गुरुवार, 7 जनवरी 2010

महिला जगत

जब निभाना हो जाए मुश्किल..

ढेरों अरमानों, सजीले सपनों के साथ बनते हैं शादी के रिश्ते। दिलों का यह मिलन बडे साज-समारोह में होता है, लेकिन समय की धूल कई बार इन रिश्तों पर कुछ ऐसी जमती है कि उसका धुंधलापन रिश्तों के अस्तित्व पर भारी पडता है। दो भिन्न पृष्ठभूमि के व्यक्तियों के साथ आने में तकरार की आशंका तो हमेशा रहती है, लेकिन अगर ये तकरार मारपीट और अपशब्दों के प्रयोग तक आ जाए, तो उससे खराब स्थिति की कल्पना नहीं की जा सकती। रिश्तों में कडवाहट की यह हद आज की व्यस्त जीवनशैली में एक आम-सी बात होती जा रही है। रिश्ते बनाते हैं और उन्हें जीते हैं.. नहीं जी पाते तो उन्हें ढोते हैं और ढोने की हद हो गई तो छोड देते हैं। यह चलन-सा हो गया है।

भारतीय इतिहास पर नजर डालें तो स्त्री और पुरुष के रिश्ते में प्यार के साथ सम्मान का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। स्त्री अपने पति को परमेश्वर मानती थी तो पुरुष भी स्त्री को देवी स्वरूप समझता था। स्त्री और पुरुष के संबंधों का सबसे खूबसूरत उदाहरण है रामायण में। राम और सीता के संबंध में भले ही दरार आई हो, लेकिन एक-दूसरे के प्रति सम्मान में कोई कमी नहीं आई।

स्त्रियों के प्रति रवैये में बदलाव मध्यकाल में हुए राजनैतिक-सामाजिक परिवर्तनों के साथ आया। स्त्रियों पर पर्दा करने का दबाव भी भारत में विदेशी आक्रांताओं के साथ आया। लेकिन वे गुजरे जमाने के किस्से थे जब त्रासद रिश्तों को लोग जीवन भर सिर्फयह सोचकर ढोते रहते थे कि अगर रिश्ता टूट गया तो समाज क्या कहेगा, मां-बाप मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेंगे या बच्चों का भविष्य अधर में रहेगा। भावनात्मक और शारीरिक दु‌र्व्यवहार सहने के बजाय आज की स्त्री ऐसे रिश्तों से खुद को आजाद करना बेहतर समझती है। इसे बदलते समय का नाम दीजिए या आत्मनिर्भरता की रौ, अब लोग ऐसे रिश्तों को जीवन से निकाल फेंकने में नहीं हिचकते जिनमें उन्हें घुटन महसूस हो या किसी किस्म की प्रताडना झेलनी पडे। अच्छी बात ये है कि समाज भी ऐसे रिश्तों में बंधे रहने का विरोध करने लगा है। राहत की बात ये है कि अगर एक लडकी प्रतोडना का विरोध करती है तो अब उसके इस कदम पर छींटाकशी नहीं होती।

भारतीय समाज में इस बदलाव को आने में बरसों लग गए। लडकी के माता-पिता भी अब समाज के डर से उतने ग्रस्त नहीं रहे जितने पहले हुआ करते थे। दिल्ली विश्वविद्यालय में मनोवैज्ञानिक अशुम गुप्ता कहती हैं, अभिभावक भी समझने लगे हैं कि बेटी ने अलग होने का निर्णय इसीलिए लिया क्योंकि रिश्ता जीवन भर ढोया नहीं जा सकता। आज स्त्री केवल आर्थिक नहीं, मानसिक रूप से भी आत्मनिर्भर है। वह बिना किसी सहारे के आगे बढना सीख गई है। यह आत्मनिर्भरता स्त्रियों को असह्य रिश्तों से निजात दिलाने में सहायक हो रही है।

