मंगलवार, 26 जुलाई 2011

पूजा के समय सिर पर रुमाल रखना जरूरी क्यों है?

पौराणिक कथाओं में नायक, उपनायक तथा खलनायक भी सिर को ढंकने के लिए मुकुट पहनते थे। यही कारण है कि हमारी परंपरा में सिर को ढकना स्त्री और पुरुषों सबके लिए आवश्यक किया गया था। सभी धर्मों की स्त्रियां दुपट्टा या साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढंककर रखती थी। इसीलिए मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल पर जाते समय या पूजा करते समय सिर ढकना जरूरी माना गया था। पहले सभी लोगों के सिर ढकने का वैज्ञानिक कारण था। दरअसल विज्ञान के अनुसार सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील स्थान होता है। ब्रह्मरंध्र सिर के बीचों-बीच स्थित होता है। मौसम के मामूली से परिवर्तन के दुष्प्रभाव ब्रह्मरंध्र के भाग से शरीर के अन्य अंगों पर आतें हैं।
इसके अलावा आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती है।
इसी कारण सिर और बालों को ढककर रखना हमारी परंपरा में शामिल था। इसके बाद धीरे-धीरे समाज की यह परंपरा बड़े लोगों को या भगवान को सम्मान देने का तरीका बन गई। साथ ही इसका एक कारण यह भी है कि सिर के मध्य में सहस्त्रारार चक्र होता है। पूजा के समय इसे ढककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है। इसीलिए नग्र सिर भगवान के समक्ष जाना ठीक नहीं माना जाता है। यह मान्यता है कि जिसका हम सम्मान करते हैं या जो हमारे द्वारा सम्मान दिए जाने योग्य है उनके सामने हमेशा सिर ढककर रखना चाहिए। इसीलिए पूजा के समय सिर पर और कुछ नहीं तो कम से कम रूमाल ढक लेना चाहिए। इससे मन में भगवान के प्रति जो सम्मान और समर्पण है उसकी अभिव्यक्ति होती है।
www.bhaskar.com

रविवार, 24 जुलाई 2011

ओम के चमत्कारी लाभ

पूजा के साथ सेहत के लिए भी चमत्कारी 'ॐ'

'ॐ' किसी धर्म से जुड़ा न होकर ध्वनिमूलक है। माना जाता है कि सृष्टि के आरंभ में केवल यही एक ध्वनि ब्रह्मांड में गूँजती थी। जब हम 'ॐ' बोलते हैं, तो वस्तुतः हम तीन वर्णों का उच्चारण करते हैं: 'ओ', 'उ' तथा 'म'। 'ओ' मस्तिष्क से, 'उ' हृदय से तथा 'म' नाभि (जीवन) से जुड़ा है। मन, मस्तिष्क और जीवन के तारतम्य से ही कोई भी काम सफल होता है। 'ॐ' के सतत उच्चारण से इन तीनों में एक रिदम आ जाती है।
जब यह तारतम्य आ जाता है, तो व्यक्ति का व्यक्तित्व पूर्ण हो जाता है। उसका आभामंडल शक्तिशाली हो जाता है, इंद्रियाँ अंतरमुखी हो जाती हैं। जैसे किसी पेड़ को ऊँचा उठने के लिए जमीन की गहराइयों तक जाना पड़ता है, ठीक उसी तरह व्यक्ति को अपने भीतर की गहराइयों में झाँकने हेतु (अपने संपूर्ण विकास के लिए) 'ॐ' का सतत जाप बहुत मदद करता है। ॐ आध्यात्मिक साधना है। इससे हम विपदा, कष्ट, विघ्नों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं।
'ॐ' के जाप से वह स्थान जहाँ जाप किया जा रहा है, तरंगित होकर पवित्र एवं सकारात्मक हो जाता है। इसके अभ्यास से जीवन की गुत्थियाँ सुलझती हैं तथा आत्मज्ञान होने लगता है। मनुष्य के मन में एकाग्रता, वैराग्य, सात्विक भाव, भक्ति, शांति एवं आशा का संचार होता है। इससे आध्यात्मिक ऊँचाइयाँ प्राप्त होती हैं। 'ॐ' से तनाव, निराशा, क्रोध दूर होते हैं। मन, मस्तिष्क, शरीर स्वस्थ होते हैं। गले व साँस की बीमारियों, थायरॉइड समस्या, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, स्त्री रोग, अपच, वायु विकार, दमा व पेट की बीमारियों में यह लाभदायक है। विद्यार्थियों को परीक्षा में सफलता हेतु एकाग्रता दिलाने में भी यह सहायक है। इन दिनों पश्चिमी देशों में नशे की लत छुड़ाने में भी 'ॐ' के उच्चार का प्रयोग किया जा रहा है।
ध्यान, प्राणायाम, योगनिद्रा, योग आदि सभी को 'ॐ' के उच्चारण के बाद ही शुरू किया जाता है। मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए दिन में कम से कम 21 बार 'ॐ' का उच्चारण करना चाहिए।

