सोमवार, 27 दिसंबर 2010

सम सामयिक

जब दुर्योधन ने भीम को विष पिलाया

हस्तिनापुर में आने के बाद पाण्डवों को वैदिक संस्कार सम्पन्न हुए। पाण्डव तथा कौरव साथ ही खेलने लगे। दौडऩे में, निशाना लगाने तथा कुश्ती आदि सभी खेलों में भीम सभी धृतराष्ट्र पुत्रों को हरा देते थे। भीमसेन कौरवों से होड़ के कारण ही ऐसा करते थे लेकिन उनके मन में कोई वैर-भाव नहीं था। परंतु दुर्योधन के मन में भीमसेन के प्रति दुर्भावना पैदा हो गई। तब उसने उचित अवसर मिलते ही भीम को मारने का विचार किया।
दुर्योधन ने एक बार खेलने के लिए गंगा तट पर शिविर लगवाया। उस स्थान का नाम रखा उदकक्रीडन। वहां खाने-पीने इत्यादि सभी सुविधाएं भी थीं। दुर्योधन ने पाण्डवों को भी वहां बुलाया। एक दिन मौका पाकर दुर्योधन ने भीम के भोजन में विष मिला दिया। विष के असर से जब भीम अचेत हो गए तो दुर्योधन ने दु:शासन के साथ मिलकर उसे गंगा में डाल दिया। भीम इसी अवस्था में नागलोक पहुंच गए। वहां सांपों ने भीम को खूब डंसा जिसके प्रभाव से विष का असर कम हो गया। जब भीम को होश आया तो वे सर्पों को मारने लगे। सभी सर्प डरकर नागराज वासुकि के पास गए और पूरी बात बताई।
तब वासुकि स्वयं भीमसेन के पास गए। उनके साथ आर्यक नाग ने भीम को पहचान लिया। आर्यक नाग भीम के नाना का नाना था। वह भीम से बड़े प्रेम से मिले। तब आर्यक ने वासुकि से कहा कि भीम को उन कुण्डों का रस पीने की आज्ञा दी जाए जिनमें हजारों हाथियों का बल है। वासुकि ने इसकी स्वीकृति दे दी। तब भीम आठ कुण्ड पीकर एक दिव्य शय्या पर सो गए।

न्यू यिअर पार्टी से मत रोको पापा
डियर पापा,
मुझे समझ में नहीं आ रहा कि आप मुझे न्यू यिअर पार्टी में क्यों नहीं जाने देना चाहते। कल रात मैंने आपकी और ममी की बातें सुन ली थीं। इससे मुझे समझ में आ गया कि आप किन चीजों से हिचक रहे हैं। पापा, मुझे भी मालूम है कि दिल्ली में इन दिनों क्राइम बहुत बढ़ गया है।
लड़कियां सेफ नहीं रह गई हैं। लेकिन क्या इस कारण लड़कियों ने स्कूल-कॉलेज और ऑफिस जाना बंद कर दिया? पापा, मैं अब आठवीं क्लास में आ गई हूं। अपनी जिम्मेदारी और आपकी फीलिंग्स को भी समझती हूं। मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी जिससे आप लोगों को तकलीफ पहुंचे। अब मेरा भी तो मन करता है कि न्यू इयर्स की पार्टी दोस्तों के साथ एंजॉय करें। इसमें कोई नई बात तो है नहीं।
आप खुद बताते हैं कि बचपन में आप मोहल्ले भर के बच्चों के साथ मेला देखने जाते थे। न्यू इयर्स की पार्टी उसी मेले का मॉडर्न रूप है। मैं किसी अनजान लोगों के साथ तो पार्टी में जा नहीं रही हूं। इसमें हमारी कई फ्रेंड्स रहेंगी और सीनियर्स भी। आपने स्कूल की पिकनिक में जाने से तो मना नहीं किया था।
जैसे वहां बच्चों ने एक-दूसरे का हमेशा ख्याल रखा वैसे ही इसमें भी रखेंगे। फिर पड़ोस की मुग्धा दीदी भी तो रहेंगी। मैं उन्हीं के साथ चली जाऊंगी। लौटते समय क्या आप रात में हमें पिक अप करने नहीं आ सकते? एक दिन की तो बात है। मेरे लिए थोड़ी तकलीफ उठा लीजिए। प्लीज पापा।
आपकी बेटी

उन्हें रोककर तो दिखाओ
नवभारत टाइम्स
सड़कों पर भारी ट्रैफिक के चलते जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं मेट्रो से ऑफिस आना पसंद करता हूं। उस दिन दफतर में एक लेख लिखते हुए थोड़ा लेट हो गया था। मेट्रो पकड़ी और अपने घर के नजदीकी स्टेशन पर उतरा। मेरा फ्लैट, स्टेशन से करीब दो किलोमीटर दूर है। वहां तक का रिक्शे का किराया 10 रुपया है। मैंने बाहर निकलकर एक रिक्शे वाले को पुकारा। मैंने रिक्शे वाले से पूछा- परवाना विहार चलोगे? वह बोला, चलूंगा, मगर 15 रुपये लूंगा। मैं हंसा- लगता है कि तुम मुझे परदेसी समझ रहे हो। मैं यहीं का बाशिंदा हूं। रिक्शा वाला बोला- रात का वक्त है। मैंने कहा- बहानेबाजी मत कहो, 10 रुपये में चलो। चूंकि वहां सवारी कम थी, रिक्शा वाला मन मारकर राजी हो गया।
क्शा थोड़ी दूर ही गया था कि मैंने रिक्शे वाले से बातचीत शुरू की। मैंने कहा- भैया, थोड़ी ईमानदारी रखा करो। कोई जरूरतमंद मिल गया तो मनमाना किराया वसूलोगे। यह क्या तरीका है। वह बोला- हम मेहनत करते हैं। मुझे गुस्सा आया- तो क्या हम लोग मेहनत नहीं करते। हम भी मेहनत करते हैं। ठीक है कि तुम शारीरिक मेहनत ज्यादा करते हो, हम दिमागी तौर पर मेहनत करते हैं। रिक्शे वाले ने पूछा- क्या करते हैं आप? मैंने कहा- पत्रकार हूं। रिपोर्टर हूं, जानते हो, रिपोर्टर किसे कहते हैं। जो खबरें लाता है, उसे लिखता है, तभी अखबार में खबरें छपती है। अब बोलो, क्या मैं मेहनत नहीं करता। भैया मेहनत सभी करते हैं। ऐसे में तुम जो 10 रुपये की जगह 15 रुपये किसी मेहनतकश से वसूलते हो वह गलत है। जो तुम्हारा बनता है, उसे लो। उसे देने में कोई ऐतराज नहीं करेगा और किसी को दुख भी नहीं होगा। मैं बोलता रहा, वह रास्ते भर.. हूं, हूं करके सुनता रहा।
मेरे अपार्टमेंट का गेट आ गया। मैं उतरा, जेब से रुपये निकालता, तभी रिक्शा वाला बोला- आप पत्रकार हैं। मुझे काफी कुछ सीख दे रहे थे। ठीक है मैं रिक्शा चला रहा हूं, मगर मैं भी थोड़ा- बहुत पढ़ा लिखा हूं। मैंने 10 की जगह 15 रुपये मांग लिए तो आप इतना बोल रहे हैं। आप पत्रकार हैं तो उन लोगों को कुछ बोलिए न जो घोटाला करके करोड़ों रुपये देश का डकार गए। रोज अखबार में छप रहा है कि यह घोटाला हुआ, वो घोटाला हुआ। आप ही लोग छाप रहे हैं। देश, प्रदेश के नेता से लेकर सरकारी बाबू तक करोड़ों रुपये कमा रहे हैं, वह भी नाजायज रूप से। रात का समय है, सर्दी लग रही है, अगर मैंने पांच रुपये ज्यादा मांग लिये तो आप इतना बोल रहे हैं। पत्रकार हैं आप, उनको रोकिए घोटाला करने से, जो नाजायज तरीके से ऐसा कर रहे हैं।
मैं सहम गया। उसकी बातों में सच की आंच थी जिसे सहने की ताकत मुझमें नहीं थी। हम पत्रकार-बुद्धिजीवी बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं पर आम आदमी के सवालों का कोई जवाब हमारे पास नहीं है। मैंने चुपचाप जेब से 15 रुपये निकाले और उसे दे दिए। उससे आंख मिलाने का साहस मैं नहीं कर पा रहा था।