समाजशास्त्री और जयपुर नेशनल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के.एल. शर्मा कहते हैं, घरेलू उत्पीडन से समाज के हर तबके की स्त्रियां ग्रस्त हैं। निचले तबके की स्त्रियां मार खाती हैं, लेकिन सामाजिक दबाव के कारण पति के अत्याचार को जीवन भर सहती हैं। मिडिल क्लास स्त्री एक वस्तु की तरह मानी जाती है जो घरेलू कामकाज करने के लिए बनी है और उसे निर्णय के लिए पुरुष का मुंह देखना पडता है। लेकिन आज मिडिल क्लास और अपर मिडिल क्लास की मानसिकता में बदलाव आ गया है। जैसे-जैसे स्त्रियों में आत्मनिर्भर होने का जज्बा आया, वैसे-वैसे इस क्लास में तलाक और अलगाव के मामले बढ गए। के.एल. शर्मा कहते हैं, मिडिल क्लास में बढते तलाक और अलगाव के मामलों की प्रमुख वजह है स्त्रियों की आत्मनिर्भरता। अब उन्हें पुरुषों की सामंती मानसिकता झेलने की जरूरत नहीं। आर्थिक स्वतंत्रता के चलते उनके इस निर्णय का उतना विरोध भी नहीं किया जाता जितना पहले होता था। बात समाज के उच्च तबके की करें तो वहां भी उत्पीडन होता है, लेकिन यह मानसिक उत्पीडन ज्यादा होता है। वहां स्त्रियों के लिए पति का विवाहेत्तर संबंध आम बात होती है। पार्टियों में दूसरी स्त्रियों को किस करना और उनकी कमर में हाथ डालकर डांस करना पुरुषों के लिए कल्चर है, चाहे उनकी पत्नियों को वह पसंद हो या नहीं। अति हो जाने पर इस क्लास की स्त्रियां भी अलग हो जाने से गुरेज नहीं करतीं।

जल्द से जल्द उठाएं कदम

भावनात्मक हो या शारीरिक, हर किस्म के दु‌र्व्यवहार से निपटना तब तक आसान होता है जब तक यह किसी रिश्ते में स्थापित न हुआ हो और इसके शिकार में उतनी शक्ति हो कि वह खुद इससे निपट सकता हो। अशुम कहती हैं, दु‌र्व्यवहार करने वाले को यह साफ बता देने से कि आप इस बात को और बर्दाश्त नहीं करेंगी और एक सीरियस वॉर्निग देने से शुरुआती दौर में ही दु‌र्व्यवहार पर रोक लगाई जा सकती है। स्थिति के नियंत्रण से बाहर चले जाने के बाद दु‌र्व्यवहार सहने वाले और करने वाले, दोनों के लिए ही प्रोफेशनल काउंसिलिंग जरूरी होती है।

दु‌र्व्यवहार के खिलाफ बोलने का जिम्मा सिर्फ पीडित का ही नहीं, बल्कि समाज का भी है। जब तक हम यह न सोचें कि कभी यह स्थिति हमारे अपने घरों में भी आ सकती है, तब तक हम यथास्थिति बनाए रखेंगे। बेल बजाओ कैंपेन कुछ इसी तर्ज पर तैयार किया गया था। पडोस के घर में यदि आप घरेलू हिंसा देखें या सुनें तो फौरन डोरबेल बजाकर हिंसा रोकें। इस कैंपेन की शुरुआत करने वाले एनजीओ ब्रेकथ्रू की सोनाली खान कहती हैं, इस कैंपेन के जरिये हम तुरंत सहायता देने का संदेश पहुंचाना चाहते थे। दूसरे के घर का निजी मसला समझकर लोग अकसर आस-पडोस में हो रही घरेलू हिंसा को नजरअंदाज कर देते हैं जो कि गलत है। हिंसा भले दूसरे के घर में हो, लेकिन इसे रोकना सामाजिक जिम्मेदारी है।

कानून की नजर में..

इंडियन पेनल कोड के सेक्शन 498(ए) और द प्रोटेक्शन ऑफ विमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 दो कानून हैं, जिनके तहत भावनात्मक या शारीरिक दु‌र्व्यवहार से पीडित स्त्रियां कानून की मदद ले सकती हैं। कानून भावनात्मक दु‌र्व्यवहार को यूं परिभाषित करता है-अपमान करना, मजाक उडाना, नीचा दिखाना, गाली-गलौज करना खासकर इन बातों को लेकर कि स्त्री संतानहीन है या उसे बेटा नहीं है। भावनात्मक अन्याय के शिकार शख्स को लगातार यह धमकी देना कि उसके अमुक प्रिय व्यक्ति को शारीरिक रूप से सताया जाएगा, ये सभी बातें इसी कानून के तहत आती हैं। सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता कमलेश जैन कहती हैं, भावनात्मक दु‌र्व्यवहार की शिकार कोई भी महिला पुलिस में शिकायत कर अपने साथ दु‌र्व्यवहार करने वाले केखिलाफ कोर्ट से रिस्ट्रेनिंग ऑर्डर लेकर कानून की मदद ले सकती है। या फिर इस दु‌र्व्यवहार को वजह के तौर पर पेश कर वह जुडिशियल सेपरेशन या डिवोर्स की मांग कर सकती है। 2005 एक्ट में किसी सजा का प्रावधान नहीं है। इसके तहत केवल सुधार की संभावनाओं पर काम किया जाता है जबकि आई पी सी के सेक्शन 498(ए) में सजा का प्रावधान है।

व्यस्त जीवनशैली है बढती घरेलू हिंसा का कारण

शक्तिशाली व्यक्ति हमेशा से कमजोर पर हावी रहा है। यह प्राकृतिक है। घरेलू हिंसा का मूल कारण ही यही है। यंग कपल्स के बीच घरेलू हिंसा बढ रही है, इसका कोई प्रमाण मैंने हाल के दिनों में तो नहीं देखा, लेकिन मैं यह कह सकता हूं कि व्यस्त जीवनशैली के कारण लोगों में एक-दूसरे को बर्दाश्त करने की शक्ति नहीं रही है। दिनोदिन इंसान पर दबाव बढता जा रहा है।

जीवन की गति इतनी ज्यादा है कि लोग बेतरतीब भागते जा रहे हैं, जिसके चलते रिश्तों में संवेदनशीलता विलुप्त होती जा रही है। नई पीढी की रिश्तों की प्रति लापरवाही की यही वजह है कि न तो उनके पास सब्र है, न समय। लोग मानते हैं कि पढाई-लिखाई के साथ सभ्यता आ जाती है, लेकिन मैं इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता। मेरी जानकारी में ऐसे कई कपल्स हैं जो पढे-लिखे होने के बावजूद एक-दूसरे पर हाथ उठाने से नहीं चूकते। इस स्थिति को सुधारने का मेरे ख्याल से एक ही तरीका है। अगर लोग प्रकृति के प्रकोप से नहीं डरते तो सरकार को इतना सख्त हो जाना चाहिए कि ऐसा गुनाह करते समय लोगों की डर से रूह कांपे।

(महेश भट्ट बॉलीवुड फिल्मों के प्रोड्यूसर-डाइरेक्टर हैं)

हमारे समाज को है काउंसिलिंग की जरूरत

मर्डर फिल्म में मैंने मल्लिका सहरावत के साथ एक हिंसात्मक सीन फिल्माया था। इस वाकये को याद दिलाने के साथ मैं लोगों को फिल्म में अपना हश्र भी याद दिलाना चाहूंगा। मैंने तो इस तरह के मामले अपने करीब के लोगों में देखे हैं। पढे-लिखे वेल-सेटेल्ड लोग भी इस तरह हिंसक हो जाते हैं और अपने रिश्ते को बर्बाद करते हैं। मैं मानता हूं कि हमारे समाज में काउंसिलिंग की बेहद जरूरत है। काउंसिलिंग तब नहीं होनी चाहिए, जब स्थिति हाथ से निकल जाए, बल्कि तब होनी चाहिए, जब लगे कि रिश्ते में उलझनें शुरू हो गई हैं। अगर उसी वक्त रास्ते निकाल लिए जाएं तो समस्याएं बढेंगी ही नहीं। काउंसिलिंग को लोग असहनीय स्थितियों का इलाज मानते हैं जो कि गलत है। रिश्ते की ऊंच-नीच अगर ज्यादा दिनों तक बनी रहे तो काउंसिलर की सलाह लेने में कोई हर्ज नहीं है। समय रहते समाधान ढूंढ लेने से रिश्ता खराब होने से बच सकता है।

(इमरान हाशमी बॉलीवुड फिल्मों में अभिनेता हैं।)

टीवी पर घरेलू हिंसा दिखाने में क्या गलत!

