सोमवार, 28 जून 2010

आलेख

वादा करे तो निभाएँ भी
तौबा ये असंभव वादे!

बढ़-चढ़कर बोलने वालों को लोगों द्वारा बड़बोला कहा जाता है। कुछ लोग इसलिए भी बड़बोले कहे जाते हैं कि वे अपने बारे में ढेरों खुशफहमियाँ रखते हैं और अपने गुण स्वयं गाते हुए अपने आपको दुनिया के श्रेष्ठतम लोगों में से मानते हैं।
दूसरी श्रेणी उन लोगों की होती है जो दूसरों को तात्कालिक सांत्वना या दिलासा देने के लिए और अपना बड़प्पन दिखाने के लिए ऐसी बातें कह जाते हैं, ऐसे वादे कर जाते हैं जो पूरे करना उनके लिए तो मुश्किल हो ही जाता है जिनसे वादे किए जाते हैं वे भी बेचारे उनकी बातों में आकर चोट खाते हैं।
हमारी कॉलोनी में शर्माजी अपने 'असंभव' वादों के लिए मशहूर हैं। मेरी सहेली के पति की नौकरी मंदी के चलते छूट गई। शर्माजी सांत्वना प्रकट करते-करते बोले, 'आप चिंता न करें। मेरे साले की तीन फैक्टरियाँ हैं। मैं आपको नौकरी चुटकियों में दिलवा दूँगा।'
सहेली और उसके पति को मानो डूबते में सहारा मिल गया। मगर उसके बाद शर्माजी का कन्नी काटना शुरू हो गया। आखिरकार महीनेभर उनके पीछे पड़ने के बाद सहेली को शर्माजी की खोखले वादे की असलियत का पता चल गया। हमारी महिला सभा की एक पदाधिकारी की माताजी का देहांत हो गया। उन्होंने माताजी की स्मृति में एक 'काव्य-संग्रह' प्रकाशित करने की घोषणा की और एक नवोदित कवयित्री को उस पुस्तक को लिखने का जिम्मा सौंपा।
कवयित्री बेचारी जुटी रही माताजी का जीवनवृत्त तैयार करने में... छः माह के परिश्रम के बाद जब वे तैयार संग्रह लेकर पदाधिकारी के पास पहुँचीं तो टका-सा जवाब मिला 'वो अभी यह विचार स्थगित कर दिया गया है, आगे विचार बना तो आपको सूचित किया जाएगा।'
नौकरी दिलाना, एडमिशन करवाना, पुस्तकें छपवाना, पुरस्कार के लिए अनुमोदन जैसी कई बातें होती हैं जो ये बड़बोले लोग अपना बड़प्पन जताने व स्वयं सहयोगी, लोकवत्सल सिद्ध करने के लिए कर जाते हैं। पर क्या ऐसा करते समय वे एक बार भी सोचते हैं कि दिलासे का यह भ्रम टूटने पर जब वास्तविकता सामने आएगी और उनके वादे भी झूठे साबित होंगे तो उस दुखी व्यक्ति की क्या हालत होगी?
यहाँ एक और घटना का उल्लेख करना जरूरी होगा। मेरे परिचित की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। उनकी बेटी पढ़ने में होनहार थी, परिचित के मित्र ने हामी भरी कि इस वर्ष इसकी फीस मैं भर दूँगा। दिवंगत मित्र की पत्नी भी निश्चिंत होकर आगे की व्यवस्था में लग गई। छः माह पश्चात स्कूल से 40 हजार की बकाया राशि का नोटिस आया और साथ ही न जमा करने पर स्कूल से निकालने की सूचना... परिचित की पत्नी ने जैसे-तैसे रुपए की व्यवस्था की मगर मित्र की वादाखिलाफी से जो रिश्ते टूटे वे क्या फिर बन पाएँगे?
सांत्वना देना, मन रखना, दिलासा देना सभी अच्छा है, मगर यह अवश्य ध्यान रखें कि बड़बोलेपन की होड़ में आप ऐसे वादे, ऐसी बातें तो 'कमिट' नहीं कर रहे हैं जो आपके लिए संभव न हो। आगे जाकर उनके टूटने से सामने वाला दुखी तो होगा ही, अच्छे-खासे संबंधों में भी दरार आ जाएगी। इसलिए बढ़बोलेजी... बंद करें अपने असंभव वादे।

फैशन

खनक रहे हैं हाथों में कंगन
हाथों में नग व कुंदन जड़े रंग-बिरंगे कंगन हो या फूल-पत्ती प्रिंट वाले मैचिंग प्लास्टिक कंगन, आप किसी भी अवसर पर इन्हें किसी भी परिधान के साथ पहन सकती हैं। यूँ तो इन दिनों जींस व टॉप पर युवतियाँ एक हाथ में चार-चार कंगन पहनना पसंद कर रही हैं, वहीं महिलाओं में भी साड़‍ियों के रंग से मैच खाते हुए कंगन पहनने का जबरदस्त खुमार चढ़ा हुआ है। हर कोई चाहता है कि वह इन कंगनों को पहन कर पार्टी में लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बने।
मल्टीकलर्ड हैं खास
इन दिनों मल्टीकलर्ड कंगनों की बाजार में काफी रेंज आई है। जिसके चलते महिलाएँ किसी भी परिधान के साथ हाथों में इन्हें पहन सकती हैं। चूँकि इन कंगनों की खासियत है कि ये कंगन कॉपर व गोल्ड मेटल के बेस के बने हुए हैं, जिनके ऊपर नगों व सतरंगी कुंदनों की सजावट बहुत ही आकर्षक लगती है। ये कंगन 100 से 500 रुपए तक में बाजार में उपलब्ध हैं।
चलन में हैं प्लास्टिक के कंगन
बाजार में इन दिनों कॉलेजगोइंग गर्ल्स के लिए फूल-पत्तियों से सजे कंगन उपलब्ध हैं, जिन्हें युवतियाँ बड़े शौक से जींस व टॉप के साथ पहनती हैं। ये कंगन किसी भी परिधान के साथ मैचकर एक हाथ में पहने जाते हैं। पीले, लाल, हरे व सफेद बेस पर नेचुरल फूल-पत्तियों के डिजाइन युवतियों की कलाइयों को काफी खूबसूरत बनाते हैं। ये कंगन 15 से 30 रुपए तक की कीमत में उपलब्ध हैं।
वुड कंगन भी फैशन में
गोल्डन डिजाइन से सजे वुड कंगन भी देखने में बेहद सुंदर लगते हैं। ये कंगन भी युवतियों द्वारा कॉलेज व छोटी-मोटी पार्टी में पहने जा सकते हैं। इन कंगनों की कीमत भी 10 से 20 रुपए तक है। ये कंगन सस्ते होने के साथ-साथ मजबूत भी होते हैं।

गुरुवार, 24 जून 2010

बालीवुड

मित्र के साथ फोटो पर नाराज़ हुईं रिहाना मशहूर पॉप गायिका रिहाना अपने पुरुष मित्र और बेसबॉल खिलाड़ी मैट कैंप के साथ फोटो लिए जाने पर खासी नाराज़ हैं।

वेबसाइट 'डेलीस्टार डॉट को डॉट यूके' के अनुसार 'अनफेथपुल' में अपनी आवाज़ का जादू बिखेर चुकीं रिहाना संभवत: अपने संबंधों को छिपाना चाहती थीं। परंतु एक रेस्तरां से बाहर निकलते समय उनकी तस्वीर ले ली गई।
वर्तमान में रिहाना 'लास्ट गर्ल आन अर्थ' के तहत विश्वव्यापी दौरे पर निकलेंगी जो अगले महीने अमेरिका से शुरू होगा।


चींटियां और कीड़े-मकोड़े खाती हैं सलमा
हॉलीवुड स्टार सलमा हायक की बातों पर यकीन करें तो उनकी खूबसूरत फिगर का राज़ चींटियां और कीड़े-मकोड़े खाना है। चौंकिए मत क्योंकि सलमा ने खुद एक टीवी शो के दौरान ऐसा कहा है।

डेविड लेटरमैन के टीवी शो में सलमा ने कहा कि भूनी हुई चींटियां लाजवाब होती हैं और कीड़े भी। उनकी अलग-अलग रेसिपी होती है। ये पकाने और खाने में वाकई काफी अच्छी होती हैं।
सन ऑनलाइन के मुताबिक, टॉक शो के दौरान 43 साल की सलमा ने यह भी कहा कि लोगों को ये स्वादिष्ट आहार ज़रूर खाना चाहिए।

कहानी

मुल्ला नसीरूद्दीन और मित्र के कपड़े
मुल्ला नसीरूद्दीन की एक दोस्त से कई वर्षों के बाद मुलाकात हुई। वह उसके गले मिला, पर उसके खराब वस्त्र देख उसके मन में करुणा जागी और उसने अपने लिए सिले कपड़े उसे पहनने को दिए। ये कपड़े उसने अपने लिए सिलाए तो थे, मगर उन्हें कीमती जान वह पहनने में हिचकिचाता था। भोजन करने के बाद नसीरूद्दीन मित्र से बोला, 'चलो, मैं तुम्हें अपने मित्रों से परिचय कराता हूँ।' रास्ते में मित्र के शरीर पर अपने कीमती कपड़े देख नसीरूद्दीन सोचने लगा-यह तो बिलकुल अमीर लगता है और मैं उसका नौकर। मगर कपड़े तो अब वापस लिए नहीं जा सकते।

इतने में उसके एक मित्र का घर दिखाई दिया। वे दोनों अंदर गए। नसीरूद्दीन जब मित्र से उसका परिचय कराने लगा, तो उसका ध्यान वस्त्रों की ओर गया और वह बोला, 'यह मेरा बरसों पुराना दोस्त है। इसने जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे ही हैं।' दोस्त ने सुना, तो बुरा लगा। उसने उस समय तो कुछ नहीं कहा, मगर रास्ते में उसने कहा, 'आपको यह नहीं कहना था कि ये आपके कपड़े हैं।'

'ठीक है! अब मैं ऐसा नहीं कहूँगा,' नसीरूद्दीन ने जवाब दिया। मगर रास्ते में जब एक परिचित से मुलाकात हुई, तो अपने दोस्त का परिचय कराते समय कपड़ों की ओर ध्यान गया, और उसके मुँह से निकल पड़ा, 'इन्होंने ये जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे नहीं इन्हीं के हैं।' दोस्त को फिर बुरा लगा और उसने रास्ते में कहा, 'आपको मेरे कपड़े नहीं है-ऐसा नहीं कहना था नसीरूद्दीन ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा, 'मेरी जबान धोखा खा गई।'

उसने निश्चय किया कि अब वह कपड़ों का जिक्र ही नहीं करेगा, मगर उसके अंतर्चक्षुओं को तो वे कपड़े ही दिखाई दे रहे थे, इसलिए तीसरे मित्र से मुलाकात होने पर उसके मुँह से निकल पड़ा, 'ये मेरे गहरे दोस्त हैं। बड़े अच्छे हैं, मगर मैं यह नहीं बताऊँगा कि इन्होंने जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे हैं या इनके।' अब दोस्त से न रहा गया। वह वापस चल दिया। और उसने घर लौटकर गुस्सा जताते हुए कपड़े वापस कर दिए और दोस्त को छोड़कर वहाँ से चलता बना। नसीरूद्दीन को बड़ा पश्चाताप हुआ, किंतु अब कोई उपाय नहीं था।

कहानी

काँच की बरनी

जीवन में सबकुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, तब कुछ तेजी से पा लेने की भी इच्छा होती है और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं। दर्शनशास्त्र के एक प्रोफेसर कक्षा में आए और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बरनी टेबल पर रखी और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची।

उन्होंने छात्रों से पूछा, "क्या बरनी पूरी भर गई ?" "हाँ," आवाज आई। फिर प्रोफेसर ने कंकर भरने शुरू किए। धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो जहाँ-जहाँ जगह थी वहाँ कंकर समा गए। प्रोफेसर ने फिर पूछा, "क्या अब बरनी भई गई है?" छात्रों ने एक बार फिर हाँ कहा। अब प्रोफेसर ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरू किया। रेत भी उस बरनी में जहाँ संभव था बैठ गई। प्रोफेसर ने फिर पूछा- "क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई न?" हाँ, अब तो पूरी भर गई है," सभी ने कहा।

प्रोफेसर ने समझाना शुरू किया। इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो। टेबल टेनिस की गेंद को भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक समझो। छोटे कंकर का मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बड़ा मकान आदि है। रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार-सी बातें, मनमुटाव, झगड़े हैं। अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिए जगह ही नहीं बचती या कंकर भर दिए होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी। ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है। यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पड़े रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिए अधिक समय नहीं रहेगा।

मंगलवार, 22 जून 2010

मनीषा कोयराला




नेपाल में बॉलीवुड अभिनेत्री मनीषा कोयराला अपने दुल्हे सम्राट देहल के साथ।

प्रजनन क्षमता

क्या है पुरुषों में शुक्राणु निर्माण बंद होने के कारण?
वैज्ञानिकों ने पहली बार ऐसे लक्षणों की पहचान का दावा किया है जो बढ़ती उम्र के कुछ पुरुषों में महिलाओं की ही तरह प्रजनन क्षमता के ह्रास अथवा रजोनिवृत्ति के लिए जिम्मेदार होते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार पुरूषों और महिलाओं की रजोनिवृत्ति में मुख्य अंतर यह है कि महिलाओं में जहां सभी को इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, वहीं पुरूषों में अधिक उम्र के केवल दो प्रतिशत पुरूष ही इससे दो चार होते हैं, जिसे आम तौर पर खराब स्वास्थ्य और मोटापे से जोड़कर देखा जाता है।

मैनचेस्टर विवि और लंदन के इंपीरियल कॉलेज और लंदन विश्वविद्यालय के दल ने आठ यूरोपीय देशों से नमूने एकत्र कर इस प्रयोग को अंजाम दिया । इसमें उन्होंने 40 से 79 साल के पुरूषों में टेस्टोस्टोरोन (मेल सेक्स हार्मोन) जो शुक्राणु बनने और प्रजनन के लिए उतरदायी होता है) के स्तर का अध्ययन कर उक्त निष्कर्ष निकाला।

वैज्ञानिकों के दल ने लोगों से उनके शारीरिक, भौतिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य और उससे जुड़े कुछ सवाल पूछे और पाया कि 32 लोगों में से केवल नौ लोगों में उक्त लक्षण टेस्टोस्टोरोन का स्तर सामान्य से कम होने की वजह से थे। इनमें तीन यौन लक्षण सबसे महत्वपूर्ण रहे। पहला सुबह के समय कामोत्तेजना में कमी, दूसरा यौन विचारों में कमी और तीसरा उत्थानशीलता में कमी शामिल है।

दल ने यह निष्कर्ष निकाला कि यदि किसी पुरूष में यौन प्रवृतियों के यह तीन लक्षण और टेस्टोस्टोरोन हार्मोन के स्तर में कमी पाई जाए तो इसका मतलब है कि उक्त पुरूष रजोनिवृत्ति की प्रक्रिया से गुजर रहा है, लेकिन उस व्यक्ति में इसके अलावा कुछ गैर यौन लक्षण भी पाए जा सकते हैं।

इसमें उन्होंने तीन शारीरिक लक्षणों को चिन्हित किया, जिसमें दौड़ने या वजन उठाने जैसे भारी काम कर पाने में अक्षमता, एक किमी से अधिक की दूरी तक न चल पाना और झुकने और बैठने में परेशानी होना शामिल है। इसके अलावा मनोवैज्ञानिक तौर पर जो लक्षण सामने आए उनमें, ऊर्जा की कमी, उदासी और कमजोरी शामिल हैं। यह शोध लंदन की शोध पत्रिका 'न्यू इंगलैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन' में प्रकाशित हुआ है।

प्रजनन क्षमता

क्या है पुरुषों में शुक्राणु निर्माण बंद होने के कारण?
वैज्ञानिकों ने पहली बार ऐसे लक्षणों की पहचान का दावा किया है जो बढ़ती उम्र के कुछ पुरुषों में महिलाओं की ही तरह प्रजनन क्षमता के ह्रास अथवा रजोनिवृत्ति के लिए जिम्मेदार होते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार पुरूषों और महिलाओं की रजोनिवृत्ति में मुख्य अंतर यह है कि महिलाओं में जहां सभी को इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, वहीं पुरूषों में अधिक उम्र के केवल दो प्रतिशत पुरूष ही इससे दो चार होते हैं, जिसे आम तौर पर खराब स्वास्थ्य और मोटापे से जोड़कर देखा जाता है।

मैनचेस्टर विवि और लंदन के इंपीरियल कॉलेज और लंदन विश्वविद्यालय के दल ने आठ यूरोपीय देशों से नमूने एकत्र कर इस प्रयोग को अंजाम दिया । इसमें उन्होंने 40 से 79 साल के पुरूषों में टेस्टोस्टोरोन (मेल सेक्स हार्मोन) जो शुक्राणु बनने और प्रजनन के लिए उतरदायी होता है) के स्तर का अध्ययन कर उक्त निष्कर्ष निकाला।

