बुधवार, 28 अप्रैल 2010

करियर

जिंदगी में दखल देते टीवी-इंटरनेट

- राजकुमार 'दिनकर'


NDसंचार क्रांति ने दुनिया को जितना और जिस स्तर पर बदला है, उतना पहले किसी और क्रांति ने नहीं। टीवी, मोबाइल फोन और इंटरनेट ने जीवन-दर्शन, शैली और जरूरत सबको बदल डाला है। होना तो यह चाहिए था कि संचार से संवाद के रास्ते खुलते, लेकिन हो यह रहा है कि हम मियामी के बीच के बारे में तो जानते हैं, लेकिन अपने गाँव, कस्बे में बहती नदी की दुर्दशा के बारे में नहीं।

दरअसल इंटरनेट और टीवी ने हमें एक ऐसी दुनिया का भ्रम दिया है, जो हकीकत में नहीं है। फिर भी हम इसके नशे में अपनों और अंत में खुद से कटकर अकेले हो रहे हैं और हमें इसका अहसास तक नहीं है।

एक सरकारी दफ्तर में काम करने वाले सुभाष अरो़ड़ा अपने ऑफिस से घर जाकर कुछ खा-पीकर थोड़ा समय अपने पत्नी और बच्चों के साथ बिताते हैं। इसके बाद वे अपने कमरे में जाकर टीवी का रिमोट हाथ में ले लेते हैं और रात 10 बजे तक टीवी के प्रोग्राम देखते हैं। यहाँ तक कि वे खाना भी वहाँ खाते हैं।

यह सिर्फ इनकी ही आदत नहीं है। आजकल हम में से ज्यादातर लोग घर जाकर टीवी या कम्प्यूटर पर अपना समय बिताते हैं। आमतौर पर महिलाएँ ऑफिस से घर पहुँचने के बाद परिवार के लिए खाना बनाती हैं, बच्चों को होमवर्क कराती हैं व शेष बचे समय में टीवी देखती हैं जबकि टीनएजर या नई जनरेशन के लोग या फिर इंटरनेट लवर, ऐसे लोग टेलीविजन स्क्रीन पर आँखें गड़ाने की बजाए शाम का समय कम्प्यूटर पर बिताते हैं।

महिलाएँ तो विशेषतौर पर शाम के समय अपने पसंदीदा घरेलू सीरियल देखना पसंद करती हैं। इंटरनेट सर्फिंग के आदी अपने लैपटॉप पर नई साइट्स खोजते हैं या चैट करते हैं या फिर मीडिया ब्लॉगिंग वगैरह-वगैरह।


NDआजकल लोगों के घरों में शाम का समय सभी लोग इसी तरह गुजारते हैं। परिवार के लोग यदि एक स्थान पर बैठकर खाना खाते हैं तो जल्दी-जल्दी खाना खाकर सब टीवी या कम्प्यूटर की ओर दोबारा चले जाते हैं। बच्चे तो खासतौर पर सेलफोन पर अपने दोस्तों को मैसेज भेजने और रिसीव करने में लगे रहते हैं। शाम का खाना भी ये आधे-अधूरे मन से या जल्दबाजी में खाते हैं।

याद करें वो दिन जब टीवी, कम्प्यूटर और इंटरनेट जैसी चीजों की हमारे जीवन में इतनी ज्यादा दखलंदाजी नहीं थीं। शाम के समय टीवी पर कुछ ही समय प्रोग्राम आते थे। रात के समय आने वाले चित्रहार को देखने का इंतजार पूरे परिवार को रहता था और कम्प्यूटर भी उन दिनों एक अलग दुनिया की चीज थी। सोचिए क्या उन दिनों हमारी शामें भला अच्छी नहीं कटती थीं? परिवार के सदस्य आपस में बातें करते थे।

दोस्त-यारों के बीच गपशप होती थी। उन दिनों सबका एक-दूसरे का साथ अच्छा मेलजोल होता था और शाम का समय मनोरंजन से भरपूर होता था, तब हमें मनोरंजन के दूसरे साधन की जरूरत ही नहीं होती थी। जिन दिनों टेलीविजन पर एक सीमित समय तक प्रोग्राम आते थे और 24 घंटे का प्रसारण नहीं था उन दिनों टीवी पर देखे जाने वाले प्रोग्राम और फिल्में ही सबके लिए आपसी विचार-विमर्श का एक जरिया होती थीं।

