मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

नक्सलवाद से कैसे लड़ें?
बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में एशिया में दो नारे दो देशों के मुक्ति संघर्ष के वाहक बने। चीन में माओ त्से तुंग ने कहा, "राजसत्ता का जन्म बंदूक की नाल से होता है" और भारत में महात्मा गाँधी ने नारा दिया "सत्य और अहिंसा ही हमारे सबसे बड़े हथियार हैं।"
चीन में बंदूक से क्रांति हुई और भारत में अहिंसक संघर्ष (सशस्त्र क्रांतिकारियों के योगदान के साथ) के सामने ब्रिटिश साम्राज्य को घुटने टेकने पड़े। आज गाँधी के देश में माओ का नारा भारतीय राज्य के लिए गंभीर चुनौती बन गया है। बंदूक का जवाब राइफल से देने और राइफल के जवाब में बमबारी करने के सुझाव आ रहे हैं।
खनिज संपदा से भरपूर आदिवासी क्षेत्रों के पिछड़ेपन और शोषण को नक्सलवाद की जड़ बताने वाले भी दंतेवाड़ा के भयानक हमले के बाद हतप्रभ हैं। सरकारों (केंद्र व राज्य) की लचर नीति, अनिर्णय और प्रशासन तंत्र का भ्रष्टाचार पूरी तरह उजागर हो रहा है। टीवी और अखबारों में समस्या और उसके समाधान को लेकर बहस जारी है।
अस्सी के दशक की शुरुआत में छत्तीसगढ़ में आंध्रप्रदेश से लगे छत्तीसगढ़ के एक सीमित इलाके में नक्सली सक्रिय थे, शेष में सबसे बड़ा आंदोलन दल्ली राजहरा के मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी के नेतृत्व वाला मजदूर-किसान आंदोलन था।
छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा और छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ ऐसे बड़े जनाधार वाले संगठन थे, जिनकी सभाओं और रैलियों में लाखों लोग उमड़ते थे। हरी पैंट और लाल कमीज पहनने वाले इन संगठनों के स्वयंसेवक हाथ में लाठी लेकर चलते जरूर थे, लेकिन उनकी लाठी के निशाने पर पुलिस और सरकारी तंत्र नहीं बल्कि शराब माफिया, खदान ठेकेदारों के गुंडे और महिलाओं के साथ बदसलूकी करने वाले अराजक तत्व होते थे।
इस आंदोलन के कार्यकर्ताओं की शांतिप्रियता और लोकतांत्रिक राजनीति के कायल उनके विरोधी भी थे। यही वजह थी कि नियोगी के वैचारिक विरोधी होते हुए भी कांग्रेस, भाजपा, भाकपा, माकपा के नेता भी उनका सम्मान करते थे।
वर्ष 1984 की सिख विरोधी हिंसा के बाद देशभर में छत्तीसगढ़ के सिख-बहुल इलाकों की सुरक्षा इन्हीं वालंटियरों ने रात-दिन पहरा देकर की थी, जबकि इन सिख परिवारों में कुछ शराब के ठेकेदार वे परिवार भी शामिल थे जिनके ठेकों को नियोगी के शराबबंदी आंदोलन ने बंद कराया था और ये ठेकेदार नियोगी को मारने की सुपारी दे रहे थे लेकिन छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा ने सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ इन सबकी हिफाजत बिना किसी भेदभाव के की।
नियोगी खुद नक्सलवादी आंदोलन से जुड़े रहे थे, लेकिन बाद में उन्होंने मजदूर राजनीति को अपना मिशन बनाया। इस आंदोलन के एजेंडे में मजदूरों के बेहतर वेतन-भत्तों से लेकर उनके शैक्षिक, सांस्कृतिक, नैतिक विकास और विकास प्रक्रिया में हिस्सेदारी तक शामिल थी।
शहीद अस्पताल, शराबबंदी आंदोलन, आदिवासी गाँवों में स्कूल, चिकित्सा, सामुदायिक रेडियो, मितान अखबार इसकी मिसाल थे। गरीब मजदूरों, आदिवासियों और किसानों की आवाज विधानसभा में पहुँचाने के लिए छमुमो के नेता झनकलाल ठाकुर निर्दलीय चुनाव लड़कर विधानसभा भी पहुँचे।

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