सोमवार, 27 दिसंबर 2010

सम सामयिक

जब दुर्योधन ने भीम को विष पिलाया

हस्तिनापुर में आने के बाद पाण्डवों को वैदिक संस्कार सम्पन्न हुए। पाण्डव तथा कौरव साथ ही खेलने लगे। दौडऩे में, निशाना लगाने तथा कुश्ती आदि सभी खेलों में भीम सभी धृतराष्ट्र पुत्रों को हरा देते थे। भीमसेन कौरवों से होड़ के कारण ही ऐसा करते थे लेकिन उनके मन में कोई वैर-भाव नहीं था। परंतु दुर्योधन के मन में भीमसेन के प्रति दुर्भावना पैदा हो गई। तब उसने उचित अवसर मिलते ही भीम को मारने का विचार किया।
दुर्योधन ने एक बार खेलने के लिए गंगा तट पर शिविर लगवाया। उस स्थान का नाम रखा उदकक्रीडन। वहां खाने-पीने इत्यादि सभी सुविधाएं भी थीं। दुर्योधन ने पाण्डवों को भी वहां बुलाया। एक दिन मौका पाकर दुर्योधन ने भीम के भोजन में विष मिला दिया। विष के असर से जब भीम अचेत हो गए तो दुर्योधन ने दु:शासन के साथ मिलकर उसे गंगा में डाल दिया। भीम इसी अवस्था में नागलोक पहुंच गए। वहां सांपों ने भीम को खूब डंसा जिसके प्रभाव से विष का असर कम हो गया। जब भीम को होश आया तो वे सर्पों को मारने लगे। सभी सर्प डरकर नागराज वासुकि के पास गए और पूरी बात बताई।
तब वासुकि स्वयं भीमसेन के पास गए। उनके साथ आर्यक नाग ने भीम को पहचान लिया। आर्यक नाग भीम के नाना का नाना था। वह भीम से बड़े प्रेम से मिले। तब आर्यक ने वासुकि से कहा कि भीम को उन कुण्डों का रस पीने की आज्ञा दी जाए जिनमें हजारों हाथियों का बल है। वासुकि ने इसकी स्वीकृति दे दी। तब भीम आठ कुण्ड पीकर एक दिव्य शय्या पर सो गए।

न्यू यिअर पार्टी से मत रोको पापा
डियर पापा,
मुझे समझ में नहीं आ रहा कि आप मुझे न्यू यिअर पार्टी में क्यों नहीं जाने देना चाहते। कल रात मैंने आपकी और ममी की बातें सुन ली थीं। इससे मुझे समझ में आ गया कि आप किन चीजों से हिचक रहे हैं। पापा, मुझे भी मालूम है कि दिल्ली में इन दिनों क्राइम बहुत बढ़ गया है।
लड़कियां सेफ नहीं रह गई हैं। लेकिन क्या इस कारण लड़कियों ने स्कूल-कॉलेज और ऑफिस जाना बंद कर दिया? पापा, मैं अब आठवीं क्लास में आ गई हूं। अपनी जिम्मेदारी और आपकी फीलिंग्स को भी समझती हूं। मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी जिससे आप लोगों को तकलीफ पहुंचे। अब मेरा भी तो मन करता है कि न्यू इयर्स की पार्टी दोस्तों के साथ एंजॉय करें। इसमें कोई नई बात तो है नहीं।
आप खुद बताते हैं कि बचपन में आप मोहल्ले भर के बच्चों के साथ मेला देखने जाते थे। न्यू इयर्स की पार्टी उसी मेले का मॉडर्न रूप है। मैं किसी अनजान लोगों के साथ तो पार्टी में जा नहीं रही हूं। इसमें हमारी कई फ्रेंड्स रहेंगी और सीनियर्स भी। आपने स्कूल की पिकनिक में जाने से तो मना नहीं किया था।
जैसे वहां बच्चों ने एक-दूसरे का हमेशा ख्याल रखा वैसे ही इसमें भी रखेंगे। फिर पड़ोस की मुग्धा दीदी भी तो रहेंगी। मैं उन्हीं के साथ चली जाऊंगी। लौटते समय क्या आप रात में हमें पिक अप करने नहीं आ सकते? एक दिन की तो बात है। मेरे लिए थोड़ी तकलीफ उठा लीजिए। प्लीज पापा।
आपकी बेटी

उन्हें रोककर तो दिखाओ
नवभारत टाइम्स
सड़कों पर भारी ट्रैफिक के चलते जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं मेट्रो से ऑफिस आना पसंद करता हूं। उस दिन दफतर में एक लेख लिखते हुए थोड़ा लेट हो गया था। मेट्रो पकड़ी और अपने घर के नजदीकी स्टेशन पर उतरा। मेरा फ्लैट, स्टेशन से करीब दो किलोमीटर दूर है। वहां तक का रिक्शे का किराया 10 रुपया है। मैंने बाहर निकलकर एक रिक्शे वाले को पुकारा। मैंने रिक्शे वाले से पूछा- परवाना विहार चलोगे? वह बोला, चलूंगा, मगर 15 रुपये लूंगा। मैं हंसा- लगता है कि तुम मुझे परदेसी समझ रहे हो। मैं यहीं का बाशिंदा हूं। रिक्शा वाला बोला- रात का वक्त है। मैंने कहा- बहानेबाजी मत कहो, 10 रुपये में चलो। चूंकि वहां सवारी कम थी, रिक्शा वाला मन मारकर राजी हो गया।
क्शा थोड़ी दूर ही गया था कि मैंने रिक्शे वाले से बातचीत शुरू की। मैंने कहा- भैया, थोड़ी ईमानदारी रखा करो। कोई जरूरतमंद मिल गया तो मनमाना किराया वसूलोगे। यह क्या तरीका है। वह बोला- हम मेहनत करते हैं। मुझे गुस्सा आया- तो क्या हम लोग मेहनत नहीं करते। हम भी मेहनत करते हैं। ठीक है कि तुम शारीरिक मेहनत ज्यादा करते हो, हम दिमागी तौर पर मेहनत करते हैं। रिक्शे वाले ने पूछा- क्या करते हैं आप? मैंने कहा- पत्रकार हूं। रिपोर्टर हूं, जानते हो, रिपोर्टर किसे कहते हैं। जो खबरें लाता है, उसे लिखता है, तभी अखबार में खबरें छपती है। अब बोलो, क्या मैं मेहनत नहीं करता। भैया मेहनत सभी करते हैं। ऐसे में तुम जो 10 रुपये की जगह 15 रुपये किसी मेहनतकश से वसूलते हो वह गलत है। जो तुम्हारा बनता है, उसे लो। उसे देने में कोई ऐतराज नहीं करेगा और किसी को दुख भी नहीं होगा। मैं बोलता रहा, वह रास्ते भर.. हूं, हूं करके सुनता रहा।
मेरे अपार्टमेंट का गेट आ गया। मैं उतरा, जेब से रुपये निकालता, तभी रिक्शा वाला बोला- आप पत्रकार हैं। मुझे काफी कुछ सीख दे रहे थे। ठीक है मैं रिक्शा चला रहा हूं, मगर मैं भी थोड़ा- बहुत पढ़ा लिखा हूं। मैंने 10 की जगह 15 रुपये मांग लिए तो आप इतना बोल रहे हैं। आप पत्रकार हैं तो उन लोगों को कुछ बोलिए न जो घोटाला करके करोड़ों रुपये देश का डकार गए। रोज अखबार में छप रहा है कि यह घोटाला हुआ, वो घोटाला हुआ। आप ही लोग छाप रहे हैं। देश, प्रदेश के नेता से लेकर सरकारी बाबू तक करोड़ों रुपये कमा रहे हैं, वह भी नाजायज रूप से। रात का समय है, सर्दी लग रही है, अगर मैंने पांच रुपये ज्यादा मांग लिये तो आप इतना बोल रहे हैं। पत्रकार हैं आप, उनको रोकिए घोटाला करने से, जो नाजायज तरीके से ऐसा कर रहे हैं।
मैं सहम गया। उसकी बातों में सच की आंच थी जिसे सहने की ताकत मुझमें नहीं थी। हम पत्रकार-बुद्धिजीवी बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं पर आम आदमी के सवालों का कोई जवाब हमारे पास नहीं है। मैंने चुपचाप जेब से 15 रुपये निकाले और उसे दे दिए। उससे आंख मिलाने का साहस मैं नहीं कर पा रहा था।


मन की जीत
नमि नामक राजा राजपाट छोड़कर तपस्या करने निकले। वह ज्यों ही राजमहल से बाहर आए, एक देवदूत उनकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से सामने आकर खड़ा हो गया और बोला, 'राजन्! आप जा रहे हैं। किंतु पहले आपका कर्त्तव्य है कि आप अपने महल की रक्षा के लिए मजबूत दरवाजे, बुर्ज, खाई और तोपखाना आदि बनाकर जाएं ताकि प्रजा और भावी सम्राट सुरक्षित रह सकें।'
इस पर नमि ने कहा, 'हे देव। मैंने ऐसा नगर बनाया है जिसके चारों ओर श्रद्धा, तप और संयम की दीवारें हैं। मन, वचन और काया की एकरूपता की खाई भी है। जिस तरह शत्रु जमीन की खाई को पार कर नगर में प्रवेश नहीं कर सकता, उसी तरह अन्य स्थानों पर व्याप्त वैमनस्य, छल-कपट, काम, क्रोध और लोभ भी मेरी बनाई खाइयों को लांघकर आत्मा में प्रविष्ट नहीं हो सकते। मेरा पराक्रम मेरा धनुष है। मैंने उसमें धैर्य की मूठ लगाई है और सत्य की प्रत्यंचा चढ़ाई है। भौतिक संग्राम से मुझे क्या लेना-देना।
मैंने तो आध्यात्मिक संग्राम के लिए सामग्री इकट्ठी की है। मेरे जीवन की दिशा बदलने के साथ ही मेरे संग्राम का रूप भी बदल गया है। ऐसा नहीं है कि ये सारी शिक्षाएं मैंने स्वयं ली हैं अपितु यह मेरे राज्य के एक-एक नागरिक के तन-मन में रची-बसी हैं। इसलिए मुझे अपने राज्य की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।' देवदूत ने कहा, 'राजा का कर्त्तव्य है कि वह अपने आसपास के सभी राज्यों को अपने अधीन करे।
आप इस कार्य को पूरा करके ही साधु बनें।' यह सुन कर नमि बोले, 'जो रणभूमि में दस हजार योद्धाओं को जीतता है, वह बलवान माना जाता है, किंतु उससे भी अधिक बलवान वह है, जो अपने मन को जीत लेता है। दूसरों को अधीन करने से अच्छा है अपने मन को अधीन करना। जिसने मन को जीत लिया उसने विश्व को जीत लिया।' यह सुनकर देवपुरुष उनके आगे नतमस्तक हो गया और उन्हें शुभकामनाएं देकर चला गया।
प्रस्तुतकर्ता अरुण बंछोर पर 27.12.10 0 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक
नए साल के लिए एक जनवरी ही क्यों
एक जनवरी नजदीक आ गई है। जगह-जगह हैपी न्यू ईयर के बैनर व होर्डिंग लग गए हैं। जश्न मनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। जनवरी से प्रारंभ होने वाली काल गणना को हम ईस्वी सन् के नाम से जानते हैं जिसका संबंध ईसाई जगत् व ईसा मसीह से है। इसे रोम के सम्राट जूलियस सीजर द्वारा ईसा के जन्म के तीन वर्ष बाद प्रचलन में लाया गया था।
भारत में ईस्वी संवत् का प्रचलन अंग्रेज शासकों ने वर्ष 1752 में शुरू किया। अधिकांश राष्ट्रों के ईसाई होने और अंग्रेजों के विश्वव्यापी प्रभुत्व के कारण ही इसे अनेक देशों ने अपना लिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नवम्बर 1952 में हमारे देश में वैज्ञानिक और औद्योगिक परिषद द्वारा पंचांग सुधार समिति की स्थापना की गई। समिति ने 1955 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रमी संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की थी। मगर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन कैलंडर को ही सरकारी कामकाज के लिए उपयुक्त मानकर 22 मार्च 1957 को इसे राष्ट्रीय कैलंडर के रूप में स्वीकार कर लिया गया।
ग्रेगेरियन कैलंडर की काल गणना मात्र दो हजार वर्षों के काफी कम समय को दर्शाती है। जबकि यूनान की काल गणना 3579 वर्ष, रोम की 2756 वर्ष, यहूदियों की 5767 वर्ष, मिस्र की 28670 वर्ष, पारसी की 198874 वर्ष चीन की 96002304 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो भारतीय ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गई है। जिस प्रकार ईस्वी संवत् का संबंध ईसाई जगत से है उसी प्रकार हिजरी संवत् का संबंध मुस्लिम जगत से है। लेकिन विक्रमी संवत् का संबंध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रह्मांड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परंपराओं को दर्शाती है।
भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए हमें सही दिशा प्रदान करते हैं उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं। राष्ट्र के स्वाभिमान व देशप्रेम को जगाने वाले अनेक प्रसंग चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से जुडे़ हुए हैं। यह वह दिन है, जिससे भारतीय नव वर्ष प्रारंभ होता है। यह सृष्टि रचना का पहला दिन है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की। विक्रमी संवत् के नाम के पीछे भी एक विशेष विचार है। यह तय किया गया था कि उसी राजा के नाम पर संवत् प्रारंभ होगा जिसके राज्य में न कोई चोर हो न अपराधी हो और न ही कोई भिखारी। साथ ही राजा चक्रवर्ती भी हो।
सम्राट विक्रमादित्य ऐसे ही शासक थे जिन्होंने 2067 वर्ष पहले इसी दिन अपना राज्य स्थापित किया था। प्रभु श्रीराम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में अपने राज्याभिषेक के लिए चुना। युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। विक्रमादित्य की तरह शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
प्राकृतिक दृष्टि से भी यह दिन काफी सुखद है। वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है। यह समय उल्लास - उमंग और चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरा होता है। फसल पकने का प्रारंभ अर्थात किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् नए काम शुरू करने के लिए यह शुभ मुहूर्त होता है। क्या एक जनवरी के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम का भाव पैदा हो सके या स्वाभिमान तथा श्रेष्ठता का भाव जाग सके ? इसलिए विदेशी को छोड़ कर स्वदेशी को स्वीकार करने की जरूरत है। आइए भारतीय नव वर्ष यानी विक्रमी संवत् को अपनाएं।
विनोद बंसल

चार मित्र
सेन के राज्य में प्रजा बहुत खुशहाल और संतुष्ट थी। वहां कभी किसी तरह का तनाव नहीं होता था। यह बात पड़ोसी राज्य के राजा कुशल सेन तक भी पहुंची। उसके यहां आए-दिन झगड़े होते रहते थे और प्रजा बहुत दु:खी थी। राजा कुशल सेन अपने पड़ोसी राज्य की सुख-शांति व खुशहाली का राज जानने के लिए आदर्श सेन के पास पहुंचा और बोला, 'मेरे यहां हर ओर दु:ख-दर्द व बीमारी फैली है। पूरे राज्य में त्राहि-त्राहि मची हुई है। कृपया मुझे भी अपने राज्य की सुख-शांति का राज बताएं।' कुशल सेन की बात सुनकर राजा आदर्श सेन मुस्कुरा कर बोला, 'मेरे राज्य में सुख-शांति मेरे चार मित्रों के कारण आई है।' इससे कुशल सेन की उत्सुकता बढ़ गई।
उसने कहा, 'कौन हैं वे आपके मित्र? क्या वे मेरी मदद नहीं कर सकते?' आदर्श सेन ने कहा, 'जरूर कर सकते हैं। सुनिए मेरा पहला मित्र है सत्य। वह कभी मुझे असत्य नहीं बोलने देता। मेरा दूसरा मित्र प्रेम है, वह मुझे सबसे प्रेम करने की शिक्षा देता है और कभी भी घृणा करने का अवसर नहीं देता। मेरा तीसरा मित्र न्याय है। वह मुझे कभी भी अन्याय नहीं करने देता और हर वक्त मेरे आंख-कान खुले रखता है ताकि मैं राज्य में होने वाली घटनाओं पर निरंतर अपनी दृष्टि बनाए रखूं। और मेरा चौथा मित्र त्याग है। त्याग की भावना ही मुझे स्वार्थ व ईर्ष्या से बचाती है। ये चारों मिलकर मेरा साथ देते हैं और मेरे राज्य की रक्षा करते हैं।' कुशल सेन को आदर्श सेन की सफलता का रहस्य समझ में आ गया।

