बुधवार, 21 अप्रैल 2010

साहित्यिक कृतियां

गुलजार से श्रोताओं का सीधा संवाद
गुलजार की शायरी और उनके लेखन में संवेदनाओं का एक व्यापक संसार उपस्थित है। प्रेम, सौंदर्य, अवसाद, मिलन, बिछोह, रुसवाई और बेवफाई के गहरे अहसासों से भरी हुई उनकी रचनाओं से जब कोई एक तस्वीर बनायी जाए, जिंदगी की मुश्किलों और दुश्वारियों से रू-ब-रू गुलजार उसमें एक नया रंग भरते दिखाई देने लगते हैं। उन्हें मालूम है कि जिंदगी के रंग हजार हैं, इसलिए साहित्य का भी रंग एक नहीं हो सकता। गुलजार की शायरी को, उनके साहित्य को, जिंदगी के इन्हीं हजार-हजार रंगों को, उनके खूबसूरत और दर्द भरे लम्हों में पकड लेने की कलात्मक कोशिशों के रूप में देखा जा सकता है। ऐसी कोशिशों के रूप में, जिनमें जिंदगी को बांध लेने का गहरा फलसफा शामिल है। यह गुलजार की अदबी शख्सियत की वह खास ताकत है जो उन्हें भीड से अलग ही नहीं करती, बल्कि एक नये प्रतिमान के रूप में प्रस्तुत भी करती है। आस्कर जैसा विश्वस्तरीय पुरस्कार भी उनके नाम के साथ जुड चुका है। जबकि भारतीय फिल्म जगत को अपने विशिष्ट योगदान के लिए वह बीस बार फिल्मफेयर और सात बार नेशनल अवार्ड से पहले ही नवाजे जा चुके हैं। एक रचनाकार के रूप में प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार और अजीम शख्सियत के तौर पर पद्मभूषण सम्मान से भी गुलजार विभूषित हैं।

विमला देवी फाउंडेशन न्यास की दसवीं वर्षगांठ पर अयोध्या के राजसदन में आयोजित समारोह में भाग लेने आये गुलजार शनिवार की रात श्रोताओं से संवाद कार्यक्रम में सीधे मुखातिब हुए। न्यास के सचिव एवं कवि-आलोचक यतीन्द्र मिश्र ने इस टिप्पणी के साथ श्रोताओं को संवाद के लिए आमंत्रित किया कि गुलजार ने अभिव्यक्ति के लिए ढेरों रचनात्मक माध्यमों को चुना है। एक फिल्म बनाते हुए वे आसानी से किसी गजल की मनोभूमि में टहलते हुए पाये जा सकते हैं या फिर एक कहानी लिखते वक्त उनके जेहन में आसानी से किसी नयी फिल्म की पटकथा आकार ले रही होती है। इस तरह परस्पर एक दूसरे को समृद्ध करने वाली परिस्थितियों में रहते हुए गुलजार के अपने विचारों, सरोकारों और चिन्ताओं का दायरा इतना व्यापक हो जाता है कि फिर उनके लिए अभिव्यक्ति का कोई एक माध्यम काफी नहीं रह जाता। प्रस्तुत है संवाद के प्रमुख अंश-

संस्कृति को बचाने की पहल का समर्थन

वक्त की इस आंधी में साहित्य, संगीत और संस्कृति की जडों को बचाये रखने के लिए होने वाली हर पहल में मैं साथ हूं। पश्चिमी संगीत को कोसने और उसके प्रभाव को लेकर हाय-तौबा मचाने से कुछ नहीं होगा। पश्चिमी संगीत को भी समझना होगा। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के संगीत (रवीन्द्र संगीत) में दोनों का अद्भुत सामंजस्य दिखता है। हमारी संगीत परम्परा बहुत समृद्ध है। जरूरत है इसकी जडों को सींचते रहने की। यह काम आज ए आर रहमान जैसे संगीतकार बेहतर ढंग से कर रहे हैं।

[आस्कर का श्रेय रहमान को?]

स्लमडाग मिलेनियर फिल्म के गीत जय हो को आस्कर पुरस्कार मिलने का सारा श्रेय ए आर रहमान को जाता है। मेरा अपना मानना है कि यह गीत, शानदार संगीत संयोजन की वजह से इतना लोकप्रिय हुआ। रहमान का संगीत वाकई जादुई है। उन्होंने विश्व मानचित्र पर भारतीय संगीत की धाक जमा दी है।

[हिंदी में क्यों नहीं है समृद्ध बाल साहित्य?]

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हिन्दी व उर्दू में समृद्ध बाल साहित्य नहीं है। इन दोनों जुबानों में बच्चों के लिए नियमित रूप से लिखने वाले रचनाकार नहीं हैं। हिन्दी में उपलब्ध ज्यादातर बाल साहित्य पश्चिम का है। भारतीय भाषाओं में बांग्ला, मराठी व मलयालम में प्रचुर व उपयोगी बाल साहित्य उपलब्ध है। बांग्ला बाल साहित्य को प्रख्यात फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे के पिता सुकुमार रे ने भी काफी समृद्ध किया है।

[अब नाना बन गया हूं.]

अभी कुछ ही हफ्ते पहले मैं नाना बन गया हूं। इस कारण बच्चों के लिए लिखने के प्रति अब पहले से ज्यादा संजीदा हो गया हूं। मेरा मानना है कि बच्चों के लिए लिखना ज्यादा चुनौतीपूर्ण और जवाबदेही भरा है, क्योंकि बच्चे जस का तस स्वीकार करते हैं। प्रतिकार नहीं कर पाते। फिर उनके लिए उनकी जुबान में लिखना होता है, ताकि आसानी से संप्रेषणीय हो। वैसे मैं बोसकी का पंचतंत्र और बच्चों के लिए गीत लिखने के अलावा चकमक में लिखता रहता हूं। फिर भी मेरा मानना है कि बच्चों के लिए और लिखने की जरूरत है।

[टैगोर पर फिल्म न बना पाने का अफसोस?]

मैने मुंशी प्रेमचंद पर 15 घंटे की फिल्म बनायी थी। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर पर भी ऐसी ही फिल्म बनाने का प्रस्ताव दूरदर्शन को दिया था, लेकिन अफसोस है कि दूरदर्शन ने प्रस्ताव को अब तक मंजूरी नहीं दी। दरअसल गुरुदेव की काव्यात्मक कहानियों पर अब तक कोई काम नहीं हुआ है। धर्मवीर भारती पर भी वृत्तचित्र बनाने का इरादा था लेकिन दूरदर्शन के टालू रवैये के कारण ही संभव नहीं हो पाया।

[शीघ्र प्रकाशित होने वाले गीतों का संग्रह]

शायरी व नज्मों के संग्रह यार जुलाहे के बाद मेरे गीतों का संग्रह मीलों के दिन भी शीघ्र प्रकाशित होने वाला है। इसका सम्पादन भी यतीन्द्र मिश्र ही कर रहे है। इसमे मेरे 1200 गीतों में से चुने हुए 100 गीतों को शामिल किया गया है।

1 टिप्पणी:

  1. gulzarji ki baat hi alag hai. unki shayari mein ek kashih nazar aati hai. kaha MORA GORA ANG LE LE MOHE SHYAM RANG DE. gana aur kaha KAJARARE KAJARARE TERE KARE KARE NAINA
    BLOG KE LIYE BADHAI.
    MAIN BHI PATRAKAR HOON. AUR RAIPUR KA HI HOON. AAP KAUN SE NEWS PAPER MEIN HAIN.

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