घर की बड़ी लड़कियाँ रसोईघर में माँ का हाथ बँटाया करती थीं, छोटे बच्चे आस-पड़ोस के बच्चों के साथ खेला करते थे। ये सब चीजें आजकल कहीं खो-सी गई हैं। परिवार के सदस्य काम से लौटकर आने के बाद अपने-अपने कमरों में कैद हो जाते हैं। कुल मिलाकर एक संवादहीनता पूरे घर में बनी रहती है। हर कोई एक-दूसरे के साथ सिर्फ मतलब की बात करता है।

दादी-नानी की कहानी सुनने की फुरसत अब बच्चों को कहाँ? अब कहाँ पहले जैसी बात रही है। जब दादाजी खाना खाने बैठते तो छोटे बच्चे दादा को या पिता को गर्म-गर्म फुलके खाने के लिए लाकर देते थे। बच्चों में अब वह पहले जैसी बात नहीं रही। स्कूल से लौटकर आने के बाद इंटरनेट ही उनकी बातचीत का जरिया बन गया है।

स्कूल से लौटकर आने के बाद वे घंटों दूसरे बच्चों के साथ चैट करते हैं। जबकि एक वह भी दौर था जब लोग टेलीविजन और कम्प्यूटर के बिना परिवार में एक-दूसरे के साथ मिल-बैठकर बात किया करते थे, एक-दूसरे के सुख-दुःख बाँटा करते थे। काश! वे दिन फिर लौट आएँ तभी बढ़ती हुई अजनबीयत कम हो पाएगी।

डायटीशियन : बेहतर विकल्प


NDसंतुलित और सही आहार हमारे शरीर के लिए बेहद जरूरी है। लिहाजा हमारी शारीरिक जरूरतों के मुताबिक कितने पोषक तत्वों की जरूरत होती है और कौन से खाद्य पदार्थ सेहत को नुकसान पहुँचा सकते हैं, इसका जवाब एक डाइटीशियन ही दे सकता है। जीवनशैली में आ रहे बदलावों और उनके दुष्परिणामों के चलते डाइटीशियन एक बेहतर करियर विकल्प के रूप में उभरा है। अलबत्ता यह पेशा अपनाकर आप अपना ही नहीं, बल्कि दूसरों की सेहत का भी ख्याल बखूबी रख सकते हैं।

बहरहाल अभी भी पोषक तत्वों के मामले में इस जरूरत को लेकर आम लोगों में बहुत ज्यादा जागरूकता नहीं है, फिर भी सेलिब्रिटी व युवा वर्ग इस मामले में काफी सचेत होता जा रहा है। वह खाने-पीने के मामले में डाइटीशियन के मुताबिक बनाए डाइट प्लान को ही फॉलो करता है।

यही वजह कि अब युवाओं में बतौर डायटीशियन करियर बनाने की तरफ रुझान बढ़ा है। एक डायटीशियन को संबंधित व्यक्ति की जीवन शैली, खाने की आदतों, सामाजिक स्तर, आयु और पाचन तंत्र की कार्यक्षमता के आधार पर आहार की सूची बनानी पड़ती है। एक डायटीशियन के रूप में आप नवजात शिशु से लेकर बुजुर्ग, बीमार और खिलाड़ि‍यों तक की डाइट का चार्ट बना सकते हैं। डायटीशियन लोगों को सलाह देता है कि स्वस्थ रहने के लिए उसे किस तरह का भोजन करना चाहिए।

डायटीशियन का कार्य जितना आसान दिखाई देता है वास्तव में वह उतना आसान नहीं है, क्योंकि रोगियों के लिए व्यक्तिगत आहार योजना बनाते हुए विभिन्न क्लीनिकल घटकों को ध्यान में रखना होता है। साथ ही रोगियों की जीवन शैली, खान-पान की आदतों पर भी विचार करना होता है।

कार्पोरेट क्षेत्र में माँग
डायटीशियन अमिषा तापड़ि‍या के मुताबिक कार्पोरेट स्तर पर भी डायटीशियन की माँग बढ़ी है। पाँच सितारा होटलों में भी डायटीशियनों की सेवाएँ ली जाती हैं। यहाँ वे शेफ की मदद से ग्राहकों के लिए संतुलित आहार चार्ट तैयार करते हैं। वे यह सुनिश्चित करने में भी मदद करते हैं कि ग्राहकों को परोसा जा रहा भोजन न सिर्फ खाने लायक हो, बल्कि पौष्टिक भी हो।