टीवी पर घरेलू हिंसा दिखाने की लोग बडी आलोचना करते हैं, लेकिन मुझे इसमें कुछ गलत नहीं लगता। टीवी एक लिहाज से समाज का आईना है और हमारे समाज में लगभग हर पांचवे घर में किसी न किसी तरह की हिंसा होती ही है। टीवी जैसे माध्यम में इस विषय को खूब भुनाया भी जाता है, क्योंकि दूसरों के घरों की गॉसिप जानने का कौतूहल सभी में होता है। मैं अपनी बिल्डिंग का एक किस्सा सुनाता हूं। एक बार मैं अपनी बिल्डिंग के एक फ्लैट के सामने से गुजर रहा था कि मुझे चीखने-चिल्लाने की आवाजें सुनाई दीं। कौतूहलवश मैं वहां रुककर उनकी बातें सुनने लगा। तहजीब के नजरिये से मेरी यह हरकत गलत थी, लेकिन कौतूहल इंसानी फितरत है। मैंने बातें सुनने की कोशिश की तो मामला घरेलू हिंसा का निकला। दूसरों की समस्याओं में बिना वजह बोलना उचित नहीं, इसलिए मैं वहां से चल पडा। लेकिन ऐसी समस्या को मैंने अपने सीरियल्स में दिखाया है। लब्बोलुआब ये कि घरेलू हिंसा हमारे समाज में व्याप्त है और इसका विरोध सबसे पहले उन्हें करना पडेगा जो इस यातना को सहते चले आ रहे हैं। वे आवाज उठाएं तो स्थितियां जरूर बदलेंगी।

(अजय सिन्हा टीवी सीरियलों के प्रोड्यूसर-डाइरेक्टर हैं)

फीनिक्स की तरह भरी उडान

मुझे व्यक्तिगत तौर पर महसूस होता हैं कि इस दुनिया में रिश्ते कभी भी करवट बदल सकते हैं। मेरी उम्र से अधिक शायद मुझे रिश्तों के अजीबोगरीब अनुभव होते रहे हैं। खुदा की इनायत है, उसका रहमोकरम है कि हर बार जिंदगी के थपेडों से जूझकर भी मैं फीनिक्स पक्षी की तरह उठ खडी हुई हूं। आज फिर जीने की तमन्ना है, आज फिर मरने का इरादा है..।

बहरहाल, मैं अपने अतीत के पन्नों को बहुत ज्यादा खोलकर खुद को और दुखी नहीं करना चाहती। न अपने व्यक्तिगत जीवन की चर्चा दुनिया के सामने करना चाहती हूं। मैंने अपनी स्थितियों को लेकर कभी हो-हल्ला नहीं मचाया, लेकिन मेरी जिंदगी के कुछ हिस्से समय-समय पर न चाहते हुए भी दुनिया के सामने आते रहे। मेरे अब्बा हुजूर अमानउल्ला खान और मेरी अम्मीजान स्किंदा का अंतर-धार्मिक विवाह था।

मैंने पांच-छह साल की उम्र से ही उनके बिगडते रिश्तों को देखा है। उनके आपसी रिश्ते की उलझनों का मुझ पर बेहद बुरा असर होता रहा। अंतत: उनमें अलगाव हुआ। मुझे मेरी अम्मी के साथ जर्मनी जाना पडा। शायद इसी वजह से मैं बहुत जल्द हर स्थिति से सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार होती गई। मेरे जीवन में ऐसे कई रिश्ते रहे, जिनका सामना करना एक स्त्री के लिए कतई आसान नहीं था।

