सोमवार, 15 मार्च 2010

नवरात्रि

भगवती आराधना परम कल्याणकारी
युग-युगांतरों में विश्व के अनेक हिस्सों में उत्पन्न होने वाली मानव सभ्यता ने सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र, जल, अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी, पेड़-पौधे, पर्वत व सागर की क्रियाशीलता में परम शक्ति का कहीं न कहीं एहसास किया। उस शक्ति के आश्रय व कृपा से ही देव, दनुज, मनुज, नाग, किंनर, गधर्व, पित्तर, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी व कीट आदि चलायमान हैं।
ऐसी परम शक्ति की सत्ता का सतत्‌ अनुभव करने वाली सुसंस्कृत, पवित्र, वेदगर्भा भारतीय भूमि धन्य है। जिसके सद्गृहस्तियों ने धर्म, अर्थ, काम तथा जीवन के अन्तिम लक्ष्य मोक्ष को भी प्राप्त किया।
हमारे वेद, पुराण व शास्त्र गवाह हैं कि जब-जब किसी आसुरी शक्ति ने अत्याचार व प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव जीवन को तबाह करने की कोशिश की तब-तब किसी न किसी दैवीय शक्ति का अवतरण हुआ। इसी प्रकार जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से भू व देव लोक व्याकुल हो उठे तो परम पिता परमेश्वर की प्रेरणा से सभी देव गणों ने एक अद्भुत शक्ति का सृजन किया जो आदि शक्ति माँ जगदंबा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में व्याप्त हुईं। जिन्होंने महिषासुरादि दैत्यों का वध कर भू व देव लोक में पुनः प्राण शक्ति व रक्षा शक्ति का संचार कर दिया।
देवी भागवत, सूर्य पुराण, शिव पुराण, भागवत पुराण, मारकण्डेय आदि पुराणों में शिव व शक्ति की कल्याणकारी कथाओं का अद्वितीय वर्णन है। शक्ति की परम कृपा प्राप्त करने हेतु सम्पूर्ण भारत में नवरात्रि का पर्व वर्ष में दो बार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तथा आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को बड़ी श्रद्धा, भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। जिसे वसंत व शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है।
इस वर्ष नवरात्रि का पावन पवित्र पर्व 16 मार्च 2010 चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ हो रहा है। अन्योआश्रित जीवन की रीढ़ कृषि व जीवन के आधार प्राणों की रक्षा हेतु इन दोनों ही ऋतुओं में लहलहाती हुई फसलें खेतों से खलिहान में आ जाती हैं।

इन फसलों के रख रखाव व कीट पंतगों से रक्षा हेतु, घर-परिवार को सुखी व समृद्ध बनाने तथा भयंकर कष्टों, दुःख-दरिद्रता से छुटकारा पाने हेतु सभी वर्ग के लोग नौ दिनों तक विशेष सफाई तथा पवित्रता को महत्व देते हुए नव देवियों की आराधना करते हुए हवनादि यज्ञ क्रियाएँ करते हैं। यज्ञ क्रियाओं द्वारा पुनः वर्षा होती है जो धन, धान्य से परिपूर्ण करती है तथा अनेक प्रकार की संक्रमित बीमारियों का अंत भी करती है।
नवरात्रि के कुछ सिद्ध मंत्र
श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ मनोरथ सिद्धि के लिए किया जाता हैं। कहा जाता है कि माता दुर्गा शौर्य गाथा, भक्ति व ज्ञान की त्रिवेणी हैं। यह श्री मार्कण्डेय पुराण का अंश है। सप्तशती में कुछ ऐसे सिद्ध मंत्र हैं, जिनके द्वारा हम अपनी मनोकामना की पूर्ति कर सकते हैं।
यह देवी महात्म्य हमारे धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष चारों पुरुषार्थों को प्रदान करने में सक्षम है।
- ऐश्वर्य प्राप्ति एवं भय मुक्ति मंत्र
ऐश्वर्य यत्प्रसादेन सौभाग्य-आरोग्य सम्पदः।
शत्रु हानि परो मोक्षः स्तुयते सान किं जनै॥
- सर्वकल्याण मंत्र
सर्व मंगलं मांगल्ये शिवे सर्वाथ साधिके ।
शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुऽते॥
- सर्वविघ्ननाशक मंत्र
सर्वबाधा प्रशमनं त्रेलोक्यसयाखिलेशवरी।
एवमेय त्याया कार्य मस्माद्वैरि विनाशनम्‌॥

- बाधा मुक्ति एवं धन-पुत्र प्राप्ति का मंत्र
सर्वाबाधा वि निर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वितः।
मनुष्यों मत्प्रसादेन भवष्यति न संशय॥

