सकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं।
हमारे शरीर को घेरने वाला रक्षा कवच या 'औरा' पर भी इसका ऐसा ही प्रभाव पड़ता है।
हम जैसे ही कोई शब्द सुनते हैं, उसके प्रति भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया करते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम उस शब्द से मानवीय समाज पर पड़ने वाले प्रभाव से परिचित हैं।
मंत्रों से हमें आध्यात्मिक शक्ति ही नहीं मिलती बल्कि सेहत और सौन्दर्य का राज भी इन्हीं मंत्रों में छुपा है।

सेहत और सौन्दर्य के लिए जाना-माना मंत्र है -
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि मे परमं सुखम
रूपम् देहि़ जयम् देहि यशो देहि द्विषो जहि।

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सोमवार, 11 जुलाई 2011

फल : कब खाएं, कब ना खाएं

फलों का हमारे जीवन में बेहद महत्व है। सेहत की दृष्टि से तो फल उपयोगी होते ही हैं साथ ही शीघ्र एनर्जी प्राप्त करने के लिए रोगी को भी फलों के सेवन की ही सलाह दी जाती है। लेकिन अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि कौन-सा फल कब खाया जाना चाहिए। आइए जानते हैं फलों के सेवन से संबंधी उपयोगी जानकारी :

संतरा- सुबह और रात को नहीं खाएं, दिन में खाएं। खाना खाने के 1-1 घंटा पहले या बाद में खाएं। पहले लेने से भूख बढ़ती है और बाद में लेने से भोजन पचाने में मदद करता है।
मौसंबी- मौसंबी का सेवन दोपहर में करें। धूप में जाने से कुछ देर पहले या धूप से आने के कुछ देर बाद मौसंबी खाना या जूस पीना अधिक लाभदायक होता है। इससे शरीर में पानी की मात्रा कम नहीं होगी।
अंगूर- अंगूर या अंगूर का जूस भी शरीर में पानी की मात्रा बनाए रखता है। इसका सेवन धूप में जाने से कुछ देर पूर्व या धूप में से लौटने के कुछ देर बाद ही करें, लेकिन अंगूर और भोजन में कुछ देर का अन्तर रखें।
नारियल- वैसे तो नारियल पानी कभी भी पिया जा सकता है, जिन्हें पेट संबंधी परेशानियां हैं, एसिडिटी या अल्सर की समस्या है उनके लिए यह लाभदायक है। कोशिश करें कि नारियल पानी खाली पेट न पिएं।
आम- आम की तासीर गर्म होती है, अतः आम के साथ दूध का प्रयोग करना चाहिए। यदि आम काटकर खाया जा रहा है तो आम के टुकड़ों में शकर और थो़ड़ा-सा दूध मिलाकर पीना फायदेमंद होगा।

उफ, ये मुंह के छाले

शहद में मुलहठी का चूर्ण मिलाकर इसका लेप मुंह के छालों पर करें और लार को मुंह से बाहर टपकने दें। मुंह में छाले होने पर अडूसा के 2-3 पत्तों को चबाकर उनका रस चूसना चाहिए।
कत्था, मुलहठी का चूर्ण और शहद मिलाकर मुंह के छालों पर लगाने चाहिए।
अमलतास की फली मज्जा को धनिये के साथ पीसकर थोड़ा कत्था मिलाकर मुंह में रखने से अथवा केवल गूदे को मुंह में रखने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
अमरूद के कोमल पत्तों में कत्था मिलाकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
अनार के 25 ग्राम पत्तों को 400 ग्राम पानी में ओंटाकर चतुर्थांश शेष बचे क्वाथ से कुल्ला करने से मुंह के छाले दूर होते हैं।
सूखे पान के पत्ते का चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटना चाहिए।
नींबू के रस में शहद मिलाकर इसके कुल्ले करने से मुंह के छाले दूर होते हैं।

शनिवार, 14 मई 2011

जब हो नाजुक घड़ी तो...

जब महारथी साम्ब ने देखा कि धृतराष्ट्र के पुत्र मेरा पीछा कर रहे हैं तब वे एक सुंदर धनुष चढ़ाकर सिंह के समान अकेले ही रणभूमि में डट गए। इधर कर्ण को मुखिया बनाकर कौरव वीर धनुष चढ़ाए हुए साम्ब के पास आ पहुंचे।कौरवों ने युद्ध में बड़ी कठिनाई और कष्ट से साम्ब को रथहीन करके बांध लिया। इसके बाद वे उन्हें तथा अपनी कन्या लक्ष्मणा को लेकर जय मनाते हुएहस्तिनापुर लौट आए। द्वारिकावासियों को इसकी सूचना नहीं थी, नहीं भगवान को। नारद ने आकर यह संदेश सुनाया। द्वारिका में कोहराम मच गया।
द्वारिकाधीश के पुत्र को कौरवों ने बंदी बना लिया।नारदजी से यह समाचार सुनकर यदुवंशियों को बड़ा क्रोध आया। वे महाराज उग्रसेन की आज्ञा से कौरवों पर चढ़ाई करने की तैयारी करने लगे। बलरामजी कलहप्रधान कलियुग के सारे पाप-ताप को मिटाने वाले हैं। उन्होंने कुरुवंशियों और यदुवंशियों के लड़ाई-झगड़े को ठीक न समझा। यद्यपि यदुवंशी अपनी तैयारी पूरी कर चुके थे, फिर भी उन्होंने उन्हें शांत कर दिया और स्वयं सूर्य के समान तेजस्वी रथ पर सवार होकर हस्तिनापुर गए।
उनके साथ कुछ ब्राम्हण और यदुवंश के बड़े-बूढ़े भी गए। जब नाजुक घड़ी हो तो बड़े-बूढ़े साथ में होना चाहिए।बलरामजी ने हमें सुंदर संकेत दिया है। जब विवाह जैसी स्थिति हो, सुलह करना हो, शांति की स्थापना करनी हो तो बुजुर्गों को आगे करना चाहिए। उनका अनुभव इसमें कारगर साबित होता है।
बलरामजी ने कौरवों की दुष्टता-अशिष्टता देखी और उनके दुर्वचन भी सुने।
उस समय उनकी ओर देखा तक नहीं जाता था। वे बार-बार जोर-जोर से हंस कर कहने लगे-सच है, जिन दुष्टों को अपनी कुलीनता बलपौरुष और धन का घमंड हो जाता है वे शांति नहीं चाहते। मैं आपको समझा-बुझाकर शांत करने के लिए, सुलह करने के लिए यहां आया हूं। फिर भी ये ऐसी दुष्टता कर रहे हैं, बार-बार मेरा तिरस्कार कर रहे हैं।,

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

छत्तीसगढ़ की खबरें

साहब मुझे महिला बॉस से बचा लो
कोरबा.अब तक महिला उत्पीड़न का मामला समय-समय पर सामने आता रहा है। लेकिन अधिकारी, कर्मचारी मोर्चा ने कलेक्टर को पुरूष उत्पीड़न समिति गठन करने का ज्ञापन देकर महिला अफसरों पर प्रताड़ित किए जाने के मामले का खुलासा किया है।

कर्मचारी मोर्चा ने सौंपे ज्ञापन में कहा गया है कि पुरूष शासकीय सेवकों को उनके समुचित कर्तव्यों व अधिकारों का परिपालन में सम्मान की रक्षा की आवश्यकता महसूस होने लगी है।
ऐसे में पुरूष उत्पीड़न समिति का गठन करके ही उनकी समस्याओं का समाधान हो सकता है। मोर्चा को समय-समय पर राजपत्रित वर्ग से लेकर चतुर्थ श्रेणी तक के कर्मचारियों की शिकायत मिल रही है कि महिला अधिकारी व कर्मचारियों के द्वारा उन्हें धमकाया जा रहा है।
पुरूष अधिकारी व कर्मचारियों के कर्तव्य व अधिकारों की रक्षा का दायित्व भी शासन व प्रशासन का है। ऐसे मे उन्हें उत्पीड़न से मुक्ति दिलाने के लिए समिति की जरूरत महसूस हो रही है ताकि पीड़ित अधिकारी व कर्मचारी सीधे समिति के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत कर सकें।
बड़ी संख्या में महिला अधिकारी विभाग प्रमुख के तौर पर कार्य कर रहीं हैं। प्रताड़ना की स्थिति में वे अपना आवेदन महिला समिति के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। कई बार महिला बॉस व अधीनस्थ अधिकारी व कर्मचारी के बीच विवाद की स्थिति निर्मित होती है। इस कारण अब राजपत्रित अधिकारियों का संगठन भी पुरूष प्रताड़ना की शिकायत को लेकर मुखर होने लगा है।
"महिला बॉस के द्वारा प्रताड़ित किए जाने के कारण राजपत्रित अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक काफी व्यथित है। इससे कार्य प्रभावित होने के साथ-साथ टकराव की स्थिति भी निर्मित होने लगी है।"


खजुराहो में प्रस्तुति देंगी यास्मीन सिंह
रायपुर.मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग की ओर से आयोजित किए जाने वाले सात दिवसीय खजुराहो महोत्सव में इस बार छत्तीसगढ़ की कथक नृत्यांगनाएं यास्मीन सिंह और डॉ. आरती सिंह प्रस्तुति देंगी। खजुराहो महोत्सव हर साल के फरवरी महीने में आयोजित किया जाता है।

इस कार्यक्रम की शुरुआत 1 फरवरी से खजुराहो (छतरपुर-मध्यप्रदेश) में होगी। विश्वप्रसिद्ध खजुराहो महोत्सव में पहले दिन मशहूर भरतनाट्यम नृत्यांगना और फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी व उनकी दोनों बेटियां ईशा और आहना ओडिसी नृत्य प्रस्तुत करेंगी। कार्यक्रम के दूसरे दिन दिल्ली के अनिभमन्यु लाल और विधा लाल कथक, रमा बैद्यनाथन भरतनाट्यम, मुंबई के कनक रेले मोहिनीअट्टम पेश करेंगे।
खजुराहो महोत्सव में तीसरा दिन छत्तीसगढ़ के नाम रहेगा, जब रायपुर से यास्मीन-आरती सिंह कथक की प्रस्तुति देंगी। राज्य की उभरती इन कलाकारों ने देश के अनेक मंचों पर अपनी प्रस्तुतियां दी हैं। खजुराहो महोत्सव में पहली बार छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व हो रहा है।
और सबसे बड़ी बात इस महोत्सव में मेजबान मध्यप्रदेश से कोई भी प्रतिभागी शामिल नहीं है। खजुराहो महोत्सव उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी द्वारा को-ऑर्डिनेट किया जाता है।

सोमवार, 17 जनवरी 2011

छत्तीसगढ़ की खबरें

राजनीतिक विवाद में फंसा एक लाख करोड़ का काम
केंद्र और राज्य के राजनीतिक झगड़े में प्रदेश की एक लाख तीन हजार 700 करोड़ रुपए की योजनाएं लटक गई हैं। यह आंकड़ा सूबे के सालाना बजट का करीब चार गुना है।
1365 किमी सड़क अधर में :
नेशनल हाईंवे की 10 सड़कों के निर्माण के लिए 2007 से केंद्र-राज्य के बीच खेल जारी है। केंद्र और राज्य के बीच कंपनी बनाकर काम करने का करार हुआ।

कंपनी बनाने के बाद राज्य की ओर से भेजे गए एमओयू ड्राफ्ट को केंद्र ने यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उनकी शर्तो और मापदंडों के अनुसार कंपनी बनाई जाए।
आखिरकार 2008 में पांच सड़कों के निर्माण पर सहमति बनी। उसके बाद कहा गया कि दो सड़कें बिलासपुर से उड़ीसा बॉर्डर और सरायपाली-सारंगढ़-रायगढ़ तक राज्य बनाए। बाद में केंद्र की नीति बदल गई। अब सड़कों को पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के तहत बनाने का प्रस्ताव आया।
इसके तहत राज्य की छह सड़कों को फिजिबल नहीं पाया गया।सरायपाली-सारंगढ़-रायगढ़ प्रोजेक्ट को केंद्र ने मंजूरी के बाद कैंसिल कर दिया। राज्य का पीडब्लूडी विभाग आठ माह से बिलासपुर-उड़ीसा बॉर्डर तक की सड़क के लिए टेंडर किए बैठा है, लेकिन केंद्र से हरी झंडी नहीं मिल रही।
पिछले दो साल से राज्य को सड़क मरम्मत के लिए राशि (सालान सौ करोड़) भी नहीं दी रही है। इससे सालाना 100 करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है। राज्य में कुल 22क्क् किमी नेशनल हाईवे है।

अड़ंगे से अटकी सड़कें

सड़क लंबाई (किमी में)

आरंग-सरायपाली 15

रायपुर-धमतरी 81

बिलासपुर-उड़ीसा 197

चिल्फी-सिमगा 125

धमतरी-जगदलपुर 216

पत्थलगांव-जशपुर 160

अंबिकापुर-पत्थलगांव 82

बिलासपुर-अंबिकापुर 141

रायगढ़-सरायपाली 87

महत्वपूर्ण - पीएमआरवाई पर 75 फीसदी काम होने के बावजूद राज्य के 1500 करोड़ रुपए रुके हुए हैं।
कई चिट्ठियां लिख चुका
"राज्य की सड़कों के निर्माण पर जल्द निर्णय लेने के लिए केंद्र सरकार को कई पत्र लिखे गए हैं, लेकिन इसका असर नहीं हुआ। केंद्र का रवैया राज्य के प्रति सकारात्मक नहीं है।"
- बृजमोहन अग्रवाल, पीडब्लूडी मंत्री