अजवायन के असरकारी नुस्खे

अजवायन रुचिकारक एवं पाचक होती है। पेट संबंधी अनेक रोगों को दूर करने में सहायक होती है, जैसे- वायु विकार, कृमि, अपच, कब्ज आदि। अजवायन में स्वास्थ्य सौंदर्य, सुगंध तथा ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्व होते हैं। यह बहुत ही उपयोगी होती है।

* बरसात के मौसम में पाचन क्रिया के शिथिल पड़ने पर अजवायन का सेवन काफी लाभदायक होता है। इससे अपच को दूर किया जा सकता है।

* अजवायन मोटापे को कम करने में मदद करती है। अतः रात्रि में एक चम्मच अजवायन एक गिलास पानी में भिगोएं। सुबह छानकर उस पानी में शहद डालकर पीने पर लाभ होता है।

मसूड़ों में सूजन होने पर अजवायन के तेल की कुछ बूंदें पानी में मिलाकर कुल्ला करने से सूजन कम होती है। अजवायन, काला नमक, सौंठ तीनों को पीसकर चूर्ण बना लें। भोजन के बाद फांकने पर अजीर्ण, अशुद्ध वायु का बनना व ऊपर चढ़ना बंद हो जाएगा।

आंतों में कीड़े होने पर अजवायन के साथ काले नमक का सेवन करने पर काफी लाभ होता है।

सर्दी, गर्मी के प्रभाव के कारण गला बैठ जाता है।

बेर के पत्तों और अजवायन को पानी में उबालकर, छानकर उस पानी से गरारे करने पर लाभ होता है।

आधे सिर में दर्द होने पर एक चम्मच अजवायन आधा लीटर पानी में डालकर उबालें। पानी को छानकर रखें एवं दिन में दो-तीन बार थोड़ा-थोड़ा लेते रहने से काफी लाभ होगा।

सरसों के तेल में अजवायन डालकर अच्छी तरह गरम करें। इससे जोड़ों की मालिश करने पर जोड़ों के दर्द में आराम होता है।

खीरे के रस में अजवायन पीसकर चेहरे की झाइयों पर लगाने से लाभ होता है।

चोट लगने पर नीले-लाल दाग पड़ने पर अजवायन एवं हल्दी की पुल्टिस चोट पर बांधने पर दर्द व सूजन कम होती है।

मुख से दुर्गंध आने पर थोड़ी सी अजवायन को पानी में उबालकर रख लें, फिर इस पानी से दिन में दो-तीन बार कुल्ला करने पर दो-तीन दिन में दुर्गंध खत्म हो जाती है।
www.webdunia.com

'थोड़ा' टेंशन अच्छा है सफलता के लिए

स्टडी के लिए टेंशन जरूरी है, लेकिन बहुत ज्यादा चिंता से सोचने की क्षमता पर बुरा असर पड़ता है जिससे ऐन परीक्षाओं या साक्षात्कार के वक्त मेमोरी ब्लॉक हो सकती है।
एनर्जी के लेवल में गिरावट व कॉन्सन्ट्रैशन में कमी हो सकती है।
टेंशन बढ़ने से रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी रेसिस्टेंट पॉवर कम होने लगती है और शरीर अस्वस्थ होगा तो जाहिर-सी बात है कि दिमाग पर प्रैशर भी बढ़ेगा।
टेंशन आपके मनोबल पर हावी ना हो इस बात का ध्यान रखें।
टेंशन आपके सबकॉन्शस में बना रहना चाहिए लेकिन जैसे ही आपको घबराहट महसूस हो आप अपनी सारी शक्ति अपने मजबूत पक्षों को सोचने में लगा दें। इससे आपकी पॉजिटिव एनर्जी बढ़ेगी।
टेंशन कम से कम होना चाहिए और उस पर दबाव डालने के लिए सच्चे मन से मेहनत करने लग जाएं।
NDटेंशन की बस इतनी मात्रा आपको फायदा देगी।
कई घंटों तक लगातार बैठे रहकर पढ़ने से कोई फायदा नहीं होता, क्योंकि एक टाइम लिमिट के बाद नेगेटिव टेंशन का लेवल बढ़ता जाता है और एकाग्रता का स्तर गिरने लगता है।
माइंड में कुछ भी रजिस्टर नहीं होता, इसीलिए इस दौरान न तो कुछ पढ़ा हुआ याद रह पाता है और न ही कोई विचार दिमाग में अपनी जगह बना पाता है।