वैज्ञानिकों के दल ने लोगों से उनके शारीरिक, भौतिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य और उससे जुड़े कुछ सवाल पूछे और पाया कि 32 लोगों में से केवल नौ लोगों में उक्त लक्षण टेस्टोस्टोरोन का स्तर सामान्य से कम होने की वजह से थे। इनमें तीन यौन लक्षण सबसे महत्वपूर्ण रहे। पहला सुबह के समय कामोत्तेजना में कमी, दूसरा यौन विचारों में कमी और तीसरा उत्थानशीलता में कमी शामिल है।

दल ने यह निष्कर्ष निकाला कि यदि किसी पुरूष में यौन प्रवृतियों के यह तीन लक्षण और टेस्टोस्टोरोन हार्मोन के स्तर में कमी पाई जाए तो इसका मतलब है कि उक्त पुरूष रजोनिवृत्ति की प्रक्रिया से गुजर रहा है, लेकिन उस व्यक्ति में इसके अलावा कुछ गैर यौन लक्षण भी पाए जा सकते हैं।

इसमें उन्होंने तीन शारीरिक लक्षणों को चिन्हित किया, जिसमें दौड़ने या वजन उठाने जैसे भारी काम कर पाने में अक्षमता, एक किमी से अधिक की दूरी तक न चल पाना और झुकने और बैठने में परेशानी होना शामिल है। इसके अलावा मनोवैज्ञानिक तौर पर जो लक्षण सामने आए उनमें, ऊर्जा की कमी, उदासी और कमजोरी शामिल हैं। यह शोध लंदन की शोध पत्रिका 'न्यू इंगलैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन' में प्रकाशित हुआ है।

रहन सहन

मुंह कैंसर से कॉफी बचाती है
दिन में चार कप कॉफी पीना मुंह के कैंसर से किसी व्यक्ति को बचा सकता है। चिकित्सकों ने हालांकि यह भी कहा है कि कॉफी का सेवन कम मात्रा में ही करना चाहिए क्योंकि इसमें मौजूद कैफीन के कारण दिल की धड़कन और रक्तचाप के बढ़ने का खतरा रहता है।

एक नए शोध के माध्यम से पता चला है कि कॉफी में 1000 तरह के रसायन होते हैं। इसमें एंटीऑक्सीडेंट भी होता है, जो कई तरह के कैंसर के खतरों से इंसान को बचाता है।
अमेरिका, यूरोप और मध्य अमेरिका में किए गए नौ शोधों के माध्यम से इस बात का खुलासा किया गया है। इसके अंतर्गत 5000 कैंसर पीड़ितों और 9000 स्वस्थ लोगों पर नजर रखी गई। दोनों तरह के लोगों में धूम्रपान करने वाले और शराब का सेवन करने वाले लोग भी शामिल थे।
शोध के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कॉफी के सेवन से मुंह के कैंसर से 39 फीसदी तक बचा जा सकता है। साथ ही कॉफी के सेवन से पारयेनक्स जैसी बीमारी से भी बचा जा सकता है।
अकेले ब्रिटेन में हर वर्ष 5500 लोग होंठ, जीभ, टान्सिल, मसूड़ों और मुंह के अन्य हिस्सों में कैंसर की आशंका के कारण परीक्षण कराते हैं। इनमें से 1800 लोगों की मौत मुंह के कैंसर के कारण हो जाती है।

सोमवार, 21 जून 2010

राष्ट्रीय

विकसित था सिंधु घाटी का विज्ञान
क्या सिन्धु घाटी की सभ्यता आज की तरह सुविकसित वैज्ञानिक सभ्यता थी? क्या वे लोग जीवन के आधार डीएनए की संरचना को जान चुके थे? क्या उन्हें जीवन की उत्पत्ति, जैव विकास और सृष्टि के क्रियाकलापों की वैज्ञानिक जानकारी थी? अनादिकाल से अनुत्तरित इन सवालों के जवाब एक भारतीय वैज्ञानिक के पास हैं। लेकिन क्या दुनिया के वैज्ञानिक उनके दावे को सरलता से हजम कर पाएँगे?
वैदिक शोध संस्थान के संस्थापक एवं प्रोफेसर डॉ. सीपी त्रिवेदी का दावा है कि दुनिया इस बात को माने या न माने, लेकिन वे सप्रमाण इसे साबित कर सकते हैं। उस सभ्यता में जीव विज्ञान, माइक्रो बॉयोलॉजी व बॉयो टेक्नोलॉजी का ज्ञान परिपक्व हो चुका था। उन्होंने सारे प्रमाण वर्तमान आधुनिक विज्ञान की मदद से ही जुटाए हैं। सिन्धु घाटी के अवशेषों में मिली सीलों और मोहरों पर उत्कीर्ण चित्रों व संकेतों में हूबहू आज के वैज्ञानिक संकेतों व रेखाचित्रों की झलक मिलती है।
डॉ. त्रिवेदी का कहना है कि सीलों और मोहरों पर जो भाषा और लिपि उत्कीर्ण है उसके बारे में जैसे-जैसे हमारी समझ विकसित हो रही है, हम इस दावे के नजदीक पहुँच रहे हैं। वेदों की सांकेतिक भाषा इस रहस्य को सुलझाने का महत्वपूर्ण औजार साबित हुई है। कई सीलों पर वैदिक रूपकों को उत्कीर्ण किया गया है, इससे स्पष्ट है कि इन सीलों का सीधा संबंध वैदिक ज्ञान से भी रहा है।
आधुनिक विज्ञान भी इसकी पुष्टि करता है। हड़प्पा और मोहन जोदड़ो के शहरों की सभ्यता में जल निकासी व सड़क आदि के नियोजन ने उस सभ्यता की वैज्ञानिकता को काफी पहले प्रमाणित कर दिया था। जीव विज्ञान की दृष्टि से आधुनिक विज्ञान ने उस सभ्यता के अन्य कई रहस्यों को जानने में हमारी मदद की है।
डीएनए का वैदिक नाम त्वष्टा : डॉ. त्रिवेदी के अनुसार सीलों पर उत्कीर्ण जानवरों के चित्रों के गहराई से अध्ययन पर उसके पीछे कोई विशेष उद्देश्य दिखता है। जीवन की उत्पत्ति और डीएनए सिन्धु घाटी की सभ्यता की सीलों व मोहरों पर आकृतियों में जीवन की उत्पत्ति की प्रारंभिक अवस्थाओं को दिखाया गया है।
प्रारंभिक जैविक सूप (कोसरवेट) के चित्र भी सीलों पर अंकित हैं। किस तरह डीएनए अणु बने, गुणसूत्र (क्रोमोसोम्स), क्रॉसिंग ओवर, कोशिकाएँ और कोशिका विभाजन की विभिन्ना अवस्थाएँ मोहरों पर भी उत्कीर्ण हैं। डीएनए (डी ऑक्सी रिबोज न्यूक्लिक एसिड) की आकृति और जैव प्रौद्योगिकी से सिन्धु घाटी के लोग परिचित थे। ये आकृतियाँ आधुनिक विज्ञान द्वारा प्रस्तुत आकृतियों से मिलती-जुलती हैं।
पशु मुद्रा वाली सीलों में यह उद्घाटित होता है कि सृष्टि का उद्भव व विकास ऊर्जा के ऊष्मा संबंधी सिद्धांतों के अंतर्गत मौलिक ऊर्जा से हुआ, जो ब्रह्मांड में व्याप्त है। इसका वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है। आइंस्टीन ने यही बात तो कही थी। डीएनए का वैदिक नाम त्वष्टा है। इसे समस्त जीवों का निर्माता विश्वरूप और विभाजन का कारक कहा गया है। इसकी संरचना को सांकेतिक रूप में चार क्षारों (बेस) से दर्शाया जाता है। सीलों में उत्कीर्ण पशु के चार सींग यही दर्शाते हैं।
डीएनए की क्रिया ट्रिप्लेट संकेत पर निर्भर है। इसे तीन पैरों के रूप में दर्शाया गया है। डीएनए की दो पट्टियों को दो सिर कहा गया है। हाइड्रोजन बॉण्ड को हाथ द्वारा अभिव्यक्त किया गया है। जीव जगत का भोजन पौधों में उपस्थित क्लोरोफिल और प्रकाश संश्लेषण पर निर्भर करता है। इसे योगी के सिर पर संकेतात्मक पीपल की पत्तियों के द्वारा दर्शाया गया है। इसकी व्याख्या भी ऋग्वेद में है।
जीव जगत का विकास एक कोशिका से हुआ और कोशिका विभाजन से विकास आगे बढ़ा। इसे मछलीनुमा आकृति से दर्शाया गया है। न्यूक्लियस (केंद्रक) को मध्य बिंदु द्वारा दर्शाया गया है।

रविवार, 20 जून 2010

दुल्हन

..क्योंकि हर दुल्हन ख़ास है
दुनियाभर देश के हर हिस्से में शादी के गहनों की अपनी एक ख़ास परंपरा है। ज्वेलरी कलेक्शन तैयार करते व़क्त अभी तक इस ट्रेडीशन का ध्यान नहीं रखा जाता था।
तनिष्क ने पहली बार क्षेत्रवार ट्रेडीशनल ब्राइडल ज्वेलरी कलेक्शन पेश कर यह पहल की है, जिसमें परंपरा के साथ मॉडर्न टच भी है..

में विवाह संस्कार का बहुत महत्व है। शादी का संबंध हमारी परंपरा से है, इसलिए इस मौक़े पर जो भी होता है, परंपरागत विधि व तरीक़ों से ही होता है- फिर चाहे निभाई जाने वाली रस्में हों या कपड़े व गहनों का चयन। शादी की शॉपिंग करते समय भी अपनी क्षेत्रीय संस्कृति का विशेष ख्याल रखा जाता है। इसलिए रोजमर्रा पहनने के लिए तो आप आर्टीफीशियल ज्वेलरी या किसी ज्वेलर से कुछ भी ट्रेंडी ख़रीद कर पहन सकते हैं, लेकिन शादी के मौक़े के लिए ज्वेलरी ख़रीदते समय उस सुनार की खोज शुरू हो जाती है, जो परंपरागत गहने बनाने में माहिर हो।
बहरहाल, शादी के सीजन में विभिन्न ज्वेलरी ब्रांड अपना-अपना कलेक्शन तो निकालते हैं, लेकिन उन कलेक्शंस में परंपरागत डिज़ाइनों व स्टाइल का अभाव देखा जा सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए पिछले दिनों तनिष्क ने अपना एक्सक्लूसिव वेडिंग ज्वेलरी कलेक्शन पेश किया है। यह कलेक्शन इस लिहाज से ख़ास था कि इसमें पंजाबी, गुजराती, मारवाड़ी, तेलुगू, तमिल, बंगाली, कन्नड़, मराठी और बिहारी दुल्हनों के लिए ट्रेडीशनल ज्वेलरी पेश की गई।
बड़े शहरों में रहने वाली लड़कियों को ध्यान में रखते हुए मैट्रो ब्राइड के लिए भी स्पेशल कलेक्शन शामिल किया गया है। यह पहला मौक़ा है, जब तनिष्क ने देश के अलग-अलग समुदायों को ध्यान में रखकर कलेक्शन तैयार किया। कलेक्शन को दिल्ली के ताजमान सिंह होटल में एक ज्वेलरी शो के माध्यम से प्रस्तुत किया गया।
इस अवसर की शो स्टॉपर जानी-मानी मॉडल इंद्राणी दास गुप्ता रहीं, जिन्होंने पंजाबी दुल्हन का लिबास और गहने पहने थे। तनिष्क के उपाध्यक्ष संदीप कुलहाली ने बताया कि कलेक्शन के लिए काफ़ी रिसर्च करने के बाद ही परंपरागत डिज़ाइनों को थोड़ा समकालीन रूप देकर पेश किया गया है।

हर किसी के लिए

पंजाबी दुल्हन : इस कलेक्शन में पोल्की सेट है। साथ ही कई कीमती स्टोन्स व नगों से जड़े हार व बुंदे भी शामिल हैं। कलेक्शन में पोल्की मांग टिक्का, चूड़ियां, कड़ा व अंगूठी स्पेशल है।

बंगाली दुल्हन : बंगाली दुल्हन के लिए गहने बनाने में प्योर गोल्ड को विशेष तवज्जो दी गई है। रवा वर्क इस कलेक्शन की ख़ासियत है, जो कि वहां का टिपिकल स्टाइल भी है। परंपरागत हार, बालियां, मुकुट, नथ, चौड़े कड़े के साथ शांका पोला बैंगल्स ने कलेक्शन में चार चांद लगा दिए हैं।

तमिल दुल्हन : तमिल दुल्हन के लिए गोल्ड ज्वेलरी को प्रमुखता दी गई है। मागा माली, मांगो मोटिफ हार, कासू मलाई क्वाइन हार, बाजूबंद, ख़ूबसूरत तगड़ी व नक्काशी किया हुआ हार कलेक्शन की विशेषता है।

तेलुगू दुल्हन : दक्षिण भारत में गोल्ड ज्वेलरी को विशेष महत्व दिया जाता है, इसलिए तेलुगू दुल्हन के लिए तैयार कलेक्शन में भी शुद्ध सोने के गहनों की ख़ास रेंज शामिल की गई है। इसमें वदनम और कानडोरी की ख़ूबसूरत वैराइटी भी हैं। कलेक्शन में अलग-अलग लंबाई के सुंदर हार और कंगन, नथ, बालियां व तगड़ियां भी सम्मिलित हैं।

गुजराती दुल्हन : गुजराती दुल्हन की ज्वेलरी के लिए तनिष्क ने कुंदन और पोल्की वर्क को ख़ासतौर पर शामिल किया है। मांग टिक्का, हार, बालियां, चूड़ियां, कड़े, नथ व अंगूठियों की कई वैराइटी परंपरागत स्टाइल में देखी जा सकती है।

मारवाड़ी दुल्हन : मारवाड़ी दुल्हन की ज्वेलरी में बोड़ला व नथ विशेष महत्व रखते हैं। Êाहिर है, कलेक्शन में ख़ूबसूरत नथ और बोड़ले होने ही थे। पोल्की सेट, डायमंड ज्वेलरी को भी विशेष रूप से शामिल किया गया है। और हार, बालियां, अंगूठियां व कंगन तो हैं ही।

बिहारी दुल्हन : बिहारी दुल्हन के लिए कलेक्शन में गोल्ड व कुंदन ज्वेलरी है। कलेक्शन में हार, कंगन, बाजूबंद और बालियां शामिल हैं।

मराठी दुल्हन : मराठी दुल्हन के लिए तनिष्क ने लक्ष्मीहार, रानीहार, पाटला, तोड़ा, मोती वाली परंपरागत नथ को कई तरह की परंपरागत डिज़ाइनों में पेश किया है। साथ ही बालियां, चूड़ियां व अंगूठियां भी कलेक्शन की शोभा बढ़ा रही हैं।

मेट्रो ब्राइड : शहरों में रहने वाली जो युवतियां अपनी शादी के लिए ट्रैंडी और स्टाइलिश ज्वेलरी की खोज में हैं, उनकी इच्छाओं और शहरी लाइफस्टाइल को ध्यान में रखते हुए तनिष्क ने मैट्रो ब्राइडल कलेक्शन पेश किया है। कलेक्शन में डायमंड ज्वेलरी को ख़ास तौर पर शामिल किया गया है, जिसके तहत डायमंड नेकलेस, बालियां, अंगूठियां, नोजपिन व कंगन स्पेशल हैं।

केनवास

पेंटिंग सहेजने की कला
ऑइल पेंटिंग को सहेज कर रखना बड़ी चुनौती है। जरा-सी लापरवाही से यह ख़राब हो जाती है। मौसम का भी इस पर प्रभाव पड़ता है, लाने-ले जाने में भी अतिरिक्त सावधानी की जरूरत होती है। ऐसे में क्या करें कि यह नाजुक कला सुरक्षित रहे, बता रही हैं दिल्ली की आर्टिस्ट शुभि कृष्ण-
कलाकृति के पेंट किए हुए हिस्से को टच न करें, उसे फ्रेम से ही पकड़ें।

हमेशा ध्यान रखें कि केनवास के सामने या पीछे के हिस्से में किसी भी तरह का दबाव न पड़े। इससे पेंटिंग पिचक सकती है, उसमें गड्ढा हो सकता है या वह भद्दी हो सकती है। यदि ऐसा हो जाए तो एक्सपर्ट से ही इसे रिपेयर कराएं। ख़ुद ठीक करने से और नुक़सान हो सकता है।
पेंटिंग को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते समय दोनों तरफ कार्डबोर्ड या प्लॉइवुड रखें। इसके बाद कपड़े से ढंककर इसे सावधानीपूर्वक फीते से बांधें।
पेंटिंग दीवार में टंगी हो या स्टोर में रखी हो, उसे मौसम से ख़तरा रहता ही है। उसे ज्यादा गर्मी, ठंड या नमी से होने वाले नुक़सान से बचाएं। पेंटिंग रखने के लिए बेसमेंट या अटारी अच्छी जगह नहीं है।
ऑइल पेंटिंग रखने की सबसे बढ़िया जगह घर की दीवार है। वहां यह सुरक्षित भी रहती है और इसे देखकर लोग एंजॉय भी करते हैं।
पेंटिंग पर लगातार धूल जमती रहती है, इसलिए उसे नियमित रूप से नरम ब्रश से साफ़ करें। यदि ज्यादा धूल जम गई हो, तो ख़ुद कोशिश करने की बजाय उसे एक्सपर्ट के पास ले जाकर साफ़ कराएं।

कोकणा सेन

शादी का ख्याल छिपता नहीं
कोंकणा ने न केवल आर्ट फ़िल्मों में, बल्कि कमर्शियल फ़िल्मों में भी ख़ुद को प्रूव किया है। ग्लैमर से दूर होने के बावजूद उन्होंने ग्लैमर वर्ल्ड को अपना कायल कर लिया है। अब लोगों को उनकी शादी का इंतज़ार है..


