शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

अमृता सिंह

जो किसी 'मर्द' से नहीं डरी!
ओमप्रकाश बंछोर
फिल्म तारिकाओं का अलग-अलग दौर होता है। हर दौर में तरह-तरह की सुंदरता और प्रतिभा के कदम मायानगरी में पड़ते हैं। इन्हीं के बीच कई बार ऐसा लुक भी देखने को मिल जाता है, जो पारंपरिक हीरोइन की छवि से जुदा होता है। कुछ इसी तरह की बात हम अमृता सिंह के बारे में कह सकते हैं।
छरहरी, पतली काया वाली हीरोइनों के बीच थोड़ा भारी डील-डौल वाली अमृता ने ताजगी लेकर पर्दे पर कदम रखा। अपनी पहली ही फिल्म "बेताब" से धमाका करने के बाद वे स्टारडम तक पहुँच गईं। उनकी व्यक्तिगत पहचान जानें तो वे मशहूर लेखक खुशवंतसिंह की भतीजी हैं और अभिनेता अयूब खान की माँ तथा अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री बेगम पारा, अमृता की माँ रुखसाना सुल्ताना की मौसी थीं।
बेगम पारा के जेठ दिलीप कुमार हैं तथा उनके एक कजिन पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह जनरल जिया उल हक थे! इस प्रकार अमृता की रिश्तेदारी बड़ी विविधतापूर्ण व रोचक है। अमृता सिख पिता व मुस्लिम माता की संतान हैं। उनके पिता शिविंदर सिंह अमिताभ के साथ एक ही कॉलेज में थे तथा माँ रुखसाना एक जमाने में युवक कांग्रेस की प्रभावशाली नेता थीं।
अमृता का फिल्मी सफरनामा ज्यादा मुश्किल नहीं रहा। उन्हें ज्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा। उनकी माँ चाहती थीं कि अमृता अभिनेत्री बनें। इसी कारण उन्होंने लॉबिंग भी की। "निकाह" के लिए बीआर चोपड़ा नए चेहरे की तलाश में थे, तो रुखसाना ने यह रोल अमृता को दिलाने के भरसक प्रयास किए। जब सलमा आगा इस रोल के लिए सिलेक्ट हो गईं तो बताते हैं कि अमृता की माँ ने सलमा को धमकीभरे पत्र लिखे ताकि वे वापस लंदन भाग जाएँ और यह रोल अमृता को मिल जाए। अंत में क्या हुआ, यह तो आप जानते ही हैं।
खैर, अमृता को अगले ही वर्ष 1983 में "बेताब" में सनी देओल के साथ लांच किया गया। इस फिल्म ने धूम मचा दी और वे रातों-रात मशहूर हो गईं। उन्होंने अपने दौर के तमाम शिखर कलाकारों के साथ काम किया जिनमें अनिल कपूर और अमिताभ बच्चन भी शामिल थे। उनकी जोड़ी सनी देओल और संजय दत्तCool Photographs of Sanjay Dutt के साथ खूब जमी।
अपनी एक्टिंग और आवाज की बदौलत अमृता अलग ही नजर आती थीं। कमसिन और नाजुक हीरोइन के बजाए उन्हें रफ एंड टफ हीरोइन कहा जा सकता है। उनकी अदाएँ और रोल इसी बात को साबित करती हैं।
"मर्द" में किए गए रफ-टफ रोल के बाद तो लोगों ने उन्हें "मर्दसिंह" का खिताब तक दे डाला था! "बेताब", "सनी", "मर्द", "चमेली की शादी", "साहेब", "खुदगर्ज", "नाम" आदि फिल्मों ने उन्हें खूब कामयाबी दिलाई।
उनका काम कभी नए-नवेले खिलाड़ी की तरह नहीं रहा। प्रारंभ से ही वे आत्मविश्वास से लबरेज होकर ही काम करती रहीं, जो उनकी हर फिल्म में नजर आता है। उनमें मौजूद कॉमेडी की प्रतिभा उनकी पहली ही फिल्म "बेताब" में नजर आ गई थी। "चमेली की शादी" में उन्होंने इसे और निखारा। वहीं "साहेब", "नाम" और "वारिस" जैसी फिल्मों ने उनके गंभीर अभिनय के पक्ष को सामने रखा। "आईना" तथा "राजू बन गया जेंटलमैन" में नकारात्मक भूमिका में भी वे खूब जमीं। अभिनय में हर तरह के रंग को मिलाकर अमृता ने अच्छी फिल्में दर्शकों को परोसीं।सन्‌ 1991 में अमृता ने उम्र में १२ साल छोटे सैफ अली खान से शादी करके सबको चौंका दिया। इसके बाद उन्होंने फिल्मों को बाय-बाय कह दिया ताकि अपने परिवार को समय दे सकें। उनके दो बच्चे सारा और इब्राहीम हैं। 14 साल के वैवाहिक जीवन के बाद 2004 में दोनों में अलगाव हो गया। अलग होने के बाद दोनों बच्चे अमृता के साथ ही रहते हैं।
इस बारे में कई तरह की बातें लिखी गईं, पर अमृता का कहना है, "यह पूरी तरह से निजी मसला है। सच क्या है, केवल मैं और सैफ ही जानते हैं। मैं अपने बच्चों से बहुत प्यार करती हूँ। बाकी सारी बातें दूसरे नंबर पर आती हैं। अगर मेरे लिए एक रास्ता बंद हुआ है तो कई रास्ते खुल भी जाएँगे। मैं अपने और अपने बच्चों के भविष्य के लिए काम करूँगी।" पर आखिर क्या बात थी कि इतने साल साथ रहने के बाद दोनों के रिश्ते में दरार आई? इसके जवाब में उनका कहना है, "मेरे और सैफ के बीच कोई भी झगड़ा नहीं हुआ। हमने मर्जी से इस रास्ते को चुना है।"
अपने अतीत से उन्हें कोई शिकवा नहीं है। आमतौर पर इंसान को अपने बीते कल पर गुस्सा ही आता है और आने वाले कल पर बेपनाह प्यार। पर अमृता का कहना है, "फिल्मों ने मुझे बहुत कम उम्र में ही सब कुछ दे दिया। मेरी सारी जरूरतें पूरी हो गई थीं। एक्टर्स की कई पीढ़ियाँ मैंने आती-जाती देखी हैं। टॉप के कलाकारों के साथ काम किया, पर एक समय आया जब मुझे थकान हुई और मैंने अपना घर बसाना चाहा। मैंने सही वक्त पर काम छोड़ा। मैं शादी करना चाहती थी। जिंदगी में मुझे किसी बात का पछतावा नहीं है, न अपनी शादी का और न अपने करियर का। हर फैसले ने मुझे खुशियाँ ही दी हैं।"

