गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

पर्यटन » मध्यप्रदेश

चलें महेश्वर : माँ नर्मदा के तीर
इतिहास प्रसिद्ध सम्राट कार्तवीर्य अर्जुन की प्राचीन राजधानी महिष्मति ही आधुनिक महेश्वर है। इसका उल्लेख रामायण तथा महाभारत में भी मिलता है। इंदौर की रानी अहिल्याबाई होलकर ने यहाँ की महिमा को चार चाँद लगाए। महेश्वर के मंदिर तथा दुर्ग परिसर के सौंदर्य में अपार आकर्षण विद्यमान है। महेश्वर की महेश्वरी साड़ियाँ अति प्रसिद्ध हैं।

यहाँ के पेशवा घाट, फणसे घाट और अहिल्या घाट प्रसिद्ध हैं जहाँ तीर्थयात्री शांति से बैठकर ध्यान में डूब सकते हैं। नर्मदा नदी के बालुई किनारे पर बैठकर आप यहाँ ठेठ ग्राम्य जीवन के दर्शन कर सकते हैं। पीतल के बर्तनों में पानी ले जाती महिलाएँ, एक किनारे से दूसरे किनारे तक सामान ले जाते पुरुष और किल्लोल करता बचपन..!

राजगद्दी और राजवाड़ा-
नर्मदा के तीर पर बने किले में स्थित राजगद्दी पर देवी अहिल्याबाई की प्रतिमा रखी गई है। आज भी यह स्थान सजीव दरबार की तरह लगता है। किले के ऊपर से शांत नीली नर्मदा के जल को निहारने का अपना ही सुख है। किले के अन्य कमरों में करघे लगे हैं जिन पर साड़ी बनते हुए कोई भी देख सकता है। किले में स्थित छोटे से मंदिर से आज भी दशहरे के उत्सव की शुरुआत की जाती है जैसे राजा-महाराजा के समय में की जाती थी। किले से ढलवाँ रास्ते से नीचे जाते ही शहर बसा हुआ है।

मंदिर
महेश्वर के मंदिर दर्शनीय हैं। हर मंदिर के छज्जे, अहाते में खूबसूरत नक्काशी की गई है। कालेश्वर, राजराजेश्वर, विट्ठलेश्वर और अहिल्येश्वर मंदिर विशेष रूप से दर्शनीय हैं।

कैसे पहुँचें
वायु सेवा- महेश्वर के लिए निकटतम हवाई अड्डा इंदौर क्रमशः 77 तथा 91 किमी है जो मुंबई, दिल्ली, भोपाल तथा ग्वालियर से सीधी विमान सेवा से जुड़ा है।

रेल सेवा- महेश्वर के लिए बड़वाह (39 किमी) निकटतम रेलवे स्टेशन हैं। पश्चिमी रेलवे के बड़वाह, खंडवा, इंदौर से भी यहाँ पहुँच सकते हैं।

सड़क मार्ग- बड़वाह, खंडवा, इंदौर, धार और धामनोद से महेश्वर के लिए बस सेवा उपलब्ध है।

कब जाएँ-
जुलाई से लेकर मार्च तक का समय यहाँ जाने के लिए उपयुक्त है।
ठहरने के लिए- गेस्ट हाउस, रेस्ट हाउस, तथा धर्मशालाएँ उपलब्ध हैं।
धुँआ-धुँआ सारा समां - भेड़ाघाट
चमकती संगमरमर की लगभग सौ फीट ऊँची दीवारें... बीच में कल-कल बहती नर्मदा नदी पूरा माहौल बेहद पवित्र, बेहद शांत..पानी में चमकती सूर्य की किरणें... यह दिलकश नजारा है भेड़ाघाट का। पूर्णिमा की चाँदनी रात में यहाँ के सौंदर्य का वर्णन करना शब्दों में संभव नहीं है। ऐसे में आप नर्मदा में नौका-विहार करें तो रहस्यमय सौंदर्य का अनुभव करेंगे।
कई हिंदी फिल्मकारों ने यहाँ शूटिंग की है। जिसका रोचक वर्णन गाइड अनोखे अंदाज में सुनाते हैं। ये नाव चालक कम गाइड लगातार बोलते रहते हैं। यदि आप खामोशी से इस जगह की खूबसूरती निहारना चाहें तो बस इन्हें एक बार चुप होने का इशारा करना होगा।