बरसते मौसम में बचिए मच्छरों से

बारिश जहां माहौल को खुशनुमा बनाती है वहीं कई बीमारियों को दावत भी देती है। यही वक्त होता है जब मच्छर का प्रकोप बढ़ता है और लोग मलेरिया के शिकार हो जाते हैं। यदि मच्छरजनित इस बीमारी से बचना हो तो सावधानी और घरू उपाय करें। मसलन इन्हें घर के आसपास पनपने न दें। इसके लिए कुछ बातों पर जरूर गौर करें।
घर के चारों ओर पानी जमा न होने दें, गड्ढों को मिट्टी से भर दें, रुकी हुई नालियों को साफ करें।
अगर पानी जमा होने से रोकना संभव नहीं है तो उसमें पेट्रोल या केरोसिन ऑयल डालें।

रूम कूलरों, फूलदानों का सारा पानी हफ्ते में एक बार और पक्षियों को दाना-पानी देने के बर्तन को रोज पूरी तरह से खाली करें, उन्हें सुखाए और फिर भरें। घर में टूटे-फूटे डिब्बे, टायर, बर्तन, बोतलें आदि न रखें। अगर रखें तो उल्टा करके रखें।
डेंगू के मच्छर साफ पानी में पनपते हैं, इसलिए पानी की टंकी को अच्छी तरह बंद करके रखें।
अगर मुमकिन हो तो खिड़कियों और दरवाजों पर महीन जाली लगवाकर मच्छरों को घर में आने से रोकें।
मच्छरों को भगाने और मारने के लिए मच्छरनाशक क्रीम, स्प्रे, मैट्स, कॉइल्स आदि का प्रयोग करें। गुग्गल के धुएं से मच्छर भगाना अच्छा देसी उपाय है।
घर के अंदर सभी जगहों में हफ्ते में एक बार मच्छर-नाशक दवाई का छिड़काव जरूर करें। यह दवाई फोटो-फ्रेम्स, पर्दों, केलेंडरों आदि के पीछे और घर के स्टोर रूम और सभी कोनों में जरूर छिड़कें।
दवाई छिड़कते समय अपने मुंह और नाक पर कोई कपड़ा जरूर बांधें। साथ ही , खाने-पीने की सभी चीजों को ढककर रखें।
पीने के पानी में क्लोरीन की गोली मिलाएं और पानी को उबालकर पीएं।
5 साल से कम उम्र के बच्चे, 65 साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग और गर्भवती महिलाएं सावधानी से रहें।
ऐसे कपड़े पहनें, जिससे शरीर का ज्यादा-से-ज्यादा हिस्सा ढका रहे। खासकर बच्चों के लिए यह सावधानी बहुत जरूरी है।
रात को सोते समय मच्छरदानी लगाएं।
www.webdunia.com

छिलकों के घरेलू प्रयोग आजमाएं

छिलकों में भी छुपे हैं गुण
नींबू और संतरे के छिलकों को सुखाकर अलमारी में रखा जाए तो इनकी खुशबू से झिंगुर व अन्य कीट भाग जाते हैं।

ऐसे सूखे छिलकों को जलाने से जो धुआं होता है उनसे मच्छर मर जाते हैं।

इसकी राख से दांत साफ किए जाएँ तो दुर्गंध दूर हो जाती है।

नींबू निचोड़ने के बाद बचे हुए हिस्से को त्वचा पर रगड़ने से त्वचा की चिकनाई कम होती है।

इसके रगड़ने से मुंहासे भी कम होते हैं और रंग निखरता है।

पीतल और तांबे के बर्तन इससे चमकदार बनते हैं।

नींबू के छिलकों को कोहनी और नाखूनों पर रगड़ने से कालापन कम होता है और गंदगी हट जाती है।

इन्ही छिलकों को नमक, हींग, मिर्च और चीनी के साथ पीसने से स्वादिष्ट चटनी बनती है।

संतरे का रस तो चेहरे को कांतिमय बनाता ही है, छिलकों को यदि छाया में सुखाकर पीसा जाए तो यह उबटन का काम करता है जिससे चेहरे के दाग-धब्बे हटते हैं और त्वचा खूबसूरत बनती है।

संतरे के छिलके को पानी में डालकर नहाने से पसीने की दुर्गंध दूर होती है और ताजगी आती है।
www.webdunia.com