महात्मा की शिक्षा
एक बार मगध के राजा चित्रांगद वन विहार के लिए निकले। साथ में कुछ बेहद करीबी मंत्री और दरबारी भी थे। वे घूमते हुए काफी दूर निकल गए। एक जगह सुंदर सरोवर के किनारे किसी महात्मा की कुटिया दिखाई दी। वह जगह राजा को बहुत पसंद आई हालांकि वह उसे दूर से ही देखकर निकल गए। राजा ने सोचा कि महात्मा अभावग्रस्त होंगे, इसलिए उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुछ धन भिजवा दिया। महात्मा ने वह धनराशि लौटा दी। कुछ दिनों बाद और अधिक धन भेजा गया, पर सब लौटा दी गई। तब राजा स्वयं गए और उन्होंने महात्मा से पूछा, 'आपने हमारी भेंट स्वीकार क्यों नहीं की?'
महात्मा हंसते हुए बोले, 'मेरी अपनी जरूरत के लिए मेरे पास पर्याप्त धन है।' राजा ने कुटिया में इधर-उधर देखा, केवल एक तुंबा, एक आसन एवं ओढ़ने का एक वस्त्र था, यहां तक कि धन रखने के लिए कोई अलमारी आदि भी नहीं थी। राजा ने फिर कहा, 'मुझे तो कुछ दिखाई नहीं देता।' महात्मा ने राजा को पास बुलाकर उनके कान में कहा, 'मैं रसायनी विद्या जानता हूं। किसी भी धातु से सोना बना सकता हूं।' अब राजा बेचैन हो गए, उनकी नींद उड़ गई। धन-दौलत के आकांक्षी राजा ने किसी तरह रात काटी और सुबह होते ही महात्मा के पास पहुंचकर बोले, 'महाराज! मुझे वह विद्या सिखा दीजिए, ताकि मैं राज्य का कल्याण कर सकूं।' महात्मा ने कहा, 'ठीक है पर इसके लिए तुम्हें समय देना होगा। वर्ष भर प्रतिदिन मेरे पास आना होगा। मैं जो कहूं उसे ध्यान से सुनना होगा। साल पूरा होते ही विद्या सिखा दूंगा।' राजा रोज आने लगे। महात्मा के साथ रहने का प्रभाव जल्दी ही दिखने लगा। एक वर्ष में राजा की सोच पूरी तरह बदल गई। महात्मा ने एक दिन पूछा, 'वह विद्या सीखोगे?' राजा ने कहा, 'गुरुदेव! अब तो मैं स्वयं रसायन बन गया। अब किसी नश्वर विद्या को सीखकर क्या करूंगा।'


क्यों कहते हैं विष्णु को नारायण?
हिंदू धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि सृष्टि का निर्माण त्रिदेवों ने मिलकर किया है। भगवान विष्णु को सृष्टि का संचालनकर्ता माना गया है। कहते हैं कि जब भी धरती पर कोई मुसीबत आती है तो भगवान विभिन्न अवतार लेकर आते हैं और हमें उन मुसीबतों से बचाते हैं।
हिन्दू धर्म में भगवान के जितने रूप है उतने ही उनके नाम भी बताये गए है। भगवान विष्णु का ऐसा ही एक नाम है नारायण। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा कि भगवान को नारायण क्यों कहते हैं? भगवान विष्णु का नारायण नाम कैसे पड़ा?
विष्णु महापुराण में भगवान के नारायण नाम के पीछे एक रहस्य बताया गया है। इसमें कहा गया है कि जल की उत्पत्ति नर अर्थात भगवान के पैरों से हुई है इसलिए पानी को नीर या नार भी कहा जाता है। चूंकि भगवान का निवास स्थान (अयन) पानी यानी कि क्षीर सागर को माना गया है इसलिए जल में निवास करने के कारण ही भगवान को नारायण (नार+अयन) कहा जाता है।
हमारे शास्त्रों नें बताया है कि इस सृष्टि का निर्माण भी जल से हुआ है। और भगवान के पहले तीन अवतार भी जल से उत्पन्न हुए हैं इसलिए हिन्दू धर्म में जल को देव रूप मे पूजा जाता है।

रविवार, 19 दिसंबर 2010

छत्तीसगढ़ की ख़ास खबरें

प्रधान पाठक बने शिक्षाकर्मियों की नींद उड़ी
रायपुर शिक्षाकर्मियों को प्रधानपाठक बनाए जाने की प्रक्रिया पर बिलासपुर हाईकोर्ट के तीखे तेवरों से बलौदाबाजार शिक्षा जिले में नवनियुक्त प्रधान पाठकों के होश उड़े हुए हैं। इस परीक्षा में नियुक्ति के लिए दो करोड़ रुपए से ज्यादा के लेन-देन की खबरें आ रही हैं।
चयन के लिए लोगों ने एक से दो लाख रुपए दिए, ऐसी चर्चा है। पैसे देकर चुने गए शिक्षाकर्मियों को डर है कि चयन प्रक्रिया ही अदालत में रद्द हो गई, तो उनके पैसों का क्या होगा। दूसरी तरफ कोशिश हो रही है कि हाईकोर्ट का आदेश आने के पहले ही ज्यादातर लोगों की ज्वाइनिंग करवा दी जाए। राज्य शासन के निर्देश पर जिला शिक्षा अधिकारी बलौदाबाजार ने अपने जिले में प्रधान पाठकों के रिक्त पदों के लिए आवेदन मंगवाए थे। दो दिन पहले जनदर्शन में जिला पंचायत के सदस्य सुनील माहेश्वरी और मुरारी मिश्रा ने कई शिक्षाकर्मियों के साथ मुख्यमंत्री से लिखित शिकायत की थी। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि परीक्षा में योग्य प्रत्याशियों का नाम काटकर अपात्रों को चुन लिया गया। परीक्षा में ६३ फीसदी अंक पाने वाले गंभीर सिंह ठाकुर, ५७ फीसदी वाले शैलेंद्र कुमार गजभिये, ५७ फीसदी वाली रानी कोसले का चयन नहीं किया गया। इनसे कम अंकों वाले लोग सलेक्ट हो गए। लिखित शिकायत के बावजूद आपत्ति का निराकरण नहीं किया गया। राज्य शासन ने जिला शिक्षा अधिकारी को छत्तीसगढ़ के राजपत्र में प्रकाशित 3 सितंबर 2008 और 13 अगस्त 2008 के भर्ती नियमों के आधार पर प्रधान पाठक बनाने को कहा था। चयन प्रक्रिया में राजपत्र के कई प्रावधानों का पालन नहीं किया गया।
इसमें सीधी भर्ती और चयन से संबंधित नियमों का विस्तार से जिक्र किया गया है। चयन प्रक्रिया को देखा जाए, तो इसमें राजपत्र में दिए गए कई प्रावधानों का पालन नहीं किया गया।
ये भी गड़बड़ी >
रामकुमार चंद्राकर नाम के एक परीक्षार्थी को दो स्कूलों में प्रधान पाठक बना दिया गया। > एक ऐसे शिक्षाकर्मी को प्रधान पाठक बनाया गया है, जो निलंबिन के बाद से विकास खंड शिक्षा अधिकारी धरसीवां में अटैच है। ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने इस शिक्षाकर्मी के आवेदन पत्र में उसके निलंबित होने का साफ जिक्र किया था।
नियम में था यह
1. सेवा में अभ्यर्थी का चुनाव चयन समिति द्वारा प्रतियोगी परीक्षा और साक्षात्कार के बाद किया जाना चाहिए थे।
हुआ ये
लिखित परीक्षा में गड़बड़ी हुई। साक्षात्कार के बिना ही प्रधानपाठकों की नियुक्ति और पोस्टिंग के आदेश जारी हो गए।
नियम में था यह
2. उपलब्ध रिक्त पदों में एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए क्रमश: १६, 20 और १४ फीसदी पद रखे जाने थे। महिला के 30 फीसदी पद रखे जाने चाहिए थे।
हुआ ये
अनुसूचित जनजाति के लिए 20 के स्थान पर १९ फीसदी को ही आरक्षण दिया गया। रोस्टर का भी पालन ठीक से नहीं किया गया।
नियम में था यह
३. आयु के बारे में राजपत्र में अलग-अलग वर्ग तय किए हैं, जिसमें अधिकतम सीमा का जिक्र है। अधिकतम आयु किसी भी तरह से ४५ साल होनी चाहिए।
हुआ ये
लवन इलाके की एक ऐसी शिक्षाकर्र्मी को भी प्रधान पाठक बना दिया गया, जो 46 साल आठ महीने की है। नियम विरुद्ध ज्यादा उम्र के कई और शिक्षाकर्मियों को प्रधानपाठक बना दिया गया।
नियम में था यह
४. चयन समिति में जिला शिक्षा अधिकारी उसके अध्यक्ष होते हैं। डाइट के प्राचार्य, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी समेत अन्य सदस्यों कौन-कौन होंगे इसका साफ जिक्र नियमों में है।
हुआ ये
समिति को नियमों के हिसाब से नहीं बनाया गया। ऐसे लोग रखे गए, जो विरोध नहीं कर सकते थे। डाइट के प्राचार्य को चयन समिति में लगभग बाहर रखा गया।
नियम में था यह
५. राज्य शासन का साफ निर्देश है कि भर्ती में मध्यप्रदेश के समय जारी जाति प्रमाणपत्रों को मान्य नहीं किया जाएगा।
हुआ ये
20 फीसदी से ज्यादा परीक्षार्थियों ने मध्यप्रदेश सरकार के प्रमाणपत्रों को आवेदन पत्र में लगाया।
नियम में था यह
संविदा शिक्षा कर्मियों को प्रधान पाठक परीक्षा में पात्रता नहीं थी।
हुआ ये
शिक्षा अधिकारी के बेटे समेत कई लोग संविदा शिक्षक होने के बावजूद परीक्षा में न केवल शामिल हुए, बल्कि मेरिट लिस्ट में भी उनका
नाम आया।

ठंड से 6 नवजात लकड़बग्घों की मौत
रायपुर नंदनवन में लाए गए 6 नवजात लकड़बग्घों की अचानक मौत हो गई। उन्हें जगदलपुर जिले के एक गांव से लगे घने जंगलों से लाया गया था। इनके पालन-पोषण की यहां कोशिश की गई, लेकिन मौसम में आए अचानक बदलाव से यह बच नहीं पाए। अधिकारियों ने बताया कि जब इन्हें लाया गया तो ये महज चार दिन के थे। फिर दो हफ्ते तक ये जीवित रह पाए। मौत की खबर उच्च अधिकारियों को दे दी गई है।
नंदनवन के अफसरों ने बताया कि लकड़बग्घों के सभी 6 बच्चे कमजोर थे। छोटे होने की वजह से ये खाना नहीं खा सकते थे। लिहाजा इन्हें गाय का दूध पिलाने की कोशिश की जा रही थी। डाक्टरों का कहना है कि दूध भी ये ठीक से पी नहीं पाते थे, इसलिए इनका शरीर और भी कमजोर होता जा रहा था। हफ्ते भर पहले जब मौसम में अचानक बदलाव आया और पारा गिरा तो इनकी पल्स धीमी पड़ने लगी। 13 दिसंबर को पहले तीन की मौत हो गई, फिर अगले ही दिन बाकी के तीन ने भी दम तोड़ दिया। उन्हें बचाने के लिए सारी कोशिशें बेकार गईं। दवाइयां भी दी गईं, लेकिन वे ठंड सह नहीं पाए। अधिकारियों ने इसकी जानकारी उच्च स्तर पर दे दी है और बाकी जानवरों की देखभाल बढ़ा दी गई है।
ठंड नहीं बढ़ती, तो बच जाते :
नंदनवन के वेटनरी डाक्टर डा. जयकिशोर जड़िया ने कहा कि लकड़बग्घों के नवजात बच्चे महज चार दिन के थे। इन्हें कम से कम महीने भर तक मां के दूध की जरूरत पड़ती है। इसी से उनमें ठंड से लड़ने की क्षमता विकसित करनी होती है। उन्हें गाय का दूध पिलाया जा रहा था। इतनी कम उम्र में वे इसे पचा नहीं पाते। ऐसे में अगर मौसम ने साथ दिया होता तो बच्चे शायद बच जाते।
घायल नर लकड़बग्घा भी नहीं रहा : महासमुंद जिले के बागबहरा रोड के पास सड़क हादसे का शिकार हुआ नर लकड़बग्घा भी नहीं रहा। पांच दिन पहले उसकी भी मौत हो गई। डाक्टरों का कहना है कि उसकी कमर और पैरों की हड्डी हादसे में टूट गई थी। उसका इलाज किया गया और कुछ दिनों बाद वह स्वस्थ भी होने लगा था। ठंड बढ़ने से हड्डियों में दर्द बढ़ता गया और कमजोरी आने की वजह से उसने दम तोड़ दिया। डाक्टरों ने उसका पोस्टमार्टम कर रिपोर्ट विभाग को सौंप दी है।
तेंदुए के शावक अब तंदरुस्त: बागबहरा के जंगलों से लाए गए दो नन्हें तेंदुए के शावक अब स्वस्थ हैं। नंदनवन का अमला रविवार को इन्हें एक बड़े पिंजरे में शिफ्ट करेगा। इसकी तैयारियां की जा चुकी हैं। इनमें से एक नर और एक मादा है।
शुरुआत में दोनों बेहद बीमार थे। इनका बेहतर इलाज किया गया तो ये स्वस्थ्य होते गए। अब ये छोटे मांस के टुकड़े खाने लगे हैं। इन्हें मिलाकर नंदनवन में कुल आठ तेंदुए हो जाएंगे जिनमें से चार नर और बाकी मादा हैं।
लकड़बग्घे के बच्चे सिर्फ गाय का दूध पीते थे। मरने से पहले ऐसा ही एक बीमार बच्च दूध भी नहीं पी पा रहा था।
नवजात लकड़बग्घों को बचाने की बेहद कोशिश की गई, लेकिन वे दूध की फीडिंग नहीं कर पा रहे थे। गाय का दूध वे पचा नहीं पाते थे, जिससे उनका शरीर कमजोर होता गया और उनकी मौत हो गई।

तीन कहानियां

असली गरीब
एक भिक्षुक को दिन भर में जो कुछ मिलता था, उसे वह खा-पीकर समाप्त कर देता था। प्राय: उसे आवश्यकता के अनु
सार भिक्षा मिल जाया करती थी। एक दिन उसे उसकी जरूरत से ज्यादा एक पैसा मिल गया। वह सोचने लगा-इसका क्या उपयोग करूं? उसने उस एक पैसे को अपने चीथड़े के कोने में बांध लिया और एक पंडित के पास गया। उसने उनसे पूछा, 'महाराज, मैं अपनी संपत्ति का क्या सदुपयोग करूं?' पंडित जी ने पूछा, 'तुम्हारे पास कितनी संपत्ति है?' उसने कहा, 'एक पैसा।' इस पर पंडित जी चिढ़ गए। उन्होंने कहा, 'जा-जा, तू एक पैसे के लिए मुझे परेशान करने आया है।' वह भिक्षुक निराश नहीं हुआ। वह कई पंडितों के पास गया। कहीं हंसी मिली तो कहीं दुत्कार।

किसी सज्जन ने सलाह दी कि पैसा किसी गरीब को दे दो। अब भिक्षुक गरीब की तलाश में चल पड़ा। उसने अनेक भिखारियों से प्रश्न किया कि तुम गरीब हो? परंतु एक पैसे के लिए किसी ने गरीब बनना स्वीकार नहीं किया। तभी भिक्षुक को पता चला कि किसी देश काराजा अपने पड़ोसी राज्य पर चढ़ाई करने जा रहा है। उसने लोगों से पूछा, 'राजा चढ़ाई क्यों कर रहे हैं?' लोगों ने बताया 'धन-संपत्ति प्राप्त करने के लिए।' भिक्षुक को लगा कि राजा बहुत गरीब होगा। तभी तो धन-संपत्ति के लिए मारकाट करने पर आमादा है। क्यों न उसे ही पैसा दे दिया जाए।
जब राजा की सवारी उसके पास से गुजरने लगी, तो वह खड़ा हो गया और झटपट अपने चीथड़े में से पैसा निकालकर उसने राजा के हाथ पर डाल दिया। उसने कहा, 'मुझे बहुत दिनों से एक गरीब की तलाश थी। आज आपको पाकर मेरा मनोरथ पूरा हो गया, आप मेरी पूंजी संभालिए।' राजा रुक गया। भिक्षुक ने उसे अपनी कहानी सुनाई तो उसने धावा बोलने का इरादा बदल दिया और सारी फौज के सामने यह बात कबूल की- असली गरीब वह है, जिसके लालच का कोई अंत नहीं।

मनुष्य का स्वभाव
पुराने जमाने की बात है। एक राजा था , जिस के तीन पुत्र थे। वह अपने तीनों पुत्रों को बहुत चाहता था , लेकिन उनके भविष्य को लेकर हमेशा चिंतित भी रहता था। एक दिन राजा अपने तीनों पुत्रों के साथ नगर भ्रमण के लिए निकला। रास्ते में एक तेजस्वी महात्मा मिले। राजा ने उन्हें नमस्कार किया और अपने पुत्रों के भविष्य के विषय में उनसे पूछा। महात्मा ने राजा के तीनों पुत्रों को प्यार से बुलाया और उन तीनों को दो - दो केले खाने को दिए। एक बच्चे ने केले खाकर छिलके रास्ते पर फेंक दिए।
दूसरे ने केले खाकर छिलके रास्ते में न फेंककर कूड़ेदान में डाले। और तीसरे ने छिलके फेंकने के बजाय गाय को खिला दिया। महात्मा जी यह सब बड़े गौर से देख रहे थे। उन्होंने राजा को अलग ले जाकर कहा , ' तुम्हारा पहला पुत्र मूर्ख और उद्दंड है , जबकि दूसरा गुणी और समझदार है। तीसरा पुत्र सज्जन और उदार बनेगा। हो सकता है वह बड़ा समाजसेवी बने। ' महात्मा की बात सुनकर राजा ने पूछा , ' आपने कौन सा गणित लगाकर जवाब दिया ?' महात्मा बोले , ' व्यवहार के गणित से बढ़कर निर्धारण करने का और कोई उपाय नहीं होता। आपके आचरण से आपके विचार और स्वभाव का पता चलता है। हम जैसा आचरण करते हैं वैसा ही बनते भी हैं। मैंने एक मामूली आचरण के आधार पर आपके तीनों पुत्रों के स्वभाव का पता लगाया है। मूलभूत स्वभाव का पता चलने के बाद उसमें परिवर्तन के लिए प्रयास किया जा सकता है। ' यह कहकर महात्मा ने राजा और उसके पुत्रों को आशीर्वाद दिया और चल पड़े।

