रविवार, 21 मार्च 2010

विविध

जब दिल ही टूट गया...
ब्रेकअप में खुद को बिखरने ना दें
दिल का मामला बड़ा ही अजीबो-गरीब होता है। आप यहाँ जरा से इमोशनल हुए और दिमाग से कंट्रोल हटा। इसलिए बेहतर तो यही है कि इस रोग से दूर से ही तौबा की जाए, लेकिन कमबख्त दिल कहीं लग ही गया और फिर छन्न से टूट भी गया है तो इस तरह से उसकी साज-सँभाल करें।
* टूटे दिल का बोझ मन पर न रखें। अपने इमोशन्स को बाहर निकालें। रोएँ, चिल्लाएँ, तकिए को जोर-जोर से पीटें। इससे बहुत राहत मिलेगी। मन हल्का करने के लिए अपने किसी अजीज से अपने दिल की बात कहें, उसे हमराज बनाएँ(वैसा वाला 'हमराज' नहीं जिसके कारण दिल के टुकड़े हुए हैं, वरना 'एक से भटके दूजे पर अटके' वाली नौबत आ जाएगी)। दोस्त नहीं है तो किसी फैमेली मेम्बर को इस बारे में सब कुछ बताएँ।
* जरूरी नहीं है कि आप ही पूरी तरह सही हों या पूरी तरह गलत हों। बेहतर है, अपने मन को समझाएँ कि वह बेवफा प्यार के लायक था ही नहीं। अच्छा हुआ मैरिज से पहले ही सारी असलियत सामने आ गई।
* अपना ध्यान कुछ रचनात्मक कार्यों जैसे गार्डनिंग, म्यूजिक, कुकिंग, रीडिंग, पोएट्री और स्पोर्ट्स आदि में लगाएँ।
* टूटे दिल के बोझ को हल्का करने का एक नैचुरल तरीका है कि दूर तक पैदल घूमें। अगर तैरना आता है और सुविधा है तो देर तक तैरें। कोई कॉमेडी फिल्म देखें।
* अगर कोई दोस्त शहर से बाहर कहीं दूसरी जगह रहता है तो उससे मिल आएँ।
* घर के कामों में हाथ बटाएँ।
* ध्यान बँटाने के लिए जिम ज्वॉइन करें।
* पार्लर में जाकर मसाज कराएँ, अपने कमरे या ऑफिस की जगह को साफ-सुथरा बनाएँ।
* सुबह-सुबह पार्क जाएँ, वहाँ ग्रुप बनाकर योग करने वालों से बातें करें। योग सीखें।
* जो प्रेमी आप से दूर हो गया है उसके बारे में भी अच्छी विचारधारा रखें। इससे आप में बदले की भावना और दर्द में कमी आएगी। मन का जहर घुल जाएगा।
* यह सोचें कि जो कुछ हुआ अच्छा हुआ, शायद आगे और बहुत कुछ ऐसा होता, जो और गलत होता। चलो, थोड़े में ही निपटे।
* यदि इस सबके बाद भी मन पुरानी यादों में भटकता रहे तो किसी मनोचिकित्सक से मिलें। वह आपको स्वस्थ करने में मदद करेगा।
* अगर मजबूत इरादों वाले और साहसी हैं तो लिखे हुए को पढ़े और आवश्यक सुधार कर कहीं प्रकाशित करवा लें। हो सकता है अगर रिश्तों में गलतफहमी होगी तो पढ़कर वही फिर लौट आए लाइफ में जिसके लिए आप हाल-बेहाल हुए जा रहे हैं। वह नहीं भी लौटे तो छपने की खुशी कोई कम तो नहीं?
* बार-बार यह खुद को आजमाने की गलती ना करें। जितनी जल्दी हो सके खुद को संभाल लें। खुद पर दया करना छोड़ें और हाँ खुद को दोष देना भी गलत हैं। बस, मान लें कि आपकी लाइफ में कोई उससे बेहतर आने वाला है। और दोस्तों, सच कहें तो -और भी गम हैं जमाने में मोहब्बत के सिवा। सो, बी कूल, एंजॉय दि लाइफ।
फिगर की करें फिकर
Mदेखने में आया है कि भारत के ज्यादातर युवाओं में अपने फिगर को लेकर कोई फिकर नहीं है। फास्ट फूड कल्चर के चलते वे जब 40 के पार जाएँगें तो बेडोल और बुझे-बुझे से दिखने लगेंगे। लुकिंग फेस की तो छोड़ो 50 तक आते-आते ज्यादातर तो गंभीर रोग का शिकार हो जाएँ तो कोई आश्चर्य नहीं।
जो युवा अपने फिगर की फिकर नहीं करते उन्हें पहली बात तो युवा नहीं कहना चाहिए। गुटका, पाऊच और नशे की लत के चलते ऐसे लोगों के लिए एक नाम है: हॉस्पिटल की कतार में खड़ा आदमी। क्या कहेंगे ऐसे तोंदु को?
फिगर की फिकर तो बॉलीवुड की हसिनाओं तथा रेम्प की मॉडलों को ही सताती है। फिटनेज को लेकर अब अभिनेता भी जागरूक होने लगे हैं, लेकिन भारत का आम नागरिक अभी भी इस मामले में निष्क्रिय है। हाँ कुछ युवा जिम और जॉगिंग से अपने शरीर को मेंटेन करने लगे हैं, लेकिन यह बॉडी फ्लेक्सिबल नहीं होती।
स्लीम फिगर की माँग हर क्षेत्र में बड़ गई है। ‍जीवन की सफलता भी इससे जुड़ी है। हम जीरो नहीं फिट फिगर की बात कर रहे हैं। इस फिगर के साथ प्रोटिन्स और विटामिन्स का सेवन करते रहें तो आप हर जगह आकर्षण का केंद्र बन जाएँगे। तब हम बताते हैं कि किस तरह बॉडी को अत्यधिक कष्ट दिए बगैर आप फिट रह सकते हैं।
डाइट कंट्रोल : जितना भोजन लेने की क्षमता है, उससे कुछ कम ही अर्थात सीमा के अंदर ही भोजन लें। मसालेदार भोजन बंद कर दें। कड़वा, खट्टा, तीखा, नमकीन, गरम, खट्टी भाजी, तेल, तिल, सरसों, मद्य, अंडा, मछली या अन्य मांसाहार का सेवन बंद कर दें। लहसुन और प्याज का सेवन कम ही करें।
ब्रंच या स्नेक्स : लंच और डिनर को छोड़कर ठोस आहार के बजाय आप ब्रंच और स्नेक्स में सलाद, सूप, छाछ, दही का सेवन करें। सब्जी अधपकी, रोटी पूरी पकी हो। हरी पत्तेदार सब्जी, मौसमी फल तथा फलों के रस का सेवन उपयोगी रहता है। पपीता, अमरूद और फलों का रस लिया जाए तो पाचन शक्ति बढ़ेगी।
जल थेरेपी : सुबह उठते ही दो गिलास गर्म जल छना हुआ लें और पेट की मसल्स को ऊपर-नीचे हिलाएँ। चाहें तो ताड़ासन, द्विभुज कटि चक्रासन करें। पानी अधिक पीएँ, लेकिन चाहे जहाँ का पानी न पीएँ। बोरिंग के पानी में भारीपन होता है, अत: उसे अच्छे से फिल्टर करने के बाद ही इस्तेमाल करें। भोजन करने के दौरान पानी न पीएँ तो बेहतर है। भोजन पश्‍चात एक घंटे बाद ही पानी पीएँ।
योगा टिप्स : आसनों में अंग संचालन करते हुए अंजनेय आसन, पादहस्तासन, उष्ट्रासन, भुजंगासन, परिपूर्ण नौकासन और हलासन करें। प्राणायाम में अनुलोम-विलोम और कपालभात‍ि करें।
पॉवर संकल्प : दो दिन तक स्वयं को भोजन से दूर कर दें। सिर्फ ज्यूस लें फिर तीसरे दिन से स्वल्पाहार और स्वल्पाहार से उतने भोजन पर टिक जाएँ जितने से शरीर में स्वस्थता, हलकापन तथा फिटनेस अनुभव करें। फिर कुंजल, सूत्रनेति, कपालभाति और सूर्य नमस्कार को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लें। तब देखें कमाल। यह सब योग चिकित्सक की सलाह अनुसार ही करें।

सेहत की बात पढ़ाई के साथ
कॉलेज से आने के बाद तो कालोनी के दोस्तों या घर के कार्यों में ही वक्त चला जाता है, तो क्यों नहीं कॉलेज समय का ही उपयोग किया जाए। आप कहेंगे कि गुरु क्लास रूप में पढ़ने, गर्ल या बाय फ्रेंड के साथ चैट करने में ही वक्त चला जाता है तो योग कैसे करेंगे?
दोस्त! चैट करना भी तो योग ही है, क्या आपको पता नहीं है? अभी आप क्या कर रहे हो...यह आर्टिकल पढ़ रहे हो ना। यह भी तो योग है। अरे...आपको पता नहीं है क्या? हद हो गई। आप समझ रहे होंगे की मैं मजाक कर रहा हूँ। नहीं जनाब 'मजाक' करना भी योग है। छोटी-छोटी उपाय जिनसे खुशी और सेहत बढ़ती है वे सभी रिफ्रेश योगा के अंतर्गत ही तो आते हैं।

जुड़ो कॉलेज से पूर्णत:
जुड़ो मास्टर कहते हैं कि किसी ताकतवर दुश्मन से बचकर उसे परास्त करना हो तो उसके शरीर से जुड़ जाओ। दूर रहोगे तो वह आपके साथ कुछ भी कर सकता है। वैसे भी किसी से दूर रहने से आप कभी भी उसे जान नहीं सकते। योग कहता है कि यह जुड़ना और जानना अभ्यास से आता है। अभ्यास योग का एक अंग है।
जब दोस्तों या टीचर से वार्तालाप करते हैं तो दूसरे से जुड़ते हैं और जब हम पढ़ते हैं तो खुद से जुड़ते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से दूसरों से भी जुड़ते हैं, लेकिन दूसरों से जुड़ना निर्भर करता है कि आप क्या पढ़ रहे हैं। जैसे अभी यह आलेख पढ़ रहे हैं तो आप खुद से भी जुड़े हुए हैं और मुझसे भी और क्या आपको नहीं मालूम की योग का अर्थ जोड़ना होता है। जुड़ने की कला तो योग से ही आ सकती है। आप कॉलेज में रहकर राजनीति से जुड़ना चाहते हैं या कि सच में ही कॉलेज से यह तो हम नहीं जानते, लेकिन आप किसी से भी जुड़ें जमके जुड़ें।
खुलकर चैट करें : गपशप या कोई बातचीत कुछ भी करें उस करने में संवाद (Dialogue) नहीं है तो व्यर्थ की बकवास या बहस बनकर ही रह जाएगी। हम दिनभर में हजारों तरह की बात सोचते और सैंकड़ों तरह की बात बोलते हैं। अब आप सोचे की आप क्या बोलते और क्या सोचते हैं। कितना कचरा और कितना हेल्दी या यौगिक।
फ्री माइंड से पढ़ें : सवाल यह उठता है कि माइंड फ्री कैसे रहेगा। सिम्पल...हँसी, मजाक और गपशप को ही महत्व दें। फिर पढ़ाई का क्या होगा? सिम्पल...यदि दिनभर में 100 बातें करते हैं तो 15 बातें वह करें जो टीचर ने पढ़ाई है वह भी मजा लेकर ‍की जा सकती है। अब आप पूछेंगे कि जब बात ही करना है ‍तो फिर फ्री माइंड से पढ़ने की बात क्यों करते हैं। सिम्पल....जो बातचीत की है उसको कंफर्म करने के लिए किताब खोलकर देखने में क्या बुराई है? टेंशन लेकर पढ़ोंगे तो मेरे जैसे लेखक ही बन पाओगे...इससे ज्यादा कुछ नहीं। पड़ाकू ही श्रेष्ठ लड़ाकू होता है किसी भी मोर्चे का।
कॉलेज में प्यार : ज्यादातर छात्र 'प्यार' के सपने देखते हैं, कल्पनाओं का पहाड़ बना लेते हैं। उनमें से कुछ भावुक हो जाते हैं, कुछ फ्रस्टेड, कुछ देह शोषण करके अलग हट जाते हैं और कुछ तो शादी करके शेटल हो जाते हैं। आप क्या करते हैं हमें नहीं मालूम। किसी लड़के या लड़की के दिल को छेड़ना आजकल तो पहले से कहीं ज्यादा भयानक हो चला है, इसीलिए हम कहते हैं कि यौगिक प्रेम से नाता जोड़ें और मुक्ति पाएँ।
*इतना सब कैसे होगा और इसमें योग की बातें तो आपने कही ही नहीं?
1.ध्यान करें : पढ़ते या सुनते वक्त आपका ध्यान तो अक्सर कहीं ओर ही होता है। कोई बात नहीं, ध्यान को एकाग्र करने की जरूरत भी नहीं है। एकाग्रता का अर्थ ध्यान होता भी नहीं। चित्त को एकाग्र करना ध्यान है भी नहीं। मेडीटेशन या कांसट्रेशन ध्यान नहीं होता। ध्यान तो जागरण (wakening) है। वर्तमान में जीना ध्यान है। हमारा मन या तो अतीत या भविष्य के बारे में सोचता है, वर्तमान की कौन चिंता करता है। वर्तमान को कौन इंजाय करता है।
हम आपको एक योगा टिप्स देते हैं। क्लास रूप, कैम्पस या केंटिग में गौर से छात्र और छात्राओं को देंखे। ध्यान दें की कौन-कौन ध्यान से जी रहा है और कौन बेहोशी में मर रहा है। एक सप्ताह बाद आपको सभी रोबेट नजर आएँगे। क्या आप भी रोबेट हैं?
हमें पता ही नहीं चलता कि शरीर है और वह भी धरती पर है। दुनिया से इतना घबरा गए है या परेशान हो गए हैं कि खुद को भी भुल गए। याद करना है...सिम्पल...ध्यान दें कि कितना अतीत और भविष्य में गमन करता है आपका मन या दिमाग। अभी आपको वर्तमान में होशो-हवाश में रहने की ताकत नहीं मालूम है ना दोस्त, इसीलिए व्यर्थ के सवाल खड़े होते हैं। हाँ, प्राणायाम से भी ध्यान घटित होने लगता है। विपश्यना ध्यान का नाम तो आपने सुना ही होगा। ध्यान की तो 150 से 200 विधियाँ होती है, लेकिन विधि को ध्यान मत समझ लेना। अरे यार दिमाग का ऑपरेशन करने की 'विधि' कोई 'दिमाग' होती है क्या? विधि अलग और दिमाग अलग।
2. अंग-संचालन : अंग-संचालन का नाम नहीं सुना। सूक्ष्म व्यायाम का नाम सुना है? नहीं, अरे यार फिर क्या एरोबिक्स का नाम सुना है। यह सब कुछ अंग संचालन ही तो है। अंग संचालन की सारी स्टेप बताने के लिए तो एक अलग आलेख लिखना होगा तो क्यों नहीं आप झटपट समझ लेते हैं कि गर्दन को दाएँ-बाएँ, ऊपर-नीचे और गोलगोल घुमाना ही तो अंग संचालन का हिस्सा है। बस इसी तरह हाथ, पैर, आँखों की पुतलियाँ, पलकें, अँगुलियाँ, मुँह, कमर और पेट को गपशप करते हुए लय में घुमाते रहें। हाँ, दाँत, कान, नाक और बालों को भी घुमाया जा सकता है, लेकिन किसी योग टीचर से सीखकर।

प्रेम को योग कहें या रोग?
कुछ लोगों के लिए प्रेम योग होता है और कुछ लोगों के लिए रोग। देखने में आया है कि ज्यादातर लोगों के लिए तो प्रेम रोग ही बन जाता है और वह भी ऐसा असाध्य रोग जिसकी दवा खोजना मुश्किल ही है।प्रेम योग होता है या रोग इन दोनों के पक्ष में तर्क जुटाएँ जा सकते हैं, लेकिन असल में तो प्रेम योग ही माना जाता रहा है। वर्तमान युग में कौन करता है नि:स्वार्थ प्रेम। यह तो सब किताबी बातें हैं, इसीलिए तो प्रेम कभी भी योग नहीं रोग बन जाता है।
ज्ञानीजन कहते हैं कि कामवासना से संवेदना और संवेदना से प्रेमयोग की ओर बढ़ों। आप जिससे भी प्रेम करते हैं और यदि उसे पाने की चाहत रखते हैं या उसके प्रति आपके मन में कामवासना का भाव उठता है तो फिर प्रेम कहाँ हुआ? या तो कामवासना है या फिर चाहत तो यह दोनों छोड़कर प्रेम की ओर सिर्फ एक कदम बढ़ाओ। फीजिकल एट्रेक्शन को जानवरों में भी होता है।
*प्रेम रोगी : 'पागल प्रेमी' या 'दीवाना प्रेमी' नाम तो आपने सुना ही होगा। इस तरह के प्रेमियों के कारनामे भी अखबारों की सुर्खियाँ बनते हैं। कोई अपने हाथ पर प्रेमिका का नाम गुदवा लेता है तो कोई प्रेम में जान भी दे देता है। कितने पागल होंगे वे लोग जो खून से पत्र लिखते हैं।
इससे भी भयानक यह कि जब ‍कोई प्रेमिका उसका साथ छोड़कर चली जाती है तो फिर वो उसका कत्ल तक कर देते हैं अब आप ही सोचे क्या यह प्रेम था। प्रेम में हत्या और आत्महत्या के किस्से हम सुनते आए हैं। यह सब किस्से उन लोगों के हैं जो यह तो कामवासना से भरे रहते हैं या फिर चाहत से चिपक जाते हैं। इन्हें प्रेम रोगी भी कहना प्रेम शब्द का अपमान होगा।
*प्रेम योग : एक दर्शनिक ने कहा कि नि:स्वार्थ प्रेम परमात्मा की प्रार्थना की तरह होता है ऐसा कहने से शायद आप समझे क्या फिलॉसफी की बात करते हो, तो मैं यहाँ कहना चाहूँगा कि प्रेम करना या होना सबसे बड़ा स्वार्थ है। जो व्यक्ति स्वयं से प्रेम करता है वहीं दूसरों से प्रेम कर सकता है और दूसरों से प्रेम करने में भी स्वार्थ ही होता है, क्योंकि दूसरा जब यह जानता है कि कोई हमें प्रेम करता है तो हमें यह जानकर खुशी होती है कि उसके मन में हमारे प्रति अच्छी भावना है। हम दूसरों को खुश रखने में ज्यादा खुश होते हैं।
प्रेम का संबंध स्वतंत्रता और सहयोग से है- चाहत या कामवासना से नहीं। लेकिन विश्व के प्रत्येक व्यक्ति की परिभाषा प्रेम के मामले में अलग-अलग हो सकती है। हम यहाँ आध्यात्मिक प्रेम की बात नहीं करते हम तो सिर्फ आप से पूछते हैं कि यदि आप किसी से प्रेम करते हैं तो आप उसे प्रत्येक स्थिति में सुखी ही रखना या देखना चाहेंगे।
*कैसे बनें प्रेम योगी : और भी कई नाम लिए जा सकते हैं किंतु प्रमुख रूप से शिव, नारद और कृष्ण ये लोग प्रेम योगी थे। योग की विशेषता तो शुद्ध और पवित्र प्रेम में ही है। इस प्रेम का वर्णन नहीं किया जा सकता यह अनुभूति की बात है। पहले तो स्वयं से ही प्रेम करना सीखें। फिर दूसरों को समझे अपने भाव और विचारों का अर्थात वह भी उसी दुख और सुख में जी रहा है जिस में तुम।
*स्वयं का सामना : दूसरों को जब भी देंखे तो यह समझें कि यह मैं ही हूँ। बस इस भाव को गहराने दें। मोह, राग, विरह, लगाव, मिलन या चाहत से भिन्न यह प्रेम आपके भीतर सकारात्मक ऊर्जा का विकास तो करेगा ही साथ ही आप लोगों से इस तरह मिलना शुरू करेंगे जैसे कि स्वयं से ही मिल रहे हों। यही सफलता का राज भी है।

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