शनिवार, 18 दिसंबर 2010

छत्तीसगढ़ की खास खबरें

किसको दें सम्मान, नहीं मिला किसान!
रायपुर.छत्तीसगढ़ कृषि के क्षेत्र में भले नए मुकाम हासिल कर रहा हो पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को अब तक प्रदेश में एक भी किसान नहीं मिला, जिसे वह सम्मानित कर सके।

जबकि पं. रविशंकर शुक्ल विवि डॉ. नारायण भाई चावड़ा को खेती-किसानी में उनके बेहतरीन काम के लिए डी-लिट् की मानद उपाधि दे चुका है। 23 साल पहले स्थापित कृषि विवि का पांचवा दीक्षांत समारोह 20 जनवरी को होने जा रहा है।
उत्तरप्रदेश और पंजाब के कृषि वैज्ञानिकों को डी-लिट् की उपाधि दी जाएगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक और केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव रहे डॉ. मंगला राय को इसके लिए चुना गया है।
दूसरे वैज्ञानिक फिलीपींस स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. जीएस खुश हैं। दोनों ही राइस ब्रिडर हैं। कुलपति डॉ. एमपी पांडेय ने दोनों के नामों का प्रस्ताव रखा था। डॉ. मंगला राय मूलत: उत्तरप्रदेश के हैं।
उन्होंने बनारस विवि से पीएचडी की है, जबकि डॉ. जीएस खुश की पढ़ाई पंजाब यूनिवर्सिटी की है। खुश अबतक दो सौ से ज्यादा धान की किस्में तैयार कर चुके हैं। 1967 में वे फिलीपींस चले गए थे।
कम नहीं प्रदेश के किसान
छत्तीसगढ़ में कई ऐसे किसान हैं जिनकी बराबरी किसी वैज्ञानिक से की जा सकती है। प्रदेश के किसानों ने ही अब तक धान की 23 हजार किस्में तैयार की हैं। डॉ. आरएस रिछारिया ने इसे संग्रहित कर रखा है।
पं. रविशंकर शुक्ल विवि ने गोमची के किसान नारायण भाई चावड़ा को मानद उपाधि दी थी। उन्होंने धान सहित सब्जियों की कई किस्में विकसित की।
दुर्ग जिले के कई किसानों को टमाटर, शिमला मिर्च, गोभी, कुंदरू सहित अन्य सब्जिी उत्पादन में दक्षता हासिल है। प्रदेश में और भी कई किसान हैं, जो नई किस्में इजाद करने में जुटे हैं, लेकिन महत्व नहीं मिलने के कारण उनका नाम पिछड़ा हुआ है।
किसानों के नाम खारिज
मानद उपाधि देने के लिए कृषि विवि ने अपने सभी संबंधित कालेजों और रिसर्च स्टेशन से नाम मंगाए थे। मानद उपाधि के लिए गठित समिति की बैठक में एक दर्जन नाम आए थे। इनमें जांजगीर-चांपा के किसान का भी नाम था।
डॉ. नारायण भाई चावड़ा के नाम का भी प्रस्ताव आया, लेकिन उन्हें सिरे से खारिज कर दिया गया। कुछ अधिकारियों ने मुख्यमंत्री तो कुछ ने कृषि मंत्री के नाम आगे बढ़ाए। अंत में समिति ने सात वैज्ञानिकों के नाम प्रबंध मंडल में रखा।

केवल अधिकारियों के नाम
कृषि विवि के प्रबंध मंडल की बैठक में मानद उपाधि देने के लिए सात लोगों के नाम का प्रस्ताव अनुशंसा समिति ने रखा। ये सभी शासकीय पदों पर नियुक्त रहे हैं। इनमें दो अधिकारी डा. एसके दत्ता और डा. अरविंद कुमार आईसीएआर में पदस्थ हैं।
आईसीएआर कृषि विश्वविद्यालयों को मानिटरिंग और अनुदान देने वाली संस्था है। बैठक में नेशनल बायोडायवर्सिटी अथारिटी चेन्नई के चेयरमेन डा. पीएल गौतम और नई दिल्ली के एग्रीकल्चरल साइंस रिक्रूटमेंट बोर्ड के चेयरमेन डा. पीडी मई का नाम भी था।
इसमें इंदिरा गांधी कृषि विवि के पूर्व कुलपति डा. कीर्ति सिंह को मानद उपाधि देने का प्रस्ताव था। कुलपति डा. एमपी पांडेय की अध्यक्षता में डा. मंगला राय और डा. जीएस खुश को मानद उपाधि देने का निर्णय लिया गया।
"प्रदेश में उत्कृष्ट कार्य करने वाले किसानों को भी मानद उपाधि दी जा सकती है, लेकिन किसी ने उनके नाम का प्रस्ताव नहीं दिया। "- एसआर रात्रे, कुलसचिव कृषि विवि
"प्रबंध मंडल ने मानद उपाधि के लिए दो नामों का चयन कर लिया है। अभी प्रबंध मंडल में पारित प्रस्ताव मिनिट्स में नहीं आए हैं, इसलिए मैं कुछ नहीं कहूंगा। "- डॉ. एमपी पांडेय, कुलपति कृषि विवि

