मंगलवार, 4 मई 2010

विद्या बालन (अभिनेत्री)


मेहनत बराबर,मेहनताना कम क्यों: विद्या
बातों -बातों में मुझे याद दिलाया कि 2010 में मैं अपने करियर के पाँच साल पूरे कर रही हूँ। मुझे तो एहसास ही नहीं हुआ था इस बात का।
पाँच साल का सफर यूँ तो बहुत छोटा है पर इन पाँच सालों में मेरे बहुत सारे सपने साकार हुए हैं। कभी तारीफ हुई तो कभी आलोचना भी। मैं 10-11 साल की थी जब सोच लिया था कि एक्टिंग करूँगी- कहाँ, कैसे, क्यों, कब नहीं पता था। छोटे-छोटे कदमों के सहारे मैं यहाँ तक पहुँची हूँ।
मुझे अपने करियर में परिणीता, पा और इश्कियाँ जैसी फिल्में करने का अवसर मिला है जिसमें हीरो सर्वेसर्वा नहीं था बल्कि हीरोइन का रोल भी अर्थपूर्ण था।
अब तक का रुझान यही रहा है कि ज्यादातर हिंदी फिल्में हीरो के इर्द-गिर्द लिखी गई हैं। दरअसल पुरुष के इर्द-गिर्द कहानी लिख कर फिल्म बनाना बहुत सुविधाजनक होता है क्योंकि शुरू से ही हमारी एक स्थापित सोच होती है। हम पुरुष प्रधान कहानियाँ पढ़कर और देखकर बड़े होते हैं। ऐसे में पुरुष प्रधान फिल्म बनाना एक सहज और आसान फॉर्मूला है।
लेकिन मुझे नहीं लगता कि आज का दर्शक फिल्मों को इस खाँचे में डालकर देखना चाहता है कि वो केवल पुरुष प्रधान हों या सिर्फ महिला प्रधान हों। हम बेहतर फिल्में देखना चाहते हैं जो आम लोगों के बारे में हों।

मेहनत बराबर, मेहनताना कम?
हिंदी सिनेमा में ये सवाल उठता रहा है कि हीरो के मुकाबले हीरोइनों को कम फीस मिलती है। पहले ज्यादातर फिल्में पूरी तरह हीरो पर आधारित होती थी तो फिल्म के चलने, न चलने का दारोमदार हीरो पर ज्यादा था।

इसलिए शायद उनका मेहनताना भी ज्यादा था। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि फीस में अब भी काफी अंतर है पर चीजें बदल रही हैं। उम्मीद है और बदलाव आएँगे। आखिर उम्मीद पर दुनिया कायम है।

कदम जमीन पर रहें : रुपहले पर्दे की इस दुनिया में पैसा है, शोहरत है, ग्लैमर है, लोगों का प्यार है। लेकिन अभिनय के बारे में जो बात मुझे सबसे ज्यादा पसंद है वो ये कि एक अभिनेत्री होने के नाते मुझे बहुत सारी जिंदगियाँ जीने को मिलती हैं। ये बहुत उत्साहित करता है मुझे।

मैंने अपना पहला ऑटोग्राफ तब दिया था जब मैं स्टार थी भी नहीं, मैं केवल एक विज्ञापन फिल्म शूट कर रही थी। शूटिंग देखने आए कुछ लोगों ने पता नहीं क्या सोचा कि मेरा ऑटोग्राफ ले लिया। अब कभी ऑटोग्राफ देती हूँ तो ये किस्सा याद आ जाता है।

सच में, हमारा और हमारे चाहने वालों का ये रिश्ता बड़ा प्यारा होता है। हम भले ही उनसे कभी मिल न पाएँ लेकिन एक कलाकार के लिए ये बात बहुत मायने रखती है कि उसके काम को लोग पसंद कर रहे हैं।

एक कलाकार के नाते इस इंडस्ट्री को और लोगों को मुझसे कुछ उम्मीदें हैं और कोशिश रहेगी कि इन्हें पूरा कर सकूँ। एक छोटी सी उम्मीद मेरी भी है कि फिल्म इंडस्ट्री और बेहतर फिल्में बनाए।

हमें ये बात कभी नहीं भूलनी चाहिए कि ये उद्योग और फिल्म बनाने की पूरी प्रकिया किसी भी हस्ती से बड़ी है। मैं ये हमेशा याद रखती हूँ कि शोहरत कितनी भी मिले, मैं इस इंडस्ट्री से बड़ी नहीं हूँ। यही बात मेरे कदम शोहरत के बावजूद जमीन पर रखती है।

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