गुरुवार, 6 मई 2010

वामा


प्लस साइज के रूमानी सपने
तो चलिए साहब...सानिया और शोएब की शादी भी आखिरकार निपट ही गई... ढेर सारे 'डिरामे' के बाद आखिरकार आयशा बेगम से शोएब साहब ने छुटकारा पा ही लिया...कारण...? उनसे ये 'भारी' बला झेली नहीं जा रही थी। निकाह करते समय तो मासूम शोएब, आयशा के शरीर का क्षेत्रफल शायद नहीं भाँप पाए...हो सकता है एवज में मिलने वाली रकम या ऐसी ही किसी चीज को उन्होंने भाँप लिया हो... खैर... वो तो भला हो सानिया मैडम का कि उन्होंने शोएब को देह के उस परिमाप से बाहर निकाल लिया। लेकिन क्या सच में वे ऐसा कर पाई हैं?
असल में बात फिर उसी बरसों-बरस पुरानी बहस पर आकर रुकती है कि क्या इंसान का दैहिक रूप से सुंदर होना ही सबकुछ है या उसका मन भी उतना ही सुंदर होना चाहिए? भारतीय समाज में आज भी वैवाहिकी विज्ञापनों से लेकर लड़की देखने आए लोगों की पहली पसंद दुबली-पतली लड़कियाँ ही होती हैं।
यहाँ तक कि शादी के पहले न केवल लड़की के माता-पिता बल्कि उसका होने वाला पति तक उस पर ये दबाव डाल सकते हैं कि वो अपने शरीर से कुछ किलो कम कर ले। इतना ही नहीं शादी के बाद भी शरीर पर बढ़े एक्स्ट्रा किलो किसी भी महिला के दिमाग पर सैकड़ों किलो का बोझ बनकर छा जाते हैं... कि अगर वजन कम नहीं किया तो गया पति हाथ से। क्या पत्नी केवल देह के रूप में ही पति का साथ देती है?
सका रोज सुबह से उठकर पति की पसंद का खाना बनाना, घर और बच्चों की साज-संभाल करना, आर्थिक रूप से पति का हाथ बँटाना, पति की बीमारी में पागलों की तरह उसका ध्यान रखना... ये सब काम करना वो भी निस्वार्थ और खुद की तरफ देखे बिना...क्या इसका कोई मोल नहीं? फिर सबसे बड़ा प्रश्न, अपवादों को छोड़ दें तो क्या एक युवती मोटे लड़के से शादी करने से आसानी से मना कर सकती है या एक स्त्री अपने पति के मोटे होने पर उससे मुँह फेर सकती है?
एक बेकरी शॉप के सामने खड़ी वो 20-22 साल की क्यूट-सी युवती मुझे अब तक याद है जो किसी बच्चे की-सी हसरत से पेस्ट्रीज़ की तरफ देख रही थी। उसके साथ खड़ी उसकी माँ ने तुरंत टोका- 'गुड़िया, नहीं... याद है ना ये सब नहीं खाना है तुम्हें।' उतनी ही मासूमियत से उसने कहा-'अच्छा मैं नहीं खाऊँगी...पर माँ शादी के बाद मत टोकना...मैं शादी के बाद ये सब खाऊँगी।'
कुछ देर को उसकी माँ की भी आँखें सजल हो गईं और वो पास खड़ी महिला से बोलीं-'क्या करूँ...सब लड़कों को दुबली लड़की चाहिए। अपने बच्चे को खाने से टोकते हुए जी तो दुखता है...पर...।'
चौड़ी फ्रेम या थोड़ा भारी शरीर भारतीय महिलाओं की आधारभूत संरचना का हिस्सा है। और इस फ्रेम को बदलना इंसान के हाथ में तो कतई नहीं। आज से कई साल पहले तक थोड़े भरे बदन वाली महिलाओं को सुंदर श्रेणी में ही रखा जाता था... लेकिन अब तो सबको जीरो फिगर चाहिए...फिर चाहे इसके लिए कितने ही यंत्रणादायक या कृत्रिम तरीके क्यों न अपनाने पड़ें।
यह सही है कि शरीर का तंदरुस्त होना जरूरी है और बदलते समय के साथ व्यायाम तथा अन्य तरीकों से खुद को फिट बनाए रखना भी जरूरी है लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं कि केवल शरीर के मापदंड पर किसी इंसान को मजाक बनाकर रख दिया जाए! या फिर स्लिम होने के बिलकुल हवाई मापदंड बना लिए जाएँ।

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