शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

ऐतिहासिक महत्व

इतिहास पर नीलामी का हथौड़ा
यह एक ऐतिहासिक महत्व वाले ऐसे स्थल के इतिहास को मिटाने की कवायद है जिसे किसी भी कीमत पर बचाया जाना चाहिए। महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू, सरदार पटेल और मोहम्मद अली जिन्ना जैसे दर्जनों लोग इसी जगह से स्वतंत्रता आंदोलन चलाते और यहीं ठहरते थे। तब इस स्थान का नाम था मुस्तफा कैसल जो अब कैसल व्यू है। बात बस इतनी सी है कि नवाब इस्माइल की यह हवेली कैंट बोर्ड के 15.88 लाख रुपये के हाउस टैक्स की बकायादार है। मामला कोर्ट में भी लंबित है लेकिन कैंट बोर्ड ने इसे नीलाम करने का नोटिस जारी कर दिया है। यह उसी छावनी का बोर्ड है जहां से 1857 की क्रांति का उदय हुआ था।
1857 की क्रांति में अंग्रेजों से बगावत करने के आरोप में मुस्तफा खान को यहां कैद किया गया था। उनके दोस्त ब्रिटिश हुकूमत में जज और नवाब घराने के इसहाक खान को यह नागवार गुजरा। उन्होंने दोस्ती का हक अदा करते हुए यह जमीन खरीद ली और 1879 में मुस्तफा कैसल के नाम से इमारत खड़ी कर दी। इसके बाद 1918 से 1958 तक मुस्तफा कैसल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की स्थली बन गया। नवाब इसहाक खान के बेटे नवाब इस्माइल खान इंग्लैंड से बैरिस्टर बनकर पंडित मोती लाल नेहरू के सहायक के तौर पर वकालत करते थे। नवाब इस्माइल खान आनंद भवन इलाहाबाद में रहे तो उनकी पंडित जवाहर लाल नेहरू से अच्छी दोस्ती हो गई। इससे नवाब इस्माइल कांग्रेस से जुड़ने को प्रेरित हुए। वह आनंद भवन से लौटे तो पश्चिमी उत्तार प्रदेश से दिल्ली तक आजादी के संघर्ष का गढ़ मुस्तफा कैसल को बना दिया। उत्तार प्रदेश में खिलाफत अभियान का नेतृत्व महात्मा गांधी ने यहीं से किया। पंडित नेहरू भी कई बार यहीं आकर अभियान चलाते थे।

वहीं नवाब इस्माइल खान के करीबी दोस्त मोहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग का भी मुख्यालय कैसल को बनाया, लेकिन इस्माइल खान पाकिस्तान के हक में नहीं थे। वह एकीकृत हिंदुस्तान का सपना देखते थे। 1947 में भारतीय संविधान पर हस्ताक्षर करने वालों में नवाब इस्माइल खान भी शामिल थे। पहली अंतरिम सरकार में वह रक्षा मंत्री नियुक्त हुए। उनके बेटे पाकिस्तान चले गए और वहां ऊंचे ओहदों तक पहुंचे, लेकिन इस्माइल खान ने मरते दम तक भारत नहीं छोड़ा। अब कैसल व्यू में नवाब साहब के नाती रहते हैं। नीलामी की बात पर नवाब साहब के भतीजे बशीर ने बताया कि मामला कोर्ट में है इसलिए हम संपत्तिकी वैध या अवैध निर्माण और टैक्स पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते।
कौन कितनी बार आया
जवाहर लाल नेहरू, विट्ठल भाई पटेल और जीबी पंत दो बार आए। तो मोहम्मद अली जिन्ना, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, तीन बार यहां आए। विजय लक्ष्मी पंडित और सरोजनी नायडू कई बार आई। भूला भाई देसाई एक बार आए। लियाकत अली भी कई बार आए।
इतिहास की हत्या करता हाउस टैक्स
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की धरोहर मुस्तफा कैसल पर 15.88 लाख का हाउस टैक्स बकाया है। जिसका नोटिस बोर्ड ने नवंबर 2009 को दिया। बकाया न देने पर कैसल व्यू के बैंक खाते सीज कर संपत्तिअटैच कर दी। अब 22 मार्च 2010 को नीलामी के आदेश देने के बाद अब नीलामी का नोटिस भी निकाला जा रहा है।
इन्होंने कहा...
वहां पर बिना बोर्ड की अनुमति के व्यावसायिक निर्माण किया गया है। इसके अलावा बोर्ड ने 15 लाख से अधिक का हाउस टैक्स लेना था, जिसे न दिये जाने पर संपत्तिको नीलाम करने का फैसला बोर्ड ने लिया है, कोर्ट से कोई स्टे का आदेश बोर्ड के पास नहीं पहुंचा है।

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