मुझे अपने पैरों पर खडे होने के लिए एक पत्रिका में नौकरी करनी पडी, वहां भी कई तरह के अनुभव हुए। फिर मॉडलिंग भी की। मिस इंडिया कॉन्टेस्ट और फिल्मों में काम किया। एक अभिनेता से मेरा निकाह हुआ, उस रिश्ते में भी मैं आहत हुई। उत्पीडन इस स्तर का था कि एक हादसे में मेरी आंख तक घायल हुई। वह चोट हमेशा के लिए अपना घाव छोड गई। उस रिश्ते को छोडकर मैंने जिंदगी को आगे बढाने का सोचा। कुछ समय बाद मेरी शादी अभिनेता मजहर खान से हुई। उनसे मेरी शादी 1985 में हुई और 1998 में वे दुनिया से चले गए। इस 13 साल के रिश्ते में मैंने बहुत कुछ खोया और पाया। मैंने क्या-क्या बर्दाश्त किया, उसके बारे में बात करना अब सही नहीं होगा, क्योंकि मजहर बहुत पहले अल्लाह को प्यारे हो गए। हां, इतना कह सकती हूं कि तब मैं उस रिश्ते में महफूज नहीं महसूस करती थी। कई तरह के हादसे मैंने जीवन में झेले हैं, पर हर बार मैंने हार नहीं मानी। मजहर के साथ मेरे रिश्ते में बहुत तकरार रही, लेकिन मैं उनसे कानूनन अलग नहीं हुई। वे आगे चलकर सख्त बीमार भी पड गए। अपने रिश्ते की ऊंच-नीच भूलकर एक बीवी होने के नाते मैंने उनकी पूरी शिद्दत से सेवा की। इस दौरान मेरे दोनों बेटों का मॉरल सपोर्ट मेरे साथ था और वे ही मेरे जीने का मकसद रहे। जो भी हुआ, वह अतीत है। मैं उसका मलाल अपने दिल में अब नहीं रखना चाहती। मान लिया है कि शायद अल्लाह की यही मर्जी रही होगी। सकारात्मक सोच, नई आशाओं और चंद शुभचिंतकों की दुआओं के साथ मैंने अपने जीवन को आगे बढाया है। अतीत को भूलकर अब मैं अपने बच्चों के लिए जीवन को खूबसूरत बनाने की दिशा में कदम बढाती जा रही हूं।

(जीनत अमान बॉलीवुड सेलीब्रिटी और राजनीतिज्ञ हैं)

सेलिब्रिटीज हुए प्रताडना के शिकार

सिर्फआम आदमी ही नहीं, कई बॉलीवुड और हॉलीवुड सेलेब्स भी रिश्तों में उत्पीडन के शिकार रहे हैं। ऋषि कपूर और नीतू सिंह के रिश्ते आज मधुर हैं, लेकिन एक समय था जब उनके रिश्ते कानून की दहलीज तक पहुंच गए थे। खबरों की मानें तो एक दौर ऐसा भी था जब नीतू-ऋषि के रिश्ते में अलगाव हो गया। कारण था ऋषि का स्वभाव। कपूर खानदान के प्रयासों से वे एक बार फिर साथ आए और आज एक खुशहाल जीवन जी रहे हैं।

प्रसिद्ध राजनेता प्रमोद महाजन के बेटे राहुल महाजन का नाम भी शादी में प्रताडना के कारण उछला। राहुल महाजन ने अपनी दोस्त श्वेता से बडी धूम-धाम से शादी रचाई, लेकिन उनकी शादी एक साल भी नहीं चली। श्वेता से आरोप लगाया कि उनके साथ मारपीट हुई और उन्होंने राहुल से तलाक लिया।

हॉलीवुड अभिनेत्री हैले बेरी ने भी अपने जीवन में कई त्रासद रिश्ते झेले। हैले ने बचपन से ही खुद को अपने माता-पिता के बीच असह रिश्ते में बंधा पाया। हैले ने अपनी पहली दो शादियों में भी अत्याचार ही सहा। लेकिन इसके बाद हैले ने थेरेपी करवाई और एक साधारण जिंदगी जी रही हैं।