मन की जीत
नमि नामक राजा राजपाट छोड़कर तपस्या करने निकले। वह ज्यों ही राजमहल से बाहर आए, एक देवदूत उनकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से सामने आकर खड़ा हो गया और बोला, 'राजन्! आप जा रहे हैं। किंतु पहले आपका कर्त्तव्य है कि आप अपने महल की रक्षा के लिए मजबूत दरवाजे, बुर्ज, खाई और तोपखाना आदि बनाकर जाएं ताकि प्रजा और भावी सम्राट सुरक्षित रह सकें।'
इस पर नमि ने कहा, 'हे देव। मैंने ऐसा नगर बनाया है जिसके चारों ओर श्रद्धा, तप और संयम की दीवारें हैं। मन, वचन और काया की एकरूपता की खाई भी है। जिस तरह शत्रु जमीन की खाई को पार कर नगर में प्रवेश नहीं कर सकता, उसी तरह अन्य स्थानों पर व्याप्त वैमनस्य, छल-कपट, काम, क्रोध और लोभ भी मेरी बनाई खाइयों को लांघकर आत्मा में प्रविष्ट नहीं हो सकते। मेरा पराक्रम मेरा धनुष है। मैंने उसमें धैर्य की मूठ लगाई है और सत्य की प्रत्यंचा चढ़ाई है। भौतिक संग्राम से मुझे क्या लेना-देना।
मैंने तो आध्यात्मिक संग्राम के लिए सामग्री इकट्ठी की है। मेरे जीवन की दिशा बदलने के साथ ही मेरे संग्राम का रूप भी बदल गया है। ऐसा नहीं है कि ये सारी शिक्षाएं मैंने स्वयं ली हैं अपितु यह मेरे राज्य के एक-एक नागरिक के तन-मन में रची-बसी हैं। इसलिए मुझे अपने राज्य की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।' देवदूत ने कहा, 'राजा का कर्त्तव्य है कि वह अपने आसपास के सभी राज्यों को अपने अधीन करे।
आप इस कार्य को पूरा करके ही साधु बनें।' यह सुन कर नमि बोले, 'जो रणभूमि में दस हजार योद्धाओं को जीतता है, वह बलवान माना जाता है, किंतु उससे भी अधिक बलवान वह है, जो अपने मन को जीत लेता है। दूसरों को अधीन करने से अच्छा है अपने मन को अधीन करना। जिसने मन को जीत लिया उसने विश्व को जीत लिया।' यह सुनकर देवपुरुष उनके आगे नतमस्तक हो गया और उन्हें शुभकामनाएं देकर चला गया।
प्रस्तुतकर्ता अरुण बंछोर पर 27.12.10 0 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक
नए साल के लिए एक जनवरी ही क्यों
एक जनवरी नजदीक आ गई है। जगह-जगह हैपी न्यू ईयर के बैनर व होर्डिंग लग गए हैं। जश्न मनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। जनवरी से प्रारंभ होने वाली काल गणना को हम ईस्वी सन् के नाम से जानते हैं जिसका संबंध ईसाई जगत् व ईसा मसीह से है। इसे रोम के सम्राट जूलियस सीजर द्वारा ईसा के जन्म के तीन वर्ष बाद प्रचलन में लाया गया था।
भारत में ईस्वी संवत् का प्रचलन अंग्रेज शासकों ने वर्ष 1752 में शुरू किया। अधिकांश राष्ट्रों के ईसाई होने और अंग्रेजों के विश्वव्यापी प्रभुत्व के कारण ही इसे अनेक देशों ने अपना लिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नवम्बर 1952 में हमारे देश में वैज्ञानिक और औद्योगिक परिषद द्वारा पंचांग सुधार समिति की स्थापना की गई। समिति ने 1955 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रमी संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की थी। मगर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन कैलंडर को ही सरकारी कामकाज के लिए उपयुक्त मानकर 22 मार्च 1957 को इसे राष्ट्रीय कैलंडर के रूप में स्वीकार कर लिया गया।
ग्रेगेरियन कैलंडर की काल गणना मात्र दो हजार वर्षों के काफी कम समय को दर्शाती है। जबकि यूनान की काल गणना 3579 वर्ष, रोम की 2756 वर्ष, यहूदियों की 5767 वर्ष, मिस्र की 28670 वर्ष, पारसी की 198874 वर्ष चीन की 96002304 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो भारतीय ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गई है। जिस प्रकार ईस्वी संवत् का संबंध ईसाई जगत से है उसी प्रकार हिजरी संवत् का संबंध मुस्लिम जगत से है। लेकिन विक्रमी संवत् का संबंध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रह्मांड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परंपराओं को दर्शाती है।
भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए हमें सही दिशा प्रदान करते हैं उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं। राष्ट्र के स्वाभिमान व देशप्रेम को जगाने वाले अनेक प्रसंग चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से जुडे़ हुए हैं। यह वह दिन है, जिससे भारतीय नव वर्ष प्रारंभ होता है। यह सृष्टि रचना का पहला दिन है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की। विक्रमी संवत् के नाम के पीछे भी एक विशेष विचार है। यह तय किया गया था कि उसी राजा के नाम पर संवत् प्रारंभ होगा जिसके राज्य में न कोई चोर हो न अपराधी हो और न ही कोई भिखारी। साथ ही राजा चक्रवर्ती भी हो।
सम्राट विक्रमादित्य ऐसे ही शासक थे जिन्होंने 2067 वर्ष पहले इसी दिन अपना राज्य स्थापित किया था। प्रभु श्रीराम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में अपने राज्याभिषेक के लिए चुना। युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। विक्रमादित्य की तरह शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।
प्राकृतिक दृष्टि से भी यह दिन काफी सुखद है। वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है। यह समय उल्लास - उमंग और चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरा होता है। फसल पकने का प्रारंभ अर्थात किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् नए काम शुरू करने के लिए यह शुभ मुहूर्त होता है। क्या एक जनवरी के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम का भाव पैदा हो सके या स्वाभिमान तथा श्रेष्ठता का भाव जाग सके ? इसलिए विदेशी को छोड़ कर स्वदेशी को स्वीकार करने की जरूरत है। आइए भारतीय नव वर्ष यानी विक्रमी संवत् को अपनाएं।
विनोद बंसल

चार मित्र
सेन के राज्य में प्रजा बहुत खुशहाल और संतुष्ट थी। वहां कभी किसी तरह का तनाव नहीं होता था। यह बात पड़ोसी राज्य के राजा कुशल सेन तक भी पहुंची। उसके यहां आए-दिन झगड़े होते रहते थे और प्रजा बहुत दु:खी थी। राजा कुशल सेन अपने पड़ोसी राज्य की सुख-शांति व खुशहाली का राज जानने के लिए आदर्श सेन के पास पहुंचा और बोला, 'मेरे यहां हर ओर दु:ख-दर्द व बीमारी फैली है। पूरे राज्य में त्राहि-त्राहि मची हुई है। कृपया मुझे भी अपने राज्य की सुख-शांति का राज बताएं।' कुशल सेन की बात सुनकर राजा आदर्श सेन मुस्कुरा कर बोला, 'मेरे राज्य में सुख-शांति मेरे चार मित्रों के कारण आई है।' इससे कुशल सेन की उत्सुकता बढ़ गई।
उसने कहा, 'कौन हैं वे आपके मित्र? क्या वे मेरी मदद नहीं कर सकते?' आदर्श सेन ने कहा, 'जरूर कर सकते हैं। सुनिए मेरा पहला मित्र है सत्य। वह कभी मुझे असत्य नहीं बोलने देता। मेरा दूसरा मित्र प्रेम है, वह मुझे सबसे प्रेम करने की शिक्षा देता है और कभी भी घृणा करने का अवसर नहीं देता। मेरा तीसरा मित्र न्याय है। वह मुझे कभी भी अन्याय नहीं करने देता और हर वक्त मेरे आंख-कान खुले रखता है ताकि मैं राज्य में होने वाली घटनाओं पर निरंतर अपनी दृष्टि बनाए रखूं। और मेरा चौथा मित्र त्याग है। त्याग की भावना ही मुझे स्वार्थ व ईर्ष्या से बचाती है। ये चारों मिलकर मेरा साथ देते हैं और मेरे राज्य की रक्षा करते हैं।' कुशल सेन को आदर्श सेन की सफलता का रहस्य समझ में आ गया।

