बुधवार, 24 मार्च 2010

आलेख

स्‍पर्श की बि‍नबोली भाषा
बोली जाने वाली भाषा के अलावा अपने भावों की अभिव्यक्ति का कौनसा माध्यम है? इस सवाल का एक ही जवाब सबसे पहले जेहन में आता है और वह है स्पर्श। स्पर्श वह अनोखी भाषा है जो बिना शब्दों के ही भावनाओं को बखूबी संप्रेषित कर देती है।
नन्हे-मुन्नो माँ का स्पर्श पाकर बेहद सुरक्षित महसूस करते हैं।
निराश व्यक्ति की पीठ पर हाथ फेरकर उसे संबल दिया जाता है। यह स्पर्श पाते ही वह आश्वस्त होता है और महसूस करता है कि इस कठिन परिस्थिति में भी कोई उसके साथ है।
पीठ थपथपाना बहुत उत्साहित महसूस कराता है। यह सफलता पर बधाई देने और प्रोत्साहित करने का सशक्त मध्यम है।
भारत में चरणस्पर्श सम्मान और आदर प्रकट करने का सर्वकालिक और सर्वमान्य तरीका है। यह हृदय के सम्मान और श्रद्धा को बखूबी जाहिर कर देता है।
लंबे अंतराल के बाद भेंट होने पर किया गया आलिंगन प्रेम और मिलन की खुशी को जाहिर करता है। वहीं विरह और शोक से पीड़ित व्यक्ति को गले लगा लेना उसकी ओर सहानुभूति प्रेषित करने और 'मैं हूँ न' कहने का सर्वोत्तम माध्यम है।
मरीज के हाथ पर हाथ रखना मात्र ही उसके लिए बड़ा आश्वासक होता है और हमारे उसके प्रति शुभचिंतन को उस तक पहुँचाता है।
विदा होते समय किया गया आलिंगन संबल देता है और बताता है कि 'मुझे तुम्हारी फिक्र है।' यह सुखद भविष्य के लिए की गईं शुभकामनाओं का भी द्योतक है।
समय-समय पर आश्वस्त करने वाली, विश्वास बढ़ाने वाली और 'डोन्ट वरी' का संदेश देने वाली यह स्पर्श की भाषा रिश्तों को मधुरता से भरती है और उन्हें मजबूत बनाती है।

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