सबकुछ तो बता दिया
"केंद्र द्वारा चाही गई जानकारी भेज दी गई है। इन योजनाओं के मंजूर हो जाने से न केवल किसानों को फायदा होगा, बल्कि राज्य के लोगों को रोजगार भी मिलेगा। "
- चंद्रशेखर साहू, कृषि मंत्री , छत्तीसगढ़

बिजली पर क्लियरेंस का अंधियारा
राज्य में प्रस्तावित 15 बिजली परियोजनाओं को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी मिलनी बाकी है। 21655 मेगावाट की इन परियोजनाओं में करीब 97 हजार करोड़ रुपए का निवेश होना है।
वजह : केंद्र ने परियोजनाओं के लिए पहले कोल ब्लॉकों का आबंटन कर दिया और अब पर्यावरण मंत्रालय उन इलाकों को नो गो एरिया घाषित कर रहा।
राज्य करे पहल
वित्तीय मामलों के विशेषज्ञ रामचंद्र सिंहदेव के अनुसार राजनीतिक झगड़े की मूल वजह श्रेय लेने की होड़ है। केंद्र चाहता है कि उसके मद से पैसा आ रहा है तो उसका नाम तो लिखा जाए, वहीं राज्य सरकार हर प्रोजेक्ट को अपना बताने पर तुली रहती है।
दोनों पक्षों का बात करना और समन्वय के साथ काम करना ही इसका समाधान है। इसके लिए राज्य सरकार को ही विशेष पहल करनी होगी।
अब आगे क्या..
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के मुताबिक केंद्र सरकार भाजपा शासित राज्यों के साथ भेदभाव कर रही है। छत्तीसगढ़ से संबंधित विभिन्न मामलों के बाबत केंद्रीय वित्त और शहरी विकास मंत्री से अगले सप्ताह दिल्ली में विस्तार से बात की जाएगी।

मदकू द्वीप का राष्ट्रीय मसीही मेला
.शिवनाथ नदी के सुरम्य टापू मदकूद्वीप पर राष्ट्रीय मसीही मेले का आयोजन 7 से 13 फरवरी तक किया जा रहा है। मेले का यह 102 वां वर्ष होगा। देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु इसमें शिरकत करेंगे।
मदकूद्वीप रायपुर-बिलासपुर मार्ग पर बैतलपुर से तीन किलोमीटर पूर्व दिशा की ओर स्थित है। इस बार 7 से 11 फरवरी तक मेला रीट्रीय होगी जिसमें पादरी व सेवकगण शामिल होंगे। 9 से 13 फरवरी तक श्रद्धालु मेले में बाइबिल के प्रवचनों और भजनों से ओतप्रोत होंगे।
प्रधान वक्ता दमोह के पादरी जॉश हावर्ड होंगे। मेले में 8 फरवरी को पादरियों के लिए वाद-विवाद का विषय रखा गया है- कलीसिया में आपसी सामंजस्य की कमी। इसी दिन परिचर्चा भी होगी। बाइबिल प्रश्नोत्तरी उत्पत्ति की किताब से होगी।
रात को कैंप फायर का आयोजन होगा। 9 फरवरी को तात्कालिक भाषण और पारितोषिक वितरण होगा। 10 फरवरी से मेला समाप्ति तक रोज सुबह 5 बजे प्रभात फेरी निकाली जाएगी जिसमें भजन गाते हुए मसीहीजन द्वीप का भ्रमण करेंगे। रोज सुबह 5.30 बजे क्रूस की छाया में आराधना होगी।
बच्चों और युवाओं को धार्मिक-नैतिक शिक्षा देने क्लास लगाई जाएंगी। 10 फरवरी को वाद-विवाद प्रतियोगिता, 11 फरवरी को काव्य पठन प्रतियोगिता, 12 फरवरी को गीत-संगीत प्रतियोगिताएं होंगी।
13 फरवरी को आराधना के साथ प्रभुभोज का पवित्र संस्कार संपन्न होगा। मेला मैनेजर जयदीप राबिंसन ने बताया कि तंबू और झोपड़ी की बुकिंग के लिए मेला कमेटी से संपर्क किया जा सकता है। महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग घाटों का इस्तेमाल किया जाएगा। चर्च प्रतिनिधियों को पादरी या सचिव से प्रमाणित पत्र लाना होगा।


उपचुनावों में भाजपा ने लहराया परचम
राज्य में हुए अब तक के उप चुनावों में भाजपा ने कांग्रेस पर बढ़त बना रखी है। कुल 10 उप चुनावों में से छह में भाजपा को जीत मिली है जबकि कांग्रेस ने चार दफे बाजी मारी है। संजारी बालोद में ग्यारहवां उप चुनाव होगा और इसमें भी कांग्रेस भाजपा में सीधी भिड़ंत होगी, लेकिन भाजपा के पूर्व सांसद ताराचंद साहू के स्वाभिमान मंच की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
छत्तीसगढ़ राज्य को बने दस साल हो गए हैं। इस दौरान राज्य में एक लोक सभा सहित नौ विधान सभा सीटों के लिए उप चुनाव हुए हैं। कांग्रेस ने एक लोक सभा व तीन विधान सभा चुनाव और भाजपा ने छह विधान सभा चुनाव जीते हैं। संजारी बालोद में बढ़त बनाने के लिए दोनों पार्टियों में जोरदार मुकाबला होने की उम्मीद है।
दुर्ग जिले के संजारी बालोद में प्रदेश की तृतीय विधान सभा का तीसरा उपचुनाव होगा। इससे पहले वैशालीनगर और भटगांव सीटों के लिए उपचुनाव हो चुके हैं। तीसरी विधान सभा के लिए 2008 में चुनाव हुए थे। संजारी बालोद सीट भाजपा विधायक मदनलाल साहू के निधन से खाली हुई है।
वहां पहली दफे उपचुनाव होंगे। वैशालीनगर सीट उप चुनाव में मतदाताओं ने बाजी पलट दी। कांग्रेस के भजन सिंह निरंकारी विजयी रहे। सरगुजा जिले के भटगांव के भाजपा विधायक रविशंकर त्रिपाठी की सड़क हादसे में मौत के बाद वहां उप चुनाव कराना पड़ा।
स्व. त्रिपाठी की पत्नी रजनी त्रिपाठी को मतदाताओं की सहानुभूति के दम पर जीत हासिल हुई। श्रीमती त्रिपाठी को 74 हजार 98 और कांग्रेस के यूएस सिंहदेव को 39 हजार 236 वोट मिले। राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने जब सरकार की बागडोर थामी थी तब वे विधान सभा सदस्य नहीं थे।
उन्होंने अपने गृह नगर से चुनाव लड़ने बड़ा राजनीतिक खेल खेला। मरवाही से कांग्रेस की बजाए भाजपा विधायक रामदयाल उइके को अपने पाले में लिया और सीट खाली करवाई। उप चुनाव में उन्होंने भाजपा के अमर सिंह खुसरों को रिकार्ड करीब 51 हजार वोटों से हराया।
श्री जोगी को 71 हजार 211 और श्री 20 हजार 453 वोट मिले। 2003-04 में विधान सभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद जब भाजपा बहुमत के साथ सत्ता में आई तो मुख्यमंत्री बने डॉ. रमन सिंह। वे भी श्री जोगी की तरह विधान सभा के सदस्य नहीं थे। उन्होंने राजनांदगांव जिले की डोंगरगांव सीट से उप चुनाव लड़ा।
यह सीट भाजपा विधायक प्रदीप गांधी ने श्री सिंह के लिए खाली की थी। पूर्व मंत्री और राजघराने की गीतादेवी सिंह ने कांग्रेस की टिकट पर श्री सिंह को कड़ी टक्कर दी थी। श्री सिंह को 42 हजार 115 और श्रीमती सिंह को 32 हजार 4 वोट मिले।
पूर्व विधान सभा अध्यक्ष राजेंद्र शुक्ल के निधन से 2006 में बिलासपुर जिले की कोटा सीट खाली हुई। श्री जोगी ने अपनी पत्नी डॉ. रेणु जोगी को कांग्रेस की टिकट दिलवाकर चुनाव लड़वाया और जीत हासिल की।
श्रीमती जोगी को 59 हजार 465 और भाजपा के भूपेंद्र सिंह को 35 हजार 995 वोट मिले।राजनांदगांव के भाजपा सांसद प्रदीप गांधी रिश्वत लेकर संसद में सवाल पूछने के प्रकरण में फंस गए। तब उन्हें इस्तीफा देने पड़ा।
2007 में इस लोक सभा सीट के लिए उप चुनाव में खैरागढ़ के कांग्रेस विधायक देवव्रत सिंह ने विजय पताका फहराई। उन्हें 3 लाख 45 हजार 9 और भाजपा के लीलाराम भोजवानी को 2 लाख 93 हजार 395 वोट मिले।
2004 में अकलतरा विधान सभा उप चुनाव में भाजपा के छतराम देवांगन ने कांग्रेस के डॉ, राकेश कुमार सिंह को हराया। उन्हें 39 हजार 895 वोट और श्री सिंह को 29 हजार 187 वोट मिले। 2007 में खैरागढ़ सीट के लिए उप चुनाव में श्री देवव्रत की बीवी पदमा देवी को कांग्रेस की टिकट मिली पर वे भाजपा के कोमल जंघेल से हार गईं।
श्रीमती सिंह को 41 हजार 962 और श्री जंघेल को 57 हजार 949 वोट मिले। जांजगीर जिले की मालखोरौदा सीट पर बहुजन समाज पार्टी का कब्जा था। हाईकोर्ट ने एक याचिका के आधार पर लालसाय खुटे का निर्वाचन शून्य घोषित कर दिया। उपचुनाव में यहां से भाजपा ने जीत हासिल की।
भाजपा के निर्मल सिन्हा ने 45 हजार 576 और कांग्रेस के मोहन मानी ने 23 हजार 589 वोट बटोरे। 2007-08 में केसकाल में उपचुनाव हुए। यहां भाजपा के सेवकराम नेताम ने 58 हजार 362 वोट पाकर कांग्रेस के बुधसन मरकाम (36 हजार 476 वोट)को हराया।

विधानसभा उपचुनाव जीते भाजपा ने
डोंगरगांव - डॉ. रमन सिंह, अप्रैल 2004
अकलतरा - छतराम देवांगन, अप्रैल 2004
खैरागढ़ - कोमल जंघेल, जून 2007
मालखरौदा - निर्मल सिन्हा, जून 2007
केशकाल - सेवकराम नेताम, 2007-08
भटगांव - रजनी त्रिपाठी, 2010

कांग्रेस ने जीते उपचुनाव
मारवाही - अजीत जोगी, 2001
कोटा - डॉ. रेणु जोगी, 2006
राजनांदगांव - देवव्रत सिंह, 2007 (लोकसभा)
वैशालीनगर - भजनसिंह निरंकारी, 2010

"भाजपा ने सत्ता में रहते हुए शासन का खुलकर दुरुपयोग कर चुनाव जीते हैं। भ्रष्चार के पैसे का जमकर उपयोग किया है। अब जनता जागरूक हो गई है। वह सब समझती है। संजारी-बालोद में हम रणनीति के तहत मैदान में उतरेंगे।"
धनेंद्र साहू, पीसीसी अध्यक्ष
"भाजपा की लगातार जीत उसकी सरकार द्वारा समाज के प्रत्येक वर्ग के हित में किए गए कार्यो का नतीजा और संगठन का मजबूत आधार है। संजारी बालोद में भी हम एकमत होकर मैदान में उतरने संकल्पित हैं।"
शिवरतन शर्मा,
महामंत्री भाजपा