महात्मा की शिक्षा
एक बार मगध के राजा चित्रांगद वन विहार के लिए निकले। साथ में कुछ बेहद करीबी मंत्री और दरबारी भी थे। वे घूमते हुए काफी दूर निकल गए। एक जगह सुंदर सरोवर के किनारे किसी महात्मा की कुटिया दिखाई दी। वह जगह राजा को बहुत पसंद आई हालांकि वह उसे दूर से ही देखकर निकल गए। राजा ने सोचा कि महात्मा अभावग्रस्त होंगे, इसलिए उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुछ धन भिजवा दिया। महात्मा ने वह धनराशि लौटा दी। कुछ दिनों बाद और अधिक धन भेजा गया, पर सब लौटा दी गई। तब राजा स्वयं गए और उन्होंने महात्मा से पूछा, 'आपने हमारी भेंट स्वीकार क्यों नहीं की?'
महात्मा हंसते हुए बोले, 'मेरी अपनी जरूरत के लिए मेरे पास पर्याप्त धन है।' राजा ने कुटिया में इधर-उधर देखा, केवल एक तुंबा, एक आसन एवं ओढ़ने का एक वस्त्र था, यहां तक कि धन रखने के लिए कोई अलमारी आदि भी नहीं थी। राजा ने फिर कहा, 'मुझे तो कुछ दिखाई नहीं देता।' महात्मा ने राजा को पास बुलाकर उनके कान में कहा, 'मैं रसायनी विद्या जानता हूं। किसी भी धातु से सोना बना सकता हूं।' अब राजा बेचैन हो गए, उनकी नींद उड़ गई। धन-दौलत के आकांक्षी राजा ने किसी तरह रात काटी और सुबह होते ही महात्मा के पास पहुंचकर बोले, 'महाराज! मुझे वह विद्या सिखा दीजिए, ताकि मैं राज्य का कल्याण कर सकूं।' महात्मा ने कहा, 'ठीक है पर इसके लिए तुम्हें समय देना होगा। वर्ष भर प्रतिदिन मेरे पास आना होगा। मैं जो कहूं उसे ध्यान से सुनना होगा। साल पूरा होते ही विद्या सिखा दूंगा।' राजा रोज आने लगे। महात्मा के साथ रहने का प्रभाव जल्दी ही दिखने लगा। एक वर्ष में राजा की सोच पूरी तरह बदल गई। महात्मा ने एक दिन पूछा, 'वह विद्या सीखोगे?' राजा ने कहा, 'गुरुदेव! अब तो मैं स्वयं रसायन बन गया। अब किसी नश्वर विद्या को सीखकर क्या करूंगा।'


क्यों कहते हैं विष्णु को नारायण?
हिंदू धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि सृष्टि का निर्माण त्रिदेवों ने मिलकर किया है। भगवान विष्णु को सृष्टि का संचालनकर्ता माना गया है। कहते हैं कि जब भी धरती पर कोई मुसीबत आती है तो भगवान विभिन्न अवतार लेकर आते हैं और हमें उन मुसीबतों से बचाते हैं।
हिन्दू धर्म में भगवान के जितने रूप है उतने ही उनके नाम भी बताये गए है। भगवान विष्णु का ऐसा ही एक नाम है नारायण। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा कि भगवान को नारायण क्यों कहते हैं? भगवान विष्णु का नारायण नाम कैसे पड़ा?
विष्णु महापुराण में भगवान के नारायण नाम के पीछे एक रहस्य बताया गया है। इसमें कहा गया है कि जल की उत्पत्ति नर अर्थात भगवान के पैरों से हुई है इसलिए पानी को नीर या नार भी कहा जाता है। चूंकि भगवान का निवास स्थान (अयन) पानी यानी कि क्षीर सागर को माना गया है इसलिए जल में निवास करने के कारण ही भगवान को नारायण (नार+अयन) कहा जाता है।
हमारे शास्त्रों नें बताया है कि इस सृष्टि का निर्माण भी जल से हुआ है। और भगवान के पहले तीन अवतार भी जल से उत्पन्न हुए हैं इसलिए हिन्दू धर्म में जल को देव रूप मे पूजा जाता है।

रविवार, 19 दिसंबर 2010

छत्तीसगढ़ की ख़ास खबरें

प्रधान पाठक बने शिक्षाकर्मियों की नींद उड़ी
रायपुर शिक्षाकर्मियों को प्रधानपाठक बनाए जाने की प्रक्रिया पर बिलासपुर हाईकोर्ट के तीखे तेवरों से बलौदाबाजार शिक्षा जिले में नवनियुक्त प्रधान पाठकों के होश उड़े हुए हैं। इस परीक्षा में नियुक्ति के लिए दो करोड़ रुपए से ज्यादा के लेन-देन की खबरें आ रही हैं।
चयन के लिए लोगों ने एक से दो लाख रुपए दिए, ऐसी चर्चा है। पैसे देकर चुने गए शिक्षाकर्मियों को डर है कि चयन प्रक्रिया ही अदालत में रद्द हो गई, तो उनके पैसों का क्या होगा। दूसरी तरफ कोशिश हो रही है कि हाईकोर्ट का आदेश आने के पहले ही ज्यादातर लोगों की ज्वाइनिंग करवा दी जाए। राज्य शासन के निर्देश पर जिला शिक्षा अधिकारी बलौदाबाजार ने अपने जिले में प्रधान पाठकों के रिक्त पदों के लिए आवेदन मंगवाए थे। दो दिन पहले जनदर्शन में जिला पंचायत के सदस्य सुनील माहेश्वरी और मुरारी मिश्रा ने कई शिक्षाकर्मियों के साथ मुख्यमंत्री से लिखित शिकायत की थी। शिकायत में आरोप लगाया गया है कि परीक्षा में योग्य प्रत्याशियों का नाम काटकर अपात्रों को चुन लिया गया। परीक्षा में ६३ फीसदी अंक पाने वाले गंभीर सिंह ठाकुर, ५७ फीसदी वाले शैलेंद्र कुमार गजभिये, ५७ फीसदी वाली रानी कोसले का चयन नहीं किया गया। इनसे कम अंकों वाले लोग सलेक्ट हो गए। लिखित शिकायत के बावजूद आपत्ति का निराकरण नहीं किया गया। राज्य शासन ने जिला शिक्षा अधिकारी को छत्तीसगढ़ के राजपत्र में प्रकाशित 3 सितंबर 2008 और 13 अगस्त 2008 के भर्ती नियमों के आधार पर प्रधान पाठक बनाने को कहा था। चयन प्रक्रिया में राजपत्र के कई प्रावधानों का पालन नहीं किया गया।
इसमें सीधी भर्ती और चयन से संबंधित नियमों का विस्तार से जिक्र किया गया है। चयन प्रक्रिया को देखा जाए, तो इसमें राजपत्र में दिए गए कई प्रावधानों का पालन नहीं किया गया।
ये भी गड़बड़ी >
रामकुमार चंद्राकर नाम के एक परीक्षार्थी को दो स्कूलों में प्रधान पाठक बना दिया गया। > एक ऐसे शिक्षाकर्मी को प्रधान पाठक बनाया गया है, जो निलंबिन के बाद से विकास खंड शिक्षा अधिकारी धरसीवां में अटैच है। ब्लॉक शिक्षा अधिकारी ने इस शिक्षाकर्मी के आवेदन पत्र में उसके निलंबित होने का साफ जिक्र किया था।
नियम में था यह
1. सेवा में अभ्यर्थी का चुनाव चयन समिति द्वारा प्रतियोगी परीक्षा और साक्षात्कार के बाद किया जाना चाहिए थे।
हुआ ये
लिखित परीक्षा में गड़बड़ी हुई। साक्षात्कार के बिना ही प्रधानपाठकों की नियुक्ति और पोस्टिंग के आदेश जारी हो गए।
नियम में था यह
2. उपलब्ध रिक्त पदों में एससी, एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए क्रमश: १६, 20 और १४ फीसदी पद रखे जाने थे। महिला के 30 फीसदी पद रखे जाने चाहिए थे।
हुआ ये
अनुसूचित जनजाति के लिए 20 के स्थान पर १९ फीसदी को ही आरक्षण दिया गया। रोस्टर का भी पालन ठीक से नहीं किया गया।
नियम में था यह
३. आयु के बारे में राजपत्र में अलग-अलग वर्ग तय किए हैं, जिसमें अधिकतम सीमा का जिक्र है। अधिकतम आयु किसी भी तरह से ४५ साल होनी चाहिए।
हुआ ये
लवन इलाके की एक ऐसी शिक्षाकर्र्मी को भी प्रधान पाठक बना दिया गया, जो 46 साल आठ महीने की है। नियम विरुद्ध ज्यादा उम्र के कई और शिक्षाकर्मियों को प्रधानपाठक बना दिया गया।
नियम में था यह
४. चयन समिति में जिला शिक्षा अधिकारी उसके अध्यक्ष होते हैं। डाइट के प्राचार्य, ब्लॉक शिक्षा अधिकारी समेत अन्य सदस्यों कौन-कौन होंगे इसका साफ जिक्र नियमों में है।
हुआ ये
समिति को नियमों के हिसाब से नहीं बनाया गया। ऐसे लोग रखे गए, जो विरोध नहीं कर सकते थे। डाइट के प्राचार्य को चयन समिति में लगभग बाहर रखा गया।
नियम में था यह
५. राज्य शासन का साफ निर्देश है कि भर्ती में मध्यप्रदेश के समय जारी जाति प्रमाणपत्रों को मान्य नहीं किया जाएगा।
हुआ ये
20 फीसदी से ज्यादा परीक्षार्थियों ने मध्यप्रदेश सरकार के प्रमाणपत्रों को आवेदन पत्र में लगाया।
नियम में था यह
संविदा शिक्षा कर्मियों को प्रधान पाठक परीक्षा में पात्रता नहीं थी।
हुआ ये
शिक्षा अधिकारी के बेटे समेत कई लोग संविदा शिक्षक होने के बावजूद परीक्षा में न केवल शामिल हुए, बल्कि मेरिट लिस्ट में भी उनका
नाम आया।