राज्य में बनेगा एलीफेंट रिजर्व
बिलासपुर.प्रदेश में हाथियों के आक्रमण से हो रहे जान-माल के नुकसान को रोकने और हाथियों को सुरक्षित स्थान पर रहने की सुविधा देने के लिए कारीडोर बनाने के साथ ही अचानकमार सहित तीन अभयारण्य को जोड़कर एलीफेंट रिजर्व बनाया जाएगा। छत्तीसगढ़ राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक में यह निर्णय लिया गया।

जंगली हाथियों की समस्या से निपटने के लिए वन विभाग ने रणनीति बना ली है। बैठक में वन्य जीव, जैव विविधता, बाघ संरक्षण और अन्य विषयों पर चर्चा की गई। प्रदेश के सरगुजा जिले में हाथियों के हिंसक होने से कुछ सालों में जान-माल की हानि के साथ ही वनग्रामों के रहवासियों का जीना दूभर हो गया है।
इस समस्या से निपटने की दिशा में उपाय किए जा रहे हैं। प्रदेश के तीन ऐसे अभयारण्य जहां हाथियों की संख्या अधिक है, वहां कारीडोर बनाया जाएगा और उन्हें जोड़कर एलीफेंट रिजर्व बनाया जाएगा, जहां हाथी सुरक्षित तरीके से रह सकें।

इस प्रस्ताव को कैबिनेट की अगली बैठक में रखा जाएगा। बैठक में वन मंत्री विक्रम उसेंडी, डीजीपी विश्वरंजन, मुख्य वन्य प्राणी अभिरक्षक रामप्रकाश, वन्य प्राणी विशेषज्ञ डॉ. सुशांत चौधरी, नितिन देसाई, प्राण चड्डा, संदीप पौराणिक, हाथी विशेषज्ञ डा. पीएस ईशा, एसजी चौहान सहित अन्य सदस्य शामिल हुए।
इसी तरह हाथियों की समस्याओं से निपटने के लिए बोर्ड के सदस्यों के सुझाव पर एक उप समिति गठित करने का निर्णय लिया गया। इसमें हाथी विशेषज्ञ, वन विभाग के अधिकारी और संबंधित क्षेत्र के स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा।
केरल और कर्नाटक की तर्ज पर यहां ऐसे क्षेत्रों में जहां हाथियों का आवागमन सर्वाधिक होता हैं, वहां लगभग एक सौ किलोमीटर क्षेत्र में सोलर पॉवर फेंसिंग लगाई जाएगी। विशेषज्ञों ने बताया कि इन सोलर पॉवर फेंसिंग से वन्य प्राणियों को केवल हल्का झटका लगता है व विशेष हानि नहीं होती है।
फेंसिंग के समानांतर हाथी अवरोधक खाई बनाई जाएगी, जिससे जन-धन हानि कम की जा सके। बैठक में उपस्थित विशेषज्ञों द्वारा सुझाव दिया गया कि हाथी आवागमन के गलियारे में धान और गन्ने की फसल के स्थान पर मिर्च, अदरक सहित अन्य नगदी फसलें ली जाएं जिसे हाथी नुकसान ना पहुंचा सकें।
बैठक में अचानकमार से होकर गुजरने वाली सड़क को आवागमन के लिए बंद नहीं करने पर भी सदस्यों ने चिंता जताई। बैठक में मांग की गई कि अचानकमार से होकर गुजरने वाली सड़क की जगह रतनपुर, केंदा, मझपानी, केंवची से होकर जाने वाले वैकल्पिक मार्ग को दुरस्त कर चालू किया जाए।

जंगली भैंसे के संरक्षण की बनी योजना
राज्य पशु जंगली भैंसों के संरक्षण के लिए अंजोरा स्थित पशु चिकित्सा महाविद्यालय में उपलब्ध अत्याधुनिक तकनीक की सहायता लेने का निर्णय लिया गया। बैठक में बताया गया कि जंगली भैंसों का जेनेटिक प्रोफाइल विश्लेषण सेन्टर फॉर सेलुलर एवं मॉलीक्यूलर बॉयलाजी हैदराबाद में कराया गया, वहां की रिपोर्ट में वनभैंसे की प्रजाति सर्वाधिक शुध्द नस्ल का बताया गया।