स्त्रियां बनें आत्मनिर्भर

एक समय था जब यह माना जाता था कि स्त्री के साथ उत्पीडन शहरों से ज्यादा गांवों में होता है। लेकिन अब यह धारणा बदल गई है। जितना एक्सपोजर बढता जा रहा है, जितनी सुविधाएं बढती जा रही हैं, उतने ही ज्यादा दु‌र्व्यवहार के मामले सामने आते जा रहे हैं। एनजीओ, महिला पुलिस और हेल्पलाइन जैसी सुविधाओं के साथ लोगों में हिम्मत आई है कि वे सामने आएं और मदद मांगें। आप की कचहरी कार्यक्रम में इस तरह के केसेज बहुत आते हैं जिनमें एक बात कॉमन है। पुरुष स्त्री के साथ दु‌र्व्यवहार करने का दुस्साहस तभी करता है जब उसे पता हो कि स्त्री उस पर निर्भर है। इसीलिए मैं हमेशा सित्रयों को आत्मनिर्भर होने की सलाह देती हूं। अपने पैरों पर खडी स्त्री को समाज में भी इज्जत मिलती है और घर में भी। इसके अलावा जागरूकता बेहद जरूरी है।

(डॉ. किरन बेदी रिटायर्ड आईपीएस ऑफिसर हैं)

सजीले सपने का भ्रम टूटा

मैंने जबसे होश संभाला मेरे लिए मेरी मां, मेरे पिता महेन्द्र राऊत और मेरी छोटी बहन अंजलि राऊत ही मेरी दुनिया रहे। मेरे माता-पिता की लव-मैरिज आज से 26-27 साल पहले हुई थी। उनके प्यार, समझौते और सामंजस्य को देखते हुए मुझे हमेशा यही विश्वास रहा कि प्यार और विश्वास ही दुनिया की नींव है। मैं मानती रही कि शादी चाहे लव हो या अरेंज्ड, पति-पत्नी दोनों को समझौते करने पडते हैं।

मेरी इसी सोच के कारण मुझे धोखा हुआ। मेरी मां रशियन थीं, इसलिए मेरा रशिया आना-जाना लगा रहता था। वहीं एक शख्स से मुझे प्यार हो गया। मुझे रशियन भाषा और कल्चर का ज्ञान था इसलिए मुझे लगा कि वहां शादी के बाद जाने में कोई परेशानी उठानी नहीं पडेगी। मम्मी-डैडी को राजी करके मैंने शादी तो कर ली, लेकिन खुद को अंधे कुएं में झोंक दिया। शादी के बाद एक महीना भीमुझे अपने पति से प्यार नहीं मिला। उन लोगों ने मेरे साथ नौकरानी से भी बदतर सुलूक किया। मुझे यकीन नहीं होता था कि मैं घरेलू हिंसा की शिकार हो रही थी। मुझ पर शारीरिक जुल्म ढाए गए। धीरे-धीरे मेरी बर्दाश्त की सीमाएं ख्त्म हो गई। मैं वहां से भागना चाहती थी, पर मुझे वहां कैद करके रखा गया था। एक तरफ मेरे सामने था मेरे भारतीय पिता और रशियन मां का बेहद प्यारा परिणय सूत्र, तो दूसरी तरफ था मेरा रिश्ता, जिसमें सिर्फ उत्पीडन था। कैद के दिनों में मैं खुद को कोसती थी कि ईश्वर मेरी इस तरह की परीक्षा क्यों ले रहा है। समझ नहीं आ रहा था कि मैं कैसे छुटकारा पाऊं। इसी बीच मुझे एहसास हुआ कि मैं मां बनने वाली हूं। मुझे फिर उम्मीद की किरण नजर आई कि शायद अपने बच्चे के आने की खबर से मेरा पति मुझे प्यार करने लगे। मुझे उम्मीद थी कि उसके बाद मुझ पर अत्याचार खत्म हो जाएगा। लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ। मुझ पर अत्याचार और बढ गए। मैंने निश्चय कर लिया कि हर हाल में मुझे इस रिश्ते को खत्म करना है। हिम्मत जुटाकर एक दिन रशिया से मुंबई भाग आई। इस दौर में मेरे परिवार ने मुझे बहुत संभाला। मैंने जब शादी का निर्णय लिया तो मैं एक कामयाब मॉडल थी, लेकिन शादी के बाद मेरी पहचान खो-सी गई थी। यहां आकर मैंने अपने बेटे को जन्म दिया। उसकी देखभाल की पूरी जिम्मेदारी मेरी मां ने उठाई। अब मुझे एक बार फिर नई जिंदगी शुरू करनी थी। इस बार मेरे साथ सिंगल मदर और डिवोर्सी होने का टैग भी जुड गया था। इसलिए मेरे लिए सबसे ज्यादा जरूरी था कि मैं डिप्रेशन से बाहर आकर पहले जैसी अलेशिया राउत बन जाऊं। मैं दोबारा मॉडलिंग शुरू करना चाहती थी। छह-आठ महीनों की कडी मेहनत के बाद मुझे फिर काम मिला और मैंने अपने जीवन को दोबारा खुशहाल बनाया।