ठंड से 6 नवजात लकड़बग्घों की मौत
रायपुर नंदनवन में लाए गए 6 नवजात लकड़बग्घों की अचानक मौत हो गई। उन्हें जगदलपुर जिले के एक गांव से लगे घने जंगलों से लाया गया था। इनके पालन-पोषण की यहां कोशिश की गई, लेकिन मौसम में आए अचानक बदलाव से यह बच नहीं पाए। अधिकारियों ने बताया कि जब इन्हें लाया गया तो ये महज चार दिन के थे। फिर दो हफ्ते तक ये जीवित रह पाए। मौत की खबर उच्च अधिकारियों को दे दी गई है।
नंदनवन के अफसरों ने बताया कि लकड़बग्घों के सभी 6 बच्चे कमजोर थे। छोटे होने की वजह से ये खाना नहीं खा सकते थे। लिहाजा इन्हें गाय का दूध पिलाने की कोशिश की जा रही थी। डाक्टरों का कहना है कि दूध भी ये ठीक से पी नहीं पाते थे, इसलिए इनका शरीर और भी कमजोर होता जा रहा था। हफ्ते भर पहले जब मौसम में अचानक बदलाव आया और पारा गिरा तो इनकी पल्स धीमी पड़ने लगी। 13 दिसंबर को पहले तीन की मौत हो गई, फिर अगले ही दिन बाकी के तीन ने भी दम तोड़ दिया। उन्हें बचाने के लिए सारी कोशिशें बेकार गईं। दवाइयां भी दी गईं, लेकिन वे ठंड सह नहीं पाए। अधिकारियों ने इसकी जानकारी उच्च स्तर पर दे दी है और बाकी जानवरों की देखभाल बढ़ा दी गई है।
ठंड नहीं बढ़ती, तो बच जाते :
नंदनवन के वेटनरी डाक्टर डा. जयकिशोर जड़िया ने कहा कि लकड़बग्घों के नवजात बच्चे महज चार दिन के थे। इन्हें कम से कम महीने भर तक मां के दूध की जरूरत पड़ती है। इसी से उनमें ठंड से लड़ने की क्षमता विकसित करनी होती है। उन्हें गाय का दूध पिलाया जा रहा था। इतनी कम उम्र में वे इसे पचा नहीं पाते। ऐसे में अगर मौसम ने साथ दिया होता तो बच्चे शायद बच जाते।
घायल नर लकड़बग्घा भी नहीं रहा : महासमुंद जिले के बागबहरा रोड के पास सड़क हादसे का शिकार हुआ नर लकड़बग्घा भी नहीं रहा। पांच दिन पहले उसकी भी मौत हो गई। डाक्टरों का कहना है कि उसकी कमर और पैरों की हड्डी हादसे में टूट गई थी। उसका इलाज किया गया और कुछ दिनों बाद वह स्वस्थ भी होने लगा था। ठंड बढ़ने से हड्डियों में दर्द बढ़ता गया और कमजोरी आने की वजह से उसने दम तोड़ दिया। डाक्टरों ने उसका पोस्टमार्टम कर रिपोर्ट विभाग को सौंप दी है।
तेंदुए के शावक अब तंदरुस्त: बागबहरा के जंगलों से लाए गए दो नन्हें तेंदुए के शावक अब स्वस्थ हैं। नंदनवन का अमला रविवार को इन्हें एक बड़े पिंजरे में शिफ्ट करेगा। इसकी तैयारियां की जा चुकी हैं। इनमें से एक नर और एक मादा है।
शुरुआत में दोनों बेहद बीमार थे। इनका बेहतर इलाज किया गया तो ये स्वस्थ्य होते गए। अब ये छोटे मांस के टुकड़े खाने लगे हैं। इन्हें मिलाकर नंदनवन में कुल आठ तेंदुए हो जाएंगे जिनमें से चार नर और बाकी मादा हैं।
लकड़बग्घे के बच्चे सिर्फ गाय का दूध पीते थे। मरने से पहले ऐसा ही एक बीमार बच्च दूध भी नहीं पी पा रहा था।
नवजात लकड़बग्घों को बचाने की बेहद कोशिश की गई, लेकिन वे दूध की फीडिंग नहीं कर पा रहे थे। गाय का दूध वे पचा नहीं पाते थे, जिससे उनका शरीर कमजोर होता गया और उनकी मौत हो गई।

तीन कहानियां

असली गरीब
एक भिक्षुक को दिन भर में जो कुछ मिलता था, उसे वह खा-पीकर समाप्त कर देता था। प्राय: उसे आवश्यकता के अनु
सार भिक्षा मिल जाया करती थी। एक दिन उसे उसकी जरूरत से ज्यादा एक पैसा मिल गया। वह सोचने लगा-इसका क्या उपयोग करूं? उसने उस एक पैसे को अपने चीथड़े के कोने में बांध लिया और एक पंडित के पास गया। उसने उनसे पूछा, 'महाराज, मैं अपनी संपत्ति का क्या सदुपयोग करूं?' पंडित जी ने पूछा, 'तुम्हारे पास कितनी संपत्ति है?' उसने कहा, 'एक पैसा।' इस पर पंडित जी चिढ़ गए। उन्होंने कहा, 'जा-जा, तू एक पैसे के लिए मुझे परेशान करने आया है।' वह भिक्षुक निराश नहीं हुआ। वह कई पंडितों के पास गया। कहीं हंसी मिली तो कहीं दुत्कार।

किसी सज्जन ने सलाह दी कि पैसा किसी गरीब को दे दो। अब भिक्षुक गरीब की तलाश में चल पड़ा। उसने अनेक भिखारियों से प्रश्न किया कि तुम गरीब हो? परंतु एक पैसे के लिए किसी ने गरीब बनना स्वीकार नहीं किया। तभी भिक्षुक को पता चला कि किसी देश काराजा अपने पड़ोसी राज्य पर चढ़ाई करने जा रहा है। उसने लोगों से पूछा, 'राजा चढ़ाई क्यों कर रहे हैं?' लोगों ने बताया 'धन-संपत्ति प्राप्त करने के लिए।' भिक्षुक को लगा कि राजा बहुत गरीब होगा। तभी तो धन-संपत्ति के लिए मारकाट करने पर आमादा है। क्यों न उसे ही पैसा दे दिया जाए।
जब राजा की सवारी उसके पास से गुजरने लगी, तो वह खड़ा हो गया और झटपट अपने चीथड़े में से पैसा निकालकर उसने राजा के हाथ पर डाल दिया। उसने कहा, 'मुझे बहुत दिनों से एक गरीब की तलाश थी। आज आपको पाकर मेरा मनोरथ पूरा हो गया, आप मेरी पूंजी संभालिए।' राजा रुक गया। भिक्षुक ने उसे अपनी कहानी सुनाई तो उसने धावा बोलने का इरादा बदल दिया और सारी फौज के सामने यह बात कबूल की- असली गरीब वह है, जिसके लालच का कोई अंत नहीं।

