शुक्रवार, 28 मई 2010

ये आँखें देखकर...

कुछ शीतल टिप्स आँखों के लिए
'तेरी आँखों के सिवा इस दुनिया में रखा क्या है.... ' खूबसूरत आँखों के लिए जब कोई इस तरह का वर्णन करता है तो दिल बाग-बाग हो उठता है लेकिन यदि इसी तरह के और खूबसूरत कॉम्प्लीमेंट्स आप हमेशा पाना चाहती हैं तो आँखों की इस खूबसूरती को बरकरार रखना आपके लिए बहुत जरूरी हो जाता है।

गर्मियों का मौसम त्वचा के साथ-साथ आँखों पर भी बहुत गहरा प्रभाव डालता है। यही वो मौसम है जब आग उगलता सूरज अपनी तपन से तन को झुलसाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ता। ऐसे में आँखों की सुरक्षा बेहद जरूरी है, आइए जरा कुछ टिप्स पर गौर करें ताकि आपकी आँखें रहें हर वक्त तरोताजा...।
* कभी भी तेज धूप में बाहर न निकलें और यदि निकलना ही पड़ जाए तो धूप का चश्मा लगाना कभी न भूलें।
* धूप के चश्मे खरीदते समय सावधानी अत्यंत आवश्यक है। कभी भी चलताऊ किस्म का चश्मा न खरीदें, क्योंकि इनमें लगने वाला ग्लास घटिया किस्म का होता है और आँखों को नुकसान पहुँचा सकता है।

* इसलिए हमेशा अच्छी कंपनी का बढ़िया चश्मा ही खरीदें। आजकल छोटी फ्रेम वाले चश्मों का अत्यधिक चलन है लेकिन चश्मे खरीदते समय ध्यान रखें कि धूल के कण आपकी आँखों में न जा पाएँ अन्यथा चश्मा पहनने का कोई तुक ही नहीं रह जाएगा।
* यदि आप नजर का चश्मा लगाते हैं तो फोटोक्रोमिक लैंस वाले चश्मे उपयोग में लाएँ, इससे धूप में चलने पर आपकी आँखों को गर्मी से राहत मिलेगी।
* आँखों में खुजली होने पर कभी भी हाथों से आँखें न मलें। हमेशा किसी साफ कपड़े का उपयोग आँखों को सहलाने के लिए करें।
* दिन में तीन-चार बार साफ पानी से आँखों पर छींटें दें।
* यदि गर्मी के कारण आँखें लाल हो रही हैं तो ठंडे पानी से आँखें साफ करके कुछ देर ठंडक में आँखें मूंदकर बैठें।
ये कुछ टिप्स हैं, जिन्हें अपनाकर आप गर्मियों में भी अपनी आँखों को रख सकती हैं तरोताजा और चमकदार। ताकि मिल जाएँ झील सी ठंडक इनमें डूबने वालों को...!

बनी रहे यह सुंदर जोड़ी

जीवन की बगिया महकती रहे
आज के इस दौर में जहाँ पति-पत्नी दोनों कामकाजी हैं, वहाँ मकान को घर बनाने में दोनों का ही अहम योगदान होता है। घर के कामकाज हों या बच्चों की जरूरतें, शॉपिंग हो या रिश्तेदारी निभाना अब पति-पत्नी दोनों की रिस्पॉन्सिबिलिटी है। सच तो यह है ‍कि इस भागदौड़ भरी जिंदगी में यदि आपस में प्रेम, समझदारी, विश्वास न हो तो रोज की मुश्किलों से लड़ना इम्पॉसिबल है। इसलिए हम बता रहे हैं कुछ ऐसे टिप्स जिससे आपके दांपत्य जीवन की बगिया महक उठेगी।

दोषारोपण न करें : कुछ गलतफहमी होने पर एक-दूसरे पर ब्लेम न लगाएँ। स्पष्ट रूप से मामले पर पु‍नर्विचार करें। एक-दूसरे पर हावी न हों बल्कि भावनाओं को समझने का पूरा प्रयास करें। अपने साथी को मानसिक चोट कभी न पहुँचाएँ। दोनों तरफ के परिवारों को बराबर सम्मान दें। माता-पिता, भाई-बहन तो एक सा रिश्ता लिए हुए हैं, इसलिए सम्मान में असमानता क्यों?
झगड़ों से बचें : छोटी-छोटी बातों को नजरअंदाज करें। यदि पति को किसी समय अधिक क्रोध आ रहा है तो बहस न करें। शांत होने पर मामले पर विचार करें। पत्नी के क्रोधित होने पर पति का शांत रहना परिवार के हित में है। एक दूसरे से, परिवार वालों से, सगे संबंधी और मित्रों के साथ मीठा बोलें। कटु वाणी से संबंध खराब होते हैं।

अपेक्षाएँ कम करें - एक दूसरे से कम अपेक्षाएँ रखें। जहाँ अधिक अपेक्षाएँ होती हैं, वहाँ इंसान अपेक्षा पूरी न होने पर खीजता रहता है, जिससे परिवार का वातावरण खराब होता है। समय की माँग के अनुसार पति या पत्नी को अपनी सोच के दायरे को भी बदलना पड़ता है। प‍ारिवारिक, आंतरिक और बाह्य जिम्मेदारियों को मिल बाँटकर निभाएँ, क्योंकि एक पार्टनर सभी जिम्मेदारियों के बोझ को नहीं ढो सकता।
मित्रवत व्यवहार : एक-दूसरे के प्रति दोस्ताना व्यवहार अपनाएँ। एक दूसरे की शारीरिक इच्छाओं के सम्मान के साथ ही अन्य जरूरतों का ध्यान रखेंगे तो भटकाव की स्थिति नहीं आएगी। हर समय 'तुमने यह ठीक नहीं किया', 'तुम यहाँ पर नहीं जाओगे', या 'इतने बजे तक तुम्हें घर पहुँचना ही है।' आदि बेमलतब के अंकुश एक दूसरे पर न लगाएँ।
घर का वातावरण तरोताजा रखने का प्रयास करें। एक-दूसरे की इच्छाओं पर ध्यान दें। बीच-बीच में पति को चाहिए कि बच्चों की सहायता से पत्नी को आराम दें और शॉपिंग पर भेजें। हमेशा एक-दूसरे का महत्व महसूस कराते रहें।
सगे संबंधी या मित्रों की बातों में आकर मन विचलित न करें। ‍यदि किसी एक पार्टनर में कुछ कमी है तो मिलकर उसका सोल्यूशन निकालें और लोगों की बातों को अधिक इम्पोर्टेंस न देकर अपनी परिस्थितियों को समझने का प्रयास करें।

विचार-मंथन

कुत्ता मत कहो, बनकर दिखाओ
बड़ा दहाड़ते थे शेर जैसे
और कुत्ते जैसे बनकर
तलवे चाटने लगे।
- नितिन गडकरी, अध्यक्ष, भारतीय जनता पार्टी

भारतीय राजनीति में मानवीय मूल्यों का तो घनघोर अवमूल्यन हुआ ही है, अब कुत्ते जैसे मनुष्य के सबसे प्यारे दोस्त का भी अवमूल्यन होने लगा है। कौन कुत्ता आज किसी के तलवे चाटता है? इस बंदे ने तो आदमियों को कुत्ते के तलवे चाटते देखा है। कुत्ते आदमी के साथ डाइनिंग टेबिल पर लंच और डिनर करते हैं।
फर्क सिर्फ इतना है कि वे आदमी का खाना भी खाते हैं लेकिन आदमी ने अभी कुत्तों का खाना "पेडिग्री" आदि खाना शुरू नहीं किया है। आदमी कुत्तों का बर्थ डे मनाता है और केक काटता है।
उन्हें साबुन और शैंपू से नहलाता है। उनके बाल सँवारता है। उन्हें घुमाने ले जाता है और अपने बिस्तर तक में उन्हें सुलाता है। भारत में भी कुत्तों के अलग क्रैच या डे केयर सेंटर हैं। उनके अलग सैलून हैं। विदेशों में तो उनके अलग होटल तक होते हैं जहाँ कुत्ते छुट्टियां बिताते हैं और अपना स्ट्रेस दूर करते हैं। वे हम आम आदमियों से श्रेष्ठ हैं और यह श्रेष्ठता उनके अभिजात-व्यवहार में कूट-कूट कर भरी होती है। वे भौंकते हैं, सूँघते हैं जो उनका नितांत मानवीय अभिवादन है।
वे काटते नहीं। और मान लीजिए काट भी लें तो यह कतई जरूरी नहीं कि आदमी को रैबीज रोधी इंजेक्शन लगवाने पड़ें। उनका इतना मानवीकरण हो चुका है कि इंजेक्शन वे खुद अपने लगवाते हैं।
उनके अपने डॉक्टर और अपनी दवाएँ हैं। वे परिवारों को भरा-पूरा बनाते हैं और हमारे परिवार उन्हें अपने बच्चों की तरह पालते हैं। वे कुत्ते को कुत्ता नहीं कहते। मेरे एक रिश्तेदार के यहाँ एक कुतिया थी, वह अपनी मालकिन के कंधे पर चढ़ी रहती थी। रक्षाबंधन पर मेरी रिश्तेदार उस कुतिया से अपने बच्चों को राखी बँधवाती थी। उस कुतिया को कोई कुतिया नहीं कह सकता था। वह मेरी रिश्तेदार की बेटी थी।
इसलिए जब कोई किसी आदमी को कुत्ता कहता है तो उस आदमी की आत्मा जले या न जले, कुत्ते की आत्मा जल उठती है कि हाय आदमी को हमारे बराबर रखने की कोशिश की जा रही है। हाय हमारा अवमूल्यन किया जा रहा है। वे बहुत शालीनता से भौं-भौं करके अपना विरोध प्रगट करते हैं।
मगर इस बीच हुआ यह है कि कोई बारह बरस तक नली में रहने के बाद कुत्ते की पूँछ तो एकदम लोहे के सरिये की तरह सीधी हो गई मगर आदमी ने जिस नली में उसे रखा था, वह टेढ़ी हो गई।
कुत्ते ने आदमी के सामने पूँछ हिलाना बंद कर दिया तो आदमी ने कुत्ते के सामने पूँछ हिलाना शुरू कर दिया। आदमी, कुत्ता, कुत्ता, आदमी। दोनों एकाकार।
शायद इसी भावभूमि में मेरे एक बचपन के दोस्त ने एक दिन मुझसे कहाः "यार तू भी बड़ी कुत्ती चीज है" तो मैं इसका आशय समझ नहीं सका। किसी ने आज तक मुझे चीज तक नहीं कहा और यह मेरा मित्र मुझे "कुत्ती चीज" कह रहा है। मैंने गुस्से में उससे कहा यह क्या मजाक है तो वह हँसने लगा।
बोलाः "मेरा मतलब था एक पहुँचा हुआ, आदमी जो आत्मीय भी हो।" उस दिन मुझे बोध हुआ कि पहले जिस पहुँचे हुए आदमी को संत समझा जाता था, आजकल उस पहुँचे हुए आदमी को "कुत्ती चीज" कहा जाता है।
इसलिए आज शब्दों के अर्थ बदल गए हैं और मुहावरों को भाषा से बेदखल किया जा चुका है क्योंकि वे भ्रामक साबित होते हैं। इसलिए राजनीतिक भाषणों और विमर्श में मुहावरों का प्रयोग अव्वल तो करना ही नहीं चाहिए और वक्त-जरूरत पर करना पड़े तो संभाल कर करना चाहिए।

मिर्च-मसाला

शादीशुदा से शादी कभी नहीं
पिछले दिनों अरशद वारसी और उनकी पत्नी के बीच खटपट के किस्से चर्चाओं में रहे। इस अनबन के पीछे दीया मिर्जा को

जिम्मेदार बताया गया, जिन्होंने अरशद की होम प्रोडक्शन ‘हम तुम और घोस्ट’ में काम किया था। कहा गया कि अरशद और दीया की नजदीकियाँ अरशद की पत्नी मारिया को पसंद नहीं आई।
उधर दीया का कहना है कि वे सपने में भी किसी शादीशुदा पुरुष से अफेयर के बारे में नहीं सोच सकती। अरशद और वे को-स्टार हैं। अच्छे दोस्त हैं। तिल का ताड़ बना दिया गया। अरशद और उनके अफेयर के किस्से चटखारे लेकर सुनाए गए।

आईफा की सुरक्षा के लिए पुलिस
कोलंबों में आईफा समारोह के दौरान कोई अनहोनी न हो इसके लिए सुरक्षा बलों को चौकन्ना कर दिया गया है। लगभग 6000 पुलिसकर्मी इसके लिए तैनात किए जाएँगे। हालाँकि एलटीटीई के साथ युद्ध खत्म हो चुका है पर श्रीलंका की सरकार किसी तरह का जोखिम मोल लेना नहीं चाहती।
3 से 5 जून तक होने वाले इस समारोह में भारत के नामीगिरामी फिल्मी सितारों के साथ-साथ विदेशी सेलिब्रिटी भी शिरकत करने वाले हैं। इन तीनों दिनों में इनकी सुरक्षा के लिए सख्त पहरे लगे रहेंगे।
पुलिस विभाग ने अभी से इसकी तैयारी शुरू कर दी है। कोलंबों के आस-पास की सुरक्षा भी क़ड़ी की जाएगी। वहाँ के कुछ तमिल समुदायों ने सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के आईफा समारोह में नहीं आने की गुजारिश की है। इस कारण सुरक्षाकर्मियों को और ब़ढ़ा दिया गया है।
करीब 39 डीआईजी रैंक के अधिकारियों को आईफा समारोह की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

कैटरीना की ओर से खंडन

पिछले दिनों कुछ अखबारों और टीवी चैनल्स पर बताया गया कि कैटरीना अपने होम प्रोडक्शन की पहली फिल्म में महिला सैनिक की भूमिका निभाने जा रही हैं। जब इस बारे में कैटरीना के प्रवक्ता से पूछा गया तो उन्होंने इसका खंडन करते हुए कहा कि अभी कुछ भी तय नहीं हुआ है और इन खबरों में बिलकुल भी सच्चाई नहीं है।
गौरतलब है कि कुछ महीनों पहले कैटरीना को एक फ्रेंच फिल्म पसंद आई थी और उन्होंने इसे हिंदी में बनाने के अधिकार खरीदे हैं। खबरों में कहा गया कि कैटरीना इस फिल्म के पहले एक ऐसी फिल्म बनाने जा रही हैं जिसमें वे महिला सैनिक के रूप में दिखाई देंगी।
कैटरीना से जुड़े एक सूत्र का कहना है ‘वक्त आने पर कैटरीना अपनी होम प्रोडक्शन की फिल्म के बारे में घोषणा करेंगी। फिलहाल उनकी बात चल रही है। ये सारी बातें सिर्फ अफवाह मात्र हैं।‘

बुधवार, 26 मई 2010

कोल्ड ड्रिंक नुकसानदायक

शीतल पेय का प्रयोग कम करें

गर्मी के मौसम में कोल्ड ड्रिंक सभी को अच्छा लगता है। लेकिन याद रखिए, ज्यादा ठंडा पेय पीना सेहत के लिए नुकसानदायक होता है। गले, दाँत व पाचन क्रिया को अत्यधिक ठंडे पेय बुरी तरह प्रभावित करते है। इनका प्रयोग अवश्य करें, लेकिन कुछ सावधानी के साथ-
* यदि आप कोल्ड ड्रिंक का अत्यधिक सेवन करते हैं तो पहले यह जाँच लें कि आपकी हेल्थ इससे कितनी प्रभावित होती है।
* शक्करयुक्त कोल्ड ड्रिंक को भोजन के दौरान पिएँ। भोजन की उपस्थिति से सोडा का कैविटी बनाने वाला असर मंद पड़ जाता है और दाँत स्वस्थ रहते हैं।

* सोडा वाले पेय को चुस्की ले-लेकर धीरे-धीरे न पिएँ। चुस्कियाँ लेने से दाँत मीठे अम्लीय शर्बत में पूरी तरह नहा जाते हैं और यह अम्ल दाँतों के एनामेल को नुकसान पहुँचाता है, इसलिए शीतल पेय को जल्दी-जल्दी पिएँ।
* सुनिश्चित करें कि आप पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम लेते हैं। शीतल पेय न सिर्फ आपके भोजन में मौजूद कैल्शियम को बर्बाद करते हैं, बल्कि आपके शरीर में पहले से मौजूद कैल्शियम को भी सोख लेते हैं। कैल्शियम के सप्लीमेंट लेने से ही इस नुकसान की भरपाई होती है।

प्यार की विचित्रता

नहीं, यह प्यार नहीं कुछ और है....