जी हां, प्यार में होता है केमिकल लोचा

डॉ. अनिल भदौरिया
यौवन की दहलीज पर कदम रखते ही एक अजीब सा अहसास होने लगता है। कोई प्यारा सा हमउम्र अच्छा लगने लगता है, कोई हमें देखे यह भावना उठने लगती है। कोई चाहने लगे तो पेट में तितलियां उड़ने लगती हैं।
यह अहसास प्रकृति की अनुपम भावना है जो किशोरावस्था से शुरू होकर जीवनपर्यंत बनी रहती है। इस अवस्था में शरीर में स्थायी परिवर्तन होते हैं। हारमोन्स का प्रबल वेग भावनात्मक स्तर पर अनेक झंझावत खड़े कर देता है।
प्यार, संवेदना, लगाव, वासना, घृणा और अलगाव की विभिन्न भावनाएं कमोबेश सभी के जीवन में आती हैं। यह सब क्या है? क्यों होता है? क्या प्यार की भी कोई केमेस्ट्री है?
चिकित्सा विज्ञान मानता है कि मानव शरीर प्रकृति की एक जटिलतम संरचना है। इसे नियंत्रित करने के लिए स्नायु तंत्र (नर्वस-सिस्टम) का एक बड़ा संजाल भी है जो स्पर्श, दाब, दर्द की संवेदना को त्वचा से मस्तिष्क तक पहुंचाता है।
किशोरावस्था में विशिष्ट रासायनिक तत्व निकलते हैं जो स्नायुतंत्र द्वारा शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचते हैं। इन्हीं में शामिल प्यार के कई रसायन भी हैं जो उम्र के विभिन्न पड़ावों पर इसकी तीव्रता या कमी का निर्धारण करते हैं। प्यार की तीन अवस्थाएँ हैं।
आकर्षण
वासना की तीव्रतर उत्कंठा के बाद आकर्षण या प्रेम का चिरस्थायी दौर प्रारंभ होता है जो व्यक्ति में अनिद्रा, भूख न लगना, अच्छा न लगना, प्रेमी को तकते रहना, यादों में खोए रहना, लगातार बातें करते रहना, दिन में सपने देखना, पढ़ने या किसी काम में मन न लगना जैसे लक्षणों से पीड़ित कर देता है।
इस अवस्था में डोपामिन, नॉर-एपिनेफ्रिन तथा फिनाइल-इथाइल-एमाइन नामक हारमोन रक्त में शामिल होते हैं। डोपामिन को 'आनंद का रसायन' भी कहा जाता है क्योंकि यह 'परम सुख की भावना' उत्पन्न करता है। नॉर-एपिनेफ्रिन नामक रसायन उत्तेजना का कारक है जो प्यार में पड़ने पर आपकी हृदय गति को भी तेज कर देता है।
डोपामिन और नॉर-एपिनेफ्रिन मन को उल्लास से भर देते हैं। इन्हीं हारमोनों से इंसान को प्यार में ऊर्जा मिलती है। वह अनिद्रा का शिकार होता है। प्रेमी को देखने या मिलने की अनिवार्य लालसा प्रबल होती जाती है। वह सारा ध्यान प्रेमी पर केंद्रित करता है।
इसके अतिरिक्त डोपामिन एक अत्यंत महत्वपूर्ण हार्मोन 'ऑक्सीटोसिन' के स्राव को भी उत्तेजित करता है। जिसे 'लाड़ का रसायन' (स्पर्श) कहा जाता है। यही ऑक्सीटोसिन प्रेम में आलिंगन, शारीरिक स्पर्श, हाथ में हाथ थामे रहना, सटकर सोना, प्रेम से दबाना जैसी निकटता की तमाम घटनाओं को संचालित और नियंत्रित करता है। इसे 'निकटता का रसायन' भी कहते हैं।
एक और रसायन फिनाइल-इथाइल-एमाइन आपको प्रेमी से मिलने के लिए उद्यत करता है। साथ ही यह प्यार में पड़ने पर सातवें आसमान के ऊपर होने की संतुष्टिदायक भावना भी प्रदान करता है। इसी रसायन के बलबूते पर प्रेमी-प्रेमिका रात भर बातें करते रहते हैं।
नॉर-एपिनेफ्रिन इस अवस्था में एड्रीनेलिन का उत्पादन करता है जो प्रेमी के आकर्षण में रक्तचाप बढ़ाता है। हथेली में पसीने छुड़वा देता है, दिल की धड़कन बढ़ा देता है। शरीर में कंपकंपी भर देता है और कुछ कर गुजरने की आवश्यक हिम्मत भी देता है। ताकि आप जोखिम उठा कर भी अपने प्रेमी को मिलने चल पड़ें।
मिट्टी के कच्चे घड़े पर उफनती नदी पार कर मिलने जाने जैसा दु: साहस इसी हारमोन के कारण आ जाता है। फिनाइल इथाइल एमीन नाम का एक और हारमोन है जिसका स्त्राव भी मस्तिष्क से ही प्यार की सरलतम घटनाओं के कारण होने लगता है।
नजरें मिलना, हाथ से हाथ का स्पर्श होना, भावनाओं का उन्माद उत्पन्न होना वगैरह इसी के कारण संभव है। फिनाइल इथाइल एमीन या प्यार के रसायन की प्रचुर मात्रा चॉकलेट में उपस्थित रहती है।
इसीलिए प्रेमियों को चॉकलेट देने का रिवाज है। इसी तरह फूलों का गुलदस्ता भी एक विशिष्ट शारीरिक सुगंध फेरमोन को प्रदर्शित करने का संकेत है।
वासना / तीव्र लालसा
इस अवस्था में विपरीत लिंगी को देखकर वासना का एक भाव उत्पन्न होता है जो दो तरह के हार्मोन से नियंत्रित होता है। पुरुषों में 'टेस्टोस्टेरोन' तथा महिलाओं में 'इस्ट्रोजेन' होते हैं। वासना या लालसा का दौर क्षणिक होता है।
लगाव/ अनुराग /आसक्ति
प्यार की इस अवस्था में प्रीति-अनुराग बढ़कर उस स्तर पर पहुंच जाती है कि प्रेमी संग साथ रहने को बाध्य हो जाते हैं। उन्हें किसी अन्य का साथ अच्छा नहीं लगता और 'एक में लागी लगन' का भाव स्थापित हो जाता है।
इस अवस्था का रसायन है ऑक्सीटोसिन तथा वेसोप्रेसिन। ऑक्सीटोसिन जहां 'निकटता का हार्मोन' है, वहीं वेसोप्रेसिन प्रेमियों के मध्य लंबे समय तक संबंधों के कायम रखने में अपनी भूमिका निभाता है। वेसोप्रेसिन को 'जुड़ाव का रसायन' कहा जाता है ।
शरीर में इन हार्मोन्स तथा रसायनों का आवश्यक स्तर बना रहने से आपसी संबंधों में उष्णता कायम रहती है। शरीर में स्वाभाविक रूप से किशोरावस्था, यौवनावस्था या विवाह के तुरंत पूर्व व बाद में इन रसायनों व हार्मोनस्‌ का उच्च स्तर कायम रहता है।
उम्र ढलते-ढलते इनका स्तर घटने लगता है और विरक्ति, विवाहेत्तर संबंध जैसी प्राकृतिक भूल/गलती घटित हो जाती है।
प्यार और यौन-इच्छा की भावना एक साथ जीवन के साथ चलती है। इसीलिए कहा गया है कि प्यार, कमर के ऊपर है और यौनेच्छा कमर के नीचे किंतु दोनों का ही नियंत्रण मस्तिष्क से ही होता है।
प्यार अंधा है, प्यार नशा है या प्यार शुद्ध कविता है इसकी विभिन्न व्याख्याएं उपलब्ध हैं लेकिन इस भावना के महत्व को जीव-रसायन से समझाकर कम नहीं किया जा सकता।
प्यार एक शुद्ध रासायनिक कविता है जो प्रेमी को ऊर्जावान, निडर और साहसी बना देती है ताकि वह अपने प्रियतम को पा सके।
www.webdunia.com