रविवार, 16 जनवरी 2011

व्रत-त्योहार

पुत्रदा (पौष शुक्ल) एकादशी व्रत कथा

महाराज युधिष्ठिर ने पूछा- हे भगवान! आपने सफला एकादशी का माहात्म्य बताकर बड़ी कृपा की। अब कृपा करके यह बतलाइए कि पौष शुक्ल एकादशी का क्या नाम है उसकी विधि क्या है और उसमें कौन-से देवता का पूजन किया जाता है।
भक्तवत्सल भगवान श्रीकृष्ण बोले- हे राजन! इस एकादशी का नाम पुत्रदा एकादशी है। इसमें भी नारायण भगवान की पूजा की जाती है। इस चर और अचर संसार में पुत्रदा एकादशी के व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। इसके पुण्य से मनुष्य तपस्वी, विद्वान और लक्ष्मीवान होता है। इसकी मैं एक कथा कहता हूँ सो तुम ध्यानपूर्वक सुनो।
भद्रावती नामक नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई पुत्र नहीं था। उसकी स्त्री का नाम शैव्या था। वह निपुत्री होने के कारण सदैव चिंतित रहा करती थी। राजा के पितर भी रो-रोकर पिंड लिया करते थे और सोचा करते थे कि इसके बाद हमको कौन पिंड देगा। राजा को भाई, बाँधव, धन, हाथी, घोड़े, राज्य और मंत्री इन सबमें से किसी से भी संतोष नहीं होता था।
वह सदैव यही विचार करता था कि मेरे मरने के बाद मुझको कौन पिंडदान करेगा। बिना पुत्र के पितरों और देवताओं का ऋण मैं कैसे चुका सकूँगा। जिस घर में पुत्र न हो उस घर में सदैव अँधेरा ही रहता है। इसलिए पुत्र उत्पत्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए।
जिस मनुष्य ने पुत्र का मुख देखा है, वह धन्य है। उसको इस लोक में यश और परलोक में शांति मिलती है अर्थात उनके दोनों लोक सुधर जाते हैं। पूर्व जन्म के कर्म से ही इस जन्म में पुत्र, धन आदि प्राप्त होते हैं। राजा इसी प्रकार रात-दिन चिंता में लगा रहता था।
एक समय तो राजा ने अपने शरीर को त्याग देने का निश्चय किया परंतु आत्मघात को महान पाप समझकर उसने ऐसा नहीं किया। एक दिन राजा ऐसा ही विचार करता हुआ अपने घोड़े पर चढ़कर वन को चल दिया तथा पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने देखा कि वन में मृग, व्याघ्र, सूअर, सिंह, बंदर, सर्प आदि सब भ्रमण कर रहे हैं। हाथी अपने बच्चों और हथिनियों के बीच घूम रहा है। इस वन में कहीं तो गीदड़ अपने कर्कश स्वर में बोल रहे हैं, कहीं उल्लू ध्वनि कर रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा सोच-विचार में लग गया। इसी प्रकार आधा दिन बीत गया। वह सोचने लगा कि मैंने कई यज्ञ किए, ब्राह्मणों को स्वादिष्ट भोजन से तृप्त किया फिर भी मुझको दु:ख प्राप्त हुआ, क्यों?
राजा प्यास के मारे अत्यंत दु:खी हो गया और पानी की तलाश में इधर-उधर फिरने लगा। थोड़ी दूरी पर राजा ने एक सरोवर देखा। उस सरोवर में कमल खिले थे तथा सारस, हंस, मगरमच्छ आदि विहार कर रहे थे। उस सरोवर के चारों तरफ मुनियों के आश्रम बने हुए थे। उसी समय राजा के दाहिने अंग फड़कने लगे। राजा शुभ शकुन समझकर घोड़े से उतरकर मुनियों को दंडवत प्रणाम करके बैठ गया।
राजा को देखकर मुनियों ने कहा- हे राजन! हम तुमसे अत्यंत प्रसन्न हैं। तुम्हारी क्या इच्छा है, सो कहो। राजा ने पूछा- महाराज आप कौन हैं, और किसलिए यहाँ आए हैं। कृपा करके बताइए। मुनि कहने लगे कि हे राजन! आज संतान देने वाली पुत्रदा एकादशी है, हम लोग विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिए आए हैं।
यह सुनकर राजा कहने लगा कि महाराज मेरे भी कोई संतान नहीं है, यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो एक पुत्र का वरदान दीजिए। मुनि बोले- हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है। आप अवश्य ही इसका व्रत करें, भगवान की कृपा से अवश्य ही आपके घर में पुत्र होगा।
मुनि के वचनों को सुनकर राजा ने उसी दिन एकादशी का ‍व्रत किया और द्वादशी को उसका पारण किया। इसके पश्चात मुनियों को प्रणाम करके महल में वापस आ गया। कुछ समय बीतने के बाद रानी ने गर्भ धारण किया और नौ महीने के पश्चात उनके एक पुत्र हुआ। वह राजकुमार अत्यंत शूरवीर, यशस्वी और प्रजापालक हुआ।
श्रीकृष्ण बोले- हे राजन! पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य इस माहात्म्य को पढ़ता या सुनता है उसे अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

छत्तीसगढ़ की खबरें

छत्तीसगढ़ : पानी भी हुआ महंगा

रायपुर.प्रदेश में पानी तीन गुना से अधिक महंगा हो गया है। अब प्रत्येक उपभोक्ता को प्रति नल कनेक्शन पर हर महीने 60 के बजाय 200 रुपए देना होगा। बढ़ी हुई दर अगले वित्त वर्ष (अप्रैल से) से लागू होगी और सिर्फ संपत्ति करदाता ही इसकी जद में होंगे। राज्य सरकार ने 13 साल बाद पानी की दरें बढ़ाई हैं।
गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वालों को भागीरथी नल जल योजना के अंतर्गत पुरानी दर पर ही पानी मुहैया होगा। पिछली बार जल दरों में इजाफा 1997 में अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने किया था। उसी दर अब तक पानी मिल रहा है।नगरीय निकाय लंबे समय से पानी दर में इजाफे की मांग करता आ रहा था।
स्थानीय निकाय की दलीलें
> वाटर मैटेंनेंस पर भारी भरकम खर्च होता है, जबकि मौजूदा दर से आमदनी न के बराबर है। नगरीय निकायों के ऊपर बिजली विभाग का वाटर सप्लाई आपरेशंस की मद में ही 50 करोड़ रु. का बकाया है।
> केंद्र सरकार ने अनिवार्य सुधार के तहत वाटर सप्लाई और सॉलिड वेष्ट मैनेजमेंट के रखरखाव का पूरा खर्च लोकल बॉडी को वहन करने की अनिवार्यता कर दी है। ऐसा नहीं होने पर केंद्र से मिलने वाली अनुदान राशि नहीं मिलेगी।
> नगरीय निकायों से यह भी कहा गया है कि वे अवैध कनेक्शन पर लगाम लगाए।
नगर निगम का प्रति कनेक्शन खर्च
रायपुर 225
जगदलपुर 320
रायगढ 232
भिलाई 498
चिरमिरी 482
राजनांदगांव 210
दुर्ग 240
बिलासपुर 212
अंबिकापुर 262
कोरबा 302


जो सोया फिर उठ नहीं पाया पूरा परिवार
रायगढ़.जिला मुख्यालय से 70 किलोमीटर दूर लैलूंगा थाना क्षेत्र के ग्राम फुटहामुड़ा में एक परिवार के चार सदस्यों की संदिग्ध मौत हो गई। मृतकों में किसान शंभू राठिया, उनके दो पुत्र और एक बेटी शामिल हैं, वहीं पत्नी की हालत गंभीर है। आशंका व्यक्त की जा रही है कि मौत जहरीले भोजन या अंगीठी के धुएं से हुई है।
40 वर्षीय शंभू अपने परिवार के साथ खाना खाकर बुधवार की रात सोने चले गए। गुरुवार की सुबह 6 बजे तक जब घर का दरवाजा नहीं खुला, तो उनके भाई संतूराम राठिया ने अपनी पत्नी पंचवती को शंभू के घर भेजा।
आवाज देने पर भी किसी प्रकार का जबाव नहीं मिलने पर पंचवती ने इसकी जानकारी पति को दी। गांव वालों की मौजूदगी में जब संतूराम भाई के घर में घुसे तो शंभू, उसके 15 वर्षीय व 5 वर्षीय बेटे बालकुमार व उमाशंकर और 13 वर्षीय बेटी सविता मृत पड़ी थी।
वहीं पत्नी करमेश बाई बेसुध हालत में थी। लैलूंगा पुलिस ने महिला को तत्काल इलाज के लिए अस्पताल भिजवाया। एएसपी विवेक शुक्ला के अनुसार रात में खाए भोजन में कोई जहरीला पदार्थ मिला हो सकता है, या फिर गर्मी लाने के लिए कमरे में जलाई गई अंगीठी से उनका दम घुट गया होगा। महिला के होश में आने पर ही मौत के कारणों का पता चल पाएगा।

स्टेशन पर नक्सल साहित्य मिलने से अफरा-तफरी
रायपुर.रेलवे स्टेशन के पार्सल गोदाम में छह दिन पहले मिले नक्सली साहित्य की बात गुरुवार शाम फूट पड़ी। जीआरपी के जरिए इसका पता चला और इंटिलिजेंस की टीम ने तभी इसे जब्त कर पार्सल गोदाम को सील कर दिया।
साहित्य की जांच की जा रही है। इसकी जानकारी गुप्त रखी गई थी, लेकिन स्टेशन सूत्रों के हवाले से यह खबर फैली और अफरा-तफरी मच गई।
नक्सली साहित्य पटना स्टेशन से रायपुर के लिए बुक हुआ था, जो 10 महीने पहले प्लेटफार्म पर उतारा गया था। साहित्य छह बंडलों में पड़े हैं, जो पार्सल गोदाम के एक कोने में सड़ रहे थे।
6 जनवरी को स्टेशन पर एक जीआरपी का जवान अपनी गाड़ी बुक करवाने गया, तो उसकी नजर इन साहित्य के बंडलों पर पड़ी। एक बंडल खुला हुआ था और वह किताबों को देखकर भौचक्क रह गया।
उसने तत्काल जीआरपी के टीआई एसएस शुक्ला को इसकी जानकारी दी। उन्होंने टीम के साथ मौके पर पहुंचकर साहित्य की जांच की और इस बारे में बड़े अफसरों को खबर किया। इंटेलिजेंस और क्राइम ब्रांच की टीम ने साहित्य के बंडलों को जब्त कर इसकी जांच शुरू कर दी है।

मिर्च-मसाला

प्रीति जिंटा : फिल्मों से निराश होकर टीवी की ओर
फिल्मों में काम न मिलने की वजह से निराश होकर प्रीति जिंटाExclusive Wallpapers of Preeti Zinta ने अब छोटे परदे की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। बहुत जल्दी वे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स के भारतीय संस्करण शो को होस्ट करती नजर आएँगी।
प्रीति जिंटा की फिल्म रिलीज हुए अरसा हो गया है। नेस वाडिया और आईपीएल के चक्कर में उन्होंने अपने एक्टिंग करियर को ताक पर रख दिया। प्रीति को लगा वे जब चाहे फिल्में साइन कर सकती हैं।
इसी बीच बॉलीवुड में कई नायिकाएँ आ गईं और निर्माता-निर्देशकों ने प्रीति को भूला दिया। आईपीएल में अपनी टीम के पिटने और नेस से ब्रेकअप होने के बाद प्रीति को फिल्मों की याद आई, लेकिन उनमें किसी ने रूचि नहीं ली।
प्रीति के साथ काम करने वाले शाहरुख, आमिर और सलमान भी नई और युवा अभिनेत्रियों में रूचि लेने लगे। प्रीति ने खूब कोशिश की कि उन्हें फिल्मों में एक बार फिर अभिनय के जौहर दिखाने का अवसर मिले, लेकिन ये संभव नहीं हो पाया।
जब टीवी का ऑफर उन्हें आया तो उन्होंने फौरन इसे लपक लिया। इसी बहाने वे उन लोगों को नजर आने लगेगी जो उन्हें भूल चुके हैं।

आलेख

संक्रांति पर तुलादान का महत्व
तमसो मा ज्योतिर्गमय

भारत के अनेक पर्वों और त्योहारों में मकर संक्रांति की अपनी अलग एक पहचान है। वर्ष में यही एकमात्र पर्व है, जो 'सौर पंचांग' के आधार पर मनाया जाता है। सूर्य जब अपनी परिक्रमा के बीच धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, तो मकर संक्रांति होती है।
दो राशियों के संक्रमण के साथ ही इस दिन को दो ऋतुओं (शिशिर और बसंत) का संधिकाल भी माना जाता है। शीत पर धूप की विजय के रूप में मनाया जाने वाला मकर संक्रांति का पर्व, प्रायः पौष (पूस) मास में पड़ता है, जबकि पूस को खरमास मानने के कारण, इस महीने में और कोई पर्व या त्योहार नहीं पड़ता।
आज के दिन से ही सूर्य का उत्तरायन काल आरंभ होता है, जिससे दिन के परिणाम में वृद्धि होती है और रात घटने लगती है। अब चूँकि सूर्य द्वारा यह राशि परिवर्तन 14 जनवरी को ही होता है, इसलिए मकर संक्रांति प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मनाई जाती है। कई लोग मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाएँगे।
उत्तर भारत के लोग आपसी मेल-मिलाप के इस पर्व को जहाँ खिचड़ी के नाम से पुकारते हैं, वहीं दक्षिण भारत में इसे पोंगल के नाम से जाना जाता है। इस पर्व में गन्ने और चावल बाँटे जाते हैं। इस दिन तुलादान का विशेष महत्व है। किसी व्यक्ति के जितना तौलकर खिचड़ी, घी, तिल व फल इत्यादि दान इसमें दिया जाता है। कहा जाता है कि अपने वजन के बराबर वस्तुओं का दान करने से शरीर की उतनी ही बाधाएँ दूर होती है। साथ ही दान का फल अनंत गुना बढ़ जाता है।
'तमसो मा ज्योतिर्गमय' अंधकार से प्रकाश की ओर प्रयाण करने की वैदिक ऋषियों की प्रार्थना इस दिन के संकल्पित प्रयत्नों की परंपरा से साकार होती है। कर्मयोगी सूर्य इस दिन अपने क्षणिक प्रमाद को अलग रखकर, अंधकार पर आक्रमण करने का दृढ़ संकल्प करता है। इसी दिन से अंधकार धीरे-धीरे घटता जाता है।
अच्छे काम करने के शुभ दिनों का प्रारंभ होता है। धार्मिक लोग कामना करते हैं, कि मकर संक्रांति के बाद ही उनकी मृत्यु हो। जिस व्यक्ति की उत्तरायन में मृत्यु होती है, उसकी अपेक्षा दक्षिणायन में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति के लिए, दक्षिण (यम) लोक में जाने की संभावना अधिक होती है। यमराज को मृत्यु को उत्तरायन प्रारंभ होने तक रोकने वाले इच्छामरणी भीष्म पितामह इस बात का ज्वलंत उदाहरण हैं।
मकर संक्रांति यानी प्रकाश की अंधकार पर विजय। मानव का जीवन भी प्रकाश और अंधकार से घिरा हुआ है; उसके जीवन का वस्त्र काले व सफेद तंतुओं से बना हुआ है। मकर संक्रांति के दिन मानव को स्नेह संक्रमण करने का शुभ संकल्प करना चाहिए।

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

छत्तीसगढ़ की खबरें

जज के खिलाफ जन अदालत की धमकी
छत्तीसगढ़ के डीजीपी विश्वरंजन ने साफ किया कि डॉ. बिनायक सेन के मसले पर सिविल सोसाइटी के लगातार दबाव के बाद भी उनकी जमानत अर्जी का पुलिस विरोध करेगी।