सनी देओल की ‘राइट या रॉन्ग’ हो, रणबीर की ‘वक अप सिड’ या अजय की ‘अतिथि तुम कब जाओगे’, इन जैसी बिल्कुल अलग फ़िल्मों के साथ तालमेल बिठाकर चलना कठिन होता है। मुख्यधारा की इन फ़िल्मों को कोंकणा सेनशर्मा ने अच्छी तरह निभाया है, जबकि उनके टोटल लुक में ग्लैमर ढूंढ़ना मुश्किल है। यानी हिंदी फ़िल्मों की एक ज़रूरी शर्त को वह पूरी नहीं करती हैं।

फिर भी दर्शक उनके कायल हैं और उनके काम की सराहना होती है। शायद यही वजह है कि मुख्य धारा और मल्टीप्लैक्स फ़िल्मों में वह ख़ासी बिज़ी हैं। एक ताज़ा मुलाक़ात में वह बॉयफ्रैंड रणबीर शौरी के बारे में पूछे गए सवालों से बचते हुए फ़िल्मी गतिविधियों से जुड़े सवालों का जवाब खुलकर देती हैं—

शबाना जी ने आपकी तारीफ़ में कहा कि मसाला फ़िल्मों में आपको ज़ाया किया जा रहा है?
उन्होंने मेरी तारीफ़ की, इस बारे में कुछ नहीं कहूंगी। वह मेरी मां की अच्छी दोस्त हैं और मेरे लिए फैमिली की तरह हैं। जहां तक कमर्शियल फ़िल्मों का सवाल है, इन फ़िल्मों में काम करने का फैसला मेरा था। यह फ़िल्में मुझे पसंद हैं। मैं ख़ास तरह की फ़िल्में करके ख़ुद को दायरे में क़ैद नहीं रखना चाहती थी, इसलिए कमर्शियल फ़िल्मों में काम करना मैंने जारी रखा।

‘राइट या रॉन्ग’ जैसी थ्रिलर या ‘अतिथि..’ जैसी कॉमेडी फ़िल्में आपको कितना सुकून देती हैं?
जहां तक मेरी पसंद या सुकून का सवाल है, सीरियस रोल मुझे सबसे ज्यादा संतुष्टि देते हैं। पर जैसा कि मैंने कहा अगर आपको दायरे से निकलना है, तो बहुत कुछ ऐसा करना होगा, जो पसंद का नहीं है। मैंने इस मामले में कोई एड्जस्ट नहीं किया, बल्कि इसे एक्टिंग के चैलेंज के तौर पर लिया है। मैं ख़ुशनसीब हूं कि इस फैसले को लेकर मुझे परेशानी नहीं हुई।

इसीलिए आपको नए दौर की शबाना कहा जाता है?
मैं अभी इस तरह की तुलना से बचना चाहती हूं। सच तो यह है कि मैं अभी ख़ुद को इस क़ाबिल नहीं मानती हूं कि शबाना आज़मी जैसी अदाकारा से अपनी तुलना करूं। फ़िलहाल मैंने भी शबाना जी की तरह आर्ट और कमर्शियल सिनेमा के बीच कोई लकीर नहीं खींची है। मैं मानती हूं कि इस दिशा में आगे बढ़ने में शबाना जी ने मुझे बहुत प्रेरित किया है।

आप दोनों ने तो साथ काम भी किया है?
साथ तो बहुत ज्यादा काम नहीं किया। बस, मां की फ़िल्म ‘15 पार्क एवेन्यू’ में उनके साथ काम करने का अच्छा मौक़ा मिला। उन्होंने मां के साथ कई फ़िल्में की हैं। ‘15 पार्क एवेन्यू’ में काम करने के दौरान उनका को-ऑपरेटिव नैचर मुझे याद आता है। एक सीनियर एक्ट्रैस की परफैक्ट इमेज। मैं भी ख़ुद में यह कॉन्फीडेंस लाना चाहती हूं।

आप कैसी फ़िल्मों को प्राथमिकता देती हैं?
फ़िल्में मनोरंजन से भरपूर हों, इस बात के पक्ष में तो मैं भी हूं। इसी के साथ मेरा यह प्रयास होता है कि मैं इश्यू बेस्ड फ़िल्मों में ज्यादा काम करूं। ऐसी फ़िल्मों में किरदार का स्कैच क्लीयर होता है। ऐसे किरदारों का असर भी बहुत होता है।

अपनी मां की ताज़ा रिलीज़ फ़िल्म ‘जापानीज़ बहू’ में आप दिखाई नहीं दी हैं?
मैं मानती हूं कि वह मेरी मां न होतीं, तो उनके साथ इतनी जल्दी काम करने का मौक़ा मुझे हरगिज़ नहीं मिलता। मैं ‘जापानीज़ बहू’ में भी काम करना चाहती थी। पर डेट प्रॉब्लम के कारण मुझे यह फ़िल्म छोड़नी पड़ी। वैसे मैं फिर मां की अगली फ़िल्म कर रही हूं। ख़ैर, अब मुझे एक एक्ट्रैस के तौर पर ग्रो करना है। मॉम की उम्मीदों को पूरा करना है। यह मां जैसी संजीदा डायरैक्टर की •यादा फ़िल्में करके ही संभव है।

आप एक व़क्त में काफ़ी फ़िल्में कर रही हैं?
‘मिर्च’, ‘मेरेडियन’ जैसी चार-पांच फ़िल्में हैं। देखा जाए, तो यह संख्या ज्यादा है, क्योंकि मेरे काम करने का स्टाइल जुदा है। वैसे मेरी ऱफ्तार बहुत सुस्त है। मैं अचानक ही किसी फ़िल्म को साइन कर उसे पूरा कर देती हूं। ‘अतिथि तुम कब जाओगे’ की शूटिंग मैंने इसी अंदाज़ में पूरी की थी।

अब तो आप बहुत अच्छी हिंदी बोलने लगी हैं?
हिंदी बोलने में मुझे कभी मुश्किल नहीं हुई। फिर अहम बात यह है कि मैं लगातार हिंदी फ़िल्में कर रही हूं। किसी भाषा की इतनी फ़िल्में करने पर आप असानी से उस भाषा को सीख लेते हैं। अच्छी बात यह है कि इसमें बंगला के कई शब्दों का भी आप उपयोग कर सकते हैं। फिर भी जब कठिन संवाद समझ में नहीं आते हैं, मैं तुरंत उसकी डिटेलिंग में जाती हूं।

आप रणबीर शौरी से शादी कब करने वाली हैं?
फ़िलहाल इतना जान लीजिए कि अभी हम दोनों ही अपने-अपने कैरियर को एक मुक़ाम पर पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। शादी का ख्याल आया, तो बात छिपी नहीं रहेगी। फिर हमारी शादी को लेकर इतनी जिज्ञासा क्यों?

बिपासा बसु

शादी के मूड में नहीं बिप्स
बिप्स के साथ ज़िंदगी बिता रहे जॉन उनकी तारीफ़ करते नहीं थकते। उनका कहना है कि बिप्स अपने परिवार और काम को लेकर बेहद समर्पित हैं। उनके जैसा दूसरा तो कोई और हो ही नहीं सकता।

फिर ये दोनों शादी क्यों नहीं कर लेते? इस सवाल का जवाब देते हुए जॉन कहते हैं कि अभी हम दोनों कैरियर के जिस मुक़ाम पर हैं, वहां फिलहाल शादी करना संभव नहीं..


जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु के रिश्ते को लगभग सात साल हो गए हैं। दोनों ने शादी के बिना रिश्ते की एक नई परिभाषा गढ़ ली है। गाहे-बगाहे इस रिश्ते के टूटने की ख़बरें भी आईं, पर हर बार दोनों ने अपने रिश्ते को साबित किया। पर्दे पर दोनों की कैमिस्ट्री भले ही न जमें, पर्दे के बाहर यह जोड़ी ज़बर्दस्त हिट है। बिप्स के बारे में चर्चा चलने पर जॉन ने हमेशा खुलकर बात की है। पेश है, उनकी बिप्स के बारे में वो खट्टी-मीठी बातें—

दोस्त से ज्यादा ख़ास है
दस-बारह साल से भी ज्यादा हो गए हैं, जब बिप्स से मेरी पहली मुलाक़ात हुई थी। वह फैशन शो से संबंधित कोई कार्यक्रम था। शुरुआती परिचय के बाद ही उनके बातचीत करने का लहज़ा मुझे अच्छा लगा। इसके बाद भी हमारी बातचीत होती रही। मैंने महसूस किया कि कई मामलों में हमारे विचार बहुत मिलते हैं। मेरी तरह वह भी अपने परिवार के लिए बहुत वचनबद्ध है।

मैं अपने मम्मी-डैडी से जुड़ा रहना पसंद करता हूं। वह भी अपने मां-बाबा को मुंबई में बहुत मिस करती है। मैं कई साल से देख रहा हूं, अपने पैरेंट्स से मिलने का कोई मौक़ा वह नहीं चुकती है। आज ऐसी बातें मायने खो रही हैं, मगर मुझ जैसे लोग ऐसी ही बातों के मुरीद हैं। इसी वजह से बिप्स का साथ मुझे अच्छा लगा था, लेकिन उस समय डिनो मोरिया उनका बॉयफ्रैंड था।

फिर भी हम अच्छे दोस्त बन गए। ‘जिस्म’ की शूटिंग शुरू होने से पहले मुझे पता चला कि उनका ब्रेकअप हो चुका है। वह उन दिनों थोड़ा अप्सेट थी। मैंने उसके इस पर्सनल प्रॉब्लम में कोई दख़लअंदाज़ी नहीं की। मैं नॉर्मल ढंग से उससे मिलता रहा और हंसी-मज़ाक की ढेरों बातें करता रहा। लेकिन ‘जिस्म’ की शूटिंग शुरू होने पर काफ़ी बातें बदल गईं।

इस दौरान मैंने महसूस किया कि वह दोस्त से ज्यादा मेरी कुछ बनती जा रही है। ‘जिस्म’ की शूटिंग पूरी होने तक वह मेरी गहरी दोस्त बन चुकी थी। हमें एक-दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा था। उस समय हम दोनों को सुझाव मिलने लगा था कि हम शादी कर लें, पर हमने इस मामले में कोई जल्दबाज़ी नहीं की। मैरीड लाइफ़ पर मेरा पूरा यक़ीन है, लेकिन कैरियर के इस मोड़ पर हम दोनों ही शादी करने के मूड में नहीं हैं।

बहुत आत्मनिर्भर है
उसने सब कुछ अपने दम पर कमाया है। इससे एक बात साफ़ है, वह अपने काम को लेकर बहुत गंभीर है। मैंने उसे सफल मॉडल के रूप में देखा है, अब एक्ट्रैस के तौर पर देख रहा हूं। कम लोग ही इतने मेहनती होते हैं। उसे पता है कि लोग उसके ग्लैमर के कायल हैं, इसलिए वह इसी मैंटेन रखती है। मुझे याद है, जिन दिनों उसके पास मॉडलिंग के बहुत कम एसाइनमैंट होते थे, वह कई एड फ़िल्में छोड़ देती थी।

कई मेकर ने ख़ुद उसे सुझाव दिया था, वह इस व़क्त एड कर लें, पर इस मामले में कंप्रोमाइज़ करना उसे पसंद नहीं। उसका तर्क होता था- मैं ज्यादा काम के चक्कर में न पड़कर बेहतर काम करने के लिए थोड़ा इंतज़ार कर सकती हूं। मुझे लगता है, उसने इस तरह अपनी आत्मनिर्भरता को और सुदृढ़ किया है।

इंप्रूव कर रही है
बतौर हीरोइन उसने ख़ुद को इंप्रूव किया है। ऋतुपर्णो घोष की फ़िल्म ‘सोब चरित्रो काल्पोनिक’ में उसे देखकर मैं उसका कायल हो गया। इस फ़िल्म में साड़ी में सजी एकदम पारंपरिक युवती के रूप में उसे पहचानना मुश्किल है। वह अब हीरोइन से एक एक्ट्रैस बन चुकी है। जो लोग बिप्स को सिर्फ़ एक ग्लैमर की गुड़िया मानते हैं, इस फ़िल्म में उसका अभिनय सबका मुंह बंद कर देता है।

मेरे पिता को तो कई दिनों तक यक़ीन ही नहीं हुआ कि इसमें बिप्स ने काम किया है। असल में जब से वह फ़िल्मों में काम कर रही है, उसे ऐसे मौक़े न के बराबर ही मिले। सिर्फ़ उसके सैक्सी लुक को ही पर्दे पर पेश किया जाता रहा है। वह एक अच्छी एक्ट्रैस है, इसे अब वह प्रूव करना चाहती हैं, मगर इसके लिए उसने अपने इमेज को दांव में नहीं लगाया है। वह बहुत संवेदनशील हैं, अब वह जल्द अपनी फ़िल्मों में भी एक संवेदनशील अभिनेत्री के तौर पर दिखाई देगी।

फिटनेस का जबाव नहीं
मैं जब कभी मज़ाक में उससे कहता हूं कि तुम्हारा वज़न कुछ बढ़ रहा है, दूसरे दिन से ही उसकी वर्जिश और डायटिंग बढ़ जाती है। मुझे ताज्जुब होता है, वह खाने की इतनी शौक़ीन है, फिर भी कई दिन तक अपने पसंदीदा खाने से दूर रहती है। फिटनेस का यह मूल मंत्र मेरे जीवन का भी एक हिस्सा है, मगर कई बार इस मामले में मैं उससे थोड़ा पीछे चला जाता हूं।

उसके जैसा वर्क आउट तो मैं कर ही नहीं सकता। उसकी अच्छी बात यह है कि वह सिर्फ़ फिज़ीकल वर्कआउट पर ही ध्यान नहीं देती, बल्कि मानसिक तैयारी भी करती है। वह अक्सर मुझसे कहती है- ख़ुद से प्यार करो और अपने दिल-दिमाग से वर्जिश करो। कई बार हम दोनों जिम में भी अपना काफ़ी समय बिताते हैं।

घूमने-फिरने की शौक़ीन
फिटनेस के साथ-साथ वह छुट्टियों को लेकर गंभीर है। इन गर्मियों में वह पेरिस में कुछ दिन छुट्टियां बिताना चाहती है। उसे पेरिस की सुंदरता ख़ूब लुभाती है। उसकी इच्छा है कि फ़िल्म ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ का री-मेक बने और उसमें हम दोनों साथ काम करें। उसे रोमांस, फैशन, कला और मौज-मस्ती से भरा शहर बहुत पसंद है। यही नहीं, देश-विदेश के हर ख़ूबसूरत शहर की ख़ास-ख़ास बातें उसने अपनी डायरी में नोट कर रखी हैं। वह वाकई लाजवाब है।

बिपाशा का अर्थ गहरे में छिपी एक तीव्र इच्छा होता है। 7 जनवरी 1979 को दिल्ली में जन्मी बिपाशा बसु तीन बच्चों में मंझली हैं। उनकी अन्य दो बहनों के नाम बिदिशा और विजेता हैं। बिपाशा ने शुरुआत साइंस की पढ़ाई करना चाहती थी, पर जब साइंस के तहत कीड़े-मकौड़ों के चीर-फाड़ की बारी आई, तो वह भाग खड़ी हुईं और कॉमर्स विषय ले लिया।

1996 में मशहूर मॉडल मेहर जेसिया (अब अभिनेता अजरुन रामपाल की पत्नी) ने कोलकाता में जब बिपाशा बसु को मॉडलिंग में जाने की हिदायत दी थी, तब बिपाशा ने गोदरेज सिंथॉल सुपर मॉडल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, जहां वह विजेता बनकर उभरीं। मल्लिका शेरावत और ऐश की दमदार मौजूदगी के बावजूद 2007 में उन्हें एक एक्ज़िट पोल के ज़रिए एशिया की सबसे सैक्सी युवती का ख़िताब मिला था।

2001 ‘अजनबी’ से कैरियर शुरू करने वाली बिप्स इसमें एक ऐसी पत्नी बनी थीं, जो अपने पति के शादीशुदा दोस्त से संबंध बनाने को आतुर रहती है। फ़िल्म में उनके काम की तारीफ़ हुई और उन्हें बैस्ट नवोदित अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला।

शनिवार, 19 जून 2010

सेक्सी आईटम गर्ल्स

बॉलीवुड की टॉप हॉट और सेक्सी आईटम गर्ल्स
आईटम सोंग्स का बॉलीवुड फिल्मों में बड़ा महत्व है|बॉलीवुड में आईटम नंबर्स इतने लोकप्रिय हैं कि कई बार तो यह फिल्मों की पहचान बन जाते हैं और लोग फिल्म से ज्यादा आईटम सोंग्स में दिलचस्पी लेते हैं|

फिल्मों में आईटम डांस नंबर्स का क्रेज कोई नया नहीं है|70 के दशक में हेलेन पर फिल्माया गया सेक्सी आईटम सॉन्ग 'पिया तू' आज भी लोगों के दिलों पर छाया हुआ है|माधुरी दीक्षित के दीवाने आज भी उनपर फिल्माए गए 'एक दो तीन' आईटम सॉन्ग पर खुद को झूमने से रोक नहीं पाते|फिल्म 'बिल्लू बारबर' में करीना ,दीपिका और प्रियंका पर फिल्माए गए आईटम सॉन्ग भी जबरदस्त हिट हुए थे|फिल्म 'बंटी और बबली' में ऐश्वर्या राय पर फिल्माया गया 'कजरारे कजरारे' भी बेहद पॉपुलर हुआ|आईटम नंबर्स पर मलाईका अरोरा और मल्लिका शेरावत का थिरकना कोई कैसे भूल सकता है|

आइए आपको मिलाते हैं बॉलीवुड की पांच हॉट आईटम गर्ल्स से:
हेलेन- गोल्डन गर्ल के नाम से मशहूर हेलेन को बॉलीवुड की सबसे बेहतरीन आईटम गर्ल्स में शुमार किया जाता है|60 ,70 के दशक में हेलेन अपने सेक्सी डांस की वजह से इतनी लोकप्रिय हुईं कि हर फिल्म में हेलेन का एक गाना तो जरुर होता ही था|'हावड़ा ब्रिज' में उनके द्वारा किया गया 'मेरा नाम चिन चिन चू'एक सदाबहार गाना बन चुका है|वहीं फिल्म शोले में 'महबूबा महबूबा'और कारवां में 'पिया तू अब तो आजा'में हेलेन के केब्रे डांस और सेक्सी अदाओं ने सबको मदहोश ही कर डाला था और इन गानों में हेलेन द्वारा किए गए डांस को अभी तक लोग भुला नहीं पाए हैं|

शिल्पा शेट्टी-आईटम गानों की बात की जाए तो हॉट ऐक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी के सेक्सी आईटम गानों को भला कैसे नज़र अंदाज़ किया जा सकता है|फिल्म शूल में शिल्पा पर फिल्माया गया 'मैं आई हूं यूपी बिहार लूटने'इतना जबरदस्त हिट हुआकि सब शिल्पा के हॉट अंदाज़ के दीवाने हो गए|इस गाने में शिल्पा के ठुमको ने दर्शकों को लूट लिया|इसके बाद फिल्म 'दोस्ताना' में शिल्पा ने मियामी के बीच पर 'शट अप एंड बाउंस'गाने में इतनी सेक्सी अदाएं दिखाईं कि फिल्म से ज्यादा शिल्पा का यह गाना सुर्ख़ियों में छाया रहा|

मलाइका अरोरा खान-फिल्म 'दिल से' में शाहरुख़ खान के साथ छैया-छैया गाने पर मलाईका के ठुमको ने तो कहर ही बरपा दिया था|मलाइका का सेक्सी फिगर किसी आईटम गाने को और सेक्सी बना देता है|मलाइका एक बार फिर सलमान खान की फिल्म 'दबंग' में एक हॉट आईटम सॉन्ग करती नज़र आएंगी|

मल्लिका शेरावत-इस हॉट लिस्ट में हम सेक्स बम मल्लिका शेरावत को कैसे भूल सकते हैं| फिल्म गुरु में 'मैया मैया' और हिमेश की फिल्म में महबूबा महबूबा गाने पर मल्लिका के डांस ने उन्हें जबरदस्त लोकप्रिय बना दिया|मल्लिका अपने लीड रोल्स से ज्यादा आईटम सोंग्स के लिए ज्यादा फेमस हो गईं|

ऐश्वर्या राय- फिल्म बंटी और बबली में ऐश्वर्या के कजरारे कजरारे गाने को आज भी उनकी सबसे बेहतरीन परफोर्मेंस में शुमार किया जाता है|इस गाने में ऐश ने बड़ी ही शालीनता से झटके मटके मारे जिससे उनके फैंस कायल हुए बिना नहीं रह सके|

चुटकुले

वीरू, जय से- ‘कल तुझे मेरे मोहल्ले के दस लड़कों ने बहुत बुरी तरह पीटा। फिर तूने क्या किया?’
वीरू- ‘मैंने उन सभी से कहा कि कि अगर हिम्मत है, तो अकेले-अकेले आओ।’
जय- ‘फिर क्या हुआ?’
वीरू- ‘होना क्या था, उसके बाद उन सबने एक-एक करके फिर से मुझे पीटा।’

अमेरिका में चोर पकड़ने की मशीन बनी। उसने अमेरिका में एक ही दिन में 9 चोर पकड़े लिए। फिर चीन में 30 और ब्रिटेन में 50 चोर पकड़े। भारत में आने पर मशीन 1 घंटे में चोरी हो गई।

एक बार पुलिस ने एक आदमी को सड़क पर पॉटी करते हुए देख लिया। पुलिस जब उस आदमी को पकड़ कर ले जाने लगी, तो वह बोला-
‘ओ कानून के रखवालों सबूत तो उठा लो।’

एक आदमी पहलवान से- तुम मेरे तीस दांत तोड़ने की धमकी दे रहे हो। पूछ सकता हूं कि बाकी के दो दांतों पर इतना रहम क्यों?
पहलवान- त्योहार में सबको विशेष छूट दे रहा हूं।

रमा लौवंशी, इंदौर

जेलर (चोर से)- तुम्हारा कोई रिश्तेदार तुमसे मिलने क्यों नहीं आता?
चोर (हंसते हुए)- दरअसल, वो सब जेल में ही हैं।

संता- यार उत्तरपुस्तिका में क्या लिखूं?
बंता- यही कि इस शीट पर लिखे गए सारे उत्तर काल्पनिक हैं और इनका किसी भी किताब से कोई ताल्लुक नहीं है। अक्षत सुगंधी

टीचर- राहुल बताओ, अकबर ने कब तक शासन किया था?राहूल- पेज नम्बर 14 से लेकर पेज 20 तक।

प्रवीण लौवंशी, इंदौर

जज चोर से- तुमने एक हफ्ते में 15 चोरियां कैसे की?चोर- हुजूर दिन-रात मेहनत करके

प्रभा लौवंशी, इंदौर

एक मनचला लड़का एक लड़की का पीछा कर रहा था। लड़की को छेड़ने के लिए उसे रोक कर कहा- मैडम, आपकी घड़ी में कितना बजा है?
लड़की ने गुस्से में आकर अपनी चप्पल उतारी और उसकी पीठ पर एक जमाते हुए कहा- एक बजा है।
एक राहगीर ने जब यह देखा तो लड़के को कहा कि अच्छा हुआ जो समय अभी पूछा, अगर एक घंटा पहले पूछते तो तुम्हें मज़ा आ जाता।

लड़ाकू विमान

हवाओं को हराकर आसमान पर छाने वाले
आसमान में लकीरें नहीं खिंचीं होतीं कि इतना तुम्हारा और इतना हमारा। इसीलिए इन सीमाओं पर खास निगाह रखनी पड़ती है। इस अदृश्य बॉर्डर से आने वाले दुश्मन से निपटने के लिए वायुसेना का ताकतवर होना ज़रूरी है। तभी तो हमारी वायुसेना में शामिल हैं एक से बढ़कर एक लड़ाकू विमान।
भारतीय वायुसेना में किसी भी सक्षम वायुसेना की तरह लड़ाकू विमान, हैलिकॉप्टर, ट्रेनर विमान और वाहक विमान शामिल हैं।

लड़ाकू विमान मिग
मिग का विकास सोवियत संघ में हुआ था। यह लड़ाकू विमानों की एक जानी-मानी श्रंखला है। शीत युद्ध के दौरान इन विमानों का दुनियाभर में प्रयोग हुआ था। वायुसेना ने 60 के दशक से इन विमानों का रूस से आयात शुरू किया था। आज ये वायुसेना के प्रमुख लड़ाकू विमान हैं।
मिग-21
मिग-21 विमान हवाई सुरक्षा में अहम भूमिका निभाते आए हैं। वायुसेना के बेड़े में ऐसे तीन सौ से अधिक विमान हैं लेकिन पिछले कई वषों से इन विमानों के दुर्घटनाग्रस्त होने की दर काफी अधिक हो जाने के कारण अब इन्हें सेवा से हटाया जा रहा है।

मिग-23,25 और 27
मिग 21 के साथ ही भारतीय वायुसेना के पास मिग 23, 25 और मिग 27 भी हैं। पाकिस्तान को अमेरिका से मिले एफ 16 विमानों को टक्कर देने के लिए रूस ने सत्तर के दशक में भारत को मिग 23 विमान उपलब्ध कराए थे। मिग के पायलट इसकी बेहद तेज गति के कायल हैं। इन विमानों की पहली परख सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय ध्वज फहराए जाने के लिए हुए आपरेशन मेघदूत में हुई थी, जब मिग 23 का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल किया गया।

जम्मू-कश्मीर के बनिहाल र्दे को रात के समय पार करने वाला यह पहला विमान बना। 1999 में ऑपरेशन सफेद सागर के समय टाइगर हिल्स पर दुश्मन के ठिकानों को नष्ट करने के लिए इन विमानों का ही प्रयोग किया गया था। तीन दशक की सेवाएं भारतीय वायु सेना को देने के बाद मिग 23 की सेवाएं मार्च 2009 में समाप्त कर दी गईं।

मिग-29
रूस में बने मिग-29 लड़ाकू विमानों को गत वर्ष दिसंबर में सेना में शामिल किया है। इन्हें 2012 में आईएनएस विक्रमादित्य (एडमिरल गॉर्शकोव) पर तैनात किया जाएगा।

संहारक सुखोई
इसे भारतीय वायुसेना का सबसे संहारक लड़ाकू विमान माना जाता है। अभी इसके आधुनिकीकरण की प्रक्रिया चल रही है। इसके लिए सुखोई- 30 एमकेआई विमानों में ब्रह्मोस मिसाइल की वायुसैनिक किस्म लगाई जाएगी। साथ ही दुनिया का अत्याधुनिक आएसा रडार भी लगाया जाएगा। आधुनिकीकरण की यह प्रक्रिया 2015 तक पूरी होगी और तब सुखोई-30 विमान दुनिया का सबसे संहारक विमान बन जाएगा।

वज्र है यह
फ्रांस में बना मिराज २क्क्क् भारतीय वायुसेना में वज्र के नाम से शामिल किया गया है। अभी इनके आधुनिकीकरण का काम चल रहा है। कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मन के ठिकानों को नष्ट करने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

तेजस
मिग 21 की जगह वायुसेना में शामिल होने वाला तेजस एक हल्का लड़ाकू विमान है। भारत में बनने वाले इस विमान को अगले साल वायुसेना में शामिल कर लिया जाएगा।

हॉक
यह ब्रिटेन निर्मित आधुनिक प्रशिक्षण विमान हैं। इनका इस्तेमाल आमतौर पर पॉयलटों के प्रशिक्षण के लिए किया जाता है, लेकिन युद्ध की स्थिति में इनसे ज़मीन पर हमले भी किए जा सकते हैं।

भविष्य के विमान
भारत और रूस के अधिकारी इन दिनों पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान के साझा विकास पर काम कर रहे हैं, जो दुनिया के सभी तत्कालीन लड़ाकू विमानों की क्षमता के बराबर होगा।

मिग-35भविष्य में इनके भारतीय वायुसेना में शामिल होने की उम्मीद है। मिग-35 में आएसा रडार लगा होगा। साथ ही, इलेक्ट्रॉनिक प्रतिरोधक प्रणालियों से लैस यह विमान दुश्मन के लड़ाकू विमान के सभी इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलों को निरस्त कर
सकता है।

क्या है आएसा रडार
आएसा (एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे) रडार अपने आस-पास उड़ रहे 30 हमलावर विमानों पर नज़र रख सकते हैं और 150 किलोमीटर दूर से उन्हें देखकर अपनी रक्षात्मक प्रणाली को सचेत कर सकते हैं। आएसा रडार फिलहाल अमेरिका की पांचवीं पीढ़ी के एफ-22 और नौसेना के एफ-18 विमान में ही लगे हैं।

अवॉक्स
भारत दक्षिण एशिया का एकमात्र ऐसा देश है, जिसके पास हवाई चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली अवॉक्स [एडब्ल्यूएसीएस] है, जिसे आकाश में आंख कहा जाता है। इज़राइल से खरीदा गया यह टोही विमान मई 2009 में वायुसेना में शामिल किया गया है।

ध्रुव, चेतक और चीता- यह वे हैलिकॉप्टर्स हैं, जिनका प्रयोग भारतीय वायुसेना सैनिकों और रसद को एक स्थान से दूसरे
स्थान पहुंचाने में करती है।

मॉडल कहती है

ब्रिटेन की मॉडल विद मोस्ट सेक्सी ब्रेस्ट
टेबलॉयड 'द सन' द्वारा कराई गई एक प्रतियोगिता में लौरा एन स्मिथ को ब्रिटेन की सबसे सेक्सी ब्रेस्ट वाली मॉडल चुना गया है।

स्कॉटलैंड के बोनीब्रिज की कर्वी शेप मॉडल लौरा को पाठकों ने 'कर्वी केट' की अगली मॉडल चुना है। लौरा स्मिथ एक सैलून की मालिक भी है।
लोगों को सबसे ज्यादा लौरा की कर्वी फीगर और उसके 28 डबल एच साइज ब्रेस्ट पसंद आए। अब यह खिताब जीतने के बाद वो एक साल तक 'कर्वी केट डीडी' की एक साल तक मॉडल रहेगी।
लौरा कहती है कि मैं यह साबित करना चाहती थी कि महिलाओं, चाहे उनकी शेप कैसी भी हो और ब्रेस्ट साइज कितना भी हो, को खुद से प्यार करना चाहिए।
इस प्रतियोगिता में एन्ना ब्रोडले दूसरे और लॉरेन सेडलर तीसरे स्थान पर रही।

रोज पांच बार सेक्स करती हूं, स्वस्थ रहती हूं

ब्रिटीश पॉप सिंगर और गीतकार मेलेनी ब्राउन ने स्विकार किया है कि वो स्वस्थ रहने के लिए अपने पति स्टीफन बेलाफोंटे के साथ रोज पांच बार सेक्स करती हैं। ब्राउन का कहना है कि उनके सफल वैवाहिक जीवन का राज भी नियमित सेक्स ही है।
पूर्व स्पाइस गर्ल ब्राउन का कहना है कि उनकी 34 वर्षीय स्टीफन के साथ शादी में तीन साल बाद भी रोचकता सिर्फ इसलिए बरकरार है क्योंकि वो दोनों एक दूसरे से दूर नहीं रहते हैं। ब्राउन बताती है कि वो रोजाना पांच बार सेक्स करती है।
ब्राउन मानती है कि उनके पति बहुत हॉट हैं। वो कहती है कि हम दोनों एक ही उम्र के हैं और हमे एक दूसरे का साथ बेहद पसंद हैं। हम सिर्फ पति-पत्नी ही नहीं बल्कि सबसे अच्छे दोस्त भी हैं।

मनोरंजन

काइली बनेगी कॉलेज गर्ल

ऑस्ट्रेलियन पॉप स्टार काइली मिनॉग चाहती है कि वे एक बार कॉलेज लाइफ का आनंद लें। स्कूल से पास-आउट होकर सीधे ग्लैमर वर्ल्ड में धमाल मचाने वाली काइली अपनी इच्‍छा को पूरा करने के लिए मिनॉग एक यूनिवर्सिटी कोर्स में दाखिला लेने की भी सोच रही हैं। मिनॉग का कहना है कि ग्लैमर वर्ल्ड में कामयाबी के बावजूद वह पढ़ाई करती है और वे न्‍यूयॉके के किसी कॉलेज में दाखिला लेने के बारे में सोच रही हैं। मिनॉग उन हॉलीवुड सेलीब्रिटी में से हैं जो महज 11 साल की उम्र में अपना एक्टिंग करियर शुरू कर दिया था। करियर की शुरुआत वह ऑस्ट्रेलियन सीरियल ‘नेबर्स’ से की थी और महज 18 साल की उम्र में ही एक जाना-पहचाना नाम बन गईं।