मनुष्य का स्वभाव
पुराने जमाने की बात है। एक राजा था , जिस के तीन पुत्र थे। वह अपने तीनों पुत्रों को बहुत चाहता था , लेकिन उनके भविष्य को लेकर हमेशा चिंतित भी रहता था। एक दिन राजा अपने तीनों पुत्रों के साथ नगर भ्रमण के लिए निकला। रास्ते में एक तेजस्वी महात्मा मिले। राजा ने उन्हें नमस्कार किया और अपने पुत्रों के भविष्य के विषय में उनसे पूछा। महात्मा ने राजा के तीनों पुत्रों को प्यार से बुलाया और उन तीनों को दो - दो केले खाने को दिए। एक बच्चे ने केले खाकर छिलके रास्ते पर फेंक दिए।
दूसरे ने केले खाकर छिलके रास्ते में न फेंककर कूड़ेदान में डाले। और तीसरे ने छिलके फेंकने के बजाय गाय को खिला दिया। महात्मा जी यह सब बड़े गौर से देख रहे थे। उन्होंने राजा को अलग ले जाकर कहा , ' तुम्हारा पहला पुत्र मूर्ख और उद्दंड है , जबकि दूसरा गुणी और समझदार है। तीसरा पुत्र सज्जन और उदार बनेगा। हो सकता है वह बड़ा समाजसेवी बने। ' महात्मा की बात सुनकर राजा ने पूछा , ' आपने कौन सा गणित लगाकर जवाब दिया ?' महात्मा बोले , ' व्यवहार के गणित से बढ़कर निर्धारण करने का और कोई उपाय नहीं होता। आपके आचरण से आपके विचार और स्वभाव का पता चलता है। हम जैसा आचरण करते हैं वैसा ही बनते भी हैं। मैंने एक मामूली आचरण के आधार पर आपके तीनों पुत्रों के स्वभाव का पता लगाया है। मूलभूत स्वभाव का पता चलने के बाद उसमें परिवर्तन के लिए प्रयास किया जा सकता है। ' यह कहकर महात्मा ने राजा और उसके पुत्रों को आशीर्वाद दिया और चल पड़े।

ईश्वर की खोज
एक सेठ के पास अपार धन-संपत्ति थी, पर उसका मन हमेशा अशांत रहता था। एक बार उसके शहर में एक सिद्ध महात्मा आए। उन्
होंने अपने प्रवचन में कहा कि परमात्मा को पाने पर ही सच्ची खुशी एवं पूर्ण शांति मिल सकती है। इसलिए ईश्वर की खोज करो और अपने जीवन को सार्थक करो। यह सुनकर सेठ ईश्वर की खोज में लग गया। वह इधर-उधर भटकने लगा। ऐसा करते हुए दो वर्ष बीत गए किंतु ईश्वर की प्राप्ति नहीं हुई। वह निराश होकर घर की ओर लौट पड़ा। रास्ते में उसे एक चिर-परिचित आवाज सुनाई पड़ी। उसे कोई बुला रहा था। उसने पीछे मुड़कर देखा तो पाया कि उसके पीछे वही सिद्ध महात्मा खड़े थे, जिन्होंने ईश्वर को ढूंढने की बात कही थी। सेठ उनके पैरों में गिरकर बोला, 'बाबा, मैं अनेक स्थानों पर भटका किंतु मुझे अभी तक ईश्वर नहीं मिले। आखिर मेरी खोज कहां पूरी होगी? आप ने ही कहा था कि सच्ची खुशी ईश्वर के साथ मिल सकती है।' उसकी बात पर महात्मा मुस्कराए और उन्होंने उसे उठाते हुए कहा, 'पुत्र, मैंने सही कहा था। यदि तुमने ठीक ढंग से ईश्वर की खोज की होती तो अब तक तुम उन्हें पा चुके होते।' यह सुनकर सेठ हैरान रह गया और बोला, 'कैसे बाबा?' महात्मा बोले, 'पुत्र, ईश्वर किसी दूर-दराज के क्षेत्र में नहीं तुम्हारे अपने भीतर ही है। तुम अच्छे कर्म करोगे और नेक राह पर चलोगे तो वह स्वयं तुम्हें मिल जाएगा। तुम्हें उसे कहीं खोजने नहीं जाना पड़ेगा। हां, उसे पाने के लिए ईश्वर का नेक बंदा अवश्य बनना होगा।' यह सुनकर सेठ महात्मा के प्रति नतमस्तक हो गया और वापस अपने घर चला आया। घर आने के बाद उसने पाठशालाएं खुलवाईं, लोगों को पीने का पानी उपलब्ध कराया, गरीब कन्याओं के विवाह कराए और अपने पास आने वाले हर जरूरतमंद की समस्या का समाधान किया। कुछ ही समय बाद उसके भीतर की अशांति जाती रही और उसने अपने भीतर नई स्फूर्ति महसूस की।

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

छत्तीसगढ़ की खास खबरें

किसको दें सम्मान, नहीं मिला किसान!
रायपुर.छत्तीसगढ़ कृषि के क्षेत्र में भले नए मुकाम हासिल कर रहा हो पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय को अब तक प्रदेश में एक भी किसान नहीं मिला, जिसे वह सम्मानित कर सके।

जबकि पं. रविशंकर शुक्ल विवि डॉ. नारायण भाई चावड़ा को खेती-किसानी में उनके बेहतरीन काम के लिए डी-लिट् की मानद उपाधि दे चुका है। 23 साल पहले स्थापित कृषि विवि का पांचवा दीक्षांत समारोह 20 जनवरी को होने जा रहा है।
उत्तरप्रदेश और पंजाब के कृषि वैज्ञानिकों को डी-लिट् की उपाधि दी जाएगी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक और केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव रहे डॉ. मंगला राय को इसके लिए चुना गया है।
दूसरे वैज्ञानिक फिलीपींस स्थित इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टीट्यूट के डॉ. जीएस खुश हैं। दोनों ही राइस ब्रिडर हैं। कुलपति डॉ. एमपी पांडेय ने दोनों के नामों का प्रस्ताव रखा था। डॉ. मंगला राय मूलत: उत्तरप्रदेश के हैं।
उन्होंने बनारस विवि से पीएचडी की है, जबकि डॉ. जीएस खुश की पढ़ाई पंजाब यूनिवर्सिटी की है। खुश अबतक दो सौ से ज्यादा धान की किस्में तैयार कर चुके हैं। 1967 में वे फिलीपींस चले गए थे।
कम नहीं प्रदेश के किसान
छत्तीसगढ़ में कई ऐसे किसान हैं जिनकी बराबरी किसी वैज्ञानिक से की जा सकती है। प्रदेश के किसानों ने ही अब तक धान की 23 हजार किस्में तैयार की हैं। डॉ. आरएस रिछारिया ने इसे संग्रहित कर रखा है।
पं. रविशंकर शुक्ल विवि ने गोमची के किसान नारायण भाई चावड़ा को मानद उपाधि दी थी। उन्होंने धान सहित सब्जियों की कई किस्में विकसित की।
दुर्ग जिले के कई किसानों को टमाटर, शिमला मिर्च, गोभी, कुंदरू सहित अन्य सब्जिी उत्पादन में दक्षता हासिल है। प्रदेश में और भी कई किसान हैं, जो नई किस्में इजाद करने में जुटे हैं, लेकिन महत्व नहीं मिलने के कारण उनका नाम पिछड़ा हुआ है।
किसानों के नाम खारिज
मानद उपाधि देने के लिए कृषि विवि ने अपने सभी संबंधित कालेजों और रिसर्च स्टेशन से नाम मंगाए थे। मानद उपाधि के लिए गठित समिति की बैठक में एक दर्जन नाम आए थे। इनमें जांजगीर-चांपा के किसान का भी नाम था।
डॉ. नारायण भाई चावड़ा के नाम का भी प्रस्ताव आया, लेकिन उन्हें सिरे से खारिज कर दिया गया। कुछ अधिकारियों ने मुख्यमंत्री तो कुछ ने कृषि मंत्री के नाम आगे बढ़ाए। अंत में समिति ने सात वैज्ञानिकों के नाम प्रबंध मंडल में रखा।

केवल अधिकारियों के नाम
कृषि विवि के प्रबंध मंडल की बैठक में मानद उपाधि देने के लिए सात लोगों के नाम का प्रस्ताव अनुशंसा समिति ने रखा। ये सभी शासकीय पदों पर नियुक्त रहे हैं। इनमें दो अधिकारी डा. एसके दत्ता और डा. अरविंद कुमार आईसीएआर में पदस्थ हैं।
आईसीएआर कृषि विश्वविद्यालयों को मानिटरिंग और अनुदान देने वाली संस्था है। बैठक में नेशनल बायोडायवर्सिटी अथारिटी चेन्नई के चेयरमेन डा. पीएल गौतम और नई दिल्ली के एग्रीकल्चरल साइंस रिक्रूटमेंट बोर्ड के चेयरमेन डा. पीडी मई का नाम भी था।
इसमें इंदिरा गांधी कृषि विवि के पूर्व कुलपति डा. कीर्ति सिंह को मानद उपाधि देने का प्रस्ताव था। कुलपति डा. एमपी पांडेय की अध्यक्षता में डा. मंगला राय और डा. जीएस खुश को मानद उपाधि देने का निर्णय लिया गया।
"प्रदेश में उत्कृष्ट कार्य करने वाले किसानों को भी मानद उपाधि दी जा सकती है, लेकिन किसी ने उनके नाम का प्रस्ताव नहीं दिया। "- एसआर रात्रे, कुलसचिव कृषि विवि
"प्रबंध मंडल ने मानद उपाधि के लिए दो नामों का चयन कर लिया है। अभी प्रबंध मंडल में पारित प्रस्ताव मिनिट्स में नहीं आए हैं, इसलिए मैं कुछ नहीं कहूंगा। "- डॉ. एमपी पांडेय, कुलपति कृषि विवि