छोटा पर्दा अमृता के लिए सफल वापसी का माध्यम बना। 2002 में उन्होंने फिल्म "23 मार्च 1931-शहीद" से बड़े पर्दे पर वापसी की, लेकिन सशक्त रूप से "कलयुग" में नजर आईं। इसमें उनकी नकारात्मक भूमिका बहुत असरदार थी। अभी वे कुछ फिल्मों में काम कर रही हैं और कुछ स्क्रिप्ट भी पढ़ रही हैं।

इतने वर्ष तक लाइमलाइट से दूर रहने के बाद वापसी करना आसान तो नहीं होता, पर उन्होंने छोटे पर्दे के साथ-साथ बड़े पर्दे पर भी मजबूती से वापसी की है। पहले धारावाहिक "काव्यांजलि" और उसके बाद फिल्म "कलयुग" और "शूटआउट एट लोखंडवाला" से री-एंट्री करके अमृता फिर से अभिनय के क्षेत्र में लौट आई हैं। अब सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि उनको कैसी भूमिकाएँ मिलती हैं। पर जो भी काम मिलेगा उसे वे पूरे दिल से करेंगी, इस बात का दावा वे खुद करती हैं।
आजकल उनकी जिंदगी पूरी तरह से काम और अपने दोनों बच्चों के बीच सिमट गई है। काम और परिवार के बीच बेहतर तालमेल के कारण वे आत्मविश्वास से भरी हुई हैं। उन्हें इस बात की बेहद खुशी है कि उम्र के इस दौर में भी उन्हें काम मिल रहा है जबकि नायिकाओं का करियर ज्यादा लंबा नहीं होता। अब वे अपनी जिंदगी में व्यस्त हैं और खुश हैं, उन्हें किसी और की जरूरत नहीं।

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