- सौभाग्य प्राप्ति का चमत्कारिक मंत्र
देहि सौभाग्यं आरोग्यं देहि में परमं सुखम्‌।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि॥

- विपत्ति नाशक मंत्र
शरणागतर्दनार्त परित्राण पारायणे।
सर्व स्यार्ति हरे देवि नारायणि नमोऽतुते॥

कैसे करें जाप :- नवरात्रि के प्रतिपदा के दिन घटस्थापना के बाद संकल्प लेकर प्रातः स्नान करके दुर्गा की मूर्ति या चित्र की पंचोपचार या दक्षोपचार या षोड्षोपचार से गंध, पुष्प, धूप दीपक नैवेद्य निवेदित कर पूजा करें। मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
शुद्ध-पवित्र आसन ग्रहण कर रुद्राक्ष, तुलसी या चंदन की माला से मंत्र का जाप एक माला से पाँच माला तक पूर्ण कर अपना मनोरथ कहें। पूरी नवरात्रि जाप करने से वांच्छित मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
उपरोक्त सारे मंत्र विधिनुसार करने पर मनुष्‍य अपने सारे पापों और कष्‍टों को दूर करके माता का आशीर्वाद का पात्र बन जाता है। नवरात्रि में संयमपूर्वक की गई प्रार्थना और भक्ति माता स्वीकार करती है और साथ ही अपने भक्तों के कष्‍टों का निवारण करते हुए उन्हों मोक्ष प्राप्ति का मार्ग दिखाती है।
या देवी सर्वभूतेषू...

॥ या देवी सर्वभूतेषू शक्तिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
कहते हैं कि शक्ति से सृजन होता है और शक्ति से ही विध्वंस। वेद कहते हैं शक्ति से ही यह ब्रह्मांड चलायमान है।...शरीर या मन में यदि शक्ति नहीं है तो शरीर और मन का क्या उपयोग। शक्ति के बल पर ही हम संसार में विद्यमान हैं। शक्ति ही ब्रह्मांड की ऊर्जा है।
माँ पार्वती को शक्ति भी कहते हैं। वेद, उपनिषद और गीता में शक्ति को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति कहने से अर्थ वह प्रकृति नहीं हो जाती। हर माँ प्रकृति है। जहाँ भी सृजन की शक्ति है वहाँ प्रकृति ही मानी गई है इसीलिए माँ को प्रकृति कहा गया है। प्रकृति में ही जन्म देने की शक्ति है।
अनादिकाल की परम्परा ने माँ के रूप और उनके जीवन रहस्य को बहुत ही विरोधाभासिक बना दिया है। वेदों में ब्रह्मांड की शक्ति को चिद् या प्रकृति कहा गया है। वेदों में दुर्गा का कोई उल्लेख नहीं मिलता। गीता में इसे परा कहा गया है। इसी तरह प्रत्येक ग्रंथों में इस शक्ति को अलग-अलग नाम दिया गया है, लेकिन इसका शिव की अर्धांगिनी माता पार्वती से कोई संबंध नहीं। फिर भी पुराणकारों ने सभी का संबंध दुर्गा से जोड़ दिया।
माँ पार्वती का मूल नाम सती है। ये सती शब्द बिगड़कर शक्ति हो गया। शक्ति का अब अर्थ ताकत होता है। पुराणों अनुसार माँ पार्वती के पिता का नाम दक्ष प्रजा‍पति और माता का नाम मेनका है। पति का नाम शिव और पुत्र कार्तिकेय तथा गणेश हैं।
इन्हें हिमालय की पुत्री अर्थात उमा हैमवती भी कहा जाता है। राजा दक्ष प्रजापति को हिमालय इसीलिए कहा जाता है कि उनका राज्य हिमालय क्षेत्र में ही था। दुर्गा ने महिषासुर, शुम्भ, निशुम्भ आदि राक्षसों का वध करके जनता को कुतंत्र से मुक्त कराया था। उनकी यह पवित्र गाथा मर्केण्डेय पुराण में मिलती है।
इस समूचे ब्रह्मांड में व्याप्त हैं सिद्धियाँ और शक्तियाँ। स्वयं हमारे भीतर भी कई तरह की शक्तियाँ हैं। ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति, मन:शक्ति और क्रियाशक्ति आदि। अनंत हैं शक्तियाँ। वेद में इसे चित्त शक्ति कहा गया है जिससे ब्रह्मांड का जन्म होता है।
॥ॐ एं ह्रीं क्लीं चामुण्डायैः विच्चे॥

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