हेलो दोस्तो! हम आए दिन एक न एक विचित्र घटना सुनते हैं और चकित होते रहते हैं। किसी हैरतअंगेज घटना के बाद ऐसा लगता है मानो अब इससे ज्यादा हैरानी वाली खबर हमें नहीं मिलेगी पर फिर किसी अजूबी खबर से हम ठगे से रह जाते हैं। आखिरकार हार मानकर हम यह स्वीकार कर लेते हैं कि इस दुनिया में कुछ भी संभव है।
कौन जाने कल ऐसी कोई साउंड मशीन बन जाए जिसमें वर्ष, महीना, दिन, समय नियत कर देने पर उस समय की बातचीत वह रिकॉर्ड करके हमें सुना दे। तब हम सुन पाएँगे कि शाहजहाँ और मुमताज महल ने आपस में क्या बातें की थीं। शायद एक दिन हम बिंदु के आकार में तब्दील हो जाएँ और सूर्य की किरणें हमें एक देश से दूसरे में पलक झपकते पहुँचा दे। सच तो यह है कि चमत्कार को सलाम कर हम सोचना ही छोड़ देते हैं।
इसी प्रकार भावनाओं के कितने ही रूप हमारे सामने इस तरह उजागर होते हैं कि हमें उस पर यकीन नहीं होता है। हम हैरान-परेशान यही सोचते रह जाते हैं कि आखिर इसे अब किस श्रेणी में रखा जाए। ऐसी ही एक विचित्र भावना का उत्तर खोज रहे हैं सिद्धांत (बदला हुआ नाम)।


सिद्धांत के अनुसार वह एक लड़की से बेहद प्यार करते हैं। दोनों ही एक-दूसरे को तकरीबन 10 वर्षों से प्यार करते हैं। उस लड़की की शादी कहीं और हो गई है। उसके बावजूद वह उसे रोजाना फोन करती है। उसके पति को भी इस बात का पता है। अब सिद्धांत को लगता है कि वह इस प्रेम प्रसंग को हमेशा बनाए रखने के लिए एक ठोस रूप दे दें। उनका मतलब है दोनों व्यक्तियों को वह लड़की समान रूप से प्यार करे।
सिद्धांत जी, यह समझ में नहीं आया कि जब दस सालों से आप लोगों का प्यार था तब आप लोगों ने शादी क्यों नहीं की? क्या इस दिन का इंतजार था कि कब आपकी दोस्त की शादी हो और फिर आप दोनों एक-दूसरे के लिए तड़पें और फिर शादी करें? शादी के बाद किसी से किसी की दोस्ती या प्रेम हो जाए यह बात तो समझ में आती है पर शादी से पहले से जो लोग प्रेम में हैं वह किसी और से शादी कर फिर पुराने प्रेम को अपनाने की सोचें यह विचित्र है। आप दोनों पहले भी एक थे फिर एक हो जाएँगे पर उस तीसरे व्यक्ति को बीच में क्यों घसीटा गया, इसका आपके पास जवाब नहीं है।
आप इसे दोस्ती भर सीमित रखें तो बेहतर होगा। पारिवारिक संबंध रखने में भी कोई हर्ज नहीं है पर उससे ज्यादा सोचना आप तीनों के लिए अन्यायपूर्ण है। इसका खुशनुमा नतीजा नहीं निकलेगा। इतनी लंबी दोस्ती और इतनी समझदारी भरे प्रेम संबंध के बाद भी अगर आपकी दोस्त ने कहीं और शादी कर ली है तो आप आगे उस पर कितना भरोसा कर सकते हैं। यह आपको विचार करना पड़ेगा। वह आपको एक बार फिर कभी भी छोड़ सकती है। इस रिश्ते में आप उसके रहमोकरम पर होंगे। आपकी सामाजिक और कानूनी हैसियत कुछ भी नहीं होगी।
उसका मन टटोलने के लिए भी आपको कुछ दिनों के लिए इस रिश्ते से दूर हो जाना चाहिए। उसके बाद ही आप अंदाजा लगा पाएँगे कि वह अपनी घर गृहस्थी में लीन हो जाती है या आपके प्रति कोई जिम्मेदारी महसूस करती है। बेहतर तो यही है कि आप भी शादी कर लें ताकि आपकी भी अपनी जिंदगी हो।
यूँ तो हर व्यक्ति को हक है कि वह अपने मन के भीतर किसी की भी छवि बिठाए रखे। विचित्र मोड़ या विचित्र पेंच में ही किसी व्यक्ति को संतुष्टि मिले पर सुकून के लिए एक न एक दिन आपको एक फैसला लेना ही पड़ता है।
इसी प्रकार की मिलती-जुलती समस्या है जसपाल शेट्टी की। वह एक चैनल में काम करते हैं। उनकी एक दोस्त है जो उसे तो फोन करने से मना करती है पर खुद फोन करती रहती है। उसकी खोज-खबर लेती है पर कोई दूसरा इससे संबंधित बात करता है तो रोक देती है। मजे की बात यह है कि जसपाल जी के प्रेम की भावना की जानकारी भी उसे है।
जसपाल जी, आप इस बात का इंतजार क्यों कर रहे हैं कि वह आपके प्यार को पूरी तरह मना कर दे या स्वीकार करे। उसके पूरे रवैए को देखकर आप भी तो कोई निर्णय ले सकते हैं। आपकी दोस्त इस बात का इंतजार कर रही है कि कोई अन्य मनचाहा रिश्ता मिले तो वह आपको दोस्ती के खाते में ही महफूज रहने दे और यदि कोई और नहीं मिला तो आप हैं ही। बेहतर है आप दूरी बना लें ताकि वह किसी फैसले पर पहुँच सके। आप उसमें अपनी रुचि न दिखाएँ और अपने कॅरियर पर ध्यान दें।

नन्ही ज्योत्सना ने रचा इतिहास

कठोर परंपरा का भीना समापन

भारत के सर्वाधिक शिक्षित राज्य का दर्जा पा चुके केरल का नाम जब कहीं सुनने में आता है, तो नारियल के बड़े-बड़े पेड़, विभिन्न मसालों की सुगंध से महकते बागान, दहलीजों पर सजी पवित्र रंगोली, घर की स्त्रियों के लंबे खूबसूरत बालों पर खिलती श्वेत वेणी, हर माथे पर सजा भस्म, और मंदिरों में गूँजते सस्वर मंत्रोच्चार एक साथ थिरक उठते हैं।
केरल को हमेशा से देवभूमि कहा जाता है। कहते है भगवान खुद इस धरती पर विराजते हैं। हिन्दू धार्मिक अनुष्ठानों का जैसा पुरातन स्वरूप यहाँ देखने को मिलता है वैसा अन्यत्र कहीं नहीं है। दक्षिण भारत के हिन्दू कर्म-कांड बहुत से लोगों की दृष्टि में कट्टर माने जाते हैं। यहाँ के मंदिरों की नक्काशीदार भव्यता प्राचीन वैभव का आभास कराती है। यहाँ की पूजन विधि अपनी विशिष्टता के कारण अकसर कौतुहूल का विषय होती है।
रीति-रिवाजों और पूजा-अनुष्ठानों को लेकर भी केरल की अपनी विशिष्ट पहचान है। इसी केरल के त्रिशुर में सदियों पुरानी परिपाटी को ज्योत्सना नामक मात्र 12 वर्षीय कन्या ने गरिमामयी ढंग से तोड़ दिया। ज्योत्सना ने त्रिशुर के बरसों पुराने पेनकिन्नीकव्वु भद्रकाली मंदिर में देवी प्रतिमा की पूरे विधि-विधान से प्राण-प्रतिष्ठा की। यूँ तो किसी बच्ची का इस तरह मूर्ति स्थापना का कार्य कोई चमत्कार नहीं लेकिन ज्योत्सना के मामले में यह किसी चमत्कार से कम भी नहीं।

दरअसल, त्रिशुर के इस पुराने पेनकिन्नीकव्वु भद्रकाली मंदिर में प्राचीन नियमानुसार कुछ नंबुदिरी(एक विशेष जाति) समाज के पुरुष ही देव-प्रतिमा की प्रतिस्थापना कर सकते हैं। यहाँ तक कि इसी परंपरा के चलते मंदिर में मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा तो दूर महिलाओं के प्रवेश तक की अनुमति नहीं है। इस कट्टर परंपरा के पीछे महिलाओं से संबंधित कई प्रकार की नकारात्मक अवधारणाएँ हैं। लेकिन तमाम प्रश्नों और रिवाजों के बीच जब नन्ही-सी ज्योत्सना ने धाराप्रवाह मंत्रोच्चार के साथ देवी पूजन, दीप आराधना और 'प्रतिष्ठा कर्मम' संपन्न किया तब समूचे समाज ने उसका करतल ध्वनि से अभिनंदन किया।

मुद्दा यह नहीं है कि एक नन्ही बालिका पुरुष-प्रधान समाज में पुरुषों की मानी जानी वाली विरासत को कैसे चुनौती देती है, सवाल यह भी नहीं है कि बच्ची परिवार और समाज के सहयोग से इस कार्य को कैसे बखूबी निभा लेती है, सवाल यह है कि आने वाली नारियाँ बहुत कम उम्र में इस तरह की सोच को अंजाम दे पा रही है। खेलने और खाने की अल्हड़ अवस्था में वह स्वयं के निर्णय ले पा रही है। निर्भरता की आयु में आत्मनिर्भरता की गाथाएँ रच रही है।

इस नन्ही-सी कन्या ने कीर्तिमान को रचने से पहले लगातार दो वर्ष तक सारे पारंपरिक अनुष्ठान और संस्कारों को विधिपूर्वक अपने पिता से सीखा। त्रिशुर के नंबू‍दिरी ब्राह्मण थैक्किन्यदात पद्मनाभन और अर्चना अंतरजनम की इस लाड़ली का बचपन से ही पूजा-पाठ की ओर गहरा रूझान दिखाई देने लगा था।

जैसे-जैसे वह बड़ी होती गई, मंत्र, श्लोक आरती,स्तोत्र, ऋचाएँ उसे कंठस्थ होती गई। ज्योत्सना, केरल के मान्यता प्राप्त पांडित्य परंपरा थारानाल्लुर से ताल्लुक रखती है। केरल में थारानाल्लुर और थाजामोन दो ऐसी ब्राह्मण धाराएँ हैं जो पूजन, विधि-विधान, अनुष्ठान और संस्कारों के विशेषज्ञ माने जाते हैं। यहाँ तक कि इन दो समाज के अतिरिक्त किसी और समाज का कोई व्यक्ति पुजारी नहीं हो सकता। माना जाता है कि भगवान परशुराम जी द्वारा ये दोनों कुल केरल लाए गए हैं।

कट्टर जातिवाद के इस माहौल में भी जब परंपरा की बात आती है तो सिर्फ दो जातियाँ शेष रह जाती है। वह दो जातियाँ जो समूची सृष्टि में व्याप्त है। एक महिला और दूसरी पुरुष। यही कारण है सदियों के चले आ रहे इसी भेदभाव की प्रतिछाया बना केरल का मंदिर, जहाँ देवी के मंदिर में स्त्रियों का प्रवेश निषेध है। देवी जो स्वयं स्त्री शक्ति का प्रतीक है और एक स्त्री जो स्वयं देवीस्वरूपा है, एक दूजे के लिए अस्पृश्य कैसे हो सकती है? प्रकृति ने जिसे जन्म देने जैसे पवित्र कर्म और विलक्षण गुण से नवाजा है, उसी की निरंतर प्रक्रिया उसके लिए अछूत होने का सबब कैसे बन जाती है?

बहरहाल, भद्रकाली पेनकिन्नीकव्वु की ज्योत्सना द्वारा स्थापित प्रतिमा मंदिर की दूसरी दैवीय प्रतिमा है। मंदिर के प्रमुख देवता भगवान विष्णु हैं। जब बीते रविवार को ज्योत्सना ने एक भी शब्द, मात्रा और ध्वनि की त्रुटि किए बिना निर्विघ्न पूजन संपन्न किया तो भक्तजनों के साथ उसके उन नन्हे सहपाठियों के चेहरे भी चमक उठें जो उस वक्त मंदिर में अपनी सखी का उत्साह बढ़ाने के लिए मौजूद थे।

ज्योत्सना ने किसी पारंपरिक पंडित-पुजारी की तरह ही मंदिर के गर्भगृह का द्वार बंद किया और दीप आराधना में प्रशस्ति वाचन किया,शक्ति का आह्वान किया तो श्रद्धालुओं के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। ज्योत्सना पूरे आत्मविश्वास के साथ आनुष्ठानिक रीतियों को एक के बाद एक संपन्न करती रही। उसने मुस्कुराते हुए 'प्रसादम' का वितरण भी ऐसे किया जैसे वह सालों से यही कार्य करती आ रही हो।

इस विधान के पश्चात यकीनन माँ दुर्गा भी अपनी आराधना पर सच्चे दिल से मुस्कुरा उठीं होंगी। अपना ही दिव्य प्रतिबिंब ज्योत्सना में निहार धन्य हो उठीं होंगी। धूप और गुगल के सुगंधित वातावरण में यह पवित्र भाव भी महक उठा होगा कि देवी की पूजा 'देवी' को अधिकार देने से सफल होगी, देवी को वंचित करने से नहीं।

ज्योत्सना के पिता टी. पद्मनाभन ने सहज भाव से बताया कि जब ज्योत्सना ने इस तरह मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का निर्णय लिया तो किसी भी प्रकार का विरोध का सवाल ही खड़ा नहीं हुआ, क्योंकि ऐसा किसी शास्त्र में नहीं लिखा है कि मात्र पुरुष ही प्रतिमा में प्राण-प्रतिष्ठा कर सकते हैं महिलाएँ नहीं।'

पवित्र कुल की यह विदुषी कारंचिरा के सेंट जेवियर स्कूल की छात्रा है। ज्योत्सना के शिक्षक कहते हैं, वह पढ़ाई में भी अव्वल है। खुद ज्योत्सना कहती है, यह सच है कि मेरा अपनी प्राचीन धार्मिक परंपराओं को आगे बढ़ाने का सपना है लेकिन इसके लिए मैंने पढ़ाई से समझौता नहीं किया है ना ही करूँगी। पढ़ाई के साथ-साथ शास्त्रों को पढ़ने, मंत्रों और विधानों को सीखने में मेरी व्यक्तिगत रूचि है।