माँ बनना चाहती हैं ईवा
मशहूर हॉलीवुड़ अभिनेत्री ईवा लोंगेरिया पारकर और उनके बास्केटबॉल खिलाड़ी पति टोनी पारकर अब अपने परिवार को आगे बढ़ाने के इक्छुक हैं। मगर ईवा के सीरियल 'डेस्पेरेट हाउसवाइव्स' में काम करने के चलते फ़िलहाल वह ऐसा नहीं कर पाएंगे।


टोनी ने एक मैग्जीन को दिए इंटरव्यू में बताया कि " हम इसके बारे में जल्द ही सोच रहे है। मगर इवा अभी "डेस्पेरेट हाउसवाइव्स" में एक साल और काम करेंगी और इसके बाद ही हम इस बारे में विचार कर पाएंगे।
बड़ी फैमिली के बारे में पूछने पर टोनी ने कहा कि "सब ईवा के ऊपर है मुझे इसकी चिंता नही है ( लड़का हो या लड़की)। मेरे लिये दोनो ही प्यारे होगे। "

हॉलीवुड पर छाने को तैयार है मल्लिका
मल्लिका शेरावत काफी समय से किसी बॉलीवुड फिल्म में नज़र नहीं आई हैं क्योंकि वह अपने हॉलीवुड प्रोजेक्ट्स में बिजी हैं।

मल्लिका ने हाल ही में दो हॉलीवुड फिल्मों 'हिस्स' और 'लव बराक' की शूटिंग पूरी की है और अब लगता है उन्हें आगे भी फुर्सत नहीं मिलने वाली है क्योंकि खबर है कि मल्लिका जल्द ही हॉलीवुड ऐक्ट्रेस सलमा हेयक के साथ एक हॉलीवुड फिल्म में काम करने जा रही हैं।
यह एक महिला आधारित फिल्म होगी जिसमें मल्लिका केंद्रीय भूमिका निभाएंगी|सलमा ने कांस फिल्म फेस्टिवल के दौरान मल्लिका की फिल्म हिस्स देखी थी और उनकी एक्टिंग से काफी इंप्रेस हो गईं और अपनी फिल्म में काम करने का न्यौता दे दिया।

गुरुवार, 17 जून 2010

कार्टून

छोटा सा प्रयास

इम्प्रेशन का है जमाना
स्कूल एजुकेशन कम्पलीट होते ही स्टूडेंट्स में कॉलेज का क्रेज होता है। क्या पहने... कौन-सा बैग ले जाएं... हेयर कटिंग कैसी हो... कोर्स ज्यादा कठिन तो नहीं होगा... जैसी कई कशमकश स्टूडेंट्स के मन में होती है। आखिर हो भी क्यों न, फर्स्ट इम्प्रेशन इज द लास्ट इम्प्रेशन जो होता है। ऎसे में कोई कमी न रह जाए, इसलिए स्टूडेंट्स कई तैयारियां कर रहे हैं।
हर स्टूडेंट्स की आंखों में कॉलेज के पहले दिन के लिए कई सपने होते हैं। इन सपनों को वे कॉलेज के पहले दिन से ही महसूस करने लगते हैं। दोस्तों और टीचर्स पर अच्छा इम्प्रेशन पड़े, इसलिए वे इस दिन को यादगार और सबसे खास बनाना चाहते हैं। इन दिनों अधिकांश 12वीं पास स्टूडेंट्स कॉलेज की तैयारियों में जुट गए हैं। कहीं कोई पैरेंट्स से गिफ्ट मिली बाइक को संवारने में लगा हुआ है तो कहीं गल्र्स अपनी अटे्रक्टिव डे्रस और स्मार्टनेस से सबको आकर्षित करने की प्लानिंग कर रही है। ऎसा ही कुछ माहौल इन दिनों हर घर में देखने को मिल रहा है।

दोस्त बनाने के लिए नेट सर्च
स्टूडेंट निखार अग्रवाल कॉलेज के पहले दिन के लिए काफी एक्साइटेड हैं। वे कहते हैं मैं इसी सोच में हूंकि दोस्त कैसे बनाऊंगा। दोस्त बनाने की नई तकनीक के लिए मैं नेट में सर्चआउट कर रहा हूं, क्योंकि फर्स्ट इम्प्रेशन लास्ट इम्प्रेशन होता है। मैं पहली मुलाकात में ही दोस्तों को इम्प्रेस कर दूंगा।

ड्रेस करवा रही हूं डिजाइन
मुझे नई-नई डे्रसेस पहनने का शौक है, इसलिए मैं अटे्रक्टिव डे्रसेस खरीद रही हूं। यह कहना है अदिति निगम का। वे कहती हैं कॉलेज के फर्स्ट डे के लिए मैंने स्पेशल डे्रस डिजाइन करवाई है और उसमें खास वर्क करवाया है, ताकि मैं सबसे अलग दिखूं।

ले रही हूं कोर्स की जानकारी
स्टूडेंट अरवा सैफी का कहना है कि क्लास में पहले ही दिन टीचर को इम्प्रेस करने के लिए मैं अपने कोर्स की पूरी जानकारी ले रही हूं, इसलिए जनरल नॉलेज की बुक से तो नॉलेज बढ़ा ही रही हूं, साथ-साथ अपने कोर्स की भी तैयारियों में जुट गई हूं, ताकि टीचर्स को प्रभावित कर सकूं।

हर चीज होगी अटे्रक्टिव
कॉलेज के पहले दिन यदि सब कुछ नया-नया हो तो काफी अच्छा लगता है, इसलिए मैं हर चीज नई खरीदने वाला हूं। बैग, मोबाइल, जींस-टीशर्ट यहां तक कि मेरा पेन-डायरी भी सबसे डिफरेंट होगा। ये कहना है ललित पाटीदार का।

एक्साइटेड हूं कॉलेज के लिए
कॉलेज जाने के लिए एक्साइटेड दीक्षा अग्रवाल की कई तैयारियां एक साथ चल रही हैं। डे्रस तो डिसाइड कर ली है, लेकिन हेयर कटिंग को लेकर काफी कशमकश में हूं। वे बताती हैं कि इसके लिए मैं मैगजीन और नेट का सहारा ले रही हूं। इससेकुछ नई हेयर स्टाइल के बारे में मालूम कर रही हूं।

कैसे होंगे नए दोस्त
सुरूचि माहेश्वरी को उस पल का इंतजार है, जब वे अपनी नई स्कूटी से कॉलेज जाएंगी। वे कहती हैं कि मैं और मेरी दोस्त दोनों मेरी स्कूटी से कॉलेज जाएंगे। पैरेंट्स द्वारा गिफ्ट की हुई स्कूटी से कॉलेज जाने का अलग ही मजा होगा। मैंने अपने लिए ढेर सारी एसेसरीज भी खरीदी है।


...तो रहेंगी नजरें सही
सूरज की पराबैंगनी किरणों (अल्ट्रा वाएलेट) से बचने के लिए हम शरीर पर क्रीम लगते हैं। इन किरणों से त्वचा के जलने का डर रहता है। साथ ही समय से पहले बुढ़ापा आने और कैंसर होने का खतरा रहता है। लेकिन, बहुत से लोग यह नहीं जानते कि पराबैंगनी किरणें आंखों को गंभीर और संभवत: अपरिवर्तनीय नुकसान पहुंचा सकती हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार त्वचा के मुकाबले आंखें पराबैंगनी किरणों के प्रति दस गुना ज्यादा संवेदनशील होती हैं। इन किरणों से सबसे ज्यादा खतरा बच्चों को होता है क्योंकि व्यस्कों के मुकाबले इनकी आंखों की पुतली बड़ी होती है और लैंस काफी साफ होते हैं जिससे दृष्टिपटल (रेटिना) में 70 प्रतिशत ये किरणें पहुंचती हैं। इस शोध के बाद वैज्ञानिक चाहते हैं कि चाहे गर्मी या सर्दी का मौसम हो, बच्चों और बड़ों को सूरज की तीखी नजर से बचने के लिए धूप का चश्मा पहन लेना चाहिए। यहां तक कि बादल छाए होने के बावजूद किरणों द्वारा आंखों को नुकसान पहुंचाने का खतरा रहता है, इसलिए ऎसे मौसम में भी चश्मा लगाकर रहना चाहिए। वैज्ञानिकों के अनुसार गर्मियों में पांच से छह घंटे धूप में रहने से उम्र से सम्बन्घित "मैक्युलर डीजेनेरेशन" का खतरा 50 प्रतिशत रहता है, जो अंधेपन के लिए जिम्मेदार होता है।


छोटा सा प्रयास, प्रॉफिट बड़ा
यदि हम जागरूक हो जाएं तो प्रतिदिन निकलने वाले लगभग हजारों टन कचरे को भी उपयोगी बनाया जा सकता है। बस आवश्यकता है एक पहल की। मेट्रो सिटीज में एक स्वयं सेवी संस्था डेली डम्प ने अनोखा अभियान चलाया है।

घरों से प्रतिदिन निकलने वाले कचरे को कम्पोस्ट खाद में बदलने जुटी है। इसके लिए संस्था ने घर-घर आकर्षक गमले बांटे हैं। लोगों से कचरे को इन्हीं गमलों में फेंकने अपील की है। लोग कचरे के सुनियोजन के प्रति जागरूक हों, इसलिए संस्था घर-घर जाकर कम्पोस्ट खाद को खरीदने का काम भी कर रही है। जबलपुर में भी प्रतिदिन लगभग 400 टन कचरा निकलता है। अगर घरों में कंपोस्ट खाद बनाने की मुहिम छेड़ दी जाए तो न केवल कचरे के विनष्टीकरण की प्रक्रिया से हमें निजात मिलेगी। शहर को साफ-सुथरा भी बनाया जा सकेगा।

दो डस्टबीन एक गमला

घर में मुख्यत: तीन प्रकार का कचरा निकलता है, रद्दी कागज, पालीथीन के बैग, और किचन का वेस्ट। तीनों समस्याओं का निदान हमारे पास है, बस जरूरत है जागरूक बनने की। अगर हम प्रतिदिन खाद्य सामग्री के साथ आने वाली पॉलीथीन को एक बकेट में एकत्र करते जाएं तो कचरा नहीं फैलेगा। दूसरे बकेट में कागज की रद्दी को एकत्र कर लें तो कचरा फैलेगा ही नहीं और महीने में पेपर के साथ बेचने पर धनार्जन भी होगा। किचन में निकलने वाले सब्जी के छिलके आदि को गमले में डालकर रखें, इससे आपको बेहतर कम्पोष्ट खाद मिलेगी जो आपके घर के पेड़-पौधों में डालने के काम आएगी।

हो जाएगी रीसाइकि्लंग

हम पॉलीथीन को यहां-वहां न फेंककर यदि घर पर एकत्र करेंगे और रद्दी खरीदने वाले को दे देंगे तो कचरा नहीं फैलेगा और रीसाइकि्लंग के माध्यम से इसका बेहतर उपयोग हो जाएगा। पालीथीन सड़ता नहीं है जिसके कारण पानी जमीन के अन्दर नहीं जा पाता जिसके कारण जमीन की उर्वराशक्ति कम होती जाती है। इसे जलाने पर हानिकारक गैसें निकलती है जो हमारे और पर्यावरण दोनों के लिए घातक होती हैं। यदि हमने पालीथीन को एकत्र करना शुरू कर दिया तो यकीन मानिए कुछ महीनों में ही आपको अपने आस-पास स्वच्छता दिखाई देने लगेगी।

नहीं होंगी चोक नालियां

आधुनिकता के चलते पालीथीन का उपयोग दिन-ब-दिन बढ़ता ही चला जा रहा है। यह हमारे लिए जितनी उपयोगी है उतने ही इसके दुष्परिणाम भी हैं। यदि हम जागरूकता का परिचय देंगे तो इस समस्या से निजात मिल जाएगी। पालीथीन को घर पर एकत्र कर रद्दी वाले को देने की पहल से बरसात में सड़कों पर 2 से 3 फिट तक पानी नहीं भरेगा।

समस्याएं

- प्रदूषण को बढ़ावा
- नालियों में पानी जमा होने से गंदगी का फैलना
- मच्छरों की संख्या बढ़ना
- जल प्लावन की स्थिति निर्मित होना
- बीमारियों का खतरा बढ़ता है
- जमीन के अन्दर नहीं जा पाता पानी

ऎसे हो सकता है निदान

- हर व्यक्ति करे कचरे का सही प्रबंधन
- कचरे को सुनियोजित तरीके से करें डम्प
- पालीथीन को एकत्र कर लें
- कागज को एकत्र कर लें
- घर से निकले अपशिष्ठ को नाली में नहीं डालें
- कचरा भी बन सकता है उपयोगी

समस्याओं का हल नगर-निगम प्रशासन को कोसने से नहीं निकलेगा, बल्कि इसके लिए आम जनता को जागरूकता का परिचय देना होगा। लोगों के एक छोटे से प्रयास से प्रदूषण में कमी आएगी।

प्रो. पी. के सिंघल, विभागाध्यक्ष, बायोसाइंस डिपार्टमेंट

बुधवार, 16 जून 2010

प्रेमियों का मेला

लैला-मजनू की मजार, जहां लगता है प्रेमियों का मेला
भारत-पाकिस्तान की सरहद पर बिंजौर गांव में एक मजार पर दिन ढलते ही कव्वाली की धुनों के बीच सैकड़ों युगल अपने प्रेम के अमर होने की दुआ मांगते देखे जा सकते हैं। यहां हर साल एक मेला लगता है जिसमें आने वालों को पूरा यकीन है कि उनकी फरियाद जरूर कुबूल होगी।

लैला-मजनू की दास्तान पीढ़ियों से सुनी और सुनाई जा रही है। कहा जाता है कि लैला और मजनू एक दूजे से बेपनाह मोहब्बत करते थे लेकिन उन्हें जबरन जुदा कर दिया गया था। यहां के लोग इस मजार को लैला-मजनू की मजार कहते हैं। हर साल 15 जून को यहां सैकड़ों की तादाद में लोग पहुंचते हैं क्योंकि यहां इस दौरान मेला लगता है।
यह मजार राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले में है। पाकिस्तन की सीमा से यह महज दो किलोमीटर की दूरी पर है। इस साल भी यहां सैकड़ों की संख्या में विवाहित और प्रेमी जोड़े यहां पहुंचे। इस बार मेला मंगलवार को आरंभ हुआ और बुधवार तक चला।
यद्यपि इतिहासकार लैला-मजनू के अस्तित्व से इनकार करते हैं। वे इन दोनों को काल्पनिक चरित्र करार देते हैं। परंतु इस मजार पर आने वालों को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। वे तो बस फरियाद लिए यहां चले आते हैं।
स्थानीय निवासी गौरव कालरा कहते हैं कि हर साल यहां सकड़ों जोड़े लैला-मजनू का अशीर्वाद लेने आते हैं। मैं नहीं जानता कि लैला मजनू थे या नहीं, लेकिन पिछले 10-15 वर्षो में यहां आने वालों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है।
यहां आने वाले सभी मजहबों के लोग होते हैं। कालरा ने बताया कि सिर्फ हिंदू और मुसलमान ही नहीं बल्कि सिख एवं ईसाई भी इस मेले में आते हैं।
यहां आई नवविवाहिता युवती रेखा ने कहा कि हमने सुना है कि यह प्रेम करने वालों का मक्का है और यहां खुशहाल शादीशुदा जिंदगी के लिए यहां एक बार जरूर आना चाहिए। इसलिए मैं भी अपने पति के साथ यहां आई हूं। इस मजार की लोकप्रियता और उत्सुकता को देखते हुए सरकार इस गांव में सुविधाएं बढ़ाने पर विचार कर रही है।

मौज-मस्ती

काम के बीच जरूरी है कुछ मिनट की मौज-मस्ती
अगर आप घंटों तक लगातार काम करते हुए बीच में दो मिनट का भी विराम नहीं ले रहे तो यह भविष्य में आपकी कार्यक्षमता पर बुरा प्रभाव डाल सकता है। यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि काम के बीच कुछ लम्हों का आराम न लेना शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।