कुशल वकीलों का पैनल बनेगा
प्रदेश में वन्य प्राणियों से संबंधित अपराधों पर अंकुश लगाने और वन अपराधियों को कड़ी सजा दिलाने के लिए वन विभाग की ओर से कुशल वकीलों का पैनल तैयार करने का निर्णय लिया गया।
बैठक में बताया गया कि अचानकमार टाइगर रिजर्व के छह गांवों को नजदीक स्थित बसाहटों में व्यवस्थापित किया गया है और प्रति परिवार उनके विकास के लिए दस लाख रुपए खर्च किए गए। वर्ष 2010-11 में इसके लिए 7.24 करोड़ रुपए की राशि दी गई।
बार नवापारा अभयारण्य में स्थित तीन गांवों के व्यवस्थापन की कार्ययोजना भी बना ली गई है। अचानकमार टाइगर रिजर्व और सीतानदी-उदंती अभयारण्य में रिक्त पदों को शीघ्र भरने के निर्देश दिए गए।
कोटमी सोनार में बढ़ी मगरमच्छों की संख्या
राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक में जानकारी दी गई कि कोटमी सोनार में एक ही तालाब में रखे गए मगरमच्छों की संख्या बढ़ने के कारण उनके हिंसक होने का खतरा बढ़ गया है।
सौ से अधिक मगरमच्छ होने के कारण उनसे आसपास के स्थानों में रहने वाले लोगों पर आक्रमण करने का खतरा बढ़ गया है। इन पर निगरानी रखने के लिए ग्रामीणों का सहयोग लेने का भी निर्णय लिया गया।

गिरौदपुरी जैतखाम होगा यूनेस्को की विश्व धरोहरों के समकक्ष
रायपुर.छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 145 किलोमीटर की दूरी पर अठारहवीं सदी के महान समाज सुधारक गुरू बाबा घासीदास की जन्म भूमि और तपोभूमि गिरौदपुरी में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के जरिए बन रहा 243 फीट की ऊंचाई का जैतखाम दुनिया में आधुनिक भारतीय इंजीनियरिंग प्रतिभा का एक शानदार उदाहरण होगा।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित लगभग आठ सौ वर्ष पुराना 237.8 फीट (72.5 मीटर) ऊंची कुतुब मीनार भारतीय इतिहास और पुरातत्व की बहुमूल्य धरोहर के रूप में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारक सूची में शामिल है, जिसकी ऊंचाई छत्तीसगढ़ के गिरौदपुरी में 51 करोड़ रूपए से भी अधिक लागत से बन रहे विशाल जैतखाम से लगभग पांच मीटर कम है। गिरौदपुरी में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बनवाए जा रहे इस गगन चुम्बी जैतखाम की ऊंचाई 243 फीट (करीब 77 मीटर) होगी।
इस प्रकार कुतुब मीनार से करीब पांच मीटर ऊंचे इस जैतखाम का निर्माण पूर्ण होने पर इसकी गिनती भी इतिहास और आधुनिक स्थापत्य कला की दृष्टि से दुनिया की एक अनमोल धरोहर के रूप में होने लगेगी और यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारकों के समकक्ष आ जाएगा।
सतनाम पंथ के प्रवर्तक बाबा गुरू घासीदास का जन्म गिरौदपुरी में लगभग ढाई सौ साल पहले, 18 दिसम्बर 1756 को हुआ था।
उन्होंने इसी गांव के नजदीक छाता पहाड़ में कठिन तपस्या की और अपने आध्यात्मिक ज्ञान के जरिए देश और दुनिया को सत्य, अहिंसा, दया, करूणा, परोपकार जैसे सर्वश्रेष्ठ मानवीय मूल्यों की शिक्षा देकर सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।
इसके फलस्वरूप यह गांव विशेष रूप से छत्तीसगढ़ की जनता की आस्था का प्रमुख केन्द्र बन गया, जहां बाबा घासीदास के महान विचारों के साथ-साथ उनकी यश-कीर्ति को जन-जन तक पहुंचाने और दूर-दूर तक फैलाने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में राज्य सरकार के लोक निर्माण विभाग ने गिरौदपुरी में करीब तीन वर्ष पहले कुतुब मीनार से भी ऊंचे इस विशाल जैतखाम का निर्माण शुरू किया था, जो अब तेजी से पूर्णता की ओर अग्रसर है।