सिगरेट : आसान है छुटकारा

सिगरेट की लत के बारे में कहा जाता है कि यह लग तो आसानी से जाती है, मगर इसे छोड़ना उतना ही मुश्किल होता है। बहरहाल स्‍मोकिंग के कारण हेल्‍थ को होने वाले नुकसानों को देखते हुए इसे छोड़ देना ही बेहतर है और ऐसा किया भी जा सकता है।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की तरह ही कोई भी इस लत से छुटकारा पा सकता है। बस, शर्त है तो इतनी कि आपकी वि‍ल पावर स्‍ट्रॉन्‍ग हो और आप इसके लिए कुछ खास तरीकों पर अमल करें।
कैसे छोड़ें सिगरेट की लत
स्‍मोकिंग गाहे-बगाहे यूथ की लाइफ स्‍टाइल का हिस्सा बन जाती है। युवा खेल-खेल में सिगरेट वगैरह पीने लगते हैं। बाद में पछतावा होने पर छोड़ने की कोशिश भी करते हैं, मगर जल्द हार मान लेते हैं। सिगरेट पीने की आदत छोड़ना इतना मुश्किल भी नहीं है। जब बराक ओबामा 48 की उम्र में सिगरेट छोड़ने की कवायद कर सकते हैं, तो युवा क्यों नहीं।
कुछ विशेषज्ञों ने बराक ओबामा सहित दुनिया भर में स्‍मोकिंग करने वालों के लिए यह 'फाइव स्टेप प्लान' बनाया है। अपने आप से प्यार करने वाले युवा इसे आजमा सकते हैं। मगर इन योजना को असफल साबित करने के लिए नहीं, बल्कि खुद को सफल बनाने के लिए।
* स्‍ट्रैस होने पर सिगरेट पीने का मन करता है?
पहले अपने तनाव के कारण खोजें।
उन पर विचार करके उनका सॉल्‍यूशन निकालें।
यह सॉल्‍यूशन अपने मनपसंद कामों से हो सकता है।
संगीत सुनना, खेलना, फिल्म देखना, किताबें पढ़ना, सैर-सपाटा या जो कुछ भी आपको पसंद हो, तनाव दूर करने के लिए करें।
स्‍ट्रैस कम रहेगा तो तलब भी कम लगेगी।
अपने आप से पूछें कि आप आखिर सिगरेट क्यों छोड़ना चाहते हैं?
आप यह न सोचें कि मुझसे कुछ छूट रहा है, या मुझसे कुछ अलग हो रहा है, बल्कि ये सोचें कि आप अपने आप को स्वस्थ जिदंगी का तोहफा दे रहे हैं।
स्‍मोकिंग छोड़ने के लिए अपने हि‍साब से एक तारीख डि‍साइड कर लें, जो आपके लिए सीमा रेखा की तरह काम करेगी।
जैसे-जैसे यह दिन या सीमा रेखा नजदीक आए धीरे-धीरे एक-एक सिगरेट की संख्या कम करते जाएँ।

