रविवार, 23 मई 2010

आलेख

होम मिनिस्टर : ये जॉब नहीं आसान
प्रायः किसी कंपनी के मालिक, अधिकारी, फैक्टरी मालिक या नौकरीपेशा लोग अपने काम को इतना महत्वपूर्ण मानते हैं कि जैसे उनके काम के अलावा दूसरे किसी काम का महत्व ही न हो। माना कंपनी चलाना एक कठिन काम है, क्योंकि एक कंपनी चलाने में बहुत झंझटें रहती हैं। जो माल हम बना रहे हैं या बेच रहे हैं, उसकी हर एक किस्म का कितना स्टॉक गोदाम में है।

फिर बाजार में रोजाना होने वाले उतार-चढ़ाव पर ध्यान देना, कंपनी में काम करने वालों के मिजाज पर ध्यान देना, उनके वेतन, वार्षिक वेतनवृद्धियाँ, बोनस आदि का ध्यान रखना, उस पर भी मैनेजमेंट की होने वाली मासिक मीटिंग्स आदि-आदि पर ध्यान देते हुए किसी भी कंपनी के मालिक के दिमाग की बत्ती गुल होने लगती है।
एक कंपनी के मेनगेट से उसके परिसर में स्थित एक महाप्रबंधक से लेकर चतुर्थ श्रेणी अधिकारी तक को हमेशा खुश या संतुष्ट रखना इतना आसान नहीं है। लेकिन यकीन मानिए कुछ इसी प्रकार की अनेक समस्याएँ घर चलाने वाली गृहिणियों के साथ भी जुड़ी हैं।
सुबह जल्दी उठना, घर के सभी सदस्यों के लिए चाय-कॉफी-दूध बनाना, फिर नहाने के लिए पानी गरम करना, सबका स्नान होते ही नाश्ते की व्यवस्था करना, घर के मुखिया के दफ्तर, फैक्टरी, कंपनी जाते ही बच्चे, सदस्यों का बस्ता पैक कर उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना, उन्हें बस स्टॉप तक छोड़ने जाना।
वहाँ से लौटकर आने पर कपड़े धोना, स्वयं खाना खाना, इसके बाद घर के सदस्यों के कपड़ों को प्रेस करना या प्रेस वाले के यहाँ भिजवाना, दोपहर में सब्जी, तरकारीवाला आने पर उससे सब्जी-भाजी लेना, शाम का खाना तैयार करना, गेहूँ पिसाना है इसलिए गेहूँ साफ करना, उनको पिसवाने के लिए भिजवाना, शाम को जिस सोसायटी में रहते हैं, वहाँ के क्लब या समिति की बैठक में भाग लेना।
बच्चों के स्कूल से वापस आने पर उनका होमवर्क करना, फिर शाम को खाने की तैयारी में लग जाना, इसके अलावा किसी रिश्तेदार या परिचित की तबीयत खराब होने पर समय निकालकर उन्हें देखने जाना, किसी के यहाँ 'गमी' होने पर वहाँ शरीक होने जाना- इस प्रकार घर के कितने सारे काम हैं, जो महिलाओं को ध्यान में रखकर करने ही पड़ते हैं।
यदि इन कामों का वर्गीकरण एवं विश्लेषण कर इन कार्यों को करने के लिए घर में 'बाई' या 'सेवक' रखें तो यकीनन उतनी ही राशि हमें हर माह चुकानी पड़ेगी जितनी एक सरकारी अधिकारी की पगार में भी नहीं मिलती।
विश्वास कीजिए कि पुरुष-प्रधान व्यवस्था के चलते महिलाओं के द्वारा 'अलसुबह' से 'देर रात किए' जाने वाले असाधारण कार्यों का सही मूल्यांकन ही नहीं किया जाता। यदि वास्तव में कोई सही मूल्यांकन करे तो महिलाओं के कार्य की कुल लागत जानने के बाद उसकी आँखें फटी की फटी रह जाएँगी।
किसी को यदि इस बात पर पूरा यकीन न हो तो वह केवल इतना भर करे कि केवल अपने परिवार के सुबह से लेकर रात तक के सारे काम केवल एक माह पूरी ईमानदारी से करके दिखाए। मेरा विश्वास है कि वह 7 दिन बाद ही कह उठेगा, 'भैया, गृहमंत्री बनना इतना आसान नहीं है या घर चलाना किसी कंपनी चलाने से कम नहीं है।'
अधिकांश पुरुष वर्ग कंपनी तो चला सकते हैं, लेकिन घर नहीं चला सकते! इसीलिए श्रेष्ठ मार्ग यही है कि यथासंभव जो भी सहयोग घर चलाने में, घर के काम में वे दे सकते हैं, अवश्य दें। इससे आपकी पत्नी को संतोष मिलेगा और राहत भी। परिणामतः वह आपको रोजाना एक नई ऊर्जा से सराबोर दिखेगी। जाहिर है, महिलाओं ने तो यह सिद्ध कर दिया है कि वे किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं, लेकिन अभी तक पुरुष वर्ग पूरी तरह यह सिद्ध नहीं कर पाए हैं कि हम उनके बगैर कुशलता से अपना घर चला सकते हैं।