दो ऊँचे-ऊँचे संगमरमरी आईनों के बीच बहती नीली शांत नर्मदा आगे चलकर बेहद खूबसूरत धुआँधार जलप्रपात के रूप में गिरती है। चाँदनी रात में इस जैसा खूबसूरत स्थान शायद ही विश्व में कहीं हो। चाँदनी रात में सरकार की ओर से हर साल यहाँ उत्सव का आयोजन करवाया जाता है। जिसके तहत नौकाओँ की राजसी सज्जा की जाती है। साथ ही सारंगी, तबला जैसे पारंपरिक वाद्य-यंत्रों को कुछ नावों में खास तौर पर बजवाया जाता है।
मुख्य आकर्षणः-
संगमरमरी चट्टानें- इस जलप्रपात क दोनों ओर खूबसूरत संगमरमर की चट्टाने हैं। इन उज्जवल-धवल चट्टानों के बीच नौका विहार की सुविधा नवंबर से मई तक उपलब्ध रहती है। चाँदनी रात में इसकी खूबसूरती और नौकाविहार का आनंद दुगना हो जाता है।
धुआँधार जलप्रपात-
शांत नर्मदा चट्टानों के बीच से बहती है और धुँआधार जलप्रपात के रूप में गरजकर गिरती है। इसकी आवाज दूर से ही सुनाई देती है। पानी की तेजी गहरे धुएँ के रूप में दिखाई देती है। प्रकृति की खूबसूरती का एक और रूप!

सेलखड़ी की कलाकृतियाँ-
यहाँ नर्मदा में पाए जाने वाले सेलखड़ी पत्थरों (संगमरमर) पर उकेरी गई कलाकृतियाँ बनाने और बेचने का व्यवसाय यहाँ होता है। यहाँ आपको बच्चे हो, बूढ़े हो या जवान सभी इसी काम में लगे दिखाई देंगे। आप यहाँ से संगमरमर के खूबसूरत सामान ही नहीं खरीद सकते, बल्कि इन्हें कितनी खूबसूरती से बनाया जाता है यह भी निहार सकते हैं।

चौंसठ योगिनी मंदिर-
ऊँची पहाड़ी पर स्थित मंदिर में कई सीढ़ियाँ चढ़कर आप जब ऊपर पहुँचते हैं तो नीचे संगमरमर की चट्टानों के बीच बहती नर्मदा की लहरों का सौंदर्य आपकी सारी थकान हर लेता है। दुर्गा माँ का यह मंदिर दसवीं शताब्दी का है यहाँ कलचुरी काल की अन्य प्रतिमाएँ भी मौजूद हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर भूमिगत सुरंग के माध्यम से दुर्गावती महल से जुड़ा हुआ है।

कैसे जाएँ-
हवाई मार्ग से- जबलपुर सबसे निकट का हवाई अड्डा है जो यहाँ से 23 किमी. दूर है। भोपाल और दिल्ली के लिए यहाँ से नियमित हवाई सेवा है।
रेल मार्ग से- मुंबई-हावड़ा मुख्य लाइन इलाहबाद से होते हुए जबलपुर रेल मुख्यालय है। सभी एक्सप्रेस और पैसेंजर ट्रेन यहाँ रुकती हैं।
सड़क मार्ग से जबलपुर से बस, टैम्पो और टैक्सियाँ भेड़ाघाट के लिए चलती हैं।
कब जाएँ- अक्टूबर से जून तक का समय यहाँ जाने के लिए श्रेष्ठ है। मानसून सीजन में आप धुँआधार जलप्रपात का धुँआ-धुँआ रूप नहीं देख पाएँगे।