नक्सल प्रभावित राज्यों के पुलिस प्रमुखों की बैठक में विश्वरंजन ने दैनिक भास्कर से कहा, ‘आप देखिए नक्सलियों के तेवर, ओड़ीसा-छत्तीसगढ़ की सीमा पर उन्होंेने बुधवार को पोस्टर चस्पा कर सेन के पक्ष में फैसला न देने पर न्यायाधीशों के खिलाफ जन-अदालत लगाने की चुनौती देने की हिमाकत कर रहे हैं।’उन्होंने जोर देकर कहा कि नक्सलियों से साठगांठ को लेकर सेन के खिलाफ इतने सबूत हैं कि पीछे हटने का सवाल ही नहीं।
उनका 15 हमारा 12 सौ करोड़ का बजट
डीजीपी ने कहा कि नक्सलियों की उगाही ढाई हजार करोड़ रुपए तक जा पहुंची है। केवल झारखंड से ही उन्हें 1500 करोड़ रुपए पहुंच रहे हैं। जबकि छत्तीसगढ़ पुलिस के पास केवल 1200 करोड़ रुपए सालाना का बजट है। फंड की कमी के कारण बेहतर उपकरण खरीदना मुश्किल हो रहा है।
विश्वरंजन ने कहा कि नक्सलियों की सबसे बड़ी ताकत लैंडमाइन है। लैंडमाइन को पहचानने का स्वचालित वाहन इजराइल ने बनाया है। लेकिन वैसे एक वाहन की कीमत २क् करोड़ रुपए है। इतने महंगे वाहन की खरीदी फंड की कमी के कारण फिलहाल संभव नहीं हो सकी है।

सेन परिवार को पूरी सुरक्षा
डॉ. बिनायक सेन की पत्नी इलीना सेन ने छग में जान को खतरा बताया है, इस सवाल के जवाब में डीजीपी ने विश्वास दिलाया कि रायपुर लौटते ही उन्हें बेहतर सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी। उन्हाेंने कहा, सेन-परिवार के जानमाल की हिफाजत करना हमारा दायित्व है।

कानन पेंडारी में चलेगी एयरकंडीशंड ट्रेन
बिलासपुर.स्मॉल जू ‘कानन पेंडारी’ में सैर के लिए जल्दी ही एयरकंडीशंड टॉय ट्रेन उपलब्ध हो जाएगी। आकार प्रकार में सामने का हिस्सा हूबहू स्टीम इंजिन का होगा, परंतु यह ट्रेन दो डिब्बों वाली होगी तथा इसके चके मोटर कारों की तरह होंगे।

कानन पेंडारी में 8 एवं 12 सीटर इको फ्रेंडली कार पहले से ही संचालित हो रही है। नई ट्रेन के आ जाने से सैलानियों खासतौर पर बच्चों के लिए कानन पेंडारी में भ्रमण और मजेदार हो जाएगा।
वन मंडलाधिकारी एसएसडी बड़गैंया ने बताया कि एयरकंडीशंड टॉय ट्रेन की लागत 10 लाख रुपए है। इसमें 18 बीएचपी का पॉवरफुल इंजिन लगा हुआ है। इसकी रफ्तार 4 से 10 किलोमीटर होगी तथा इसमें 15 व्यक्ति बैठ सकेंगे। ट्रेन में दो डिब्बे होंगे, एक एसी दूसरा नॉन एसी होगा। ट्रेन के संचालन के लिए पॉथ वे की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि इसमें टायर वाले पहिए लगे होंगे।
गौरतलब है कि कानन पेंडारी को 3 अगस्त 2005 को मिनी जू का दर्जा प्रदान किया गया। उसे 21 जनवरी 2009 को स्मॉल जू बनाया गया और अब मिडियम जू के लिए प्रशासन की ओर से आवश्यक तैयारियां की जा रही हैं। कानन पेंडारी में 50 विभिन्न प्रजातियों के वन्यप्राणी हैं।
वन्यप्राणियों की संख्या 750 के करीब है। कानन पेंडारी के आकर्षण का इससे बेहतर और कोई उदाहरण नहीं होगा कि न्यू ईयर सेलिब्रेशन के लिए यहां हर साल 25 से 30 हजार सैलानी पहुंचते हैं। वैसे वर्ष भर में तीन- साढ़े तीन लाख सैलानियों के कानन के भ्रमण के लिए पहुंचने का रिकार्ड है।

राष्ट्रीय उद्यानों में बच्चों का नहीं लगेगा टिकट
रायपुर.वनमंत्री विक्रम उसेंडी ने बच्चों को नए साल का तोहफा देते हुए घोषणा की है कि यदि वे राष्ट्रीय उद्यानों और अभयारण्यों की सैर करने जाते हैं तो उन्हें इंट्री टिकट नहीं लेना पड़ेगा। इसका उद्देश्य स्कूली बच्चों में जंगलों व वन्य प्राणियों के प्रति लगाव पैदा करना है।
प्रदेश में 55 लाख स्कूली बच्चे हैं। बच्चों को अभयारण्यों में प्रवेश स्कूल का आईकार्ड दिखाने पर दे दिया जाए। उनके वहां ठहरने के शुल्क में छूट मिलेगी या नहीं अभी यह तय किया जा रहा है। श्री उसेंडी ने बताया कि स्कूलों और कालेजों में वानिकी के महत्व पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
उनमें जंगलों की महत्ता को प्रदर्शित करने वाली चित्रकला प्रतियोगिताएं आयोजित की जाएंगी। वन महोत्सव कार्यक्रम स्कूलों, कालेजों और पंचायतों में धूमधाम से मनाए जाएंगे। वन विभाग ने वर्ष 2011 को अंतरराष्ट्रीय वानिकी वर्ष के रूप में मनाने का फैसला भी किया है।
इस साल वन विभाग की स्थापना के 50 साल भी पूरे हो रहे हैं। प्रदेश में इस अवसर पर राजधानी में तीन दिनी वानिकी मेला लगाने का निर्णय लिया गया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा भी नए साल को अंतरराष्ट्रीय वानिकी वर्ष के रूप में मना रही है।
सालभर आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रम जनता के लिए वन थीम पर आधारित होंगे। इस संबंध में आज अरण्य भवन में पीसीसीएफ आर.के. शर्मा ने अफसरों की बैठक ली।
इसमें अच्छा काम करने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों को सम्मानित करने, पर्यावरण जागरूकता पैदा करने, हर्बल उत्पादों व सजावटी सामान की प्रदर्शनी लगाने, जंगलों से संबंधित फिल्मों का प्रदर्शन करने, विभागीय स्मारिका वानिकी की डोर-जनता की ओर प्रकाशित करने का भी निर्णय लिया गया।

नंदनवन का बढ़ेगा दर्जा
रायपुर। राजधानी का मिनी जू नंदनवन अब जल्द ही स्मॉल जू अथॉरिटी की एक टीम ने नंदनवन का निरीक्षण कर इसे अपग्रेड करने की सिफारिश की है। सेंट्रल जू अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने इसे अपग्रेड करने का विचार शुरू कर दिया है। अफसरों का कहना है कि अपग्रेडेशन के बाद नंदनवन में सुविधाएं और जानवरों की संख्या बढ़ जाएगी। दुनिया के कुछ अनोखे और लुप्तप्राय प्रजातियों के जानवरों को भी यहां रखने की अनुमति मिल सकेगी।
नंदनवन को केंद्र ने मिनी जू के नाम से ही सेंट्रल जू का दर्जा दिया था। इसके बाद इसके अपग्रेडेशन के लिए राज्य वन विभाग ने काफी बदलाव किया। जू का क्षेत्रफल डबल कर दिया गया। नए जानवरों और सुविधाओं में बढ़ोतरी होने से यहां पर्यटकों की संख्या भी बढ़ गई। अब इतना विकास हो गया है कि इसे स्मॉल जू का दर्जा दिया जा सकता है। इसी के लिए सेंट्रल जू अथॉरिटी की टीम तीन हफ्ते पहले यहां निरीक्षण करने आई थी।
टीम ने जू का अवलोकन कर यहां की सुविधाओं की रिपोर्ट तैयार की थी। जानवरों के आंकड़े और पर्यटकों की संख्या भी आंकी गई। निरीक्षण दस्ते ने ग्रेडिंग बढ़ाकर नंदनवन को स्मॉल जू का दर्जा दिए जाने की सिफारिश कर दी है। महीनेभर के भीतर जू के अपग्रेडेशन का पत्र वन विभाग को मिल सकता है। इस खबर से वन विभाग के लोग उत्साहित हैं।
स्मॉल जू अपग्रेडेशन का मापदंडक्षेत्रफल : नियमत: जू का क्षेत्रफल 20 हेक्टेयर यानी 50 एकड़ से ज्यादा होना चाहिए। नंदनवन के पास वर्तमान में 51 एकड़ जमीन है। मिनी जू का दर्जा हासिल करते समय यहां केवल 25 एकड़ जमीन ही थी।पर्यटक : केंद्रीय मापदंड में स्मॉल जू के लिए पर्यटकों की औसत संख्या देखी जाती है। नंदनवन में निर्धारित से अधिक पर्यटक आ रहे हैं।सामान्य प्रजातियां : जानवरों की सामान्य प्रजातियां 15 से अधिक होनी चाहिए। नंदनवन मंे यह संख्या 17 है।विलुप्तप्राय प्रजातियां : विलुप्तप्राय सूची में आने वाली जानवरों की प्रजातियां तीन होनी चाहिए। नंदनवन के पास ऐसी आठ से ज्यादा प्रजातियां उपलब्ध हैं।
इन खामियों को दूर करना भी है जरूरी> चिकित्सा व्यवस्था पर्याप्त नहीं, लेकिन विभाग ने ऑपरेशन थिएटर के साथ-साथ कुछ उपकरण भी खरीदने की तैयारी की है।> कंपाउंडर की व्यवस्था नहीं है। वन विभाग के सुरक्षा गार्ड को ट्रेनिंग देकर कंपाउंडर के पद पर पदस्थ किया जाएगा।> ट्रेंड स्टाफ की कमी है, जिसके लिए फिलहाल कोई ठोस उपाए नहीं किया गया। इस पर अथारिटी को आपत्ति हो सकती है।> आधे पिंजरे छोटे हैं। कुछ का क्षेत्रफल बढ़ाया गया है। अभी भी बहुत से पिंजरों को बड़ा करना बाकी है।
इस तरह होती है जू की ग्रेडिंगदेश के तमाम जू को सेंट्रल का दर्जा चार स्तरों पर मिलता है। उनके क्षेत्रफल, सुविधाएं और पर्यटकों की संख्या के आधार पर मिनी, स्मॉल, मीडियम और लार्ज जू का दर्जा दिया जाता है। भिलाई का मैत्रीबाग मीडियम जू कहलाता है, जबकि बिलासपुर का कानन पिंडारी स्मॉल जू की केटेगरी में आ चुका है।

5 साल में पूरा होगा अरपा भैंसाझार प्रोजेक्ट
बिलासपुर.जिले की जीवनरेखा मानी जाने वाली अरपा नदी पर भैंसाझार (कोटा) गांव के पास प्रस्तावित ‘अरपा भैंसाझार सिंचाई परियोजना’ को इस वित्तीय वर्ष में मंजूरी मिली तो उसका निर्माण अगले 5 वर्षो में पूरा हो जाएगा।
जल संसाधन विभाग का दावा है कि संशोधित योजना के निर्माण से किसी प्रकार की आबादी प्रभावित होगी और न ही शासकीय संपत्ति यानी स्कूल भवन, आंगनबाड़ी भवन, पंचायत भवन, सामुदायिक भवन, सड़क, तालाब आदि प्रभावित होंगे, बल्कि योजना पूरी होते ही तीन विधानसभा क्षेत्रों की 25 हजार हेक्टेयर की फसल लहलहा उठेगी।
यही वजह है कि जिले की निगाहें जल संसाधन विभाग के आसन्न बजट प्रस्तावों पर टिक गई हैं। अरपा भैंसाझार सिंचाई परियोजना के निर्माण के लिए अंग्रेजों के शासनकाल में सर्वप्रथम 1923 में सर्वे हुआ था।
आजादी के बाद वर्ष 1978-79 में तत्कालीन सिंचाई मंत्री मनहरण लाल पांडे ने यह जानते हुए भी कि योजना के पूर्ण होने जाने से उनके तत्कालीन विधानसभा क्षेत्र तखतपुर के बजाय अन्य विधानसभा क्षेत्रों को अधिक सिंचाई सुविधा मिलेगी, उसे मंजूरी दिलाई। उस समय 2 करोड़ की मंजूरी के बाद सकरी में परियोजना के संचालन के लिए कालोनी का निर्माण भी किया गया।
काम आगे बढ़ पाता कि 1980 में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग के सख्त प्रावधानों ने उसका रास्ता रोक दिया।बहरहाल अरपा भैंसाझार की पुनरीक्षित सिंचाई परियोजना में बांध की बजाय बरॉज बनाने का प्रस्ताव है। इससे कोटा, तखतपुर एवं बिल्हा विधानसभा क्षेत्र की 25000 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी। अरपा भैंसाझार वृहद श्रेणी की योजना है।
जो कि जिले के कोटा विधानसभा क्षेत्र के भैंसाझार गांव के पास क्रियान्वित होगी। यह गांव करगीरोड रेलवे स्टेशन से 15 किलोमीटर दूर स्थित है। बरॉज की ऊंचाई 12.44 मीटर होगी और इसके निर्माण पर 644.33 करोड़ रुपए खर्च होंगे।

बांगो परियोजना के साथ शुरू हुआ था काम
1978-79 में बांगो बांध एवं अरपा भैंसाझार सिंचाई परियोजना को प्रशासनिक स्वीकृति साथ-साथ प्राप्त हुई और निर्माण कार्य भी साथ-साथ शुरू हुआ था। दोनों योजनाओं का शिलान्यास तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा ने किया था।
पूर्व सिंचाई मंत्री मनहरणलाल पांडे के मुताबिक उन दिनों इस परियोजना की लागत 34 करोड़ रुपए निर्धारित की गई थी। इससे 1.82 लाख एकड़ क्षेत्र की सिंचाई का प्रावधान किया गया था।

अरपा प्रोजेक्ट को भी मिलेगा पानी
अरपा विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण की हालिया बैठक में जल संसाधन विभाग के चीफ इंजीनियर अनिल खरे ने सुझाव दिया कि प्राधिकरण बरॉज निर्माण के प्रस्ताव को अपनी परियोजना में शामिल करे, तो उसका बहुत सा कार्य सिंचाई विभाग के जरिए पूर्ण हो सकता है।
अरपा प्रोजेक्ट के अंतर्गत अरपा नदी में लोफंदी से दोमुंहानी गांव तक 18 किलोमीटर क्षेत्र में 8 एनीकट के निर्माण का प्रस्ताव है। जल संसाधन विभाग का मानना है कि ग्रीष्म ऋ तु में जब अरपा सूख जाती है, उन दिनों में सिंचाई के बाद बचा हुआ आतिरिक्त पानी अरपा में बरॉज से छोड़कर उसे जलमग्न किया जा सकेगा।
परियोजना के निर्माण के लिए 442.69 हेक्टेयर वन भूमि, 56.45 हेक्टेयर निजी भूमि, 154.77 हेक्टेयर राजस्व भूमि कुल 653.89 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जाएगा।

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

रोचक-रोमांचक

साल में एक बार खिलने वाला फूल!
आँखों के लिए फायदेमंद है गुल बकावली

इपिफाइलम ऑक्सीपेटालम जिसे हिन्दी में गुल बकावली तथा अंग्रेजी में नाइट क्वीन तथा डचमैंस पाइप, गारलैंड लिली कहा जाता है, कैक्टस की एक प्रजाति से संबंधित है और दुनिया भर के बाग-बगीचों में बहुत उगाया जाता है। यह पौधा सिर्फ रात में ही पल्लवित होता है। इसकी सुंदरता को देखकर कुछ लोग इसे भ्रमवश ब्रह्मकमल भी मान लेते हैं।
यह पौधा श्रीलंका का मूल निवासी है और इसकी मादक खुशबू इसके पल्लवित होते समय इसके फूल खिलने की मुनादी करती है। इस पौधे की एक और प्रजाति मैक्सिको में भी पाई जाती है। इसके फूल सफेद न होकर हलके गुलाबी तथा इसकी अप्रिय गंध भी कुछ अलग-सी होती है। सुबह होने से पहले खिलने वाले इस फूल की सबसे बड़ी खासियत होती है इसका अल्प समय तक ही खिलना। साल में एक बार खिलने वाले इस फूल का पल्लवन संक्षिप्त होता है।
इसी विशेषता के कारण चीन में इस फूल को 'बहुत प्रभावशाली पर संक्षिप्त समय' का प्रतीक माना जाता है। गर्म तथा आद्र जलवायु में पनपने वाला यह पौधा श्रीलंका के अलावा भारत, चीन, मैक्सिको, वेनेजुएला, ब्राजील तथा अमेरिका के कैलिफोर्निया जैसे गर्म तापमान वाले भाग से लेकर 75-2000 मीटर की ऊँचाई तक पाया जाता है।
इस पौधे का लंबोतरा फूल जो कई रंगों का और बहुत सुंगधित होता है, आँखों के रोगों में अत्यंत लाभदायक माना जाता है। औषधीय गुणों से परिपूर्ण इस फूल की इस विशेषता पर एक बहुत रोचक फारसी कहानी 'गुल-ए-बकावली' भी जुड़ी है जो एक बादशाह तथा उसके पाँच बेटों की है। इस कहानी के अनुसार अगर बादशाह अपने पाँचवे बेटे जाने आलम को देखेगा तो अंधा हो जाएगा।
एक बार बादशाह गलती से उसे देखकर अंधा हो जाता है। बादशाह का इलाज सिर्फ गुल-ए-बकावली के फूल से ही हो सकता है जो परियों की शहजादी बकावली के पास है। कैसे शहजादा बकावली के फूल लाता है और अंधे बादशाह फिर से देख पाते हैं यह तो कहानी पढ़ने पर ही पता चलेगा। पर यह फूल अपने इन गुणों की वजह से बहुत ही खास है।

प्रादेशिक

विश्व का प्रथम वानर भोजनालय!
तीर्थनगरी ओंकारेश्वर में एक अनोखे भोजनालय का शुभारंभ होने जा रहा है। यह भोजनालय विश्व में अपने तरह का अनोखा और पहला भोजनालय माना जा रहा है। वानरों के लिए बनाए गए इस भोजनालय में करीब 2000 वानरों को प्रतिदिन खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई जाएगी।
इस अनोखे प्रयास का बीड़ा इंदौर के दो समाजसेवियों अनिल खंडेलवाल और हरीश गहलोत ने उठाया है। एक जानकारी के मुताबिक ओंकारेश्वर क्षेत्र में लगभग छह से सात हजार वानर विचरण करते हैं। ये वानर श्रद्धालुओं से छीन-झपटकर अपना भोजन जुटाते हैं। अब उन्हें भोजन के लिए मशक्कत नहीं करना पड़ेगी और सिर्फ चने-चिरोंजी पर दिन नहीं गुजारना पड़ेगा। इन्हें अब भरपेट भोजन मिलेगा।
हनुमानजी की कृपा से प्रेरणा मिली : वानर भोजनालय के संचालक खंडेलवाल और गेहलोत ने बताया कि हम प्रतिमाह ओंकारेश्वर में ओंकार पर्वत स्थित लेटे हुए हनुमानजी को चोला चढ़ाने जाते थे वहीं से वानरों को भूखा भटकते देखकर हमें आदिवासी महिला केसरबाई के आशीर्वाद और हनुमानजी की कृपा से यह प्रेरणा मिली।
स्वच्छंदता प्रभावित : उन्होंने कहा कि परिक्रमा मार्ग पर तेजी से बढ़ रहे अतिक्रमण और पेड़ों की कटाई से बंदरों की स्वच्छंदता और चंचलता प्रभावित हुई है साथ ही उनके रहने और खाने की व्यवस्था भी बिगड़ गई है। इससे उनके अस्तित्व पर संकट गहराने लगा है यदि ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन तीर्थ नगरी से वानरों की विलुप्ति का खतरा बढ़ जाएगा।
आस्था जुड़ी है : बंदरों के कारण तीर्थयात्रियों की आस्था भी इनसे जुड़ी हुई है। गर्मी में यहाँ के अधिकांश वानर बस्ती की ओर कूच कर जाते थे, भोजनालय खुलने से अब ये अन्यत्र नहीं जाएँगे। औंकार पर्वत परिक्रमा मार्ग के मध्य लेटे हनुमान मंदिर परिसर के पास बनाए गए इस भोजनालय में पीने के शुद्ध पानी के साथ ही विश्राम के लिए शेड भी बनाया गया है।
रोज 100 किलो आटे की व्यवस्था : गहलोत और खंडेलवाल ने बताया कि बंदरों के भोजन के लिए जन सहयोग से प्रतिदिन करीब 100 किलो आटा, चने, फल आदि खाद्य पदार्थों की भी व्यवस्था की जा रही है। फिलहाल 20 बाय 20 का एक हॉल बनाया गया है, लेकिन इस भोजनालय पूर्ण करने में लगभग 5 से 6 लाख का खर्च आएगा, जिसे जनसहयोग से इकट्ठा करने के प्रयास किए जा रहे हैं। फिलहाल निर्माण कार्य प्रगति पर है और अभी तक इस पर 1 लाख 50हजार रुपए खर्च हो चुके हैं।
उल्लेखनीय है कि नर्मदा नदी के पुल के इस पार लाल मुँह के और पुल के उस पार काले मुँह के सैकड़ों बंदर रहते हैं। हालाँकि इस पहल के पीछे आस्था है, लेकिन वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए इससे प्रेरणा तो ली ही जा सकती है।

सोमवार, 10 जनवरी 2011

छत्तीसगढ़ की खबरें

सहकारिता आंदोलन में कूदा संघ
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का अनुषांगिक संगठन सहकार भारती सहकारिता का अलख जगाने के लिए गांव-गांव जाएगा। ग्रामीणों को सहकारिता का अर्थ और सामूहिक उत्थान के बारे में बताएगा ताकि शहरों के साथ गांवों का भी विकास हो सके।

भनपुरी स्थित पाटीदार भवन में सहकार भारती के प्रांतीय अधिवेशन के दूसरे दिन संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष सतीश मराठे ने कहा कि आजादी के बाद देश में साम्यवाद का उदय हुआ। इसके बाद समाजवाद का प्रयोग हुआ। इसी समय देश का सोना विदेशों में गिरवी रखना पड़ा। इसके बाद ग्लोबलाइजेशन के दौर में पूंजीवाद को बढ़ावा मिला। इससे शहरों का तो विकास हुआ किंतु गांव पिछड़ गए। अमीर और अमीर तथा गरीब और गरीब होने लगा। इससे निबटने का सबसे अच्छा तरीका सहकारवाद है। इससे ग्रामीणों और गरीबों सभी का विकास होगा।
वेयरहाउस के चेयरमैन अशोक बजाज ने कहा कि राज्य सरकार ने सहकारिता के महत्व को समझा है। इसी वजह से धान खरीदी से मध्यान्ह भोजन तक का काम सहकारिता के जरिए किया जा रहा है। समापन सत्र में राष्ट्रीय संगठन मंत्री विजय देवांगन ने कहा कि सहकारिता की वजह से विश्वस्तरीय आर्थिक मंदी के बाद भी भारत सुदृढ़ रहा। विकास के लिए सहकारिता को चुनना होगा।
अधिवेशन के दूसरे दिन आज सहकार भारती की प्रदेश इकाई की नई कार्यकारणी का गठन किया गया। सुधाकर राव कोंडापुरकर को प्रदेश अध्यक्ष, डॉ. लक्ष्मीकांत द्विवेदी को महामंत्री, नागेंद्र तिवारी और सुरेश देवांगन को उपाध्यक्ष, कनिराम नंदेश्वर को संगठन मंत्री, अरुणा दीक्षित और इंद्रपाल सिंह को सहमंत्री और दान सिंह देवांगन को प्रचार-प्रसार प्रमुख, विजय सोनी को कोषाध्यक्ष और नंदन जैन को सहकोषध्यक्ष बनाया गया। 16 लोगों को कार्यकारिणी सदस्य बनाया गया।

फिर आंदोलन की तैयारी में शिक्षक
रायपुर। दो वेतन वृद्धि की मांग की राज्य शासन से मंजूरी मिलने के बाद शिक्षक अब तिवारी कमेटी लागू करने की मांग को लेकर आंदोलन करेंगे। छत्तीसगढ़ शिक्षक कांग्रेस की राज्य स्तरीय बैठक में रविवार को इस बारे में निर्णय लिया गया। संघ के अनिल शुक्ला ने बताया कि लंबे समय से तिवारी कमेटी की रिपोर्ट मंजूरी का इंतजार कर ही है। शासन चुप्पी साधे बैठा है। शिक्षक आंदोलन के जरिये शासन का ध्यान उस रिपोर्ट की ओर आकृष्ट कराएंगे।
इसके लिए कर्मचारियों व शिक्षकों को 1 जुलाई 2010 से 10 प्रतिशत महंगाई भत्ता, छठवें वेतनमान के आधार पर समस्त भर्ती को पुनरीक्षित करने व शिक्षा कर्मियों के पद नाम परिवर्तित करने की मांग भी आंदोलन में शामिल रहेगी। राज्य स्तर पर राजधानी में प्रदर्शन किया जाएगा।

नक्सली उत्पात
बिलासपुर राउरकेला स्टेशन से लगभग 10 किलोमीटर दूर बंडामुंडा कुकड़ागेट के ए केबिन स्थित आटोमेटिक सिग्नल सिस्टम को नक्सलियों ने विस्फोट से उड़ा दिया। इससे हावड़ा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर ट्रेन आवागमन 9 घंटे तक बाधित रहा।