सिगरेट छोड़ने के लिए तय तारीख पर प्रतिज्ञा लें कि आज से मेरी जिंदगी की नई शुरूआत है।
इस दिन के बाद हर दिन खुद को बधाई दें कि आपने अपने आपको को धीरे-धीरे करके सारी जिंदगी धुएं में घुटने से बचा लिया है।
कुछ समय बाद आप पाएंगे कि आपके कमरे, घर, कपड़ों और मुंह से धुएं की बदबू खत्म हो गई है। यही नहीं, बल्कि आपकी जिंदगी एक अंधेरी सुरंग से बाहर निकल आई है। एक नई ताजा दुनिया है, जिसमें धुआं नहीं है।www.webdunia.com

शहद : मोटापा घटाए, मोटापा बढ़ाए

शुभी नीमा
शहद जल्दी पचकर खून में मिल जाता है। इसे हम दूध, दही, चाय, मलाई, पानी, सब्जी, फलों के रस आदि में मिलाकर ले सकते हैं। यही नहीं सर्दी में गर्म पेय के साथ व गर्मी में ठंडे पेय के साथ भी इसका सेवन कर सकते हैं। शहद को गर्म कभी नहीं करना चाहिए।
कब्ज : सुबह-शाम दो चम्मच शहद पानी में पीने से लाभ होता है।
कमजोरी : शहद में विटामिन 'ए'और 'बी' के होने से यह आँखों की ज्योति बढ़ाता है व भूख बढ़ाकर कमजोरी दूर करता है।
स्फूर्ति : प्रातः नींबू व शहद गर्म पानी में लेने से स्फूर्ति आती है।
गर्भावस्था : गर्भवती महिला द्वारा दो चम्मच शहद रोजाना लेने से उसे रक्त की कमी नहीं होती।
दाँत आना : बच्चों को मसूडों पर शहद लगाने से दाँत आसानी से आते हैं।
मोटापा : सुबह गुनगुने पानी में शहद मिलाकर सेवन करने से मोटापा कम होता है और मोटापा बढ़ाने के लिए इसे दूध में मिलाकर पिएं।
नींद : शहद को नींबू के रस में लेने से नींद अच्छी आती है।
गला बैठना : गर्म पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर गरारे करने से आवाज खुल जाती है।
त्वचा : तिल्ली का तेल, बेसन, शहद व नींबू मिलाकर उबटन करने से त्वचा निखर जाती है।
उल्टी और हिचकी : दो चम्मच प्याज के रस में दो चम्मच शहद मिलाकर खाने से उल्टी और हिचकी में आराम मिलता है।

रंगीन आहार सेहत का आधार

संतुलित भोजन के बारे में किसी डायटिशियन से पूछा जाए तो वह कहेगा कि भोजन में दाल, चावल, रोटी, सब्जी और थोड़ी वसा होना चाहिए। दाल यानी प्रोटीन, चावल, रोटी यानी कार्बोहाइड्रेट और सब्जी अर्थात विटामिन और खनिज लवणों के स्रोत। इसके साथ ही भोजन के अतिरिक्त कुछ मौसमी फलों का भी समावेश होना चाहिए। खट्टे-मीठे फल ऊर्जा एवं खनिज लवणों तथा एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर होते हैं। आप पूछ सकते हैं कि यह एंटीऑक्सीडेंट्स क्या हैं? तो जान लीजिए की ये हमारे स्वास्थ्य के रक्षक हैं।