ईश्वर की खोज
एक सेठ के पास अपार धन-संपत्ति थी, पर उसका मन हमेशा अशांत रहता था। एक बार उसके शहर में एक सिद्ध महात्मा आए। उन्
होंने अपने प्रवचन में कहा कि परमात्मा को पाने पर ही सच्ची खुशी एवं पूर्ण शांति मिल सकती है। इसलिए ईश्वर की खोज करो और अपने जीवन को सार्थक करो। यह सुनकर सेठ ईश्वर की खोज में लग गया। वह इधर-उधर भटकने लगा। ऐसा करते हुए दो वर्ष बीत गए किंतु ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई। वह निराश होकर घर की ओर लौट पड़ा। रास्ते में उसे एक चिर-परिचित आवाज सुनाई पड़ी। उसे कोई बुला रहा था। उसने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि उसके पीछे वही सिद्ध महात्मा खड़े थे, जिन्होंने ईश्वर को ढूंढने की बात कही थी। सेठ उनके पैरों में गिरकर बोला, 'बाबा, मैं अनेक स्थानों पर भटका किंतु मुझे अभी तक ईश्वर नहीं मिले। आखिर मेरी खोज कहां पूरी होगी? आप ने ही कहा था कि सच्ची खुशी ईश्वर के साथ मिल सकती है।' उसकी बात पर महात्मा मुस्कराए और उन्होंने उसे उठाते हुए कहा, 'पुत्र, मैंने सही कहा था। यदि तुमने ठीक ढंग से ईश्वर की खोज की होती तो अब तक तुम उन्हें पा चुके होते।' यह सुनकर सेठ हैरान रह गया और बोला, 'कैसे बाबा?' महात्मा बोले, 'पुत्र, ईश्वर किसी दूर-दराज के क्षेत्र में नहीं तुम्हारे अपने भीतर ही है। तुम अच्छे कर्म करोगे और नेक राह पर चलोगे तो वह स्वयं तुम्हें मिल जाएगा। तुम्हें उसे कहीं खोजने नहीं जाना पड़ेगा। हां, उसे पाने के लिए ईश्वर का नेक बंदा अवश्य बनना होगा।' यह सुनकर सेठ महात्मा के प्रति नतमस्तक हो गया और वापस अपने घर चला आया। घर आने के बाद उसने पाठशालाएं खुलवाईं, लोगों को पीने का पानी उपलब्ध कराया, गरीब कन्याओं के विवाह कराए और अपने पास आने वाले हर जरूरतमंद की समस्या का समाधान किया। कुछ ही समय बाद उसके भीतर की अशांति जाती रही और उसने अपने भीतर नई स्फूर्ति महसूस की।

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

छत्तीसगढ़ की खास खबरें

किसको दें सम्मान, नहीं मिला किसान!
रायपुर.छत्तीसगढ़ कृषि के क्षेत्र में भले नए मुकाम हासिल कर रहा हो पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को अब तक प्रदेश में एक भी किसान नहीं मिला, जिसे वह सम्मानित कर सके।

जबकि पं. रविशंकर शुक्ल विवि डॉ. नारायण भाई चावड़ा को खेती-किसानी में उनके बेहतरीन काम के लिए डी-लिट् की मानद उपाधि दे चुका है। 23 साल पहले स्थापित कृषि विवि का पांचवा दीक्षांत समारोह 20 जनवरी को होने जा रहा है।
उत्तरप्रदेश और पंजाब के कृषि वैज्ञानिकों को डी-लिट् की उपाधि दी जाएगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक और केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव रहे डॉ. मंगला राय को इसके लिए चुना गया है।
दूसरे वैज्ञानिक फिलीपींस स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. जीएस खुश हैं। दोनों ही राइस ब्रिडर हैं। कुलपति डॉ. एमपी पांडेय ने दोनों के नामों का प्रस्ताव रखा था। डॉ. मंगला राय मूलत: उत्तरप्रदेश के हैं।
उन्होंने बनारस विवि से पीएचडी की है, जबकि डॉ. जीएस खुश की पढ़ाई पंजाब यूनिवर्सिटी की है। खुश अबतक दो सौ से ज्यादा धान की किस्में तैयार कर चुके हैं। 1967 में वे फिलीपींस चले गए थे।
कम नहीं प्रदेश के किसान
छत्तीसगढ़ में कई ऐसे किसान हैं जिनकी बराबरी किसी वैज्ञानिक से की जा सकती है। प्रदेश के किसानों ने ही अब तक धान की 23 हजार किस्में तैयार की हैं। डॉ. आरएस रिछारिया ने इसे संग्रहित कर रखा है।
पं. रविशंकर शुक्ल विवि ने गोमची के किसान नारायण भाई चावड़ा को मानद उपाधि दी थी। उन्होंने धान सहित सब्जियों की कई किस्में विकसित की।
दुर्ग जिले के कई किसानों को टमाटर, शिमला मिर्च, गोभी, कुंदरू सहित अन्य सब्जिी उत्पादन में दक्षता हासिल है। प्रदेश में और भी कई किसान हैं, जो नई किस्में इजाद करने में जुटे हैं, लेकिन महत्व नहीं मिलने के कारण उनका नाम पिछड़ा हुआ है।
किसानों के नाम खारिज
मानद उपाधि देने के लिए कृषि विवि ने अपने सभी संबंधित कालेजों और रिसर्च स्टेशन से नाम मंगाए थे। मानद उपाधि के लिए गठित समिति की बैठक में एक दर्जन नाम आए थे। इनमें जांजगीर-चांपा के किसान का भी नाम था।
डॉ. नारायण भाई चावड़ा के नाम का भी प्रस्ताव आया, लेकिन उन्हें सिरे से खारिज कर दिया गया। कुछ अधिकारियों ने मुख्यमंत्री तो कुछ ने कृषि मंत्री के नाम आगे बढ़ाए। अंत में समिति ने सात वैज्ञानिकों के नाम प्रबंध मंडल में रखा।

केवल अधिकारियों के नाम
कृषि विवि के प्रबंध मंडल की बैठक में मानद उपाधि देने के लिए सात लोगों के नाम का प्रस्ताव अनुशंसा समिति ने रखा। ये सभी शासकीय पदों पर नियुक्त रहे हैं। इनमें दो अधिकारी डा. एसके दत्ता और डा. अरविंद कुमार आईसीएआर में पदस्थ हैं।
आईसीएआर कृषि विश्वविद्यालयों को मानिटरिंग और अनुदान देने वाली संस्था है। बैठक में नेशनल बायोडायवर्सिटी अथारिटी चेन्नई के चेयरमेन डा. पीएल गौतम और नई दिल्ली के एग्रीकल्चरल साइंस रिक्रूटमेंट बोर्ड के चेयरमेन डा. पीडी मई का नाम भी था।
इसमें इंदिरा गांधी कृषि विवि के पूर्व कुलपति डा. कीर्ति सिंह को मानद उपाधि देने का प्रस्ताव था। कुलपति डा. एमपी पांडेय की अध्यक्षता में डा. मंगला राय और डा. जीएस खुश को मानद उपाधि देने का निर्णय लिया गया।
"प्रदेश में उत्कृष्ट कार्य करने वाले किसानों को भी मानद उपाधि दी जा सकती है, लेकिन किसी ने उनके नाम का प्रस्ताव नहीं दिया। "- एसआर रात्रे, कुलसचिव कृषि विवि
"प्रबंध मंडल ने मानद उपाधि के लिए दो नामों का चयन कर लिया है। अभी प्रबंध मंडल में पारित प्रस्ताव मिनिट्स में नहीं आए हैं, इसलिए मैं कुछ नहीं कहूंगा। "- डॉ. एमपी पांडेय, कुलपति कृषि विवि

राज्य में बनेगा एलीफेंट रिजर्व
बिलासपुर.प्रदेश में हाथियों के आक्रमण से हो रहे जान-माल के नुकसान को रोकने और हाथियों को सुरक्षित स्थान पर रहने की सुविधा देने के लिए कारीडोर बनाने के साथ ही अचानकमार सहित तीन अभयारण्य को जोड़कर एलीफेंट रिजर्व बनाया जाएगा। छत्तीसगढ़ राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक में यह निर्णय लिया गया।

जंगली हाथियों की समस्या से निपटने के लिए वन विभाग ने रणनीति बना ली है। बैठक में वन्य जीव, जैव विविधता, बाघ संरक्षण और अन्य विषयों पर चर्चा की गई। प्रदेश के सरगुजा जिले में हाथियों के हिंसक होने से कुछ सालों में जान-माल की हानि के साथ ही वनग्रामों के रहवासियों का जीना दूभर हो गया है।
इस समस्या से निपटने की दिशा में उपाय किए जा रहे हैं। प्रदेश के तीन ऐसे अभयारण्य जहां हाथियों की संख्या अधिक है, वहां कारीडोर बनाया जाएगा और उन्हें जोड़कर एलीफेंट रिजर्व बनाया जाएगा, जहां हाथी सुरक्षित तरीके से रह सकें।

इस प्रस्ताव को कैबिनेट की अगली बैठक में रखा जाएगा। बैठक में वन मंत्री विक्रम उसेंडी, डीजीपी विश्वरंजन, मुख्य वन्य प्राणी अभिरक्षक रामप्रकाश, वन्य प्राणी विशेषज्ञ डॉ. सुशांत चौधरी, नितिन देसाई, प्राण चड्डा, संदीप पौराणिक, हाथी विशेषज्ञ डा. पीएस ईशा, एसजी चौहान सहित अन्य सदस्य शामिल हुए।
इसी तरह हाथियों की समस्याओं से निपटने के लिए बोर्ड के सदस्यों के सुझाव पर एक उप समिति गठित करने का निर्णय लिया गया। इसमें हाथी विशेषज्ञ, वन विभाग के अधिकारी और संबंधित क्षेत्र के स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा।
केरल और कर्नाटक की तर्ज पर यहां ऐसे क्षेत्रों में जहां हाथियों का आवागमन सर्वाधिक होता हैं, वहां लगभग एक सौ किलोमीटर क्षेत्र में सोलर पॉवर फेंसिंग लगाई जाएगी। विशेषज्ञों ने बताया कि इन सोलर पॉवर फेंसिंग से वन्य प्राणियों को केवल हल्का झटका लगता है व विशेष हानि नहीं होती है।
फेंसिंग के समानांतर हाथी अवरोधक खाई बनाई जाएगी, जिससे जन-धन हानि कम की जा सके। बैठक में उपस्थित विशेषज्ञों द्वारा सुझाव दिया गया कि हाथी आवागमन के गलियारे में धान और गन्ने की फसल के स्थान पर मिर्च, अदरक सहित अन्य नगदी फसलें ली जाएं जिसे हाथी नुकसान ना पहुंचा सकें।
बैठक में अचानकमार से होकर गुजरने वाली सड़क को आवागमन के लिए बंद नहीं करने पर भी सदस्यों ने चिंता जताई। बैठक में मांग की गई कि अचानकमार से होकर गुजरने वाली सड़क की जगह रतनपुर, केंदा, मझपानी, केंवची से होकर जाने वाले वैकल्पिक मार्ग को दुरस्त कर चालू किया जाए।

जंगली भैंसे के संरक्षण की बनी योजना
राज्य पशु जंगली भैंसों के संरक्षण के लिए अंजोरा स्थित पशु चिकित्सा महाविद्यालय में उपलब्ध अत्याधुनिक तकनीक की सहायता लेने का निर्णय लिया गया। बैठक में बताया गया कि जंगली भैंसों का जेनेटिक प्रोफाइल विश्लेषण सेन्टर फॉर सेलुलर एवं मॉलीक्यूलर बॉयलाजी हैदराबाद में कराया गया, वहां की रिपोर्ट में वनभैंसे की प्रजाति सर्वाधिक शुध्द नस्ल का बताया गया।

कुशल वकीलों का पैनल बनेगा
प्रदेश में वन्य प्राणियों से संबंधित अपराधों पर अंकुश लगाने और वन अपराधियों को कड़ी सजा दिलाने के लिए वन विभाग की ओर से कुशल वकीलों का पैनल तैयार करने का निर्णय लिया गया।
बैठक में बताया गया कि अचानकमार टाइगर रिजर्व के छह गांवों को नजदीक स्थित बसाहटों में व्यवस्थापित किया गया है और प्रति परिवार उनके विकास के लिए दस लाख रुपए खर्च किए गए। वर्ष 2010-11 में इसके लिए 7.24 करोड़ रुपए की राशि दी गई।
बार नवापारा अभयारण्य में स्थित तीन गांवों के व्यवस्थापन की कार्ययोजना भी बना ली गई है। अचानकमार टाइगर रिजर्व और सीतानदी-उदंती अभयारण्य में रिक्त पदों को शीघ्र भरने के निर्देश दिए गए।
कोटमी सोनार में बढ़ी मगरमच्छों की संख्या
राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक में जानकारी दी गई कि कोटमी सोनार में एक ही तालाब में रखे गए मगरमच्छों की संख्या बढ़ने के कारण उनके हिंसक होने का खतरा बढ़ गया है।
सौ से अधिक मगरमच्छ होने के कारण उनसे आसपास के स्थानों में रहने वाले लोगों पर आक्रमण करने का खतरा बढ़ गया है। इन पर निगरानी रखने के लिए ग्रामीणों का सहयोग लेने का भी निर्णय लिया गया।

गिरौदपुरी जैतखाम होगा यूनेस्को की विश्व धरोहरों के समकक्ष
रायपुर.छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 145 किलोमीटर की दूरी पर अठारहवीं सदी के महान समाज सुधारक गुरू बाबा घासीदास की जन्म भूमि और तपोभूमि गिरौदपुरी में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के जरिए बन रहा 243 फीट की ऊंचाई का जैतखाम दुनिया में आधुनिक भारतीय इंजीनियरिंग प्रतिभा का एक शानदार उदाहरण होगा।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित लगभग आठ सौ वर्ष पुराना 237.8 फीट (72.5 मीटर) ऊंची कुतुब मीनार भारतीय इतिहास और पुरातत्व की बहुमूल्य धरोहर के रूप में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारक सूची में शामिल है, जिसकी ऊंचाई छत्तीसगढ़ के गिरौदपुरी में 51 करोड़ रूपए से भी अधिक लागत से बन रहे विशाल जैतखाम से लगभग पांच मीटर कम है। गिरौदपुरी में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बनवाए जा रहे इस गगन चुम्बी जैतखाम की ऊंचाई 243 फीट (करीब 77 मीटर) होगी।
इस प्रकार कुतुब मीनार से करीब पांच मीटर ऊंचे इस जैतखाम का निर्माण पूर्ण होने पर इसकी गिनती भी इतिहास और आधुनिक स्थापत्य कला की दृष्टि से दुनिया की एक अनमोल धरोहर के रूप में होने लगेगी और यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारकों के समकक्ष आ जाएगा।
सतनाम पंथ के प्रवर्तक बाबा गुरू घासीदास का जन्म गिरौदपुरी में लगभग ढाई सौ साल पहले, 18 दिसम्बर 1756 को हुआ था।
उन्होंने इसी गांव के नजदीक छाता पहाड़ में कठिन तपस्या की और अपने आध्यात्मिक ज्ञान के जरिए देश और दुनिया को सत्य, अहिंसा, दया, करूणा, परोपकार जैसे सर्वश्रेष्ठ मानवीय मूल्यों की शिक्षा देकर सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।
इसके फलस्वरूप यह गांव विशेष रूप से छत्तीसगढ़ की जनता की आस्था का प्रमुख केन्द्र बन गया, जहां बाबा घासीदास के महान विचारों के साथ-साथ उनकी यश-कीर्ति को जन-जन तक पहुंचाने और दूर-दूर तक फैलाने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में राज्य सरकार के लोक निर्माण विभाग ने गिरौदपुरी में करीब तीन वर्ष पहले कुतुब मीनार से भी ऊंचे इस विशाल जैतखाम का निर्माण शुरू किया था, जो अब तेजी से पूर्णता की ओर अग्रसर है।

खेती में राष्ट्रीय औसत से आगे है छत्तीसगढ़ प्रदेश
देश की औसत रफ्तार से काफी आगे चल रहा है। छत्तीसगढ़ में कृषि पांच प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रही है जबकि राष्ट्रीय औसत तीन प्रतिशत है।

