बुधवार, 28 अप्रैल 2010

मिर्च-मसाला

मलाइका की अपील
हॉट मलाइका अरोरा खान का दिल मासूम पक्षियों के लिए धड़का है और वे पेटा इंडिया से जुड़ गई हैं। हाल ही में जारी हुए पेटा के एक एड में वे नजर आ रही हैं जिस पर लिखा हुआ है ‘वाइल्ड बर्ड्‍स डोंट बिलांग इन द सर्कस। बॉयकॉट एनिमल सर्कसेस।‘ मलाइका का यह फोटो अतुल कस्बेकर ने लिया है।
मलाइका का कहना है ‘आजाद उड़ते पक्षियों को पकड़कर छोटे और गंदे पिंजरों में कैद करना और सर्कस में उनसे काम करवाना क्रूरता है।‘ मलाइका अपने प्रशंसकों से अपील करते हुए कहती हैं ‘मैंने सभी को कहना चाहूँगी कि वे ऐसे सर्कसों का बहिष्कार करें जिनमें जानवरों से काम लिया जाता है।‘

मुझे कॉमिक रोल पसंद : लारा दत्ता
बिना किसी गॉडफादर के एक्टिंग करियर की शुरुआत करने और फिल्म दर फिल्म अपनी कला को निखारते हुए आज लारा दत्ता ने इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाई है। पार्टनर, अंदाज, डू नॉट डिस्टर्ब, मस्ती, खाकी, भागम-भाग, ब्लू और बिल्लू बार्बर जैसी फिल्में देने वाली अभिनेत्री लारा आने वाली फिल्म हाउसफुल में दर्शकों को नजर आएँगी। हाल ही में उनसे बातचीत की साक्षी त्रिपाठी ने। पेश है उसी बातचीत के मुख्य अंश-

हाउसफुल में आपका किरदार क्या है?
हाउसफुल एक कॉमेडी फिल्म है जिसमें मैं एक गुजराती लड़की हेतल पटेल का किरदार निभा रही हूँ, जो अपने पसंद के लड़के से शादी करती है, जिसे उसके पिता पसंद नहीं करते। इस शादी के लिए वो अपने पिता को किस तरह मनाती है, यही इस फिल्म में दिखाया गया है। दरअसल यह एक स्टाइलिश और मॉडर्न गर्ल का किरदार है। वो अपनी जिंदगी से बहुत खुश हैं और हमेशा दूसरों को खुश रखना चाहती हैं।

क्या वजह है कि आप ज्यादातर मल्टीस्टारर फिल्मों में ही दिखाई देती हैं?मैं मल्टीस्टारर फिल्म में काम कर बहुत खुश हूँ क्योंकि इन्हीं फिल्मों ने मुझे पहचान दी है।

ज्यादातर कॉमेडी करने का क्या कारण है?वैसे तो मैंने कई प्रकार के किरदार निभाए हैं, लेकिन मैं व्यक्तिगत रूप से हमेशा कॉमेडी पसंद करती हूँ। कॉमिक रोल वाला किरदार निभा कर मुझे बहुत ही खुशी होती है।

माना जाता है कि इंडस्ट्री में एक अभिनेत्री दूसरी अभिनेत्री की उपस्थिति बर्दाश्त नहीं कर सकती है। इस फिल्म में जिया और दीपिका के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
मुझे तो दोनों के साथ काम करने में बहुत मजा आया। जिया बहुत ही सिंपल हैं जबकि दीपिका मुझे प्रतिभा से भरपूर लगती है।

आप खुद को किस प्रकार का कलाकार मानती हैं?
मैं खुद को डायरेक्टर्स एक्टर मानती हूँ। वो मुझे जैसा कहते हैं मैं बिना किसी सवाल के वो किरदार निभाती हूँ। मेरा मानना है कि हर निर्देशक को पता होता है कि उसे अपने कलाकार से क्या चाहिए।

अभी तक का सबसे बेहतरीन कॉम्प्लीमेंट आप किसे मानती हैं?
साजिद ने ऑन कैमरा कहा था कि माधुरी और श्री देवी के बाद अगर कोई सबसे बेहतरीन कॉमेडी करता है तो वो मैं हूँ, यह अब तक का मेरा सबसे बड़ा कॉम्प्लीमेंट है।

ओशो पर अगर फिल्म बनी तो...