अब तक सिर्फ विदेशों में प्रचलित इस अवधारणा ने पिछले कुछ सालों से भारत में भी दस्तक दे दी है। भारत में भी अब कई मल्टीनेशनल कंपनियों में काम के घंटों के बीच कुछ समय कर्मचारियों के मौज-मस्ती और उनका ध्यान दूसरी ओर आकर्षित करने के लिए तय कर दिया है।
गुड़गांव स्थित एक कॉल सेंटर में ऑपरेशन मैनेजर संजय गुलाटी ने भाषा को इस बारे में बताया। संजय के मुताबिक, उनके कॉल सेंटर में अलग से एक रीक्रीएशनल सेंटर भी बनाया गया है, जहां कर्मचारी काम के समय में जाकर अपने पसंदीदा खेल का मजा ले सकते हैं।
संजय ने कहा 12 घंटे लगातार काम करना किसी के लिए भी आसान नहीं है। कंपनी को भी इस बात का अहसास है, इसलिए अलग से एक रीक्रीएशनल सेंटर बनाया गया है, जहां टेबल टेनिस जैसे शारीरिक अभ्यास वाले खेलों से लेकर शतरंज तक की मानसिक कवायद की जा सकती है।
संजय ने बताया कंपनियों में आजकल युवाओं का बोलबाला है। युवाओं को अगर आप इस तरह की किसी गतिविधि के लिए प्रोत्साहित करते हैं तो उनके प्रदर्शन पर सीधा सकारात्मक असर पड़ता है। यह तथ्य हमने अपनी कंपनी में भी देखा है।
मनोवैज्ञानिक डॉ़ विनय मिश्रा भी रिसेस के प्रदर्शन पर सकारात्मक असर की बात को पुष्ट करते हैं। डॉ़ मिश्रा के मुताबिक लगातार एक सा काम दिमाग में एक सा संदेश प्रवाहित करता है और जिससे शिथिलता का अहसास होता है। इस बीच अगर आप एक मिनट के लिए भी उठे और कोई दूसरा काम किया तो दिमाग दोगुनी उर्जा से सरोबार हो जाता है और यह मानसिक उर्जा आपको पूरी तन्मयता से दोबारा काम करने की शक्ति देती है। जितनी देर तक आप दूसरे काम में समय बिताएंगे, आपकी कार्य क्षमता उतनी ही बढ़ेगी।
अमेरिका में कॉरपोरेट कंपनियों के कर्मचारियों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए कई कंपनियों ने मिल कर रिसेस एट वर्क डे की शुरूआत की। पिछले तीन साल से हर वर्ष 17 जून को यह दिवस मनाया जाता है। कंपनियां इस दिन अपने कर्मचारियों को आउटिंग पर ले जाने से लेकर कार्यालय परिसर में सांस्कृतिक और फन से जुड़ी गतिविधियां आयोजित कराती हैं।

खास फोटो


चिड़ियाघर में अपने बच्चों सहित एक शेरनी।

रोमांस

ठोकर खाकर भी बदल सकती है राह
हेलो दोस्तो! कोई अपना व्यवहार क्यों और कब बदल देगा इसका अंदाजा लगाना बड़ा कठिन है। हमारी दुनिया अपनी ही धुन पर चलती है। हममें से अधिकतर लोगों को जब जिस ओर बेहतरी दिखती है बस उसी के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। उस वक्त न तो किसी नैतिकता पर विचार करने की आवश्यकता महसूस होती है और न ही किसी की पीड़ा से कोई मतलब होता है। हर पल हम एक प्रकार की तुलना में ही जीते रहते हैं। जो पलड़ा जितना अपने फायदे की ओर झुका होता है हमारा फैसला भी उसी ओर हो जाता है।

समाज में ऐसे भी बहुतेरे लोग मिल जाएँगे जिन्हें जीवन के किसी एक वक्त जिन विचार, धर्म, स्त्री, पुरुष, बच्चे, भाषा, संस्कृति, रंग साहित्य आदि से नफरत थी उन्हें जीवन के दूसरे मोड़ पर उससे प्यार हो गया। तब जीने के लिए वही नफरत वाली भावना बदलनी पड़ी या कहें कि स्वार्थ के लिए हम कोई भी कदम उठा सकते हैं। किसी को नीचा दिखा सकते हैं। किसी की मासूम भावना का मजाक उड़ा सकते हैं। जिसकी भावना का तमाशा बनाया जा रहा हो उसके लिए सचमुच जीना मुहाल हो जाता है।

ऐसी ही स्थिति में पड़कर रंजन (बदला हुआ नाम) सबसे मुँह छुपाते फिर रहे हैं। दोस्तों के कमेंट ने उन्हें एकांत में ढकेल दिया है। आँसू बहाने के सिवा उनके पास कोई चारा नहीं बचा है। रंजन इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष के छात्र हैं और वह प्रथम वर्ष की एक छात्रा को बेहद पसंद करते थे। नए वर्ष के मौके पर उन्होंने एक लाल गुलाब और नया वर्ष बधाई कार्ड उसे गर्ल्स हॉस्टल भिजवा दिया। तकरीबन एक हफ्ते बाद वह लड़की उन्हें मिली और उस पर खूब चिल्लाई, बुरा-भला कहा और इल्जाम लगाया कि उसने उसे कलंकित किया है जबकि वह ऐसी-वैसी लड़की नहीं है।

रंजन को ग्लानि हुई। यहाँ तक तो कहानी सीधी थी। ऐसा अमूमन होता रहता है। पर उस वक्त रंजन हैरान रह गया जब उसी लड़की के सामने दो-तीन दिनों के भीतर ही एक और लड़के ने प्रस्ताव रखा और वह झट खुशी-खुशी मान गई। लड़की के इस दोहरे व्यवहार ने रंजन को मजाक का पात्र बना दिया। अब कॉलेज के लड़के रंजन को हर वक्त चिढ़ाते रहते हैं। वह लड़की दूसरे लड़के के साथ खूब हँसी-ठिठोली करती घूमती फिरती है। रंजन को समझ में नहीं आता कि वह यह सब कैसे भुलाए। वह उस लड़की के व्यवहार से उपजे हजार सवाल अपने मन से पूछता है पर उसे जवाब नहीं मिलता।

रंजन जी, हम सभी लोग दूसरों का व्यवहार सोच-सोचकर ही परेशान होते हैं। दूसरे ने खास प्रकार का व्यवहार क्यों किया, वह आप नहीं जान सकते। आप उस व्यक्ति की सोच को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं।

हो सकता है वह लड़की उस लड़के को पसंद करती हो। दोनों ही एक-दूसरे को पसंद करते हों पर औपचारिक रूप से ऐलान न किया हो। ऐसे में उसे अपनी एकनिष्ठा एवं पवित्रता साबित करने के लिए उसने आपका प्रस्ताव स्वीकार न किया हो। अपने प्रेमी को अपनी वफादारी जताने का यही तरीका उसे समझ में आया हो। आखिर वह भी एक छोटी लड़की ही है। दूसरी बात यह कि वह उतनी संवेदनशील लड़की नहीं होगी, नहीं तो वह आपसे क्षमा जरूर माँगती। कई बार हम भीतर से ज्यादा मजबूत न हों तो अधिक चीखते-चिल्लाते हैं। मना करने का उसका तरीका गलत था।

आपने अभी जीवन जीना शुरू किया है। पहली बार बिना किसी सलाह-मशविरे के आपने एक फैसला लिया और उस पर अमल किया। वह गलत निकला इसलिए आपको ज्यादा बुरा लग रहा है। यह जीवन है यहाँ न जाने कितनी ऐसी घटनाएँ होंगी जो आपकी अपेक्षा के विपरीत होंगी। इतना हताश होने से काम नहीं चलता।

आप अपने भीतर झाँकें। आपने न तो किसी का मजाक उड़ाया है और न ही किसी का दिल तोड़ा है फिर आप क्यों परेशान होते हैं। आपने बड़ी ईमानदारी से अपनी भावना सामने रखी। वह कोई पाप नहीं है। एक अच्छे इंसान को दुख तो होता है पर शैतानों के लिए मन छोटा करना अक्लमंदी नहीं है। आप अपने दोस्तों से चाहे तो कह दें, उसे जो पसंद था उसके साथ हो ली। चलता है, वे भी हँसकर चुप हो जाएँगे। न भी कहें तो थोड़े ही दिनों में सब भूल जाएँगे। समय हर मर्ज की दवा है। आप मायूस न हों। खूब दिल लगाकर पढ़ें। समय के साथ ही बेहतर रास्ते भी बनते हैं।

खुशबू

एक दुनिया खुशबू की
आम तौर पर बात होती है आँख खोल कर चलने की, लेकिन फिलहाल बात नाक खोल कर चलने की। जी हाँ अक्सर हम देखने-बोलने में इतने मशगूल हो जाते हैं कि सुनना और सूंघना बिलकुल भूल जाते हैं।
जर्मनी के एक शोधार्थी हान्स हाट खुशबूओं पर शोध कर रहे हैं और उन्होंने कई बहुत ही रोचक तथ्य खोज निकाले हैं। हान्स के शोध के लिए उन्हें इस साल पचास हजार यूरो का कम्युनिकेटर पुरस्कार भी मिला है।
हान्स हाट कहते हैं, 'मैं लोगों से कहना चाहता हूँ कि आप सभी के पास सिर्फ आँखे और कान ही नहीं हैं एक नाक भी है, तो इसे इस्तेमाल करें। यही नाक आपको जीवन में ऐसी चीजें दिखाएगी और समझाएगी, जो आपको किसी भी और जगह से मिलना नामुमकिन है।

हान्स हाट ने अपने शोध में कई विषयों को छुआ है। इसमें भय से पीड़ित लोगों को ठीक करना भी शामिल है। हान्स कहते हैं कि इसके लिए जासमीन, मतलब मोंगरे की खुशबू को मिलाकर बनाया गया खास इत्र बहुत मदद कर सकता है। हान्स की टीम ने इस खुशबू को ढूँढ कर पहले ही इसे पेटेंट करा लिया है। सूँघने पर ये गंध फेफड़ों, रक्त और फिर दिमाग में जाती है और अपना असर करती है।
हान्स ने कहा है कि ये गंध दिमाग में वैलियम दवाई जैसा असर करती है और दिमाग को शांत करती है। इस गंध के कोई साइड इफेक्ट्स अभी सामने नहीं आए हैं। वैसे भी गंध मनुष्य सहित कई जीव-जंतुओं के लिए बहुत अहम भूमिका निभाती है। हान्स कहते हैं कि सभी मनुष्यों को खुश रख सके, ऐसी कोई गंध बनाना संभव नहीं।
वे कहते हैं, 'ऐसा बहुत मुश्किल है कि कोई ऐसी गंध बनाई जाए, जो सभी को खुश रखे, जो सभी लोगों में एक जैसी भावना पैदा कर सके, चाहे वो प्रेम की हो या कोई और, या सभी मनुष्यों को आकर्षक बना सके।'
हान्स हाट के शोध में छोटी-छोटी घंटियों जैसे प्यारे सफेद फूलों की अहम भूमिका है। इन फूलों को इंग्लिश में लिली ऑफ द वैली कहते हैं। ये वनस्पति शास्त्र के हिसाब से एस्पेरेगल्स ऑर्डर में आती है। लिली ऑफ द वैली का पूरा पौधा बहुत जहरीला होता है लेकिन इसके फूलों से निकले रसायन का मनुष्य के शरीर पर गहरा असर होता है।
हान्स के शोध में सामने आया है कि इन फूलों की गंध से गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि इनकी गंध से शुक्राणु सीधे अंडाणु से जा मिलता है, 'मनुष्य के शुक्राणु की ऊपरी सतह पर ऐसे हिस्से होते हैं जो गंध पहचान सकते हैं, उसे ले सकते हैं। गंध वाले ये शुक्राणु लिली ऑफ द वैली की गंध पहचान सकते हैं।'
जर्मनी के बोखुम शहर की रुअर यूनिवर्सिटी में शोध के दौरान हान्स ने शुक्राणुओं में ऐसे बीस रिसेप्टर ढूँढे हैं जो गंध पहचान सकते हैं। वे इस बात पर शोध कर रहे हैं कि कौन-सी ऐसी गंधें हैं जो शुक्राणु को तेजी से अंडाणु तक पहुँचने में मदद कर सकती हैं।
वहीं एक और खुशबू है, वह है बनक्षा या बनफसा की, जो प्रोस्टेट कैंसर के सेल्स को बढ़ने से रोक सकती है। यह हान्स हाट के शोध का सबसे नया आयाम है। इससे प्रोस्टेट कैंसर के लिए दवाई बनाने में आसानी हो सकती है। मीठी गंध वाली बनक्षा वनस्पति का यूनानी चिकित्सा पद्धती में खाँसी-कफ या फिर वायरल इन्फेक्शन से लड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
तितलियाँ कैसे सूँघती हैं, इसका शोध करते-करते हान्स हाट खुशबूओं में ऐसे खोए कि उन्होंने एक नई दुनिया अपने लिए खोल ली और कई बीमारियों के उपचार के लिए रास्ता भी।

मंगलवार, 15 जून 2010

हॉलीवुड

सेक्‍स एडिक्‍ट बनी जेनिफर

कपड़े उतारने के कारण हॉलीवुड स्‍टार जेनिफर एनिस्‍टन कई बार खबरों में रह चुकी हैं लेकिन इस बार वह पर्दे पर कपड़े उतारने के कारण चर्चा में हैं । फिल्‍म हॉरीबल बॉसेज में जेनिफर हॉलीवुड एक्‍टर कोलीन फैरेल के साथ काम कर रही हैं । फिल्‍म फ्रेंडस से शोहरत हासिल करने वाली जेनिफर इस फिल्‍म के एक रोमां‍टिक सीन में न्‍यूड नजर आएंगी । इस फिल्‍म में वह एक सेक्‍स एडिक्‍ट महिला का किरदार निभा रही हैं। लोग जो भी कहें लेकिन जेनिफर इस रोल को लेकर बहुत उत्‍साहित हैं ।
दूर के रिश्ते से ही खुश है काइली

पॉप स्टार काइली मिनॉग ने कहा है कि वह अपने प्रेमी और स्पेनिश मॉडल एन्ड्रेस वेलेनकोसो के साथ लंबी दूर के रिश्ते से खुश है। वह खुद को शादीशुदा नहीं समझती। ‘संडे टाइम्स’ के मुताबिक दोनों का करियर उन्हें दूर रखता है। वे अपना भविष्य संवारने में व्यस्त हैं और इस बात से उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती।

काइली कहती है, ‘हम एक-दूसरे से ज्यादा देर तक जुदा रहना नहीं चाहते, लेकिन वह भी अक्सर यात्रा पर रहता हैं और मैं भी। ऐसे में रिश्ता कैसे शुरू हो सकता है?’ ‘कैन नॉट गेट यू आउट ऑफ माय हेड’ जैसी हिट एलबम देने वाली 42 वर्षीय काइली अभी भी निकट भविष्य में शादी करने के बारे में तय नहीं कर पाई हैं।

निर्वस्त्र होने की कीमत 5 लाख डॉलर

हॉलीवुड की पूर्व मॉडल केली ब्रूक एडल्ट मैग्जीन प्लेब्वॉय के पुरुष संस्करण के लिए न्यूड फोटो शूट करवाएंगी। वेबसाइट द सन डॉट को डॉट यूके के अनुसार 30 वर्षीय केली ब्रूक इस महीने के अंत में इस फोटो शूट में हिस्स लेंगी। यह फोटो शूट भूमध्यसागर के किसी इलाके में होगा। इस फोटोशूट के लिए उन्हें 5 लाख डॉलर दिया जाएगा। मैग्जीन का यह अंक अक्टूबर में प्रकाशित होगा। फिलहाल केली रग्बी स्टार डैनी चिपरयानी के साथ डेट कर रही हैं। ऐसा नहीं है कि केली पहली बार ऐसा कर रही हैं वह इसके पहले भी अपनी आने वाली फिल्म फिरान्हा में भी न्यूड सीन दे चुकी हैं। हॉलीवुड सुंदरियों के लिए यह कोई नई बात नहीं है। इस मैगजीन के लिए पामेला एंडरसन भी न्यूड फोटोशूट करवा चुकी हैं।

मैं बहुत रोमांटिक हूं:कैमरून

हॉलीवुड अभिनेत्री कैमरून डियाज का कहना है कि वह बहुत रोमांटिक हैं और हमेशा आज में जीने में विश्वास रखती हैं। कैमरून ने कहा कि मैं रोमांटिक हूं। मुझे रोमांस पसंद है,मैं आज को जीने में भरोसा करती हूं और कभी भी भविष्य कि चिंता में अपना आज नहीं बर्बाद करती| डियाज इन दिनों एलेक्स रॉडरिग्ज के साथ डेट कर रही हैं|

कमाल की दुनिया

‘मेरे दिल में है इक बात..’
पी.एल.संतोषी, यानी आज के ख्यातनाम फिल्मकार राजकुमार संतोषी के पिता, अपने दौर के कामयाब लेखक, निर्देशक और गीतकार थे। उनका कमाल यह था कि लोग फिल्म भले याद न रख पाए हों, पर उनके गीत कभी नहीं भूल पाएंगे..