बजट- यहाँ जाने के लिए किसी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लगता है। आप यूँ ही बिना टिकट लिए यहाँ की खूबसूरती निहार सकते हैं। हाँ, नौकायान के लिए आपको शुल्क चुकाना होगा...कितना यह आपकी पसंद पर निर्भर करता है। यदि आप दूसरे लोगों के साथ मिलकर नाव किराए पर लेते हैं तो यह आपको 100 से 150 रूपए के बीच मिल जाएगी।

यदि अपने परिवार के लिए पूरी नाव बुक करना चाहते हैं तो नाव के आकार और रूप-रंग के अनुसार कीमत 350 से लेकर 500 रूपए हो सकती है। चाँदनी रात में विहार करने पर टिकिट शुल्क कुछ बढ़ा दिया जाता है। इसके अलावा जबलपुर में ठहरने के लिए सस्ते और मँहगें दोनो ही होटल आराम से मिल जाते हैं।

टिप्सः-
धुँआधार जलप्रपात देखते समय काफी सावधानी रखें। जोश में आकर रेलिंग पर चढ़ना और रेलिंग क्रास करना काफी खतरनाक साबित हो सकता है।

यहाँ नौकाविहार करते समय नाव का संतुलन न बिगाड़े। यहाँ कई जगह पानी काफी गहरा है।

अपने साथ सनक्रीम लोशन, कैप और चश्मा जरूर रखें। बात यदि चाँदनी रात की हो तो इनकी क्या जरूरत।

यहाँ कुछ सालों पहले मगरमच्छ पाए जाते थे। इसलिए अभी भी सावधानी रखना जरूरी है बच्चों को नौका विहार करते समय पानी में बार-बार हाथ डालने से रोकें।

पहाड़ियों पर नाम कुरेदकर इनकी प्राकृतिक सुंदरता खराब न करें। न ही यहाँ वहाँ कूड़ा खासकर पॉलिथिन फेंके।

चित्रकूट
प्राचीन काल में तपस्या और शांति का स्थल चित्रकूट ब्रह्मा, विष्णु, महेश के बाल अवतार का स्थान माना जाता है। वनवास के समय भगवान राम, सीता, लक्ष्मण, यहीं के घने जंगलों में रहे थे और ब्रह्मा, विष्णु और महेश महर्षि अत्रि तथा सती अनुसूया के अतिथि बनकर यहाँ रहे थे। इस स्थल का वरदान माना जाता है। भगवान प्राकृतिक सुषमा के बीच चित्रकूट में पर्यटक मानसिक शांति प्राप्त करते हैं।

रामघाट
रामघाट में मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित घाट पर विभिन्न धार्मिक क्रियाएँ चलती रहती हैं। कहते हैं यहाँ घाटों पर भीड़ कभी भी कम नहीं होती। पवित्र मंत्रोच्चार और खुशबू के बीच साधुओं को यहाँ तपस्या में लीन बैठे देखा जा सकता है या तीर्थयात्री उनसे उपदेश प्राप्त करते रहते हैं। मंदाकिनी के नीले-हरे पानी में नौकायन का मजा ही कुछ और है।

कामदगिरी
कामदगिरी चित्रकूट का मुख्य धार्मिक स्थल है। यह एक खड़ी पहाड़ी पर स्थित है जिसके आधार पर मंदिरों और पूजा स्थलों की कतारें हैं। यहीं पर भरत मिलाप मंदिर है। यहीं पर भरत ने राम से वापिस लौटने की विनती की थी। लोग यहाँ मनोकामना पूर्ति के लिए पहाड़ी की परिक्रमा भी करते हैं।

सती अनुसूया
यह स्थल कुछ ऊपर जाकर है घने जंगलों के बीच शांत वातावरण में पक्षियों की चहचहाहट गूँजती रहती है। कहते हैं कि यहीं पर अत्रि ऋषि, उनकी पत्नी अनुसूया और तीनों पुत्रों ने तपस्या की थी जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के अवतार रूप में थे। मंदाकिनी की धारा को अनुसूया द्वारा अपनी ध्यान-साधना के लिए लाया गया था ऐसा माना जाता है। यह स्थल शहर से 16 किमी. दूर है और घने जंगलों से होकर सड़क मार्ग से यहाँ पहुँचा जा सकता है।
स्फटिक शिला
मंदाकिनी के किनारे पर जानकी कुंड के कुछ किलोमीटर पीछे यह घने वनों से आच्छादित क्षेत्र है। यहाँ पर भगवान राम के पैरों के निशान हैं और यहीं पर सीता माता को जयंत नामक कौवे ने चोंच मारी थी। यहाँ नदी के स्वच्छ पानी में मछलियाँ आसानी से देखी जा सकती हैं।

जानकी कुंड
रामघाट से ऊपर जाने पर मंदाकिनी का मनमोहक नजारा दिखाई देता है। नदी के नीले पानी और हरे-भरे पेड़ों से यह स्थान बहुत ही सुरम्य लगता है। जानकी कुंड तक जाने के दो रास्ते हैं एक तो आप यहाँ नाव के जरिए पहुँच सकते हैं और दूसरे आप हरियाली देखते हुए सड़क मार्ग से भी जा सकते हैं।
हनुमान धारा
यह सैंकड़ों फीट ऊँची जगह पर स्थित धारा है, जिसे राम ने हनुमान के लंका दहन के बाद लौटने पर हनुमान के लिए बनाया था। यहाँ कई मंदिर हैं और साथ ही यहाँ से चित्रकूट का विहगम दृश्य भी देखा जा सकता है। ऊपर पहुँचने पर खुला सा क्षेत्र है जहाँ पीपल के वृक्ष लगे हैं। ऊपर चढ़ने की सारी थकान यहाँ आते ही मिट जाती है।

भरत कूप
यहाँ भरत ने पूरे भारत के तीर्थों से जल एकत्र करके डाला था। यह कस्बे से दूर छोटा सी अलग-थलग जगह है।

गुप्त गोदावरी
कस्बे से 18 किमी. दूर पहाड़ी पर यह प्राकृतिक चमत्कार के रूप में है। यहाँ एक जोड़ा गुफाएँ हैं जिनमें बड़ी मुश्किल से ही प्रवेश किया जा सकता है। दूसरी गुफा और भी सँकरी है जिसमें पतली सी नदी बहती है। कहा जाता है कि यहाँ राम-लक्ष्मण अपना दरबार लगाते थे, यहाँ दो प्राकृतिक सिंहासन बने हुए हैं।

कैसे पहुँचे :-
वायु सेवा- सबसे नजदीकी हवाई अड्डा खजुराहो (175 किमी) है। दिल्ली, आगरा और वाराणसी से यहाँ के लिए विमान सेवा उपलब्ध है।

रेल सेवा- सबसे निकटवर्ती रेलवे स्टेशन चित्रकूट धाम या कर्वी (11 किमी) है। यह झाँसी-माणिकपुर मुख्य रेल लाइन पर स्थित है।

सड़क मार्ग- झाँसी, महोबा, चित्रकूट धाम, हरपारपुर, सतना और छतरपुर से चित्रकूट के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध हैं।

कैसे जाएँ
अक्टूबर से मार्च तक का समय यहाँ जाने के लिए उपयुक्त है।
ठहरने के लिए- मध्यप्रदेश निगम का बंगला तथा उत्तरप्रदेश पर्यटन निगम का बंगला, साडा के होटल तथा लॉज उपलब्ध हैं।

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