राज्य निर्माण के बाद खेती में जबर्दस्त बदलाव आया है। यही वजह है कि राज्य निर्माण के समय की कुल पैदावार 58 लाख 27 टन अब बढ़कर 80 लाख टन से अधिक हो गई है।
प्रदेश की 80 फीसदी आबादी की अर्थव्यवस्था खेती से ही संचालित होती है। छत्तीसगढ़ में इस समय करीब 44 लाख हेक्टेयर में खेती हो रही है। इसमें धान का रकबा करीब 35 लाख हेक्टेयर है। खेती के क्षेत्र में रमन सरकार के पिछले सात सालों में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं।
उन्नत तकनीक पर काम हुआ है और किसानों को आधुनिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया गया है। सरकार ने किसानों की मानसून पर निर्भरता कम करने की दिशा में कई अहम निर्णय लिए।
इसको इन आंकड़ों से भी समझा जा सकता है कि जब राज्य बना तब छत्तीसगढ़ मे मात्र 72 हजार सिंचाई पंप कनेक्शन थे लेकिन आज राज्य के 2 लाख 40 हजार से अधिक किसानों के पास सिंचाई पंप हैं।
सिंचाई का रकबा बढ़ाने की दिशा में भी ठोस काम हुआ। इसके चलते सिंचित क्षेत्र 23 से बढ़कर 31 प्रतिशत से अधिक हो गया है। राष्ट्रीय औसत 48 प्रतिशत की ओर यह तेजी से बढ़ रहा है।
सरकार द्वारा समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की ठोस व्यवस्था किए जाने के कारण किसानों के मन में खेती के प्रति उत्साह बढ़ा है। पिछले साल 40 लाख टन खरीदने के बाद इस वर्ष किसानों से 50 लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा गया है।
सबसे कम ब्याज दर पर ऋण :
सरकार ने किसानों को तीन प्रतिशत की किफायती ब्याज दर पर लोन देने की व्यवस्था की है। यह कृषि ऋण खरीफ एवं रबी की विभिन्न फसलों के बीज, खाद, कृषि यंत्र सहित पौध संरक्षण, औषधि आदि के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है।
यह सुविधा वित्तीय वर्ष 2008-09 से दी जा रही है। किसानों को इतनी कम ब्याज दर पर खेती के लिए ऋण सुविधा देने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है।
नदियों के पानी को रोकने के उपाय
छत्तीसगढ़ में नदियों का पानी काफी मात्रा में बह जाता है। इस पानी को रोककर खेतों की प्यास बुझाने की दिशा कदम उठाए गए हैं। बड़ी सिंचाई परियोजनाओं की मंजूरी में समय लगता है, इस कारण नदियांे पर छोटे-छोटे एनीकट बनाकर पानी रोकने का इंतजाम किया जा रहा है।
ऐसे 593 एनीकट बनाने का निर्णय लिया जा चुका है। इनमें से करीब एक तिहाई बन चुके हैं। इनके अलावा लघु सिंचाई योजनाओं को सरकार हाथ में ले रही है।
लघु सिंचाई योजनाओं की भागीदारी
राज्य में सर्वाधिक 70 प्रतिशत सिंचाई नहरों से होती है। वर्षा की अनिश्चितता, अतिवृष्टि-अनावृष्टि आदि परिस्थितियों से निपटने और तालाबों और कुंओं से सिंचाई रकबे में बढ़ोतरी के लिए सिंचाई के नये साधनों के रूप में कुंआ, छोटे तालाब, नलकूप सहित सिंचाई की छोटी परियोजनाओं पर भी तेजी से काम हुआ है।
लघु सिंचाई नलकूप योजना के तहत 22 हजार 207 नलकूप खनन कर पम्प स्थापना के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई गई है।
"कृषि की विकास दर को बनाए रखना बड़ी चुनौती है। इस दर को आगे बढ़ाने के उपाय किए जा रहे हैं। इसके लिए एलायड सेक्टर पर भी काम किया जा रहा है। इसमें पशुधन विकास भी शामिल है।"
चंद्रशेखर साहू,कृषि मंत्री, छत्तीसगढ़ शासन

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

पर्यटन

खूबसूरत महाबलेश्वर
समुद्र तल से 1372 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह महाराष्ट्र का सबसे अधिक ऊँचाई वाला लोकप्रिय व खूबसूरत पर्वतीय स्थल है। यह ब्रिटिशकाल में बॉम्बे प्रेसीडेंसी की ग्रीष्मकालीन राजधानी था। महाबलेश्वर की हरियाली से लबालब मनोरम दृश्यावलियाँ पर्यटक को स्वप्नलोक में विचरण करने को विवश कर देती हैं।
यह कृष्णा नदी का उद्गम स्थान है जो सह्य पर्वत से निकलती है। महाराष्ट्र व आंध्रप्रदेश से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। यह 400 मील लंबी नदी है। पश्चिमी घाट में महाबलेश्वर का अपना अलग सम्मोहन है। हरे-भरे मोड़ों वाली घुमावदार सड़कों पर से आप जैसे-जैसे महाबलेश्वर की ओर बढ़ेंगे, वैसे-वैसे हवा की ताजगी व ठंडक महसूस कर आप अपनी शहरी थकान और चिन्ताओं को भूल जाएँगे।
महाबलेश्वर जाने का असली मजा अपना वाहन लेकर जाने में है क्योंकि वहाँ स्थित 30 दर्शनीय स्थल देखने के लिए बस काम नहीं आती। जिप्सी, मारुति जीप, सिएरा या मोटरसाइकल पर जाने की बात कुछ और ही है। यह वेन्ना झील के आसपास 10वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
महाबलेश्वर मुंबई से 247, पुणे से 120, औरंगाबाद से 348, पणजी से 430 कि.मी. दूर है। महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम यहाँ के लिए मुंबई व पुणे से विशेष लक्झरी बसें चलाता है। यहाँ खाने-पीने और ठहरने की सामान्य सुविधा उपलब्ध है। सन्‌ 1828 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गवर्नर सर जॉन मेलकम द्वारा खोजे गए महाबलेश्वर में देखने योग्य लगभग 30 पॉइंट हैं। एलाफिस्टन पॉइंट, माजोरी पॉइंट, सावित्री पॉइंट, आर्थर पॉइंट, विल्सन पॉइंट, हेलन पॉइंट, नाथकोंट, लाकविग पॉइंट, बॉम्बे पार्लर, कर्निक पॉइंट और फाकलेंड पॉइंट वादियों का नजारा देखने के लिए आदर्श जगहें हैं।
महाबलेश्वर के दर्शनीय स्थानों में लिंगमाला वाटर फाल, वेन्ना लेक, पुराना महाबलेश्वर मंदिर प्रमुख हैं। भिलर टेबललैंड, मेहेर बाबा गुफाएँ, कमलगर किला और हेरिसन फोली भी दर्शनीय हैं।
प्रतापगढ़
यह महाबलेश्वर से 24 कि.मी. दूर 900 मीटर की ऊँचाई पर है। यह उन किलों में से एक है जिसका निर्माण छत्रपति शिवाजी ने सन्‌ 1656 में अपने निवास स्थान के लिए किया था। यहाँ मराठा साम्राज्य ने एक निर्णायक मोड़ लिया जब शिवाजी ने एक ताकतवर योद्धा अफजल खान को नाटकीय तरीके से मार डाला।
पंचगनी
कृष्णा घाटी में दक्षिण में स्थित पंचगनी महाबलेश्वर से मात्र 19 कि.मी. दूर है। यह चारों ओर से रमणीक दृश्यों से भरपूर होने के कारण सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहाँ टेबल टॉप या टेबल लैंड है, जहाँ अनगिनत फिल्मों के प्रेमगीतों की शूटिंग होती रहती है। यहाँ पर्वत श्रृंखला को देखना और तेज हवाओं से बात करना एक अनूठा अनुभव है।
सह्याद्रि पर्वत की पश्चिमी श्रेणी में स्थित लोनावाला और खंडाला दो रम्य पहाड़ियाँ हैं। मुंबई-पुणे हाइवे पर ये पहाड़ियाँ मुंबई से 118 कि.मी. और पुणे से 67 कि.मी. की दूरी पर स्थित हैं। इन दोनों के बीच मात्र 5 कि.मी. का फासला है। समुद्र तल से 625 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इन स्थलों की खोज 1871 में मुंबई प्रेसीडेंसी के गवर्नर सर एल. फिस्टन ने की थी। यहाँ के नैसर्गिक सौंदर्य व स्वास्थ्यवर्धक जलवायु के आकर्षण में उन्होंने इसका पर्यटन स्थल के रूप में विकास कर दिया। यहाँ पहुँचने के लिए मुंबई से ट्रेन, बसों तथा टैक्सियों की अच्छी सुविधा है। ट्रेन से 3 घंटे में लोनावाला पहुँच सकते हैं। मुंबई से हर आधे घंटे बाद बसें मिलती हैं। दिनभर सैर-सपाटा करके पर्यटक रात में मुंबई वापस लौट सकते हैं।
वर्षाकाल में यहाँ का सौंदर्य और भी बढ़ जाता है। उन दिनों घने बादल पहाड़ियों को ढँक लेते हैं।
घूमते हुए ऐसा लगता है जैसे बादलों के बीच पहुँच गए हों। पहाड़ियाँ हरी-भरी हो जाती हैं। जगह-जगह झरने फूट पड़ते हैं। नैसर्गिक सुंदरता के साथ ही यहाँ समीप ही ऐतिहासिक और पुरातत्व महत्व की कारला, भाजा और बेड़सा गुफाएँ भी हैं।
लोनावाला और खंडाला में देखने योग्य एक से बढ़कर एक सौंदर्य स्थल हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है मानों प्राकृति ने अपनी हरी-भरी ओढ़नी सारे क्षेत्र में फैला दी है।
आकर्षक स्थल
लोनावाला झील : यह नगर से 15 कि.मी. दूर आकर्षक पिकनिक स्थल है। यहाँ झील चारों ओर से प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है। यह सैलानियों को बेहद आकर्षित करती है।
तुंगरली झील : यह नगर का जल का प्रमुख स्रोत है। रेलवे स्टेशन से तीन कि.मी. दूर स्थित इस झील के रमणीय दृश्य पर्यटकों को बरबस मोह लेते हैं। झील के पास ही योग प्रशिक्षण केंद्र है। एक अस्पताल भी है जिसमें रोगियों का इलाज योग के द्वारा किया जाता है।
राजमची किला : लोनावाला रेलवे स्टेशन से यह 7 कि.मी. दूर है। यहाँ छत्रपति शिवाजी द्वारा बनवाया गया एक विशालकाय दुर्ग है। लोग इसे शाही छत भी कहते हैं।
मुमुज चिड़ियाघर : यह राजमची से एक कि.मी. दूर है। इसमें अनेक प्रकार के पशु-पक्षी हैं। यह अपराह्न 4 से 6 बजे तक खुला रहता है।
बलवन बाँध : इस स्थान के समीप एक बेहद खूबसूरत उद्यान है। शाम के समय यहाँ सैर करने का अपना अलग ही आनंद है। यह लोनावाला से डेढ़ कि.मी. दूर है।
कारला गुफाएँ : ईसा पूर्व डेढ़ सौ वर्ष की इन गुफाओं से निर्मित भित्ति चित्र और मूर्तियाँ शिल्पकला के बेजोड़ नमूने हैं जो देखते बनते हैं। ये लोनावाला से लगभग 12 कि.मी. दूर तथा मुख्य सड़क से डेढ़ कि.मी. की दूरी पर स्थित हैं। ये गुफाएँ बाहरी व भीतरी दोनों ओर से पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। गुफाओं के द्वार पर स्थित खंभों पर शेरों की आकृतियाँ खुदी हुई हैं। खंभों वाली चौखट पर उकेरी गई मिथुन जोड़ों की तस्वीरें भी पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।
लोहागढ़ किला : यह किला एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। ऊपर से नीचे बसी बस्तियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है जो बड़ा लुभावना लगता है।
वेलिंगटन के ड्यूक की नाक : इस पहाड़ी के शिखर पर एक चट्टान नाक के आकार में उभरी हुई है, जो इंग्लैंड के राजकुमार की नाक से मेल खाती थी तभी से इस पहाड़ी का यह नाम मशहूर हो गया। यह खंडाला की सबसे प्रसिद्ध पहाड़ी है।
भाजा की गुफाएँ : मुख्य सड़क से 3 कि.मी. दूर भाजा की 18 गुफाएँ लगभग दो सौ ईसा पूर्व की हैं। इसके दक्षिण में 14 स्तूपों का एक अनोखा समूह है जिसमें 5 स्तूप अंदर की ओर तथा 9 बाहर की ओर हैं।
वेड्सा की गुफाएँ : ये कामशेत स्टेशन से 6 कि.मी. दक्षिण-पूर्व में हैं, जिन्हें देखा जा सकता है।

पुस्तक-समीक्षा

बिकी हुई लड़कियों का दर्द
द रोड ऑफ लॉस्ट इनोसंस : पुस्तक समीक्षा

बचपन खोकर जिन बच्चियों को देह व्यापार के दलदल में फँसना पडता है, वे जिन हालात व तकलीफों से होकर गुजरती हैं उसी की दास्ताँ है 'द रोड ऑफ लॉस्ट इनोसंस'। इसी तरह का दर्द भुगत चुकी सोमाली माम की आपबीती इन बच्चियों के दर्द की अभिव्यक्ति है। गरीब कंबोडियाई परिवार में जन्मी, कंबोडिया के उथल-पुथल के दौर में जंगल में रहने वाली अनाथ सोमाली। तब बचपन में वह अपना दुःख दर्द पेड़-पौधों से बाँटती थी।
तभी 9-10 साल की उम्र में उसे 50-55 साल के आदमी को सौंपते हुए कहा गया कि ये नानाजी शायद उसे उसके रिश्तेदारों को ढूँढने में मदद करेंगे। दरअसल उसे इस तथाकथित नाना को बेचा गया था।
जवानी में कदम रखते ही उस बुजुर्ग की घिनौनी हरकतें, उधारी के खातिर चीनी परचूनी द्वारा किया बलात्कार और फिर 14 साल की उम्र में जबरन विवाह... इन सबके बीच उसे कभी कुछ भी बोलने का मौका ही नहीं दिया गया। पति के लाम पर जाते ही उस बुजुर्ग ने तो उसे चकलाघर पर ही बेच दिया। फिर तो जिंदगी दर्द, तकलीफ, तिरस्कार, अपमान, घृणा और खुद ही से घिन में तब्दील होती गई।
मगर अपनी हिम्मत और साहस से एक दिन सोमाली वहाँ से छूट गई। लेकिन छूटने के बाद चैन की साँस लेकर वहाँ से भाग जाने के बजाए सोमाली ने ऐसे ही नर्क में फँसी अन्य लड़कियों को छुड़ाने का बीड़ा उठाया। देह व्यवसाय में फँसी लड़कियों का इलाज कराने व भाग निकलने में भी उनकी मदद की। लेकिन भागने वाली कई लड़कियाँ घर नहीं लौट सकती थीं। उनके गरीब माँ-बाप या रिश्तेदारों ने ही उन्हें बेचा था। बचकर वे कहाँ जातीं? अतः सोमाली ने अपने फ्रांसीसी मित्रों की मदद से एक एनजीओ कायम किया और लड़कियों के रहने, खाने और पुनर्वास में मदद की। उसके केंद्र ने अब तक 3000 से अधिक बच्चियों को अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बनाया है।
सोमाली कहती हैं कि अब भी ये बर्बर अत्याचार जारी हैं। कंबोडिया में यौन व्यापार अधिक व्यावसायिक बना है। कंबोडिया से लड़कियाँ थाईलैंड जाती हैं जबकि विएतनाम से लड़कियाँ कंबोडिया आती हैं। यह सब रोकने के लिए उसकी अपनी कोशिशें जारी हैं, जो काबिल-ए-तारीफ तो हैं ही, साथ ही कईयों को दिशा देने वाली भी हैं। अपनी इस आत्मकथा में सोमाली ने यही सब कहने की कोशिश की है।

शनिवार, 20 नवंबर 2010

जमीन के ऊपर कब्रिस्तान
दुनिया के किसी भी हिस्से में कब्रिस्तान के नाम पर दो गज जमीन के नीचे खोदी गई कब्र ही याद आती है। लेकिन ब्राजील में ऐसा कब्रिस्तान बनाया गया है जो जमीन के ऊपर है। यह बहुमंजिला कब्रिस्तान है।
ब्राजील के सेंटोस शहर में बनाए गए इस कब्रिस्तान में मरने के बाद समुद्र, जंगल, स्टेडियम या फिर बस्ती की ओर रुख करके चिरनिद्रा में सोने का विकल्प भी मौजूद है। इस इच्छा को पूरा करने के लिए मरने से पहले इसका जिक्र या तो वसीयत में करना होगा या अपने परिजनों को पहले से बता कर रखना होगा।
कब्रिस्तान के निदेशक मारियो आर अफ्रीकानो बताते हैं कि यह इमारत 14 मंजिला है और इसमें 16000 कब्रें बनाई गई है। भविष्य में जरूरत पड़ने पर कब्रिस्तान को 32 मंजिल तक बढ़ाया जा सकता है। इस प्रकार सबसे ऊँची कब्र जमीन से 108 मीटर ऊँची है। इसमें लेटने पर अपने आप स्वर्ग के करीब होने का एहसास होने लगता है।
अफ्रीकानो बताते हैं कि इसे दुनिया की सबसे अलग और सबसे ऊँची कब्रगाह होने के कारण इसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज हो गया है। रंगीन कमरों वाले इस कब्रिस्तान में कब्र के आसपास रोशनी का भी पर्याप्त इंतजाम किया है।
किसी वीआईपी को दफनाने के लिए कब्रिस्तान में शाही इंतजाम भी किए गए हैं। ऐसे लोगों के लिए इंपीरियल रूम है जिसमें अंतिम संस्कार के समय मृतक के 300 परिजन आराम से शामिल हो सकते हैं। गम हल्का करने के लिए एक मिनी बार भी है और शानदार वेटिंग रूम भी है।
वह कहते हैं कि वैसे तो किसी की मौत सभी के लिए बेहद दुखद क्षण होता है, लेकिन इस कब्रिस्तान की सुविधाएँ इस पीड़ा को सहन करने में मददगार साबित होंगी।
अफ्रीकानो बताते हैं कि ब्राजील की गर्म जलवायु में 24 घंटे के भीतर शव का अंतिम संस्कार जरूरी है। जबकि मातम की हालत में परिजनों के लिए यह कम समय साबित होता है। इसलिए ऐसे कब्रिस्तान की जरूरत महसूस हुई जिसमें सारी सुविधाएँ भी हों और लोगों को अंतिम संस्कार के लिए भागमभाग न करनी पड़े।
यह ऐसी जगह स्थित है जिसके एक छोर पर समुद्र दिखता है, दूसरे पर सदाबहार जंगल और तीसरे छोर पर सेंटोस एफसी स्टेडियम। जिसमें फुटबॉल के महान खिलाड़ी पेले ने अपने करियर के कई शानदार मैच खेले। अफ्रीकानो यह जानकारी देना नहीं भूलते कि स्टेडियम की ओर रुख वाली एक कब्र में पेले के मरहूम पिता को दफनाया गया। वह कहते हैं। यही कारण है कि मेरी नजर में यह कब्रिस्तान नहीं बल्कि एक मेमोरियल है।

बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

आलेख

नवरात्रि : नौ दिन के नौ प्रसाद
प्रथम नवरात्रि के दिन माँ के चरणों में गाय का शुद्ध घी अर्पित करने से आरोग्य का आशीर्वाद मिलता है। तथा शरीर निरोगी रहता है।
दूसरे नवरात्रि के दिन माँ को शक्कर का भोग लगाएँ व घर में सभी सदस्यों को दें। इससे आयु वृद्धि होती है।
तृतीय नवरात्रि के दिन दूध या दूध से बनी मिठाई खीर का भोग माँ को लगाकर ब्राह्मण को दान करें। इससे दुखों की मुक्ति होकर परम आनंद की प्राप्ति होती है।
माँ दुर्गा को चौथी नवरात्रि के दिन मालपुए का भोग लगाएँ। और मंदिर के ब्राह्मण को दान दें। जिससे बुद्धि का विकास होने के साथ-साथ निर्णय शक्ति बढ़ती है।
नवरात्रि के पाँचवें दिन माँ को केले का नैवेद्य चढ़ाने से शरीर स्वस्थ रहता है।
छठवीं नवरात्रि के दिन माँ को शहद का भोग लगाएँ। जिससे आपके आकर्षण शक्त्ति में वृद्धि होगी।
सातवें नवरात्रि पर माँ को गुड़ का नैवेद्य चढ़ाने व उसे ब्राह्मण को दान करने से शोक से मुक्ति मिलती है एवं आकस्मिक आने वाले संकटों से रक्षा भी होती है।
नवरात्रि के आठवें दिन माता रानी को नारियल का भोग लगाएँ व नारियल का दान कर दें। इससे संतान संबंधी परेशानियों से छुटकारा मिलता है।
नवरात्रि की नवमी के दिन तिल का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान दें। इससे मृत्यु भय से राहत मिलेगी। साथ ही अनहोनी होने की‍ घटनाओं से बचाव भी होगा।

रविवार, 12 सितंबर 2010

गणेशोत्सव

क्यों मनाते हैं श्रीगणेश चतुर्थी
क्या है श्री सिद्धि विनायक व्रत
प्रथम गणपित पूजिए
भारतीय संस्कृति के सुसंस्कारों में किसी कार्य की सफलता हेतु पहले उसके मंगला चरण या फिर पूज्य देवों के वंदना की परम्परा रही है। किसी कार्य को सुचारू रूप से निर्विघ्नपूर्वक सम्पन्न करने हेतु सर्वप्रथम श्रीगणेश जी की वंदना व अर्चना का विधान है। इसीलिए सनातन धर्म में सर्वप्रथम श्रीगणेश की पूजा से ही किसी कार्य की शुरूआत होती है।
श्रीगणेश पूजा अपने आप में बहुत ही महत्वपूर्ण व कल्याणकारी है। चाहे वह किसी कार्य की सफलता के लिए हो या फिर चाहे किसी कामनापूर्ति स्त्री, पुत्र, पौत्र, धन, समृद्धि के लिए या फिर अचानक ही किसी संकट मे पड़े हुए दुखों के निवारण हेतु हो। अर्थात्‌ जब कभी किसी व्यक्ति को किसी अनिष्ट की आशंका हो या उसे नाना प्रकार के शारीरिक या आर्थिक कष्ट उठाने पड़ रहे हो तो उसे श्रद्धा एवं विश्वासपूर्वक किसी योग्य व विद्वान ब्राह्मण के सहयोग से श्रीगणपति प्रभु व शिव परिवार का व्रत, आराधना व पूजन करना चाहिए।
इस वर्ष इस श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत 11 सितंबर 2010, दिन शनिवार को मनाया जाएगा इसे श्रीगणेश चतुर्थी, पत्थर चौथ और कलंक चौथ के नाम भी जाना जाता है। यह प्रति वर्ष भाद्रपद मास को शुक्ल चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। तृतीया तिथि का क्षय होने के कारण द्वितीया युक्त चतुर्थी में यह व्रत किया जाएगा। चतुर्थी तिथि को श्री गणपति भगवान की उत्पत्ति हुई थी इसलिए इन्हें यह तिथि अधिक प्रिय है। जो विघ्नों का नाश करने वाले और ऋद्धि-सिद्धि के दाता हैं। इसलिए इन्हें सिद्धि विनायक भगवान भी कहा जाता है।
पूजा विधिः- जो गणेश व्रत या पूजा करता है उसे मनोवांछित फल तथा श्रीगणेश प्रभु की कृपा प्राप्त होती है। पूजन से पहले नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर शुद्ध आसन में बैठकर सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि एकत्रित कर क्रमश: पूजा करें। भगवान श्रीगेश को तुलसी दल व तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए। उन्हें, शुद्ध स्थान से चुनी हुई दूर्वा को धोकर ही चढ़ाना चाहिए।
श्रीगणेश भगवान को मोदक (लड्डू) अधिक प्रिय होते हैं इसलिए उन्हें देशी घी से बने मोदक का प्रसाद भी चढ़ाना चाहिए। श्रीगणेश स्त्रोत से विशेष फल की प्राप्ति होती है। श्रीगणेश सहित प्रभु शिव व गौरी, नन्दी, कार्तिकेय सहित सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा षोड़षोपचार विधि से करना चाहिए। व्रत व पूजा के समय किसी प्रकार का क्रोध व गुस्सा न करें। यह हानिप्रद सिद्ध हो सकता है, श्रीगणेश का ध्यान करते हुए शुद्ध व सात्विक चित्त से प्रसन्न रहना चाहिए।
शास्त्रानुसार श्रीगणेश की पार्थिव प्रतिमा बनाकर उसे प्राणप्रति‍ष्ठित कर पूजन-अर्चन के बाद विसर्जित कर देने का आख्यान मिलता है। किन्तु भजन-कीर्तन आदि आयोजनों और सांस्कृतिक आयोजनों के कारण भक्त 1, 2, 3, 5, 7, 10 आदि दिनों तक पूजन अर्चन करते हुए प्रतिमा का विसर्जन करते हैं। 11 सितंबर को प्रातः कालीन समय से ही श्रीगणेश का पूजन-अर्चन का शुभारंभ हो जाएगा। श्रीगणेशोत्सव की महाराष्ट्र, दिल्ली, गुजरात आदि स्थानों में बड़ी ही धूम होती है।
भक्तगत यह ध्यान दें, कि किसी भी पूजा के उपरांत सभी आवाहित देवताओं की शास्त्रीय विधि से पूजा-अर्चना करने के बाद उनका विसर्जन किया जाता है, किन्तु श्री लक्ष्मी और श्रीगणेश का विसर्जन नहीं किया जाता है। इसलिए श्रीगणेश जी की प्रतिमा का विसर्जन करें, किन्तु उन्हें अपने निवास स्थान में श्री लक्ष्मी जी सहित रहने के लिए निमंत्रित करें।
पूजा के उपरांत अपराध क्षमा प्रार्थना करें, सभी अतिथि व भक्तों का यथा व्यवहार स्वागत करें और पूजा कराने वाले ब्राह्मण को संतुष्ट कर यथा विधि पारिश्रामिक (दान) आदि दें, उन्हें प्रणाम कर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर दीर्घायु, आरोग्यता, सुख, समृद्धि, धन-ऐश्वर्य आदि को बढ़ाने के योग्य बनें।

फिल्म समीक्षा

दबंग : फिल्म समीक्षा
कुछ स्टार्स की अदाएँ दर्शकों को इतनी पसंद आती है कि हर किरदार को वे उसी तरह अभिनीत करते हैं जैसा कि दर्शक देखना चाहते हैं। रजनीकांत चाहे चोर बने या पुलिस उनका अभिनय एक-सा रहता है।
इसी तरह सलमान का भी स्टाइल है। अकड़ कर रहना। बिना एक्सप्रेशन के संवाद बोलना। किसी से नहीं डरना। उनके व्यक्तित्व में एक किस्म की दबंगता है और उसी को ध्यान में रखकर ‘दबंग’ बनाई गई है।
सलमान की ये स्टाइल तभी अच्छी लगती है जब कहानी में दम हो। दूसरे किरदारों को अच्छी तरह से पेश किया गया हो। ‘दबंग’ में सलमान की अदाएँ हैं, लेकिन कहानी ढूँढे नहीं मिलती। हर फ्रेम में सलमान को इतना ज्यादा महत्व दिया गया है कि दूसरे किरदारों को उभरने का मौका नहीं मिलता।
फिल्म के लेखक और डायरेक्टर का ध्यान ऐसे दृश्यों को गढ़ने में रहा कि बस सलमान ही सलमान नजर आए। उन्हें बेहतरीन संवाद बोलने को मिले। हीरोगिरी दिखाने का भरपूर मौका मिला, लेकिन कहानी के अभाव में ये सीन बनावटी नजर आते हैं।
चुलबुल पांडे (सलमान खान) एक पुलिस इंसपेक्टर है जो गुंडों को लूटता है। अपने आपको वह रॉबिनहुड पांडे कहता है। चुलबुल अपनी माँ (डिम्पल कपाड़िया) को बेहद चाहता है, लेकिन अपने सौतेले पिता (विनोद खन्ना) और सौतेले भाई माखनसिंह (अरबाज खान) से चिढ़ता है।
रोजा (सोनाक्षी सिन्हा) पर चुलबुल का दिल आ जाता है। छेदी सिंह (सोनू सूद) एक स्थानीय नेता है जो चुलबुल को पसंद नहीं करता। माँ की मौत के बाद चुलबल के अपने सौतेले भाई और पिता से संबंध खराब हो जाते हैं और इसका लाभ छेदी उठाता है।
वह दोनों भाइयों के बीच की दूरी को और बढ़ाता है। किस तरह माखन और चुलबुल में दूरी मिटती है और वे छेदी से मुकाबला करते हैं यह फिल्म का सार है।
फिल्म की कहानी बेहद कमजोर है। नायक अपने को रॉबिनहुड कहता है लेकिन ऐसे दृश्य गायब हैं जिसमें वह लोगों की मदद कर रहा हो। अपने सौतेले भाई से वह क्यों चिढ़ता है, इसके पीछे भी कोई ठोस वजह नहीं है जबकि उसका भाई कभी उसका बुरा नहीं करता। माखन को उसके माँ-बाप मंदबुद्धि कहते हैं, लेकिन वह होशियार नजर आता है।
इंटरवल तक सारा फोकस सलमान पर है। एक सीन में वे एक्शन करते हैं, दूसरे में रोमांस और तीसरे में धाँसू संवाद बोलते नजर आते हैं, जिनका मुख्य कहानी से कोई लेना देना नहीं है।
ऐसे कई दृश्य हैं जो ठूँसे हुए लगते हैं। मिसाल के तौर पर सोनाक्षी सिन्हा को थाने बुलाया जाता है और उन्हें हँसाने की कोशिश की जाती है। सलमान और सोनाक्षी के बार-बार मिलने वाले दृश्य भी दोहराव के शिकार हैं। गृहमंत्री को बम से उड़ाने वाला प्रसंग सहूलियत के मुताबिक लिखा गया है।
हीरोगिरी तब अच्छा लगता है जब खलनायक वाले किरदार में भी दम हो। उसे शक्तिशाली बताया जाए और फिल्म में उसकी मौजूदगी का लगातार अहसास हो। लेकिन ‘दबंग’ के खलनायक सोनू सूद के किरदार को अंत में उभारा गया है ताकि क्लाइमैक्स वजनदार हो, लेकिन आधी से ज्यादा फिल्म में वे गायब रहते हैं।
निर्देशक अभिनव कश्यप ने इस फिल्म को पूरी तरह से सलमान के फैंस को ध्यान में रखकर बनाया है, लेकिन कई बेसिक बातों को वे भूल गए। यदि वे दूसरे कैरेक्टर्स पर भी ध्यान देते, तो फिल्म प्रभावी हो सकती थी। उत्तर प्रदेश के देहाती इलाके को उन्होंने अच्छे से पेश किया है।
फिल्म का संगीत हिट हो गया है, इसलिए गाने अच्छे लगते हैं। हालाँ‍कि गानों को बिना सिचुएशन के रखा गया है। ‘मुन्नी बदनाम हुई’ और ‘तेरे मस्त-मस्त दो नैन’ का फिल्मांकन अच्छा है। एक्शन सीन में नयापन नहीं है और बैकग्राउंड म्यूजिक ‘शोले’ के बैकग्राउंड म्यूजिक की याद दिलाता है।
सलमान खान इस फिल्म की जान है। जैसा उनके प्रशंसक उन्हें देखना चाहते हैं, उसी अंदाज में उन्होंने एक्टिंग की है। उनकी वजह से ही फिल्म में कई ऐसे दृश्य हैं जो राहत प्रदान करते हैं। मनोरंजन करते हैं। इस फिल्म को देखने की एकमात्र वजह वे ही हैं। यदि फिल्म से सलमान को हटा दिया जाए तो यह एक बी-ग्रेड मूवी लगती है। क्लाइमैक्स में उनकी शर्ट फटने वाला सीन उनके फैंस को बेहद पसंद आएगा।
पहली फिल्म में सोनाक्षी सिन्हा आत्मविश्वास से भरपूर नजर आई। सलमान जैसे अनुभवी अभिनेता का उन्होंने बखूबी साथ निभाया। अरबाज खान ने भी अपना किरदार ठीक से निभाया है। सोनू सूद अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रहे हैं। छोटे-छोटे रोल विनोद खन्ना, ओम पुरी, डिम्पल कपाड़िया, टीनू आनंद, महेश माँजरेकर जैसे मँजे हुए कलाकारों ने निभाए। मलाइका अरोरा ने ‘मुन्नी बदनाम हुई’ पर मादक नृत्य किया है।
कुल मिलाकर ‘दबंग’ तभी पसंद आ सकती है जब आप सलमान के बहुत बड़े प्रशंसक हो।

सोमवार, 28 जून 2010

आलेख

वादा करे तो निभाएँ भी
तौबा ये असंभव वादे!

बढ़-चढ़कर बोलने वालों को लोगों द्वारा बड़बोला कहा जाता है। कुछ लोग इसलिए भी बड़बोले कहे जाते हैं कि वे अपने बारे में ढेरों खुशफहमियाँ रखते हैं और अपने गुण स्वयं गाते हुए अपने आपको दुनिया के श्रेष्ठतम लोगों में से मानते हैं।
दूसरी श्रेणी उन लोगों की होती है जो दूसरों को तात्कालिक सांत्वना या दिलासा देने के लिए और अपना बड़प्पन दिखाने के लिए ऐसी बातें कह जाते हैं, ऐसे वादे कर जाते हैं जो पूरे करना उनके लिए तो मुश्किल हो ही जाता है जिनसे वादे किए जाते हैं वे भी बेचारे उनकी बातों में आकर चोट खाते हैं।
हमारी कॉलोनी में शर्माजी अपने 'असंभव' वादों के लिए मशहूर हैं। मेरी सहेली के पति की नौकरी मंदी के चलते छूट गई। शर्माजी सांत्वना प्रकट करते-करते बोले, 'आप चिंता न करें। मेरे साले की तीन फैक्टरियाँ हैं। मैं आपको नौकरी चुटकियों में दिलवा दूँगा।'
सहेली और उसके पति को मानो डूबते में सहारा मिल गया। मगर उसके बाद शर्माजी का कन्नी काटना शुरू हो गया। आखिरकार महीनेभर उनके पीछे पड़ने के बाद सहेली को शर्माजी की खोखले वादे की असलियत का पता चल गया। हमारी महिला सभा की एक पदाधिकारी की माताजी का देहांत हो गया। उन्होंने माताजी की स्मृति में एक 'काव्य-संग्रह' प्रकाशित करने की घोषणा की और एक नवोदित कवयित्री को उस पुस्तक को लिखने का जिम्मा सौंपा।
कवयित्री बेचारी जुटी रही माताजी का जीवनवृत्त तैयार करने में... छः माह के परिश्रम के बाद जब वे तैयार संग्रह लेकर पदाधिकारी के पास पहुँचीं तो टका-सा जवाब मिला 'वो अभी यह विचार स्थगित कर दिया गया है, आगे विचार बना तो आपको सूचित किया जाएगा।'
नौकरी दिलाना, एडमिशन करवाना, पुस्तकें छपवाना, पुरस्कार के लिए अनुमोदन जैसी कई बातें होती हैं जो ये बड़बोले लोग अपना बड़प्पन जताने व स्वयं सहयोगी, लोकवत्सल सिद्ध करने के लिए कर जाते हैं। पर क्या ऐसा करते समय वे एक बार भी सोचते हैं कि दिलासे का यह भ्रम टूटने पर जब वास्तविकता सामने आएगी और उनके वादे भी झूठे साबित होंगे तो उस दुखी व्यक्ति की क्या हालत होगी?
यहाँ एक और घटना का उल्लेख करना जरूरी होगा। मेरे परिचित की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। उनकी बेटी पढ़ने में होनहार थी, परिचित के मित्र ने हामी भरी कि इस वर्ष इसकी फीस मैं भर दूँगा। दिवंगत मित्र की पत्नी भी निश्चिंत होकर आगे की व्यवस्था में लग गई। छः माह पश्चात स्कूल से 40 हजार की बकाया राशि का नोटिस आया और साथ ही न जमा करने पर स्कूल से निकालने की सूचना... परिचित की पत्नी ने जैसे-तैसे रुपए की व्यवस्था की मगर मित्र की वादाखिलाफी से जो रिश्ते टूटे वे क्या फिर बन पाएँगे?
सांत्वना देना, मन रखना, दिलासा देना सभी अच्छा है, मगर यह अवश्य ध्यान रखें कि बड़बोलेपन की होड़ में आप ऐसे वादे, ऐसी बातें तो 'कमिट' नहीं कर रहे हैं जो आपके लिए संभव न हो। आगे जाकर उनके टूटने से सामने वाला दुखी तो होगा ही, अच्छे-खासे संबंधों में भी दरार आ जाएगी। इसलिए बढ़बोलेजी... बंद करें अपने असंभव वादे।

