रविवार, 7 फ़रवरी 2010

पर्यटन

बदल रही है तस्वीर कश्मीर की

कोई छः बरस पहले कश्मीर गया था, तो मकसद था कश्मीर के असंतोष और उसकी वजहों को जानना-समझना। इस बार विशुद्ध पर्यटक की हैसियत से गया। पिछली बार और इस बार में जो फर्क साफ नजर आया, वह यह कि अब आतंक घट चुका है और तनाव भी। अब बाल-बच्चों को लेकर आराम से कश्मीर की सैर की जा सकती है।

पहले सड़कों पर चलते हुए डर लगता था। फौजी भी बेगानी नजरों से देखते थे और कश्मीरी अवाम भी। दोनों की नजरों में मश्कूक रहते हुए इधर-उधर विचरना, खासकर गाँवों में जाना तकलीफदेह था। इस बार ऐसा कुछ नहीं था। पिछली बार खून और गोलियों की इतनी दास्तानें रकम की थीं कि बर्फ में जाने का मन नहीं हुआ था।

स्थानीय पत्रकारों ने कहा भी कि चलिए, हम आपको गुलमर्ग घुमा लाते हैं, पर तब पर्यटन करने में शर्म महसूस हुई थी। उस वक्त पर्यटन करना ऐसा था, जैसे किसी के घर गमी में बैठने गए हों और उसी का टीवी चालू कर के कॉमेडी शो देखने लगें। डल झील तक भी एक साथी खींचकर ले गया था। इस बार मामला एकदम अलग था। परिवार के साथ बिना डर, बिना झिझक गुलमर्ग भी घूमा और डल झील की सैर भी की। और यह सब बेहद सस्ते में।



ND ND

लाल चौक :
पिछली बार जब गया था तो लोगों ने कहा कि सबसे ज्यादा वायब्रेंट इलाका लाल चौक है। सो, जिद के तहत लाल चौक के ही एक होटल में ठहरा था। यह सच है कि लाल चौक का अगला हिस्सा इंदौरClick here to see more news from this city के राजबाड़े की तरह बाजार और भीड़-भाड़ वाला है। मगर पिछले हिस्से में झेलम बहती है और झेलम के पानी में खड़े रहते हैं बहुत-से शिकारे।

पिछली बार एक शिकारे वाले ने मात्र 200 रुपए रोज में शिकारे में कमरा देने की पेशकश की थी। मगर शिकारे में लिखना मुश्किल होता, इसलिए उसमें ठहरना टाल दिया था। इस बार 400 रुपए में शिकारे वाले ने शिकारे में कमरा देने को कहा तो टालना मुश्किल हो गया। लाल चौक में होटल वाकई बहुत सस्ते हैं। कोई भी ठीक-ठाक-सा होटल मात्र 500 रुपए रोज में डबलबेड रूम किराए पर दे देता है।

इसमें रूम हीटर भी मिलता है और अटैच्ड लेट-बाथ में चौबीसों घंटे गर्म पानी भी। एक जमाने में लाल चौक से ही सारी सियासी हरकतें शुरू होती थीं। अलगाववादियों की तमाम सभाएँ, तमाम विरोध प्रदर्शन, तमाम पथराव और लाठीचार्ज, फायरिंग, गोलियाँ...। मगर इसके साथ ही लाल चौक में आस-पास से आए व्यापारी भी ठहरते थे और ठहरते हैं। बड़ा बाजार भी यही है। पूरे श्रीनगरClick here to see more news from this city की महिलाएँ दोपहर में अपनी जरूरत की सारी चीजें यही से खरीदती हैं।

लाल चौक शहर का वह हिस्सा है, जहाँ शहर के दोनों हिस्सों का मिलन होता है। एक श्रीनगर पर्यटकों का है और दूसरा गरीब नागरिकों का जिसे स्थानीय बोलचाल में "डाउन टाउन" कहा जाता है। लाल चौक पर दोनों हिस्सों का मानसिक मिलन होता है। खाने-पीने के किफायती और प्रामाणिक कश्मीरी रेस्तराँ यहीं पर हैं। यहीं से 2 रुपए में बस स्टैंड बटमालू के लिए वाहन मिलता है।

बटमालू से आपको बस मिल सकती है लद्दाख की, कारगिल की, गुलमर्ग की, सोनमर्ग की, पहलगाम की, बालटाल की, बारामूला की और उड़ी सेक्टर की, जहाँ के बाद से पाकिस्तान की सरहद शुरू होती है। मुजफ्फराबाद का रास्ता इसी बस स्टैंड के जरिए देखा जा सकता है। हाँ, इन सब जगहों पर जाने के लिए अन्य वाहन भी मिलते हैं, जो लाल चौक के स्टैंड पर मुहैया हैं। जम्मूClick here to see more news from this city से जो लोग बस या अन्य वाहनों में किराया देकर आते हैं, उन्हें भी लाल चौक में ही उतारा जाता है।