गोरी सोई सेज पर मुख पर डाले केस / चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुदेस...। अमीर खुसरो ने यह दोहा अपने गुरु निजामुद्दीन औलिया के निधन पर कहा था।...गुरुओं को लोग अनेक उपाधियों से नवाजते हैं। श्रीश्री और एक हजार आठ जैसा संबोधन तक गुरु को दिया जाता है। कई बार तो यह होता है कि गुरु जितना खोखला होता है, उपाधियाँ उतनी ही अधिक लाद दी जाती हैं। मगर गुरु को गोरी कहना...। ये तो महबूबा वाला संबोधन है...। हिन्दी, अवधी और ब्रज काव्य में नायिका को गोरी संबोधन दिया गया है। तो सवाल यह है कि अमीर खुसरो अपने गुरु को गोरी क्यों कह रहे हैं? अध्यात्म और सूफीज़्म से संबंध रखने वाले लोग समझेंगे कि गुरु से सुंदर कुछ और नहीं होता। एक महिला संत (सहजोबाई या शायद दयाबाई) ने तो अपने गुरु के निधन पर आँखें ही बंद कर ली थीं कि देखने लायक जो था वो तो अब रहा नहीं, तो क्या देखने के लिए आँख खोलना। मरते दम तक उन्होंने आँखें नहीं खोलीं।

ये सब बातें इसलिए कि ओशो पर फिल्म बनाने की तैयारी चल रही है और ओशो के रोल के लिए संजय दत्त या फिर कमल हसन से बात की जा सकती है। कहाँ ओशो और कहाँ ये दोनों! ओशो ने जीवनभर एक सिगरेट नहीं पी। संजय दत्त जैसा तामसिक आदमी कैसे उनका रोल कर पाएगा? फिर संजय दत्त की बॉडी पहलवानी वाली है।

कमल हसन ठीक हैं, पर ओशो के मुकाबले बहुत स्थूल हैं। इस फिल्म को बनाने की कोशिश कर रहे हैं इतावली फिल्म निर्देशक एंटोनियो क्लशेन सुकामीलि। अन्य रोलों के लिए कबीर बेदी और इरफान खान से भी बात चल रही है। ओशो के रोल में कमल हसन या संजय दत्त को आम दर्शक शायद कबूल कर लें, पर जिन्होंने ओशो को देखा है, वे कभी नहीं कर सकते। उनकी नजर में ओशो से सुंदर, भव्य और गरिमामय तो कोई हो ही नहीं सकता।

संत की भूमिका करते समय एक और समस्या एक्टरों के सामने पेश आती है कि वे कैरेक्टर में कैसे घुसें? जितने भी रोल वे करते हैं, उन सब लोगों का ऑब्जर्वेशन उन्होंने कर रखा होता है। जैसे उनसे कहिए कि धूर्त आदमी का रोल करना है, वे कर देंगे। उनसे कहिए कि हिंसक आदमी की भूमिका निभानी है, वे निभा देंगे। मगर संत...? संत को देखा ही नहीं तो रोल कैसे करें?

अन्नू कपूर ने टीवी पर कबीर किया था। मगर कबीर के रोल में अन्नू कपूर हद से ज्यादा उदास लगते थे। साँईंबाबा का कैरेक्टर कई लोगों ने किया है। मगर यह रोल ऐसा है कि गेटअप चेंज करते ही दर्शक श्रद्धालु हो जाता है। धीरे-धीरे बोलना ही साँईंबाबा का रोल निभा देने के लिए काफी होता है।

असल चुनौती होगा ओशो का रोल करना। मोटा-मोटी बात यह है कि ओशो बहुत विनोदी हैं। साथ ही बहुत विद्रोही भी। मगर एकदम अहिंसक...। तर्क फौलाद को काट देने वाले, विद्रोह दुनिया को हिला डालने वाला, मगर लहजा एकदम धीमा। हर संत अपने आपमें अजीब होता है।

सुकरात के आखिरी शब्द अपने शिष्यों से क्या थे? सुकरात ने कहा- अपन ने जो मुर्गी खाई थी, उसके दाम मुर्गी वाले को नहीं चुकाए हैं, तुम चुका देना। ओशो ने जाते-जाते कहा- मेरे कमरे का एसी चलने देना...। तो ये अजीब लोग हैं। इनके जाने के सदी-दो सदी बाद स्पेशल इफेक्ट्स और चमत्कारों की कहानियाँ जोड़कर आसानी से फिल्म बन सकती है। मगर अभी तो इनके कदमों की चाप गूँज ही रही है।

एक बात और... फिल्म को लेकर ओशो के शिष्य अगर असहमत हुए तो हँस लेंगे, पर ऐसा कुछ नहीं करेंगे जैसा और लोग करते हैं। न मुकदमा, न हंगामा, न सिनेमाघर में तोड़फोड़...। उनके शिष्य भी उनसे कम अजीब नहीं हैं।

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