दरअसल, जो भी भोजन हम करते हैं शरीर में उसके पाचन के दौरान कुछ हानिकारक तत्व बनते हैं जिन्हें फ्री रेडिकल्स (स्वतंत्र मूलक) कहते हैं। ये फ्री रेडिकल ऑक्सीकरण की दर को बहाकर हमारे शरीर को नुकसान पहुँचाते हैं। उनकी अधिकता से हमारे शरीर में बुढ़ापे के लक्षण तेजी से आते हैं।
एंटीऑक्सीडेंट्स पदार्थ इन स्वतंत्र मूलकों का खात्मा कर इनके दुष्प्रभावों से हमारे शरीर को बचाते हैं। एंटीऑक्सीडेंट्स नारंगी, लाल, पीले, जामुनी फलों में खूब पाए जाते हैं। फलों के अलावा भी कुछ चीजें ऐसी हैं, जो न तो सब्जी है न ही फल जैसे प्याज, गाजर, शलजम आदि। सफेद नारंगी और जामुनी वनस्पतियों का यह योग बेहतरीन है। इसमें मूली भी जोड़ी जा सकती है और फूलगोभी भी।
'सब्जी' शब्द 'सब्ज' से आया है, जो एक फारसी शब्द है। 'सब्ज' यानी हरा जैसे पालक, मैथी, धनिया, गिलकी, लौकी, करेला आदि। सब्जबाग दिखाना एक मुहावरा भी है, परंतु हम आपको कोई सब्जबाग नहीं दिखा रहे हैं अपितु बागे-सेहत का रास्ता दिखा रहे हैं। वह भी और कहीं नहीं, आपके घर पर ही। इस पर चलना और उसे सजाना भी आपके हाथ में है। यदि आपकी भोजन थाली रंग-बिरंगी खाद्य सामग्री से भरी है तो समझिए कि आपकी सेहत भी बढ़िया रहेगी। भोजन की थाली जितनी ज्यादा रंगीन होगी, उतना ही आपका स्वास्थ्य भी बेहतरीन रहेगा।
तिरंगा सलाद 1
बेहतर स्वास्थ्य पाने के लिए आप एक सलाद बना सकते हैं। इसे नाम दे सकते हैं- तिरंगा सलाद। इसे बनाने के लिए आपको मूली और टमाटर चाहिए। ध्यान रहे, मूली पत्तियों सहित खरीदना है। तिरंगा सलाद बनाने के लिए मूली के नर्म पत्तों को बारीक-बारीक काट लें। इसके बाद मूली को लंबी-लंबी चिप्स जैसा काटें। ऐसा करने के लिए पहले मूली का एक लंबा टुकड़ा लेकर उसमें चाकू से खड़े चीरे लगा लें। अब इस टुकड़े से मूली ऐसे काटिए जैसे आलू की चिप्स काटते हैं।

इस तरह आपको आलू की सेंव की तरह मूली के लंबे-पतले टुकड़े मिल जाएंगे। अब इसी तरह टमाटर के भी लंबे-लंबे टुकड़े काट लें। अब इस पर जरा-सी लालमिर्च, नमक एवं भुना जीरा डालकर अच्छी तरह मिला लें। यकीन मानिए यह तिरंगा सलाद खाकर आप इसे भूल नहीं पाएँगे। यह इतना स्वादिष्ट है कि इससे आप रोटी भी खा सकते हैं। पोषक तत्वों से भरपूर इस सलाद में मिनरल्स एवं विटामिन्स के साथ लायकोपीन और केरोटीन्स भी भरपूर हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट्स हैं।

तिरंगा सलाद 2
इसमें थोड़ा-सा बदलाव कर एक नया स्वाद पा सकते हैं। मूली की जगह लंबे-लंबे प्याज और टमाटर की जगह नारंगी गाजर ली जा सकती है। यह तिरंगा सलाद प्याज के गुणों, जिसमें एलिसिन एवं गाजर जिसमें केरोटीन है, से भरपूर है। केरोटीन आंखों के लिए हितकारी है, क्योंकि इससे ही हमारे शरीर में विटामिन ए बनता है। विटामिन ए और आंखों का रिश्ता किसे नहीं मालूम!

आपको कुछ और सब्जियों एवं फलों के नाम बता देते हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट्स से भरपूर है। सब्जियों में कद्दू, पत्तागोभी, धनिया केरोटीन के भंडार हैं, वहीं प्याज एलिसिन, देसी गाजर, काली (वस्तुतः हल्की जामुनी), बालोर व लाल भाजी तथा शलजम एवं चुकन्दर एन्थोसायनिन के खजाने हैं। एन्थोसायनिन के अन्य अच्छे स्रोत हैं जामुन, लाल जाम, काले अंगूर और बेर।
तो अच्छे स्वास्थ्य की खातिर इन रंग-बिरंगे फलों से भी अपनी थाली सजाएं। ये बढ़ती उम्र के खतरों से आपको दूर रखेंगे।
www.webdunia.com se sabhar