फैशन

खनक रहे हैं हाथों में कंगन
हाथों में नग व कुंदन जड़े रंग-बिरंगे कंगन हो या फूल-पत्ती प्रिंट वाले मैचिंग प्लास्टिक कंगन, आप किसी भी अवसर पर इन्हें किसी भी परिधान के साथ पहन सकती हैं। यूँ तो इन दिनों जींस व टॉप पर युवतियाँ एक हाथ में चार-चार कंगन पहनना पसंद कर रही हैं, वहीं महिलाओं में भी साड़‍ियों के रंग से मैच खाते हुए कंगन पहनने का जबरदस्त खुमार चढ़ा हुआ है। हर कोई चाहता है कि वह इन कंगनों को पहन कर पार्टी में लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बने।
मल्टीकलर्ड हैं खास
इन दिनों मल्टीकलर्ड कंगनों की बाजार में काफी रेंज आई है। जिसके चलते महिलाएँ किसी भी परिधान के साथ हाथों में इन्हें पहन सकती हैं। चूँकि इन कंगनों की खासियत है कि ये कंगन कॉपर व गोल्ड मेटल के बेस के बने हुए हैं, जिनके ऊपर नगों व सतरंगी कुंदनों की सजावट बहुत ही आकर्षक लगती है। ये कंगन 100 से 500 रुपए तक में बाजार में उपलब्ध हैं।
चलन में हैं प्लास्टिक के कंगन
बाजार में इन दिनों कॉलेजगोइंग गर्ल्स के लिए फूल-पत्तियों से सजे कंगन उपलब्ध हैं, जिन्हें युवतियाँ बड़े शौक से जींस व टॉप के साथ पहनती हैं। ये कंगन किसी भी परिधान के साथ मैचकर एक हाथ में पहने जाते हैं। पीले, लाल, हरे व सफेद बेस पर नेचुरल फूल-पत्तियों के डिजाइन युवतियों की कलाइयों को काफी खूबसूरत बनाते हैं। ये कंगन 15 से 30 रुपए तक की कीमत में उपलब्ध हैं।
वुड कंगन भी फैशन में
गोल्डन डिजाइन से सजे वुड कंगन भी देखने में बेहद सुंदर लगते हैं। ये कंगन भी युवतियों द्वारा कॉलेज व छोटी-मोटी पार्टी में पहने जा सकते हैं। इन कंगनों की कीमत भी 10 से 20 रुपए तक है। ये कंगन सस्ते होने के साथ-साथ मजबूत भी होते हैं।

गुरुवार, 24 जून 2010

बालीवुड

मित्र के साथ फोटो पर नाराज़ हुईं रिहाना मशहूर पॉप गायिका रिहाना अपने पुरुष मित्र और बेसबॉल खिलाड़ी मैट कैंप के साथ फोटो लिए जाने पर खासी नाराज़ हैं।

वेबसाइट 'डेलीस्टार डॉट को डॉट यूके' के अनुसार 'अनफेथपुल' में अपनी आवाज़ का जादू बिखेर चुकीं रिहाना संभवत: अपने संबंधों को छिपाना चाहती थीं। परंतु एक रेस्तरां से बाहर निकलते समय उनकी तस्वीर ले ली गई।
वर्तमान में रिहाना 'लास्ट गर्ल आन अर्थ' के तहत विश्वव्यापी दौरे पर निकलेंगी जो अगले महीने अमेरिका से शुरू होगा।


चींटियां और कीड़े-मकोड़े खाती हैं सलमा
हॉलीवुड स्टार सलमा हायक की बातों पर यकीन करें तो उनकी खूबसूरत फिगर का राज़ चींटियां और कीड़े-मकोड़े खाना है। चौंकिए मत क्योंकि सलमा ने खुद एक टीवी शो के दौरान ऐसा कहा है।

डेविड लेटरमैन के टीवी शो में सलमा ने कहा कि भूनी हुई चींटियां लाजवाब होती हैं और कीड़े भी। उनकी अलग-अलग रेसिपी होती है। ये पकाने और खाने में वाकई काफी अच्छी होती हैं।
सन ऑनलाइन के मुताबिक, टॉक शो के दौरान 43 साल की सलमा ने यह भी कहा कि लोगों को ये स्वादिष्ट आहार ज़रूर खाना चाहिए।

कहानी

मुल्ला नसीरूद्दीन और मित्र के कपड़े
मुल्ला नसीरूद्दीन की एक दोस्त से कई वर्षों के बाद मुलाकात हुई। वह उसके गले मिला, पर उसके खराब वस्त्र देख उसके मन में करुणा जागी और उसने अपने लिए सिले कपड़े उसे पहनने को दिए। ये कपड़े उसने अपने लिए सिलाए तो थे, मगर उन्हें कीमती जान वह पहनने में हिचकिचाता था। भोजन करने के बाद नसीरूद्दीन मित्र से बोला, 'चलो, मैं तुम्हें अपने मित्रों से परिचय कराता हूँ।' रास्ते में मित्र के शरीर पर अपने कीमती कपड़े देख नसीरूद्दीन सोचने लगा-यह तो बिलकुल अमीर लगता है और मैं उसका नौकर। मगर कपड़े तो अब वापस लिए नहीं जा सकते।

इतने में उसके एक मित्र का घर दिखाई दिया। वे दोनों अंदर गए। नसीरूद्दीन जब मित्र से उसका परिचय कराने लगा, तो उसका ध्यान वस्त्रों की ओर गया और वह बोला, 'यह मेरा बरसों पुराना दोस्त है। इसने जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे ही हैं।' दोस्त ने सुना, तो बुरा लगा। उसने उस समय तो कुछ नहीं कहा, मगर रास्ते में उसने कहा, 'आपको यह नहीं कहना था कि ये आपके कपड़े हैं।'

'ठीक है! अब मैं ऐसा नहीं कहूँगा,' नसीरूद्दीन ने जवाब दिया। मगर रास्ते में जब एक परिचित से मुलाकात हुई, तो अपने दोस्त का परिचय कराते समय कपड़ों की ओर ध्यान गया, और उसके मुँह से निकल पड़ा, 'इन्होंने ये जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे नहीं इन्हीं के हैं।' दोस्त को फिर बुरा लगा और उसने रास्ते में कहा, 'आपको मेरे कपड़े नहीं है-ऐसा नहीं कहना था नसीरूद्दीन ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा, 'मेरी जबान धोखा खा गई।'

उसने निश्चय किया कि अब वह कपड़ों का जिक्र ही नहीं करेगा, मगर उसके अंतर्चक्षुओं को तो वे कपड़े ही दिखाई दे रहे थे, इसलिए तीसरे मित्र से मुलाकात होने पर उसके मुँह से निकल पड़ा, 'ये मेरे गहरे दोस्त हैं। बड़े अच्छे हैं, मगर मैं यह नहीं बताऊँगा कि इन्होंने जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे हैं या इनके।' अब दोस्त से न रहा गया। वह वापस चल दिया। और उसने घर लौटकर गुस्सा जताते हुए कपड़े वापस कर दिए और दोस्त को छोड़कर वहाँ से चलता बना। नसीरूद्दीन को बड़ा पश्चाताप हुआ, किंतु अब कोई उपाय नहीं था।

कहानी

काँच की बरनी

जीवन में सबकुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, तब कुछ तेजी से पा लेने की भी इच्छा होती है और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं। दर्शनशास्त्र के एक प्रोफेसर कक्षा में आए और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बरनी टेबल पर रखी और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची।

उन्होंने छात्रों से पूछा, "क्या बरनी पूरी भर गई ?" "हाँ," आवाज आई। फिर प्रोफेसर ने कंकर भरने शुरू किए। धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो जहाँ-जहाँ जगह थी वहाँ कंकर समा गए। प्रोफेसर ने फिर पूछा, "क्या अब बरनी भई गई है?" छात्रों ने एक बार फिर हाँ कहा। अब प्रोफेसर ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरू किया। रेत भी उस बरनी में जहाँ संभव था बैठ गई। प्रोफेसर ने फिर पूछा- "क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई न?" हाँ, अब तो पूरी भर गई है," सभी ने कहा।

प्रोफेसर ने समझाना शुरू किया। इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो। टेबल टेनिस की गेंद को भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक समझो। छोटे कंकर का मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बड़ा मकान आदि है। रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार-सी बातें, मनमुटाव, झगड़े हैं। अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिए जगह ही नहीं बचती या कंकर भर दिए होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी। ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है। यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पड़े रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिए अधिक समय नहीं रहेगा।

मंगलवार, 22 जून 2010

मनीषा कोयराला




नेपाल में बॉलीवुड अभिनेत्री मनीषा कोयराला अपने दुल्हे सम्राट देहल के साथ।

प्रजनन क्षमता

क्या है पुरुषों में शुक्राणु निर्माण बंद होने के कारण?
वैज्ञानिकों ने पहली बार ऐसे लक्षणों की पहचान का दावा किया है जो बढ़ती उम्र के कुछ पुरुषों में महिलाओं की ही तरह प्रजनन क्षमता के ह्रास अथवा रजोनिवृत्ति के लिए जिम्मेदार होते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार पुरूषों और महिलाओं की रजोनिवृत्ति में मुख्य अंतर यह है कि महिलाओं में जहां सभी को इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, वहीं पुरूषों में अधिक उम्र के केवल दो प्रतिशत पुरूष ही इससे दो चार होते हैं, जिसे आम तौर पर खराब स्वास्थ्य और मोटापे से जोड़कर देखा जाता है।

मैनचेस्टर विवि और लंदन के इंपीरियल कॉलेज और लंदन विश्वविद्यालय के दल ने आठ यूरोपीय देशों से नमूने एकत्र कर इस प्रयोग को अंजाम दिया । इसमें उन्होंने 40 से 79 साल के पुरूषों में टेस्टोस्टोरोन (मेल सेक्स हार्मोन) जो शुक्राणु बनने और प्रजनन के लिए उतरदायी होता है) के स्तर का अध्ययन कर उक्त निष्कर्ष निकाला।

वैज्ञानिकों के दल ने लोगों से उनके शारीरिक, भौतिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य और उससे जुड़े कुछ सवाल पूछे और पाया कि 32 लोगों में से केवल नौ लोगों में उक्त लक्षण टेस्टोस्टोरोन का स्तर सामान्य से कम होने की वजह से थे। इनमें तीन यौन लक्षण सबसे महत्वपूर्ण रहे। पहला सुबह के समय कामोत्तेजना में कमी, दूसरा यौन विचारों में कमी और तीसरा उत्थानशीलता में कमी शामिल है।

दल ने यह निष्कर्ष निकाला कि यदि किसी पुरूष में यौन प्रवृतियों के यह तीन लक्षण और टेस्टोस्टोरोन हार्मोन के स्तर में कमी पाई जाए तो इसका मतलब है कि उक्त पुरूष रजोनिवृत्ति की प्रक्रिया से गुजर रहा है, लेकिन उस व्यक्ति में इसके अलावा कुछ गैर यौन लक्षण भी पाए जा सकते हैं।

इसमें उन्होंने तीन शारीरिक लक्षणों को चिन्हित किया, जिसमें दौड़ने या वजन उठाने जैसे भारी काम कर पाने में अक्षमता, एक किमी से अधिक की दूरी तक न चल पाना और झुकने और बैठने में परेशानी होना शामिल है। इसके अलावा मनोवैज्ञानिक तौर पर जो लक्षण सामने आए उनमें, ऊर्जा की कमी, उदासी और कमजोरी शामिल हैं। यह शोध लंदन की शोध पत्रिका 'न्यू इंगलैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन' में प्रकाशित हुआ है।

प्रजनन क्षमता

क्या है पुरुषों में शुक्राणु निर्माण बंद होने के कारण?
वैज्ञानिकों ने पहली बार ऐसे लक्षणों की पहचान का दावा किया है जो बढ़ती उम्र के कुछ पुरुषों में महिलाओं की ही तरह प्रजनन क्षमता के ह्रास अथवा रजोनिवृत्ति के लिए जिम्मेदार होते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार पुरूषों और महिलाओं की रजोनिवृत्ति में मुख्य अंतर यह है कि महिलाओं में जहां सभी को इस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, वहीं पुरूषों में अधिक उम्र के केवल दो प्रतिशत पुरूष ही इससे दो चार होते हैं, जिसे आम तौर पर खराब स्वास्थ्य और मोटापे से जोड़कर देखा जाता है।

मैनचेस्टर विवि और लंदन के इंपीरियल कॉलेज और लंदन विश्वविद्यालय के दल ने आठ यूरोपीय देशों से नमूने एकत्र कर इस प्रयोग को अंजाम दिया । इसमें उन्होंने 40 से 79 साल के पुरूषों में टेस्टोस्टोरोन (मेल सेक्स हार्मोन) जो शुक्राणु बनने और प्रजनन के लिए उतरदायी होता है) के स्तर का अध्ययन कर उक्त निष्कर्ष निकाला।

वैज्ञानिकों के दल ने लोगों से उनके शारीरिक, भौतिक और मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य और उससे जुड़े कुछ सवाल पूछे और पाया कि 32 लोगों में से केवल नौ लोगों में उक्त लक्षण टेस्टोस्टोरोन का स्तर सामान्य से कम होने की वजह से थे। इनमें तीन यौन लक्षण सबसे महत्वपूर्ण रहे। पहला सुबह के समय कामोत्तेजना में कमी, दूसरा यौन विचारों में कमी और तीसरा उत्थानशीलता में कमी शामिल है।

दल ने यह निष्कर्ष निकाला कि यदि किसी पुरूष में यौन प्रवृतियों के यह तीन लक्षण और टेस्टोस्टोरोन हार्मोन के स्तर में कमी पाई जाए तो इसका मतलब है कि उक्त पुरूष रजोनिवृत्ति की प्रक्रिया से गुजर रहा है, लेकिन उस व्यक्ति में इसके अलावा कुछ गैर यौन लक्षण भी पाए जा सकते हैं।

इसमें उन्होंने तीन शारीरिक लक्षणों को चिन्हित किया, जिसमें दौड़ने या वजन उठाने जैसे भारी काम कर पाने में अक्षमता, एक किमी से अधिक की दूरी तक न चल पाना और झुकने और बैठने में परेशानी होना शामिल है। इसके अलावा मनोवैज्ञानिक तौर पर जो लक्षण सामने आए उनमें, ऊर्जा की कमी, उदासी और कमजोरी शामिल हैं। यह शोध लंदन की शोध पत्रिका 'न्यू इंगलैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन' में प्रकाशित हुआ है।

रहन सहन

मुंह कैंसर से कॉफी बचाती है
दिन में चार कप कॉफी पीना मुंह के कैंसर से किसी व्यक्ति को बचा सकता है। चिकित्सकों ने हालांकि यह भी कहा है कि कॉफी का सेवन कम मात्रा में ही करना चाहिए क्योंकि इसमें मौजूद कैफीन के कारण दिल की धड़कन और रक्तचाप के बढ़ने का खतरा रहता है।

एक नए शोध के माध्यम से पता चला है कि कॉफी में 1000 तरह के रसायन होते हैं। इसमें एंटीऑक्सीडेंट भी होता है, जो कई तरह के कैंसर के खतरों से इंसान को बचाता है।
अमेरिका, यूरोप और मध्य अमेरिका में किए गए नौ शोधों के माध्यम से इस बात का खुलासा किया गया है। इसके अंतर्गत 5000 कैंसर पीड़ितों और 9000 स्वस्थ लोगों पर नजर रखी गई। दोनों तरह के लोगों में धूम्रपान करने वाले और शराब का सेवन करने वाले लोग भी शामिल थे।
शोध के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कॉफी के सेवन से मुंह के कैंसर से 39 फीसदी तक बचा जा सकता है। साथ ही कॉफी के सेवन से पारयेनक्स जैसी बीमारी से भी बचा जा सकता है।
अकेले ब्रिटेन में हर वर्ष 5500 लोग होंठ, जीभ, टान्सिल, मसूड़ों और मुंह के अन्य हिस्सों में कैंसर की आशंका के कारण परीक्षण कराते हैं। इनमें से 1800 लोगों की मौत मुंह के कैंसर के कारण हो जाती है।

