शनिवार, 6 मार्च 2010

प्रेम का दृष्टिकोण

प्रेम 'आत्मा की एक शक्ति'

प्रेम किसी एक व्यक्ति से हमारे संबंधों का नाम नहीं है, यह एक दृष्टिकोण है, एक चारित्रिक रुझान है जो किसी व्यक्ति के साथ-साथ पूरी दुनिया से हमारे संबंधों को अभिव्यक्त करता है। वह केवल एक लक्ष्य और उसके साथ के संबंधों का नाम नहीं है। यदि एक व्यक्ति केवल दूसरे एक व्यक्ति से प्रेम करता है और अन्य सभी व्यक्तियों में उसकी रुचि नहीं है, तो उसका प्रेम, प्रेम न होकर उसके अहं का विस्तार मात्र है। फिर भी ज्यादातर लोग यही समझते हैं कि प्रेम एक 'लक्ष्य' है न कि एक 'क्षमता'।

वे समझते हैं कि भूल भी करते हैं कि यदि वे केवल अपने 'प्रेमी' या 'प्रेमिका' से ही प्रेम करते हैं, तो यह उनके प्रेम की गहराई का प्रतीक है। इसका मतलब है कि वे प्रेम को एक गतिविधि के रूप में, 'आत्मा की एक शक्ति' के रूप में नहीं देखते।

उन्हें लगता है कि एक 'प्रेमी' या 'प्रेमिका' होने का अर्थ है 'प्रेम' को पा लेना। यह बिलकुल वैसी ही बात है, जैसे कोई व्यक्ति चित्रकारी करना चाहता है और समझे कि उसे केवल एक प्रेरक विषय की जरूरत है, जिसके मिल जाने पर वह स्वत: ही बढ़िया चित्रकारी कर लेगा। अगर मैं किसी एक व्यक्ति से सचमुच प्रेम करता हूँ तो मैं सभी व्यक्तियों से प्रेम करता हूँ। किसी से 'मैं तुम्हें प्यार करने का सच्चा अर्थ' यह है कि 'मैं उसके माध्यम से पूरी दुनिया और पूरी जिंदगी से प्यार करता हूँ।

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