मंत्रों से बनती है सेहत, बढ़ता है सौन्दर्य

मंत्र शक्ति का शरीर पर सकारात्मक प्रभाव
सकारात्मक ध्वनियां शरीर के तंत्र पर सकारात्मक प्रभाव छोड़ती हैं जबकि नकारात्मक ध्वनियां शरीर की ऊर्जा तक का ह्रास कर देती हैं।
मंत्र और कुछ नहीं बल्कि सकारात्मक ध्वनियों का समूह है जो विभिन्न शब्दों के संयोग से पैदा होते हैं। दुनिया के सभी धर्मों में मंत्रों के महत्व को स्वीकार किया गया है।
जिस तरह मुस्लिम संप्रदाय में कुरान की आयतों को मंत्रों के रूप में भी स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रयोग किया जाता है उसी तरह ईसाई समाज भी बाईबिल के सूत्र वाक्यों का प्रयोग करते हैं।
मंत्रों का हमारे शरीर और मस्तिष्क पर दो कारणों से गहरा प्रभाव पड़ता है। पहला यह कि ध्वनि की तरंगें समूचे शरीर को प्रभावित करती हैं।
दूसरा यह कि लगातार हो रहे शब्दोच्चार के साथ भावनात्मक ऊर्जा का समग्र प्रभाव हम तक पहुंचता है। मंत्रों से हमारे शरीर का स्वस्थ रहने से सीधा संबंध है।
मंत्रों से निकली ध्वनि शरीर के उन सेलों के संवेगों को ठीक करने में सक्षम है जो किसी कारण अपनी स्वाभाविक गति या लय खो बैठते हैं।
सेलों के अपनी गति से हट जाने से ही हम बीमार होते हैं।
मंत्रों की ध्वनि से हमारे स्थूल और सूक्ष्म शरीर दोनों सकारात्मक रूप से प्रभावित होते हैं।
हमारे शरीर को घेरने वाला रक्षा कवच या 'औरा' पर भी इसका ऐसा ही प्रभाव पड़ता है।
हम जैसे ही कोई शब्द सुनते हैं, उसके प्रति भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया करते हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हम उस शब्द से मानवीय समाज पर पड़ने वाले प्रभाव से परिचित हैं।
मंत्रों से हमें आध्यात्मिक शक्ति ही नहीं मिलती बल्कि सेहत और सौन्दर्य का राज भी इन्हीं मंत्रों में छुपा है।

सेहत और सौन्दर्य के लिए जाना-माना मंत्र है -
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि मे परमं सुखम
रूपम् देहि़ जयम् देहि यशो देहि द्विषो जहि।

www.webdunia.com

सोमवार, 11 जुलाई 2011

फल : कब खाएं, कब ना खाएं

फलों का हमारे जीवन में बेहद महत्व है। सेहत की दृष्टि से तो फल उपयोगी होते ही हैं साथ ही शीघ्र एनर्जी प्राप्त करने के लिए रोगी को भी फलों के सेवन की ही सलाह दी जाती है। लेकिन अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि कौन-सा फल कब खाया जाना चाहिए। आइए जानते हैं फलों के सेवन से संबंधी उपयोगी जानकारी :

संतरा- सुबह और रात को नहीं खाएं, दिन में खाएं। खाना खाने के 1-1 घंटा पहले या बाद में खाएं। पहले लेने से भूख बढ़ती है और बाद में लेने से भोजन पचाने में मदद करता है।
मौसंबी- मौसंबी का सेवन दोपहर में करें। धूप में जाने से कुछ देर पहले या धूप से आने के कुछ देर बाद मौसंबी खाना या जूस पीना अधिक लाभदायक होता है। इससे शरीर में पानी की मात्रा कम नहीं होगी।
अंगूर- अंगूर या अंगूर का जूस भी शरीर में पानी की मात्रा बनाए रखता है। इसका सेवन धूप में जाने से कुछ देर पूर्व या धूप में से लौटने के कुछ देर बाद ही करें, लेकिन अंगूर और भोजन में कुछ देर का अन्तर रखें।
नारियल- वैसे तो नारियल पानी कभी भी पिया जा सकता है, जिन्हें पेट संबंधी परेशानियां हैं, एसिडिटी या अल्सर की समस्या है उनके लिए यह लाभदायक है। कोशिश करें कि नारियल पानी खाली पेट न पिएं।
आम- आम की तासीर गर्म होती है, अतः आम के साथ दूध का प्रयोग करना चाहिए। यदि आम काटकर खाया जा रहा है तो आम के टुकड़ों में शकर और थो़ड़ा-सा दूध मिलाकर पीना फायदेमंद होगा।

उफ, ये मुंह के छाले

शहद में मुलहठी का चूर्ण मिलाकर इसका लेप मुंह के छालों पर करें और लार को मुंह से बाहर टपकने दें। मुंह में छाले होने पर अडूसा के 2-3 पत्तों को चबाकर उनका रस चूसना चाहिए।
कत्था, मुलहठी का चूर्ण और शहद मिलाकर मुंह के छालों पर लगाने चाहिए।
अमलतास की फली मज्जा को धनिये के साथ पीसकर थोड़ा कत्था मिलाकर मुंह में रखने से अथवा केवल गूदे को मुंह में रखने से मुंह के छाले दूर हो जाते हैं।
अमरूद के कोमल पत्तों में कत्था मिलाकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
अनार के 25 ग्राम पत्तों को 400 ग्राम पानी में ओंटाकर चतुर्थांश शेष बचे क्वाथ से कुल्ला करने से मुंह के छाले दूर होते हैं।
सूखे पान के पत्ते का चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को शहद में मिलाकर चाटना चाहिए।
नींबू के रस में शहद मिलाकर इसके कुल्ले करने से मुंह के छाले दूर होते हैं।