सुपर-वूमन भी है लाड़ली बहू

समय बदला है तो लड़कियों के प्रति नजरिया भी बदला है। उन्हें एक इंसान की तरह देखा और स्वीकार किया जाने लगा है यह माना जाने लगा है कि उसकी भी पसंद-नापसंद, रुचि-अरुचि हो सकती है। यदि वह अच्छी प्रोफेशनल है तो जरूरी नहीं है कि उसे पारंपरिक रूप से महिलाओं के हिस्से आई जिम्मेदारियों को उठाने में भी माहिर होना ही चाहिए। इससे पहले लड़कियों को ये सहूलियतें नहीं दी थी जो आज है।

शादी के लिए अच्छा खाना पका लेना या सिलाई-कढ़ाई कर लेने जैसी शर्तें आजकल शिथिल हुई है। रोहन सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। शादी के लिए उसकी बस इतनी ही शर्त थी कि लड़की पढ़ी-लिखी हो। तान्या से उसका रिश्ता तय हुआ। तान्या भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।
नए जमाने की लड़की है ख्याल, रहन-सहन, पहनावा एकदम आधुनिक है। माँ-बाप की इकलौती लड़की है उसके लिए शादी यानी टिपिकल पति-पत्नी वाला हिसाब नहीं है, बल्कि दो अच्छे दोस्तों का साथ मिलकर 'लाइफ' शेयर करना ही उसकी नजर में शादी है। रोहन को तान्या पसंद है, उसकी आधुनिकता, पहनावे, लाइफ स्टाइल पर उसे कोई आपत्ति नहीं है। पहली मुलाकात में जब तान्या ने उसे बताया कि उसे खाना बनाना नहीं आता, तो चौंकने की बजाय रोहन बोला, 'कोई बात नहीं, मैं फास्ट फूड बना लेता हूँ।
हॉस्टल में जो रहा हूँ...बाकी 'मेड' सर्वेट रहेगी ही। तान्या शालीन है, वैल ग्रुम्ड है और बड़ों का आदर करती है। रोहन की माँ का कहना है, 'भई वो जमाने गए जब आठवीं पास करते ही लड़कियों को रसोई में धकेल दिया जाता था। जाहिर-सी बात है, दिन-रात पढ़ाई में जुटी लड़कियों के लिए रसोई में जाने की फुरसत है कहाँ? सीख लेगी धीरे-धीरे...' शर्मा आंटी की बहू एक कंपनी की एमडी है। उसे खाना बनाना आता तो है, मगर खाना बनाने में रुचि नहीं है।
घर में नौकरानी है, मगर शर्मा अंकल और उनके बेटे को नौकरानी के हाथ का भोजन पसंद नहीं। शर्मा आंटी अब भी जिम्मेदारी से रसोई का सारा काम सम्हालती है। वे कहती हैं 'मेरी बहू यदि भोजन बनाने में रुचि नहीं रखती तो जबरन उससे वह काम क्यों करवाऊँ? मुझे खाना बनाने का शौक है, सो मैं अपना शौक पूरा करती हूँ। इसमें बुराई क्या है?
इन उदाहरणों को देख-सुनकर मन को राहत का झोंका छू जाता है। आज समय तेजी से बदल रहा है, अब नारी की आर्थिक स्वतंत्रता केवल घर का ढाँचा बरकरार रखने के लिए ही मायने नहीं रखती, वरन्‌ पति और ससुराल वाले भी उसकी तरक्की-सफलता को अपना गौरव मानते हैं।
आज से एक दशक पहले भी स्त्री अपने पैरों पर खड़ी थी, मगर तब घर-बाहर की जिम्मेदारी उसी के सिर थी। पति या ससुराल पक्ष से सहयोग न के बराबर था। मगर आज स्थितियाँ तेजी से बदली हैं। घर की बुनावट में स्त्री को विशेषतः बहू को खासी अहमियत मिलने लगी है। उसे दकियानूसी परंपराओं, रीति-रिवाजों और पुरानी मान्यताओं से बाहर निकलने का मौका दिया गया है। पति की तरह ही उसे भी दफ्तर की जिम्मेदारियों को निभाने व समय देने का मौका दिया जा रहा है।
घर-परिवार के अलावा उसका सर्कल, उसके सहकर्मी, उसका ओहदा भी सम्माननीय है। उसे अपने अनुसार जीने, पहनने-ओढ़ने की छूट है...क्या ऐसा नहीं लगता कि स्त्री अब सचमुच स्वतंत्र हो रही है? अक्षिता के पिताजी का स्वर्गवास हो गया है। शादी के समय ही अक्षिता ने स्पष्ट कर दिया कि वह न केवल अपनी माँ की भी देखभाल करेगी, वरन्‌ अपनी तनख्वाह का कुछ हिस्सा उन पर खर्च करेगी।
अक्षिता के पति व ससुराल वालों ने यह बात सहर्ष स्वीकार कर ली और आज अक्षिता बेटे की तरह ही अपनी माँ का ख्याल रखती है। समयानुसार अपने में परिवर्तन लाते जाना, नया ग्रहण करना और पुराना (जो अनुपयोगी हो) छोड़ते जाना ही बुद्धिमानी है। अप्रासंगिक, गैरजरूरी मान्यताएँ छोड़ना, नई सोच, नई मान्यताओं को जीवन में स्थान देना ही सुखी जीवन का मूलमंत्र है। कल जो भी हुआ हो, आज बदलाव की सुहानी बयार चल पड़ी है जो सचमुच खुशगवार है, कुछ नएपन का इशारा कर रही है।

खतरनाक जासूस कैमरा !

पिछले दिनों देश की राजधानी दिल्ली के एक बड़े कॉल सेंटर के रेस्ट रूम में एक ऐसे कैमरे का भेद खुला है जो रेस्ट रूम में लगे काँच के पीछे छुपाया गया था और कई महीने से महिलाओं की 'निगरानी' कर रहा था। इस घटना ने केवल वर्किंग वूमन ही नहीं बल्कि उन सभी महिलाओं के सामने एक नया प्रश्न खड़ा कर दिया है, जो घर से बाहर निकलती हैं।
इनका रखें ध्‍यान :
किसी दफ्तर के रेस्ट रूम या लेडिज़ रूम में जहाँ काँच के पीछे हिडन कैमरे हो सकते हैं या फिर दीवारों को जासूस बनाया जा सकता है।
शॉपिंग मॉल्स, शो रूम या दुकानों के चेंजिंग रूम्स जहाँ ऐसी घटनाएँ होने का सबसे ज्यादा अंदेशा होता है।
किस रेस्त्राँ या होटल का वॉश रूम अथवा कमरा जहाँ काँच तथा दीवारों के अलावा भी कई जगह जासूस आँखें छिपी हो सकती हैं।
ऐसी कोई भी जगह जो सिर्फ महिलाओं के आराम या बैठने के लिए बनाई गई है।जाहिर है कि ऐसी घटनाओं के डर से आप घर से निकलना तो बंद कर नहीं सकतीं। इन घटनाओं को हल्के में लेना भी गलत है... तो सवाल ये उठता है कि आखिर वे कौन सी सावधानियाँ हैं जो इस संबंध में महिलाओं को रखना चाहिए। चलिए इस बारे में जानते हैं।
सबसे पहले तो किसी भी जगह के चेंजिंग रूम या वॉश रूम का प्रयोग करने से बचें। यदि आपके पास अन्य विकल्प हों, जैसे घर पास हो या पास के किसी अन्य ज्यादा विश्वस्त स्थान के बारे में आप जानती हों, तो उसका प्रयोग करें।
अनावश्यक 'गैप', छेद या अनजानी 'चीज़' लगी दिखे तो सावधान हो जाएँ।
चेंजिंग रूम यदि छोटा है तो सबसे अच्छा तरीका है, लाइट्स ऑफ कर देने का। चेंज करने के बाद पुनः लाइट्स जला लें लेकिन यह तरीका अँधेरे में भी रिकॉर्डिंग करने वाले कैमरों के सामने कारगर नहीं होगा।
यदि आपको दीवार या काँच या अन्य किसी जगह कोई छोटी लाइट या काला बिंदु नजर आए तो सतर्क हो जाएँ।
यदि अनजाने में आप किसी ऐसी मुसीबत में फँस ही गई हों तो तुरंत उस स्थान के प्रबंधन और पुलिस को सूचित करें। आपका एक कदम आपके साथ दूसरों को भी परेशानी से बचा लेगा।
मिरर टेस्ट :
मिरर टेस्ट हर उस जगह आपका साथ देगा जहाँ काँच के पीछे हिडन कैमरे लगे हो सकते हैं। ये काँच दिखने में बिलकुल सामान्य लगते हैं लेकिन इसके दूसरी ओर से आपको देखा जा रहा होता है। आप जिस तरफ खड़े हैं उस तरफ से आपको सिर्फ खुद का अक्स नजर आएगा और आप इस बात से पूरी तरह अनजान होंगी कि दूसरी तरफ से कोई आपको देख रहा है।
इसके लिए मिरर टेस्ट अपनाएँ। अपने हाथ की ऊँगली की नोक को काँच पर धीरे से रखें। यदि आपकी ऊँगली और काँच पर पड़ती ऊँगली की छाया के बीच में हल्का सा भी अंतर है यानी गैप है तो यह काँच बिलकुल ठीक है। इससे आपको कोई खतरा नहीं लेकिन अगर आपकी ऊँगली और काँच पर पड़ते अक्स के बीच कोई दूरी नहीं रह जाती तो सतर्क हो जाइए... इस काँच के पीछे कैमरा हो सकता है।

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