सोमवार, 21 जून 2010

राष्ट्रीय

विकसित था सिंधु घाटी का विज्ञान
क्या सिन्धु घाटी की सभ्यता आज की तरह सुविकसित वैज्ञानिक सभ्यता थी? क्या वे लोग जीवन के आधार डीएनए की संरचना को जान चुके थे? क्या उन्हें जीवन की उत्पत्ति, जैव विकास और सृष्टि के क्रियाकलापों की वैज्ञानिक जानकारी थी? अनादिकाल से अनुत्तरित इन सवालों के जवाब एक भारतीय वैज्ञानिक के पास हैं। लेकिन क्या दुनिया के वैज्ञानिक उनके दावे को सरलता से हजम कर पाएँगे?
वैदिक शोध संस्थान के संस्थापक एवं प्रोफेसर डॉ. सीपी त्रिवेदी का दावा है कि दुनिया इस बात को माने या न माने, लेकिन वे सप्रमाण इसे साबित कर सकते हैं। उस सभ्यता में जीव विज्ञान, माइक्रो बॉयोलॉजी व बॉयो टेक्नोलॉजी का ज्ञान परिपक्व हो चुका था। उन्होंने सारे प्रमाण वर्तमान आधुनिक विज्ञान की मदद से ही जुटाए हैं। सिन्धु घाटी के अवशेषों में मिली सीलों और मोहरों पर उत्कीर्ण चित्रों व संकेतों में हूबहू आज के वैज्ञानिक संकेतों व रेखाचित्रों की झलक मिलती है।
डॉ. त्रिवेदी का कहना है कि सीलों और मोहरों पर जो भाषा और लिपि उत्कीर्ण है उसके बारे में जैसे-जैसे हमारी समझ विकसित हो रही है, हम इस दावे के नजदीक पहुँच रहे हैं। वेदों की सांकेतिक भाषा इस रहस्य को सुलझाने का महत्वपूर्ण औजार साबित हुई है। कई सीलों पर वैदिक रूपकों को उत्कीर्ण किया गया है, इससे स्पष्ट है कि इन सीलों का सीधा संबंध वैदिक ज्ञान से भी रहा है।
आधुनिक विज्ञान भी इसकी पुष्टि करता है। हड़प्पा और मोहन जोदड़ो के शहरों की सभ्यता में जल निकासी व सड़क आदि के नियोजन ने उस सभ्यता की वैज्ञानिकता को काफी पहले प्रमाणित कर दिया था। जीव विज्ञान की दृष्टि से आधुनिक विज्ञान ने उस सभ्यता के अन्य कई रहस्यों को जानने में हमारी मदद की है।
डीएनए का वैदिक नाम त्वष्टा : डॉ. त्रिवेदी के अनुसार सीलों पर उत्कीर्ण जानवरों के चित्रों के गहराई से अध्ययन पर उसके पीछे कोई विशेष उद्देश्य दिखता है। जीवन की उत्पत्ति और डीएनए सिन्धु घाटी की सभ्यता की सीलों व मोहरों पर आकृतियों में जीवन की उत्पत्ति की प्रारंभिक अवस्थाओं को दिखाया गया है।
प्रारंभिक जैविक सूप (कोसरवेट) के चित्र भी सीलों पर अंकित हैं। किस तरह डीएनए अणु बने, गुणसूत्र (क्रोमोसोम्स), क्रॉसिंग ओवर, कोशिकाएँ और कोशिका विभाजन की विभिन्ना अवस्थाएँ मोहरों पर भी उत्कीर्ण हैं। डीएनए (डी ऑक्सी रिबोज न्यूक्लिक एसिड) की आकृति और जैव प्रौद्योगिकी से सिन्धु घाटी के लोग परिचित थे। ये आकृतियाँ आधुनिक विज्ञान द्वारा प्रस्तुत आकृतियों से मिलती-जुलती हैं।
पशु मुद्रा वाली सीलों में यह उद्घाटित होता है कि सृष्टि का उद्भव व विकास ऊर्जा के ऊष्मा संबंधी सिद्धांतों के अंतर्गत मौलिक ऊर्जा से हुआ, जो ब्रह्मांड में व्याप्त है। इसका वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है। आइंस्टीन ने यही बात तो कही थी। डीएनए का वैदिक नाम त्वष्टा है। इसे समस्त जीवों का निर्माता विश्वरूप और विभाजन का कारक कहा गया है। इसकी संरचना को सांकेतिक रूप में चार क्षारों (बेस) से दर्शाया जाता है। सीलों में उत्कीर्ण पशु के चार सींग यही दर्शाते हैं।
डीएनए की क्रिया ट्रिप्लेट संकेत पर निर्भर है। इसे तीन पैरों के रूप में दर्शाया गया है। डीएनए की दो पट्टियों को दो सिर कहा गया है। हाइड्रोजन बॉण्ड को हाथ द्वारा अभिव्यक्त किया गया है। जीव जगत का भोजन पौधों में उपस्थित क्लोरोफिल और प्रकाश संश्लेषण पर निर्भर करता है। इसे योगी के सिर पर संकेतात्मक पीपल की पत्तियों के द्वारा दर्शाया गया है। इसकी व्याख्या भी ऋग्वेद में है।
जीव जगत का विकास एक कोशिका से हुआ और कोशिका विभाजन से विकास आगे बढ़ा। इसे मछलीनुमा आकृति से दर्शाया गया है। न्यूक्लियस (केंद्रक) को मध्य बिंदु द्वारा दर्शाया गया है।

रविवार, 20 जून 2010

दुल्हन

..क्योंकि हर दुल्हन ख़ास है
दुनियाभर देश के हर हिस्से में शादी के गहनों की अपनी एक ख़ास परंपरा है। ज्वेलरी कलेक्शन तैयार करते व़क्त अभी तक इस ट्रेडीशन का ध्यान नहीं रखा जाता था।
तनिष्क ने पहली बार क्षेत्रवार ट्रेडीशनल ब्राइडल ज्वेलरी कलेक्शन पेश कर यह पहल की है, जिसमें परंपरा के साथ मॉडर्न टच भी है..

में विवाह संस्कार का बहुत महत्व है। शादी का संबंध हमारी परंपरा से है, इसलिए इस मौक़े पर जो भी होता है, परंपरागत विधि व तरीक़ों से ही होता है- फिर चाहे निभाई जाने वाली रस्में हों या कपड़े व गहनों का चयन। शादी की शॉपिंग करते समय भी अपनी क्षेत्रीय संस्कृति का विशेष ख्याल रखा जाता है। इसलिए रोजमर्रा पहनने के लिए तो आप आर्टीफीशियल ज्वेलरी या किसी ज्वेलर से कुछ भी ट्रेंडी ख़रीद कर पहन सकते हैं, लेकिन शादी के मौक़े के लिए ज्वेलरी ख़रीदते समय उस सुनार की खोज शुरू हो जाती है, जो परंपरागत गहने बनाने में माहिर हो।
बहरहाल, शादी के सीजन में विभिन्न ज्वेलरी ब्रांड अपना-अपना कलेक्शन तो निकालते हैं, लेकिन उन कलेक्शंस में परंपरागत डिज़ाइनों व स्टाइल का अभाव देखा जा सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए पिछले दिनों तनिष्क ने अपना एक्सक्लूसिव वेडिंग ज्वेलरी कलेक्शन पेश किया है। यह कलेक्शन इस लिहाज से ख़ास था कि इसमें पंजाबी, गुजराती, मारवाड़ी, तेलुगू, तमिल, बंगाली, कन्नड़, मराठी और बिहारी दुल्हनों के लिए ट्रेडीशनल ज्वेलरी पेश की गई।
बड़े शहरों में रहने वाली लड़कियों को ध्यान में रखते हुए मैट्रो ब्राइड के लिए भी स्पेशल कलेक्शन शामिल किया गया है। यह पहला मौक़ा है, जब तनिष्क ने देश के अलग-अलग समुदायों को ध्यान में रखकर कलेक्शन तैयार किया। कलेक्शन को दिल्ली के ताजमान सिंह होटल में एक ज्वेलरी शो के माध्यम से प्रस्तुत किया गया।
इस अवसर की शो स्टॉपर जानी-मानी मॉडल इंद्राणी दास गुप्ता रहीं, जिन्होंने पंजाबी दुल्हन का लिबास और गहने पहने थे। तनिष्क के उपाध्यक्ष संदीप कुलहाली ने बताया कि कलेक्शन के लिए काफ़ी रिसर्च करने के बाद ही परंपरागत डिज़ाइनों को थोड़ा समकालीन रूप देकर पेश किया गया है।

हर किसी के लिए

पंजाबी दुल्हन : इस कलेक्शन में पोल्की सेट है। साथ ही कई कीमती स्टोन्स व नगों से जड़े हार व बुंदे भी शामिल हैं। कलेक्शन में पोल्की मांग टिक्का, चूड़ियां, कड़ा व अंगूठी स्पेशल है।

बंगाली दुल्हन : बंगाली दुल्हन के लिए गहने बनाने में प्योर गोल्ड को विशेष तवज्जो दी गई है। रवा वर्क इस कलेक्शन की ख़ासियत है, जो कि वहां का टिपिकल स्टाइल भी है। परंपरागत हार, बालियां, मुकुट, नथ, चौड़े कड़े के साथ शांका पोला बैंगल्स ने कलेक्शन में चार चांद लगा दिए हैं।

तमिल दुल्हन : तमिल दुल्हन के लिए गोल्ड ज्वेलरी को प्रमुखता दी गई है। मागा माली, मांगो मोटिफ हार, कासू मलाई क्वाइन हार, बाजूबंद, ख़ूबसूरत तगड़ी व नक्काशी किया हुआ हार कलेक्शन की विशेषता है।

तेलुगू दुल्हन : दक्षिण भारत में गोल्ड ज्वेलरी को विशेष महत्व दिया जाता है, इसलिए तेलुगू दुल्हन के लिए तैयार कलेक्शन में भी शुद्ध सोने के गहनों की ख़ास रेंज शामिल की गई है। इसमें वदनम और कानडोरी की ख़ूबसूरत वैराइटी भी हैं। कलेक्शन में अलग-अलग लंबाई के सुंदर हार और कंगन, नथ, बालियां व तगड़ियां भी सम्मिलित हैं।

गुजराती दुल्हन : गुजराती दुल्हन की ज्वेलरी के लिए तनिष्क ने कुंदन और पोल्की वर्क को ख़ासतौर पर शामिल किया है। मांग टिक्का, हार, बालियां, चूड़ियां, कड़े, नथ व अंगूठियों की कई वैराइटी परंपरागत स्टाइल में देखी जा सकती है।

मारवाड़ी दुल्हन : मारवाड़ी दुल्हन की ज्वेलरी में बोड़ला व नथ विशेष महत्व रखते हैं। Êाहिर है, कलेक्शन में ख़ूबसूरत नथ और बोड़ले होने ही थे। पोल्की सेट, डायमंड ज्वेलरी को भी विशेष रूप से शामिल किया गया है। और हार, बालियां, अंगूठियां व कंगन तो हैं ही।

बिहारी दुल्हन : बिहारी दुल्हन के लिए कलेक्शन में गोल्ड व कुंदन ज्वेलरी है। कलेक्शन में हार, कंगन, बाजूबंद और बालियां शामिल हैं।

मराठी दुल्हन : मराठी दुल्हन के लिए तनिष्क ने लक्ष्मीहार, रानीहार, पाटला, तोड़ा, मोती वाली परंपरागत नथ को कई तरह की परंपरागत डिज़ाइनों में पेश किया है। साथ ही बालियां, चूड़ियां व अंगूठियां भी कलेक्शन की शोभा बढ़ा रही हैं।

मेट्रो ब्राइड : शहरों में रहने वाली जो युवतियां अपनी शादी के लिए ट्रैंडी और स्टाइलिश ज्वेलरी की खोज में हैं, उनकी इच्छाओं और शहरी लाइफस्टाइल को ध्यान में रखते हुए तनिष्क ने मैट्रो ब्राइडल कलेक्शन पेश किया है। कलेक्शन में डायमंड ज्वेलरी को ख़ास तौर पर शामिल किया गया है, जिसके तहत डायमंड नेकलेस, बालियां, अंगूठियां, नोजपिन व कंगन स्पेशल हैं।

केनवास

पेंटिंग सहेजने की कला
ऑइल पेंटिंग को सहेज कर रखना बड़ी चुनौती है। जरा-सी लापरवाही से यह ख़राब हो जाती है। मौसम का भी इस पर प्रभाव पड़ता है, लाने-ले जाने में भी अतिरिक्त सावधानी की जरूरत होती है। ऐसे में क्या करें कि यह नाजुक कला सुरक्षित रहे, बता रही हैं दिल्ली की आर्टिस्ट शुभि कृष्ण-
कलाकृति के पेंट किए हुए हिस्से को टच न करें, उसे फ्रेम से ही पकड़ें।

हमेशा ध्यान रखें कि केनवास के सामने या पीछे के हिस्से में किसी भी तरह का दबाव न पड़े। इससे पेंटिंग पिचक सकती है, उसमें गड्ढा हो सकता है या वह भद्दी हो सकती है। यदि ऐसा हो जाए तो एक्सपर्ट से ही इसे रिपेयर कराएं। ख़ुद ठीक करने से और नुक़सान हो सकता है।
पेंटिंग को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते समय दोनों तरफ कार्डबोर्ड या प्लॉइवुड रखें। इसके बाद कपड़े से ढंककर इसे सावधानीपूर्वक फीते से बांधें।
पेंटिंग दीवार में टंगी हो या स्टोर में रखी हो, उसे मौसम से ख़तरा रहता ही है। उसे ज्यादा गर्मी, ठंड या नमी से होने वाले नुक़सान से बचाएं। पेंटिंग रखने के लिए बेसमेंट या अटारी अच्छी जगह नहीं है।
ऑइल पेंटिंग रखने की सबसे बढ़िया जगह घर की दीवार है। वहां यह सुरक्षित भी रहती है और इसे देखकर लोग एंजॉय भी करते हैं।
पेंटिंग पर लगातार धूल जमती रहती है, इसलिए उसे नियमित रूप से नरम ब्रश से साफ़ करें। यदि ज्यादा धूल जम गई हो, तो ख़ुद कोशिश करने की बजाय उसे एक्सपर्ट के पास ले जाकर साफ़ कराएं।

कोकणा सेन

शादी का ख्याल छिपता नहीं
कोंकणा ने न केवल आर्ट फ़िल्मों में, बल्कि कमर्शियल फ़िल्मों में भी ख़ुद को प्रूव किया है। ग्लैमर से दूर होने के बावजूद उन्होंने ग्लैमर वर्ल्ड को अपना कायल कर लिया है। अब लोगों को उनकी शादी का इंतज़ार है..


सनी देओल की ‘राइट या रॉन्ग’ हो, रणबीर की ‘वक अप सिड’ या अजय की ‘अतिथि तुम कब जाओगे’, इन जैसी बिल्कुल अलग फ़िल्मों के साथ तालमेल बिठाकर चलना कठिन होता है। मुख्यधारा की इन फ़िल्मों को कोंकणा सेनशर्मा ने अच्छी तरह निभाया है, जबकि उनके टोटल लुक में ग्लैमर ढूंढ़ना मुश्किल है। यानी हिंदी फ़िल्मों की एक ज़रूरी शर्त को वह पूरी नहीं करती हैं।

फिर भी दर्शक उनके कायल हैं और उनके काम की सराहना होती है। शायद यही वजह है कि मुख्य धारा और मल्टीप्लैक्स फ़िल्मों में वह ख़ासी बिज़ी हैं। एक ताज़ा मुलाक़ात में वह बॉयफ्रैंड रणबीर शौरी के बारे में पूछे गए सवालों से बचते हुए फ़िल्मी गतिविधियों से जुड़े सवालों का जवाब खुलकर देती हैं—

शबाना जी ने आपकी तारीफ़ में कहा कि मसाला फ़िल्मों में आपको ज़ाया किया जा रहा है?
उन्होंने मेरी तारीफ़ की, इस बारे में कुछ नहीं कहूंगी। वह मेरी मां की अच्छी दोस्त हैं और मेरे लिए फैमिली की तरह हैं। जहां तक कमर्शियल फ़िल्मों का सवाल है, इन फ़िल्मों में काम करने का फैसला मेरा था। यह फ़िल्में मुझे पसंद हैं। मैं ख़ास तरह की फ़िल्में करके ख़ुद को दायरे में क़ैद नहीं रखना चाहती थी, इसलिए कमर्शियल फ़िल्मों में काम करना मैंने जारी रखा।

‘राइट या रॉन्ग’ जैसी थ्रिलर या ‘अतिथि..’ जैसी कॉमेडी फ़िल्में आपको कितना सुकून देती हैं?
जहां तक मेरी पसंद या सुकून का सवाल है, सीरियस रोल मुझे सबसे ज्यादा संतुष्टि देते हैं। पर जैसा कि मैंने कहा अगर आपको दायरे से निकलना है, तो बहुत कुछ ऐसा करना होगा, जो पसंद का नहीं है। मैंने इस मामले में कोई एड्जस्ट नहीं किया, बल्कि इसे एक्टिंग के चैलेंज के तौर पर लिया है। मैं ख़ुशनसीब हूं कि इस फैसले को लेकर मुझे परेशानी नहीं हुई।

इसीलिए आपको नए दौर की शबाना कहा जाता है?
मैं अभी इस तरह की तुलना से बचना चाहती हूं। सच तो यह है कि मैं अभी ख़ुद को इस क़ाबिल नहीं मानती हूं कि शबाना आज़मी जैसी अदाकारा से अपनी तुलना करूं। फ़िलहाल मैंने भी शबाना जी की तरह आर्ट और कमर्शियल सिनेमा के बीच कोई लकीर नहीं खींची है। मैं मानती हूं कि इस दिशा में आगे बढ़ने में शबाना जी ने मुझे बहुत प्रेरित किया है।

