मंगलवार, 15 जून 2010

मौत की कल्पना

मौत से चलता है इनका जीवन
जीवन की तुलना में मौत की कल्पना अत्यंत भयावह होती है। लेकिन दुनिया में एक वर्ग ऐसा भी है जिसकी आजीविका मौत से जुड़ी है।

भारत सहित विभिन्न देशों में कुछ लोग अपनी रोजी रोटी के लिए शवों के अंत्येष्टि प्रबंधन पर निर्भर हैं। ऐसे लोगों के जज्‍बे और उनके काम की सराहना करने के लिए दुनिया के कई देशों में 16 जून की तारीख उनके नाम समर्पित है। अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों में यह दिन मार्टिशियन डे के रूप में मनाया जाता है। श्मशान घाट का संचालन करने वाले लोग भारत में भी हैं। लेकिन हमारे यहां ऐसा कोई खास दिन नहीं है। हालांकि, शवों के अंतिम संस्कार के लिए आज भी सारा प्रबंध यही लोग करते हैं।
राष्ट्रीय राजधानी स्थित निगमबोध घाट पर शवों के अंतिम संस्कार का प्रबंध करने वाले एक व्यक्ति ने कहा कि यहां अपने प्रियजन की मौत पर प्रलाप कर रहे लोग उनके अंतिम संस्कार के लिए आते हैं। हमने अंतिम संस्कार की औपचारिकताएं पूरी की हैं, लेकिन हमें हेय दृष्टि से देखा जाता है। कोई हमारे पास नहीं आना चाहता।
निगमबोध घाट के ही एक कर्मचारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा कि हम लोग रोजी रोटी के लिए यह काम करते हैं। कभी कभी तो सब कुछ छोड़ कर भाग जाने का मन करता है।
प्रबंध के बारे में पर्यवेक्षक ने कहा कि जो लोग शव ले कर आते हैं, हम उनसे पहले फार्म भरवाते हैं। फिर रजिस्ट्रेशन होता है और उन्हें लकड़ी की पर्ची दी जाती है। हमारा काम बस इतना ही है। इसके बाद का सारा काम पंडित करवाते हैं। कर्मचारी ने बताया कि यहां करीब 40 से 45 कर्मचारी हैं। हम यहां की देखरेख और साफ सफाई का काम भी करते हैं। इस केंद्र का संचालन आर्य समाज सोसाइटी करती है।
वेतन के बारे में पूछे जाने पर पर्यवेक्षक ने बताया कि सबका वेतन अलग-अलग है। लेकिन हर माह औसतन चार हजार रुपये मिल जाते हैं। उन्होंने कहा, चार हजार रुपये में घर नहीं चल पाता। हर दिन शवों से सामना करने पर कैसा महसूस होता है, इस पर पर्यवेक्षक ने कहा कि शुरू में तो अजीब लगता है, दहशत होती है। लेकिन बाद में हम इसके आदी हो जाते हैं। बल्कि ऐसा कहिए हम संवेदनहीन हो जाते हैं। हम इसे छोड़ नहीं सकते क्योंकि पेट का सवाल है। राजधानी के एक कब्रिस्तान में कब्र खोदने का काम करने वाले एक व्यक्ति ने बताया मन तो नहीं होता, लेकिन क्या करें। बच्चों की कब्र खोदना आज भी बहुत तकलीफदेह होता है।
अमेरिका की एक वेबसाइट के अनुसार दुनिया भर में श्मशान घाट पर काम करने वाले लोगों ने अब इसे एक व्यवसाय अथवा पेशे के रूप अपना लिया है। यह काम आसान नहीं है और कई संगठन भी अब इस काम के लिए आगे आ रहे हैं। वेबसाइट के अनुसार ऐसा माना जाता है कि अमेरिका का पहला मार्टिशियन विलियम रसेल था। जिसने 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अंत्येष्टि प्रबंधन का काम शुरू किया। ताबूत बनाने वाले रसेल ने इस काम को 1688 में व्यापार का रूप दिया। रसेल को अमेरिका में पहले अंत्येष्टि निदेशक के रूप में जाना जाता है।
भारत में विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं। सबकी अपनी अपनी परंपराएं है। इन परंपराओं के निर्वाह में अंत्येष्टि प्रबंधकों का कहीं न कहीं योगदान अवश्य रहता है।

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