मौजूदा वक्त में मल्टीनेशनल कंपनियों में डिब्बाबंद और रेडी टू इट खाद्य पदार्थों का भी काफी चलन है। पिज्जा हट और जंक फूड के पार्लर सारे देश में छाए हुए हैं। यहाँ दाम की प्रतिस्पर्धा के साथ ही ग्राहकों को अच्छी गुणवत्ता और उचित कैलोरी आहार देने के दावे किए जाते हैं। इन सभी क्षेत्रों में डायटीशियनों के लिए बहुत अच्छी संभावनाएँ हैं।

इंटर्नशिप जरूरी
डायटीशियन पाठ्यक्रम पूरा होने के बाद अनुभव प्राप्त करने के लिए इंटर्नशिप बहुत जरूरी है। ऐसे में आप किसी अस्पताल में इंटर्नशिप कर सकते हैं या किसी डायटीशियन के साथ भी काम कर सकते हैं। अगर आप स्वतंत्र रूप से प्रैक्टिस करना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको रजिस्टर्ड डायटीशियन की परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है। शैक्षिक योग्यता के साथ-साथ इस पेशे में एक वैज्ञानिक नजरिए की भी बड़ी जरूरत होती है। स्वास्थ्य व पोषण संबंधी विषयों की जानकारी होने के साथ व्यवहार कुशलता भी अनिवार्य है।

रुतबेदार विकल्प है वकालत

- दीपिका शर्मा

NDआजकल आए दिन नई-नई मल्टी नेशनल कंपनियाँ स्थापित हो रही हैं। ऐसी जगहों पर वकीलों की आवश्यकता होती है और जितनी बड़ी कंपनी, आमदनी और रुतबा भी उतना ही बड़ा। आज जब हम ऐसी नौकरी बात करते हैं जिसमें मन मुताबिक काम करने की पूरी आजादी हो और उस नौकरी का एक रुतबा भी हो तो ऐसे में वकालत एक अच्छा विकल्प हो सकता है।

पर क्या आपको नहीं लगता के इसके लिए कानून की जानकारी होने के अलावा एक लीगल प्रशिक्षण की भी आवश्यकता पड़ती है? एक अच्छा लॉ स्कूल ढूँढ कर डिग्री पा लेने से हर कोई वकील नहीं बन सकता। एक लॉ स्कूल में आपको कानून संबंधी तमाम पुस्तकें पढ़ाई जाएंगी, विधि संबंधी गेस्ट फैक्लटी आपके साथ अपने अनुभव भी बताएंगी। परंतु इतना पर्याप्त नहीं है।

सबसे पहले आप स्वयं विश्लेषण करें कि आप अपने लिए एक लीगल कॅरिअर की ही क्यों चाहते हैं? इंजीनियरिंग, शिक्षा, चिकित्सा, एमबीए या अन्य कोई क्षेत्र क्यों नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि फिल्में या नाटक देख-देखकर ही वकीलों की छवि से प्रभावित होकर आपने ये निर्णय लिया? कानून और विधि उन लोगों के लिए एक बेहतरीन क्षेत्र है जिन्हें पूरे आत्मविश्वास के साथ पढ़ना, लिखना और बोलना पसंद है।

आपको घंटों तक काम करना पड़ सकता है और कानूनी दांव पेचों पर सिर खपाना पड़ सकता है। परंतु इस काम के लिए आपको काफी सावधानी बरतनी होती है। आजकल आए दिन नई-नई मल्टी नेशनल कंपनियां स्थापित हो रही हैं। ऐसी जगहों पर वकीलों की आवश्यकता होती है और जितनी बड़ी कंपनी, आमदनी और रुतबा भी उतना ही बड़ा। भारत में लीगल शिक्षा बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा संचालित होती है।

लॉ के कोर्स के बाद या तो आप कोई कानूनी संस्था से जुड़ सकते हैं या स्वतंत्र रूप से अपनी प्रैक्टिस कर सकते हैं या फिर किसी उद्योग इकाई से जुड़कर उनके निजी वकील का कार्यभार संभाल सकते हैं।

एलएलबी का अर्थ अपराध से जुड़े मामलों का वकील बनना नहीं है। इस कोर्स के बाद आप बिजनेस लॉ, कॉर्पोरेट लॉ, इनवायरनमेंटल लॉ, पेटेंट लॉ, टैक्स लॉ, इंटरनेशनल लॉ, रियल एस्टेट लॉ, लेबर लॉ, साइबर लॉ आदि में भी मजबूत स्थिति बना सकते हैं।


NDवर्तमान परिप्रेक्ष्य में स्थिति

2007-08 के आँकडों के मुताबिक लॉ स्कूलों से जो ग्रेजुएट हुए लोगों को विभिन्न संस्थाओं में 30 हजार से 1 लाख रुपए प्रति माह तक की आय पर नियुक्त किया गया। इस वर्ष के आँकड़े और अधिक बेहतर स्थिति दर्शाते हैं। एक फ्रैशर भी अपने आत्मविश्वास के बल पर ये डिग्री हासिल करके अच्छा वेतन पा सकता है।

इंडिया एक कॉमन लॉ देश है जिसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यहाँ की कानून प्रणाली कई अन्य देशों की प्रणाली से मेल खाती है। जिस वजह से भारत में लॉ की डिग्री प्राप्त कर आप विदेश में भी अच्छी नौकरी पा सकते हैं, सिंगापुर, मलेशिया जैसे स्थानों पर भारतीय वकीलों की मांग लगातार बढ़ रही है।

बस कानूनी दाँव-पेच में थोड़ा संभलकर चलने की जरूरत है। अगर आपको कानून की धाराएँ मुँह जुबानी याद हो जाएँ और तार्किक शक्ति में इजाफा कर आप एक अच्छे वकील बन जाएं तो 6 अंकों की सैलरी बहुत आसानी से पा सकते हैं।






समाज सेवा में असीम संभावनाएँ
हाल के वर्षों में सोशल वर्क का प्रोफेशन विश्वव्यापी तौर पर बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। निर्धनता के काले साये में जीवन व्यतीत करने वाली बहुसंख्यक आबादी के लिए बेहतर जीवनयापन की न्यूनतम सुविधाएँ जुटाने में ये लोग प्रभावी एवं सार्थक कार्यकलाप कर रहे हैं। निस्संदेह समाज कल्याण की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण प्रोफेशन कहा जा सकता है।
एक समय था जबकि समाज कल्याण का काम निःस्वार्थ भावना पर ही पूर्णतः आधारित था लेकिन आज के संदर्भ में यह एक अहम प्रोफेशन का रूप ले चुका है। सोशल वर्क के क्षेत्र में भी अन्य प्रोफेशनों की भांति ट्रेंड और पारंगत लोगों की जरूरत पड़ने लगी है। इसी कारणवश अब तमाम तरह के ट्रेनिंग कोर्स और पाठ्यक्रम अस्तित्व में आ गए हैं।
इनमें से अधिकांश यूनीवर्सिटी में डिग्री एवं पोस्ट ग्रेजुएट स्तर पर उपलब्ध हैं। देश की प्रायः सभी महत्वपूर्ण यूनीवर्सिटी इस प्रकार के कोर्सेज संचालित करती हैं। इनमें दाखिले कुछ संस्थानों द्वारा मेरिट के आधार पर तो अन्य संस्थानों द्वारा चयन परीक्षा के आधार पर दिया जाता है।
जहाँ तक रोजगार और करियर विकास के अवसरों की बात है तो सरकारी और गैर सरकारी, दोनों ही क्षेत्रों में कई प्रकार की संभावनाएँ हो सकती हैं। सरकारी क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकारों के समाज कल्याण विभागों, सामुदायिक विकास के कार्यों, जनकल्याण के कार्यक्रमों, ग्रामीण विकास संबंधी योजनाओं के क्रियान्वयन, स्वास्थ्य सेवाओं के प्रचार-प्रसार, शिक्षा संबंधी विशिष्ट कार्यों में इनकी सेवाएं ली जाती हैं। दूसरी ओर गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ), जिनमें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों प्रकार के संगठन शामिल हैं, में इनकी जरूरत हमेशा बनी रहती है।
एनजीओ का विशाल नेटवर्क समूचे विश्व में दरिद्रता-अशिक्षा और उपेक्षित वर्ग की बड़ी आबादी को मुख्यधारा में लाने के लिए सार्थक तौर पर कार्यरत है। लाखों परिवारों को सक्षम बनाने और उनके लिए आय अर्जन के स्रोतों की उपलब्धता सुनिश्चित करने में इनके योगदान को कम करके नहीं आंका जा सकता है। एनजीओ को अमूमन वित्तीय सहायता सरकारी एवं विदेशी संगठनों से बड़े पैमाने पर मिलती है। सिर्फ इसी मद पर दुनिया भर में अरबों-खरबों डॉलर के बराबर की राशि का प्रावधान विभिन्न देशों की सरकारों और अन्य अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संगठनों द्वारा किया जाता है।
बेचलर्स डिग्री इन सोशल वर्क के बाद ही करियर की शुरुआत की जा सकती है। प्रारंभिक स्तर पर अनुबंध आधार पर रोजगार के अवसर मिलते हैं। एम एस डब्ल्यू या मास्टर्स डिग्री इन सोशल वर्क के आधार पर अंतरराष्ट्रीय स्तर के एनजीओ और सरकारी समाज कल्याण विभागों में रोजगार मिल सकते हैं। इतना ही नहीं, स्वतंत्र रूप से अपना अलग एनजीओ भी इस क्रम में पंजीकृत कर प्रारंभ किया जा सकता है।
धनराशि एवं अन्य सहायता की व्यवस्था विभिन्न देशी और विदेशी स्रोतों से संभव हो सकती है। इस क्षेत्र में ऐसे ही धुन के युवाओं को आना चाहिए जो समाज की भलाई में विश्वास रखते हैं और निजी स्वार्थ को प्राथमिकता नहीं देते हैं।
समाज कार्य के क्षेत्र में रोजगार
1. सोशल सर्विस वर्कर
2. सोशल ग्रुप वर्कर
3. स्कूल काउंसलर
4. रिसर्च एनालिस्ट
5. सायकिएट्रिक सोशल वर्कर
6. मेडिकल सोशल वर्कर
7. इंडस्ट्रियल सोशल वर्कर
8. फैमिली काउंसलर
9. चाइल्ड वेलफेयर वर्कर
10. इंटरनेशनल सोशल वर्कर