शनिवार की रात लगभग 80 से 90 की संख्या में सशस्त्र पुरुष व महिला नक्सली ए केबिन में पहुंचे व केबिन में कार्यरत कर्मचारियों से वाकी-टाकी व मोबाइल लूट लिया। इसके बाद उन्होंने केबिन में लैंडमाइन लगाकर उसे उड़ा दिया। इसके बाद नक्सलियों ने जरेईकेला के पास रेल पटरी पर विस्फोट कर हावड़ा-मुंबई रेल मार्ग को प्रभावित कर दिया। घटना की जानकारी मिलने के बाद आरपीएफ, जीआरपी व सीआरपीएफ की टीम घटनास्थल पर पहुंची और खोजी कुत्तों व बम निरोधक दस्ता के साथ घटना स्थल की जांच की।
विस्फोट के बाद नक्सलियों ने बड़ी मात्रा में नक्सली पोस्टर चिपकाया,जिसमें पुलिस की बर्बरता का विरोध किया गया है। नक्सलियों ने पोस्टर में चेतावनी दी है कि जब तक पुलिस की बर्बरता जारी रहेगी नक्सली भी इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देते रहेंगे। नक्सलियों ने जरेईकेला में बंद पड़े आउटपोस्ट व बिसरा तहसील कार्यालय को भी बम से उड़ाने का प्रयास किया।
पुलिस को वहां से दो विस्फोट हुए केन बम के उपकरण मिले। शनिवार रात भर नक्सलियों ने बंडामुंडा से जरेईकेला तक जमकर उत्पात मचाया। घटना के बाद बंडामुंडा व राउरेकला से रेल अधिकारी घटनास्थल पहुंचे और केबिन में मरम्मत का कार्य शुरू करवाया। केबिन विस्फोट से टाटा-झारसुगुड़ा लिंक एक्सप्रेस, चक्रधरपुर सारंडा पेसेंजर व नागपुर टाटा पैसेंजर को रद्द करना पड़ा।
बिलासपुर आने वाली ट्रेनों पर असर
घटना के चलते बिलासपुर आने वाली ट्रेनें अनिश्चितकालीन विलंब से चलने लगी हैं। दरअसल ज्ञानेश्वरी हादसे के बाद से हावड़ा-मुंबई रूट की ट्रेनें 4 से 8 घंटे रिशेड्यूल होकर चल रही हैं। सुरक्षागत कारणों से राउरकेला-खड़गपुर सेक्शन में यात्री ट्रेनों की आवाजाही पर रात 10 बजे से सुबह 5 बजे तक प्रतिबंध लगा दिया गया है। कल की घटना के कारण शालीमार-एलटीटी, हावड़ा-अहमदाबाद, पुरी-हरिद्वार उत्कल, हावड़ा-पोरबंदर और हावड़ा-पुणो आजादहिंद एक्सप्रेस सुबह के बजाय रात में बिलासपुर पहुंची।
कौन सी ट्रेन कितनी लेट
18030, शालीमार-एलटीटी रिशेड्यूल होकर दोपहर में आती है, जो कि देर शाम 7 बजे बिलासपुर आई।
12834, हावड़ा-अहमदाबाद दोपहर के बजाय रात 8 बजे बिलासपुर पहुंची।
18477- पुरी-हरिद्वार उत्कल एक्सप्रेस दोपहर के बजाय देर शाम 7 बजे आई।
12906- हावड़ा- पोरबंदर एक्सप्रेस रिशेड्यूल होकर 2 बजे पहुंचती थी, यह ट्रेन रात 8:15 बजे बिलासपुर पहुंची।
12130- हावड़ा-पुणो आजादहिंद एक्सप्रेस रिशेड्यूल होकर शाम 4 बजे पहुंच रही थी, जो कि रात 8 बजे के बाद आई।

टाटा-इतवारी पैसेंजर रद्द
ब्लास्ट के चलते टाटानगर से इतवारी के लिए छूटने वाली टाटा पैसेंजर को टाटानगर में ही रद्द कर दिया गया। सोमवार को इतवारी से टाटानगर के लिए छूटने वाली टाटा पैसेंजर को भी रद्द कर दिया गया है।

अंधे कत्ल की अंधी जांच
बिलासपुर। सुशील पाठक की हत्या को पखवाड़े से अधिक समय गुजर गया, लेकिन पुलिस अब भी वहीं खड़ी है, जहां वह 19 दिसंबर की रात खड़ी थी। पहले दिन से अब तक आक्रोश से जूझ रही पुलिस की जांच कई मोड़ से गुजरी, लेकिन न कोई सबूत मिला, न सुराग और न ही वह हत्याकांड के दूसरे आरोपी तक पहुंच सकी। इस मामले में गिरफ्तार बादल खान से सेंट्रल जेल में पूछताछ की गई, लेकिन कोई नई बात पता नहीं चली।

सुशील पाठक हत्याकांड में पुलिस की जांच अभी भी बगैर दिशा के चल रही है। एक, दो नहीं, बल्कि दो दर्जन से अधिक लोगों की मोबाइल कॉल डिटेल निकालने के बाद भी उसे कोई ठोस सुराग हासिल नहीं हो सका है। रायपुर से आई स्पेशल टीम ने दयालबंद के दो युवकों से पूछताछ की थी, लेकिन उनसे भी कोई जानकारी नहीं मिली।
बादल खान की गिरफ्तारी और उसके इकबालिया बयान के बाद पुलिस की स्पेशल व लोकल टीम मामले की जांच में उलझी हुई है। इससे साबित होता है कि या तो बादल हत्याकांड का आरोपी नहीं है और अगर है तो इसमें उसका साथ देने वाले लोग पुलिस की गिरफ्त से बाहर हैं। पुलिस को हत्याकांड में इस्तेमाल हथियार और पाठक के मोबाइल की तलाश है, क्योंकि इस हत्याकांड में पुलिस के अब तक के खुलासे और उसकी बताई कहानी पर किसी को यकीन नहीं हो रहा है।
रायपुर और बिलासपुर की टीम हत्या के पखवाड़ेभर बाद कह रही है कि अभी भी जांच जारी है। तीन दिन पहले डीजीपी ने दावा किया था कि पुलिस कातिल के करीब है, लेकिन उन्हें क्या सुराग मिला, अफसर यह स्पष्ट बता पाने की स्थिति में नहीं हैं। स्पेशल टीम रविवार को कोरबा गई, जहां एक युवती से पूछताछ की जाएगी।
घटना अब तक
19 दिसंबर 2010: सरकंडा मेन रोड में चटर्जी गली के पास सुशील पाठक की लाश मिली। लाश मिलने के सिर्फ दो मिनट बाद खुलासा हो गया कि पाठक की गोली मारकर हत्या की गई है।
20 दिसंबर 2010 :पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि सुशील पाठक की हत्या उसके पड़ोसी बादल खान ने की है। पुलिस के शक की वजह पाठक का बादल खान से जमीन को लेकर चल रहा पुराना झगड़ा था। वारदात की खबर मिलने पर बादल खान फरार हो गया। पुलिस की भारी-भरकम जांच टीम बनाकर पाठक के मोबाइल की कॉल डिटेल खंगाली गई।
21 दिसंबर 2010:पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने और खाली कारतूस, खोखे की बरामदगी के बाद पुलिस बताती है कि पाठक की हत्या महंगी ऑटोमेटिक पिस्टल से की गई है। साथ ही पुलिस ने इसे एक हाई-प्रोफाइल मर्डर और सुपारी किलिंग का मामला बताया।
22 दिसंबर 2010:हत्याकांड की जांच में देरी और लापरवाही से गुस्साए पत्रकार और शहर के संगठनों ने आंदोलन शुरू किया। इसी शाम एसपी जयंत थोरात का तबादला आदेश जारी हुआ। शाम को बादल खान को पथरिया के पास एक गांव में पकड़ा गया।
23 दिसंबर 2010:वारदात के बाद से फरार बादल खान को पुलिस ने हिरासत में लिया। पुलिस के मुताबिक पूछताछ में उसने पाठक की हत्या की बात कबूल ली, लेकिन मामले को लेकर पुलिस के बयान संदिग्ध और अलग-अलग थे।
24 दिसंबर 2010:बादल खान को आरोपी घोषित करने के बाद पुलिस उसे घटना पंचनामा के बहाने मीडिया के सामने लेकर आई। बादल ने पुलिस और सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में बताया कि उसने कैसे सुशील पाठक की हत्या की।
25 दिसंबर 2010:बादल को पूछताछ के नाम पर तीन दिनों की पुलिस रिमांड पर लिया गया। उसकी निशानदेही पर पुलिस ने सरकंडा इलाके में अरपा नदी के किनारों को छान मारा। लेकिन हत्या में इस्तेमाल ऑटोमेटिक पिस्टल और पाठक का मोबाइल नहीं मिला।
27 दिसंबर 2010:पुलिस रिमांड खत्म होने के बाद कोर्ट ने बादल खान की रिमांड तीसरी बार बढ़ाने की मांग ठुकरा दी। उसे कोर्ट के आदेश पर जेल भेज दिया गया।
28 दिसंबर 2010:राजधानी के क्राइम ब्रांच एएसपी अजातशत्रु बहादुर सिंह की अगुवाई में रायपुर की पांच सदस्यीय जांच टीम बिलासपुर पहुंची। पाठक का मोबाइल कॉल डिटेल खंगालने के साथ ही करीब दो दर्जन से अधिक लोगों से पूछताछ कर बयान दर्ज किए गए। इसके बाद से अब तक बयानों का सिलसिला जारी है। पाठक से बातचीत करने वाले दर्जनों लोगों की मोबाइल कॉल डिटेल निकाली जा चुकी है।

अनसुलझे सवाल
> पुलिस के मुताबिक बादल खान अकेले वारदात नहीं कर सकता, तो फिर और कौन है बादल के पीछे? आखिर सुशील पाठक के कत्ल की वजह क्या है?
> बादल का कोई क्रिमिनल रिकॉर्ड पुलिस के पास नहीं है तो फिर उसके पास महंगा ऑटोमेटिक पिस्टल कहां से आया?
> पुलिस की कहानी सच है तो फिर क्या सिर्फ जमीन के झगड़े में बादल इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दे सकता है?
> एक के बाद एक चार गोलियां सामने से सीने और पेट में मारी गई। वारदात में अगर एक व्यक्ति का हाथ है तो अपने ऊपर हमला होते देख सुशील पाठक ने अपना बचाव नहीं किया होगा? वह भी तब, जब बादल ने वारदात से घंटेभर पहले शराब पीने की बात अपने बयान में कही थी।
> बादल अंबिकापुर के जिस युवक से पिस्टल खरीदने की बात कह रहा है, पुलिस अब तक उसके पास क्यों नहीं पहुंची?
> बादल के परिजन कह रहे हैं वे सुशील पाठक के अहसान तले दबे हैं, फिर बादल ने हत्या क्यों की?
> पहले पुलिस ने कहा ये प्रोफेशनल किलर का काम है और सुपारी किलिंग का मामला है, लेकिन बाद में वो पलट गई?
> सुशील की लाश उठाने के बाद पुलिस ने घटनास्थल को पानी से क्यों धुलवा दिया?
> कत्ल के बाद सुशील पाठक की कार और जैकेट की तलाशी ली गई। कातिल उसका मोबाइल क्यों ले गया?
> पाठक के जैकेट से फोरेंसिक जांच के लिए फिंगर प्रिंट क्यों नहीं लिया गया?
> वारदात से पहले और बाद एक सफेद कार को तेजी से जाते हुए देखा गया था। पुलिस को उसकी तलाश है। आखिर कार में कौन था?

देश-विदेश

फि‍लीपींस - एक जादुई दुनि‍या
दुनिया के दूसरे सबसे बड़े 7000 द्वीपों के समूह, फिलीपीन्स में कई प्राकृतिक आश्चर्य हैं। यहाँ खूबसूरत समुद्र तट हैं और यहाँ के समुद्र दुनिया के कुछ बेहतरीन डाइविंग साइट्स में से हैं। यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता बहुत ही लुभावनी है। फिलीपीन्स में कई सक्रिय ज्वालामुखी भी हैं। यहाँ सालभर कई फेस्टिवल्स मनाए जाते हैं और उनमें विदेशी मेहमानों को भी खुशी-खुशी शामिल किया जाता है। यहाँ के मिलनसार लोग और संस्कृति फिलीपीन्स को अद्वितीय बनाते हैं। यह कई दुर्लभ पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं का घर है।
मनीला बे ह लुज़ोन स्थित एक प्राकृतिक बंदरगाह है, जो पड़ोस के बटान और केवाइट तक के क्षेत्र में फैला हुआ है। यह दक्षिण पूर्व एशिया का सबसे अच्छा बंदरगाह है जिसकी गिनती दुनिया के बेहतरीन प्राकृतिक बंदरगाहों में की जाती है। मनीला बे की खूबसूरती का अंदाज़ा इस बात से बखूबी लगाया जा सकता है कि यहाँ आकर कई लेखक और कलाकार अपनी उत्तम कृतियों के लिए प्रेरित हुए। सूर्यास्त के समय यहाँ का दृश्य बहुत मनमोहक होता है।
पलावनपलावन का वर्णन करने के लिए सबसे अच्छा शब्द होगा 'जादुई दुनिया'। यहाँ की असाधारण सुंदरता बेजोड़ है। पलावन का नीला हरा पानी यहाँ की सुंदरता में चार चाँद लगाता है। यहाँ कई रिसोर्ट हैं और यह दुर्लभ वनस्पति और जीव-जंतुओं का घर भी है।
मॉल आफ एशिया मॉल आफ एशिया दुनिया के सबसे बड़े मॉल्स में से एक है। 386224 वर्गमीटर के क्षेत्र में फैले इस मॉल में 600 से भी अधिक दुकानें और करीब 150 ईटिंग जॉइंट्स हैं। इसके अलावा मनोरंजन के लिए यहाँ ओलिंपिक साइज़ स्केटिंग रिंग और सिनेमा हॉल आदि भी हैं।
यह मॉल अपने विशाल क्षेत्र के कारण काफी लोकप्रिय है। अपनी तरह के इस मॉल में एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए २० सीटर ट्रैम की व्यवस्था भी है।
बगुइओशहरी आपाधापी और गर्म मौसम से निजात पाने के लिए लोग बगुइओ आना काफी पसंद करते हैं। बगुइओ को 'समर केपिटल ऑफ फिलीपीन्स' भी कहते हैं। यह जगह 'कैंप जॉन हे', 'राइट पार्क', बर्नहम पार्क जैसे खूबसूरत उद्यानों के लिए प्रसिद्घ है। बगुइओ में काफी हरियाली है और यहाँ 'पाइन ट्रीज़' भी बहुत अधिक हैं। फरवरी महीने में यहाँ 'पनागबेंगा' नामक फ्लावर फेस्टिवल होता है।
बनऊ राइस टेरेस
यह 2000 साल पुराना लैंडमार्क युनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है। यहाँ पहाड़ों पर चावल की सीढ़ीदार खेती की जाती है। यहाँ पहाड़ों पर ये सीढ़ियाँ वर्षों पहले 'इफुगाओ' निवासियों ने बनाई थी। बनऊ राइस टैरेसेस को दुनिया का आठवाँ अजूबा भी माना जाता है।
बहोल
यह फिलीपीन्स के कुछ सबसे मनोहर द्वीपों में से एक है। यहाँ विविधतापूर्ण वन्यजीवन, सघन हरियाली और जंगलों के साथ ही मोहक समुद्रतट भी हैं। बहोल का एक विश्वप्रसिद्घ आकर्षण है 'चॉकलेट हिल्स'। यहाँ १२०० से भी अधिक कोन के आकार की पहाड़ियाँ हैं, जो असाधारण रूप से समान साइज़ की हैं। इन पहाड़ियों की हरी घास गर्मियों में भूरे रंग की हो जाती है इसीलिए इनका नाम 'चॉकलेट हिल्स' पड़ गया।
विगनयदि आप यह देखना चाहें कि स्पेनिश शासन के समय फिलीपीन्स कैसा लगता था, तो यहाँ ज़रूर आएँ। विगन एक वर्ल्ड हेरिटेज साइट है। यहाँ का स्पेनिश आर्किटेक्चर आज भी पहले की तरह बरकरार है। इस पूरे शहर में सुंदर अद्वितीय आर्किटेक्चरल डिज़ाइन्स देखने मिलते हैं। यहाँ की सड़कों-गलियों में भी 'कोबलस्टोन' लगे हैं। यहाँ उपलब्ध ख़ास सवारी 'कालेज़ास' विशेष अनुभव को पूरा करती है।
सेबूसेबू या 'क्वीन सिटी ऑफ द साउथ' फिलीपीन्स की बेहतरीन जगहों में से एक है। यहाँ पर नगरीय, महानगरीय और ग्रामीण जीवन का शानदार संयोजन है। सेबू में कई विस्मयकारी समुद्रतट हैं, जहाँ आप साफ नीले पानी और सफेद रेत का मज़ा ले सकते हैं। साथ ही सेबू सिटी में आपको गगनचुंबी इमारतें, मॉल्स और होटेल्स मिलेंगे।
बोराकेबोराके आए बिना फिलीपीन्स की यात्रा अधूरी है। यहाँ दुनिया के कुछ सबसे खूबसूरत समुद्रतट हैं जो पर्यटकों का मन मोह लेते हैं। बीच पर लुत्फ उठाने के अलावा आप यहाँ कई तरह के लज़ीज़ व्यंजनों का स्वाद भी ले सकते हैं। यहाँ कई रेस्टोरेंट हैं जहाँ पारंपरिक फिलिपिनो व्यंजनों के साथ योरपीय व एशियाई व्यंजन भी परोसे जाते हैं।