ND ND

सो, अगर आप पर्यटक बनकर जा रहे हों तो घुमाने वालों के बहकावे में न आएँ। बिंदास लाल चौक जाएँ और किसी भी होटल या शिकारे में डेरा डाल दें। डल झील यहाँ से 2 किलोमीटर दूर है, बस। वैसे तो कश्मीर नॉनवेज खाने वालों के लिए जन्नात है, मगर यदि आप शाकाहारी हैं तो लाल चौक की गलियों में आपको नाश्ते के लिए हलवा-पूरी, छोले-पूरी, कुलचे-भटूरे मिल जाएँगे।

खाने में तुवर की दाल तो नहीं मिलेगी, पर दाल मखानी मिल जाएगी। उड़द की काली साबुत दाल, राजमा, आलू-गोभी, पालक-पनीर, तंदूरी और तवा रोटियाँ...। यहाँ की गलियों में कुछ पंजाबी शाकाहारी ढाबे भी हैं, जहाँ खाना बहुत ही सस्ता है।

हाँ, बर्फ देखना हो तो सबसे नजदीक गुलमर्ग है। केवल 64 किलोमीटर दूर। निजी वाहन भी कर सकते हैं और बटमालू बस स्टैंड से बस में भी बैठ सकते हैं। 17 रुपए सवारी में बस टंगमर्ग तक ले जाती है और उसके बाद 20 रुपए में टाटा सूमो गुलमर्ग तक। अगर कश्मीर के जनजीवन को नजदीक से देखना हो तो बस ठीक है। ऊबा देने की हद तक धीमी जरूर चलती है, पर आप देखते बहुत कुछ हैं।

बर्फ के मच्छर :
गुलमर्ग जाइए, पहलगाम जाइए या सोनमर्ग, जिस तरह काशी में पंडे पीछे पड़ते हैं उसी तरह यहाँ गाइड, स्लेज वाले, किराए में गमबूट और कपड़े देने वाले पीछे पड़ते हैं। इन्हें पैसे दिए बगैर आप बर्फ का मजा नहीं ले सकते। ये आपको घेर लेते हैं फिर चाहे आप गालियाँ दें, चाहे झिड़कें, चाहें चीखें, ये आपका पीछा नहीं छोड़ते। इनसे सौदा करने का तरीका यह है कि ये जो भी माँगें आप उसके 20 फीसद से बात शुरू कीजिए। 35-40 फीसद पर सौदा पट जाता है।

इन्हें पैसे दिए बगैर आप बर्फ का मजा इसलिए नहीं ले सकते कि ये घेरे रहते हैं और लगातार आप पर दबाव बनाते हैं। बहुत चिढ़ जाओ तो बताते हैं कि हमारा गुजारा पर्यटकों से ही चलता है और हर पर्यटक पर नंबर बाय नंबर ही स्थानीय लोग झूमते हैं। आप पर हमारा नंबर आया है।

गुलमर्ग हो, पहलगाम या फिर सोनमर्ग, यहाँ से एक दिन में लौटने की इच्छा नहीं होती। यहाँ होटल थोड़े महँगे हैं, पर हैं बहुत सुविधा वाले। यहाँ के होटलों में कंबल भी बिजली के हैं, जो अपनी तरफ से गर्मी देते हैं। अगर इस तरह के कंबल न हो तो हम गर्म इलाकों के रहने वाले रात न काट पाएँ। इन दिनों में भी गुलमर्ग का न्यूनतम तापमान 2, 3, 4 डिग्री पर रहता है। अगर आपकी किस्मत अच्छी हो तो आप बर्फ गिरती भी देख सकते हैं, मगर तब ठंड और बढ़ जाती है।

एक जमाने में कश्मीर फिल्म वालों के लिए स्विट्जरलैंड था। बहुत फिल्मों की शूटिंग कश्मीर में होती थी। आतंकवाद के चलते यह सिलसिला टूट गया था, पर अब वापस कुछ फिल्म वाले हिम्मत कर रहे हैं। अलबत्ता पूरे कश्मीर में एक भी सिनेमाघर नहीं बचा है, जहाँ फिल्में दिखाए हों। सारे के सारे सिनेमाघरों को आतंकवादियों ने इस्लाम-विरोधी कहकर बंद करा दिया।

स्थानीय केबल पर समाचारों के अलावा फिल्में ही दिखाई जाती है। यह इस बात का संकेत है कि स्थानीय निवासी इस्लाम को लेकर आतंकवादियों की व्याख्या से सहमत नहीं है। आतंकवाद अब धीरे-धीरे किनारे लग रहा है। इन दिनों छुट-पुट घटनाएँ हो भी रही हैं, तो सीमावर्ती इलाके में। शहरी कश्मीर अब धीरे-धीरे आतंकवाद से उबर रहा है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें