रविवार, 2 मई 2010

सोलह श्रृंगार


मेहँदी है रचने वाली, हाथों में गहरी लाली
शादी या किसी भी पारंपरिक त्योहारों की बात हो या जाना हो किसी पार्टी में, मेहँदी के बिना मेकअप पूरा नहीं होता। सोलह श्रृंगार में प्रतिष्ठित मेहँदी की रंगत भी समय के साथ काफी बदली है। अब तो मेहँदी लगाने से लेकर उसे तैयार करने के तरीके में खासा बदलाव आ गया है।
बदलाव की इस दौ़ड़ में ग्लिटर और टैटू भी मेहँदी की लिस्ट में शामिल हो गए हैं। मेहँदी परंपरा से अधिक अब फैशन बन गई है और जरूरत, रचाने के लिए मेहँदी उपलब्ध समय, समारोह के प्रकार के हिसाब से अलग- अलग रूपों में लगाई जाने लगी है। मेहँदी के क्षेत्र में हुए सारे परिवर्तन आज की महिलाओं ने न सिर्फ अपना लिए हैं बल्कि अब ये सब फैशन के अंग हो गए हैं।

ग्लिटर मेहँदी का ग्लो
फैशनेबल मेहँदी के रूप में ग्लिटर मशहूर है। यूँ ग्लिटर मेहँदी में मेहँदी का कोई उपयोग नहीं होता। यह शुद्धरूप से केमिकल से बनी होती है, पर तुरन्त लग जाने और ग्लो करने के साथ ही यह हर कलर में उपलब्ध होती है। इसलिए मैचिंग के दीवाने इसका खूब उपयोग करते हैं। जिस कलर की ड्रेस पहनी हो उसी कलर की मेहँदी भी लगानी हो तो ग्लिटर मेहँदी सबसे अधिक उपयुक्त होती है। अब इसके साथ स्टोन का भी चलन है। ग्लिटर के साथ ही मैचिंग स्टोन या कंट्रास्ट स्टोन लगाकर मेहँदी को आकर्षक बनाया जाता है।
टैटू पारंपरिक और अरेबियन दोनों प्रकार के डिजाइनों में उपलब्ध होते हैं। पेड़ से पत्ते तो़ड़कर सिल पर पीसने और हाथों में रचाने का सिलसिला तो पुराना हो ही चुका है अब तो पैक मेहँदी पाउडर की जगह तैयार कोन भी मिलने लगी हैं। बस कोन खरीदें और लगाना शुरू करें।
पारंपरिक का जलवा
वैसे तो फैशन के हिसाब से मेहँदी की डिजाइनों में काफी बदलाव आया है। जब बात त्योहारों और शादियों की हो तो पारंपरिक डिजाइन ही पसंद किए जाते हैं। शादियों में दुल्हन अभी भी पारंपरिक मेहँदी ही प्रयोग में लाती हैं। पारंपरिक मेहँदी भरावट वाली होती है और इससे हाथ या पैर पूरे भरे-भरे दिखते हैं।
रचने के बाद भरावट वाला हिस्सा अधिक सुन्दर दिखता है। इस डिजाइन में आजकल सजावट के लिए ऊपर से ग्लिटर या स्टोन का भी उपयोग होता है, पर बेस-मेहँदी डिजाइन में पारंपरिक डिजाइनें होती हैं।
राजस्थानी का राज
राजस्थानी शैली की मेहँदी एक प्रकार से पारंपरिक मेहँदी डिजाइनों का ही एक भाग है। इसके कुछ प्रतीक काफी लोकप्रिय हैं जो कि अन्य डिजाइनों के साथ भी मर्ज करके रचाए जाते हैं। इन प्रतीकों में मोर सबसे अधिक प्रचलित है। इसके अलावा नगा़ड़े, ढोल, दुल्हन, दूल्हा, तुरही, कलश आदि प्रतीकों के कारण राजस्थानी मेहँदी लोगों की पसंद में शामिल है।
इस डिजाइन की खासियत यह है कि इसे भरे-भरे रूप में और पूरे हाथ में एक सा नहीं लगाया जाता। बल्कि डिजाइन को आकर्षक मो़ड़ देकर एक पतली लकीर के रूप में डिजाइन बनाई जाती है।

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