(अलेशिया राउत मॉडल हैं)

काले अध्याय को दफना चुकी हूं

आमतौर पर प्रताडित स्त्री के लिए समाज काफी सहानुभूतिपूर्ण रवैया अपनाता है, मगर हकीकत तो यह है कि उस स्त्री को प्रताडित करने में समाज भी अहम भूमिका निभाता है। मुझे समझ में नहीं आता अगर एक स्त्री अपने जीवन के काले अध्याय को कहीं दफन कर चुकी है तो क्या जरूरी है कि उसे दोबारा कुरेद कर निकाला जाए। मैं मानती हूं कि यदि आपके जीवन में कोई हादसा हुआ हो तो उस पर रोने या पछताने की बजाय उससे सबक लें और कोशिश करें कि भविष्य में दोबारा ऐसी गलती न हो। काफी लोगों के जीवन में एक दौर आता है, जब उन्हें लगता है कि अब उन्हें एक साथ नहीं रहना चाहिए। मेरी नजर में यह बिलकुल गलत नहीं है, क्योंकि एक-दूसरे के साथ घुट-घुटकर रहने से तो अच्छा है कि आप अलग हो जाएं। हालांकि अकसर लोग दूसरों की परेशानियों से बेखबर उनके झगडों में विशेष दिलचस्पी लेते हुए इस तरह की बातों को जानने के लिए लालायित रहते हैं। कई लोग मुझसे भी मेरे काले अतीत के बारे में पूछते हैं। समझ में नहीं आता कि उनसे क्या कहूं। कोई रिश्ता एक-सा नहीं रहता। समय के साथ उसमें बदलाव आते रहते हैं। कई कडवे रिश्तों में मिठास घुल जाती है और कई बार मधुर रिश्ता भी कडवा हो जाता है। रिश्तों की इस फेरबदल में कई बार दो गहरे दोस्त भी अलग हो जाते हैं तो पति-पत्नी क्या चीज हैं। हालांकि दो लोग चाहें तो आपस में बैठकर, बात करके अपनी समस्याओं का समाधान कर सकते हैं। कुछ तो करते भी हैं मगर जब बात हद से आगे बढ जाए तो मैं समझती हूं कि अलग से जाना चाहिए। मुझ पर यह आरोप लगता है कि मैं शादी जैसे पवित्र रिश्ते में यकीन नहीं रखती। मगर सच यह है कि मेरे लिए विवाह के बहुत मायने हैं। हां, ये और बात है कि बहुत छोटी उम्र में मुझे अपने पति से तलाक लेना पडा। इस शादी में मुझे सुख नहीं मिला, लेकिन मेरे दो बेटे मेरे जीवन की अनमोल पूंजी हैं। आज मैं अपने फैसले से खुश हूं, लेकिन जब मैंने अपने पति से अलग होने का फैसला लिया था तब मुझे इस बात का अहसास था कि मेरे बच्चों की जिम्मेदारी अकेले मुझ पर होगी। उस वक्त मेरी जेब में दस रुपये भी नहीं थे, मगर मेरे माता-पिता ने मेरा साथ दिया। शारीरिक व मानसिक रूप से प्रताडित होने के बावजूद मैंने जीवन की नई शुरुआत की। आज मैं अपने बच्चों को हर सुख देने का प्रयास करती हूं। मैं अपने कल के बारे में तो कुछ नहीं कह सकती, लेकिन आज से खुश हूं।

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