ये जो फिल्मी दुनिया है न, बड़े कमाल की दुनिया है। बहुत सारी बातें तो हम लोग यहीं बैठ कर कर चुके हैं। आपने कुछ और भी सुन रखी होंगी। मतलब कमाल है। कभी अर्श पर तो कभी फर्श पर। और कभी-कभी तो उससे भी बदतर।

अब जैसे मैं एक लेखक-निर्देशक-गीतकार के लिखे गीत सुनते-सुनते कई दिन से तैयारी कर रहा था कि अपन लोग बैठ कर किसी दिन इनकी बात करेंगे। गीत ऐसे कि जिन्हें सुन-सुनकर आज भी मन में रोमांच पैदा होता है। चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। कभी-कभी सीधे दिल और गीत का रिश्ता बन जाता है। इससे बड़ी सफलता और क्या हो सकती है कि पचासों साल बाद भी नई-पुरानी पीढ़ी इन गीतों को गुनगुना रही है।

वह अपने दौर का एक ऐसा कामयाब फिल्मसाज था, जिसकी फिल्मों में सिनेमा घरों की टिकट खिड़की पर दौलत की बरसात हुई, लेकिन एक दिन उसे ख़ुद दिवालिया होना पड़ा। जिसने जमाने को अपने हुनर से दीवाना बना दिया था, एक दिन ख़ुद दीवाना बनकर अपनी ख़ुदी को नीलाम कर बैठा।

आखि़र ऐसा कैसे और क्यों हुआ? इससे पहले कि हम इस सवाल के जवाब की तलाश में निकलें, जरा इन महाशय के कुछ ख़ूबसूरत नग्मे न सुन लें। मुझे यकीन है इनसे आगे के सफर के लिए एक ख़ुशगवार रास्ता बन जाएगा।

‘आना मेरी जान-2, संडे के संडे’ (चितलकर-शमशाद बेगम), ‘जवानी की रेल चली जाए रे’ (गीता राय (दत्त), चितलकर-लता), और ‘मार कटारी मर जाना, वे अंखियां किसी से मिलाना ना’(अमीरबाई कर्नाटकी- फिल्म- शहनाई 1947), ‘किस्मत हमारे साथ है, जलने वाले जला करें’ (खिड़की 48), ‘जब दिल को सताए ग़म-2, छेड़ सखी सरगम’, (लता-सरस्वती राणो) ‘कोई किसी का दीवाना न बने’ (लता), और ‘बाप भला ना भैया, भैया सबसे भला रुपैया’ (सरगम- 1950), ‘जो दिल को सताए, रुलाए, जलाए, ऐसी मोहब्बत से हम बाज आए’ और ‘महफिल में जल उठी शमा परवाने के लिए / प्रीत बनी है दुनिया में जल जाने के लिए’ (लता- निराला-50), ‘तुम क्या जानो, तुम्हारी याद में, हम कितना रोए’, (लता- शिनशिनाकी बूबलाबू-52), ‘अच्छा होता जो दिल में तू आया न होता / हाय रुलाना था गर’ ‘हम पंछी एक डाल के’ (रफी-आशा), ‘लो छुप गया चंद, बहे हवा मंद-मंद’ (आशा भोंसले) और ‘एक से भले दो, दो से भले चार, मंजिल अपनी दूर है, रस्ता करना पार’ (हम पंछी एक डाल के -57), ‘ओ नींद न मुझको आए, दिल मेरा घबराए, चुपके-चुपके कोई आ के, सोया प्यार जगाए’, ‘कोई आ जाए-2, बिगड़ी तक़दीर बना जाए’ और ‘मेरे दिल में है इक बात, कह दो तो भला क्या है’ (सम्राट चंद्रगुप्त -58)।

सच कहिए, आया न मजा? ख़ैर, आप में से कई लोग तो अब तक जान ही गए होंगे कि हम लोग आज बात करेंगे पी.एल.संतोषी की। अपने दौर के बेहद कामयाब लेखक, निर्देशक और गीतकार। आज के प्रसिद्ध फिल्मकार राजकुमार संतोषी के पिता।
आया बसंत सखी..

संतोषी की कहानी शुरू होती है मध्यप्रदेश की संस्कारधानी जबलपुर से। 7 अगस्त 1916 को जन्म के समय संतोषी को परिवार से नाम मिला प्यारेलाल श्रीवास्तव। सिर्फ हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद ही अपने जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा देने निकल पड़े बंबई की तरफ।

बीसवीं सदी का यह एक ऐसा दौर था, जब गूंगे सिनेमा ने नया-नया बोलना सीखा था। इसके बोलने में जादू था। ऐसा जादू जिसकी जद में छोटे-बड़े, अमीर-ग़रीब सब आ चुके थे। संतोषी की मंजिल भी यही थी। वे फिल्मों में अभिनय के साथ लेखक, गीतकार, निर्देशक, निर्माता सब कुछ बनना चाहते थे। उनके सौभाग्य से बंबई में उन्हें नरगिस की मां जद्दन बाई का साथ मिल गया। वे उनके निजी सहायक बन गए।

जद्दन बाई कुछ अरसा पहले ही कलकत्ता छोड़कर बंबई आई थीं। गाने-बजाने का काम छोड़कर फिल्में बनाने और अपने साथ अपनी नन्ही सी बेटी नरगिस, जिसका नाम उस व़क्त था बेबी फातिमा था, का भविष्य बनाने। जद्दन बाई के घर मुल्क के बड़े-बड़े लेखकों, शायरों और हर तरह के फनकारों की महफिलें लगभग हर शाम जमती थीं।

फिल्में भी बन रही थीं। इन्ही में से एक फिल्म ‘मोती का हार’(1937) में संतोषी को भी एक छोटी भूमिका मिल गई। इस फिल्म का संगीत, निर्माण, निर्देशन सब कुछ जद्दन बाई का ही था। फिल्म में नरगिस ने बेबी रानी के नाम से बाल कलाकार की भूमिका निभाई थी और संतोषी ने अभिनय के साथ फिल्म के कुछ गीत भी लिखे थे।

एक गीत था ‘मन के वासी, मन में आओ / मेरे हृदय की वीणा पर ऐसा गीत सुनाओ’ और दूसरा ‘ऐसा बाग़ लगाया, फूलों में जिसके छुपकर, ये मेरा मन मुस्काया’।

इसी साल जद्दन बाई की ही एक और फिल्म ‘जीवन स्वप्न’ के चार गीतों के गीतकार के रूप में संतोषी का नाम मिलता है। इसके बाद वे रणजीत मूवीटोन पहुंच गए। यहां से वे बॉम्बे टाकीज की फिल्मों में गीत लिखने पहुंच गए।

1942 में रिलीज हुई बॉम्बे टाकीज की फिल्म ‘बसंत’ के लिए लिखे संतोषी के गीतों ने उस दौर में धूम मचा दी। महान बांसुरी वादक पन्नालाल घोष (पर्दे के पीछे से अनिल बिस्वास भी साथ में) के गीतों ने भारी धूम मचाई। पारुल घोष और साथियों के गाए ‘तुमको मुबारक हो ऊंचे महल ये/ हमको तो प्यारी, हमारी गलियां’, ‘कांटा लागो रे साजनवा, मोसे राह चली न जाय’, ‘आया बसंत सखी, बिरहा का अंत सखी’ जैसे गीत आज भी संगीत रसिकों के लिए कर्णामृत का काम करते हैं।

1946 में पहली बार वे निर्देशक-गीतकार के रूप में सामने आए। फिल्म थी ‘हम एक हैं’। इस फिल्म की ख़ास बात यह है कि इसी फिल्म से देव आनंद, अभिनेता रहमान और अभिनेत्री रेहाना पहली बार पर्दे पर आए थे। इस फिल्म की दूसरी ख़ास बात है गुरु दत्त, जो इस फिल्म में बतौर निर्देशक सतोषी के पांचवें सहायक थे और साथ ही फिल्म की कोरियोग्राफी मतलब नृत्य निर्देशन भी उन्होंने ही किया था।

1947 में फिल्मिस्तान के लिए बनाई ‘शहनाई’ तो सुपरहिट साबित हुई। इसके गीत-संगीत (सी.रामचंद्र और संतोषी) ने तो संगीत का एक नया ट्रेंड ही चालू कर दिया। संतोषी के इन हिट गीतों में बहुत ही चलताऊ शब्दों की भरमार थी, लेकिन उस दौर के साथ इन गीतों का ऐसा तादात्म्य पैदा हुआ कि लोगों में उनका असर आज भी ख़त्म नहीं हुआ है।

‘आना मेरी जान संडे के संडे’ तो आज भी बहुत लोकप्रिय है। इस गीत की एक और मजेदार बात यह है कि फिल्म ‘शहनाई’ में यह गीत हास्य अभिनेता महमूद के पिता मुमताज अली पर फिल्माया गया है। इसमें वे चार्ली चैप्लिन वाली मुद्राओं में इस गीत को गाते हुए दिखाई देते हैं।

इस फिल्म के 21 साल बाद 1968 में महमूद पर अपने पिता की तरह ही चार्ली चैप्लिन वाले अंदाज में इसी गीत से प्रेरित होकर रची गई सिचुएशन और शब्दों वाला गीत फिल्माया गया है। फिल्म ‘औलाद’ में मन्ना डे-आशा भोंसले का गाया ‘जोड़ी हमारी, जमेगा कैसे जानी’ सुनकर देखें। वही हिंदी-इंगलिश की खिचड़ी, वही मुहावरा। ‘तुमको भी मुश्किल, मुझे भी परेशानी / बात मानो संैया बन जाओ, हिंदुस्तानी’। उधर असल गीत में है ‘मैं धरम करम की नारी / तू नीच विदेसी अभिचारी’।

महमूद और उनके ख़ानदान से संतोषी का बड़ा मजबूत रिश्ता रहा है। संतोषी की फिल्मों में अक्सर मुमताज अली दिखाई दे जाते थे और महमूद ख़ुद उस व़क्त उनके ड्राइवर थे। महमूद की जिंदगी पर संतोषी का हर अच्छा-बुरा असर बाद में दिखाई भी दिया। जिसकी कभी और बात करेंगे।

अभी तो इतना और तो बता ही सकता हूं न कि महमूद ने इस गीत की ही तरह एक और गीत, बल्कि पूरी फिल्म संतोषी के गीत से प्रभावित होकर क्रिएट की। फिल्म ‘सरगम’(50) में संतोषी ने लिखा था ‘बाप भला न भैया, भैया सबसे भला रुपैया’।

महमूद ने 26 साल बाद अपनी फिल्म ‘सबसे बड़ा रुपैया’ में ख़ुद ही गाया ‘ना बीवी न बच्चा, ना बाप बड़ा ना भैया/ द होल थिंग इज दैट कि भैया, सबसे बड़ा रुपैया’। इसके 30 साल बाद इसी गीत को आज के दौर के कामयाब संगीतकार विशाल-शेखर ने उठाकर अपनी फिल्म ‘ब्लफ मास्टर’ में नए सिरे से सजाकर इस्तेमाल किया और इसे अभिषेक बच्चन पर फिल्माया गया है।

इसी तरह अगर आप थोड़ा सा और याद करें, तो आपको याद आएगा कि फिल्म ‘प्यार किए जा’ (66) में महमूद एक जगह अपने डायलॉग में पिता (ओमप्रकाश) से कहता है कि वह एक नहीं अनेक प्रोडक्शन कंपनीज खोलेगा। इनके नाम होंगे ‘हा-हा प्रोडक्शन, हो-हो प्रोडक्शन, ही-ही प्रोडक्शन। संतोषी ने 1955 में इस नाम की एक फिल्म बनाई थी।

ख़ैर तो किस्सा कोताह यह कि शहनाई के पीछे-पीछे ‘खिड़की’ (48), ‘सरगम’ (50) जैसी हिट फिल्में बनाकर संतोषी ने बाजार में अपना सिक्का जमा लिया। निर्माता उसे फिल्में बनाने और गीत लिखने के लिए मुंहमांगे पैसे देते और संतोषी? वे उस पैसे में आग लगा देते। कैसे? अभी दो मिनट बाद बताता हूं। पहले जरा बतौर निर्देशक उनकी कुछ और फिल्मों को याद कर लें।

‘अपनी छाया’ (50),‘छम छमा छम’(52), शिनशिनाकी बूबलाबू’ (52), चालीस बाबा एक चोर (53), ‘सबसे बड़ा रुपैया’ (55), ‘हा-हा,ही-ही,हू-हू’ (55), ‘हम पंछी एक डाल के’ (57), ‘गरमा गरम’(57), ‘पहली रात’(59), ‘नई मां’(60), ‘बरसात की रात’(60), ‘ऑपेरा हाऊस’ (61), ‘हॉलीडे इन बॉम्बे’ (63), ‘दिल ही तो है’(64), ‘क़व्वाली की रात’ (64) और आखि़र में ‘रूप रुपैया’ (68)। इन फिल्मों में से कुछ में उनके और कुछ में अन्य गीतकारों के गीत थे। पटकथा और संवाद लेखक के तौर पर भी उनकी कई फिल्में हैं।

1941 की अशोक कुमार की ‘झूला’ में शाहिद लतीफ और ज्ञान मुखर्जी के साथ मिलकर पटकथा और संवाद लिखे, तो ‘स्टेशन मास्टर’ (42) की कहानी। इस फिल्म में उन्होंने नौशाद के साथ गीत भी लिखे हैं। बतौर संवाद लेखक मुझे उनकी एक उल्लेखनीय फिल्म और याद आती है- राजश्री पिक्चर्स की 1973 की फिल्म ‘सौदागर’। अमिताभ बच्चन और नूतन की इस फिल्म में अगर आपको याद हों तो कुछ अच्छे संवाद थे।

और..
कहने को बहुत कुछ और है। अभी तो सिर्फ कामयाबी के सफर की बात हुई है। नाकामी का दौर अभी बाकी है। उस तबाही की कहानी बाकी है, जिसमें संतोषी अपनी पहली फिल्म की हीरोइन रेहाना की मोहब्बत में ख़ुद को बरबाद कर लेता है। साथ ही संतोषी की भाषा-शैली पर भी तो बात करनी है।

सो करेंगे यह सब अगले हफ्ते। तो बस, अब मैं चला। एक जरूरी काम है। अब आपसे क्या छुपाना। प्यारेलाल संतोषी का कोई फोटो नहीं मिल रहा। यह एक भी बहुत मुश्किल से मिला है। सो बस एक और फोटो ढूंढ़ता हूं अगली बार के लिए। अब इसमें मेहनत-वेहनत की क्या बात है। ये तो आपस की बात है जी। और आपस में तो ऐसा करना ही चाहिए। बल्कि मौका ढूंढ़ के करना चाहिए। सो करता हूं। मतलब चला हूं। जय जय।

पानी चंद्रमा पर मौजूद है

चंदा मामा के पास है पानी का अकूत खजाना


वैज्ञानिकों ने जितना सोचा था उससे 100 गुना ज्यादा पानी चंद्रमा पर मौजूद है। एक नए रिसर्च के मुताबिक पानी का यह खजाना पृथ्वी के इस इकलौते उपग्रह की सतह के अंदर बिखरा पड़ा है।

अमेरिका के वैज्ञानिकों के एक दल ने पाया है कि पहले जितना अनुमान लगाया गया था उसकी तुलना में चंद्रमा के खनिजों में 100 गुना ज्यादा पानी है। वैज्ञानिकों ने यह दावा अपोलो अंतरिक्ष मिशन और अफ्रीका में पाए गए चांद के एक उल्का पिंड के अध्ययन के बाद किया है। वैज्ञानिक जर्नल प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में प्रकाशित खबर में वैज्ञानिकों ने बताया कि चंद्रमा के अंदर पानी हर जगह मौजूद हो सकता है।

वाशिंगटन के कार्नेजी इंस्टीट्यूट के फ्रांसिस मैक क्यूबिन ने इस दल की अगुवाई की। उन्होंने कहा कि 40 साल तक हम मानते रहे कि चांद सूखा है। लेकिन अब हमने पाया कि वहां पर पानी की मात्रा पिछले अध्ययनों की तुलना में दोगुनी है। मैक क्यूबिन ने कहा कि अगर आप वहां की चट्टानों में छिपे पूरे पानी की मात्रा पर गौर करें तो पाएंगे कि पानी की इस मात्रा से पूरे उपग्रह पर एक मीटर मोटी तह बिछाई जा सकती है।

खबर के मुताबिक पानी का यह खजाना आसानी से सुलभ नहीं है, बल्कि यह चंद्रमा के तल के भीतर की चट्टानों में समाहित है।

मौत की कल्पना

मौत से चलता है इनका जीवन
जीवन की तुलना में मौत की कल्पना अत्यंत भयावह होती है। लेकिन दुनिया में एक वर्ग ऐसा भी है जिसकी आजीविका मौत से जुड़ी है।

भारत सहित विभिन्न देशों में कुछ लोग अपनी रोजी रोटी के लिए शवों के अंत्येष्टि प्रबंधन पर निर्भर हैं। ऐसे लोगों के जज्‍बे और उनके काम की सराहना करने के लिए दुनिया के कई देशों में 16 जून की तारीख उनके नाम समर्पित है। अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों में यह दिन मार्टिशियन डे के रूप में मनाया जाता है। श्मशान घाट का संचालन करने वाले लोग भारत में भी हैं। लेकिन हमारे यहां ऐसा कोई खास दिन नहीं है। हालांकि, शवों के अंतिम संस्कार के लिए आज भी सारा प्रबंध यही लोग करते हैं।
राष्ट्रीय राजधानी स्थित निगमबोध घाट पर शवों के अंतिम संस्कार का प्रबंध करने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि यहां अपने प्रियजन की मौत पर प्रलाप कर रहे लोग उनके अंतिम संस्कार के लिए आते हैं। हमने अंतिम संस्कार की औपचारिकताएं पूरी की हैं, लेकिन हमें हेय दृष्टि से देखा जाता है। कोई हमारे पास नहीं आना चाहता।
निगमबोध घाट के ही एक कर्मचारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा कि हम लोग रोजी रोटी के लिए यह काम करते हैं। कभी कभी तो सब कुछ छोड़ कर भाग जाने का मन करता है।
प्रबंध के बारे में पर्यवेक्षक ने कहा कि जो लोग शव ले कर आते हैं, हम उनसे पहले फार्म भरवाते हैं। फिर रजिस्ट्रेशन होता है और उन्हें लकड़ी की पर्ची दी जाती है। हमारा काम बस इतना ही है। इसके बाद का सारा काम पंडित करवाते हैं। कर्मचारी ने बताया कि यहां करीब 40 से 45 कर्मचारी हैं। हम यहां की देखरेख और साफ सफाई का काम भी करते हैं। इस केंद्र का संचालन आर्य समाज सोसाइटी करती है।
वेतन के बारे में पूछे जाने पर पर्यवेक्षक ने बताया कि सबका वेतन अलग-अलग है। लेकिन हर माह औसतन चार हजार रुपये मिल जाते हैं। उन्होंने कहा, चार हजार रुपये में घर नहीं चल पाता। हर दिन शवों से सामना करने पर कैसा महसूस होता है, इस पर पर्यवेक्षक ने कहा कि शुरू में तो अजीब लगता है, दहशत होती है। लेकिन बाद में हम इसके आदी हो जाते हैं। बल्कि ऐसा कहिए हम संवेदनहीन हो जाते हैं। हम इसे छोड़ नहीं सकते क्योंकि पेट का सवाल है। राजधानी के एक कब्रिस्तान में कब्र खोदने का काम करने वाले एक व्यक्ति ने बताया मन तो नहीं होता, लेकिन क्या करें। बच्चों की कब्र खोदना आज भी बहुत तकलीफदेह होता है।
अमेरिका की एक वेबसाइट के अनुसार दुनिया भर में श्मशान घाट पर काम करने वाले लोगों ने अब इसे एक व्यवसाय अथवा पेशे के रूप अपना लिया है। यह काम आसान नहीं है और कई संगठन भी अब इस काम के लिए आगे आ रहे हैं। वेबसाइट के अनुसार ऐसा माना जाता है कि अमेरिका का पहला मार्टिशियन विलियम रसेल था। जिसने 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अंत्येष्टि प्रबंधन का काम शुरू किया। ताबूत बनाने वाले रसेल ने इस काम को 1688 में व्यापार का रूप दिया। रसेल को अमेरिका में पहले अंत्येष्टि निदेशक के रूप में जाना जाता है।
भारत में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। सबकी अपनी अपनी परंपराएं है। इन परंपराओं के निर्वाह में अंत्येष्टि प्रबंधकों का कहीं न कहीं योगदान अवश्य रहता है।

सोमवार, 14 जून 2010

लतीफ़े

दो चींटियां एक डिब्बे पर रेंग रही थीं। अचानक एक चींटी डिब्बे को जोर-जोर से काटने लगी।
दूसरी ने पूछा, ‘ऐसा क्यों कर रही हो?’
पहली चींटी ने कहा, ‘तुमने पढ़ा नहीं, डिब्बे पर लिखा है, यहां काटिए।’

कयामत के दिन देवदूत ने सभी लोगों से अपने पापों को एक पर्चे में लिखने को कहा।
थोड़ी देर बाद पीछे से एक आवाज आई ‘एक्स्ट्रा शीट प्लीज।’

जज, (चोर से) ‘तुमने एक हफ्ते में 15 चोरियां कैसे की?’
चोर, ‘हुजूर दिन-रात मेहनत करके।’

जेलर (चोर से), ‘तुम्हारा कोई रिश्तेदार तुमसे मिलने क्यों नहीं आता?’
चोर (हंसते हुए), ‘दरअसल, वो सब जेल में ही हैं।’

वीरू (जय से), ‘कल तुझे मेरे मोहल्ले के दस लड़कों ने बहुत बुरी तरह पीटा।
फिर तूने क्या किया?’
वीरू, ‘मैंने उन सभी से कहा कि कि अगर हिम्मत है, तो अकेले-अकेले आओ।’
जय, ‘फिर क्या हुआ?’
वीरू, ‘होना क्या था, उसके बाद उन सबने एक-एक करके फिर से मुझे पीटा।’


घर की पालतू बिल्ली के अचानक मर जाने पर नौकर जोर-जोर से रो रहा था।
उसे देखकर मालिक ने पूछा, ‘‘अरे! बिल्ली के लिए तुम इतना क्यों रो रहे हो?’’
नौकर : ‘‘क्या कहूं साहब, मैं तो लुट गया। अब सारा दूध पीने के बाद मैं किसका नाम लगाऊंगा।’’

रास्ते में उसे जलेबी की दुकान दिखी।
उसने हलवाई से पूछा, ‘‘वॉट इस दिस।’’
हलवाई, ‘‘दिस इज राउंड-राउंड एंड स्टॉप।’’

सुबह-सुबह साहब बाग में टहल रहे थे कि उनके एक डॉक्टर दोस्त मिल गए और बोले, ‘‘सुबह-सुबह बाग में घूमना सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है। आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।’’ ‘‘खाक अच्छा है।’’ साहब झल्लाकर बोले। डॉक्टर दोस्त ने पूछा, ‘‘आप नाराज क्यों हो रहे हैं? क्या बात है?’’ साहब बोले, ‘‘अरे, मैं तो रात से ही यहां घूम रहा हूं। पत्नी ने रात से दरवाजा नहीं खोला।’’

यात्री, ‘‘यह बस कहां जाएगी?’’ कंडक्टर, ‘‘सड़क पर।’’ टीचर, ‘‘तुम कहां जाना पसंद करोगे?’’ बच्चे, ‘‘जहां स्कूल न हो।’’


एक आदमी बहरे व्यक्ति से बातें कर रहा था। इस पर बहरा बोला, ‘‘भाई साहब, आप इतनी देर से मुझसे बातें कर रहे हैं। मैं बहरा हूं।’’ आदमी बोला, ‘‘भाई साहब, मैं आपसे बातें नहीं कर रहा, बल्कि च्युंगम चबा रहा हूं।’’

पति, ‘चलो आज चाय पीने कहीं बाहर चलें।’ पत्नी,‘क्यों, तुम्हें लगता है मैं चाय बनाते-बनाते थक गई हूं?’ पति, ‘नहीं, दरअसल मैं कप धोते-धोते हुए तंग आ गया हूं।’

पहला, ‘मान लो कोई रेलगाड़ी तुम्हारी तरफ तेजी से आ रही हो, तो उस वक्त तुम क्या करोगे ?’ दूसरा, ‘मैं हैलीकॉप्टर में बैठ कर फुर्र हो जाऊंगा।’ पहला, ‘तुम्हारे पास हैलीकॉप्टर कहां से आएगा?’ दूसरा, ‘वहीं से, जहां से तुम्हारी रेलगाड़ी आएगी।’

टीचर, ‘तुम दिन में आठ घंटे सोया करो।’ छात्र, ‘ऐसा कैसे हो सकता है सर, स्कूल तो सिर्फ छह घंटे तक होता है।’

पहला, ‘बस और साइकिल में क्या फर्क होता है ?’ दूसरा, ‘बस अपने स्टैंड के साथ कहीं नहीं जाती, लेकिन साइकिल का स्टैंड हमेशा उसके साथ जाता है।’

ढाबे का उद्घाटन धूमधाम से किया गया। अब वे अपने पहले ग्राहक के इंतजार में थे। पर पहले दिन कोई नहीं आया। उन्होंने और इंतजार किया पर फिर भी कोई नहीं आया। यहां तक कि एक सप्ताह बीतने चला फिर भी कोई नहीं आया। दरअसल ढाबे के मुख्य द्वार पर एक सूचना लटकी हुई थी-“बाहर के लोगों को इजाजत नहीं है।” ढाबे के काम में असफलता मिलने पर दोनों ने गैराज खोलने का निश्चय किया। उन्होंने अच्छे-अच्छे औजार खरीदे और गैराज खोल दिया। उन्हें अब मरम्मत के लिए आने वाली पहली कार का इंतजार था। एक दिन बीता, दो दिन गुजरे पर कोई कार मरम्मत के लिए नहीं आई। इंतजार करते हुए एक सप्ताह बीतने चला पर कार नहीं आई। जानते हैं क्यों? क्योंकि यह गैराज उसी बिल्डिंग के पहले तल्ले पर था।

सर्दियों की एक रात मैं घर लौट रहा था। सड़क पर कितनी फिसलन थी इसका मुझे अनुमान नहीं था। एक चौराहे पर मैंने कार को रोकना चाहा, मगर फिसलती हुई वह पास खड़ी पुलिस की एक वैन से जा टकराई।

बॉलीवुड

नग्नता से परहेज करने लगी हैं: शर्लिन

हॉट और बिंदास बाला शर्लिन चोपड़ा का दावा है कि उन्होंने प्लेब्वॉय के कवर पर आने का प्रस्ताव ठुकरा दिया है। मशहूर पत्रिका प्लेब्वॉय के कवर पर शर्लिन चोपड़ा को देखना अधिकांश लोगों के लिए किसी सपने की तरह हो सकता था। लेकिन आयटम गर्ल शर्लिन चोपड़ा का दावा है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर की पत्रिका प्लेब्वॉय ने उनसे कवर पर आने के लिए संपर्क किया था। शर्लिन ने अपने ट्विटर पर लिखा है, मुझे प्लेब्वॉय के कवर पर छपने का प्रस्ताव मिला था। मुझे समझ नहीं आया कि क्या जवाब दूं। बाद में शर्लिन ने यू टर्न लेते हुए लिखा, मैं इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं कर सकी। इसकी वजह शायद मेरी भारतीयता थी। उन्होंने लिखा, हालांकि मैं नग्नता की प्रशंसक हूं। नग्नता वास्तव में शुद्धता ही है और यह किसी वस्तु या व्यक्ति को उसके ईमानदार रूप में पेश करती है। लेकिन पूर्ण रूप से नग्नता के लिए शायद मैं तैयार नहीं हूं। इस पूरे घटनाक्रम की विसंगतता देखिये कि एक सप्ताह पहले ही शर्लिन ने ट्विटर पर अपनी नई फोटो डाली है। और पहले के इंटरव्यूज में वह यह कह चुकी हैं, मैं प्लेब्वॉय के कवर पर आना चाहती हूं और चाहती हूं कि भारतीय गौरवान्वित हों।
लिहाजा प्लेब्वॉय के कवर पर छपने का प्रस्ताव ठुकरा देने का शर्लिन का दावा संदिग्ध लगता है। शर्लिन के करीबी सूत्र का कहना है, दरअसल प्लेब्वॉय के अधिकृत फोटोग्राफर बॉब ने बिकनी गर्ल शर्लिन के कुछ फोटो नेट पर देखे थे। उन्होंने शर्लिन से संपर्क किया। वह उनके साथ एक शूट चाहते थे। लेकिन उनके बीच यह डील इसलिए तय नहीं हो पाई, क्योंकि यह शूट कवर के लिए नहीं था। अब बेचारी शर्लिन और क्या कहतीं।

16 जून को रिलीज होगी रावण
‘काइट्स’ के फ्लॉप होने और प्रकाश झा की ‘राजनीति’ के दर्शकों को पसंद किये जाने के बाद बॉक्स ऑफिस अब जिस बड़ी फिल्म की ओर नजरें टिकाए हुए है, वह है मणिरत्नम की ‘रावण’। लगभग डेढ़ सौ करोड़ की इस फिल्म से दर्शकों के साथ-साथ अभिषेक और ऐश्वर्या को भी बहुत उम्मीदें हैं। अभिषेक के बारे में तो कहा जा रहा है कि यह फिल्म उनका भविष्य तय करेगी।

अभिषेक ने भी अपने ट्विटर पर इस फिल्म की चर्चा की है। बहरहाल अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय स्टारर मणिरत्नम द्वारा निर्देशित फिल्म ‘रावण’ का वर्ल्ड प्रीमियर 16 जून को होगा। गौरतलब है कि इस फिल्म में अभिषेक बच्चन रावण के किरदार में हैं और साउथ के हीरो विक्रम राम के रूप में। इस फिल्म का तमिल वजर्न भी बन कर तैयार हो रहा है।

अब भी रहस्य हैं रेखा
हाल ही में हॉलीवुड अभिनेत्री डेमी मूर ने यह घोषणा की है कि वह अपनी आत्मकथा लिख रही हैं। हमने देसी सेलेब से यह जानने की कोशिश की कि वे किस सिलेब्रिटी की बायोग्राफी सबसे ज्यादा पढ़ना चाहेंगी। और जवाब था-रेखा। डिजाइनर रितु बेरी ने कहा, रेखा की आत्मकथा सबसे ज्यादा दिलचस्प हो सकती है और यह निश्चित रूप से बेस्टसेलर साबित होगी। वह एक खास महिला हैं और जाहिर है उनकी जिंदगी काफी आकर्षक और रोमांचक होगी। अभिनेत्री कोयना मित्र भी इससे सहमत दिखाई देती हैं। वह कहती हैं, रेखा का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक है और उनके चारों ओर हमेशा ही रहस्य की परतें-सी बनी रहती हैं। इशा कोप्पिकर कहती हैं, बहुत-सी ऐसी बातें हैं, जो मैं उनके बारे में जानना चाहती हूं। और उनकी किताब ही यह रहस्य खोल सकती है कि उन्हें क्या पसंद है और क्या नहीं।

मॉडल अमनप्रीत वाही उम्मीद करती हैं कि जब भी रेखा अपनी आत्मकथा लिखने का फैसला करेंगी, वह बहुत से रहस्यों से परदा हटायेंगी। वह कहती हैं, रेखा के बारे में बहुत सी बातें अभी भी रहस्य बनी हुई हैं। मसलन, अमिताभ बच्चन और रेखा के रिश्ते का सच क्या है, मुकेश शर्मा से उसके विवाह की हकीकत क्या थी? वह कहती हैं, जब कभी भी वे किताब लिखेंगी, ईमानदारी से इन सवालों के जवाब देने की कोशिश करेंगी, क्योंकि उनके फैन्स इन सवालों के जवाब जानना चाहते हैं।
हालांकि पिछले दिनों इस तरह की खबरें प्रकाशित हुई थीं कि यह एजलैस ब्यूटी, जिसने 180 से अधिक फिल्मों में काम किया है, अपने जीवन की कहानी लिखने जा रही है। लेकिन रेखा ने इस खबर पर भी कोई टिप्पणी नहीं की थी, न तो इसकी पुष्टि की और न ही इसका खंडन किया। मनीष मल्होत्रा कहते हैं, रेखा लिविंग लीजेंड हैं। बॉलीवुड में उनकी यात्रा बेहद रोमांचकारी रही है। उनके अपने शब्दों में उनकी इस यात्रा के बारे में जानना काफी दिलचस्प हो सकता है।

कैट को लगी खरीदारी की बीमारी

कैटरीना कैफ को आजकल खरीदारी का शौक चढ़ा हुआ है। कहने वाले कह रहे हैं कि उनका यह शौक बीमार की हद तक बढ़ गया और लोग उन्हें शॉपाहोलिक तक कहने लगे हैं। पिछले दिनों जोया अख्तर की अगली फिल्म के लिए लंदन में शूटिंग कर रही कैटरीना कैफ को एक पूरा दिन मिल गया। बस फिर क्या था। वह निकल पड़ीं ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट। कैट ने सारे बाजार छान मारे। इसके बाद वह बुटीक और कई डिपार्टमेंटल स्टोर गईं। अब आप सोचेंगे कि इतने सारे बाजार घूमने के बाद उन्होंने खूब खरीदारी की होगी। लेकिन आपको जान कर आश्चर्य होगा कि उन्होंने केवल एक दजर्न से अधिक जोड़ी शूज खरीदे। अब इसे शॉपाहोलिक नहीं कहा जाएगा तो और क्या कहा जाएगा।