राज्य में बनेगा एलीफेंट रिजर्व
बिलासपुर.प्रदेश में हाथियों के आक्रमण से हो रहे जान-माल के नुकसान को रोकने और हाथियों को सुरक्षित स्थान पर रहने की सुविधा देने के लिए कारीडोर बनाने के साथ ही अचानकमार सहित तीन अभयारण्य को जोड़कर एलीफेंट रिजर्व बनाया जाएगा। छत्तीसगढ़ राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक में यह निर्णय लिया गया।

जंगली हाथियों की समस्या से निपटने के लिए वन विभाग ने रणनीति बना ली है। बैठक में वन्य जीव, जैव विविधता, बाघ संरक्षण और अन्य विषयों पर चर्चा की गई। प्रदेश के सरगुजा जिले में हाथियों के हिंसक होने से कुछ सालों में जान-माल की हानि के साथ ही वनग्रामों के रहवासियों का जीना दूभर हो गया है।
इस समस्या से निपटने की दिशा में उपाय किए जा रहे हैं। प्रदेश के तीन ऐसे अभयारण्य जहां हाथियों की संख्या अधिक है, वहां कारीडोर बनाया जाएगा और उन्हें जोड़कर एलीफेंट रिजर्व बनाया जाएगा, जहां हाथी सुरक्षित तरीके से रह सकें।

इस प्रस्ताव को कैबिनेट की अगली बैठक में रखा जाएगा। बैठक में वन मंत्री विक्रम उसेंडी, डीजीपी विश्वरंजन, मुख्य वन्य प्राणी अभिरक्षक रामप्रकाश, वन्य प्राणी विशेषज्ञ डॉ. सुशांत चौधरी, नितिन देसाई, प्राण चड्डा, संदीप पौराणिक, हाथी विशेषज्ञ डा. पीएस ईशा, एसजी चौहान सहित अन्य सदस्य शामिल हुए।
इसी तरह हाथियों की समस्याओं से निपटने के लिए बोर्ड के सदस्यों के सुझाव पर एक उप समिति गठित करने का निर्णय लिया गया। इसमें हाथी विशेषज्ञ, वन विभाग के अधिकारी और संबंधित क्षेत्र के स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाएगा।
केरल और कर्नाटक की तर्ज पर यहां ऐसे क्षेत्रों में जहां हाथियों का आवागमन सर्वाधिक होता हैं, वहां लगभग एक सौ किलोमीटर क्षेत्र में सोलर पॉवर फेंसिंग लगाई जाएगी। विशेषज्ञों ने बताया कि इन सोलर पॉवर फेंसिंग से वन्य प्राणियों को केवल हल्का झटका लगता है व विशेष हानि नहीं होती है।
फेंसिंग के समानांतर हाथी अवरोधक खाई बनाई जाएगी, जिससे जन-धन हानि कम की जा सके। बैठक में उपस्थित विशेषज्ञों द्वारा सुझाव दिया गया कि हाथी आवागमन के गलियारे में धान और गन्ने की फसल के स्थान पर मिर्च, अदरक सहित अन्य नगदी फसलें ली जाएं जिसे हाथी नुकसान ना पहुंचा सकें।
बैठक में अचानकमार से होकर गुजरने वाली सड़क को आवागमन के लिए बंद नहीं करने पर भी सदस्यों ने चिंता जताई। बैठक में मांग की गई कि अचानकमार से होकर गुजरने वाली सड़क की जगह रतनपुर, केंदा, मझपानी, केंवची से होकर जाने वाले वैकल्पिक मार्ग को दुरस्त कर चालू किया जाए।

जंगली भैंसे के संरक्षण की बनी योजना
राज्य पशु जंगली भैंसों के संरक्षण के लिए अंजोरा स्थित पशु चिकित्सा महाविद्यालय में उपलब्ध अत्याधुनिक तकनीक की सहायता लेने का निर्णय लिया गया। बैठक में बताया गया कि जंगली भैंसों का जेनेटिक प्रोफाइल विश्लेषण सेन्टर फॉर सेलुलर एवं मॉलीक्यूलर बॉयलाजी हैदराबाद में कराया गया, वहां की रिपोर्ट में वनभैंसे की प्रजाति सर्वाधिक शुध्द नस्ल का बताया गया।

कुशल वकीलों का पैनल बनेगा
प्रदेश में वन्य प्राणियों से संबंधित अपराधों पर अंकुश लगाने और वन अपराधियों को कड़ी सजा दिलाने के लिए वन विभाग की ओर से कुशल वकीलों का पैनल तैयार करने का निर्णय लिया गया।
बैठक में बताया गया कि अचानकमार टाइगर रिजर्व के छह गांवों को नजदीक स्थित बसाहटों में व्यवस्थापित किया गया है और प्रति परिवार उनके विकास के लिए दस लाख रुपए खर्च किए गए। वर्ष 2010-11 में इसके लिए 7.24 करोड़ रुपए की राशि दी गई।
बार नवापारा अभयारण्य में स्थित तीन गांवों के व्यवस्थापन की कार्ययोजना भी बना ली गई है। अचानकमार टाइगर रिजर्व और सीतानदी-उदंती अभयारण्य में रिक्त पदों को शीघ्र भरने के निर्देश दिए गए।
कोटमी सोनार में बढ़ी मगरमच्छों की संख्या
राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक में जानकारी दी गई कि कोटमी सोनार में एक ही तालाब में रखे गए मगरमच्छों की संख्या बढ़ने के कारण उनके हिंसक होने का खतरा बढ़ गया है।
सौ से अधिक मगरमच्छ होने के कारण उनसे आसपास के स्थानों में रहने वाले लोगों पर आक्रमण करने का खतरा बढ़ गया है। इन पर निगरानी रखने के लिए ग्रामीणों का सहयोग लेने का भी निर्णय लिया गया।

गिरौदपुरी जैतखाम होगा यूनेस्को की विश्व धरोहरों के समकक्ष
रायपुर.छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से लगभग 145 किलोमीटर की दूरी पर अठारहवीं सदी के महान समाज सुधारक गुरू बाबा घासीदास की जन्म भूमि और तपोभूमि गिरौदपुरी में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के जरिए बन रहा 243 फीट की ऊंचाई का जैतखाम दुनिया में आधुनिक भारतीय इंजीनियरिंग प्रतिभा का एक शानदार उदाहरण होगा।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली स्थित लगभग आठ सौ वर्ष पुराना 237.8 फीट (72.5 मीटर) ऊंची कुतुब मीनार भारतीय इतिहास और पुरातत्व की बहुमूल्य धरोहर के रूप में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारक सूची में शामिल है, जिसकी ऊंचाई छत्तीसगढ़ के गिरौदपुरी में 51 करोड़ रूपए से भी अधिक लागत से बन रहे विशाल जैतखाम से लगभग पांच मीटर कम है। गिरौदपुरी में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा बनवाए जा रहे इस गगन चुम्बी जैतखाम की ऊंचाई 243 फीट (करीब 77 मीटर) होगी।
इस प्रकार कुतुब मीनार से करीब पांच मीटर ऊंचे इस जैतखाम का निर्माण पूर्ण होने पर इसकी गिनती भी इतिहास और आधुनिक स्थापत्य कला की दृष्टि से दुनिया की एक अनमोल धरोहर के रूप में होने लगेगी और यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारकों के समकक्ष आ जाएगा।
सतनाम पंथ के प्रवर्तक बाबा गुरू घासीदास का जन्म गिरौदपुरी में लगभग ढाई सौ साल पहले, 18 दिसम्बर 1756 को हुआ था।
उन्होंने इसी गांव के नजदीक छाता पहाड़ में कठिन तपस्या की और अपने आध्यात्मिक ज्ञान के जरिए देश और दुनिया को सत्य, अहिंसा, दया, करूणा, परोपकार जैसे सर्वश्रेष्ठ मानवीय मूल्यों की शिक्षा देकर सत्य के मार्ग पर चलने का संदेश दिया।
इसके फलस्वरूप यह गांव विशेष रूप से छत्तीसगढ़ की जनता की आस्था का प्रमुख केन्द्र बन गया, जहां बाबा घासीदास के महान विचारों के साथ-साथ उनकी यश-कीर्ति को जन-जन तक पहुंचाने और दूर-दूर तक फैलाने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व में राज्य सरकार के लोक निर्माण विभाग ने गिरौदपुरी में करीब तीन वर्ष पहले कुतुब मीनार से भी ऊंचे इस विशाल जैतखाम का निर्माण शुरू किया था, जो अब तेजी से पूर्णता की ओर अग्रसर है।