नवग्रह

2011 में देखें ग्रहण के रोमांचक दृश्य
नए साल 2011 में सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की ‘ग्रह त्रिमूर्ति’ दुनिया को ग्रहण के छह रोमांचक दृश्य दिखाएगी। खगोलीय घटनाओं का यह सिलसिला नववर्ष के पहले हफ्ते से ही शुरू हो जाएगा और यह साल चार आंशिक सूर्यग्रहणों और दो पूर्ण चंद्रग्रहणों का गवाह बनेगा।
उज्जैन की जीवाजी वेधशाला के अधीक्षक डॉ. राजेंद्र प्रकाश गुप्त ने बताया कि नववर्ष का पहला ग्रहण चार जनवरी 2011 को आंशिक सूर्यग्रहण के रूप में सामने आएगा। तकरीबन दो सदी पुरानी वेधशाला के अधीक्षक ने बताया कि इसके बाद वर्ष 2011 में एक जून, एक जुलाई और 25 नवंबर को आंशिक सूर्यग्रहण की खगोलीय घटना की पुनरावृत्ति होगी।
उन्होंने एक साल में चार आंशिक सूर्यग्रहण होने के संयोग को खगोलीय अध्ययन के लिहाज से महत्वपूर्ण बताया और कहा कि इस पर दुनिया भर के खगोल विज्ञानियों की निगाह रहेगी।
आंशिक सूर्यग्रहण तब होता है, जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा इस तरह आ जाता है कि पृथ्वी से देखने पर सूर्य का कुछ हिस्सा चंद्रमा की ओट में छिपा प्रतीत होता है।
वर्ष 2011 में 15 जून को होने वाले साल के पहले पूर्ण चंद्रग्रहण के दौरान सूर्य और चंद्रमा के बीच पृथ्वी आ जाएगी। परिक्रमारत चंद्रमा इस स्थिति में पृथ्वी की ओट में छिप जाएगा और उस पर सूर्य की रोशनी नहीं पड़ेगी।
गुप्त ने बताया कि सौर परिवार के तीन सदस्यों की विशिष्ट स्थिति के कारण आकार लेने वाली यह खगोलीय घटना 10 दिसंबर को खुद को दोहराएगी। इस दिन वर्ष 2011 का दूसरा और आखिरी पूर्ण चंद्रग्रहण होगा।
समाप्ति की ओर बढ़ रहे वर्ष 2010 के खाते में चार ग्रहण लिखे हैं। इनमें 15 जनवरी को हुआ वलयाकार सूर्यग्रहण, 26 जून को हुआ आंशिक चंद्रग्रहण और 11 जुलाई को हुआ पूर्ण सूर्यग्रहण शामिल है। मौजूदा साल का आखिरी ग्रहण 21 दिसंबर को होगा। इस दिन पूर्ण चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा पृथ्वी की छाया से पूरी तरह ढँक जाएगा।
सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा की लुकाछिपी का यह रोमांचक नजारा हालाँकि भारत में नहीं देखा जा सकेगा, क्योंकि इस खगोलीय घटना के वक्त देश में दिन होगा।

शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

'तितलियाँ आसपास'

- विशाल मिश्रा

ग़ज़ल एक ऐसा शफ़्फ़ाफ आइना है जिसके हर शेर में एक नई तस्वीर मुस्कुराती है,
सिर्फ़ हुस्न और इश्क़ की बात नहीं वह ज़िन्दगी के हर पहलू की बात भी समझाती है।

राहत इंदौरी की इन पंक्तियों की खुशबू महसूस की जा सकती है अज़ीज़ अंसारी की छोटी-छोटी नज़्मों की पुस्तक 'ति‍तलियाँ आसपास' में।

पुस्तक की हर नज्‍़म आदमी की ‍ज़िंदगी के किसी न किसी पहलू से जुड़ी मालूम होती है। बच्चे के साथ खेलने से लेकर अपना आशियाना किसी कारण खो देने का दर्द, जीवन की हरेक साँस का कर्ज़ चुकाते आदमी की पीड़ा बयाँ करती कुछ नज़्में।

मैंने अपना मकान बेच दिया
इक ज़रा से सुकून की ख़ातिर
अपना सारा जहान बेच दिया


ग़म के सेहरा में छोड़ देती है
सुख की एक बूँद भी नहीं मिलती
‍ज़िंदगी यूँ निचोड़ देती है

आज तक आपने तितलियों को फूलों और कलियों के ऊपर मँडराते देखा होगा। फूलों का रस चूसने आई हैं या अठखेलियाँ कर रही हैं यहाँ तक तो जरूर इस पर विचार किया होगा लेकिन अज़ीज़ अंसारी का इसी चीज़ को देखने का नजरिया देखिए -

‍कलियाँ जब भी उदास होती हैं
उनकी अफ़सुरदगी मिटाने को
तितलियाँ सदा आसपास होती हैं

हर जगह सर पटकती रहती है
मेरे मन की उदास बगिया में
एक तितली भटकती रहती है

आज समाज में व्याप्त बुराइयों की हद देखिए। जबकि आदमी आदमी को ज़िंदा जलाने से भी गुरेज नहीं करता। माँ की कोख पर भी तरस नहीं खाता। जहाँ उसके अधमपन की कोई हद ही नहीं होती। जहाँ उसे आदमी कहने के पहले भी कई बार सोचना पड़े।

जहन्नुम बहुत बुरी जगह है लेकिन ये दुनिया उससे भी बुरी है जहन्नुम आदमी को जला सकता है लेकिन उसकी आँखों के सामने उसका घर नहीं जलाता! लेकिन ये दुनिया वाले तो आदमी की आँखों के सामने उसका घर जला डालते हैं। इसके लिए चंद पंक्तियाँ

बढ़ गया ये जहाँ जहन्नुम से
सामने मेरे घर जले मेरा
ये तवक्को़ कहाँ जहन्नुम से

दिखावे को ‍दुनिया सामने आपके भली बनती है। आपके बारे में अच्‍छी-अच्छी बातें करती है लेकिन उसके पीछे छुपा दर्द बयाँ करते दो अशआर।

बाल बिखरे हैं चश्म पुरनम है
खुश है दुनिया तबादले से मेरे
बस वही एक पैक़रेग़म है

मैं जो हूँ तो भलाइयाँ मेरी
न रहूँगा तो देख लेना तुम
सब के मुँह पर बुराइयाँ मेरी

एक ही नज़्म में दो बातों की खूबियाँ देखिए। यह नज़्म दो जहाँ पर कटाक्ष करती है, वहीं किसी की तारीफ भी करती है। दोस्तों और रिश्तेदार आमतौर पर परिस्थितिवश आदमी से जुड़ते और अलग होते रहते हैं और दूसरा महत्व बताया किताबों का। कहते हैं पुस्तकों से जिसकी मित्रता होती है उसे और किसी दोस्त की जरूरत नहीं होती।

दोस्तों का न रिश्तेदारों का
इस दिखावे के दौर में मुझको
आसरा है फ़क़त किताबों का


शहरों की रौनक देखकर जो लोग गाँव-कस्बों से इन नगरों, महानगरों का रुख करते हैं। या किसी मजबूरी के चलते पलायन कर जाते हैं। शायद वो नहीं जानते कि वे अमृत छोड़कर ज़हर के घूँट पी रहे हैं -

चोट खाते हैं ज़हर पीते हैं
छोड़कर गाँव की फिज़ा जो लोग
शहर की बस्तियों में जीते हैं


'तितलियाँ आसपास' की इन नज़्मों को मैंने पिछले 1 वर्ष में लगभग 50 बार तो पढ़ ‍ही लिया होगा। समय गुज़रता जा रहा है और रह-रहकर मुझे इस पुस्तक के किसी न किसी नज़्‍म के कुछ हर्फ़ याद आ ही जाते हैं और फिर पुस्तक उठाकर उस नज़्म को पूरा पढ़ता हूँ तो लगता है मानो यह (तितलियाँ आसपास) पुस्तक मा‍त्र नहीं एक व्यक्ति के या यूँ कहें प्रत्येक व्यक्ति की ज़िंदगी के खट्‍टे-मीठे अनुभव की दासताँ है।

देश का भविष्य यहाँ के बच्चे हैं। लेकिन उनका बचपन भी आज किन परिस्थितियों में गुजर रहा है। उस पर चिंता व्यक्त की है शायर ने। आज जब वर्तमान में बच्चा इन विषम परिस्थितियों से निकलेगा तो युवावस्था में उसकी क्या मानसिकता होगी। किसी को इसकी फिक्र नहीं है -

बच्चा खो जाए ग़म तो होता है
आज बच्चे का खो गया बचपन
इस बड़े ग़म में आज कौन रोता है

जो मिले उसके संग होती है
ज़िंदगानी अज़ीज़ बच्चों की
जैसे पत्नी का रंग होती है

बच्चा स्कूल रोज़ जाता है
बस्ता दिल से लगा के रखता था
आजकल पीठ पर उठाता है

जीवन के लगभग 68 बसंत देख चुके अज़ीज़ अंसारी जी को अल्ला-त-आला अच्छे स्वास्थ्य के साथ लंबी उम्र बख्शे। यही इल्तजा है और उनकी दिल को छू लेने वाली शायरी इसी रूप में हमारे सामने आती रहे।

रविवार, 2 जनवरी 2011

छत्तीसगढ़ की ख़ास खबरें

फर्जी हस्ताक्षर कर दी 79 को सरकारी नौकरी
छत्तीसगढ़ के पंचायत विभाग में नौकरी देने के नाम पर बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। इसमें विभाग के पुराने संचालक के हस्ताक्षर कर 79 लोगों की नियुक्ति और पदस्थापना के आदेश जारी कर दिए गए। महत्वपूर्ण बात यह है कि उक्त संचालक का तबादला 20 सितंबर को हो गया था, जबकि आदेश 8 दिसंबर की तारीख पर जारी किए गए हैं।
इस मामले में शनिवार को रायपुर के गोलबाजार थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी गई है। पंचायत विभाग के पूर्व संचालक जीएस धनंजय के हस्ताक्षर से राज्य के विभिन्न जिलों में सहायक आंतरिक लेखा परीक्षण एवं करारोपण अधिकारी के पद 79 लोगों की नियुक्ति की गई। इससे संबंधित फाइल जब पंचायत मंत्री रामविचार नेताम के पास गई तो उन्हें संदेह हुआ क्योंकि धनंजय का तबादला तो अक्टूबर माह में ही हो गया था। श्री नेताम ने विभाग के अफसरों को पूरे मामले की पड़ताल करने के आदेश दिए। उसके बाद आदेश की जांच की गई तो फर्जीवाड़ा सामने आ गया।
सामान्य प्रशासन विभाग के आदेश के अनुसार जीएस धनंजय के स्थान पर 20 सितंबर को बीएस अनंत को पंचायत का संचालक बनाया गया था। उसके बाद 26 नवंबर से आलोक अवस्थी विभाग के संचालक हैं। इसकी पूरी जानकारी मंत्री श्री नेताम को दी गई तो उन्होंने इस मामले में दोषी लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए। उसके बाद गोलबाजार थाने में लिखित में मामले की शिकायत की गई।

