शुक्रवार, 7 मई 2010

कहानी

शिबू की समझदारी

शिबू आज सबसे नाराज था। रिजल्ट आए अब एक सप्ताह हो गया था और उसकी नई साइकिल अभी तक नहीं आई थी। शिबू को दो साल पहले छठी क्लास में जो साइकिल दिलाई गई थी उसे लगता था कि अब वह पुरानी हो गई है और उसके पास नई साइकिल होनी चाहिए। बिल्कुल वैसी ही जैसी शुभम के पास थी। और इस साइकिल के लिए ही तो उसने इस बार खूब मेहनत की और 8वीं की परीक्षा में 92 प्रतिशत अंक लाकर क्लास में दूसरा स्थान प्राप्त किया। क्लास में उससे आगे अप्पन था जिसके 94 प्रतिशत अंक आए थे।
अप्पन की तरफ किसी का ज्यादा नहीं था क्योंकि वह तो हर बार क्लास में पहले नंबर पर ही आता था पर चौंकाने वाली बात तो शिबू का 92 प्रतिशत प्राप्त करना था। क्योंकि शिबू बड़ी मुश्किल से फर्स्ट क्लास के नंबर तक पहुँचता था। एक बार तो शिबू की क्लास टीचर राशिदा मैडम को भी यकीन नहीं हुआ कि शिबू इतने अच्छे नंबर ला सकता है।
शिबू के दोस्त तो उससे काफी नाराज थे क्योंकि उन्हें घर पर नसीहत दी जा रही थी। पापा ने कहा कि शिबू की साइकिल वैसे भी ज्यादा पुरानी नहीं हुई है। पर शिबू का कहना था कि उसे शुभम जैसी ही साइकिल चाहिए। और उसकी साइकिल में कहाँ खूब सारे पैसे लगने वाले हैं। नई साइकिल न आने से वह आज से नाराज था। पापा ने जब साइकिल न आने का कारण शिबू को बताया तो उसे लगा कि उसकी साइकिल कुछ दिन और अटक गई है। बस फिर क्या था शिबू पापा से नाराज हो गया।
रोज सुबह उठकर अखबार पढ़ना और बगीचे में साफ-सफाई वाले अपने रोज के काम भी शिबू ने अगले दिन नहीं किए। आखिर जो नाराज होते हैं उन्हें बताना भी तो पड़ता है कि वे नाराज हैं। शिबू ने अपनी पुरानी साइकिल को भी पिछले दिनों से साफ करना बंद कर दिया था क्योंकि अब उसका सारा ध्यान नई साइकिल पर था। पुरानी साइकिल घर के कोने में खड़ी थी। साइकिल ज्यादा पुरानी भी नहीं थी पर बस अब वह शिबू को अच्छी नहीं लग रही थी।

शिबू ने अपने रोज के काम करने बंद करके घर के सदस्यों को जता दिया कि नई साइकिल न आने से वह नाराज है। शिबू ने पिछले दिनों घर के पास शुरू हुए ग्रीष्मकालीन शिविर में जाना भी शुरू किया था पर आज नाराजी के चलते वह वहाँ भी नहीं गया। पूरा दिन शिबू ने घर में किसी से बात नहीं की। आठवें दिन के बाद नौवाँ दिन भी पूरा बीत गया और साइकिल का वादा अब भी वादा ही था।
शिबू सोच रहा था कि वह अपने दोस्तों को भी कह चुका है कि अब उसे नई साइकिल मिलने वाली है और अगर साइकिल नहीं मिलती है तो सारे दोस्त उस पर हँसेंगे। अपनी नाराजगी जताने के लिए शिबू ने टीवी देखना बंद कर दिया ताकि सभी को लगे कि वह नाराज है पर शिबू से दादी और मम्मी ने एक-दो बार पूछा ‍और फिर उसे समझाइश देकर अपने काम में लग गई।
शिबू के पापा को पता था कि साइकिल नहीं आने से शिबू नाराज है पर उनकी जेब इस महीने तंग थी और इसलिए वे बेटे को नई साइकिल चाहकर भी नहीं दिला पा रहे थे। शिबू नाराजी में दिनभर चुपचाप खेलकर वापस आता और खाना खाकर चुपचाप सोने के लिए चला जाता। फुटबॉल खेलने जाते ही वह दिनभर में थोड़ा खुश रहता था। बाकी समय वह घर में उखड़ा-उखड़ा रहने लगा। साइकिल उसके दिमाग में घूमती-रहती। शिबू कुछ दिनों पहले तक तो सुबह-सुबह अपनी साइकिल पर घर के कुछ छोटे-मोटे काम भी कर दिया करता था पर अब तो पुरानी साइकिल खोने में खड़ी इंतजार ही कर रही थी कि कोई उस पर से धूल साफ करे। शिबू ने तय किया था कि अब वह पुरानी साइकिल को हाथ नहीं लगाएगा। उसे नई साइकिल चाहिए।
जब नई साइकिल आए बिना दसवाँ दिन भी बीत गया तो शिबू ने सोचा कि इस तरह दिनभर घर पर बैठने से तो वह बोर होता रहेगा। अपनी नाराजगी जताने के लिए घर पर तो वह टीवी भी नहीं देखता है तो क्यों न दिन में वह अपने दोस्तों के घर जाकर उनसे मिल आए। देखे कि वे क्या कर रहे हैं। यह सोचकर शिबू पड़ोस में रहने वाले सिद्धार्थ के घर पहुँच गया। सिद्धार्थ उस समय अपने पुराने जूतों की दो जोड़ी ठीक करवाने के लिए मोची के पास ले जा रहा था। शिबू भी उसके साथ हो लिया। रास्ते में दोनों बातचीत करने लगे।
सिद्धार्थ ने बताया कि इस बार उसके पिताजी उसे नए जूते नहीं दिला पा रहे हैं तो वह इन्हीं जूतों से काम चलाएगा और फिर इन्हें थोड़ा ठीक करवा लेने पर ये कुछ महीनों और चल जाएँगे। वैसे भी नए जूते बारिश के दिनों में तो खराब हो जाते हैं तो नए जूते बारिश के बाद लेंगे। शिबू को लगा कि सिद्धार्थ बड़ों की तरह बात कर रहा है। क्या उसे भी पुरानी साइकिल से ही काम चलाना चाहिए? अब शिबू के मन में थोड़ी दुविधा हो गई थी। उसने सोचा कि क्या उसे भी सिद्धार्थ की तरह समझदारी दिखाना चाहिए। मन थोड़ा हल्का हुआ।
सिद्धार्थ से मिलकर शिबू जतिन के यहाँ पहुँचा। जतिन उस समय अनपे नए कंप्यूटर पर व्यस्त था। जतिन के पापा ने उसे नया कंप्यूटर लाकर दिया था ताकि वह कंप्यूटर सीख सके। शिबू ने मन ही मन विचार किया कि जतिन के पापा कितने अच्छे हैं जिन्होंने उसे कंप्यूटर दिला दिया और उसकी नई साइकिल तो प्रॉमिस के बाद भी नहीं आई। शिबू कुछ देर तक जतिन के यहाँ बैठा। इस बीच जतिन ने उसे दिखाया कि किस तरह अपने नए कंप्यूटर पर उसने ईमेल करना सीख लिया है और अब वह अपना ब्लॉग भी बनाने वाला है। शिबू ने जतिन का नया कंप्यूटर देखकर साइकिल लेने का अपना विचार और भी पक्का कर लिया। मन ही मन उसने सोचा कि जतिन ने सेकंड डिवीजन हासिल किया है फिर भी उसे कंप्यूटर मिल सकता है तो क्या उसे नई साइकिल भी नहीं मिलनी चाहिए।