खेती में राष्ट्रीय औसत से आगे है छत्तीसगढ़ प्रदेश
देश की औसत रफ्तार से काफी आगे चल रहा है। छत्तीसगढ़ में कृषि पांच प्रतिशत की दर से आगे बढ़ रही है जबकि राष्ट्रीय औसत तीन प्रतिशत है।

राज्य निर्माण के बाद खेती में जबर्दस्त बदलाव आया है। यही वजह है कि राज्य निर्माण के समय की कुल पैदावार 58 लाख 27 टन अब बढ़कर 80 लाख टन से अधिक हो गई है।
प्रदेश की 80 फीसदी आबादी की अर्थव्यवस्था खेती से ही संचालित होती है। छत्तीसगढ़ में इस समय करीब 44 लाख हेक्टेयर में खेती हो रही है। इसमें धान का रकबा करीब 35 लाख हेक्टेयर है। खेती के क्षेत्र में रमन सरकार के पिछले सात सालों में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं।
उन्नत तकनीक पर काम हुआ है और किसानों को आधुनिक खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया गया है। सरकार ने किसानों की मानसून पर निर्भरता कम करने की दिशा में कई अहम निर्णय लिए।
इसको इन आंकड़ों से भी समझा जा सकता है कि जब राज्य बना तब छत्तीसगढ़ मे मात्र 72 हजार सिंचाई पंप कनेक्शन थे लेकिन आज राज्य के 2 लाख 40 हजार से अधिक किसानों के पास सिंचाई पंप हैं।
सिंचाई का रकबा बढ़ाने की दिशा में भी ठोस काम हुआ। इसके चलते सिंचित क्षेत्र 23 से बढ़कर 31 प्रतिशत से अधिक हो गया है। राष्ट्रीय औसत 48 प्रतिशत की ओर यह तेजी से बढ़ रहा है।
सरकार द्वारा समर्थन मूल्य पर धान खरीदी की ठोस व्यवस्था किए जाने के कारण किसानों के मन में खेती के प्रति उत्साह बढ़ा है। पिछले साल 40 लाख टन खरीदने के बाद इस वर्ष किसानों से 50 लाख टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा गया है।
सबसे कम ब्याज दर पर ऋण :
सरकार ने किसानों को तीन प्रतिशत की किफायती ब्याज दर पर लोन देने की व्यवस्था की है। यह कृषि ऋण खरीफ एवं रबी की विभिन्न फसलों के बीज, खाद, कृषि यंत्र सहित पौध संरक्षण, औषधि आदि के लिए उपलब्ध कराया जा रहा है।
यह सुविधा वित्तीय वर्ष 2008-09 से दी जा रही है। किसानों को इतनी कम ब्याज दर पर खेती के लिए ऋण सुविधा देने वाला छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य है।
नदियों के पानी को रोकने के उपाय
छत्तीसगढ़ में नदियों का पानी काफी मात्रा में बह जाता है। इस पानी को रोककर खेतों की प्यास बुझाने की दिशा कदम उठाए गए हैं। बड़ी सिंचाई परियोजनाओं की मंजूरी में समय लगता है, इस कारण नदियांे पर छोटे-छोटे एनीकट बनाकर पानी रोकने का इंतजाम किया जा रहा है।
ऐसे 593 एनीकट बनाने का निर्णय लिया जा चुका है। इनमें से करीब एक तिहाई बन चुके हैं। इनके अलावा लघु सिंचाई योजनाओं को सरकार हाथ में ले रही है।
लघु सिंचाई योजनाओं की भागीदारी
राज्य में सर्वाधिक 70 प्रतिशत सिंचाई नहरों से होती है। वर्षा की अनिश्चितता, अतिवृष्टि-अनावृष्टि आदि परिस्थितियों से निपटने और तालाबों और कुंओं से सिंचाई रकबे में बढ़ोतरी के लिए सिंचाई के नये साधनों के रूप में कुंआ, छोटे तालाब, नलकूप सहित सिंचाई की छोटी परियोजनाओं पर भी तेजी से काम हुआ है।
लघु सिंचाई नलकूप योजना के तहत 22 हजार 207 नलकूप खनन कर पम्प स्थापना के लिए आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई गई है।
"कृषि की विकास दर को बनाए रखना बड़ी चुनौती है। इस दर को आगे बढ़ाने के उपाय किए जा रहे हैं। इसके लिए एलायड सेक्टर पर भी काम किया जा रहा है। इसमें पशुधन विकास भी शामिल है।"
चंद्रशेखर साहू,कृषि मंत्री, छत्तीसगढ़ शासन

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

पर्यटन

खूबसूरत महाबलेश्वर
समुद्र तल से 1372 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह महाराष्ट्र का सबसे अधिक ऊँचाई वाला लोकप्रिय व खूबसूरत पर्वतीय स्थल है। यह ब्रिटिशकाल में बॉम्बे प्रेसीडेंसी की ग्रीष्मकालीन राजधानी था। महाबलेश्वर की हरियाली से लबालब मनोरम दृश्यावलियाँ पर्यटक को स्वप्नलोक में विचरण करने को विवश कर देती हैं।
यह कृष्णा नदी का उद्गम स्थान है जो सह्य पर्वत से निकलती है। महाराष्ट्र व आंध्रप्रदेश से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है। यह 400 मील लंबी नदी है। पश्चिमी घाट में महाबलेश्वर का अपना अलग सम्मोहन है। हरे-भरे मोड़ों वाली घुमावदार सड़कों पर से आप जैसे-जैसे महाबलेश्वर की ओर बढ़ेंगे, वैसे-वैसे हवा की ताजगी व ठंडक महसूस कर आप अपनी शहरी थकान और चिन्ताओं को भूल जाएँगे।
महाबलेश्वर जाने का असली मजा अपना वाहन लेकर जाने में है क्योंकि वहाँ स्थित 30 दर्शनीय स्थल देखने के लिए बस काम नहीं आती। जिप्सी, मारुति जीप, सिएरा या मोटरसाइकल पर जाने की बात कुछ और ही है। यह वेन्ना झील के आसपास 10वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
महाबलेश्वर मुंबई से 247, पुणे से 120, औरंगाबाद से 348, पणजी से 430 कि.मी. दूर है। महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम यहाँ के लिए मुंबई व पुणे से विशेष लक्झरी बसें चलाता है। यहाँ खाने-पीने और ठहरने की सामान्य सुविधा उपलब्ध है। सन्‌ 1828 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी के गवर्नर सर जॉन मेलकम द्वारा खोजे गए महाबलेश्वर में देखने योग्य लगभग 30 पॉइंट हैं। एलाफिस्टन पॉइंट, माजोरी पॉइंट, सावित्री पॉइंट, आर्थर पॉइंट, विल्सन पॉइंट, हेलन पॉइंट, नाथकोंट, लाकविग पॉइंट, बॉम्बे पार्लर, कर्निक पॉइंट और फाकलेंड पॉइंट वादियों का नजारा देखने के लिए आदर्श जगहें हैं।
महाबलेश्वर के दर्शनीय स्थानों में लिंगमाला वाटर फाल, वेन्ना लेक, पुराना महाबलेश्वर मंदिर प्रमुख हैं। भिलर टेबललैंड, मेहेर बाबा गुफाएँ, कमलगर किला और हेरिसन फोली भी दर्शनीय हैं।
प्रतापगढ़
यह महाबलेश्वर से 24 कि.मी. दूर 900 मीटर की ऊँचाई पर है। यह उन किलों में से एक है जिसका निर्माण छत्रपति शिवाजी ने सन्‌ 1656 में अपने निवास स्थान के लिए किया था। यहाँ मराठा साम्राज्य ने एक निर्णायक मोड़ लिया जब शिवाजी ने एक ताकतवर योद्धा अफजल खान को नाटकीय तरीके से मार डाला।
पंचगनी
कृष्णा घाटी में दक्षिण में स्थित पंचगनी महाबलेश्वर से मात्र 19 कि.मी. दूर है। यह चारों ओर से रमणीक दृश्यों से भरपूर होने के कारण सैलानियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहाँ टेबल टॉप या टेबल लैंड है, जहाँ अनगिनत फिल्मों के प्रेमगीतों की शूटिंग होती रहती है। यहाँ पर्वत श्रृंखला को देखना और तेज हवाओं से बात करना एक अनूठा अनुभव है।
सह्याद्रि पर्वत की पश्चिमी श्रेणी में स्थित लोनावाला और खंडाला दो रम्य पहाड़ियाँ हैं। मुंबई-पुणे हाइवे पर ये पहाड़ियाँ मुंबई से 118 कि.मी. और पुणे से 67 कि.मी. की दूरी पर स्थित हैं। इन दोनों के बीच मात्र 5 कि.मी. का फासला है। समुद्र तल से 625 मीटर की ऊँचाई पर स्थित इन स्थलों की खोज 1871 में मुंबई प्रेसीडेंसी के गवर्नर सर एल. फिस्टन ने की थी। यहाँ के नैसर्गिक सौंदर्य व स्वास्थ्यवर्धक जलवायु के आकर्षण में उन्होंने इसका पर्यटन स्थल के रूप में विकास कर दिया। यहाँ पहुँचने के लिए मुंबई से ट्रेन, बसों तथा टैक्सियों की अच्छी सुविधा है। ट्रेन से 3 घंटे में लोनावाला पहुँच सकते हैं। मुंबई से हर आधे घंटे बाद बसें मिलती हैं। दिनभर सैर-सपाटा करके पर्यटक रात में मुंबई वापस लौट सकते हैं।
वर्षाकाल में यहाँ का सौंदर्य और भी बढ़ जाता है। उन दिनों घने बादल पहाड़ियों को ढँक लेते हैं।
घूमते हुए ऐसा लगता है जैसे बादलों के बीच पहुँच गए हों। पहाड़ियाँ हरी-भरी हो जाती हैं। जगह-जगह झरने फूट पड़ते हैं। नैसर्गिक सुंदरता के साथ ही यहाँ समीप ही ऐतिहासिक और पुरातत्व महत्व की कारला, भाजा और बेड़सा गुफाएँ भी हैं।
लोनावाला और खंडाला में देखने योग्य एक से बढ़कर एक सौंदर्य स्थल हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है मानों प्राकृति ने अपनी हरी-भरी ओढ़नी सारे क्षेत्र में फैला दी है।
आकर्षक स्थल
लोनावाला झील : यह नगर से 15 कि.मी. दूर आकर्षक पिकनिक स्थल है। यहाँ झील चारों ओर से प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है। यह सैलानियों को बेहद आकर्षित करती है।
तुंगरली झील : यह नगर का जल का प्रमुख स्रोत है। रेलवे स्टेशन से तीन कि.मी. दूर स्थित इस झील के रमणीय दृश्य पर्यटकों को बरबस मोह लेते हैं। झील के पास ही योग प्रशिक्षण केंद्र है। एक अस्पताल भी है जिसमें रोगियों का इलाज योग के द्वारा किया जाता है।
राजमची किला : लोनावाला रेलवे स्टेशन से यह 7 कि.मी. दूर है। यहाँ छत्रपति शिवाजी द्वारा बनवाया गया एक विशालकाय दुर्ग है। लोग इसे शाही छत भी कहते हैं।
मुमुज चिड़ियाघर : यह राजमची से एक कि.मी. दूर है। इसमें अनेक प्रकार के पशु-पक्षी हैं। यह अपराह्न 4 से 6 बजे तक खुला रहता है।
बलवन बाँध : इस स्थान के समीप एक बेहद खूबसूरत उद्यान है। शाम के समय यहाँ सैर करने का अपना अलग ही आनंद है। यह लोनावाला से डेढ़ कि.मी. दूर है।
कारला गुफाएँ : ईसा पूर्व डेढ़ सौ वर्ष की इन गुफाओं से निर्मित भित्ति चित्र और मूर्तियाँ शिल्पकला के बेजोड़ नमूने हैं जो देखते बनते हैं। ये लोनावाला से लगभग 12 कि.मी. दूर तथा मुख्य सड़क से डेढ़ कि.मी. की दूरी पर स्थित हैं। ये गुफाएँ बाहरी व भीतरी दोनों ओर से पर्यटकों को आकर्षित करती हैं। गुफाओं के द्वार पर स्थित खंभों पर शेरों की आकृतियाँ खुदी हुई हैं। खंभों वाली चौखट पर उकेरी गई मिथुन जोड़ों की तस्वीरें भी पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।
लोहागढ़ किला : यह किला एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। ऊपर से नीचे बसी बस्तियों का विहंगम दृश्य दिखाई देता है जो बड़ा लुभावना लगता है।
वेलिंगटन के ड्यूक की नाक : इस पहाड़ी के शिखर पर एक चट्टान नाक के आकार में उभरी हुई है, जो इंग्लैंड के राजकुमार की नाक से मेल खाती थी तभी से इस पहाड़ी का यह नाम मशहूर हो गया। यह खंडाला की सबसे प्रसिद्ध पहाड़ी है।
भाजा की गुफाएँ : मुख्य सड़क से 3 कि.मी. दूर भाजा की 18 गुफाएँ लगभग दो सौ ईसा पूर्व की हैं। इसके दक्षिण में 14 स्तूपों का एक अनोखा समूह है जिसमें 5 स्तूप अंदर की ओर तथा 9 बाहर की ओर हैं।
वेड्सा की गुफाएँ : ये कामशेत स्टेशन से 6 कि.मी. दक्षिण-पूर्व में हैं, जिन्हें देखा जा सकता है।

पुस्तक-समीक्षा

बिकी हुई लड़कियों का दर्द
द रोड ऑफ लॉस्ट इनोसंस : पुस्तक समीक्षा

बचपन खोकर जिन बच्चियों को देह व्यापार के दलदल में फँसना पडता है, वे जिन हालात व तकलीफों से होकर गुजरती हैं उसी की दास्ताँ है 'द रोड ऑफ लॉस्ट इनोसंस'। इसी तरह का दर्द भुगत चुकी सोमाली माम की आपबीती इन बच्चियों के दर्द की अभिव्यक्ति है। गरीब कंबोडियाई परिवार में जन्मी, कंबोडिया के उथल-पुथल के दौर में जंगल में रहने वाली अनाथ सोमाली। तब बचपन में वह अपना दुःख दर्द पेड़-पौधों से बाँटती थी।
तभी 9-10 साल की उम्र में उसे 50-55 साल के आदमी को सौंपते हुए कहा गया कि ये नानाजी शायद उसे उसके रिश्तेदारों को ढूँढने में मदद करेंगे। दरअसल उसे इस तथाकथित नाना को बेचा गया था।
जवानी में कदम रखते ही उस बुजुर्ग की घिनौनी हरकतें, उधारी के खातिर चीनी परचूनी द्वारा किया बलात्कार और फिर 14 साल की उम्र में जबरन विवाह... इन सबके बीच उसे कभी कुछ भी बोलने का मौका ही नहीं दिया गया। पति के लाम पर जाते ही उस बुजुर्ग ने तो उसे चकलाघर पर ही बेच दिया। फिर तो जिंदगी दर्द, तकलीफ, तिरस्कार, अपमान, घृणा और खुद ही से घिन में तब्दील होती गई।
मगर अपनी हिम्मत और साहस से एक दिन सोमाली वहाँ से छूट गई। लेकिन छूटने के बाद चैन की साँस लेकर वहाँ से भाग जाने के बजाए सोमाली ने ऐसे ही नर्क में फँसी अन्य लड़कियों को छुड़ाने का बीड़ा उठाया। देह व्यवसाय में फँसी लड़कियों का इलाज कराने व भाग निकलने में भी उनकी मदद की। लेकिन भागने वाली कई लड़कियाँ घर नहीं लौट सकती थीं। उनके गरीब माँ-बाप या रिश्तेदारों ने ही उन्हें बेचा था। बचकर वे कहाँ जातीं? अतः सोमाली ने अपने फ्रांसीसी मित्रों की मदद से एक एनजीओ कायम किया और लड़कियों के रहने, खाने और पुनर्वास में मदद की। उसके केंद्र ने अब तक 3000 से अधिक बच्चियों को अपने पैरों पर खड़े होने के काबिल बनाया है।
सोमाली कहती हैं कि अब भी ये बर्बर अत्याचार जारी हैं। कंबोडिया में यौन व्यापार अधिक व्यावसायिक बना है। कंबोडिया से लड़कियाँ थाईलैंड जाती हैं जबकि विएतनाम से लड़कियाँ कंबोडिया आती हैं। यह सब रोकने के लिए उसकी अपनी कोशिशें जारी हैं, जो काबिल-ए-तारीफ तो हैं ही, साथ ही कईयों को दिशा देने वाली भी हैं। अपनी इस आत्मकथा में सोमाली ने यही सब कहने की कोशिश की है।