इस अनूठे क्रांतिकारी कदम से केरल के कट्टरपंथियों में यह बहस शुरू हो गई है कि कहीं इस घटनाक्रम के साथ ही शबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश का मुद्दा ना सिर उठा लें, या फिर पिछड़े वर्ग से पुजारियों की नियुक्ति का ही सवाल ना उठ खड़ा हो। इस तरह की सोच को सदियों से नहीं रोका जा सका है लेकिन ज्योत्सना जैसे उदाहरण इस सोच के समक्ष छोटा किन्तु ठोस जवाब बनकर उभरते हैं। इन उदाहरणों से परिवर्तन का बादल तो नहीं उमड़ेगा लेकिन सार्थकता की कहीं ना कहीं, कोई ना कोई छोटी-सी बूँद तो अवश्य ही पड़ जाएगी।

फिलहाल, इस नाजुक सी थांथरी (पुजारिन) का ईश्वर के प्रति समर्पण स्वागत योग्य है।

मिर्च-मसाला

कैटरीना कैफ : मोबाइल पर सबसे ज्यादा सर्च

इंटरनेट पर सबसे ज्यादा सर्च की जाने वाली सैलिब्रिटी के बाद कैटरीना कैफ ने मोबाइल पर भी अपना दबदबा कायम रखा है। मोबाइल फोन पर जिस सैलिब्रिटी को सबसे ज्यादा सर्च किया जाता है, वो हैं कैटरीना कैफ।
एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है। खास बात यह है कि कैटरीना ने शाहरुख खान, सलमान खान, आमिर खान, ऐश्वर्या राय और एंजेलिना जोली जैसी सेलिब्रिटीज को भी पीछे छोड़ दिया। लोकप्रियता के मामले में कैटरीना देश और विदेश दोनों जगह आगे हैं।
यह सर्वेक्षण एक लाख बीस हजार मोबाइल यूजर्स के बीच किया गया और कैटरीना ने सर्वोच्च स्थान हासिल किया। वे हर उम्र और वर्ग के बीच लोकप्रिय हैं।
बॉलीवुड के एक प्रसिद्ध निर्माता का कहना है कि कैटरीना कैफ एकमात्र ऐसी नायिका हैं जो अपने दम पर सिनेमाघर में भीड़ खींच लेती हैं।

शर्लिन की फिटनेस डीवीडी : दोहरे फायदे

शर्लिन चोपड़ा की फिटनेस डीवीडी देखने के दो फायदे हैं। एक तो हॉट शर्लिन आँखों के सामने रहेंगी और फिट रहने के कुछ नुस्खे भी हाथ लग जाएँगे।
इस डीवीडी में शर्लिन अपने पर्सनल फिटनेस रूटीन के बारे में बताएँगी जिनमें वेट ट्रेनिंग, हॉट योगा, जिमिंग, फंक्शनल ट्रेनिंग और मार्शल आर्ट भी शामिल हैं।
आखिर यह सब करने की शर्लिन को कहाँ से प्रेरणा मिली? पूछने पर वे कहती हैं ‘जेन फोंडा इसकी वजह हैं।' अपनी बात आगे बढ़ाते हुए वे बताती हैं 'मैंने पाया कि ज्यादातर एक्सरसाइज डीवीडी देखने में बड़ी बोरिंग लगती हैं। इसलिए मैंने विज्युअल अपील पर ज्यादा ध्यान दिया। मेरी बॉडी देख मेरे प्रशंसकों को अच्छा लगेगा। साथ ही मैंने फिटनेस के बारे में सभी महत्वपूर्ण बातों का भी ध्यान इस डीवीडी में रखा है।‘
उम्मीद की जानी चाहिए कि शर्लिन के प्रशंसक डीवीडी देखते समय उन्हें निहारने के अलावा फिट रहने के उपायों पर भी ध्यान देंगे।

राजनीति’ मनोरंजक फिल्म

कैटरीना कैफ का कहना है कि उनकी 4 जून को रिलीज होने वाली ‘राजनीति’ एक मनोरंजक फिल्म है। इस फिल्म में गंभीर बातें की गई हैं, लेकिन मनोरंजन का खयाल भी रखा गया है ताकि फिल्म रूखी ना लगे।
कैटरीना बेसब्री से इस फिल्म का इंतजार कर रही हैं क्योंकि पहली बार उन्होंने ऐसा रोल किया है जिसमें ग्लैमर बहुत कम है। कैटरीना के मुताबिक उन्होंने यह रोल कुछ साबित करने के लिए नहीं स्वीकारा बल्कि उन्हें ‘राजनीति’ की कहानी ने यह फिल्म करने के लिए मजबूर किया।
कैटरीना लीक से हटकर फिल्में करना चाहती हैं, लेकिन आर्ट फिल्मों में उनकी रूचि नहीं है। कैटरीना के मुताबिक ऐसी फिल्मों को करने से क्या फायदा जिन्हें देखने के लिए दर्शक नहीं आते हैं।

दीपिका को नम्बर गेम में रूचि नहीं!

बॉलीवुड की टॉप एक्ट्रेस लिस्ट में प्रियंका चोपड़ा, करीना कपूर और कैटरीना कैफ के साथ दीपिका पादुकोण का नाम भी शामिल किया जाता है। हालाँकि इसे जल्दबाजी कहना उचित होगा, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि दीपिका में नंबर वन एक्ट्रेस बनने की संभावना है।
खूबसूरत होने के साथ-साथ दीपिका प्रतिभाशाली अभिनेत्री भी हैं। बॉलीवुड के तमाब बड़े बैनर्स, बड़े डायरेक्टर्स और बड़े हीरो उनके साथ काम करना चाहते हैं।
नंबर वन की दौड़ में शामिल दीपिका का कहना है कि उन्हें इस रेस में कतई रूचि नहीं है। उनके मुताबिक हर शुक्रवार स्थितियाँ बदल जाती हैं और लोग अपने हिसाब से समीकरण बना लेते हैं। एक फिल्म हिट होते ही आपको पलकों पर बैठा लिया जाता है और यदि फिल्म फ्लॉप हो गई तो धड़ाम से नीचे गिरा दिया जाता है।
दीपिका भले ही इस तरह की बातें कर रही हैं, लेकिन हर अभिनेत्री का ख्वाब होता है कि वह नंबर वन कहलाए। उन्हें बॉक्स ऑफिस क्वीन कहा जाए। दूसरी अभिनेत्रियों के लिए वह ईर्ष्या का कारण बने।
इस समय दीपिका के आगे कुछ हीरोइंस हैं, लेकिन दीपिका कभी भी आगे निकल सकती हैं। खेलें हम जी जान से, लफंगे परिंद और ब्रेक के बाद नामक कुछ ऐसी फिल्में हैं, जो दीपिका को नंबर वन के नजदीक ले जा सकती हैं।

सोमवार, 24 मई 2010

नन्ही दुनिया

छोटी चुहिया
एक शहर में एक छोटा-सा परिवार रहता था। इस परिवार में एक छोटी चुहिया भी थी। दिन बीतते गए और देखते ही देखते यह छोटी चुहिया सयानी हो गई। इतनी बड़ी कि उसके माता-पिता को उसके ब्याह की चिंता हुई।

चुहिया का कहना था कि वह अनपढ़ नहीं पढ़ी-लिखी है और इसलिए दुनिया के सर्वश्रेष्ठ वर से ब्याह रचाएगी। माता-पिता के सिर पर अच्छा वर ढूँढने की जिम्मेदारी आन पड़ी। वे दोनों दिनभर सोचने लगे। सर्वश्रेष्ठ वर की तलाश में अखबारों और कम्प्यूटर पर मेट्रीमोनियल विज्ञापन देखने लगे। उन्होंने अखबार में- रंग गोरा, कद ५ फुट ७ इंच, सॉफ्टवेअर इंजीनियर के सैकड़ों विज्ञापन देखे, पर उन्हें कोई भी जँचा नहीं।

फिर एक दिन उन्हें खयाल आया कि सूरज पूरी दुनिया में रोशनी करता है तो उससे अच्छा वर कहाँ मिलेगा। माँ चुहिया ने पिता चूहे से कहा कि और सूरज तो प्रकाश बाँटते हुए जात-पाँत के चक्कर में भी नहीं पड़ता है इसलिए उससे योग्य वर और कोई हो ही नहीं सकता।

चुहिया के माता-पिता सूरज के पास जा पहुँचे। उन्होंने सूरज से कहा कि हमारी बेटी सयानी हो गई है और हम उसके लिए दुनिया का सबसे योग्य वर आपको ही मानते हैं। सूरज ने कहा- यह आपका बड़प्पन है पर मैं दुनिया का सबसे योग्य वर नहीं हूँ, क्योंकि मुझसे ज्यादा योग्य तो बादल हैं। वैसे भी जब बादल मुझ पर छा जाते हैं तो मैं उजाला तक नहीं कर पाता हूँ। बेहतर होगा आप अपनी बेटी के लिए बादल से बात करें।

चुहिया के माता-पिता यह सुनकर बादल के पास गए। बादल ने उन दोनों का स्वागत किया। चुहिया की माँ बोली- हमने सूरज से सुना है कि आप सर्वयोग्य वर हैं। हम अपनी बेटी के लिए ऐसे ही वर की तलाश कर रहे हैं। कृपा करके हमारी बेटी को अपनी अर्द्धांगिनी बना लीजिए। यह सुनकर बादल बोला - माफ कीजिए पर मुझसे श्रेष्ठ तो पवन है, जो मुझे उड़ाकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाता है।

चुहिया के परेशान माता-पिता पवन के पास पहुँचे। पवन - आप मुझे अपनी बेटी के योग्य समझते हैं यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है, पर मुझसे भी श्रेष्ठ कोई है। चुहिया के माता-पिता-कौन? पहाड़। जब मैं एक जगह से दूसरी जगह जाता हूँ तो पहाड़ मुझे रोक लेते हैं। इसलिए सबसे योग्य तो पहाड़ है। आप चाहें पहाड़ से अपनी बेटी का रिश्ता कर सकते हैं।

चुहिया के माता-पिता पहाड़ के पास पहुँचे। उन्होंने पहाड़ से कहा - आप हमारी बिटिया के लिए सबसे योग्य वर हैं। आप हमारी बेटी को अपना जीवनसाथी बना लीजिए। पहाड़ ने बड़े ही धैर्य से जवाब दिया - माननीय आप दोनों के सम्मान का मैं आभारी हूँ, पर मैं सबसे योग्य वर नहीं हूँ। मेरे लंबे-चौड़े शरीर में छोटे-से चूहे छेद कर सकते हैं इसलिए मुझसे योग्य वर तो चूहों में ही आपको मिल सकेगा।

इसके बाद चुहिया के माता-पिता खुश होकर लौट आए। रास्ते में वे एक-दूसरे से बात करते रहे कि हमें पता ही नहीं था कि सबसे योग्य वर इतनी आसानी से अपने आसपास ही मिल जाएगा। कुछ दिनों बाद उन्होंने एक योग्य चूहा तलाश किया और उससे अपनी बेटी का ब्याह कर दिया। ब्याह में पूरे शहर के चूहों को बुलाया गया और सबने खूब छककर भोजन किया। माता-पिता बहुत खुश थे कि उनकी बेटी का विवाह सबसे योग्य वर के साथ हो रहा है।
(यह एक जापानी लोककथा है।)

विवेकानंद की श्रीरामकृष्ण से पहली भेंट
दक्षिणेश्वर में हुई श्रीरामकृष्ण तथा नरेंद्र के बीच पहली भेंट अत्यंत महत्वपूर्ण थी। श्रीरामकृष्ण ने क्षणभर में ही अपने भावी संदेशवाहक को पहचान लिया। नरेंद्रनाथ अपने साथ दक्षिणेश्वर को आए अन्य नवयुवकों से बिल्कुल भिन्न थे।

उनका अपने कपड़ों तथा बाह्य सज्जा की ओर जरा भी ध्यान न था। उनकी आँखें प्रभावशाली तथा अंशत: अंतर्मुखी थीं, जो उनके ध्यानतन्मयता की द्योतक थीं। उन्होंने पहले के समान ही अपने हृदय की पूर्ण भावुकता के साथ कुछ भजन गाए।

उनके पहले भजन का भावार्थ निम्नलि‍खित था -

मन! चल घर लौट चलें!
इस संसार रूपी विदेश में
विदेशी का वेश धारण किये
तू वृथा क्यों भटक रहा है?
सौंदर्य, रूप, रस, गंध, स्पर्श - इंद्रियों के ये पाँच विषय
तथा आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी ये पंचभूत
इनमें से कोई भी तेरा अपना नहीं, सभी पराये हैं।
तू क्यों व्यर्थ ही पराये प्रेम में पड़कर
अपने प्रियतम को भूला जा रहा है?
रे मन! तू सदा सत्य के पथ पर बढ़े जाना,
प्रेम का दीप जलाकर अपना पथ आलोकित कर लेना,
साथ में सम्बल के रूप में
भक्ति रूपी धन को खूब सहेजकर ले जाना!
राह में लोभ मोह आदि डाकू बसते हैं,
जो मौका पाकर पथिकों का सर्वस्व लूट लेते हैं,
इसलिए तू अपने साथ
शम और दम रूपी दो पहरेदारभी लेते जाना।
मार्ग में साधुसंग रूपी धर्मशाला पड़ती है,
थक जाने पर उसमें विश्राम कर लेना,
यदि तू कहीं पथ भूल जाए,
तो इस आश्रम के निवासी तेरा मार्गदर्शन करेंगे।
पथ में यदि कहीं कोई भय का कारण दिख पड़े
तो पूरे हृदय से राजा की दुहाई देना
क्योंकि उस पथ पर राजा का बड़ा दबदबा है,
यहाँ तक कि यम भी उनसे भय खाते हैं।

गाना समाप्त हो जाने पर श्रीरामकृष्ण ने सहसा नरेंद्र का हाथ पकड़ लिया और उन्हें उत्तरी बरामदे में ले गए। उनके गालों से होकर आँसुओं की धार बहती देखकर नरेंद्र के विस्मय की सीमा न रही। श्रीरामकृष्ण कहने लगे - 'अहा! तू इतने दिनों बाद आया! तू बड़ा निर्मम है, इसलिए तो इतनी प्रतीक्षा करवाई।

विषयी लोगों की व्यर्थ बकवास सुनते-सुनते मेरे कान झुलस गए हैं। दिल की बातें किसी को न कह पाने के कारण कितने दिनों से मेरा पेट फूल रहा है! फिर हाथ जोड़ते हुए बोले - 'मैं जानता हूँ प्रभु, आप ही वे पुरातन ‍ऋषि, नररूपी नारायण हैं, जीवों की दुर्गति नाश करने को आपने पुन: शरीर धारण किया है।' बुद्धिवानी नरेन ने इन वाक्यों को एक उन्मादी का बकवास समझा। फिर श्रीरामकृष्ण ने अपने कमरे से कुछ मिठाइयाँ लाकर उन्हें अपने हाथों से खिलाने पर वे और भी विस्मित हुए। परंतु ठाकुर ने उनसे पुन: दक्षिणेश्वर आने का वचन लेकर ही छोड़ा।

पुन: कमरे में लौटने के बाद नरेन ने उनसे पूछा - 'महाराज, क्या आपने ईश्वर को देखा है?' द्विधाहीन उत्तर मिला - 'हाँ, मैंने ईश्वर का दर्शन किया है। तुम लोगों को जैसे देख रहा हूँ, ठीक वैसे ही बल्कि और भी स्पष्ट रूप से।

ईश्वर को देखा जा सकता है, उनसे बातें की जा सकती हैं, परंतु उन्हें चाहता ही कौन है? लोग पत्नी-बच्चों के लिए, धन-दौलत के लिए घड़ों आँसू बहाते हैं, परंतु ईश्वर के दर्शन नहीं हुए इस कारण कौन रोता है? यदि कोई उन्हें हृदय से पुकारे तो वे अवश्य ही दर्शन देंगे।'

