शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

आलेख

संक्रांति पर तुलादान का महत्व
तमसो मा ज्योतिर्गमय

भारत के अनेक पर्वों और त्योहारों में मकर संक्रांति की अपनी अलग एक पहचान है। वर्ष में यही एकमात्र पर्व है, जो 'सौर पंचांग' के आधार पर मनाया जाता है। सूर्य जब अपनी परिक्रमा के बीच धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है, तो मकर संक्रांति होती है।
दो राशियों के संक्रमण के साथ ही इस दिन को दो ऋतुओं (शिशिर और बसंत) का संधिकाल भी माना जाता है। शीत पर धूप की विजय के रूप में मनाया जाने वाला मकर संक्रांति का पर्व, प्रायः पौष (पूस) मास में पड़ता है, जबकि पूस को खरमास मानने के कारण, इस महीने में और कोई पर्व या त्योहार नहीं पड़ता।
आज के दिन से ही सूर्य का उत्तरायन काल आरंभ होता है, जिससे दिन के परिणाम में वृद्धि होती है और रात घटने लगती है। अब चूँकि सूर्य द्वारा यह राशि परिवर्तन 14 जनवरी को ही होता है, इसलिए मकर संक्रांति प्रतिवर्ष 14 जनवरी को मनाई जाती है। कई लोग मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाएँगे।
उत्तर भारत के लोग आपसी मेल-मिलाप के इस पर्व को जहाँ खिचड़ी के नाम से पुकारते हैं, वहीं दक्षिण भारत में इसे पोंगल के नाम से जाना जाता है। इस पर्व में गन्ने और चावल बाँटे जाते हैं। इस दिन तुलादान का विशेष महत्व है। किसी व्यक्ति के जितना तौलकर खिचड़ी, घी, तिल व फल इत्यादि दान इसमें दिया जाता है। कहा जाता है कि अपने वजन के बराबर वस्तुओं का दान करने से शरीर की उतनी ही बाधाएँ दूर होती है। साथ ही दान का फल अनंत गुना बढ़ जाता है।
'तमसो मा ज्योतिर्गमय' अंधकार से प्रकाश की ओर प्रयाण करने की वैदिक ऋषियों की प्रार्थना इस दिन के संकल्पित प्रयत्नों की परंपरा से साकार होती है। कर्मयोगी सूर्य इस दिन अपने क्षणिक प्रमाद को अलग रखकर, अंधकार पर आक्रमण करने का दृढ़ संकल्प करता है। इसी दिन से अंधकार धीरे-धीरे घटता जाता है।
अच्छे काम करने के शुभ दिनों का प्रारंभ होता है। धार्मिक लोग कामना करते हैं, कि मकर संक्रांति के बाद ही उनकी मृत्यु हो। जिस व्यक्ति की उत्तरायन में मृत्यु होती है, उसकी अपेक्षा दक्षिणायन में मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति के लिए, दक्षिण (यम) लोक में जाने की संभावना अधिक होती है। यमराज को मृत्यु को उत्तरायन प्रारंभ होने तक रोकने वाले इच्छामरणी भीष्म पितामह इस बात का ज्वलंत उदाहरण हैं।
मकर संक्रांति यानी प्रकाश की अंधकार पर विजय। मानव का जीवन भी प्रकाश और अंधकार से घिरा हुआ है; उसके जीवन का वस्त्र काले व सफेद तंतुओं से बना हुआ है। मकर संक्रांति के दिन मानव को स्नेह संक्रमण करने का शुभ संकल्प करना चाहिए।

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