शनिवार, 5 जून 2010

हवा

पेड़ों को झकझोरती है हवा
कुसुम सिन्हा

पेड़ों को झकझोरती अँचल उड़ाती है हवा
जाने किसकी याद में बेचैन लगती है हवा

मनचली हिरनी-सी वो भर-भर कुलाचें चल रही
जाने किसकी याद में बेचैन लगती है हवा

गुनगुनाती चल रही भँवरों-ति‍तलियों के संग
फिर नदी के जल में? भी लहरें उठाती है हवा

कितना भी रोको उसे पर रुक नहीं पाती है हवा
जाने क्या सन्दो ले उड़ाती ही जाती है हवा

यादों के बादलों को कहाँ उड़ा ले जा‍ती है
पल भर को ही सही मन में पुलक भरती है हवा।

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