नरेंद्र तो अवाक् रह गए। वे जीवन में प्रथम बार एक ऐसे व्यक्ति के सम्मुखीन हुए थे जो ईश्वरानुभूति का दावा कर सकते थे। वस्तुत: वे जीवन में प्रथम बार सुन रहे थे कि ईश्वर का दर्शन संभव है। उन्हें ऐसा लगा कि श्रीरामकृष्ण अपनी आंतरिक अनुभूतियों की गहराई से बोल रहे हैं।

उनकी बातों पर अविश्वास नहीं किया जा सकता। तथापि इन बातों के साथ अभी थोड़ी ही देर पूर्व देखे हुए उनके विचित्र व्यवहार का सामंजस्य न कर सके। फिर दूसरों के सामने श्रीरामकृष्ण का सामान्य व्यवहार भी नरेंद्र के लिए एक बड़ी पहेली थी।

उस दिन वह युवक किंकतर्व्यविमूढ़ होकर घर लौटा, तथापि उसके अंतर में शांति विराज रही थी।

श्रीरामकृष्ण के पास द्वितीय बार आने पर नरेंद्र को और भी विचित्र अनुभव हुए। उनके आगमन के दो-चार मिनट बाद ही वे उनकी ओर बढ़ने लगे तथा अस्पष्ट स्वर में कुछ कहते हुए उनकी ओर देखने लगे, फिर सहसा अपना दाहिना पैर उनके शरीर पर रख दिया। इस स्पर्श के साथ ही नरेंद्र ने खुली आँखों से देखा कि कमरे की दीवारें, मंदिर का उद्यान और यहाँ तक कि पूरा विश्व ब्रह्मांड ही घूमते हुए कहीं विलीन होने लगा। उनका अपना 'अहं' भाव भी शून्य में ‍लय होने लगा। उन्हें ऐसा प्रतीत होने लगा कि मृत्यु आसन्न है। आतंकित होकर वे चिल्ला उठे - 'अजी, आपने मेरा यह क्या कर दिया? घर में माँ-बाप, भाई-बहन जो हैं!' श्रीरामकृष्ण इस पर खिलखिलाकर हँस पड़े और नरेन का सीना स्पर्श कर उनका मन सामान्य भूमि पर लाते हुए बोले - 'अच्छा, तो अभी रहने दे। समय आने पर सब होगा।'

नरेन बिल्कुल ही परेशान होकर सोचने लगे कि हो न हो इन्होंने अवश्य ही मेरे ऊपर सम्मोहन विद्या का प्रयोग किया है। परंतु ऐसा भला संभव ही कैसे हो सकता है! क्योंकि नरेन को अपनी प्रबल इच्छाशक्ति का बड़ा अभिमान था। उन्हें स्वयं पर ग्लानि भी हुई कि मैं एक ऐसे उन्मादी व्यक्ति के प्रभाव से अपने को बचा न सका। तथापि वे रामकृष्ण के प्रति आं‍तरिक आकर्षण का अनुभव करने लगे थे।

तीसरी बार आने पर नरेन ने यथासंभव सावधान रहने का प्रयास किया, परंतु इस बार उनकी हालत काफी कुछ पूर्ववत ही हुई। श्रीरामकृष्ण नरेन को साथ लेकर पड़ोस के एक उद्यान में टहलने चले गए और भाव समाधि की अवस्था में उन्हें स्पर्श किया। नरेन पूर्वरूप से अभिभूत होकर बाह्यचेतना खो बैठे।

इस घटना का उल्लेख करते हुए बाद में श्रीरामकृष्ण ने बताया ‍था कि उस दिन नरेन को अचेतन अवस्‍था में ले जाकर मैंने उसके पूर्व जीवन के बारे में अनेक बातें, जगत में आने का उसका उद्देश्य तथा जगत में उसके निवास की अवधि आदि पूछ लिया था। नरेन के उत्तर से उनके पूर्व के विचारों की ही पुष्टि हुई थी। श्रीरामकृष्ण ने अपने दूसरे शिष्यों को बताया था कि नरेन अपने जन्म के पहले से ही पूर्णता की उपलब्धि कर चुका है, वह ध्यानसिद्ध है ;

और जिस दिन उसे अपने वास्तविक स्वरूप का बोध हो जाएगा, उस दिन वह योगमार्ग से स्वेच्छापूर्वक देह त्याग देगा। बहुधा वे कहते कि नरेन ब्रह्मलोक के निवासी सप्तऋषियों में अन्यतम है।

एक दिन जब श्रीरामकृष्ण समाधिमग्न हुए तो उनका मन ऊपर ही ऊपर उठता चला गया। चंद्र, सूर्य एवं नक्षत्रखचित इस स्थूल जगत को पार करता हुआ वह क्रमश: विचारों के सूक्ष्म जगत में प्रविष्ट हुआ। धीरे-धीरे देवी देवताओं की भावघन मूर्तियाँ भी पीछे छूटती गईं। फिर उनके मन ने नामरूपात्मक ब्रह्माण्ड की सीमा पारकर, अंतत: अखंड के राज्य में प्रवेश किया।

श्रीरामकृष्ण ने देखा वहाँ सात दिव्य ऋषि बैठे गहन ध्यान में डूबे हुए हैं। ये ऋषि ज्ञान और पवित्रता में देवी-देवताओं से भी आगे पहुँचे हुए प्रतीत हो रहे थे। श्रीरामकृष्ण का मन उनकी इस अपूर्व आध्यात्मिकता पर विस्मित ही हो रहा था कि उन्होंने देखा कि उस समरस अखंड का एक अंश मानो घनीभूत होकर एक देवशिशु के रूप में परिणत हो गया। वह बालक अतीव मृदुतापूर्वक एक ऋषि के गले में बाँहें डालकर उनके कान में कुछ कहने लगा। उसके जादू भरे स्पर्श से ऋषि का ध्यान भंग हुआ।

उन्होंने अपने अर्धनिमीलित नेत्रों से शिशु की ओर देखा। शिशु ने अतीव प्रफुल्लतापूर्वक कहा, 'मैं पृथ्वी पर जा रहा हूँ, तुम भी आओगे न?' ऋषि ने भी स्नेहपूर्ण दृष्टि से अपनी स्वीकृति प्रदान की तथा पुन: अनपे गहन ध्यान में डूब गए।

श्रीरामकृष्ण ने विस्मयपूर्वक देखा कि उन्हीं ऋषि का एक सूक्ष्म अंश आलोक के रूप में पृथ्वी पर उतरा तथा कलकत्ते के दत्त भवन में प्रविष्ट हुआ। जब श्रीरामकृष्ण ने पहली बार नरेन को देखा तो उन्हें ‍उन्हीं ऋषि के अवतार के रूप में पहचान लिया। फिर उन्होंने यह भी बताया कि उन ऋषि को इस धराधाम पर उतार लाने वाले देवशिशु वे खुद ही थे। नरेंद्रनाथ का श्रीरामकृष्ण से मिलन दोनों के ही जीवन की एक महत्वपूर्ण घटना थी।

एक बंदर पुलिस के अंदर
कानून के पालन के लिए थाईलैंड में पुलिस को एक बंदर की मदद लेना ठीक लगा। सान्तीसुक नाम का यह बंदर पुलिस के जवानों को जख्‍मी हालत में मिला था। उसका हाथ टूटा था। इस बंदर को पुलिस के जवानों ने उपचार दिया और नारियल चुनना सिखाया। जल्दी ही बंदर ट्रेंड हो गया। अब वह चेकपोस्ट पर पुलिस के साथ चेकिंग का काम करता है और इसके बदले तनख्वाह के रूप में दूध की बोतल पाता है।

पुलिस अधिकारी का कहना है कि दूसरे चेकपोस्ट पर लोग पुलिस के जवानों के साथ बदतमीजी कर जाते हैं, पर जिस चेकपोस्ट पर सान्तीसुक रहता है वहाँ लोग खुद ठहरकर चेकिंग करवाते हैं और इस बंदर-अधिकारी के साथ फोटो खिंचवाते हैं। थाई में सान्तीसुक का मतलब होता है शांति और यह बंदर शांति स्थापित करने में मदद ही तो कर रहा है। पुलिस भी उसके साथ काम करके खुश है। श्वान के साथ अब बंदर भी पुलिस की मदद करने लगे। क्या पता भविष्य में और भी जानवर पुलिस के काम आए।

मैंने तो पहले ही कहा था...

हाथी। मुझे हाथी अच्छे लगते हैं।
हाथी। मुझे हाथी अच्छे लगते हैं।
मुझे अच्छा लगता है जब वे पेड़ों पर झूलते हैं...
नहीं, हाथी पेड़ों पर नहीं झूलते... वो तो शायद बंदर हैं!

बंदर। मुझे बंदर अच्छे लगते हैं।
मुझे अच्छा लगता है जब वे समुद्र में तैरते हैं।
क्या? उसे मछली कहते हैं?

मछली। तब मुझे मछली अच्छी लगती है।
मछली, हाँ मुझे मछली ही अच्छी लगती है।
मुझे अच्छा लगता है मक्खियों के पीछे उनका दौड़ना,
पेड़ों को सूँघते रहना और डाकिए पर भौंकना।
क्या कहा, ऐसा कुत्ते करते हैं?

सुनो, तब मुझे कुत्ते अच्छे लगते हैं।
वे जो दिनभर खिड़की पर बैठकर चूहे पकड़ते हैं
क्या कहा, उसे बिल्ली कहते हैं?

बिल्ली, तब मुझे बिल्ली अच्छी लगती है।
मुझे अच्छा लगता है जब वो कुक-डू-कू गाती है
मैं गलत हूँ? ऐसा मुर्गे गाते हैं?
मुर्गे, तब मुझे मुर्गे ही अच्छे लगते हैं।
मुझे अच्छा लगता है कि वे कैसे शहद के लिए
बिना डर के मधुमक्खी के छत्ते तक पहुँच जाते हैं

मुझे लगता है यह तो भालू करते हैं...
तब भालू, मुझे भालू अच्‍छे लगते हैं।
मैं देखती हूँ उन्हें कि कैसे वे कूद-कूदकर मक्खी पकड़ते हैं
और छोटे से डबरे के किनारे टर्र-टर्र करते हैं
अरे, उसे मेंढक कहते हैं?

तब मेंढक, मेंढक अच्छे लगते हैं।
वो, जो बिस्किट या दूसरी चीजों को लेकर
अपने बिल में छुप जाते हैं।
अरे, ऐसा चूहे करते हैं?

चूहे, मुझे तब चूहे ही अच्छे लगते हैं।
मुझे अच्छा लगता है जब वे हौंची-हौंची चिल्लाते हैं।
क्या, ऐसा तो गधे करते हैं?

गधे, तब तो मुझे गधे ही अच्छे लगते हैं।
मुझे अच्छा लगता है जब वे अपनी सूँड उठाए
जंगल में इधर-उधर घूमते रहते हैं।
क्या, उसे हाथी कहते हैं?

वही तो, वही तो मैं कहना चाहती हूँ कि
मुझे हाथी, हाथी ही अच्छे लगते हैं।
मैंने तो पहले ही कहा था
कि मुझे हाथी ही अच्छे लगते हैं

स्वास्थ्य-सौन्दर्य

चमकती रहें जुल्फों में बिजलियाँ
स्वास्थ्य के गड़बड़ होने का असर अक्सर आपकी केशराशि पर भी पड़ता है। कभी गौर से देखिए तो मालूम पड़ेगा कि आपके बाल भी बीमार पड़ते हैं और इसका सीधा संबंध आपकी हेल्थ से भी हो सकता है। ठीक उसी तरह जैसे आपकी स्किन पर उगते मुँहासों के लिए पेट की गड़बड़ या अनियमित खान-पान जिम्मेदार होता है।

वैसे ही बाल भी आपके स्वस्थ होने-न होने को जाहिर कर देते हैं। ऐसी स्थिति में आपके पास स्वास्थ्य को सुधारने का रास्ता और तरकीबें होती हैं। आप बीमारी की जड़ तक पहुँचकर स्वास्थ्य लाभ लेते हैं और बालों की सेहत भी सुधार सकते हैं। लेकिन अगर स्वस्थ रहते हुए भी आपके बाल बीमार हो रहे हों तो?

जी हाँ, रूखे, दोमुँहे और सफेद होते या तेजी से झड़ते बालों की परेशानी आजकल स्वस्थ लोगों को भी सताने लगी है। इसके दो प्रमुख कारण हैं, प्रदूषण और बालों की उचित देखभाल का न होना। इन दोनों ही सूरतों में आपकी सुंदर, घनी केशराशि बेजान हो सकती है। इसके अलावा बालों को नुकसान पहुँचाने वाले और भी तरीके हैं। जैसे-

गीले बालों में कंघी करना या तेजी से बालों को झटका देते हुए पोंछने से भी बालों को नुकसान पहुँचता है। रगड़-रगड़कर कंघी करने से तो बाल खराब होते ही हैं। इससे बाल तेजी से खिंचकर टूट जाते हैं तथा उनकी जड़ों को भी नुकसान पहुँचता है।

बालों को दिनभर में केवल 8-9 स्ट्रोक्स (मतलब कुल 8-9 बार सर में कंघा फिराने) की जरूरत होती है। इतनी ही बार में बालों की जड़ों में स्थित प्राकृतिक तेल पूरे बालों में फैल सकता है। इससे ज्यादा बार कंघी करने से भी बालों को नुकसान पहुँचता है।

मिर्च-मसाला

दीपिका ने पहनी साड़ी

कॉन फिल्म समारोह में दीपिका पादुकोण ने साड़ी पहनकर उपस्थित लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा। इस प्रतिष्ठित समारोह में वे उन लोगों में से थीं जो आकर्षण का केंद्र बने हुए थे।
दीपिका ने साड़ी पहनने का कारण बताते हुए कहा कि मॉडलिंग के दिनों में उन्होंने सोच रखा था कि जब कभी उन्हें अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम में हिस्सा लेने का मौका मिलेगा वे पाश्चात्य ड्रेस के बजाय ‘नेशनल कास्ट्यूम’ साड़ी पहनेंगी।
साड़ी पहनी दीपिका बेहद खूबसूरत नजर आईं और विश्व के तमाम प्रसिद्ध फिल्मकारों का ध्यान उनकी ओर गया। खबर है कि दीपिका को कई एजेंट्स ने संपर्क किया है जो हॉलीवुड फिल्म निर्माता और कलाकार के बीच की कड़ी का काम करते हैं।

चंकी के साथ मजाक
चंकी पांडे को एक लड़की ने उनकी ही फिल्म का एक संवाद सुनाकर परेशान कर दिया। ‘हाउसफुल’ में चंकी ने ‘आखिरी पास्ता’ नामक किरदार निभाया है जो बात-बात में ‘आई एम ए जोकिंग’ बोलता रहता है। इस किरदार की लोकप्रियता देश तो क्या विदेश में भी पहुँच गई।

एक शो में हिस्सा लेकर चंकी भारत लौटने के लिए दोहा एअरपोर्ट पहुँचे। चेक-इन-काउंटर पर उन्हें एक लड़की ने बताया कि मुंबई जाने वाली फ्लाइट जा चुकी है। चंकी को कुछ समझ में नहीं आया क्योंकि वे समय से पहले पहुँचे थे। वे परेशान हो गए। चंकी को परेशान देख उस लड़की ने कहा ‘आई एम ए जोकिंग’। चंकी को तुरंत समझ में आया कि उनसे मजाक किया जा है।
‘आखिरी पास्ता’ की कामयाबी का मजा लूट रहे चंकी मजाकिया अंदाज में कहते हैं ‘मुझे डर है कि कोई बड़ा प्रोड्यसूर मुझे साइन कर लेने के बाद यह न कहे कि वो मजाक कर रहा था।‘

रविवार, 23 मई 2010

प्रेम-गीत

तुम, संध्या के रंगों में आती

मेरी प्रेरणा
तुम, संध्या के रंगों में आती
और आकर मंडराती
फिर बुलबुल बन, मन के बन को,
कर देती आलोड़ित!
फिर पुकार बिरहा के बैन,
नशीले,
बुलबुल सी तू
मेरे दिल को तड़पा जाती
अरी बुलबुल जो तू, मैं होती,
बनी बावरी, जब भी तू आती
मेरे जीवन के सूने आंगन को,
भर दे जाती री सुहाग-राग!

आलेख

होम मिनिस्टर : ये जॉब नहीं आसान
प्रायः किसी कंपनी के मालिक, अधिकारी, फैक्टरी मालिक या नौकरीपेशा लोग अपने काम को इतना महत्वपूर्ण मानते हैं कि जैसे उनके काम के अलावा दूसरे किसी काम का महत्व ही न हो। माना कंपनी चलाना एक कठिन काम है, क्योंकि एक कंपनी चलाने में बहुत झंझटें रहती हैं। जो माल हम बना रहे हैं या बेच रहे हैं, उसकी हर एक किस्म का कितना स्टॉक गोदाम में है।

फिर बाजार में रोजाना होने वाले उतार-चढ़ाव पर ध्यान देना, कंपनी में काम करने वालों के मिजाज पर ध्यान देना, उनके वेतन, वार्षिक वेतनवृद्धियाँ, बोनस आदि का ध्यान रखना, उस पर भी मैनेजमेंट की होने वाली मासिक मीटिंग्स आदि-आदि पर ध्यान देते हुए किसी भी कंपनी के मालिक के दिमाग की बत्ती गुल होने लगती है।
एक कंपनी के मेनगेट से उसके परिसर में स्थित एक महाप्रबंधक से लेकर चतुर्थ श्रेणी अधिकारी तक को हमेशा खुश या संतुष्ट रखना इतना आसान नहीं है। लेकिन यकीन मानिए कुछ इसी प्रकार की अनेक समस्याएँ घर चलाने वाली गृहिणियों के साथ भी जुड़ी हैं।
सुबह जल्दी उठना, घर के सभी सदस्यों के लिए चाय-कॉफी-दूध बनाना, फिर नहाने के लिए पानी गरम करना, सबका स्नान होते ही नाश्ते की व्यवस्था करना, घर के मुखिया के दफ्तर, फैक्टरी, कंपनी जाते ही बच्चे, सदस्यों का बस्ता पैक कर उन्हें स्कूल के लिए तैयार करना, उन्हें बस स्टॉप तक छोड़ने जाना।
वहाँ से लौटकर आने पर कपड़े धोना, स्वयं खाना खाना, इसके बाद घर के सदस्यों के कपड़ों को प्रेस करना या प्रेस वाले के यहाँ भिजवाना, दोपहर में सब्जी, तरकारीवाला आने पर उससे सब्जी-भाजी लेना, शाम का खाना तैयार करना, गेहूँ पिसाना है इसलिए गेहूँ साफ करना, उनको पिसवाने के लिए भिजवाना, शाम को जिस सोसायटी में रहते हैं, वहाँ के क्लब या समिति की बैठक में भाग लेना।
बच्चों के स्कूल से वापस आने पर उनका होमवर्क करना, फिर शाम को खाने की तैयारी में लग जाना, इसके अलावा किसी रिश्तेदार या परिचित की तबीयत खराब होने पर समय निकालकर उन्हें देखने जाना, किसी के यहाँ 'गमी' होने पर वहाँ शरीक होने जाना- इस प्रकार घर के कितने सारे काम हैं, जो महिलाओं को ध्यान में रखकर करने ही पड़ते हैं।
यदि इन कामों का वर्गीकरण एवं विश्लेषण कर इन कार्यों को करने के लिए घर में 'बाई' या 'सेवक' रखें तो यकीनन उतनी ही राशि हमें हर माह चुकानी पड़ेगी जितनी एक सरकारी अधिकारी की पगार में भी नहीं मिलती।
विश्वास कीजिए कि पुरुष-प्रधान व्यवस्था के चलते महिलाओं के द्वारा 'अलसुबह' से 'देर रात किए' जाने वाले असाधारण कार्यों का सही मूल्यांकन ही नहीं किया जाता। यदि वास्तव में कोई सही मूल्यांकन करे तो महिलाओं के कार्य की कुल लागत जानने के बाद उसकी आँखें फटी की फटी रह जाएँगी।
किसी को यदि इस बात पर पूरा यकीन न हो तो वह केवल इतना भर करे कि केवल अपने परिवार के सुबह से लेकर रात तक के सारे काम केवल एक माह पूरी ईमानदारी से करके दिखाए। मेरा विश्वास है कि वह 7 दिन बाद ही कह उठेगा, 'भैया, गृहमंत्री बनना इतना आसान नहीं है या घर चलाना किसी कंपनी चलाने से कम नहीं है।'
अधिकांश पुरुष वर्ग कंपनी तो चला सकते हैं, लेकिन घर नहीं चला सकते! इसीलिए श्रेष्ठ मार्ग यही है कि यथासंभव जो भी सहयोग घर चलाने में, घर के काम में वे दे सकते हैं, अवश्य दें। इससे आपकी पत्नी को संतोष मिलेगा और राहत भी। परिणामतः वह आपको रोजाना एक नई ऊर्जा से सराबोर दिखेगी। जाहिर है, महिलाओं ने तो यह सिद्ध कर दिया है कि वे किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं, लेकिन अभी तक पुरुष वर्ग पूरी तरह यह सिद्ध नहीं कर पाए हैं कि हम उनके बगैर कुशलता से अपना घर चला सकते हैं।

सुपर-वूमन भी है लाड़ली बहू

समय बदला है तो लड़कियों के प्रति नजरिया भी बदला है। उन्हें एक इंसान की तरह देखा और स्वीकार किया जाने लगा है यह माना जाने लगा है कि उसकी भी पसंद-नापसंद, रुचि-अरुचि हो सकती है। यदि वह अच्छी प्रोफेशनल है तो जरूरी नहीं है कि उसे पारंपरिक रूप से महिलाओं के हिस्से आई जिम्मेदारियों को उठाने में भी माहिर होना ही चाहिए। इससे पहले लड़कियों को ये सहूलियतें नहीं दी थी जो आज है।

शादी के लिए अच्छा खाना पका लेना या सिलाई-कढ़ाई कर लेने जैसी शर्तें आजकल शिथिल हुई है। रोहन सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। शादी के लिए उसकी बस इतनी ही शर्त थी कि लड़की पढ़ी-लिखी हो। तान्या से उसका रिश्ता तय हुआ। तान्या भी सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।
नए जमाने की लड़की है ख्याल, रहन-सहन, पहनावा एकदम आधुनिक है। माँ-बाप की इकलौती लड़की है उसके लिए शादी यानी टिपिकल पति-पत्नी वाला हिसाब नहीं है, बल्कि दो अच्छे दोस्तों का साथ मिलकर 'लाइफ' शेयर करना ही उसकी नजर में शादी है। रोहन को तान्या पसंद है, उसकी आधुनिकता, पहनावे, लाइफ स्टाइल पर उसे कोई आपत्ति नहीं है। पहली मुलाकात में जब तान्या ने उसे बताया कि उसे खाना बनाना नहीं आता, तो चौंकने की बजाय रोहन बोला, 'कोई बात नहीं, मैं फास्ट फूड बना लेता हूँ।
हॉस्टल में जो रहा हूँ...बाकी 'मेड' सर्वेट रहेगी ही। तान्या शालीन है, वैल ग्रुम्ड है और बड़ों का आदर करती है। रोहन की माँ का कहना है, 'भई वो जमाने गए जब आठवीं पास करते ही लड़कियों को रसोई में धकेल दिया जाता था। जाहिर-सी बात है, दिन-रात पढ़ाई में जुटी लड़कियों के लिए रसोई में जाने की फुरसत है कहाँ? सीख लेगी धीरे-धीरे...' शर्मा आंटी की बहू एक कंपनी की एमडी है। उसे खाना बनाना आता तो है, मगर खाना बनाने में रुचि नहीं है।
घर में नौकरानी है, मगर शर्मा अंकल और उनके बेटे को नौकरानी के हाथ का भोजन पसंद नहीं। शर्मा आंटी अब भी जिम्मेदारी से रसोई का सारा काम सम्हालती है। वे कहती हैं 'मेरी बहू यदि भोजन बनाने में रुचि नहीं रखती तो जबरन उससे वह काम क्यों करवाऊँ? मुझे खाना बनाने का शौक है, सो मैं अपना शौक पूरा करती हूँ। इसमें बुराई क्या है?
इन उदाहरणों को देख-सुनकर मन को राहत का झोंका छू जाता है। आज समय तेजी से बदल रहा है, अब नारी की आर्थिक स्वतंत्रता केवल घर का ढाँचा बरकरार रखने के लिए ही मायने नहीं रखती, वरन्‌ पति और ससुराल वाले भी उसकी तरक्की-सफलता को अपना गौरव मानते हैं।
आज से एक दशक पहले भी स्त्री अपने पैरों पर खड़ी थी, मगर तब घर-बाहर की जिम्मेदारी उसी के सिर थी। पति या ससुराल पक्ष से सहयोग न के बराबर था। मगर आज स्थितियाँ तेजी से बदली हैं। घर की बुनावट में स्त्री को विशेषतः बहू को खासी अहमियत मिलने लगी है। उसे दकियानूसी परंपराओं, रीति-रिवाजों और पुरानी मान्यताओं से बाहर निकलने का मौका दिया गया है। पति की तरह ही उसे भी दफ्तर की जिम्मेदारियों को निभाने व समय देने का मौका दिया जा रहा है।
घर-परिवार के अलावा उसका सर्कल, उसके सहकर्मी, उसका ओहदा भी सम्माननीय है। उसे अपने अनुसार जीने, पहनने-ओढ़ने की छूट है...क्या ऐसा नहीं लगता कि स्त्री अब सचमुच स्वतंत्र हो रही है? अक्षिता के पिताजी का स्वर्गवास हो गया है। शादी के समय ही अक्षिता ने स्पष्ट कर दिया कि वह न केवल अपनी माँ की भी देखभाल करेगी, वरन्‌ अपनी तनख्वाह का कुछ हिस्सा उन पर खर्च करेगी।
अक्षिता के पति व ससुराल वालों ने यह बात सहर्ष स्वीकार कर ली और आज अक्षिता बेटे की तरह ही अपनी माँ का ख्याल रखती है। समयानुसार अपने में परिवर्तन लाते जाना, नया ग्रहण करना और पुराना (जो अनुपयोगी हो) छोड़ते जाना ही बुद्धिमानी है। अप्रासंगिक, गैरजरूरी मान्यताएँ छोड़ना, नई सोच, नई मान्यताओं को जीवन में स्थान देना ही सुखी जीवन का मूलमंत्र है। कल जो भी हुआ हो, आज बदलाव की सुहानी बयार चल पड़ी है जो सचमुच खुशगवार है, कुछ नएपन का इशारा कर रही है।

खतरनाक जासूस कैमरा !

पिछले दिनों देश की राजधानी दिल्ली के एक बड़े कॉल सेंटर के रेस्ट रूम में एक ऐसे कैमरे का भेद खुला है जो रेस्ट रूम में लगे काँच के पीछे छुपाया गया था और कई महीने से महिलाओं की 'निगरानी' कर रहा था। इस घटना ने केवल वर्किंग वूमन ही नहीं बल्कि उन सभी महिलाओं के सामने एक नया प्रश्न खड़ा कर दिया है, जो घर से बाहर निकलती हैं।
इनका रखें ध्‍यान :
किसी दफ्तर के रेस्ट रूम या लेडिज़ रूम में जहाँ काँच के पीछे हिडन कैमरे हो सकते हैं या फिर दीवारों को जासूस बनाया जा सकता है।
शॉपिंग मॉल्स, शो रूम या दुकानों के चेंजिंग रूम्स जहाँ ऐसी घटनाएँ होने का सबसे ज्यादा अंदेशा होता है।
किस रेस्त्राँ या होटल का वॉश रूम अथवा कमरा जहाँ काँच तथा दीवारों के अलावा भी कई जगह जासूस आँखें छिपी हो सकती हैं।
ऐसी कोई भी जगह जो सिर्फ महिलाओं के आराम या बैठने के लिए बनाई गई है।जाहिर है कि ऐसी घटनाओं के डर से आप घर से निकलना तो बंद कर नहीं सकतीं। इन घटनाओं को हल्के में लेना भी गलत है... तो सवाल ये उठता है कि आखिर वे कौन सी सावधानियाँ हैं जो इस संबंध में महिलाओं को रखना चाहिए। चलिए इस बारे में जानते हैं।
सबसे पहले तो किसी भी जगह के चेंजिंग रूम या वॉश रूम का प्रयोग करने से बचें। यदि आपके पास अन्य विकल्प हों, जैसे घर पास हो या पास के किसी अन्य ज्यादा विश्वस्त स्थान के बारे में आप जानती हों, तो उसका प्रयोग करें।
अनावश्यक 'गैप', छेद या अनजानी 'चीज़' लगी दिखे तो सावधान हो जाएँ।
चेंजिंग रूम यदि छोटा है तो सबसे अच्छा तरीका है, लाइट्स ऑफ कर देने का। चेंज करने के बाद पुनः लाइट्स जला लें लेकिन यह तरीका अँधेरे में भी रिकॉर्डिंग करने वाले कैमरों के सामने कारगर नहीं होगा।
यदि आपको दीवार या काँच या अन्य किसी जगह कोई छोटी लाइट या काला बिंदु नजर आए तो सतर्क हो जाएँ।
यदि अनजाने में आप किसी ऐसी मुसीबत में फँस ही गई हों तो तुरंत उस स्थान के प्रबंधन और पुलिस को सूचित करें। आपका एक कदम आपके साथ दूसरों को भी परेशानी से बचा लेगा।
मिरर टेस्ट :
मिरर टेस्ट हर उस जगह आपका साथ देगा जहाँ काँच के पीछे हिडन कैमरे लगे हो सकते हैं। ये काँच दिखने में बिलकुल सामान्य लगते हैं लेकिन इसके दूसरी ओर से आपको देखा जा रहा होता है। आप जिस तरफ खड़े हैं उस तरफ से आपको सिर्फ खुद का अक्स नजर आएगा और आप इस बात से पूरी तरह अनजान होंगी कि दूसरी तरफ से कोई आपको देख रहा है।
इसके लिए मिरर टेस्ट अपनाएँ। अपने हाथ की ऊँगली की नोक को काँच पर धीरे से रखें। यदि आपकी ऊँगली और काँच पर पड़ती ऊँगली की छाया के बीच में हल्का सा भी अंतर है यानी गैप है तो यह काँच बिलकुल ठीक है। इससे आपको कोई खतरा नहीं लेकिन अगर आपकी ऊँगली और काँच पर पड़ते अक्स के बीच कोई दूरी नहीं रह जाती तो सतर्क हो जाइए... इस काँच के पीछे कैमरा हो सकता है।

क्यों करें योग?