खेती में राष्ट्रीय औसत से आगे है छत्तीसगढ़ प्रदेश
देश की औसत रफ्तार से काफी आगे चल रहा है। छत्तीसगढ़ में कृषि पांच प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रही है जबकि राष्ट्रीय औसत तीन प्रतिशत है।

राज्य निर्माण के बाद खेती में जबर्दस्त बदलाव आया है। यही वजह है कि राज्य निर्माण के समय की कुल पैदावार 58 लाख 27 टन अब बढ़कर 80 लाख टन से अधिक हो गई है।
प्रदेश की 80 फीसदी आबादी की अर्थव्यवस्था खेती से ही संचालित होती है। छत्तीसगढ़ में इस समय करीब 44 लाख हेक्टेयर में खेती हो रही है। इसमें धान का रकबा करीब 35 लाख हेक्टेयर है। खेती के क्षेत्र में रमन सरकार के पिछले सात सालों में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं।
उन्नत तकनीक पर काम हुआ है और किसानों को आधुनिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया गया है। सरकार ने किसानों की मानसून पर निर्भरता कम करने की दिशा में कई अहम निर्णय लिए।
इसको इन आंकड़ों से भी समझा जा सकता है कि जब राज्य बना तब छत्तीसगढ़ मे मात्र 72 हजार सिंचाई पंप कनेक्शन थे लेकिन आज राज्य के 2 लाख 40 हजार से अधिक किसानों के पास सिंचाई पंप हैं।
सिंचाई का रकबा बढ़ाने की दिशा में भी ठोस काम हुआ। इसके चलते सिंचित क्षेत्र 23 से बढ़कर 31 प्रतिशत से अधिक हो गया है। राष्ट्रीय औसत 48 प्रतिशत की ओर यह तेजी से बढ़ रहा है।
सरकार द्वारा समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की ठोस व्यवस्था किए जाने के कारण किसानों के मन में खेती के प्रति उत्साह बढ़ा है। पिछले साल 40 लाख टन खरीदने के बाद इस वर्ष किसानों से 50 लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा गया है।
सबसे कम ब्याज दर पर ऋण :
सरकार ने किसानों को तीन प्रतिशत की किफायती ब्याज दर पर लोन देने की व्यवस्था की है। यह कृषि ऋण खरीफ एवं रबी की विभिन्न फसलों के बीज, खाद, कृषि यंत्र सहित पौध संरक्षण, औषधि आदि के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है।
यह सुविधा वित्तीय वर्ष 2008-09 से दी जा रही है। किसानों को इतनी कम ब्याज दर पर खेती के लिए ऋण सुविधा देने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है।
नदियों के पानी को रोकने के उपाय
छत्तीसगढ़ में नदियों का पानी काफी मात्रा में बह जाता है। इस पानी को रोककर खेतों की प्यास बुझाने की दिशा कदम उठाए गए हैं। बड़ी सिंचाई परियोजनाओं की मंजूरी में समय लगता है, इस कारण नदियांे पर छोटे-छोटे एनीकट बनाकर पानी रोकने का इंतजाम किया जा रहा है।
ऐसे 593 एनीकट बनाने का निर्णय लिया जा चुका है। इनमें से करीब एक तिहाई बन चुके हैं। इनके अलावा लघु सिंचाई योजनाओं को सरकार हाथ में ले रही है।
लघु सिंचाई योजनाओं की भागीदारी
राज्य में सर्वाधिक 70 प्रतिशत सिंचाई नहरों से होती है। वर्षा की अनिश्चितता, अतिवृष्टि-अनावृष्टि आदि परिस्थितियों से निपटने और तालाबों और कुंओं से सिंचाई रकबे में बढ़ोतरी के लिए सिंचाई के नये साधनों के रूप में कुंआ, छोटे तालाब, नलकूप सहित सिंचाई की छोटी परियोजनाओं पर भी तेजी से काम हुआ है।
लघु सिंचाई नलकूप योजना के तहत 22 हजार 207 नलकूप खनन कर पम्प स्थापना के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई गई है।
"कृषि की विकास दर को बनाए रखना बड़ी चुनौती है। इस दर को आगे बढ़ाने के उपाय किए जा रहे हैं। इसके लिए एलायड सेक्टर पर भी काम किया जा रहा है। इसमें पशुधन विकास भी शामिल है।"
चंद्रशेखर साहू,कृषि मंत्री, छत्तीसगढ़ शासन

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