नौकरी के नाम पर उगाही का शक
अनुमान है कि इस खेल में लिप्त लोगों ने बेरोजगारों को नौकरी देने के नाम पर उगाही की होगी। जिन लोगों की नियुक्ति और पदस्थापना की गई है, उनमें से कोई भी विभाग का पुराना कर्मचारी नहीं है। इस कारण यह माना जा रहा है कि यह बेरोजगारों से ठगी का बड़ा मामला है।
जीएस धनंजय के नाम से पूर्व में जारी आदेश के उस हिस्से की फोटोकापी की गई जहां उनके हस्ताक्षर हैं। इसमें फोटोकापी में डेट बदलकर फिर नई फोटोकापी की गई जिसमें 8 दिसंबर की तारीख डाली गई।
फर्जी नियुक्ति पत्र के आधार पर किसी को नौकरी पर नहीं रखने के आदेश सभी जिलों में जारी कर दिए गए हैं। इसके अलावा सभी जिलांे में कलेक्टर और एसपी को भी ऐसे लोगों के सामने आने पर सीधे कानूनी कार्रवाई के लिए पत्र लिखा गया है।
आलोक अवस्थी, संचालक, पंचायत विभाग

बेघरों को मिला रैन बसेरा
बिलासपुर शहर में रहने वाले आवासहीन भिखारियों को मूलभूत सुविधाएं मुहैय्या कराने की संवेदनशील पहल करते हुए जिला प्रशासन द्वारा उन्हें रैन बसेरा उपलब्ध कराया गया है।
राज्य कीर स्थापना की दसवीं वर्षगांठ पर जिला प्रशासन द्वारा संवेदनशील पहल करते हुए रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, फुटपाथ पर जीवन गुजारने वाले गरीबों को ठंड, बरसात के मौसम में एक सुरक्षित ठिकाना उपलब्ध कराने के लिए अधिकारियों की एक टीम गठित कर सर्वे कराया गया।
टीम ने रात में 10 बजे से 12 बजे तक शहर में भ्रमण कर ऐसे लोगों को चिन्हित किया तथा 18 वर्ष से कम तथा 18 से 50 वर्ष और 50 वर्ष से उपर के निराश्रित लोगों की पृथक-पृथक सूची तैयार की। ऐसे व्यक्तियों में 174 पुरुष और 94 महिलाएं तथा 18 वर्ष तक के 27 बच्चे शामिल किए गए।
इन व्यक्तियों के लिए विभिन्न सामाजिक संगठनों के सहयोग से अस्थाई रूप से रैन बसेरा की व्यवस्था की गई तथा उन्हें ठंड से बचाने के लिए कंबल वितरित किया गया। रैनबसेरा में रहने वाले लोगों को प्रतिदिन भोजन की व्यवस्था भी इन्ही संगठनों के सहयोग से की जा रही है।

शतरंज खिलाड़ी ने लगाया अनाचार का आरोप
बिलासपुर शादी के मारपीट करने पर अंतरराष्ट्रीय शतरंज खिलाड़ी महिला ने खिलाड़ी पति पर बलात्कार का आरोप लगाते हुए पुलिस से शिकायत की है। कोनी पुलिस ने खिलाड़ी के खिलाफ जुर्म दर्ज कर लिया है।
कोनी कृष्ण विहार निवासी पीड़ित महिला की शिकायत के मुताबिक 6 माह पूर्व विदेश में अंतरराष्ट्रीय शतरंज स्पर्धा के दौरान झारखंड में रेलवे में पदस्थ शतरंज खिलाड़ी इमरान हुसैन से उसकी मुलाकात हुई।
इस दौरान दोनों के बीच प्रेम संबंध स्थापित हो गया। महिला का कहना है कि दोनों ने मर्जी से शादी भी कर ली। इसके बाद वह वापस आ गई और इमरान झारखंड चला गया। महिला के मुताबिक 28 दिसंबर को इमरान कोनी आया था।
इस दौरान उसके घर के सामने इमरान ने उससे मारपीट की थी। महिला दो माह से गर्भवती है। मारपीट की घटना के बाद महिला ने कोनी थाने में इमरान पर बलात्कार का आरोप लगाते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई है। पुलिस ने जुर्म दर्ज कर लिया है।

अंकों के आधार पर जाने जाते हैं गांव
डीएनके प्रोजेक्ट के तहत बंगलादेश से विस्थापित बंग परिवारों को पखांजूर क्षेत्र में बसाया गया। तत्कालिक व्यवस्था के तहत गांवों का नामकरण अंकों के आधार पर कर दिया गया। 1986 में जब प्रोजेक्ट समाप्त कर राज्य शासन को स्थानांतरित किया तो राज्य शासन द्वारा इन गांवों का नामकरण किया गया लेकिन इतने वर्षों बाद भी गांवों का नाम प्रचलन में नहीं आ पाया है। आज भी अधिकांश लोग अपने या दुसरे गांवों को डीएनके के दौरान आबंटित अंकों के आधार पर ही जानते है।
1962 में क्षेत्र में विस्थापित बंग परिवारों को पुर्नवास कराने हेतु डीएनके प्रोजेक्ट की शुरूआत केंद्र शासन द्वारा की गई। 1972 तक डीएनके द्वारा नए गांव बसाए जाते रहे। इस तरह पीवी 1 से पीवी 133 तक कुल 133 गांव बसाए गए और क्रम से इन्हें नंबर दिया जाता रहा। कुछ गांव को अपवाद स्वरूप छोड़ दिया जाए तो सारे गांव क्रम से ही बसाए गए जिसकी शुरूआत कापसी क्षेत्र के पीवी 1 परलकोट गांव से 1 से हुई और अंत बांदे क्षेत्र में हुआ। इन अंको का सर्वाधिक फायदा यह है कि इससे उस गांव की भौगोलिक स्थिति जान सकते है कि यह गांव पखांजूर, कापसी या बांदे किस क्षेत्र में है। अंकनुमा गांव का नाम लोगों की जुबान पर कुछ ऐसा चढ़ा की राज्य शासन द्वारा दिए गए नाम प्रचलन में नही आ पा रहे है। प्रशासनिक कार्यों में अब राज्य शासन द्वारा आबंटित गांव का नाम जरूर लिखा जाता है किंतु उसके उस अंक भी लिख दिए जाते है। जब से ग्राम पंचायत व्यवस्था राज्य शासन ने लागू की है तब से पंचायत मुख्यालय का नाम जरूर लोगों द्वारा लिया जाने लगा है लेकिन आश्रित ग्राम आज भी अंकों के आधार पर ही जानेे जाते है।

शुरू होने से पहले ही बंद कॉल सेंटर
रायपुर.स्कूल में शिक्षक देर से आते हैं? पढ़ाई नहीं हो रही? कक्षा में बैठने के लिए जगह नहीं है? ऐसी शिकायतें टेलीफोन के माध्यम से सुनने के लिए शिक्षा संचालनालय में खोला जा रहा काल सेंटर खुलने के पहले ही ध्वस्त हो गया।
ऐसी योजना थी कि बच्चों के माता-पिता टोल फ्री नंबर पर फोन करके स्कूल से संबंधित सभी तरह की शिकायतें सीधे मुख्यालय में कर सकें। टोल फ्री नंबर इसलिए रखा गया ताकि कोई भी कहीं से भी फोन करें, उन्हें उसका शुल्क अदा न करना पड़े।
काल सेंटर के लिए मुख्यालय के एक बड़े कक्ष को खाली कराया गया। वहां 20 से ज्यादा कंप्यूटर लगाए गए। बीएसएनल से टोल फ्री नंबर के लिए संपर्क किया गया। साल भर की फीस के रुप में 68 हजार रुपए अदा किए गए।
काल सेंटर संचालित करने के लिए आफिस में स्टाफ नहीं था। अफसरों ने वित्त विभाग से चार आपरेटरों के नए पद मांगे। वित्त में प्रस्ताव भेजने के बाद क्या हुआ यह बात किसी को नहीं मालूम लेकिन विभागीय अधिकारियों की कवायद यहीं तक सीमित रही। नतीजन काल सेंटर का फामरूला अस्तित्व में आने के पहले ही ध्वस्त हो गया।
काल सेंटर के जरिए स्कूलों में पढ़ाई का स्तर सुधारने में खासी मदद मिल सकती थी। काल सेंटर अस्तित्व में आने के बाद प्रत्येक स्कूल के बाहर टोल फ्री नंबर बड़े-बड़े बोर्ड पर चस्पा करना तय किया गया।
ताकि स्कूली बच्चों के पालक आसानी से नंबर देख सकें। उसके बाद स्कूल में शिक्षकों के गायब रहने पर या पढ़ाई न होने पर बच्चों के पालक टोल फ्री नंबर के जरिये सीधे मुख्यालय में शिकायत कर सकते थे।
अभी दूर-दराज के इलाकों की शिकायतें महीनों मुख्यालय नहीं पहुंच पाती। यह मुख्यालय से संपर्क करने का सीधा साधन हो सकता था। इसके जरिये आला अफसरों को यह मालूम हो पाता कि कौन से स्कूल में पढ़ाई नहीं हो रही है। ऐसी दशा में उस समस्या का जल्द से जल्द निदान हो सकता था।
एक नजर में
> शासन ने योजना पर खर्च किए 3 लाख 75 हजार।
> कंप्यूटर और इनवर्टर खरीदा गया।
> बीएसएनएल के छह कनेक्शन लिए गए।
> मुख्यालय में कंप्यूटर लगाकर बकायता सिस्टम आन किया गया।
> पूरी तैयारी और रुपयों की हुई बरबारी।
> 2008-09 में बनी थी योजना।
> दिसंबर 2009 में पूरा सेटअप किया था तैयार।
"काल सेंटर क्यों बंद हैं? इस बारे में मुझे जानकारी नहीं है। जांच करवाई जाएगी।
अगर कोई तकनीकी दिक्कत है तो उसे दूर करने के प्रयास होंगे।"

संगीत के बीच होगा इलाज, गूंजेंगे सभी धर्मो के मंत्र
प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में अब मरीजों का इलाज संगीत के बीच किया जाएगा। यहां म्यूजिक सिस्टम लगाया जा रहा है जिससे मंत्र, गुरुबाणी व कुरान की आयतें गूंजेंगी।
पूरे अस्पताल में 350 माइक्रो स्पीकर लगाए जाएंगे। योजना को जनवरी में होने वाली स्वशासी समिति की बैठक में मंजूरी दी जाएगी। म्यूजिक सिस्टम लगने के बाद अपनी बारी का इंतजार कर रहे मरीजों को बोर नहीं होना पड़ेगा। इस पूरे सिस्टम पर पांच लाख लागत आएगी।
मधुर संगीत कई बीमारियों के इलाज में मददगार होता है। इसी बात के मद्देनजर अस्पताल प्रबंधन ने म्यूजिक सिस्टम लगाने का निर्णय लिया है। यह ओपीडी, आईपीडी, अधीक्षक, सहायक अधीक्षक व सीएमओ कार्यालय में लगेगा। ऑपरेशन थिएटर में भी म्यूजिक सिस्टम लगाने की योजना है।
माइक्रो स्पीकर के संचालन के लिए अधीक्षक कार्यालय व ओपीडी गेट के सामने मे आई हेल्प यू काउंटर के पास कंट्रोल रूम बनेगा। दोनों स्थानों से सभी माइक्रो स्पीकर संचालित होंगे।
माइक्रो स्पीकर से किसी भी समय टू वे बात की जा सकेगी। यह सिस्टम 24 घंटे काम करेगा। आपातकाल में माइक्रो स्पीकर काफी मददगार होंगे। उदाहरण के लिए अधीक्षक कार्यालय से एक साथ कैजुअल्टी व दूसरे वार्ड में बात की जा सकेगी।
किसी डॉक्टर को बुलाना हो तो फोन करने के बजाय माइक्रो स्पीकर के माध्यम से बुलाया जा सकता है। कोई मरीज गंभीर है तो संबंधित डॉक्टर को तत्काल बुलाया जा सकेगा। कंट्रोल रूम से जो बात होगी वह सभी माइक्रो स्पीकर में गूंजेगी।
कई बार फोन लाइन इंगेज रहने के कारण संबंधित डॉक्टर या अन्य व्यक्ति से तत्काल बात नहीं हो पाती। ऐसे में माइक्रो स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। प्रबंधन आपातकाल में डॉक्टरों को लाने के लिए चार पहिया वाहन की व्यवस्था पहले ही कर चुका है।
खाली समय में माइक्रो स्पीकर से विभिन्न धर्मो के मंत्र गूंजेंगे। गायत्री मंत्र के अलावा गुरुबाणी व कुरान की आयतें गूंजेंगी। साउंड इतना रहेगा जिससे दूसरों के काम में बाधा न पहुंचे।
प्रबंधन इस बात पर विशेष ध्यान देगा कि म्यूजिक सिस्टम से बहुद्देशीय कार्य लिया जाए। जानकारों के अनुसार मंत्रोच्चर मन को शांति देने वाला होती है। ऐसे में मरीज को दर्द में भी सुकून के दो पल मिलेंगे।
"लगभग पांच लाख रुपए की लागत से अस्पताल में 350 माइक्रो स्पीकर लगाए जाएंगे। दो कंट्रोल रूम के जरिए इसका संचालन होगा। जनवरी में मेडिकल कॉलेज में स्वशासी समिति की होने वाली बैठक में इसे मंजूरी मिलने की संभावना है। म्यूजिक सिस्टम आपातकाल में काफी मददगार होगा।"
डॉ. सुनील गुप्ता, सहायक अधीक्षक आंबेडकर अस्पताल