आप दोनों ने तो साथ काम भी किया है?
साथ तो बहुत ज्यादा काम नहीं किया। बस, मां की फ़िल्म ‘15 पार्क एवेन्यू’ में उनके साथ काम करने का अच्छा मौक़ा मिला। उन्होंने मां के साथ कई फ़िल्में की हैं। ‘15 पार्क एवेन्यू’ में काम करने के दौरान उनका को-ऑपरेटिव नैचर मुझे याद आता है। एक सीनियर एक्ट्रैस की परफैक्ट इमेज। मैं भी ख़ुद में यह कॉन्फीडेंस लाना चाहती हूं।

आप कैसी फ़िल्मों को प्राथमिकता देती हैं?
फ़िल्में मनोरंजन से भरपूर हों, इस बात के पक्ष में तो मैं भी हूं। इसी के साथ मेरा यह प्रयास होता है कि मैं इश्यू बेस्ड फ़िल्मों में ज्यादा काम करूं। ऐसी फ़िल्मों में किरदार का स्कैच क्लीयर होता है। ऐसे किरदारों का असर भी बहुत होता है।

अपनी मां की ताज़ा रिलीज़ फ़िल्म ‘जापानीज़ बहू’ में आप दिखाई नहीं दी हैं?
मैं मानती हूं कि वह मेरी मां न होतीं, तो उनके साथ इतनी जल्दी काम करने का मौक़ा मुझे हरगिज़ नहीं मिलता। मैं ‘जापानीज़ बहू’ में भी काम करना चाहती थी। पर डेट प्रॉब्लम के कारण मुझे यह फ़िल्म छोड़नी पड़ी। वैसे मैं फिर मां की अगली फ़िल्म कर रही हूं। ख़ैर, अब मुझे एक एक्ट्रैस के तौर पर ग्रो करना है। मॉम की उम्मीदों को पूरा करना है। यह मां जैसी संजीदा डायरैक्टर की •यादा फ़िल्में करके ही संभव है।

आप एक व़क्त में काफ़ी फ़िल्में कर रही हैं?
‘मिर्च’, ‘मेरेडियन’ जैसी चार-पांच फ़िल्में हैं। देखा जाए, तो यह संख्या ज्यादा है, क्योंकि मेरे काम करने का स्टाइल जुदा है। वैसे मेरी ऱफ्तार बहुत सुस्त है। मैं अचानक ही किसी फ़िल्म को साइन कर उसे पूरा कर देती हूं। ‘अतिथि तुम कब जाओगे’ की शूटिंग मैंने इसी अंदाज़ में पूरी की थी।

अब तो आप बहुत अच्छी हिंदी बोलने लगी हैं?
हिंदी बोलने में मुझे कभी मुश्किल नहीं हुई। फिर अहम बात यह है कि मैं लगातार हिंदी फ़िल्में कर रही हूं। किसी भाषा की इतनी फ़िल्में करने पर आप असानी से उस भाषा को सीख लेते हैं। अच्छी बात यह है कि इसमें बंगला के कई शब्दों का भी आप उपयोग कर सकते हैं। फिर भी जब कठिन संवाद समझ में नहीं आते हैं, मैं तुरंत उसकी डिटेलिंग में जाती हूं।

आप रणबीर शौरी से शादी कब करने वाली हैं?
फ़िलहाल इतना जान लीजिए कि अभी हम दोनों ही अपने-अपने कैरियर को एक मुक़ाम पर पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। शादी का ख्याल आया, तो बात छिपी नहीं रहेगी। फिर हमारी शादी को लेकर इतनी जिज्ञासा क्यों?

बिपासा बसु

शादी के मूड में नहीं बिप्स
बिप्स के साथ ज़िंदगी बिता रहे जॉन उनकी तारीफ़ करते नहीं थकते। उनका कहना है कि बिप्स अपने परिवार और काम को लेकर बेहद समर्पित हैं। उनके जैसा दूसरा तो कोई और हो ही नहीं सकता।

फिर ये दोनों शादी क्यों नहीं कर लेते? इस सवाल का जवाब देते हुए जॉन कहते हैं कि अभी हम दोनों कैरियर के जिस मुक़ाम पर हैं, वहां फिलहाल शादी करना संभव नहीं..


जॉन अब्राहम और बिपाशा बसु के रिश्ते को लगभग सात साल हो गए हैं। दोनों ने शादी के बिना रिश्ते की एक नई परिभाषा गढ़ ली है। गाहे-बगाहे इस रिश्ते के टूटने की ख़बरें भी आईं, पर हर बार दोनों ने अपने रिश्ते को साबित किया। पर्दे पर दोनों की कैमिस्ट्री भले ही न जमें, पर्दे के बाहर यह जोड़ी ज़बर्दस्त हिट है। बिप्स के बारे में चर्चा चलने पर जॉन ने हमेशा खुलकर बात की है। पेश है, उनकी बिप्स के बारे में वो खट्टी-मीठी बातें—

दोस्त से ज्यादा ख़ास है
दस-बारह साल से भी ज्यादा हो गए हैं, जब बिप्स से मेरी पहली मुलाक़ात हुई थी। वह फैशन शो से संबंधित कोई कार्यक्रम था। शुरुआती परिचय के बाद ही उनके बातचीत करने का लहज़ा मुझे अच्छा लगा। इसके बाद भी हमारी बातचीत होती रही। मैंने महसूस किया कि कई मामलों में हमारे विचार बहुत मिलते हैं। मेरी तरह वह भी अपने परिवार के लिए बहुत वचनबद्ध है।

मैं अपने मम्मी-डैडी से जुड़ा रहना पसंद करता हूं। वह भी अपने मां-बाबा को मुंबई में बहुत मिस करती है। मैं कई साल से देख रहा हूं, अपने पैरेंट्स से मिलने का कोई मौक़ा वह नहीं चुकती है। आज ऐसी बातें मायने खो रही हैं, मगर मुझ जैसे लोग ऐसी ही बातों के मुरीद हैं। इसी वजह से बिप्स का साथ मुझे अच्छा लगा था, लेकिन उस समय डिनो मोरिया उनका बॉयफ्रैंड था।

फिर भी हम अच्छे दोस्त बन गए। ‘जिस्म’ की शूटिंग शुरू होने से पहले मुझे पता चला कि उनका ब्रेकअप हो चुका है। वह उन दिनों थोड़ा अप्सेट थी। मैंने उसके इस पर्सनल प्रॉब्लम में कोई दख़लअंदाज़ी नहीं की। मैं नॉर्मल ढंग से उससे मिलता रहा और हंसी-मज़ाक की ढेरों बातें करता रहा। लेकिन ‘जिस्म’ की शूटिंग शुरू होने पर काफ़ी बातें बदल गईं।

इस दौरान मैंने महसूस किया कि वह दोस्त से ज्यादा मेरी कुछ बनती जा रही है। ‘जिस्म’ की शूटिंग पूरी होने तक वह मेरी गहरी दोस्त बन चुकी थी। हमें एक-दूसरे का साथ अच्छा लगने लगा था। उस समय हम दोनों को सुझाव मिलने लगा था कि हम शादी कर लें, पर हमने इस मामले में कोई जल्दबाज़ी नहीं की। मैरीड लाइफ़ पर मेरा पूरा यक़ीन है, लेकिन कैरियर के इस मोड़ पर हम दोनों ही शादी करने के मूड में नहीं हैं।

बहुत आत्मनिर्भर है
उसने सब कुछ अपने दम पर कमाया है। इससे एक बात साफ़ है, वह अपने काम को लेकर बहुत गंभीर है। मैंने उसे सफल मॉडल के रूप में देखा है, अब एक्ट्रैस के तौर पर देख रहा हूं। कम लोग ही इतने मेहनती होते हैं। उसे पता है कि लोग उसके ग्लैमर के कायल हैं, इसलिए वह इसी मैंटेन रखती है। मुझे याद है, जिन दिनों उसके पास मॉडलिंग के बहुत कम एसाइनमैंट होते थे, वह कई एड फ़िल्में छोड़ देती थी।

कई मेकर ने ख़ुद उसे सुझाव दिया था, वह इस व़क्त एड कर लें, पर इस मामले में कंप्रोमाइज़ करना उसे पसंद नहीं। उसका तर्क होता था- मैं ज्यादा काम के चक्कर में न पड़कर बेहतर काम करने के लिए थोड़ा इंतज़ार कर सकती हूं। मुझे लगता है, उसने इस तरह अपनी आत्मनिर्भरता को और सुदृढ़ किया है।

इंप्रूव कर रही है
बतौर हीरोइन उसने ख़ुद को इंप्रूव किया है। ऋतुपर्णो घोष की फ़िल्म ‘सोब चरित्रो काल्पोनिक’ में उसे देखकर मैं उसका कायल हो गया। इस फ़िल्म में साड़ी में सजी एकदम पारंपरिक युवती के रूप में उसे पहचानना मुश्किल है। वह अब हीरोइन से एक एक्ट्रैस बन चुकी है। जो लोग बिप्स को सिर्फ़ एक ग्लैमर की गुड़िया मानते हैं, इस फ़िल्म में उसका अभिनय सबका मुंह बंद कर देता है।

मेरे पिता को तो कई दिनों तक यक़ीन ही नहीं हुआ कि इसमें बिप्स ने काम किया है। असल में जब से वह फ़िल्मों में काम कर रही है, उसे ऐसे मौक़े न के बराबर ही मिले। सिर्फ़ उसके सैक्सी लुक को ही पर्दे पर पेश किया जाता रहा है। वह एक अच्छी एक्ट्रैस है, इसे अब वह प्रूव करना चाहती हैं, मगर इसके लिए उसने अपने इमेज को दांव में नहीं लगाया है। वह बहुत संवेदनशील हैं, अब वह जल्द अपनी फ़िल्मों में भी एक संवेदनशील अभिनेत्री के तौर पर दिखाई देगी।

फिटनेस का जबाव नहीं
मैं जब कभी मज़ाक में उससे कहता हूं कि तुम्हारा वज़न कुछ बढ़ रहा है, दूसरे दिन से ही उसकी वर्जिश और डायटिंग बढ़ जाती है। मुझे ताज्जुब होता है, वह खाने की इतनी शौक़ीन है, फिर भी कई दिन तक अपने पसंदीदा खाने से दूर रहती है। फिटनेस का यह मूल मंत्र मेरे जीवन का भी एक हिस्सा है, मगर कई बार इस मामले में मैं उससे थोड़ा पीछे चला जाता हूं।

उसके जैसा वर्क आउट तो मैं कर ही नहीं सकता। उसकी अच्छी बात यह है कि वह सिर्फ़ फिज़ीकल वर्कआउट पर ही ध्यान नहीं देती, बल्कि मानसिक तैयारी भी करती है। वह अक्सर मुझसे कहती है- ख़ुद से प्यार करो और अपने दिल-दिमाग से वर्जिश करो। कई बार हम दोनों जिम में भी अपना काफ़ी समय बिताते हैं।

घूमने-फिरने की शौक़ीन
फिटनेस के साथ-साथ वह छुट्टियों को लेकर गंभीर है। इन गर्मियों में वह पेरिस में कुछ दिन छुट्टियां बिताना चाहती है। उसे पेरिस की सुंदरता ख़ूब लुभाती है। उसकी इच्छा है कि फ़िल्म ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ का री-मेक बने और उसमें हम दोनों साथ काम करें। उसे रोमांस, फैशन, कला और मौज-मस्ती से भरा शहर बहुत पसंद है। यही नहीं, देश-विदेश के हर ख़ूबसूरत शहर की ख़ास-ख़ास बातें उसने अपनी डायरी में नोट कर रखी हैं। वह वाकई लाजवाब है।

बिपाशा का अर्थ गहरे में छिपी एक तीव्र इच्छा होता है। 7 जनवरी 1979 को दिल्ली में जन्मी बिपाशा बसु तीन बच्चों में मंझली हैं। उनकी अन्य दो बहनों के नाम बिदिशा और विजेता हैं। बिपाशा ने शुरुआत साइंस की पढ़ाई करना चाहती थी, पर जब साइंस के तहत कीड़े-मकौड़ों के चीर-फाड़ की बारी आई, तो वह भाग खड़ी हुईं और कॉमर्स विषय ले लिया।

1996 में मशहूर मॉडल मेहर जेसिया (अब अभिनेता अजरुन रामपाल की पत्नी) ने कोलकाता में जब बिपाशा बसु को मॉडलिंग में जाने की हिदायत दी थी, तब बिपाशा ने गोदरेज सिंथॉल सुपर मॉडल प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, जहां वह विजेता बनकर उभरीं। मल्लिका शेरावत और ऐश की दमदार मौजूदगी के बावजूद 2007 में उन्हें एक एक्ज़िट पोल के ज़रिए एशिया की सबसे सैक्सी युवती का ख़िताब मिला था।

2001 ‘अजनबी’ से कैरियर शुरू करने वाली बिप्स इसमें एक ऐसी पत्नी बनी थीं, जो अपने पति के शादीशुदा दोस्त से संबंध बनाने को आतुर रहती है। फ़िल्म में उनके काम की तारीफ़ हुई और उन्हें बैस्ट नवोदित अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला।

शनिवार, 19 जून 2010

सेक्सी आईटम गर्ल्स

बॉलीवुड की टॉप हॉट और सेक्सी आईटम गर्ल्स
आईटम सोंग्स का बॉलीवुड फिल्मों में बड़ा महत्व है|बॉलीवुड में आईटम नंबर्स इतने लोकप्रिय हैं कि कई बार तो यह फिल्मों की पहचान बन जाते हैं और लोग फिल्म से ज्यादा आईटम सोंग्स में दिलचस्पी लेते हैं|

फिल्मों में आईटम डांस नंबर्स का क्रेज कोई नया नहीं है|70 के दशक में हेलेन पर फिल्माया गया सेक्सी आईटम सॉन्ग 'पिया तू' आज भी लोगों के दिलों पर छाया हुआ है|माधुरी दीक्षित के दीवाने आज भी उनपर फिल्माए गए 'एक दो तीन' आईटम सॉन्ग पर खुद को झूमने से रोक नहीं पाते|फिल्म 'बिल्लू बारबर' में करीना ,दीपिका और प्रियंका पर फिल्माए गए आईटम सॉन्ग भी जबरदस्त हिट हुए थे|फिल्म 'बंटी और बबली' में ऐश्वर्या राय पर फिल्माया गया 'कजरारे कजरारे' भी बेहद पॉपुलर हुआ|आईटम नंबर्स पर मलाईका अरोरा और मल्लिका शेरावत का थिरकना कोई कैसे भूल सकता है|

आइए आपको मिलाते हैं बॉलीवुड की पांच हॉट आईटम गर्ल्स से:
हेलेन- गोल्डन गर्ल के नाम से मशहूर हेलेन को बॉलीवुड की सबसे बेहतरीन आईटम गर्ल्स में शुमार किया जाता है|60 ,70 के दशक में हेलेन अपने सेक्सी डांस की वजह से इतनी लोकप्रिय हुईं कि हर फिल्म में हेलेन का एक गाना तो जरुर होता ही था|'हावड़ा ब्रिज' में उनके द्वारा किया गया 'मेरा नाम चिन चिन चू'एक सदाबहार गाना बन चुका है|वहीं फिल्म शोले में 'महबूबा महबूबा'और कारवां में 'पिया तू अब तो आजा'में हेलेन के केब्रे डांस और सेक्सी अदाओं ने सबको मदहोश ही कर डाला था और इन गानों में हेलेन द्वारा किए गए डांस को अभी तक लोग भुला नहीं पाए हैं|

शिल्पा शेट्टी-आईटम गानों की बात की जाए तो हॉट ऐक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी के सेक्सी आईटम गानों को भला कैसे नज़र अंदाज़ किया जा सकता है|फिल्म शूल में शिल्पा पर फिल्माया गया 'मैं आई हूं यूपी बिहार लूटने'इतना जबरदस्त हिट हुआकि सब शिल्पा के हॉट अंदाज़ के दीवाने हो गए|इस गाने में शिल्पा के ठुमको ने दर्शकों को लूट लिया|इसके बाद फिल्म 'दोस्ताना' में शिल्पा ने मियामी के बीच पर 'शट अप एंड बाउंस'गाने में इतनी सेक्सी अदाएं दिखाईं कि फिल्म से ज्यादा शिल्पा का यह गाना सुर्ख़ियों में छाया रहा|

मलाइका अरोरा खान-फिल्म 'दिल से' में शाहरुख़ खान के साथ छैया-छैया गाने पर मलाईका के ठुमको ने तो कहर ही बरपा दिया था|मलाइका का सेक्सी फिगर किसी आईटम गाने को और सेक्सी बना देता है|मलाइका एक बार फिर सलमान खान की फिल्म 'दबंग' में एक हॉट आईटम सॉन्ग करती नज़र आएंगी|

मल्लिका शेरावत-इस हॉट लिस्ट में हम सेक्स बम मल्लिका शेरावत को कैसे भूल सकते हैं| फिल्म गुरु में 'मैया मैया' और हिमेश की फिल्म में महबूबा महबूबा गाने पर मल्लिका के डांस ने उन्हें जबरदस्त लोकप्रिय बना दिया|मल्लिका अपने लीड रोल्स से ज्यादा आईटम सोंग्स के लिए ज्यादा फेमस हो गईं|

ऐश्वर्या राय- फिल्म बंटी और बबली में ऐश्वर्या के कजरारे कजरारे गाने को आज भी उनकी सबसे बेहतरीन परफोर्मेंस में शुमार किया जाता है|इस गाने में ऐश ने बड़ी ही शालीनता से झटके मटके मारे जिससे उनके फैंस कायल हुए बिना नहीं रह सके|