कैसे बनें एनएसजी कमांडो
मैं नेशनल सिक्योरिटी गार्ड संगठन में कमांडो बनना चाहता हूँ। कृपया मार्गदर्शन करें।

नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (एनएसजी) भारत का प्रमुख कमांडो संगठन है, जो आतंक निरोधी फोर्स के तौर पर जाना जाता है। एनएसजी प्रत्यक्ष रूप से कैडेट की भर्ती नहीं करता है। केन्द्रीय पुलिस संस्थान और भारतीय सेना सब इंस्पेक्टर तथा जेसीओ का चयन करती है। उन्हें तीन वर्ष की प्रतिनियुक्ति पर एनएसजी में भेजा जाता है।

उन्हें इस दौरान मनेसर में एनएसजी ट्रेनिंग सेंटर में तीन माह के ट्रेनिंग प्रोग्राम से गुजरना पड़ता है। एनएसजी कमांडो को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में भी नाभिकीय, जैविक और रासायनिक युद्ध के मद्देनजर प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण के उपरांत एनएसजी कमांडो को एनएसजी संगठन में शामिल कर लिया जाता है।

मैं ब्यूटीशियन प्रशिक्षण प्राप्त करना चाहती हूँ। कृपया मध्यप्रदेश में इससे संबंधित किसी सरकारी प्रशिक्षण संस्थान की जानकारी दें।

-प्रिया ठाकुर, इंदौरClick here to see more news from this city

केंद्रीय श्रम मंत्रालय के अंतर्गत रोजगार और प्रशिक्षण महानिदेशालय के प्रदेश के एकमात्र क्षेत्रीय महिला व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान (आरपीटीआई), नंदानगर, इंदौर में महिलाओं हेतु ब्यूटीशियन से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाता है।

मैं चीनी भाषा सीखना चाहता हूँ। कृपया चीनी भाषा का प्रशिक्षण देने वाली संस्थाओं के बारे में बताएँ।

- वीरेंद्र गुप्ता, मुरैना भावेश गोरे, बिलासपुर

चीनी भाषा के अध्ययन हेतु जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली/ लखनऊClick here to see more news from this city विश्वविद्यालय, लखनऊ/ बीआर आम्बेडकर विश्वविद्यालय, औरंगाबाद प्रमुख संस्थान हैं।

मैं फिल्मों में आर्ट डायरेक्शन करना चाहती हूँ। आर्ट डायरेक्शन का कोर्स कहाँ से किया जा सकता है?

-प्राची मोरे, मक्सी (शाजापुर)

आर्ट डायरेक्शन का कोर्स इन संस्थानों से किया जा सकता है-

फिल्म एवं टेलीविजन प्रशिक्षण संस्थान, पुणे/ सत्यजीत रे फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान, कोलकाता/ नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, नई दिल्ली।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें