गुरुवार, 11 मार्च 2010

धार्मिक स्थल

चार धाम
भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में से एक चार धाम। नर एवं नारायण पहाड़ों के मध्य में चार तीर्थस्थान हैं जिसका नाम है बद्रीनाथ। यह पवित्र स्थान अलकनंदा (गंगा) नदी के दक्षिण तट पर स्थित है। पृष्ठ भाग में प्राकृतिक सौंदर्य से लुप्त नीलकांत पहाड़ एक सुंदर चित्रकला की तरह नजर आता है। जनश्रुति के अनुसार वैदिक काल में इस मंदिर का निर्माण किया गया था। 3133 मीटर की ऊँचाई पर भव्य मंदिर का निर्माण किया गया था। वर्तमान में गुरु अदि शंकरयाचार्य ने यहाँ पर मठ निर्मित किए थे। इसे विशाल बद्रीनाथ भी कहते हैं। बद्रीनाथ पंच बदरी में से एक हैं। केदरनाथ पर्वतों की श्रृंखला में भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंग स्थित हैं। 3584 फीट पर स्थित है केदारनाथ तीर्थस्थल। हिंदुओं का यह धार्मिक स्थल हैं। महाभारत कथा में इस भव्य मंदिर का विशलेषण किया गया है। मंदाकिनी नदी के तट पर यह भव्यस्थल
स्थित है।
पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत में युद्ध के बाद पाडवों ने भगवान शिव से आशीर्वाद माँगा था कि वे अपने पापों का प्राश्चित कर सकें। परंतु भगवान शिव उनके सम्मुख नहीं आते थे तथा केदारनाथ में वे एक वृषभ के रूप में रहे थे। जब पाडंवों ने उनका पीछा करना बंद नहीं किया तब वे पृथ्वी में समा गए और अपना कूबड़ पीछे छोड़कर चले गए। मंदिर में त्रिकोण भाग निकला हुआ है। भक्त उसी की पूजा करते हैं।
6315 मी की ऊँचाई बंदरपूँछ पहाड़ में यमुनोत्री मंदिर स्थित है। घरवाल हिमालय में चार धाम का धार्मिक स्थल स्थित है। पौराणिक कथा के अनुसार असित मूनी एकांत में यहाँ निवास करते थे। धार्मिक स्थल के मुख्य आकर्षण का केंद्र हैं। यमुनौत्री मंदिर जहाँ पर देवी यमुना की प्रतिमा विराजमान है एवं पवित्र तापीय झरना बहता है जनकीचट्टी सात किमी की दूरी पर स्थित है।
मंदिर से एक किमी की दूरी पर यमुना नदी का स्रोत स्थित है। वह 4421 मी कि ऊँचाई पर स्थित है। श्रद्धालु इस स्थान पर पहुँचने के लिए अनेक समस्याओं का सामना करते हैं।
मंदिर से एक किमी की दूरी पर यमुना नदी का स्रोत स्थित है। वह 4421 मी कि ऊँचाई पर स्थित है। श्रद्धालु इस स्थान पर पहुँचने के लिए अनेक समस्याओं का सामना करते हैं। फलस्वरूप अनेक श्रद्धालु इस मंदिर में ही देवी यमुना की पूजा अर्चना करते हैं। ऐसा माना जाता है कि जयपुर की महारानी गुलारिया ने उन्नीसवीं शताब्दी में इस मंदिर को बनवाया था।
हिंदुओं की मान्यता हैं कि गंगोत्री की भव्य समाधि सबसे पवित्र स्थल है। 3,200 मी पर यह भव्य मंदिर स्थित है। अठारहवीं सदी में गोरखा सेना के उच्च पदाधिकारी अमर सिंह थापा ने इस भव्य मंदिर को निर्मित किया था। यही वह स्थान है जहाँ राजा भागीरथ के प्रार्थना करने पर पवित्र गंगा नदी स्वर्ग से धरती उतरी थीं।
भगवान शिव ने गंगा को अपने जटाओं में रोक लिया था ताकि वे स्वर्ग से उतरने के बाद सीधे पाताल में नहीं चली जाएँ। भगवान शिव की जटाओं से कई नदियाँ पानी के प्रवाह में बहने लगीं। जो नदी गंगोत्री से बहने लगी उसे भागीरथी कहते हैं। पांडवों ने इस पवित्र स्थल पर देवा यज्ञ का कार्यक्रम का आयोजन किया था।
यदि आप अन्य धार्मिक स्थलों की यात्रा करना चाहते हैं तो भागीरथी नदी के स्रोत गौमुख बर्फीले स्थान के बर्फीले पानी में डुबकी लगा सकते हैं एवं भैरोंघाटी में स्थित भैरवनाथ मंदिर के दर्शन भी कर सकते हैं। श्रृद्धालुजन गंगौत्री से नंदनवन एवं केडरटल के तीर्थस्थल में भ्रमण कर सकते हैं।
रेल, वायुयान एवं सड़क मार्ग के माध्यम से गंगोत्री पहुँच सकते हैंस ऋषिकेश से 249 किमी की दूरी पर जौली ग्रांट का हवाईअड्डा स्थित है।
कड़ी ठंड़ और बर्फबारी की वजह से नवंबर से लेकर अप्रैल तक मंदिर के पट बंद रहते हैं। इसलिए मई से लेकर अक्टूबर तक इस स्थान के दर्शन आप कर सकते हैं।

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