...तो नहीं है आपके लिए योग

आप कह सकते हैं कि इस सबके बावजूद हम क्यों करें योग, जबकि हम स्वस्थ हैं, मानसिक और शारीरिक रूप से हमें कोई समस्या नहीं है? ‍तब पहले तो यह जानना जरूरी है कि आपके भीतर आपका 'क्यों' है कि नहीं।
आनंद की अनुभूति : एक होता है सुख और एक होता है दु:ख। जो लोग योग करते हैं उन्हें पहली दफा समझ में आता है कि आनंद क्या होता है। जैसे सेक्स करते समय समझ में आता है कि सुख और दु:ख से अलग भी कोई अनुभूति है। इस तरह योगस्थ चित्त समस्त प्रकार के सुखों से ऊपर आनंद में स्थि‍त होता है। उस आनंद की अनुभूति न भोग में है न संभोग में और न ही अन्य किन्हीं क्षणिक सुखों में।
चेतना का विकास : मोटे तौर पर सृष्ट‍ि और चेतना के वेद और योग में पाँच स्तर बताए गए हैं। यह पाँच मंजिला मकान है- (1) जड़ (2) प्राण (3) मन (4) आत्मा और (5) परमात्मा।
जड़ : आप तमोगुणी हो, अजाग्रत हो तो आप जिंदा होते हुए भी मृत हो अर्थात् आपकी चेतना या आप स्वयं जड़ हो। बेहोशी में जी रहे हो आप। आपकी अवस्था स्वप्निक है। आपको इस बात का जरा भी अहसास नहीं है कि आप जिंदा हैं। आप वैसे ही जीते हैं जैसे क‍ि एक पत्थर या झाड़ जीता है या ‍फिर वैसा पशु जो चलाने पर ही चलता है।
प्राण : प्राण अर्थात फेफड़ों में भरी जाने वाली प्राणवायु जिससे कोई जिंदा है, इस बात का पता चलता है। यदि आपकी चेतना या कि आप स्वयं अपनी भावनाओं, भावुक क्षणों या व्यग्रताओं के गुलाम हैं तो आप प्राणिक चेतना हैं। आपमें विचार-शक्ति क्षीण है। आप कभी भी क्रोधी हो सकते हैं और किसी भी क्षण प्रेमपूर्ण हो सकते हैं। प्राणिक चेतना रजोगुण-प्रधान मानी जा सकती है।
योग का प्रथम सूत्र है- अथ:योगानुशासनम्। योगश्चित्तिवृत्तिनिरोध। अर्थात यदि आप अपने मन और शरीर से थक गए हैं, आपने जान लिया है क‍ि संसार असार है तो अब योग का अनुशासन समझें, क्योंकि अब आपका मन तैयार हो गया है। मन : मन में जीना अर्थात मनुष्य होना। मन का स्वयं का कोई अस्तित्व नहीं है। भावनाओं और विचारों के संगठित रूप को मन कहते हैं। मन के योग में भी कई स्तर बताए गए हैं। विचारशील मनुष्य मन से श्रेष्ठ बुद्धि में जीता है। उसमें तर्क की प्रधानता होती है। जो तर्कातीत है वही विवेकी है।
आत्मा : योग है मन से मुक्ति। जो मनुष्य मन से मुक्त हो गया है, वही शुद्ध आत्मा है, वही आत्मवान है अर्थात उसने स्वयं में स्वयं को स्थापित कर लिया है।
परमात्मा : परमात्मा को ब्रह्म कहा गया है, जिसका अर्थ विस्तार होता है। उस विराट विस्तार में लीन व्यक्ति को ब्रह्मलीन कहा जाता है और जो उसे जानने का प्रयास ही कर रहा है, उसे ब्राह्मण कहा गया। योगी योग बल द्वारा स्वयं को ब्रह्मलीन कर अमर हो जाता है, फिर उसकी न कोई मृत्यु है और न जन्म और यह भी क‍ि वह चाहे तो जन्मे न चाहे तो न जन्मे।
जागरण : चेतना की चार अवस्थाएँ हैं- (1) जाग्रत (2) स्वप्न (3) सुसुप्ति (4) तंद्रा। योगी व्यक्ति चारों अवस्थाओं में जाग्रत रहता है। तंद्रा उसे कहते हैं, जबकि व्यक्ति शरीर छोड़ चीर निद्रा में चला जाता है। ऐसी तंद्रा में भी योगी जागा हुआ होता है।
अधिकतर जागकर भी सोए-सोए से नजर आते हैं अर्थात बेहोश यंत्रवत जीवन। फिर जब सो जाते हैं तो अच्छे और बुरे स्वप्नों में जकड़ जाते हैं और फिर गहरी नींद अर्थात सुसुप्ति में चले जाते हैं वहाँ भी उन्हें स्वयं के होने का बोध नहीं रहता। यह बेहोशी की चरम अवस्था जड़ अवस्था है, तब तंद्रा कैसी होगी सोचें। योग आपकी तंद्रा भंग करता है। वह आपमें इतना जागरण भर देता है कि मृत्यु आती है तब आपको नहीं लगता क‍ि आप मर रहे हैं। लगता है कि शरीर छूट रहा है।
इस परम विस्तृत ब्रह्मांड में धरती पर खड़े आप स्वयं क्या हो, क्यों हो, कैसे हो, कब से हो, हो भी क‍ि नहीं, कब तक रहोगे। मेरा अस्तित्व है कि नहीं। ऐसा सोचने वाले के लिए ही योग है। जिसने योग के अनुशासन को निभाया उसने सुपर कांसेस मन को जाग्रत करने की दिशा में एक कदम बढ़ाया।
स्वयं की स्थिति समझे : योग का प्रथम सूत्र है- अथ:योगानुशासनम्। योगश्चित्तिवृत्तिनिरोध। अर्थात यदि आप अपने मन और शरीर से थक गए हैं, आपने जान लिया है क‍ि संसार असार है तो अब योग का अनुशासन समझें, क्योंकि अब आपका मन तैयार हो गया है, आप मैच्योर हो गए हैं तो अब समझें और अब भी नहीं समझते हैं तो अंधकार में खो जाने वाले हैं। यदि आपके भीतर का 'क्यों' मर गया है तो नहीं है आपके लिए योग।
अतत: : योग उनके लिए है जो अपना जीवन बदलना चाहते हैं। योग उनके लिए है जो इस ब्रह्मांड के सत्य को जानना चाहते हैं। योग उनके लिए भी है जो शक्ति सम्पन्न होना चाहते हैं और योग उनके लिए जो हर तरह से स्वस्थ होना चाहते हैं। आप किसी भी धर्म से हैं, यदि आप स्वयं को बदलना चाहते हैं तो योग आपकी मदद करेगा। आप विचार करें क‍ि आप योग क्यों और क्यों नहीं करना चाहते हैं।

मिर्च-मसाला

क्या बच्चे के लिए शादी करेंगी सुष्मिता?

दो लड़कियों को गोद लेकर माँ बनने का सुख उठाने वाली सुष्मिता सेन अब बच्चे को जन्म देना चाहती हैं। उनकी इस इच्छा से बॉलीवुड में चर्चा चल पड़ी है कि सुष्मिता जल्दी ही शादी कर सकती हैं और ये भी संभव है कि वे बिन ब्याही माँ भी बन जाए।
सुष्मिता 34 की हो गई हैं और इस बात से परिचित हैं कि उम्र के लिहाज से माँ बनने के लिए अब उनके पास ज्यादा समय नहीं है। इसलिए वे जल्दी ही इस दिशा में कदम उठा सकती हैं।
जहाँ तक शादी का सवाल है, तो सुष के प्रेमियों की लंबी लिस्ट है। विक्रम भट्ट और मुदस्सर अजीज के बीच में कई लोग हैं, जिनके साथ उनका रोमांस चला। सुष्मिता के मिजाज को देख यह लिस्ट अभी भी अधूरी लगती है।
इन पुरुषों ने सुष्मिता की जिंदगी में प्रवेश किया, लेकिन किसी में भी सुष्मिता को पति वाली क्वॉलिटी नजर नहीं आई। चूँकि सुष्मिता अब बच्चे को जन्म देना चाहती हैं इसलिए वे शादी कर लें।
दूसरी ओर इस बात की संभावना है कि वे बिन ब्याही माँ भी बन जाए। सुष्मिता उन लोगों में से हैं जिन्होंने कभी लोगों की परवाह नहीं कि और अपने मुताबिक जीवन जिया है।
हम तो यही शुभकामना देंगे कि सुष की इच्छा जल्द से जल्द पूरी हो।

दिल तो बच्चा है जी

‘जेल’ की असफलता के बाद मधुर भंडारकर ने अपनी हार्ड हिटिंग फिल्मों वाला ट्रेक चेंज किया है और उन्होंने हल्की-फुल्की रोमांटिक-कॉमेडी फिल्म ‘दिल तो बच्चा है जी’ बनाने की घोषणा की है। इसमें अजय देवगन, इमरान हाशमी और ओमी वैद्य नजर आएँगे।
मधुर ने हमेशा ऐसी फिल्में बनाई हैं जो वास्तविकता के निकट होती हैं और सच को उजागर करती हैं। चाहे चाँदनी बार हो, फैशन या पेज थ्री हो। लेकिन पिछली कुछ फिल्मों से लगने लगा था कि मधुर अब टाइप्ड होते जा रहे हैं। शायद इसीलिए इस बार उन्होंने रोमांस और हास्य फिल्मों में हाथ आजमाने की सोची है।
मधुर एक अभिनेत्री की जिंदगी पर भी फिल्म बनाने वाले हैं, जिसमें करीना कपूर को लिए जाने की चर्चा है, लेकिन उसमें काफी शोध किया जाना है, जिसमें समय लगेगा। तब तक एक हल्की-फुल्की फिल्म ही सही।

अजय देवगन : हर किरदार में फिट

प्रकाश झा की नवीनतम फिल्म राजनीति सहित उनकी लगभग तमाम फिल्मों का हिस्सा अजय देवगन रहे हैं और झा के मुताबिक उन्हें इस राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता के साथ काम करके मजा आता है क्योंकि वे हर किरदार में फिट बैठते हैं।
झा ने कहा ‘‘सच में अजय के साथ मुझे और मेरे साथ उन्हें काम करने में मजा आता है। वे न सिर्फ एक पेशेवर कलाकार हैं बल्कि एक अच्छे इंसान भी हैं और उनकी यही खूबी उन्हें औरों से अलग करती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ हम दोनों के बीच एक-दूसरे के लिए बेहतर समझ है। वह कुछ भी कर सकते हैं। कोई आश्चर्य नहीं जब मैं फिल्म लिख रहा होता हूँ तो उसके एक या दो किरदार ऐसे होते हैं, जिनमें अजय एकदम फिट बैठते हैं।’’
1999 से अब तक झा और देवगन ने साथ-साथ कुल चार फिल्मों- ‘दिल क्या करे’(1999), ‘गंगाजल’ (2003), ‘अपहरण’ (2005) और ‘राजनीति’ (2010) में काम किया है।
इस दौरान झा ने सिर्फ एक फिल्म ‘राहुल’ (2001) में देवगन को नहीं लिया। झा ने राहुल में नए चेहरों को मौका दिया था और फिल्म बॉक्स आफिस पर चारों खाने चित्त हो गई।
‘गंगाजल’ और ‘अपहरण’ चर्चित होने के साथ-साथ व्यावसायिक रूप से भी सफल रहीं। यही वजह है कि ‘राजनीति’ में नए-पुराने कई अभिनेताओं को शामिल करने के बावजूद झा ने अजय देवगन के लिए एक खास जगह रखी। फिल्म में नसीरूद्दीन शाह और नाना पाटेकर जैसे मंझे हुए अभिनेताओं के साथ रणबीर कपूर और कैटरीना कैफ सितारे भी हैं।

मिर्च-मसाला

क्या बच्चे के लिए शादी करेंगी सुष्मिता?

दो लड़कियों को गोद लेकर माँ बनने का सुख उठाने वाली सुष्मिता सेन अब बच्चे को जन्म देना चाहती हैं। उनकी इस इच्छा से बॉलीवुड में चर्चा चल पड़ी है कि सुष्मिता जल्दी ही शादी कर सकती हैं और ये भी संभव है कि वे बिन ब्याही माँ भी बन जाए।
सुष्मिता 34 की हो गई हैं और इस बात से परिचित हैं कि उम्र के लिहाज से माँ बनने के लिए अब उनके पास ज्यादा समय नहीं है। इसलिए वे जल्दी ही इस दिशा में कदम उठा सकती हैं।
जहाँ तक शादी का सवाल है, तो सुष के प्रेमियों की लंबी लिस्ट है। विक्रम भट्ट और मुदस्सर अजीज के बीच में कई लोग हैं, जिनके साथ उनका रोमांस चला। सुष्मिता के मिजाज को देख यह लिस्ट अभी भी अधूरी लगती है।
इन पुरुषों ने सुष्मिता की जिंदगी में प्रवेश किया, लेकिन किसी में भी सुष्मिता को पति वाली क्वॉलिटी नजर नहीं आई। चूँकि सुष्मिता अब बच्चे को जन्म देना चाहती हैं इसलिए वे शादी कर लें।
दूसरी ओर इस बात की संभावना है कि वे बिन ब्याही माँ भी बन जाए। सुष्मिता उन लोगों में से हैं जिन्होंने कभी लोगों की परवाह नहीं कि और अपने मुताबिक जीवन जिया है।
हम तो यही शुभकामना देंगे कि सुष की इच्छा जल्द से जल्द पूरी हो।

दिल तो बच्चा है जी

‘जेल’ की असफलता के बाद मधुर भंडारकर ने अपनी हार्ड हिटिंग फिल्मों वाला ट्रेक चेंज किया है और उन्होंने हल्की-फुल्की रोमांटिक-कॉमेडी फिल्म ‘दिल तो बच्चा है जी’ बनाने की घोषणा की है। इसमें अजय देवगन, इमरान हाशमी और ओमी वैद्य नजर आएँगे।
मधुर ने हमेशा ऐसी फिल्में बनाई हैं जो वास्तविकता के निकट होती हैं और सच को उजागर करती हैं। चाहे चाँदनी बार हो, फैशन या पेज थ्री हो। लेकिन पिछली कुछ फिल्मों से लगने लगा था कि मधुर अब टाइप्ड होते जा रहे हैं। शायद इसीलिए इस बार उन्होंने रोमांस और हास्य फिल्मों में हाथ आजमाने की सोची है।
मधुर एक अभिनेत्री की जिंदगी पर भी फिल्म बनाने वाले हैं, जिसमें करीना कपूर को लिए जाने की चर्चा है, लेकिन उसमें काफी शोध किया जाना है, जिसमें समय लगेगा। तब तक एक हल्की-फुल्की फिल्म ही सही।

अजय देवगन : हर किरदार में फिट

प्रकाश झा की नवीनतम फिल्म राजनीति सहित उनकी लगभग तमाम फिल्मों का हिस्सा अजय देवगन रहे हैं और झा के मुताबिक उन्हें इस राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता के साथ काम करके मजा आता है क्योंकि वे हर किरदार में फिट बैठते हैं।
झा ने कहा ‘‘सच में अजय के साथ मुझे और मेरे साथ उन्हें काम करने में मजा आता है। वे न सिर्फ एक पेशेवर कलाकार हैं बल्कि एक अच्छे इंसान भी हैं और उनकी यही खूबी उन्हें औरों से अलग करती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ हम दोनों के बीच एक-दूसरे के लिए बेहतर समझ है। वह कुछ भी कर सकते हैं। कोई आश्चर्य नहीं जब मैं फिल्म लिख रहा होता हूँ तो उसके एक या दो किरदार ऐसे होते हैं, जिनमें अजय एकदम फिट बैठते हैं।’’
1999 से अब तक झा और देवगन ने साथ-साथ कुल चार फिल्मों- ‘दिल क्या करे’(1999), ‘गंगाजल’ (2003), ‘अपहरण’ (2005) और ‘राजनीति’ (2010) में काम किया है।
इस दौरान झा ने सिर्फ एक फिल्म ‘राहुल’ (2001) में देवगन को नहीं लिया। झा ने राहुल में नए चेहरों को मौका दिया था और फिल्म बॉक्स आफिस पर चारों खाने चित्त हो गई।
‘गंगाजल’ और ‘अपहरण’ चर्चित होने के साथ-साथ व्यावसायिक रूप से भी सफल रहीं। यही वजह है कि ‘राजनीति’ में नए-पुराने कई अभिनेताओं को शामिल करने के बावजूद झा ने अजय देवगन के लिए एक खास जगह रखी। फिल्म में नसीरूद्दीन शाह और नाना पाटेकर जैसे मंझे हुए अभिनेताओं के साथ रणबीर कपूर और कैटरीना कैफ सितारे भी हैं।

शनिवार, 22 मई 2010

मिर्च-मसाला

सोनम को पहली सफलता का इंतजार

अनिल कपूर की बेटी सोनम कपूर अच्छी अभिनेत्री हैं। खूबसूरत भी हैं। लेकिन बॉलीवुड में पूछ-परख तभी बढ़ती है जब आपके खाते में सफल फिल्म हो। इस मामले में सोनम की झोली खाली है।
‘साँवरिया’ और ‘देहली 6’ जैसी फिल्मों में सोनम ने सराहनीय अभिनय किया, लेकिन ये फिल्में असफल हो गईं और सोनम अपनी समकालीन नायिकाओं से पिछड़ गईं।
सोनम चाहती तो कई फिल्म साइन कर सकती थीं, लेकिन कहते हैं कि फिल्मों के चयन के मामले में पापा अनिल का दखल रहता है। वे चाहते हैं भले ही सोनम कम फिल्में करें किंतु अच्छी करें। सोनम उनकी बात मान रही हैं। सोनम को लेकर अनिल भी एक फिल्म बना रहे हैं जिसमें उनके हीरो हैं अभय देओल।
एक और फिल्म है जिससे सोनम ने बहुत उम्मीद पाल रखी है। धर्मा प्रोडक्शन यानी करण जौहर के बैनर की ‘आई हेट लव स्टोरीज़’ से। टीनएजर्स को ध्यान में रखकर यह फिल्म बनाई गई इस फिल्म में इमरान खान और सोनम की जोड़ी है। फिल्म के प्रोमो दिखाए जा रहे हैं और इस जोड़ी को देख पॉजिटिव फीडबैक मिले हैं। पहली बार सोनम अपने हमउम्र हीरो की नायिका बनी हैं।
इस फिल्म में सोनम की भूमिका ऐसी लड़की की है जो प्यार में बहुत विश्वास करती है। जबकि इमरान की सोच इसके विपरीत है। सोनम का मानना है कि इस बार उनका नाम एक हिट फिल्म के साथ जुड़ जाएगा क्योंकि इस फिल्म में वो सब कुछ है जो आज का युवा पसंद करता है।

क्या पूरी होगी शिल्पा की ख्वाहिश?


फिल्मों में अभिनय से ज्यादा शिल्पा शेट्टी उन गानों के लिए पहचानी जाती हैं, जो उन पर फिल्माए गए हैं। कई लोकप्रिय गानों पर शिल्पा ने डांस कर लोगों को झूमने पर मजबूर कर दिया। यूपी, बिहार सहित पूरे विश्व के प्रशंसकों का दिल लूट लिया। फिर भी उनकी एक इच्छा अधूरी ही रह गई।
शिल्पा चाहती हैं कि ऑन स्क्रीन उन्हें एक मुजरा करने का अवसर मिले। आजकल फिल्म बनाने का तरीका बहुत बदल गया है और मुजरे की कोई जगह नहीं रही है। पहले बनने वाली हर दूसरी फिल्म में मुजरा होता था। रेखा, हेमा मालिनी आदि पर कई मुजरे फिल्माए गए हैं।
एक अभिनेत्री के रूप में शिल्पा का करियर लगभग खत्म हो गया है, लेकिन संभव है कि कोई निर्माता या निर्देशक शिल्पा की यह इच्छा पूरी कर दे। आखिर एक गाने का ही तो सवाल है।

फिर आगे लड़कियाँ...

हर बार बाजी लड़कियों के हाथ में क्यों?
रिजल्ट आने लगे हैं। मेहनत, प्रतिभा, भाग्य और लगन, सब इस बार भी दाँव पर लगे थे। हर बार की तरह जीत मेहनत की हुई। यानी लड़कियों ने लहरा दिए हमेशा की तरह परचम। हर बार रिजल्ट इसी तरह आते हैं और कमोबेश हर अखबार की सुर्खियाँ यही होती है कि लड़कियों ने मारी बाजी।
प्रश्न यह उठता है कि आखिर ऐसा क्या है इन लड़कियों में जो तमाम दबावों और जिम्मेदारियों से निपटते-जूझते भी आगे निकल जाती है। भावुकता,नजाकत और चंचलता जैसे गुणों के होते हुए भी कैसे लड़कों को पीछे धकेल खुद को साबित कर देती है?
मनोविज्ञान कहता है लड़कियों में कुछ ऐसे विशिष्ट गॉड गिफ्टेड गुण होते हैं जिनकी बराबरी लड़के कर ही नहीं सकते। हमें प्रकृति के इस भेद को स्वीकारना होगा कि स्त्री और पुरुष दो अलग-अलग स्वरूप में गढ़े गए ईश्वर के खिलौने हैं। दोनों की क्वॉलिटी डिफरेंट है। आइए कुछ बेसिक अंतर पर गौर फरमा लिया जाए :
खुद के प्रति अवेयर : भारतीय परिवेश में लड़कियाँ जिस तरह से संस्कारित की जाती है उससे वे स्वयं के प्रति जागरूक रहना सीख जाती है। उन्हें कब क्या करना है इसे लेकर बचपन से उनका मानस बनने लगता है। वहीं लड़कों में लापरवाही के गुण जल्दी विकसित होते हैं। फैमेली में लड़कियाँ लाड़ली होती है बावजूद इसके लड़कियाँ अपनी केयर खुद करना जल्दी सीख जाती है। खुद के प्रति जवाबदेही की स्थिति उन्हें पढ़ाई के प्रति भी गंभीर बना देती है।
किसी जमाने में समाज के कुछ हिस्सों में लड़कियाँ उपेक्षित होती होंगी,आजकल लड़कियाँ परिवार में ज्यादा अटेंशन पाती है। ज्यादा केयर भी उन्हें मिलने लगी है। इस बात का लड़कियाँ गलत फायदा नहीं उठाती है और करियर के प्रति गंभीरता बनाए रखती है।
पेरेंट्स के प्रति ग्रेटफुल : बचपन से ही लड़कियाँ इस अहसास के साथ जीती हैं कि एक दिन उन्हें किसी और के घर जाना है। यह बात उन्हें अपने पेरेंट्स के और करीब ले आती है। अपनी पढ़ाई और दूसरे खर्चों पर माता-पिता का सेक्रिफाइज करना उन्हें कचोटता है। यही कारण है कि उनमें जल्द ही कुछ बनकर माता-पिता के उपकारों का बदला चुकाने का जुनून होता है।
लड़के इस मामले में उतने संवेदनशील नहीं होते हैं कि पेरेंट्स की तकलीफों को महसूस कर सकें। उन्हें लगता है पेरेंट्स जो कुछ कर रहे हैं उस पर उनका पूरा हक है, जबकि लड़कियाँ और अधिक ग्रेटफुल हो जाती हैं। यह एक अहम वजह हो सकती है कि लड़कियाँ रिजल्ट का शानदार तोहफा लेकर फैमेली को देती है।
मेहनत का जवाब नहीं : जाहिर तौर पर लड़कियाँ लड़कों से अधिक मेहनत करती है, यह बात और है कि एक्जाम के अलावा कहीं और उतनी ईमानदारी से उनका मूल्यांकन नहीं होता। जिम्मेदारियों को निभाते हुए वे अपने लिए एक-एक पल चुराती हैं। इसीलिए अपने लिए मिले लम्हों को वह सही ढंग से यूटिलाइज करना चाहती है। चाहे लड़कों को बुरा लगें उन्हें स्वीकारना होगा कि लड़कियों की तुलना में वे आलसी होते हैं।
करियर को लेकर क्लियर : यह लड़कियों की सबसे खास खूबी होती है कि वे बहुत जल्दी यह जान लेती है कि उन्हें क्या बनना है, वे क्या करना चाहती है। अपना फ्यूचर कैसा देखना चाहती है। वहीं लड़के अकसर इस डाइलेमा से बाहर नहीं आ पाते हैं कि वे क्या करें और क्या नहीं। पल-पल में उनके विचार बदलते हैं। लड़कियाँ उनके मुकाबले स्थिर दिमाग की होती है।
दूसरा, लड़कों में हर चीज हासिल करने का नशा होता है, परिणाम यह होता है कि जो वे आसानी से हासिल कर सकते थे उससे भी वंचित रह जाते हैं। लड़कियाँ हर चीज के पीछे नहीं भागती, वे शांत रहकर अपनी क्षमता और दक्षता का मूल्यांकन करते हुए करियर को लेकर क्लियर होती हैं।
लाजवाब कम्यूनिकेशन स्किल : यह बा‍त लड़के ना भी मानें तो वैज्ञानिकों के रिसर्च उन्हें मानने के लिए बाध्य कर देंगे कि लड़कियों में खुद को अभिव्यक्त करने की विलक्षण क्षमता होती है। वे जैसा सोचतीं हैं, वैसा ही कहने और लिखने की योग्यता उनमें होती है। यही वजह है कि एक्जाम में अपने दिमाग का कुशलतापूर्वक इस्तेमाल करते हुए वे वह सब लिख पातीं है जैसा सोच रही होती हैं। जबकि लड़कों में विचारों का प्रवाह होता है लेकिन उनकी डिलेवरी उतनी इफेक्टीव नहीं हो पाती। जाहिर सी बात है कि एक्जामिनर कॉपी देखता है, लड़की या लड़का नहीं।

डेडिकेशन एंड कमिटमेंट : मेहनत और लगन, लड़कियाँ खुद को किसी काम में डुबोती है तो यही दो उनके हथियार होते हैं,जाहिर तौर पर वह जंग जीत जाती हैं। क्योंकि कोई भी काम, समर्पण और प्रतिबद्धता के बिना सफल हो ही नहीं सकता। लड़के तुलनात्मक रूप से उतने समर्पण भाव से कोई काम नहीं करते, पढ़ाई की बात हो तो मामला और पेचीदा हो जाता है। पेरेंट्स की टोकाटोकी उनके बचे-खुचे समर्पण भाव को भी खत्म कर देती है। लड़कियों को टोकना ही नहीं पड़ता वे स्टडी भी उतने ही चाव से करती हैं जितनी चाव से फैशन।

नो फालतू शौक : अब इस पर क्या कहें। सिगरेट हो या मूवी का फर्स्ट शो। गुटखा हो या गॉगल्स, जींस हो या गर्लफ्रेंड पर इंप्रेशन। आउटिंग हो या लॉंग ड्राइव, बाइक हो या मोबाइल, खर्चे और शौक हमेशा से ही लड़कों के ज्यादा होते हैं। महँगे शौक उन्हें इतना वक्त ही नहीं देते कि अपनी स्टडी को लेकर सीरियस हो सकें। फिर जब लड़कियाँ मैदान मार लेती हैं तो सिर धुनने के सिवा बचता ही क्या हैं।

प्रॉएरिटी या एजेंडा सेटिंग : लड़कियाँ इस मामले में बेहद चतुर होती है। उन्हें देखकर आप यह अंदाज नहीं लगा सकते कि फैशन, फिल्में, स्टाइल को मेंटेन करते हुए भी उनका लाइफ एजेंडा कुछ और ही होता है। जब स्टडी की बात आती है तो इन सबके साथ वे फोकस्ड हो जाती हैं अपनी प्रॉएरिटी लेवल को सेट करने में। यहीं लड़के मात खा जाते हैं उनका कोई प्रॉएरिटी लेवल होता ही नहीं है।

यूँ तो गिनाने बैठें तो कई प्वॉइंट्स निकल आएँगे लेकिन ‍फिलहाल इन शॉर्ट कॉन्फिडेंस, कॉन्संट्रेशन, एनर्जिटिक, लर्निंग एबिलिटी सही डायरेक्शन में नारी सुलभ जॅलेसी का इस्तेमाल, सिस्टेमैटिक, स्मार्ट और सेंसेटिव होना लड़कियों के ऐसे दुर्लभ गुण हैं जो उन्हें मंजिल तक पहुँचाने में हेल्प करते हैं। अब आप गाते रहें धुन में 'ब्वॉयज आर बेस्ट', लड़कियों ने तो साबित कर दिया।

आईटी

दिमाग तेज करता है इंटरनेट

इंटरनेट का सही इस्तेमाल इंसानी दिमाग को और तेज बना सकता है। अमेरिका के उत्तरी कैरोलीना के एलान विश्वविद्यालय के इमेजिनिंग इंटरनेट सेंटर और प्यू इंटरनेट तथा अमेरिकन लाइफ प्रोजेक्ट की ओर से कराए गए हालिया सर्वे में यह बात सामने आई है।
सर्वे में शामिल 395 इंटरनेट यूजर्स और एक्सपर्ट्‌स में से तीन चौथाई से ज्यादा ने माना है कि इंटरनेट के इस्तेमाल से लोगों के दिमाग को तेज किया जा सकता है। इमेजिंग इंटरनेट सेंटर की निदेशक जेना एंडरसन के मुताबिक सर्वे में शामिल ज्यादातर युवाओं ने माना कि इंटरनेट 2020 तक पढ़ने और लिखने की इंसानी क्षमता को बढ़ा देगा।
उन्होंने कहा कि चार में से तीन एक्सपर्ट्‌स के अनुसार इंटरनेट के इस्तेमाल से इंसान की इंटेलिजेंस को ब़ढ़ाया जा सकता है और दो तिहाई लोगों ने माना कि इंटरनेट लिखने-पढ़ने और ज्ञान में वृद्धि करता है। हालाँकि सर्वे में शामिल 21 प्रतिशत युवाओं ने यह भी माना कि इंटरनेट का बहुत अधिक इस्तेमाल करने वालों पर इसका विपरीत प्रभाव भी पड़ सकता है और उनके जनरल नॉलेज का लेवल घट सकता है।
एंडरसन ने कहा कि अब भी कई लोग ऐसे हैं, जो ऑनलाइन सर्च इंजनों का विरोध करते हैं। इसी सर्वे पर राजधानी का युवा वर्ग अपनी अलग-अलग राय रखता है। ज्यादातर मानते हैं कि इंटरनेट उनकी अहम जरूरतों में शुमार हो चुका है, क्योंकि इससे उन्हें फायदा ही मिला है। लेकिन कुछ का मानना यह भी है कि इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल या फिर उसका आदी हो जाना नुकसानदेह है।
स्टूडेंट्स का नजरिया
इंटरनेट ज्ञान का अथाह संसार है। लिहाजा यह मेरे जैसे स्टूडेंट्स के लिए तो फायदेमंद है। इंटरनेट के इस्तेमाल से दिमाग तेज किया जा सकता है, इसमें काफी हद तक सच्चाई है। लेकिन इसमें भी कोई दो राय नहीं कि इसके नुकसान भी हैं।
सी भी फील्ड को ले लीजिए इंटरनेट में हर किसी की जरूरत की सामग्री मिल जाती है। हमारे छोटे-छोटे डाउट्स भी इंटरनेट से दूर कर लेते हैं। कई अहम जानकारियां भी हमें इंटरनेट से मिल जाती हैं। यह कहना गलत है कि इंटरनेट से हमारी जनरल नॉलेज का लेवल घटाता है, जबकि मेरा तजुर्बा है कि मेरी जनरल नॉलेज इंटरनेट के इस्तेमाल से बढ़ा है।
इंटरनेट पर ऑनलाइन सर्च इंजन में हमें हर वह जानकारी आसानी से उपलब्ध हो जाती है, जिसे जानने के लिए पहले हमें घंटों लाइब्रेरी में किताबें और फिर उनमें जानकारी खोजनी पड़ती थी। आज हमारी चाही गई जानकारी कभी भी, कहीं भी उपलब्ध है। मैं तो मानता हूँ कि इंटरनेट का इस्तेमाल हमें और शार्प बनाता है।
इंटनरेट से हमारे वक्त की बचत होती है। पहले हमें किसी जानकारी लेने के लिए काफी जद्दोजहद करनी प़ड़ती थी, लेकिन अब सब कुछ इंटरनेट पर उपलब्ध है। लिहाजा यह स्टूडेंट्स ही नहीं सभी के लिए फायदेमंद है।

शुक्रवार, 21 मई 2010

खबर-संसार

समलैंगिक दंपति के पक्ष में उतरी मैडोना

पॉप सनसनी मैडोना ने मलावी द्वारा दो समलैंगिकों को जेल भेजे जाने को ‘पिछड़ेपन’ का प्रतीक बताते हुए वहाँ के नागरिकों से अनुरोध किया है कि वे उन्हें मुक्त कराने के लिए आगे आएँ।
इससे पहले गुरुवार को मलावी की एक अदालत ने समलैंगिक होने के कारण स्टीवेन मोनजेजा और तिवोन्गे चिमबालांगा को 14 साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। प्रसिद्ध समलैंगिक चेहरे के रूप में जाने जानी वाली मैडोना ने अपने दो बच्चों को मलावी से गोद लिया है। मैडोना अदालत के इस निर्णय से काफी दुखी हैं।
मैडोना ने कहा कि मैं मलावी के अदालत के इस निर्णय से आश्चर्यचकित और दुखी हूँ। अदालत ने दो निर्दोष लोगों को जेल भेज दिया। अगर सिद्धांतों की बात करें तो मैं सभी लोगों के लिए समान अधिकार में विश्वास करती हूँ फिर चाहे उनका लिंग, जाति, रंग और धर्म कुछ भी हो।
उन्होंने कहा कि आज मलावी ने पिछड़ेपन की तरफ एक बड़ा कदम उठाया है। यह विश्व दर्द और दुखों से भरा हुआ है इसलिए हमें प्यार और अपने चाहने वाले के लिए मूलभूत मानवाधिकारों का समर्थन करना चाहिए।

नेहा धूपिया : फिलहाल करियर महत्वपूर्ण

नेहा धूपिया को इस बात की पूरी उम्मीद है आने वाली फिल्म ‘विद लव टू ओबामा’ उनके करियर की महत्वपूर्ण फिल्म साबित होगी। हाल ही में इस फिल्म की शूटिंग आरंभ हुई थी। तेजी से काम हुआ और फिल्म की शूटिंग खत्म भी हो गई।
मायावती से प्रेरित नेहा का किरदार!
फिल्म में नेहा मेरठ की मुन्नी मैडम बनी हैं जो एक डकैत है। इस बात की चर्चा है कि उनके किरदार के बोलने का तरीका, बॉडी लैंग्वज और स्टाइल मायावती से प्रेरित है। नेहा ने इस मामले में चुप्पी साध रखी है क्योंकि वे फिल्म को विवादों से बचाए रखना चाहती हैं।

शबाना से लिए टिप्स
नेहा पहली बार डकैत बनी हैं। रोल उनके लिए चैलेंजिंग था, इसलिए उन्होंने एक्टिंग के कुछ टिप्स शबाना आजमी से लिए। नेहा ने जिस भाषा में संवाद बोले हैं उसके उच्चारण के लिए उन्होंने काफी मेहनत की है।

करियर से खुश
नेहा का मानना है कि उनका करियर सही राह पर है और वे बेहद खुश हैं। जहाँ एक ओर ‘दे दना दन’, ‘सिंह इज़ किंग’ जैसी बड़ी फिल्मों में उन्हें अवसर मिल रहे हैं वहीं दूसरी ओर ‘मिथ्या’, ‘रात गई बात गई’ जैसी ऑफबीट फिल्मों में भी उन्हें रोल मिल रहे हैं।

शादी की जल्दी नहीं
नेहा का अरसे से ऋत्विक भट्टाचार्य से रोमांस चल रहा है, लेकिन नेहा इस बारे में बात करना बहुत कम पसंद करती हैं। दरअसल ऋत्विक अपने रोमांस की चर्चा नहीं करना चाहते हैं और मीडिया से दूर रहना चाहते हैं, इसलिए नेहा उनकी पूरी मदद करती है। वैसे नेहा उन्हें सिर्फ अपना दोस्त बताती हैं। जहाँ तक शादी का सवाल है तो नेहा का कहना है कि उनके करियर का स्वर्णिम दौर चल रहा है और उन्हें शादी की जल्दी नहीं है।

रोमांस

छू लेने दो नाजुक होंठों को..।

Mप्यार का इजहार, इकरार और फिर रोजाना की मुलाकातें, एक-दूसरे को जानने-समझने की कोशिश, कभी रूठना, कभी मनाना और भी न जाने क्या-क्या...! लेकिन इसी राह में कुछ अनकही बातें ऐसी भी होती हैं, जो बार-बार दिल में कसक पैदा करती हैं। दिल कहता है बस उनके साथ, उनके हाथों में हाथ लेकर, उनकी आँखों में आँखें डालकर देखते रहें और समझते रहें अनकहे शब्दों की जुबाँ।
सिर्फ उनके पास बैठने और निगाहों की जुबाँ समझने तक ही आपका दिल नहीं रुकता। जैसे-जैसे प्यार परवान चढ़ने लगता है आपकी अपेक्षाएँ बढ़ने लगती हैं। अब आप सिर्फ निगाहों में ही बातें नहीं करते आपके दिल में उठ रही लहर आपको इससे आगे बढ़ने के लिए उत्तेजित करती है। अब आप उन्हें अपनी बाँहों में भर लेना चाहते हैं, उन्हें चूमना चाहते हैं। लेकिन ये क्या? थोड़ा ठहरिए। क्या आप ठीक से चुंबन लेना जानते हैं?
'हुँह... इसमें कौनसी बड़ी बात है?' यही सोच रहे हैं न आप। लेकिन जनाब आपको बता दूँ कि चुंबन लेना भी एक कला है और यदि आप इस कला में माहिर हैं तो इससे न सिर्फ आप संतुष्ट होंगे बल्कि आपके पार्टनर को भी अच्छा लगेगा।

अच्छा तो अब जरा आपको बता दें कि ये कला कैसे सीखी जाए लेकिन इसे सीखने के पहले एक बात का जरूर ध्यान रखें कि किसी भी प्रकार की जबर्दस्ती आपके प्यार में दरार डाल सकती है। अपनी उत्तेजना को काबू में रखें और प्रेम की मर्यादा बनाए रखें अन्यथा बाद में पछताने के सिवा कुछ नहीं रह जाएगा।
लीजिए सबसे पहली टिप्स। जब आप उनके साथ किसी रोमांटिक सी जगह पर बैठे हैं और आपका दिल बार-बार उन्हें चूमने के लिए कह रहा है लेकिन आप शायद इसलिए हिचक महसूस कर रहे हैं कि कहीं वो आपको गलत न समझ लें।

ना-ना! इसमें इतना हिचकने वाली बात नहीं है। हो सकता है शायद उनके मन में भी यही हो बस इसे कम्प्लीट रूप देने की जरूरत है। क्या करें इसके लिए? उन्हें अपने करीब लाएँ और उनके कंधे या कमर में हाथ डालकर बैठे रहें। कुछ देर इस स्थिति में बैठे रहने के बाद उनका चेहरा अपने हाथों में लेकर उन्हें लगातार देखते रहें। एक्शन का रिएक्शन होगा। यानी उनकी भावनाएँ भी उभरकर सामने आने लगेंगी। अब फिर होना क्या है? वैसे भी जब आप इतने रोमांटिक तरीके से बैठे हैं तो चुंबन तो स्वाभाविक है।

जब आप उन्हें चूम रहे हैं तो आपके होंठों की क्या स्थिति हो, अब जरा इस पर बात कर ली जाए। उनके होंठों पर चुंबन लेते समय आप दोनों के होंठ कुछ इस तरह से हों कि दोनों कम्फर्टेबल हों तो आप इसे अच्छे से अंजाम दे पाएँगे। यानी आपका ऊपरी होंठ उनके ऊपरी होंठ के ऊपर हो और निचला उनके निचले होंठ के अंदर। हाँ थोड़ा इस बात का भी ध्यान रखें कि आपके सिर विपरीत दिशाओं में थोड़े झुके हों और आपकी नाक एक-दूसरे से नहीं टकराए।
पने होंठों को बिलकुल वैसी ही गति दें जैसे आप किसी च्यूइंगम को चबा रहे हों या फिर किसी गोली को चूस रहे हों। अं.... वैसे ये कोई बताने वाली बात नहीं है क्योंकि ये अपने आप ही हो जाएगा।

कुछ और रोमांटिक बनाने के लिए उन्हें अपने से थोड़ा दूर करें और फिर करीब खींचकर चूमें। अपनी जीभ उनके होंठों पर फिराएँ। उनके गालों पर, ठोढ़ी पर और गर्दन पर चुंबन लें। ये कुछ ऐसे करें कि आपकी भावनाएँ स्पष्ट रूप से नजर आएँ। और हाँ इस बात का ध्यान जरूर रखें कि आपकी भावनाएँ पवित्र हों, किसी प्रकार का गलत विचार आपके मन में न हो। यदि ऐसा हुआ तो यह आपके चेहरे पर साफ तौर से झलकेगा और ये बात आपका साथी जरूर समझ जाएगा।

आईटी

पेन ड्राइव को बनाएँ कंप्यूटर की रैम

किसी भी कंप्यूटर की कार्य क्षमता में उसकी 'मेमोरी' (रैम) बहुत महत्वपूर्ण होती है। वैसे भी आजकल कंप्यूटरों में इतने 'भारी-भरकम' सॉफ्टवेयर और फाइलें इस्तेमाल होने लगी हैं कि उनके लिए ज्यादा से ज्यादा मेमोरी की जरूरत पड़ती है। पर दिक्कत यह आती है कि एक तो कंप्यूटर की रैम बहुत महंगी होती है और दूसरा इसे कंप्यूटर खोलकर फिट करना पड़ता है।

ऐसे में रैम का 'अपग्रेडेशन' झंझट वाला काम लगता है। लेकिन अब इसका हल भी आपके पेन ड्राइव (फ्लैश ड्राइव) में मौजूद है। आजकल कुछ ऐसे खास सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं जिनकी मदद से पेन ड्राइव का इस्तेमाल करके आप अपने कंप्यूटर की कार्य क्षमता में आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ोतरी कर सकते हैं।

इस रूप में पेन ड्राइव का प्रयोग न केवल सुविधाजनक, बल्कि सस्ता भी होता है। जहाँ दो जीबी स्टोरेज वाले एक पेन ड्राइव की कीमत 200-300 रुपए है, वहीं दो जीबी रैम इससे 10 गुना से भी अधिक महँगी है। इसके अलावा पेन ड्राइव का इस्तेमाल भी बहुत आसान होता है। यूएसबी पोर्ट में लगाओ, बस हो गया आपका कंप्यूटर 'सुपर कंप्यूटर'।


NDपेन ड्राइव को कंप्यूटर मेमोरी की तरह काम में लेने वाली यह तकनीक लैपटॉप के लिए उपयोगी है। इसमें लगने वाली रैम डेस्कटॉप की रैम से भी महंगी होती है और हार्डडिस्क की स्पीड भी डेस्कटॉप की तुलना में कम होती है।

माइक्रोसॉफ्ट के ऑपरेटिंग सिस्टम विंडोज विस्टा व विंडोज-7 की 'रेडीबुस्ट' तकनीक के अलावा अन्य ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए 'ईबुस्टर' जैसे सॉफ्टवेयर पेन ड्राइव के जरिए कंप्यूटर को नई गति देने का काम कर रहे हैं। इनकी सहायता से बार-बार इस्तेमाल होने वाली फाइल, एप्लीकेशन या प्रोग्राम अपेक्षाकृत ज्यादा तेजी से चलाए जा सकते हैं।

इस तकनीक से जुड़े सॉफ्टवेयर इस बात का ध्यान रखते हैं कि आप किस प्रोग्राम को ज्यादा चलाते हैं। इन्हें वे मेमेरी या 'वर्चुअल मेमेरी' के एक भाग में 'रिजर्व' करके रख लेते हैं। फिर जब भी आप उसके लिए कमांड देते हैं तो वे सीधे इस मेमोरी से ही चलते हैं। इससे कंप्यूटर के काम करने की गति तेज हो जाती है। यही वजह है कि अधिक मेमोरी होने से कंप्यूटर की गति तेज लगती है। इस तकनीक से कंप्यूटर के 'बूट' (स्टार्ट) होने की गति भी पहले की तुलना बढ़ जाती है।

असल में, कंप्यूटर में जो भी काम होता है वह प्रोसेसर द्वारा मेमोरी में ही जाता है, पर चूंकि मेमोरी की क्षमता एक सीमा तक ही होती है इसलिए बड़े-बड़े प्रोग्राम या फाइलों के लिए कंप्यूटर की हार्डडिस्क में 'वर्चुअल मेमोरी' जैसी विधि की व्यवस्था होती है, लेकिन यहां यह दिक्कत आती है कि हार्डडिस्क की स्पीड कम होती है और अगर एक साथ कई-कई काम किए जाने लगें तो यह और कम हो जाती है।

ऐसे में अगर पेन ड्राइव को इस रूप में प्रयुक्त किया जाए तो जाहिर है इससे कंप्यूटर की क्षमता बढ़ जाएगी क्योंकि यह हार्डडिस्क में बनी वर्चुअल मेमोरी से कई गुना अधिक तेजी से काम कर पाता है। इस तरह यह कंप्यूटर के लिए अतिरिक्त 'कैशिंग' साबित होता है। वैसे पेन ड्राइव के अलावा सीएफ, एसडी, एसडीएचसी, एमएमसी, एक्सडी जैसे दूसरे कई मेमोरी कार्ड या एक्सटर्नल हार्ड डिस्क का भी इस रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। बशर्ते उनकी 'रीड-राइट स्पीड' अच्छी हो।

कैसे करें इस्तेमाल?
माइक्रोसॉफ्ट के विंडोज विस्टा व विंडोज-7 की रेडीबुस्ट तकनीक या 'ईबुस्टर' प्रोग्राम वाले कंप्यूटर में पेन ड्राइव के जरिए कंप्यूटर की कार्य क्षमता बढ़ाना आसान होता है। जब कोई पेन ड्राइव कंप्यूटर से जोड़ा जाता है, तो कंप्यूटर अपने आप पता लगा लेता है कि डिवाइस की गति या क्षमता इस काम के लिए सही है या नहीं। अगर यह सही हो तो सिस्टम आपसे इसके द्वारा कंप्यूटर की क्षमता बढ़ाने के लिए पूछता है।

आप दी गई एक न्यूनतम सीमा से अधिक इसके लिए निर्धारित करके कंप्यूटर तेज कर सकते हैं। बस, इसके बाद आपको अपना कंप्यूटर एक बार रि-र्स्टाट करना होता है। यहाँ इस बात का ख्याल जरूर रखें कि जो भी पेन ड्राइव या दूसरे कार्ड आप इस काम केलिए इस्तेमाल कर रहे हैं वे यूएसबी 2.0 क्षमता वाले हों।