सिद्धार्थ से मिलकरजो समझदारी का खयाल शिबू के मन में आया था अब वह फुर्र हो गया। जति ने यहाँ से शिबू घर जाना चाहता था पर उसे याद आया कि रास्ते में अप्पन का घर भी पड़ता है। उसने सोचा कि देखा जाए स्कूल खुलने से पहले फर्स्ट क्लास फर्स्ट स्टूडेंट क्या कर रहा है। अप्पन शिबू को उसके घर के बाहर ही मिल गया। अप्पन पुरानी साइकिल को ठीक करवाने के लिए ले जा रहा है। शिबू को देखते ही अप्पन ने कहा अरे शिबू तुम। कैसे आए? शिबू ने कहा कि मैं तुमसे ही मिलने आया था। अप्पन ने कहा पर अभी तो मैं अपनी साइकिल रिपेयर करवाने के लिए जा रहा हूँ। शिबू ने अप्पन से कहा ‍कि तुम्हारी साइकिल तो बहुत पुरानी हो गई है फिर तुम नई साइकिल क्यों नहीं ले लेते?
अप्पन ने तुरंत जवाब दिया। बेकार खर्च करने से क्या फायदा है। कुछ पैसे लगने पर यही साइकिल अच्छी हो जाएगी। वैसे भी बड़ी दीदी मेडिकल इंट्रेंस टेस्ट की तैयारी कर रही है तो उनकी कोचिंग वगैरह की फीस चुकाने के बाद पापा के पास ज्यादा पैसे नहीं बचते। फिर पिताजी की तनख्वाह इथनी नहीं है कि मुझे नई साइकिल के लिए जिद करनी चाहिए। अब हम बड़े हो गए हैं और हमें समझदारी से सोचना चाहिए।
और फिर अपनी यह साइकिल कहाँ किसी नई साइकिल से कम है? अप्पन की बात सुनकर शिबू को लगा कि उसने तो इसी साल 90 से ज्यादा प्रतिशत अंक प्राप्त किए हैं पर अप्पन तो हर बा ही क्लास में अव्वल रहता है। और जब वह समझदारी की बात कर सकता है तो शिबू को यह बात क्यों नहीं समझ आई। शिबू ने अप्पन से शाम को फुटबॉल खेलने के समय मिलने को कहा और घर की ओर चला।
घर पहुँचकर शिबू ने सबसे पहले कोने में रखी अपनी साइकिल को निकालकर उसे कपड़े से साफ किया। इसके बाद अंदर कर बगीचे में पौधों को पानी दिया। दादी और माँ शिबू को देखकर चकित थीं। शिबू की नई साइकिल न मिल पाने की नाराजी अब दूर हो चुकी थी। अप्पन की बातों ने उसे समझदार बना दिया था। अब उसे नई साइकिल नहीं चाहिए थी। अब वह सचमुच समझदार हो गया था।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें